चितकुल पुराने भारत-तिब्बती मार्ग पर, भारत की सीमाओं के भीतर बसा, सबसे अंत में निवासित गाँव के रूप में प्रसिद्ध है। रकचम, सांगला और चितकुल के बीच बसा हुआ गाँव है जो उस क्षेत्र के आदर्श गाँव से जाना जाता है। जो लोग इस ऐतिहासिक मार्ग से जाने की हिम्मत रखते हैं उनके लिए यह किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं है। चितकुल पहुँचना यानि किसी यात्रा के शिखर पर पहुँचने जैसा है। और क्यों न हो? चितकुल इतना छोटा और सुंदर गाँव है जिसने अपनी एक अद्वितीय पहचान कायम की है।
सफारी चितकुल की
सांगला में जहां पर हम ठहरे थे वहां के बंजारा शिविरों में आराम से नाश्ता करने के उपरांत हम चितकुल की सफारी के लिए निकल पड़े। जैसा की हमने सुना था कि, कुछ लोग चितकुल से आगे भी गए थे, तो हमने भी चितकुल से आगे जाने का इरादा बना लिया और इस कारण पूरे दिन के लिए और कोई भी योजना नहीं बनाई। सांगला से निकलकर जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए वहां के परिदृश्य बदलते रहे। जिस राह से हम जा रहे थे उसकी दाईने तरफ बसपा नदी बह रही थी। जैसे हम आगे बढ़ रहे थे हर पल एक के बाद एक ऐसी अनेकों छोटी-छोटी नदियों से हमारा सामना होता गया जो उत्साह से बसपा की ओर बह रही थी, जैसे कि बसपा नदी से प्रत्याशित संगम के लिए हर्षोल्लास से भरी हो।
रास्ते
सारे रास्ते हम छोटे-बड़े पुलों को पार करते हुए आगे बढ़ रहे थे। प्रत्येक पुल इतना सुंदर और मनमोहक था कि मन करता थे की हम बस वहीं पर ठहरकर उन्हें निहारते रहें। पुल पर खड़े रहकर नदी को बहते हुए देखकर लगा कि, हम नदी का ही एक भाग होकर भी उसका भाग नहीं हैं। जिस प्रकार पानी चट्टानों से टकरा रहा था, उसकी आवाज ऐसी जैसे कोई मधुर संगीत सुनाई दे रहा हो। गज़ब की बात तो यह थी कि, प्रत्येक पुल के दोनों तरफ सूचना पट्ट थे जिनपर सारे महत्वपूर्ण विवरणों का उल्लेख किया गया था। हर तरफ रंगीन बौद्ध ध्वज लगे थे जिनके कारण न सिर्फ वातावरण में भक्ति भाव का रस घुला था, बल्कि इन ध्वजों के उज्ज्वलित खुशहाल रंगों से वातावरण में जीवंतता भी आ गयी थी।
रकचम पार करते ही हमे आस-पास हर जगह छोटे-बड़े पत्थर नजर आने लगे। ऐसा लगा, जैसे हम पत्थरों के शहर में ही आ गए हैं। हर जगह सिर्फ पत्थर ही पत्थर नजर आ रहे थे। इधर-उधर लटक रहे हिमनद धूप में चमक रहे थे।
चितकुल
जैसा की मैंने बताया था, हम चितकुल गाँव के आगे जाना चाहते थे, लेकिन शायद यह गाँव ही नहीं चाहता था कि हम इसके आगे जाए। जैसे ही हम चितकुल से निकले, आगे मोड पर हमारी गाड़ी एक छोटी सी नाली में फस गयी। लेकिन शुक्र है कि वहां के होटल और रेस्टोरांत के मालिकों ने गाड़ी को बाहर निकालने में हमारी सहायता की। इसी के साथ हमे आगे जाने के विचारों को भी छोड़ना पड़ा, क्योंकि सभी ने बताया कि आगे रास्ता ठीक नहीं है और कानूनी तौर से भी आप किसी भी चेकपोइंट के आगे नहीं जा सकते। इसलिए गाड़ी को वहीं पर खड़ा कर हमने इस छोटे से गाँव की सैर करनी शुरू की।
वहां पर हमने लकड़ी और पत्थर के बनी छोटी-छोटी कुटियाँ देखी जो चितकुल गाँव की तरह ही प्रसिद्ध है। हमने उन घरों के खुले भंडारण की व्यवस्था देखी, जिनमें दरवाजे तो थे पर अनिवार्य रूप से दीवारें नहीं थीं।
हिमाचल के चितकुल गाँव में बंगाल
भड़कीले रंगों से उज्ज्वल होटलों की पंक्ति के सामने से जैसे ही हम गुजरे, तो वहां पर हमने सूचना पट्टो पर बंगाली में लिखा हुआ देखा और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए धीरे-धीरे बंगाली सुनाई भी देने लगी। हमारे गाइड से बातचीत करते समय हमे यह भी पता चला कि बंगाली लोग इस राह से बहुत सफर करते हैं जिसके कारण चितकुल में बंगाली होटलों और रेस्टोरांत के लिए खास बाज़ार भी है। अब मुझे पता है कि गुजराती और बंगाली दोनों ही समुदाय बहुत घूमते-फिरते हैं। लेकिन मैंने यह अपेक्षा नहीं की थी कि वे हिमालय के दूरस्थ गाँव चितकुल में छोटे बंगाल का ही निर्माण कर देंगे। इसे खुले बाज़ार की यात्रा कहे या भारत की स्वाभाविकता कि हर समुदाय का हर दुसरे समुदाय में निमित निवेश।
चितकुल की बसपा नदी के किनारे टहलना
बर्फ से ढके हिमालय के शिखरों से उतरती बसपा नदी के किनारे हम लंबे समय तक टहलते रहे। वहां पर हर जगह चितकुल गाँव के लोग हरे रंग की किन्नौरी टोपियाँ पहने दिखाई दे रहे थे। चाहे वे खेतों में काम कर रही औरतें हो या गधों को घुमाने ले जाने वाले आदमी।
बसपा के छोर तक पहुँचने के लिए हम रेतीले मार्ग से आगे बढ़ते गए। यहाँ बसपा नदी किशोर बालिका की तरह चंचल सी बहती जा रही थी, जैसे कि दुनिया के चाल-चलन से अनभिज्ञ हो और आशा अपने अंचल में लिए हो। बसपा नदी के छोर पर हमे विभिन्न रंग के चिकने पत्थर देखने को मिले। मुझे याद है कि मैंने हर रंग की गिनती की थी और उसमें 7 से भी अधिक रंग थे. उन रंगों के विभिन्न उपरंग भी थे और उन पत्थरों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के नमूने भी थे।
मैं नदी के किनारे बैठकर उसकी गर्जना को सुनती रही, उसके हर्ष को महसूस करती, उसके भाव को टटोलने की कोशिश करती रही। बड़ी-बड़ी चट्टानों से टकराकर अपना रास्ता बनाने की उसकी पैंतरेबाजी को देखती रही। अगल-बगल के शोरगुल करते पर्यटकों के बीच भी वह कितना शांतिपूर्ण अनुभव था। आज भी जब मैं अपनी आँखें बंद कर चितकुल में बसपा नदी के किनारे बिताए उन पलों को याद करती हूँ तो वही शांति महसूस करती हूँ।
फूल
चितकुल गाँव में जब हम पहुंचे थे तो जुलाई का महिना चल रहा था, और हमने वहां पर काफी रंगबिरंगे फूल देखे।
रकचम, एक आदर्श गाँव
चितकुल से वापसी के दौरान हम कुछ समय के लिए रकचम गाँव में ठहरे। गाँव का साफ-सुथरापन देखकर हम उसकी अदर्शता की प्रशंसा करने लगे। रकचम गाँव बसपा नदी से लगभग 100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां से आप नदी का सुंदर सा नज़ारा देख सकते हैं। यहाँ से देखने पर पुल ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे वे छोटी-छोटी डंडियाँ हैं जो नदी के उस पार तक जा रही हैं। और यह नदी भी स्वयं चितकुल में देखि गयी नदी का छोटा सा रूप सा लग रही थी।
रकचम के पास ही हमने चीड़ के बहुत सारे देवदार के पेड़ देखे जो चिलगोजे के लिए भी प्रसिद्ध है। यह चिलगोजे या न्योज़े एक ऐसा उत्पाद है जो आपको सिर्फ संगला घाटी या हिमाचल प्रदेश के किन्नौर गाँव में ही मिल सकता है।
चितकुल यात्रा की प्यारी और सुंदर सी यादें लेकर मैं सांगला के अपने तम्बू में लौटी जो बसपा के पास ही स्थित था। यहाँ दहाड़ती हुई बसपा मेरा इंतज़ार कर रही थी, यह देखिये उसका छोटा सा एक नमूना:
चितकुल की यात्रा के लिए सुझाव
चितकुल सांगला से, जो हिमाचल प्रदेश की बसपा घाटी का मुख्य केंद्र है, से लगभग 25 की. मी. की दूरी पर है। वहाँ पर रहने के लिए सिर्फ बजट होटल्स ही उपलब्ध होते हैं, इसलिए उस हिसाब से अपनी यात्रा की योजना बनाइये। यहाँ पर सिर्फ मूलभूत सादा खाना ही उपलब्ध होता है, तो अगर आप कुछ विशिष्ट या निर्धारित ही खाते हैं तो अपना खाना साथ ले जाना अच्छा होगा।
हिमाचल ट्रांसपोर्ट की बस सेवा उलब्ध है, जो चितकुल को रेकोंग पेओ से जोड़ते हुए सांगला से गुजरती है। तो अगर आप बस से सफर करना चाहते हैं, तो उसके समय की जानकारी प्राप्त करना अच्छा होगा। मैं आपको टैक्सी से सफर करने का सुझाव दूंगी ताकि आप अपने हिसाब से सफर का मजा ले सके।
चितकुल 3450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और वहां का वातावरण भी ठंड होता है इसलिए अगर थकावट सी महसूस हो तो फ़ौरन आराम कर लीजिये।
चितकुल सांगला से भी अधिक ठंडा होता है इसलिए थोड़े और ज्यादा गरम कपड़े लेना मत भूलिए।
mesmorising maam..
धन्यवाद गायत्री
Aapne bhimakali temple dekha kya mam
जी देखा है, हमारे अंग्रेजी ब्लॉग पे आप उसके बारे में पढ़ भी सकते हैं. शीघ्र ही हिंदी पे भी लायेंगे.
Thanks to interaction
चितकुल-यानी सुकून…
प्रकृति की गोद मे एक छोटा पर बहूत ही खूबसूरत गांव।मै यहा अपने दोस्तो के साथ 26 जून, 2017 को बहुत ही आनन्द के पल जी के आया।
सही कहा आपने। बहुत ही शांति प्रदान करने वाला स्थान है चित्त्कुल, मुझे वहां बहती बासपा अत्यधिक पसंद है।
you did not mantion in our blog how to reach there, how so far from new delhi,
पढ़ते रहिये – वो भी आएगा