बोधगया – बौद्धों का पूजनीय स्थल
अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की नज़र से देखे तो बोधगया बिहार का सबसे सुप्रसिद्ध स्थान है। बिहार में यह इकलौती ऐसी जगह है जो विश्व धरोहर के दो स्थलों में से एक है। बौद्धों के लिए यह जगह बहुत ही पूजनीय है क्योंकि, इसी स्थान पर बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह बात 6 वीं शताब्दी की है, जिसके चलते आज भी अर्थात लगभग 2700 सालों से इस जगह को एक पूजनीय स्थान के रुप में देखा जाता है। बोधगया महाबोधि मंदिर के पास इर्द गिर्द बसा हुआ है। यहां के बौद्ध समुदाय, मूल रूप से विविध बौद्ध देशों से हैं, जो यहां पर आकर बस गए हैं। जिसके प्रभाव स्वरूप, बोधगया शहर में आपको अंतरराष्ट्रीयता की झलक मिलती है, जिसकी तुलना में बाकी का राज्य ठेठ देहाती है।
महाबोधि मंदिर – विश्व धरोहर का स्थल
महाबोधि मंदिर बोधगया का सबसे ऊंचा मंदिर है, जिसे आप शहर के किसी भी कोने से देख सकते हैं। इस ऊंची संरचना के चारों ओर बहुत सारी छोटी-छोटी संरचनाएँ भी हैं। जैसे ही आप मंदिर के परिसर में प्रवेश करते हैं, आपको वहां पर किताबों की दुकान और ऐसी ही बहुत सारी और दुकाने दिखेंगी जो विविध प्रकरा की कलाकृतियाँ बेचती हुई नज़र आती हैं। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से जाते समय आपको सेक्यूरिटी स्कैनर से होकर गुजरना पड़ता है और जैसे ही आप यहां से आगे बढ़ते हैं, आपके सामने महाबोधि मंदिर की भव्य और सुंदर संरचना खड़ी होती है। इस मंदिर की शिखर भूरे रंग की है तथा उसके आस-पास की अन्य छोटी-छोटी संरचनाओं की शिखरें गुलाबी और सुनहरे पीले रंग की हैं। यहां के मुख्य मंदिर में प्रवेश करते ही बुद्ध की शांत मुद्रा मूर्ति आपका स्वागत करती है। इस मूर्ति के ठीक ऊपर एक खास प्रकार की लकड़ी का टुकड़ा है जिसे बड़ी सुंदरता से उत्कीर्णित किया गया है। महाबोधि मंदिर की ऊपरी मंज़िल अब बंद ही रहती है, लेकिन कुछ सालों पहले तक आगंतुकों को यहां पर जाने की अनुमति दी जाती थी।
महाबोधि मंदिर के स्तूप
यहां के मुख्य मंदिर के बाहर आपको विविध आकार-प्रकार के हजारों स्तूप दिखेंगे जो पत्थर से बने हैं। वहां के लोगों से इन स्तूपों के बारे में पूछने पर हमे बताया गया कि, ये स्तूप उन लोगों द्वारा बनवाए गए हैं जो अपनी मन्नत पूरी होने के बाद वापस महाबोधि मंदिर में दर्शन करने आते हैं। लेकिन मुझे ऐसा लगता है, जैसे इनमें से कुछ स्तूप इसी स्थान से खोद कर निकले गए होंगे और उन्हें लगभग उसी स्थान पर खड़ा किया गया होगा। उन्हें देखकर लगता है जैसे वे बहुत प्राचीन हैं। प्रत्येक स्तूप के चारों ओर प्लास्टिक के सैकड़ों छोटे-छोटे कप हैं, जो पानी से भरे हुए हैं और प्रत्येक कप के पानी में तैरता हुआ एक गेंदे का फूल है। इस मंदिर की दीवारें बुद्ध तथा बोधिसत्वों की छोटी-छोटी मूर्तियों से सुसज्जित हैं। जिनमें से बुद्ध की अधिकतर मूर्तियाँ भूमि स्पर्श की मुद्रा में हैं, जिस मुद्रा में बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के समय बैठे थे। इस मंदिर के परिसर में ऐसे बहुत से स्थल हैं, जो बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं।
आज इस मंदिर के चारों ओर सुरक्षा के लिए जो जंगले लगाए हैं, वे अपने मूल स्वरूप की उतनी अच्छी प्रतिकृति नहीं है। इनका मूल स्वरूप यहां के स्थानीय संग्रहालय अनुरक्षित किया गया है। महाबोधि मंदिर रात के समय लेजर लाइट से जगमगा उठता है, जिससे उसकी सुंदरता में और भी निखार आता है।
महाबोधि वृक्ष – बोधगया
महाबोधि मंदिर के ठीक पीछे, यानि मंदिर के पृष्ठ भाग की दीवार के पास बोधि वृक्ष है, जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। लेकिन आज यहां पर जो वृक्ष मौजूद है वह अपने मूल वृक्ष की पाँचवी पीढ़ी है, जिसे श्रीलंका में स्थित अनुराधापुर से वापस बोधगया लाया गया था। इसी वृक्ष के पास वज्रासन का स्थान है, जहां पर बुद्ध ध्यान संलग्न बैठे थे। इस वृक्ष के आस-पास के परिसर में बैठकर आप आराम से यहां के वातावरण का आनंद उठा सकते हैं। यहां पर भगवान के दर्शन करने आए भक्त बड़ी श्रद्धा से इस पेड़ की पुजा-अर्चना करते हुए दिखाई देते हैं। भगवान की भक्ति में उनकी लीनता देखकर उनकी श्रद्धा की पवित्रता को महसूस किया जा सकता है।
वज्रासन का स्थान
बोधि के वृक्ष के नीचे स्थित वज्रासन के स्थान को बहुत ही अच्छे तरीके से संरक्षित किया गया है। उसकी सुरक्षा हेतु उसे पर्दों से आवृत्त किया गया है, जिसके कारण उसकी एक पूरी झलक पाना थोड़ा मुश्किल है। इसके अलावा यह स्थान मंदिर की दीवार और बोधि के वृक्ष के बीच स्थित है, जिसकी वजह से आपके दृश्य में और भी बाधा आती है। यह वृक्ष मंदिर की दीवार से इतना सटकर खड़ा है कि इसका विचार करना भी चिंताजकन सा लगता है। एक तरफ जहां यह वृक्ष मंदिर की दीवार से घिरा हुआ है, वहीं उसके दूसरी तरफ सुरक्षा के पर्दे लगे हुए हैं। न जाने इस तंग से वातावरण में यह वृक्ष कैसे सांस लेता होगा।
महाबोधि मंदिर के चारों ओर लगे जंगलों के पास याक के मक्खन से बनी बहुत सारी विविध प्रकार की चित्रकारी देखी जा सकती है। इन्हें देखकर मुझे लगा कि, काश मैं इन्हें बनाते हुए देख पाती। इस मंदिर के परिसर में बोधि वृक्ष के पास, मंदिर की सीढ़ियों पर और हर जगह श्रद्धा में लीन भक्त नज़र आते हैं। कुछ हाथों में माला लिए मंत्रों का उच्चारण करते हैं, कुछ भजन गीत गाते हैं, तो कुछ ध्यान में लीन होते हैं, और कुछ पांडुलिपियों को पढ़ते हुए नज़र आते हैं।
बोधगया से संबंधित उपाख्यान
महाबोधि मंदिर में प्रवेश करते समय दांई ओर अनिमेष लोचन चैत्य है, जहां पर ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने दूसरा सप्ताह गुजारा था। इस जगह पर खड़े होकर बुद्ध पूरे एक सप्ताह, बिना पलक झपकाए एकटक बोधि के वृक्ष को निहारते रहे थे। इस प्रकार से वे उस वृक्ष के प्रति, उन्हें छत्र-छाया और ज्ञान प्रदान करने के लिए अपना आभार व्यक्त कर रहे थे।
मंदिर की सीढ़ियों से उतरकर जब आप नीचे आते हैं, तो सबसे पहले आपको अजपाल निग्रोध का वृक्ष मिलता है, जहां पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद पांचवा सप्ताह गुजारा था। माना जाता है कि इसी जगह पर उन्होंने कहा था कि मनुष्य अपने कर्मों से ब्राह्मण होता है, अपने जन्म से नहीं।
मंदिर की दांयी दीवार के पास ही चक्रमण है जहां पर बुद्ध के पैर पड़ते ही कमल का फूल उग आया था। इसका प्रतीक स्वरूप आज यहां पर कमल का शिल्पनिर्मित फूल स्थापित किया गया है। इस जगह पर भक्त बहुत सारे फूल अर्पित कर अपनी पुजा करते हैं।
मुचलिंद सरोवर वह जगह है, जहां पर ज्ञान प्राप्ति के उपरांत बुद्ध ने छठा सप्ताह गुजारा था। इस दौरान यहां पर एक बड़ा तूफान आया था, जिससे उनकी रक्षा एक साँप ने की थी। इस सरोवर और मंदिर के बीच में 20 फुट की ऊंचाई का एक अध-टूटा अशोका स्तंभ है जिस पर कोई भी अभिलेख या उत्कीर्णन नहीं मिलते। माना जाता है कि अगर आप इस स्तंभ के ऊपर सिक्का फेकने में सफल हुए तो आपकी मनोकामना पूरी होती है। मुझे नहीं पता कि यहां पर मनोकामनाएँ सच में पूरी होती हैं या नहीं, पर स्तंभ के उपर सिक्का फेकने की कोशिश करते समय हमे मजा बहुत आया। मेरा सिक्का सिर्फ एक बार ही ऊपर स्पर्श करके वापस नीचे गिरा। मुझे इसका दुख तो नहीं था लेकिन मेरे अभिलाषी विचारों के अनुसार इसका अर्थ यही था कि, एक इच्छा (बोधगया देखना) तो पूरी हो गयी अब दूसरी इच्छा पूरी करने की कोशिश करो।
ध्यान उपवन
महाबोधि मंदिर के पास एक ध्यान उपवन बनवाया गया है, जहां पर छोटा सा शुल्क देने के बाद भक्त गण आराम से जाकर ध्यान करने बैठ सकते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां पर दिन की अपेक्षा रात के समय अधिक लोग ध्यान करते हुए दिखाई देते हैं। इस उपवन में एक विशाल घंटी उत्कीर्णित है, जिसे अच्छे रूपाकार की लकड़ी के तख्ते से जोड़ा गया है। यह इस उपवन की सबसे आकर्षक वस्तु है। यहां पर फव्वारे और झरोखे भी हैं जो इस उपवन की सुंदरता को और भी बढ़ाते हैं। अगर इस उपवन में ध्यान करने के लिए अनेवाले लोगों की संख्या देखे, तो उसके हिसाब से इस उपवन की बहुत ही अच्छी तरह से देख-रेख की गयी है। इतने सारे लोगों के आते-जाते रहने के बावजूद भी जिस प्रकार से इस परिसर का ध्यान रखा गया है, वह सच में बहुत सराहनीय है। यहां का शांति भरा वातावरण हमेशा ध्यान प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
ध्यान मुद्रा में बैठे बुद्ध की विराट मूर्ति – बोधगया
बुद्ध की ध्यान मुद्रा में बैठी हुई 80 फीट ऊंचाई की विराट मूर्ति, जो जापानी संघठन डाइजोक्यो द्वरा कुछ सालों पहले बनवाई थी, बोधगया की सबसे सुंदर मूर्ति है। यह मूर्ति प्रसिद्ध मूर्तिकार गनपथी स्तापथी जी द्वारा बनाई गयी है। इस मूर्ति को गुलाबी रंग के भुरभुरे पत्थरों के खंडों को जोड़कर बनवाया गया है, तथा जिस कमल के फूल पर बुद्ध बैठे है उसे पीले रंग के पत्थरों से बनवाया गया है। इस कमल की ऊंचाई 6 फीट की है। इस मूर्ति के तीनों तरफ बुद्ध के 10 सुप्रसिद्ध शिष्यों की मूर्तियाँ हैं, जो विविध योगिक मुद्राओं में खड़ी हैं। बुद्ध की यह विराट मूर्ति आपको अभिभूत कर देती है।
बोधगया के विहार
विश्व के विविध बौद्ध देश, जैसे श्रीलंका, बर्मा, तिब्बत, वियतनाम, भूटान, जापान, थायलैंड और चीन में बौद्धों के मंदिर या विहार हैं, जो अपने देश की वास्तुकला की विशेषताओं को दर्शाते हैं। भारत में भी बौद्धों का नया-नया विशाल विहार बनवाया गया है, जो करमपा का निवास स्थान है। तथा भारत में दलाई लामा का भी ऐसा ही विशाल विहार है। करमपा के निवास स्थान की दीवारों पर आपको बहुत ही सुंदर चित्र देखने को मिलते हैं। इस विहार के एक-दूसरे में घुलनेवाले रंग इस जगह को निर्मलता के साथ जीवंत कर देते हैं। यहां के अधिकतर विहार बड़ी सुंदरता से बनवाए गए हैं, जिनकी बाहरी दीवारें रंगीन और उज्ज्वल दिखाई देती हैं, तो उनके आंतरिक भाग सुसंपन्न चित्रों से भरे नज़र आते हैं। ये चित्र बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाते हैं, या फिर विविध देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार की यात्राओं की कहानियों का बखान करते हैं। काश मेरे पास थोड़ा और समय होता, तो मैं आराम से इन कथाओं को अच्छी तरह से जान पाती।
यहां का थाई विहार अक्सर नौलखा नाम से जाना जाता है क्योंकि, इसे बनवाने में 9 लाख का खर्च आया था। यह विहार काफी दिलचस्प और आकर्षक भी है, जिसकी दीवारों पर और खिडिकियों पर बड़े ही सुंदर चित्र बनवाए गए हैं। यहां के सारे मंदिरों और विहारों की बहुत ही अच्छी तरह से देख-रेख होती है, बावजूद इसके कि, यहां पर आगंतुकों की बहुत भीड़ रहती है। यहां की एक और विशेषता है, यहां के पेड़-पौधे, जिन्हें उनकी मूल जगह से लाकर इन विहारों में लगवाया गया है। ये पौधे यहां पर अच्छी तरह से फूलते-फलते भी हैं, तथा उनकी अच्छे से देखभाल भी की जाती है।
सुजातागढ़ – बोधगया
बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद जिस जगह पर सुजाता ने उन्हें खीर खिलाई थी उसी जगह पर एक स्तूप बनवाया गया है जिसे सुजातागढ़ कहा जाता है। यह स्तूप किसी टीले की भांति लागता है जो छोटे-छोटे ईटों को जोड़कर बनवाया गया है। उसका आकार भी बड़ा ही लुभावना है, जो पूर्ण रूप से गोलाकार नहीं है। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो आपको इस स्तूप पर गिरते हुए चूने के निशान नज़र आएंगे, जो उसकी सुंदरता को भंग करता है। यह स्तूप गुप्त काल से लेकर पाल काल तक निर्माण की अनेकों अवस्थाओं से गुजर चुका है। उत्खनन की इस जगह पर पायी गयी बहुत सी प्राचीन वस्तुएं आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आय.) के संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखी गयी हैं। यह स्तूप एक भरे-पूरे गाँव के बीचो-बीच स्थित है, जो आज वहां के लोगों के दैनिक जीवन का भाग बन गया है। लेकिन फिर भी इसके चारों ओर खड़ी दीवारें इसे संरक्षित करते हुए, गाँव से अलग करती हैं।
बोधगया का बाज़ार
बोधगया का बाज़ार भारत के किसी भी अन्य तीर्थ स्थल की भांति, छोटे-छोटे विक्रेताओं से भरा रहता है। ये दुकानदार मंदिर में अर्पित करने की वस्तुएं बेचते हैं, जैसे कि रंगीत चुनरी, मोमबत्तियाँ, दीपक आदि। इसके अलावा ये लोग हस्तकला की वस्तुएं, पीतल की कलाकृतियाँ, जो अधिकतर नेपाल में बनवायी जाती हैं, जैसे कि बुद्ध की मूर्तियाँ और ऐसी ही अनेकों वस्तुएं बेचते हैं। यहां पर तरह-तरह के गहने, बैग, स्वदेशी कपड़ों से बनाए गए विदेशी पहनावे और पवित्र धागे तथा अन्य कलाकृतियाँ भी बेची जाती हैं। यहां पर एक पत्थर का कारीगर भी है जो पत्थरों से विविध आकृतियाँ बनाता है। यहां की एक दुकान पर हमे स्थानीय तरीके से बुने हुए सूती कपड़े दिखे, जो उस दुकानदार के अनुसार वहां का बहुत ही प्रसिद्ध कपड़ा है। इन दुकानों के अलावा आपको यहां पर हर जगह लाल वस्त्र पहने हुए साधु-संत घूमते हुए नज़र आते हैं।
बाज़ार के भोजनालय
यहां के भोजनालयों में आपको सिर्फ अंतरराष्ट्रीय व्यंजन ही मिलते हैं। ये भोजनालय ज़्यादातर भक्तों के लिए या यात्रियों के लिए हैं। बोधगया में अच्छा खाना मिलना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि यहां पर स्थानीय व्यंजनों से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यंजन अधिक होते हैं। लेकिन अगर यहां पर साफ-सुथरे तरीके से सादे और अच्छे स्थानीय व्यंजन परोसनेवाले भोजनालय शुरू किए गए तो निश्चित ही उनके लिए बहुत माँग होगी।
कार्यक्रम
यहां पर बहुत सारी संस्थाएं हैं जो विविध कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं जिनमें आप भी भाग ले सकते हैं। जब हम वहां पर थे, उस समय अनुराधापुर से बुद्ध के अवशेष यहां पर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए लाये गए थे। अगर आप यहां पर थोड़े लंबे समय के लिए ठहरे हैं, तो आप यहां पर आयोजित ध्यान संबंधित कार्यक्रमों में, तथा यहां के कर्मकांडवादी समारोहों में भी भाग ले सकते हैं।
यहां की सड़कों पर पर्यटक बसों के अलावा आपको ज्यादा गाडियाँ नहीं दिखती, जिसके कारण आप यहां पर आराम से पैदल ही घूम सकते हैं और यहां के लोगों के साथ घुल-मिल भी सकते हैं। हमने यहां बहुत सारे विध्यार्थियों को अपनी पाठशाला की पोशाख में ही अनेक विहारों में जाते हुए देखा। रात के समय आप यहां पर छोटी-छोटी मोमबत्तियाँ जला सकते हैं, जिसके लिए आपको छोटा सा शुल्क भरना पड़ता है। ये सारी मोमबत्तियाँ जब एक साथ जलती हुई दिखाई देती हैं तो बहुत सुंदर दिखती हैं।
इस जगह के प्रमुख अधिकारी यहां के सरोवर के पास एक विशाल सा उपवन बनवा रहे हैं, जिसमें जरूरत के हिसाब से एक थिएटर बनवाया जा रहा है, जो खुले में होगा। और पास ही स्थित सरोवर में बोटिंग की सुविधाएं भी होगी।
बोधगया में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का संग्रहालय
यह संग्रहालय भले ही छोटा हो पर इसमें पत्थर की मूर्तियों का सुंदर संकलन है। लेकिन दुर्भाग्य वश यहां पर तस्वीरें खिचने की अनुमति नहीं है। जब हम वहां गए थे, तब यह संग्रहालय सुधारणिकरण और नवीकरण से गुजर रहा था। यहां पर एक मल्टी-मीडिया संग्रहालय भी है, जिसमें आराम से बैठकर आप इस जगह के इतिहास पर बनाया गया सुंदर सा मल्टी-मीडिया प्रस्तुतीकरण देख सकते हैं। इसके जरिये आप यहां की प्राचीन तस्वीरें देख सकते हैं, इस जगह से जुड़ी सच्ची कहानियाँ सुन सकते हैं और अगर आपके पास समय है और आपको इस प्रकार की चीजों में रुचि है तो आप यहां के तर्कशास्त्र में पूरी तरह से डूबकर उसको समझ भी सकते हैं।
बोधगया शहर, जहां पर बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, की सारी वस्तुओं पे बुद्ध की छाप जरूर दिखाई देती है। यह ऐसे जगह है, जिसे देखने से ज्यादा महसूस करना ज्यादा जरूरी है, तभी आप उससे पूरी तरह जुड़ सकते हैं।
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