भारत एक शाश्वत कविता है। एक जीवंत कविता, जो अपनी उच्छ्रंखल विविधता में श्वास लेती है, विभिन्न संस्कृतियों की ओढ़नियों में खिलती है, सदियों पूर्व सुनिश्चित भौगोलिक सीमाओं में स्फुरित होती है। इसकी राजनैतिक सीमाओं में अनेकों परिवर्तन आयें एवं भविष्य में आते रहेंगे। किन्तु इस देश की सीमाएं एवं इसकी चेतना को अनेकों शास्त्रों में इस प्रकार परिभाषित किया है, उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर तक। वह ना इन सीमाओं को लांघती है, ना ही इनसे सिकुड़ती हैं।
यह अपनी सीमाओं के भीतर सहस्त्रों ऋषि-मुनियों के अनंत वर्षों की साधना तथा ध्यान की ऊर्जा को समेटे हुए है जिन्होंने इसके पर्वतों, वनों एवं नदियों के तटों पर तपस्या की है।
भारत का नभस्थ दृष्टिकोण
एक पंछी बनकर भारत को निहारें। कवि कालिदास की उत्कृष्ट पद्मकविता मेघदूत के मेघ के दृष्टिकोण से भारत को सराहें। महाकाव्य मेघदूत में, मध्य भारत के रामटेक पर्वतों से एक प्रेमी यक्ष, वर्षा के आरम्भ में उमड़ते-घुमड़ते मेघों के द्वारा, दूर-सुदूर हिमालय की गोद में स्थित अलकापुरी में अपनी प्रियतमा पत्नी को सन्देश दे रहा है। प्रेम में विह्वल, वह मेघों से कह रहा है कि वे अपने प्रवास में प्रेम से ओतप्रोत प्रकृति के विभिन्न आयामों को निहारें। वह उन परिदृश्यों की कल्पना कर रहा है जिन्हें मेघ देखेंगे, पर्वत, नदियाँ, पुष्प, वनस्पति, जीव-जंतु इत्यादि। वह मेघों से उज्जैन जैसे नगरों की सुन्दरता का उल्लेख कर रहा है जिसकी परिभाषा ही समृद्धि है। वह उनसे उज्जैन के मार्ग में, वनों में निवास करते लोगों का उल्लेख कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है मानो यक्ष स्वयं ही अप्रतिम प्रकृति का दर्शन करते प्रवास कर रहा हो, अपनी कल्पना में ही सही।
प्रथम दर्शन
नभ से प्रथम दर्शन में भारत का स्वर्ग सदृश भूखंड बालू, हिम तथा हरियाली से आच्छादित दृष्टिगोचर होता है जहां पर्वतों के मध्य स्थित वनों में सिंह, बाघ, गज, गेंडे इत्यादि जैसे वनीय प्राणियों से आंखमिचौली खेलते व उछलते हिरणों के झुण्ड स्वच्छंद विचरण करते हैं। तीन ओर समुद्र से सीमित भारत प्रायद्वीप को बालू की संकरी किनारी घेरती है जिसका कुल समुद्र तट किसी भी अन्य देश के समुद्र तट से सर्वाधिक लंबा है। उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित थार मरुस्थल एवं उसके बालू के टीलों का रहस्यमयी परिदृश्य अत्यंत लुभावना प्रतीत होता है। मध्य भाग में स्थित जीवाश्म उद्यान में उस काल की स्मृतियाँ संजोई हुई हैं जब यह स्थान गोंडवाना का भाग था तथा यहाँ के वनों की हरियाली अपने नीचे बालू को संजोये हुए है।
हिमालय
बर्फ से आच्छादित हिमालय भारत के शीश पर विराजमान एक मुकुट के समान है। यहाँ से निकलती हिमनदियाँ मैदानी भागों से होकर बहती हुई, गंगा, यमुना व सिन्धु जैसी अनेक पवित्र व प्रसिद्ध नदियों में परिवर्तित हो जाती हैं। यही अवस्था भारत की अन्य पर्वत श्रंखलाओं की है, जैसे मध्य भाग में विन्ध्य, दक्षिण में कोडगु अथवा पश्चिम में सह्याद्री इत्यादि।
जिस स्थान से नदियों का उद्गम होता है उस स्थान को तीर्थ का मान दिया जाता है। वहीं जिस स्थान पर दो अथवा अधिक नदियों का मिलन होता है वह संगम भी परम पावन तीर्थ स्थान माना जाता है। उसी प्रकार जिस स्थान पर एक नदी समुद्र में जाकर उससे एकाकार हो जाती है वह स्थान भी एक तीर्थ बन जाता है।
नदियाँ
भारत की नदियाँ उसकी शिराओं एवं धमनियों के समान हैं। हमारी देह की शिराओं से बहते जीवन द्रव्य के समान इन नदियों में बहते जल ने सदियों से अपने तट पर बसी सभ्यता का पोषण किया है। भारत की भूमि पर बिछी इन शिराओं से केवल एक ही वस्तु प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं, वह है भारत की भूमी पर किसी जाल के समान बिछी रेल की पटरियाँ जो नदियों को लांघती, पर्वतों को चीरती, सुरंगों के भीतर लुप्त सी हो जाती तथा लम्बे लम्बे मैदानी क्षेत्रों को पार करती भारत के एक छोर से दूसरी छोर तक जाती हैं।
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित गण्डकी नदी के तीर एकल सींग के गेंडे स्वच्छंद विचरण करते हैं जिनका नाम भी नदी की ही देन है। आसाम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के ऊंचे ऊंचे घास के मैदानों में स्वतन्त्र विचरण करते ये गेंडे किसी पालतू पशु के समान प्रतीत होते हैं। वहीं यह उद्यान चाय के विस्तृत बागानों से घिरा हुआ है जहां की चाय की सुगंध हमें प्रत्येक प्रातः नींद से जगाती है।
गंगा एवं चम्बल नदियों में गोते लगाते सूंस अथवा डॉलफिन, घड़ियाल इत्यादि भारत के राष्ट्रीय जलचर हैं। नर्मदा के तीर अनेक तीर्थयात्री नर्मदा परिक्रमा करते दृष्टिगोचर होते हैं जो नर्मदा नदी को अपने दाहिनी ओर रखते हुए नदी की २८०० किलोमीटर लम्बे पथ पर पदयात्रा करते हुए परिक्रमा करते हैं।
देश के मध्य भाग में स्थित वनों से बहती देनवा तथा पेण नदी के तट बाघों के दर्शन के सर्वोत्तम स्थान हैं जहां वे अपनी तृष्णा संतुष्ट करने आते हैं। पेंच के वनों में मोगली एवं शेरा की रोचक कथाएँ जीवंत होने लग जाती हैं। ऋषिकेश के समीप गंगा का तट हाथियों के समूहों का प्रिय स्थान है, उसी प्रकार पूर्वी हिमालय पर्वत श्रंखलाओं की तलहटी पर बहती तीस्ता नदी भी उनका पोषण करती है।
कुम्भ मेला
सौरमंडल में नक्षत्रों की एक विशेष अवस्थिति के अनुसार प्रत्येक १२ वर्षों में कुम्भ मेला भरता है। प्रयागराज में गंगा एवं यमुना के संगम स्थल पर आयोजित यह कुम्भ मेला वास्तव में किसी एक स्थान पर मानव जाति का वैश्विक रूप से एक विशालतम संगम है। यह हरिद्वार में भी उस स्थान पर आयोजित किया जाता है जहां गंगा मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। उज्जैन की क्षिप्रा नदी के तट पर भी इस मेले का आयोजन किया जाता है, जहाँ से कर्क रेखा जाती है। अन्य स्थल है, नासिक के गोदावरी नदी का तट। यूँ तो भारत के पवित्र स्थलों से बहती नदियों के तटों पर वर्ष भर ही भक्तों का तांता लगा रहता है जो यहाँ आकर विभिन्न पूजा-अर्चना तथा अनुष्ठान करते हैं। उनमें मुख्य हैं, हरिद्वार व वाराणसी में गंगा नदी के तट, मथुरा में यमुना नदी का तट, ओम्कारेश्वर एवं महेश्वर में नर्मदा नदी के तट, नासिक में गोदावरी नदी का तट इत्यादि।
दीपावली से १५ दिवसों के पश्चात आने वाली कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर देश भर के आस्थावान पावन नदियों में पवित्र स्नान करते हैं। विश्व का सर्वाधिक विशाल ऊँट मेला ब्रह्मा की नगरी पुष्कर में पुष्कर झील के समीप आयोजित किया जाता है।
नभ से भूमि के किंचित समीप आकर देखें तो उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में हिमालय व शिवालिक पर्वत श्रंखलाओं की तलहटी पर छोटे छोटे अनेक काठकुणी मंदिर दृष्टिगोचर होंगे जो लकड़ी व शिलाओं के वैकल्पित फलकों एवं स्लेट प्रस्तर की छत द्वारा निर्मित होते हैं। उन मंदिरों में विराजमान देव पर्वतों के ऊपर से अपने क्षेत्रों की निगरानी करते हैं। लाखों छोटी छोटी जलधाराएं मिलकर सतलज एवं व्यास जैसी नदियों को जन्म देती हैं। ऊंचाई पर स्थित लाहौल का चंद्रताल तथा स्पिति का नाको ताल ऐसे प्रतीत होते हैं मानो साक्षात् स्वर्ग से धरती पर उतरे हों। इनमें, इन तालों के किनारे तपस्या में लीन, इश्वर के साक्षात् दर्शन के अभिलाषी संतों की असंख्य कथाएं सन्निहित हैं। ये ताल उन सभी चरवाहों की गाथाएँ कहते हैं जो प्रत्येक ग्रीष्म ऋतु में अपने पशुओं को लेकर यहाँ आते हैं।
भारत का थार मरुस्थल
राजस्थान के थार मरुस्थल का सुनहरा रंग, उसमें विचरण करते सुनहरे ऊँट एक अद्भुत सुनहरी आभा बिखेरते हैं। यहाँ प्राकृतिक रूप से प्राप्त श्वेत संगमरमर तथा पीला जैसलमेर आधुनिक वास्तुकारों एवं स्थापत्य विदों की अत्यधिक प्रिय शिलाएं हैं जो वर्त्तमान के गृहनिर्माण उद्योग में लोकप्रिय तत्व हैं। राजस्थान के मरुभूमि के मध्य से उभरते अनेक अप्रतिम व मनमोहक दुर्ग इस राज्य की शान हैं।
चीन की दीर्घतम भित्ति के पश्चात, विश्व की दूसरी एवं तीसरी सर्वाधिक विस्तीर्ण भित्तियाँ राजस्थान के कुम्भलगढ़ एवं आमेर दुर्ग के प्राचीर हैं। दुर्ग के भीतर रंगबिरंगे भित्तिचित्र रंगों की होली खेलते प्रतीत होते हैं। दुर्ग के भीतर प्रवेश करते ही एक राजसी भावना मन में हिलोरे मारने लगती है। राजस्थान के ऐसे ही अनेक दुर्गों को अब पंच तारांकित विरासती अतिथि संस्थानों में परिवर्तित कर दिया गया है जहां कुछ दिवस ठहर कर इस राजस्थानी राजपरिवारों के जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव लिया जा सकता है।
बावड़ियां
ये बावड़ियां राजस्थान एवं गुजरात की सतह पर, जल से भरे अलंकृत पात्र के सामान हैं। सममित एवं ज्यामितीय सीढ़ियों से निर्मित बावडियों पर किये गए भव्य उत्कीर्णन इन्हें अत्यंत देदीप्यमान रूप प्रदान करते हैं। इनकी भित्तियों पर पुराणों एवं महाकाव्यों की लोकप्रिय कथाएं उत्कीर्णित हैं। ये बावड़ियां अधिकांशतः उन स्थानों पर निर्मित की गयी हैं जो प्राकृतिक जल स्त्रोतों से दूर हैं तथा जहां वर्षा भी अत्यंत सीमित होती हैं। एक समय ये बावड़ियां वहां के नागरिकों की जीवनरेखा होती थीं। इन बावडियों में पाटन में रानी की वाव अत्यंत उल्लेखनीय बावडी है जो भूमि से नीचे जाते हुए कुल सात तलों में निर्मित है। इन सीढ़ियों को ऊपर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो ये हमें भूमि के नीचे के विश्व अथवा भूमि के गर्भ में ले जा रही हैं। किसी काल में यहाँ यात्रीगण बैठकर कुछ क्षण विश्राम करते रहे होंगे। रंगबिरंगी ओढ़नियाँ ओढ़ी स्त्रियाँ दिवस भर के कार्य पूर्ण कर जल लेने यहाँ आती रही होंगी एवं आपस में बतियाने कुछ क्षण यहाँ बैठती रही होंगी।
यहाँ से कुछ दक्षिण की ओर आकर हम अजंता की अद्भुत गुफाओं में पहुंचते हैं जहां २००० वर्षों पूर्व चित्रित भित्तिचित्र बुद्ध एवं बोधिसत्त्व की कथाएं कहती हैं। एलोरा की गुफाओं ने अपने भीतर भारत का सर्वाधिक अभूतपूर्व एवं विस्मयकारी अभियांत्रिक अचम्भा संजोया हुआ है। यहाँ एक अखंड चट्टान को ऊपर से नीचे की ओर काटकर एक सम्पूर्ण मंदिर उत्कीर्णित किया गया है, अर्थात चट्टान के सर्व अवांछित भागों को कुशलता से खुरचकर निकला गया है। इन्हें देख कर आश्चर्य होता है कि हमने कब, कहाँ एवं कैसे अपने पूर्वजों के उत्कृष्ट बुद्धिमत्ता एवं कौशल्या को यूँ ही खो दिया है।
खजुराहो
उत्तरी भारत के अधिकाँश मंदिर आक्रमणकारियों के हाथों उध्वस्त हो चुके हैं। किन्तु खजुराहो के मंदिर अब भी यथावत १००० वर्षों पूर्व के अपने गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा सुना रहे हैं। उत्तर भारतीय नागर शैली में निर्मित मंदिरों में सोपानी अवसर्पण का प्रयोग कर कैलाश पर्वत का आभास देने का प्रयास किया गया है। यद्यपि मंदिरों में नागर शैली का प्रयोग सम्पूर्ण उत्तर भारत में दृष्टिगोचर होता है तथापि इस शैली की पराकाष्ठा ओडिशा के मंदिरों में दिखाई देती है। अनेक हिन्दू व जैन मंदिरों से भरा हुआ, शिलाओं का यह नगर खजुराहो, अनेक गाथाएँ सुनाता है। मंदिरों की बाह्य भित्तियों पर की गयी अप्रतिम शिल्पकारी ऐसी प्रतीत होती है मानो शिलाओं को उत्कीर्णित कर कवितायें रची गयी हों जिनकी परतों में उनका संगीत छुपा हो। यह विडम्बना है कि यह मंदिर अपनी कुछ कामुक शिल्पकारी के लिए अधिक जाना जाता है या यूँ कहें कुख्यात है।
किंचित पूर्व दिशा की ओर जाएँ तो दंडकारण्य के सघन वनों में पहुँच जाते हैं जिनका उल्लेख रामायण में भी किया गया मिलता है। आज भी आदिवासी जनजाति के लोग यहाँ के वनों के भीतर वृक्षों की आराधना करते दृष्टिगोचर होते हैं।
सीता एवं बुद्ध
बोध गया में बोधी वृक्ष के नीचे बुद्ध को प्राप्त परम ज्ञान की अनेक लोकप्रिय कथाएं जुडी हैं बिहार राज्य से जो देवी सीता एवं भगवान बुद्ध की जन्म भूमी है। बिहार के समीप, अपने सुनहरे काल की कथा कहते विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के चटक लाल रंग के अवशेष हैं। इस विश्वविद्यालय में विश्व भर से विद्यार्थी विद्या अर्जन करने आते थे। उन विद्यार्थियों में एक प्रसिद्ध विद्यार्थी ह्वेन त्सांग भी था जिसकी स्मृति में समीप ही एक स्मारिका भी स्थापित है। मधुबनी के निराले एवं अनूठे गाँव, घरों की भित्तियों पर किये गए अप्रतिम चित्रीकरण के कारण दूर से ही पहचाने जा सकते हैं। मधुबनी की विलक्षण चित्रकला ने निर्मल व शांत गाँवों की गलियों से विश्व भर के संग्रहालयों तक की यात्रा सफलता पूर्वक पूर्ण की है।
भारत का मानसून
भारत में मानसून इसके दक्षिणी छोर पर स्थित केरल से आरम्भ होता है। जून मास में, जब भारत के अधिकाँश प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु अपनी चरम सीमा पर रहती है, तब मानसून केरल की ओर से देश में प्रवेश करता है तथा शनैः शनैः उत्तर की ओर बढ़ते हुए वर्षा की बाट जोहती तपती धरती पर शीतलता का मलहम लगाता है। अपने मार्ग में सभी को शीतलता में सराबोर करता हुआ तृष्णा भरी धरती को पोषित करता जाता है। मानसून कृषि प्रधान भारत की आन, मान एवं शान है।
केरल में हरियाली के विभिन्न रंग हमारे नैनों को चुनौती देते प्रतीत होते हैं। केले के ताजे वृक्ष के हलके हरे रंग से नारियल के वृक्ष के तने पर लिपटी काली मिर्च की लताओं के सघन हरे रंग तक, रंगों के इतने प्रकार विस्मृत कर देते हैं। केरल मसालों की भूमि है। यहाँ की काली मिर्च एवं अन्य मसालों के लिए प्राचीन काल से अनेक देशों के व्यापारी जहाज यहाँ लंगर डालते आये हैं। मसालों में इलायची, दालचीनी, जायफल, लौंग इत्यादि प्रमुख हैं। केरल के हरियाली से ओतप्रोत वन हाथियों से भरे हुए हैं। केरल के मंदिरों के उत्सवों में भी हाथियों की महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। अरब महासागर से आती अप्रवाही जल की अनेक नदियाँ केरल की धरती पर सघन जाल बुनती हैं।
सर्प नौकाएं
मानसून के मध्य में केरल में एक अद्भुत उत्सव का समय आता है जब केरल के स्त्री पुरुष अपनी लम्बी लम्बी सर्प नौकाओं को जल में उतारते हैं। यहाँ के अनेक मंदिरों में जलोत्सव मनाया जाता है जब इन नौकाओं की दौड़ प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। यह मानसून का उत्सव मनाने की एक अप्रतिम रीत है। केरल में लकड़ी के मंदिरों की नारियल तेल में भीगी भित्तियाँ भी अनेक कथाएं कहती हैं।
शिलाओं की कथाएं
केरल से पूर्व दिशा में तमिल देशम है जहां की शिलाएं विशालतम एवं प्राचीनतम कथाएं कहती हैं। उन्हें शिलाओं द्वारा प्रस्तुत कविता कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आप उहापोह के भंवर में फंस जायेंगे कि कहाँ-कहाँ जाएँ, कहाँ-कहाँ देखें अथवा महाबलीपुरम, कांचीपुरम, श्रीरंगम, चिदंबरम जैसे सुन्दर स्थलों में किस का चुनाव करें। तमिलनाडु के महाबलीपुरम का शोर मंदिर भारत के लगभग पूर्वोत्तर भाग में स्थित है। कोरोमंडल तट पर स्थित यह मंदिर बंगाल की खाड़ी का अवलोकन करता प्रतीत होता है। यह अखंड मंदिर है जिसकी रूपरेखा पांच रथों की भाँति है। मंदिर का कुछ भाग समुद्र में जलमग्न हो गया है। पाँच होने के कारण इन मंदिरों को पांच पांडवों के नाम से जाना जाता है, जैसा कि सम्पूर्ण भारत में प्रथा सी बन चुकी है।
प्राचीनतम हिन्दू मंदिर
महाबलीपुरम में अर्जुन तपस्या तथा कृष्ण का माखन गोला जैसी अद्भुत शिल्पकारी पर से दृष्टी हटाये नहीं हटती। किन्तु इनके अतिरिक्त श्रीरंगम के शिव एवं शक्ति मंदिरों के गगनभेदी गोपुरमों पर की गयी शिल्पकारी का भी अवलोकन अवश्य किया जाना चाहिए। यह विश्व का विशालतम जीवंत मंदिर परिसर है। किसी जीवंत नगरी के समान इस मंदिर परिसर में सात भित्तियों को घेरते २१ गोपुरम हैं। प्रत्येक मंदिर की भित्तियों पर विस्तृत व उत्कृष्ट उत्कीर्णन हैं जिनमें पुराणों एवं महाकाव्यों की कथाएं प्रदर्शित की गयी हैं। जो इन कथाओं को जानते हैं तथा शिल्पों को समझते हैं उनके लिए इन शिल्पों की सूक्ष्मताओं अध्ययन करना अत्यंत आनंददायी होता है। इन दृश्यों में दैवी एवं मानवी आकृतियों को अत्यंत उत्कृष्टता से उकेरा गया है। ऐसा प्रतीत होता है मानो इनके बोलते नैन अभी झपकने लगेंगे तथा उनके कंपकंपाते होंठ अभी बोलने लगेंगे। इन सब पर विश्वास करने के लिए यहाँ आकर प्रत्यक्ष इनके दर्शन करना आवश्यक है। यहाँ आकर ही आप इन मूर्तियों को बोलते एवं पुराणों की कथाएं कहते देख सकते हैं।
इन मूर्तियों पर उत्कीर्णित आकर्षक आभूषण, उत्तम वस्त्र, विभिन्न अद्भुत केश-सज्जा, पाँव में आधुनिक प्रतीत होते चप्पल इत्यादि देख आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। देवों को उनके वाहनों पर बैठे तथा अपने अस्त्र-शस्त्र व अन्य चिन्ह लिए दर्शाया गया है। ये प्रतिमाएं ऐसी प्रतीत होती हैं मानो उनके उठे हस्त तथा खुले अधरों से वरदान के शब्द निकलने लगेंगे। रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों के दृश्य भित्तियों पर उकेरे गए हैं, चाहे मंदिर उत्तर भारत के हों अथवा दक्षिण भारत के। दक्षिण भारतीय छोर पर रामसेतु है जो गर्भनाल के रूप में श्रीलंका द्वीप को भारत से जोड़ती है।
कॉफी के प्रदेश
कॉफी के प्रदेश कुर्ग में कावेरी नदी का उद्गम है। बंगाल की खाड़ी तक जाते जाते कावेरी नदी मार्ग में भारत के दक्षिणी भागों का पोषण करती जाती है। एक समय इस नदी के तट पर फलते-फूलते मैसूर राज्य की सम्पन्नता अपनी चरम सीमा पर थी। यह राज्य अब भी अपने विशेष दशहरा उत्सव के लिए जगप्रसिद्ध है। उत्तर कर्णाटक के चालुक्य भूमि पर ऐहोल में ऐसी कार्यशालाएं हैं जहां मंदिर के उत्कीर्णन का प्रशिक्षण दिया जाता था। समीप ही बादामी के बदामी रंग की गुफाएं एवं पट्टडकल के विशेष वास्तुशिल्प युक्त मंदिर हैं। निकट ही विजयनगर साम्राज्य के भव्य एवं राजसी नगरी हम्पी के अवशेष भी हैं। विश्व के सर्वाधिक संपन्न राज्यों में से एक राज्य, हम्पी के अवशेष विश्व का सर्वाधिक सुन्दर अवशेष हैं।
गोदावरी
किंचित उत्तर दिशा में जाएँ तो गोदावरी नदी घुमते इठलाते आँध्रप्रदेश के खेतों में पहुँचती है। कृष्णा नदी गुंटूर की तीखी लाल मिर्चों को अपना स्वाद प्रदान करती है। गुंटूर वह नवीनतम नगरी है जो प्राचीन अमरावती नगरी के नवीन स्वरूप में प्रकट हुई है। किंचित उत्तर में, ओडिशा में भगवान विष्णु एक उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित मंदिर के भीतर जगन्नाथ के रूप में निवास करते हैं। इसके चारों ओर उत्कृष्टता से परिपूर्ण अनेक मंदिर एवं गुफाएं हैं जिनके मध्य अनेक ऐसे कलाकार रहते हैं जो अप्रतिम चित्रकारी द्वारा पौराणिक कथाओं को जीवंत करते हैं। कोणार्क का सूर्य मंदिर अपने खंडित रूप में भी अपनी उत्कृष्टता बनाए हुए है। रथ के आकार की उसकी भव्य संरचना तथा चारों ओर खड़े सुडौल चक्के आज भी कारीगरों की उत्कृष्टता का प्रमाण देते हैं।
टेराकोटा के मंदिर
बंगाल की ओर जाएँ तो शिलाओं की अनुपस्थिति में, कारीगरों ने टेराकोटा अथवा लाल-भूरी पकी मिट्टी की पट्टिकाओं पर पौराणिक कथाओं को गढ़ कर मंदिरों की भित्तियों पर लगाया है ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिए ये कथाएं सुरक्षित हो जायें। इन्ही कथाओं को बुनकरों ने प्रसिद्ध बालुचेरी साड़ियों पर अप्रतिम रूप से जीवंत किया है। बंगाल का कभी ना भुला पाने वाला ठेठ देहाती एवं कर्णप्रिय बाउल संगीत बंगाल के छोटे छोटे नगरों एवं गाँवों की गलियों में गुंजायमान होता है। इसके अतिरिक्त विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय शान्ति निकेतन है जिसकी स्थापना रविन्द्र नाथ ठाकुर ने की थी।
ब्रह्मपुत्र
भारत का उत्तर-पूर्वी छोर अर्थात पवित्र ईशान कोण अनेकों जनजातियों का निवास स्थान है जो ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों ओर रहते हैं। उन स्थानों में ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित मजूली द्वीप भी सम्मिलित है जो विश्व का विशालतम नदद्वीप है। इस स्थान पर वैष्णव सत्र भी है जिन्होंने शंकर देव की विरासत को जीवंत रखा हुआ है। इस स्थान पर प्रकृति की दया अपनी चरम सीमा पर रहती है। पर्वतों पर सघन हरियाली, उपजाऊ भूमि, पर्वतों के मध्य बिखरे सरोवर एवं वनीय प्रदेश, ऊंचे व गहरे जलप्रपात इत्यादि इस स्थान को स्वर्ग सदृश बनाते हैं। इनके मध्य अनेक गुप्त गुफाएं, वनीय पुष्प, फल, जीव-जंतु इत्यादि प्रकृति को सम्पूर्ण बनाते प्रतीत होते हैं।
पश्चिम का मोढेरा सूर्य मंदिर, पूर्व का कोणार्क सूर्य मंदिर तथा उत्तरी पर्वतों के कुछ अन्य सूर्य मंदिर आपके कानों में सूर्य आराधना के गौरवपूर्ण इतिहास की कथा सुनाते हैं। उसी सूर्य की आराधना जो हमारे जीवन में दिवस- रात्र के चक्र का संगीत भरते हैं। भारत देश के हृदयस्थली नैमीषारन्य है, जो ऐसा वन है जिसके विषय में प्रत्येक ग्रंथ व पुराण में साधुओं के निवास के रूप में उल्लेख किया गया है। इसी स्थान पर अनेक ग्रंथों की रचना हुई, उनका आदान-प्रदान हुआ तथा उन पर अनवरत चर्चाएँ हुई हैं। उस काल की कथा सुनाते वृक्ष यहाँ गर्व से खड़े हैं जिन्होंने कदाचित उन चर्चाओं का श्रवण किया होगा। धर्म के मार्ग पर चलने वाले भक्तों का यह तीर्थस्थल है।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि भारत की चेतना अब भी उसके ग्रामीण क्षेत्रों में स्फुरित होती है जो सम्पूर्ण भारत में बिखरे हुए हैं। कमलों से भरे तालाब, गाय के गोठे, विशाल वृक्षों की छाँव में बने चबूतरे, यही भारत के गाँवों की शान है तथा भारत का मान है, जहाँ प्रकृति के सानिध्य में जीवन अत्यंत सादा, सरल एवं पावन होता है।
मार्टिन लूथर किंग ने कहा था – मैं दूसरे देशों में भले ही एक पर्यटक की भाँती जाऊं, किन्तु भारत में मैं एक तीर्थयात्री बनकर गया था। भारत एक ऐसा देश है जहां प्रत्येक पर्वत, चट्टान, नदी तथा सरोवर दैवी हैं तथा प्रत्येक यात्री एक तीर्थयात्री है।
सर्वप्रथम Hinduism Today Magazine में प्रकाशित किया था।
अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे