कॉलरवाली बाघिन – पेंच राष्ट्रीय उद्यान की रानी

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मध्य भारत के सघन वनों में बाघों का साम्राज्य है। वे अपने मनोहारी रूप द्वारा पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। यूँ तो पर्यटकों को उनके साम्राज्य में उन्मुक्त विचरण करने की स्वतंत्रता नहीं है, किन्तु वे पर्यटकों के लिए निर्दिष्ट मार्गों पर स्वयं आकर उन्हें अनुग्रहित करते हैं। उनका चित्ताकर्षक मनमोहक रूप हमें इस प्रकार सम्मोहित कर देता है कि हम उनके पुनः पुनः दर्शन करने के लिए आतुर हो जाते हैं। जैसे कान्हा का लोकप्रिय मुन्ना बाघ। बांधवगढ़ में भी बाघों के दर्शन की पक्की संभावना रहती है।

बाघ एक स्वच्छंद वन्यप्राणी है। वह हमें दर्शन दे अथवा नहीं, यह पूर्णतः उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। कुछ सफारी भ्रमणों में हमें इनके दर्शन नहीं हो पाते हैं। बांधवगढ़ में मेरा ऐसा ही अनुभव रहा था। बाघ मुझसे लुका-छिपी का खेल खेलते रहे। किन्तु निराश होने के स्थान पर मैंने जंगल को निहारने का निश्चय किया तथा उसके अन्य आयामों को अनुभव किया। विविध प्रकार के वृक्षों एवं वन्य प्राणियों के दर्शनों का आनंद उठाया। जंगल के भीतर स्थित बांधवगढ़ का दुर्ग भी मेरे लिए एक आश्चर्यजनक खोज थी। मेरा सुझाव है कि आप जंगल में एक से अधिक सफारी भ्रमण करने का प्रयास करें जिससे बाघों के दर्शन की संभावना बढ़ जाती है तथा आप जंगल के अन्य आकर्षणों का भी अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।

पेंच राष्ट्रीय उद्यान में बाघ दर्शन की तीव्र अभिलाषा होते हुए भी मैंने अपने मन की पूर्व तैयारी कर रखी थी कि कदाचित यहाँ भी बाघ मुझ से लुका-छिपी खेलें। किन्तु संभवतः वे मेरी व्याकुलता को भांप गए तथा उन्होंने मुझे मन भर कर दर्शन देने का निश्चय किया। सोने पर सुहागा! मेरे समक्ष पेंच राष्ट्रीय उद्यान की सर्वाधिक लोकप्रिय कॉलरवाली बाघिन अपने शावकों के साथ गर्व से विचरण कर रही थी।

कॉलरवाली बाघिन - पेंच राष्ट्रीय उद्यान
कॉलरवाली बाघिन – पेंच राष्ट्रीय उद्यान

कॉलरवाली बाघिन एवं उसके शावकों ने हमारे सफारी भ्रमण मार्ग को अनेक बार पार किया। प्रचुर दर्शनों से उन्होंने मुझे अभिभूत कर दिया था। मुझमें साहस होता व उसकी अनुमति होती तो मैं उनके समीप जाकर उन्हें गले से लगा लेती तथा अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती। किन्तु उन्हें दूर से ही धन्यवाद कहना उचित है तथा मैंने वही किया।

कॉलरवाली बाघिन की वंशावली

कॉलरवाली बाघिन का नाम ऐसा इसलिए पड़ा क्योंकि सन् २००८ में उसके गले में रेडियो कॉलर या अनुवर्तन पट्टा डाला हुआ है। बाघिन के गले में यह पट्टा तब डाला गया था जब वह स्वयं एक शावक थी। इस पट्टे के द्वारा उसके अनुगमन पर दृष्टि रखी जाती थी। अब यह पट्टा दीर्घकाल से निर्जीव हो चुका है किन्तु वह अब भी बाघिन के गले में लटका हुआ है। यहाँ तक कि यह पट्टा उसकी पहचान बन चुका है।

कालरवाली बाघिन अपने शिशुओं के साथ
कालरवाली बाघिन अपने शिशुओं के साथ

कॉलरवाली बाघिन जन्म सन् २००५ में हुआ था। वह एक काल में लोकप्रिय बाघिन, ‘बड़ी माता’ की पुत्री है। उसके पिता को टी-१ तथा पेंच का चार्जर कहा जाता था। कॉलरवाली बाघिन ने अपनी माता के क्षेत्र के एक बड़े भाग पर अपना अधिपत्य स्थापित किया था। बी बी सी के प्रसिद्ध वृत्तचित्र “Spy in the Jungle’ में इसी बाघिन की जीवनी को प्रदर्शित किया गया है। यह वृत्तचित्र सम्पूर्ण विश्व में अत्यंत लोकप्रिय भी हुआ था।

कॉलरवाली बाघिन को माताराम के नाम से भी जाना जाता है। वनीय नामकरण पद्धति के अनुसार उसे टी-१५ कहते हैं।

मैं कॉलरवाली बाघिन को पेंच के जंगलों की रानी माँ कहती हूँ क्योंकि उसने अब तक २९ बाघ शावकों को सफलतापूर्वक जन्म दिया है। सन् २००८ में उसके प्रथम शावक का जन्म हुआ था। इस संस्करण के विडियो में प्रदर्शित शावकों का जन्म सन् २०१५ में हुआ था जिसके एक वर्ष पश्चात मैंने पेंच राष्ट्रीय उद्यान में उनके दर्शन किये थे। ये उसके छठें प्रसव की संतानें हैं। तब तक उसकी २२ संतानें हो चुकी थीं।

भारत में बाघों की संख्या में वृद्धि करने के लिए अनेक संस्थाएं एवं स्वयंसेवक अनवरत कार्य कर रहे हैं। उनके लिए कॉलरवाली बाघिन एक वरदान सिद्ध हुई है। वन संरक्षक अधिकारियों के अनुसार २९ शावकों को जन्म देना स्वयं में एक कीर्तिमान है। शीघ्र ही पेंच के जंगलों में उसके शावकों का राज होगा। तो अब आप बताइये, क्या कॉलरवाली बाघिन को पेंच राष्ट्रीय उद्यान की ‘रानी माँ’ कहना अतिशयोक्ति है?

पेंच की कॉलरवाली बाघिन से भेंट

पेंच का सर्वोत्तम आकर्षण कॉलरवाली बाघिन का दर्शन है। वो अपने शावकों के साथ आनंद से पर्यटकों को अपने दर्शन देती है। राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश करते ही वहाँ के अधिकृत गाइड अथवा परिदर्शक हमें उस समय की उसकी गतिविधियों की जानकारी देने लगते हैं। मैंने अनेक राष्ट्रीय उद्यानों में भ्रमण किया है तथा वहाँ अनेक सफारी भी की है। सामान्यतः सभी परिदर्शकों की यही शैली होती है। कदाचित वे पर्यटकों की उत्सुकता व अपेक्षाओं को चरम सीमा तक ले जाना चाहते हैं ताकि बाघिन दर्शन ना दे, तब भी हमें उसकी उपस्थिति का रोमांचक अनुभव प्राप्त होता रहे।

हमारे लॉज से आये सभी पर्यटक आश्वस्त थे कि कॉलरवाली बाघिन के दर्शन की संभावना अत्यधिक है। जून का मास चल रहा था। तपती गर्मी में तृष्णा उन्हें जल स्त्रोत तक खींच ही लायेगी, इसलिए हमने सर्वप्रथम उसे जल स्त्रोतों के समीप ही ढूँढना आरम्भ किया।

प्रसिद्ध बाघिन माँ की पुत्री के दर्शन

पेंच राष्ट्रीय उद्यान में उस दिन हमारा भाग्य उन्नत था। हमारी सभी आकांक्षाएँ पूर्ण होने को थीं। कुछ ही क्षणों में हमने देखा कि एक बाघिन एक छोटे से जलाशय की ओर चली जा रही थी। झाड़ियों के झुरमुट के पीछे से पीली पट्टियाँ आगे बढ़ती हुई हमसे आँख मिचौली खेलने लगी। ऊँची-नीची भूमि पर मार्ग खोजती हुई वह जलाशय तक पहुँची। उसने जल में प्रवेश किया तथा वहीं बैठ गयी। वह जल की शीतलता का आनंद उठा रही थी।

जून की तपती सूखी उष्णता में मुझे भी उसके साथ शीतल जल का आनंद उठाने की इच्छा होने लगी थी। वह बाघिन माँ नहीं थी, अपितु उसकी एक वर्ष की आयु की पुत्री थी। जल में कुछ क्षण शीतल होने के पश्चात उसने वन में भ्रमण करने का निश्चय किया। जाते हुए उसने हम पर्यटकों की जीपों के सामने से हमारे मार्ग को पार किया। श्वास रोक कर, स्तब्ध होकर हम उसे देखते रहे। मार्ग के एक ओर से वन से बाहर आकर उसने हमारा मार्ग पार किया तथा मार्ग के दूसरी ओर वन के भीतर प्रवेश कर गयी।

कॉलरवाली बाघिन माँ के प्रथम दर्शन

कुछ क्षणों पश्चात बाघिन माँ हमारे समक्ष प्रकट हो गयी। वह भी उसी मार्ग पर चल रही थी जिस पर कुछ क्षणों पूर्ण उसकी बिटिया गयी थी। ठीक उसी प्रकार जैसे अपने बच्चों के पीछे माँएं दौड़ती हैं। वह भी जलाशय की ओर गयी, जल पिया तथा जल के समीप कुछ क्षण बैठ गयी मानो जल में स्वयं को निहारते कुछ क्षण व्यतीत करना चाहती हो। मैं जल में उसका प्रतिबिम्ब देखना चाहती थी तथा उसके प्रतिबिम्ब के साथ उसका चित्र लेना चाहती थी। किन्तु उसके व हमारे बीच की दूरी तथा प्रतिकूल दिशा होने के कारण वह संभव नहीं हो पाया। कुछ क्षण शान्ति से बैठी माँ को निहारना अत्यंत सुखद था। अचानक जैसे उस माँ को अपनी बिटिया का ध्यान आ गया हो, वह उठी तथा बिटिया की दिशा में आगे बढ़ गयी। कुछ समय के उपरांत माँ व बेटी दोनों साथ साथ चलने लगे।

बाघिन माँ का आकार उस मुन्ना बाघ की तुलना में छोटा था जिसे मैंने गत वर्ष कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में देखा था। मेरे परिदर्शक ने बताया कि बाघ व बाघिन के आकारों में भिन्नता अत्यंत सामान्य है।

हम सब के मुखड़ों पर प्रसन्नता व संतोष का भाव स्पष्ट उमड़ रहा था, मानो पेंच यात्रा का समूचा उद्देश्य पूर्ण हो गया हो।

दूसरी भेंट

दूसरे दिवस प्रातः शीघ्र ही हमने राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश किया। हमने वन के अन्य विभिन्न आकर्षणों का अवलोकन करने का निश्चय किया। मुझे विशेषतः विविध पक्षियों को देखने की अभिलाषा थी। वन में सफारी भ्रमण करते समय मार्ग में हमने हिरणों को अठखेलियाँ करते देखा। सांभर के झुण्ड को घास चरते देखा। विभिन्न पक्षियों के दर्शन एवं उनकी चहचहाहट के स्वरों ने हमें आनंद से भर दिया। उन पक्षियों की कथा किसी अन्य दिवस सुनाऊँगी।

हम जैसे ही एक चौरस्ते पर पहुंचे, हमने देखा कि पर्यटकों की ५-६ जीपें एक पंक्ति में शांत खड़ी हैं। एक दिशा में मुड़े उन सबके कैमरों ने हमें भी उस दिशा में देखने के लिए बाध्य कर दिया। बाघिन माँ अपने दो शावकों के साथ शान से जा रही थी। शावकों में एक वही बिटिया थी जिसे हमने गत संध्या को देखा था। दूसरा शावक उसी आयु का उसका पुत्र था।

लजीला पुत्र

हमारे सफारी गाइड ने हमें बताया कि कॉलरवाली बाघिन का पुत्र किंचित संकोची है। वह मानवों से दूर ही रहना चाहता है। वहीं माँ एवं पुत्री वन में पर्यटकों की उपस्थिति से सहज हैं। वे पर्यटकों एवं उनके सफारी वाहनों को देखकर अपना मार्ग परिवर्तित नहीं करतीं। उनकी यह सहजता राष्ट्रीय उद्यान पर्यटन अर्थव्यवस्था के लिए वरदान है। मानो वे इस तथ्य को समझती हैं तथा हमारी सहायता कर रही हैं। वे अत्यंत सहजता से मार्ग पर प्रकट हो जाती हैं, आपस में क्रीड़ा करती हैं ताकि उनके प्रकट होने पर जितने लोग भी निर्भर हैं, उनकी जीविका चलती रहे। जी हाँ, एक ओर जहाँ बाघ पुत्र सफारी जीपों से दूर रहकर लंबा मार्ग अपना रहा था, वहीं बाघिन माँ एवं उसकी पुत्री निडर होकर जीपों के मध्य से शान से जा रही थीं।

बाघिन एवं उसके दोनों शावक मार्ग के एक ओर वन में विचरण करते रहे तथा हमारी दृष्टि व हमारी जीपें वन की शान्ति भंग किये बिना उनका पीछा करती रहीं। वन में शांतता पालना अत्यावश्यक होता है तथा हम उसका पालन भी कर रहे थे। वन के भीतर हमें सदा वन्य प्राणियों एवं उनकी आवश्यकताओं का आदर करना चाहिए। मार्ग में अनेक स्थानों पर हमारा उनसे सामना हुआ। अंततः वे पेंच नदी को पार कर एक शिला पर बैठ गए। जून मास की गर्मी में नदी में जल की मात्रा कम थी। नदी के तल पर स्थित शिलाखंडों के मध्य से मार्ग निकालते हुए वे अपने प्रिय शिलाखंड पर पहुंचे तथा उस पर चढ़कर बैठ गए। अब उनसे विदा लेने का भी समय आ गया था।

बाघिन माँ एवं उसके दोनों शावकों ने हमें उदार दर्शन दिए थे जिसने हमें अभिभूत कर दिया था। लॉज पहुँचने तक रोमांच से हम सब स्तब्ध थे।

पेंच में किया गया रानी बाघिन एवं उसके दोनों शावकों के अद्भुत रूप का दर्शन मेरे स्मृतियों में सदा के लिए रच-बस गया है। मैं जानती हूँ कि पेंच का यह बाघ सफारी मेरे लिए दीर्घ काल तक एक सर्वोत्तम सफारी रहेगा।

कॉलरवाली बाघिन का विडियो देखें

प्रसिद्ध बाघिन माँ को अपने शावकों के साथ स्वच्छंद विचरण करते हुए इस विडियो में देखें।

कॉलरवाली बाघिन का दूसरा विडियो

कॉलरवाली बाघिन की मृत्यु

मैं अत्यंत दुःख के साथ आपको यह जानकारी दे रही हूँ कि पेंच की रानी, माताराम, कॉलरवाली बाघिन आदि नामों से सुप्रसिद्ध टी-१५ बाघिन ने १५ जनवरी २०२२ को संध्या ६.१५ बजे अपना अंतिम श्वास लिया। लगभग साढ़े सोलह वर्ष की आयु पूर्ण कर चुकी बाघिन माँ की मृत्यु वृद्धावस्था के कारण हुई। २९ शावकों को जन्म देने का कीर्तिमान स्थापित करने वाली बाघिन माँ की मृत्यु वन विभाग एवं वन्य प्राणी प्रेमियों के लिए अपूर्णीय क्षति है। सुपर टाईग्रेस मॉम के नाम से भी लोकप्रिय कॉलरवाली बाघिन ने पेंच राष्ट्रीय उद्यान का नाम सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध कर दिया है।

रविवार १६ जनवरी को पेंच राष्ट्रीय उद्यान में ही उसका अंतिम संस्कार किया गया. पेंच की रानी को हम सब की ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजलि!

भारत के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों एवं वन्यजीव अभयारण्यों में भ्रमण पर मेरे ये यात्रा संस्मरण अवश्य पढ़ें

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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