अपने समय की विशालतम संरचनाओं में गिना जाने वाला तंजौर का बृहदीश्वर मंदिर दक्षिण भारत के मंदिरों की वास्तुकला का उत्तम प्रतीक है, तथा चोल राजवंशियों का प्रतिकात्मक मंदिर है। उनके द्वरा निर्मित अन्य मंदिर भी बहुत सुंदर हैं, लेकिन अगर आपके पास इन सारे मंदिरों में घूमने का समय ना हो तो, उनके द्वारा निर्मित बृहदीश्वर मंदिर जरूर देखिये। यह मंदिर सबसे अप्रतिम है और चोल वंशियों की निर्मिति का उच्चतम नमूना है।
तंजावुर का बड़ा मंदिर – बृहदीश्वर मंदिर
बृहदीश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही दो गोपुरम बनवाए गए हैं। ये गोपुरम ज्यादा बड़े तो नहीं हैं लेकिन फिर भी वे अपने आप में परिष्कृत लगते हैं और अत्यंत आकर्षक दिखते हैं। इन दोनों गोपुरमों से गुजरते ही, आपको सामने ही, मंदिर का दृश्य अवरुद्ध करता हुआ एक विशाल नंदी दिखेगा। मंदिर के इस भाग को नंदी मंडप कहा जाता है। नंदी की यह विशाल मूर्ति देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इसे मंदिर को बुरी नज़र से बचाने का काम सौंपा गया हो। नंदी मंडप पार करते ही मंदिर की सबसे भव्य संरचना अथवा, मंदिर का शिखर आपका ध्यान अपनी ओर खींचता है। अगर संपूर्ण रूप से देखे तो बृहदीश्वर मंदिर बहुत सुंदर है और उसे अच्छे से अनुरक्षित भी किया गया है। लेकिन, फिर भी मंदिर की शिखर ही उसके आकर्षण का प्रमुख तत्व है जिसे घंटों निहारा जा सकता है। उसकी पिरामिड जैसी दिखने वाली महाकाय संरचना में एक प्रकार की लय और समरूपता है जो आपकी भावनाओं के साथ प्रतिध्वनित होती है।
मंदिर की शिखर के शीर्ष पर एक ही पत्थर से बनाया हुआ विशाल वृत्ताकार कलश स्थापित किया गया है। इसे देखकर मन में यह शंका उत्पन्न होती है कि, शिखर का संतुलन बनाए रखने के लिए कहीं पूरा मंदिर ही डगमगा ना जाए। कहा जाता है कि, अपने समृद्धि काल के दौरान मंदिर की शिखर स्वर्ण से आवृत्त थी। लेकिन आज की स्थिति में मंदिर के उस वैभव का अंदाज़ा लगाने की लिए आपको पूर्व काल में झाँकना पड़ता है। इस मंदिर में स्वर्ण और पीतल की बहुत सारी मूर्तियाँ थीं, जिनमें से कुछ आज भी महल के संग्रहालय में देखी जा सकती हैं। आखिरकार तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर चोल चित्रकला के श्रेष्ठ काल का प्रतिनिधित्व करता है। इस काल के दौरान चोल चित्रकला अपने सुप्रसिद्ध राजा के संरक्षण में इसी मंदिर से फली-फुली थी। इस मंदिर का दर्शन करते समय चोल मंदिरों की विशिष्टताओं पर जरूर गौर कीजिये। जैसे कि, मंदिर के दोनों तरफ के प्रवेश द्वारों पर बड़े-बड़े द्वारपाल आदि।
नंदी मंडप – बृहदीश्वर मंदिर, तंजावुर
नंदी मंडप एक बड़े से चबूतरे पर बनवाया गया है। इस चबूतरे पर स्थित महाकाय नंदी अपने स्वामी की ओर मुख किए हुए है। इस मंडप की छत शुभ्र नीले और सुनहरे पीले रंग की है, जैसे चिदम्बरम मंदिर की चित्रकारी है। इस मंडप के सामने ही एक स्तंभ है जिस पर भगवान शिव और उनके वाहन को प्रणाम करते हुए राजा का चित्र बनाया गया है। यह मंडप समय-समय पर सुधारणिकरण से गुजरता रहा है। अगर आप बारीकी से देखे तो आपको समयानुसार मंडप के नवीकरण की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। मूल निर्मिति के अलावा यहां पर नवीकरण की अनेकों रेखाएँ साफ झलकती हैं।
बृहदीश्वर मंदिर का शिखर
इस मंदिर का शिखर अपने सिंदूरी रंग में अनुपम लगता है। यह सिंदूरी रंग, शिखर को एक अलग ही रूप प्रदान करता है। पहले मुझे लगा कि शिखर को रंगवाया गया है, लेकिन बाद में मुझे बताया गया कि यह रंग बनावटी नहीं बल्कि इस पत्थर का प्राकृतिक रंग है। इस शिखर पर कलश स्वरूप पत्थर स्थित है जो हमेशा चमकता रहता है। इसकी चमक के पीछे का कारण आज तक कोई नहीं जान पाया है। शायद यह उस पत्थर की ही प्रकृतिक चमक हो। उसे देखकर लगता है कि, वह परिसर के अन्य पत्थरों से बिलकुल अलग है, जैसे वह किसी खास प्रकार का पत्थर हो। इस मंदिर के आस-पास कई गौण मंदिर हैं जिन्हें बारीकी से उत्कीर्णित किया गया है। लेकिन मंदिर की शिखर के सामने वे थोड़े फीके से नज़र आते हैं। यह शिखर अपने प्रकृतिक अंदाज़ में अद्वितीय लगता है।
जैसे-जैसे आप मंदिर की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर घूमते हैं, आपको यहां की दीवारों पे विभिन्न देवी-देवता और उनसे जुड़ी कहानियों के दृश्यों को दर्शाती हुई अनेकों मूर्तियाँ देखेंगी। इन मूर्तियों को रखने के लिए बनाए गए कोष्ठ पंजर या आले, पवित्र घड़े का चित्रण करने वाले कुंभ पंजर के साथ बिखरे हुए हैं।
इस मंदिर का भीतरी भाग अपेक्षाकृत बहुत ही सादा है। उसका विशालकाय मंडप तथा उसमें स्थापित काले पत्थर का बड़ा सा शिवलिंग अपनी सादगी में भी बहुत सुंदर लगता है। मंदिर की ऊपरी मंज़िल पर, जहां लोगों को जाने की अनुमति नहीं है, शिवजी की अनेकों मूर्तियाँ रखी गयी हैं जो नृत्य की विभिन्न मुद्राओं को दर्शाती हैं। नृत्य की मुद्राओं को दर्शाती हुई ये मूर्तियाँ शिवजी के नटराज रूप की याद दिलाती हैं। ऐसी ही मूर्तियाँ चिदंबरम मंदिर के गोपुरम पर चित्रित की गयी हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि बृहदीश्वर मंदिर में स्वयं शिवजी को ही दर्शाया गया है।
बृहदीश्वर मंदिर की चित्रकारी
माना जाता है कि, इस मंदिर के भीतरी पवित्र गर्भगृह के प्रदक्षिणा मार्ग की दीवारों पर पहले चोल कालीन चित्रकारी हुआ करती थी, जिन्हें बाद में नायक वंशियों के समय की चित्रकारी से अधिरोपित किया गया था। दुर्भाग्यवश, मंदिर का यह भाग भी सामान्य आगंतुकों के लिए बंद रहता है। यहां की चित्रकारी देखने हेतु आपको ए.एस.आय. (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है। लेकिन अब इसकी कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि अब इन चित्रों को किसी विशेष प्रकार की तकनीकों द्वारा व्याख्या केंद्र में प्रतिकृतित किया गया है। जहां पर आप इन चित्रों के प्रतिरूपों को आराम से देख सकते हैं। यह व्याख्या केंद्र मंदिर की परिधि पर बसे गलियारे का आवृत्त भाग है जहां पर बहुत अंधेरा होता है। इसलिए अगर आपकी सैर के समय अचानक से बिजली चली जाए तो आप यहां पर ज्यादा कुछ नहीं देख पाते। यह केंद्र सुबह के 10 बजे यानि मंदिर खुलने के उपरांत ही खुलता है।
बृहदीश्वर मंदिर के गलियारों के भित्ति-चित्र
बृहदीश्वर मंदिर के चारों ओर गलियारों की दीवारों पर एक खास प्रकार की चित्रकारी देखने को मिलती है। यह अन्य चित्रकलाओं से भिन्न है, बहुत सुंदर भी है और देखने लायक तो है ही। इन दीवारों पे चित्रकारी करने से पहले उन पर गाढ़ा चूना पोता गया है और बाद में उस पर ये चित्र बनाए गए हैं। ये चित्र भगवान् शिव से जुड़ी कहानियों को दर्शाते हैं। अगर आप दक्षिणावर्त दिशा से जाए तो दीवारों पे चित्रित इन कहानियों को क्रमवत जान सकते हैं। इन दीवारों के छिले हुए भाग और चूने का गाढ़ा स्तर अपने आप को उद्घाटित करता हुआ उनकी बनावट में उपयुक्त तकनीकों के बारे में बताते हैं। इनके उज्ज्वलित रंगों से आप नहीं बता सकते कि ये कितने पुराने हैं। इन चित्रों के रंग को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये हाल ही में बनाए गए हैं, जबकि ये चित्र बहुत प्राचीन हैं। इन चित्रित दीवारों के सामने ही विभिन्न आकारों और पत्थरों के बने शिवलिंग रखे गए हैं। प्रत्येक शिवलिंग अपने आप में अद्वितीय लगता है।
इस मंदिर की एक दीवार पर संस्कृत के शिलालेख भी देखने को मिलते हैं। इस दीवार के पास ही एक और छोटी सी दीवार बनायी गयी है, जो पास में ही खड़े पेड़ के लगभग झुके हुए तने को आधार देते हुए उसे गिरने से बचाती है। उस पेड़ के विशेष महत्व के बारे में तो मैं नहीं जान पायी, लेकिन उसके आस-पास के वातावरण को देखकर मुझे लगा कि इस पेड़ के प्रति लोगों की बहुत श्रद्धा है। इस मंदिर का सम्पूर्ण परिसर आपको अध्यात्मिकता, प्रकृति और सहानुभूति के बीच के गहरे संबंधों पर सोच-विचार करने के लिए आपको मजबूर करता है।
भारत की मंदिर शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण
अगर आप अपने जीवन में केवल दो ही मंदिर देख सकते हैं तो मैं आपको तंजौर के विराट बृहदीश्वर मंदिर और खजुराहो के कंदरिया महादेव मंदिर के दर्शन करने की सलाह दूँगी। इन दोनों मंदिरों में कम से कम दिन में दो बार जाईये। पहली बार प्रातः काल के समय, जब सूर्य की पहली किरणें मंदिर के इन झिलमिलाते हुए पत्थरों को ज्योतिर्मय बनाती हैं और दूसरी बार दोपहर के समय या फिर संध्या के समय। ये पत्थर पूरे दिन समयचक्र के अनुसार अपना रंग बदलते रहते हैं, जिसके कारण अलग-अलग समय पर मंदिर का पूर्ण रूप से एक अलग ही दृश्य हमारे सामने प्रस्तुत होता है। दौड़ते हुए समय के साथ आगंतुकों का आना-जाना भी बदलता रहता है। इस कारण आपको एक ही दिन में एक ही जगह पर होने के बावजूद किसी भिन्न स्थान पर घूमने का एहसास होता है। पुर्णिमा के दिनों में अगर आप यहां पर थोड़ा जल्दी जाएंगे तो आपको मंदिर की शिखर और चंद्रमा का अद्भुत खेल देखने को मिलेगा, जो अपने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
भारत का अद्वितीय सौंदर्य आपको हर पग पर अचंभित करता है और तंजावुर स्थित बृहदीश्वर मंदिर उसका एक जीवंत उदाहरण है।