चम्बल नदी – भारत की स्वच्छतम नदी एवं उसका बीहड़

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चम्बल की घाटी! जैसे कि इसके नाम से ही विदित है, चम्बल घाटी चम्बल नदी के तट पर स्थित है। उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश को प्राकृतिक रूप से विभक्त करती चम्बल नदी ऐसी प्रतीत होती है मानो यह सम्पूर्ण उत्तर भारत को मध्य भारत से पृथक करती है।

चम्बल नदी पर सूर्यास्त
चम्बल नदी पर सूर्यास्त

चम्बल घाटी एवं उसके बीहड़

बीहड़! यूँ तो इस शब्द का शाब्दिक अभिप्राय किसी भी प्रकार की उबड़-खाबड़ तथा विषम भूमि होता है, किन्तु बीहड़ शब्द सुनते ही अनायास चम्बल घाटी का ही स्मरण हो आता है जो डाकुओं की उपस्थिति के लिए कुप्रसिद्ध है। हमने प्रसार माध्यमों में तथा चित्रपटों में भी इस सन्दर्भ में वास्तविक/काल्पनिक विवरण देखे हैं। जैसे, चम्बल के डाकू। इस सन्दर्भ में सर्वाधिक प्रचलित नाम है, फूलन देवी। स्त्रियाँ यहाँ भी पीछे नहीं हैं! चम्बल के बीहड़ों में एक समय सर्वाधिक प्रचलित डाकू एक स्त्री ही थी।

चम्बल घाटी का बीहड़
चम्बल घाटी का बीहड़

बीहड़ उबड़-खाबड़ विषम भूमि होती है जिनमें डाकू आसानी से छुप सकते हैं। वे इन बीहड़ों में आसानी से अपना जीवन व्यतीत कर लेते हैं। चम्बल के डाकुओं का एक लंबा इतिहास रहा है। प्राचीन काल से लेकर मध्ययुगीन एवं आधुनिक काल तक उन्होंने अनेक सरकारों को परिवर्तित होते देखा है। जब मेरे पिता भरतपुर में कार्यरत थे, तब मेरे नव-विवाहित माता-पिता बहुधा चित्रपट देखने के लिए आगरा जाते थे। तब उनको यह  क्षेत्र पार करना पड़ता था। उन्होंने मुझे उन यात्राओं से सम्बंधित अनेक रोचक घटनाओं के विषय में बताया था।

मुझे चम्बल के इन बीहड़ों को निकट से देखने का अवसर तब प्राप्त हुआ था जब मैं उत्तर प्रदेश सरकार के संरक्षण में इस क्षेत्र का भ्रमण कर रहे यात्रा-संस्मरण लेखकों के एक विशाल समूह का भाग थी। इस बीहड़ की उबड़-खाबड़ भूमि में समूह में विचरण करते हुए मैं कल्पना करने लगी कि इन निर्जन बीहड़ों में अकेले विचरण करना कैसा प्रतीत होता होगा! क्या मुझे उन प्रचलित डाकुओं के प्रेत दिखाई देंगे जो स्वयं को डाकू नहीं, अपितु विद्रोही कहते थे? क्या वहाँ के गांववासी मुझे उन डाकुओं के चरम काल की रोमांचक कथाएं सुनायेंगे? मेरे ये प्रश्न अनुत्तरित ही रह गए।

नदी का पाट और नाव
नदी का पाट और नाव

इन उबड़-खाबड़ बीहड़ों में विचरण करना तथा उन्हें पार कर चम्बल नदी के दर्शन करना स्वयं में एक रोमांचक अनुभव था। नदी के तट पर पहुंचकर हमने अनुभव किया कि चम्बल नदी अपनी शान्त गति से बह रही थी। मिट्टी के ऊँचे-नीचे टीलों के मध्य एक नीली रेखा सी प्रतीत हो रही थी। नदी के दोनों तटों को जोड़ता हुआ ना तो कोई मार्ग था, ना ही कोई सेतु। अतः नदी पार करने के लिए नौकायन ही एकमात्र साधन है। गाँववासियों को एक तट से दूसरे तट पर ले जाने के लिए एक नाव थी जो दोनों तटों के मध्य चक्कर लगा रही थी।

चम्बल नदी से सम्बंधित लोककथाएँ

चम्बल नदी का प्राचीन नाम चर्मण्वती अथवा चर्मनवती था। महाभारत एवं विभिन्न पुराणों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि राजा रन्तिदेव द्वारा यहाँ अतिथि यज्ञ किया गया था। देवी भागवत पुराण में कहा गया है कि विभिन्न यज्ञों में बलि चढ़ाए गए पशुओं के चर्म से बहते रक्त से इस नदी का उद्गम हुआ था। इसी कारण इसका नाम चर्मण्वती पड़ा। ऐसा भी माना जाता है कि यह उक्ति सांकेतिक है। राजा रन्तिदेव द्वारा आयोजित अतिथि यज्ञ में बलि का संकेत केले अथवा कदली के स्तंभों को काटना है। राजा रन्तिदेव ने फलों से होम एवं अतिथि सत्कार किया था। केले के पत्तों एवं छिलकों को भी चर्म कहा जता है। ऐसे कदलीवन से चर्मण्वती नदी का उद्गम हुआ था।

ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में चम्बल नदी के आसपास के क्षेत्रों पर कौरवों के मामा शकुनी का अधिपत्य था। यहीं किसी स्थान पर आयोजित चौसर के खेल में मामा शकुनी की धूर्तता के कारण पांडव सर्वप्रथम कौरवों से पराजित हुए थे। उनके द्वारा महारानी द्रौपदी के चीरहरण का भी प्रयास किया गया था। ऐसा भी माना जाता है कि रानी द्रौपदी ने श्राप दिया था कि जो भी इस चर्मण्वती अथवा चम्बल नदी का जल ग्रहण करेगा, उसका विनाश हो जाएगा। उस काल से चम्बल नदी को श्रापित माना जाता है।

चम्बल नदी उन क्वचित नदियों में से एक है जिसकी आराधना नहीं की जाती है।

नदी को देख ऐसा प्रतीत होता है कि द्रौपदी का वही श्राप उसके लिए वरदान सिद्ध हो गया है। चम्बल नदी को भारत की निर्मलतम नदियों में से एक माना जाता है। यदि आपको प्रदूषणरहित चम्बल नदी के पारिस्थितिकी तंत्र का अनुभव करना हो तो नदी में नोकायन करना आवश्यक है।

चम्बल नदी एक बारहमासी नदी है। भौगोलिक दृष्टि से चम्बल नदी का उद्गम स्थान मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित जानापाव की पहाड़ी है। यह नदी महू नगर तथा इंदौर नगर के निकट विन्ध्य श्रंखला की ढलान से निकलती है। मध्यप्रदेश-राजस्थान तथा मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश सीमा रेखाओं को अंकित करती हुई ये लगभग १००० किलोमीटर की दूरी तय करती है। तत्पश्चात यमुना नदी में समा जाती है।

चम्बल नदी का पारिस्थितिकी तंत्र

नदी में नौकायन का आनंद उठाते हुए आपको इसके दोनों तटों पर विविध पक्षियों के भी दर्शन होंगे। हमने सारस, बाज, कचपचिया (Babbler) आदि पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ देखीं। उनसे भी अधिक संख्या में उपस्थित हैं, घड़ियाल, जो आपको नदी में तैरते अथवा तटों पर विश्राम करते दिखाई देंगे।

यदि भाग्य साथ दे तो आपको मीठे जल के कछुए भी दिखाई देंगे। इस क्षेत्र में इन कछुओं की लगभग आठ प्रजातियाँ पायी जाती हैं। लगभग ४५ मिनटों के सम्पूर्ण नौकायन काल में हमने अनेक प्रकार के पक्षियों को आकाश में चारों ओर उड़ते देखा।

चम्बल नदी के घड़ीयाल
चम्बल नदी के घड़ीयाल

सम्पूर्ण नौकायन काल में घड़ियाल जल से बाहर आकर हमें तो दर्शन दे रहे थे किन्तु हमारे कैमरों के संग लुकाछिपी की क्रीड़ा में वे विजयी भी हो रहे थे। नदी के तट पर स्थित दलदल पर उनकी विषम त्वचा अपने चिन्ह अंकित करती ही है, साथ ही निर्मल जल सतह के नीचे भी अपनी उपस्थिति त्वरित दर्शा देती है। मुझे बताया गया कि चम्बल नदी में बड़ी संख्या में मीठे जल के डॉलफिन भी हैं जो गंगा नदी में लुप्तप्राय हो रहे हैं।

मेरे अनुमान से पक्षियों एवं नदी के घड़ियालों के दर्शन के लिए यह सम्पूर्ण भारत का सर्वोत्तम स्थान है।

सूर्यास्त काल में नदी का परिदृश्य अद्वितीय प्रतीत हो रहा था। वह दृश्य अविस्मरणीय था। मुझे अरब महासागर में सूर्यास्त के दृश्य का स्मरण हो आया। हमने चम्बल नदी से विदाई ली तथा वापिसी की यात्रा आरम्भ की।

मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था मानो मैंने देश के एक ऐसे दुर्लभ व रोमांचकारी भाग का दर्शन किया है जिसकी मुझे जानकारी तो थी लेकिन कभी कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिवस मुझे उसके दर्शन प्राप्त होंगे। चित्रपटों के काल्पनिक कथानकों के पृष्ठभूमि में दर्शाए गए दृश्यों से अत्यंत विपरीत हमें इसके यथार्थ रूप का अनुभव प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ था।

चम्बल एक दुर्लभ नदी है। एक ओर जहाँ भारत में नदियों को देवी स्वरूप पूजा जाता है, वहीं पारंपरिक मान्यताओं के कारण चम्बल नदी को श्रापित मानकर उसे पूजनीय नहीं माना जाता है। यह वही नदी है जिसके तटों पर चम्बल के डाकुओं ने सर्वाधिक काल के लिए अपना वर्चस्व स्थापित कर रखा था।

विश्रामगृह – चम्बल सफारी लॉज

हम चम्बल सफारी लॉज में ठहरे थे जो नदी से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह ऐसा स्थान है जहाँ आप अनेक प्रकार के पक्षियों के दर्शन कर सकते हैं। मैं प्रातः शीघ्र ही उठ गयी थी। मैंने देखा कि मेरे कक्ष के समक्ष एक वृक्ष की शाखाओं से सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ (Flying Fox) लटके हुए थे। चम्बल सफारी लॉज के विषय में अधिक जानकारी के लिए उनके अधिकारिक वेबस्थल पर देखें।  यहाँ से आपको इस लॉज के इतिहास की जानकारी प्राप्त होगी जो इस क्षेत्र के वन्य प्राणियों के ताने-बाने से पूर्णतः संलग्न है। उस समय यह लॉज मेला कोठी के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में यह पर्यावरण को बढ़ावा देता एक इको लॉज है जो आपको इस क्षेत्र की अनछुई सुन्दरता का आनंद उठाने का अवसर प्रदान करता है। उनकी पूर्ण प्रशिक्षित टोली आपकी सहायता करने के लिए सदैव तत्पर रहती है।

मेला कोठी चम्बल सफारी लॉज
मेला कोठी चम्बल सफारी लॉज

प्रातः काल मैं लॉज के आसपास के खेतों में पदभ्रमण कर रही थी। तभी मेरे साथ अनेक मोर भी पदभ्रमण करने के लिए आ गए थे।

चम्बल नदी एवं उसके पारिस्थितिक तंत्र का दर्शन कर मैं भावविभोर हो गयी थी। एक स्वच्छ निर्मल जीवंत नदी तथा उस पर आधारित मानव, पक्षी एवं जलीय प्राणी, ये सर्व स्वयं में एक सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है। ऐसा दृश्य अत्यंत दुर्लभ है। आशा है यह नदी सदा इसी प्रकार स्वच्छ व निर्मल बनी रहे। इसे किसी भी प्रकार का प्रदूषण स्पर्श भी नहीं कर पाए।

यात्रा सुझाव

आगरा से चम्बल घाटी पहुँचने में लगभग एक घंटे का समय लगता है। अतः, आप ताज महल भ्रमण एवं चम्बल नदी भ्रमण एक ही यात्रा कार्यक्रम के अंतर्गत कर सकते हैं।

दिल्ली अथवा जयपुर से भी चम्बल घाटी तक सुगमता से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली एवं जयपुर भारत के स्वर्णिम त्रिभुज (Golden Triangle) के भाग भी हैं।

चम्बल से आप द्रौपदी की जन्मस्थली काम्पिल्य का भ्रमण भी कर सकते हैं।

चम्बल घाटी एवं इसके पारिस्थितिकी तंत्र का अवलोकन करने एवं उसे समझने के लिए प्रशिक्षित परिदर्शक की सहायता अवश्य लें। उनकी सहायता से आप घाटी के सौंदर्य का आनंद उठाने के साथ साथ यहाँ के वन्य प्राणियों एवं वनस्पतियों से भी परिचित हो सकते हैं।

चम्बल नदी में नौकायन अवश्य करें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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