बिहार में मिथिला के दरभंगा के पर्यटक स्थल

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दरभंगा का शाब्दिक अर्थ है, बंगा अथवा बंगाल का द्वार। दरभंगा वह स्थान था जहाँ से भारत के पूर्वी क्षेत्रों की यात्रा करने के लिए प्राचीन बंगाल का आरंभ होता था। यह क्षेत्र मिथिला के नाम से लोकप्रिय तो है ही, इस क्षेत्र को तिरहुत भी कहते हैं।

बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक प्रमुख नगर है दरभंगा। राजपरिवार से प्राप्त संरक्षण एवं वित्तीय सहायता के चलते दरभंगा में विकास कार्य अपेक्षाकृत शीघ्र आरंभ हो गया था। उदाहरण के लिए दरभंगा उन क्वचित नगरों में से एक है जहाँ विमानतल का निर्माण अनेक वर्षों पूर्व ही हो गया था। सन् १९३८ में निर्मित दरभंगा विमानतल को हाल ही में पुनर्जीवित किया गया है। अब भारत के सभी प्रमुख नगरों से सीधे दरभंगा तक विमान सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं।

दरभंगा में रेल सेवाएं १९ वीं सदी के अंतिम चरण में आरंभ हो गयीं थी। भारतीय रेल के आरंभिक दिवसों में ही दरभंगा को उसमें सम्मिलित कर लिया गया था। यहाँ तीन रेल स्थानक निर्मित किये गए थे जो एक दूसरे से निकटवर्ती स्थानों पर स्थित थे। लहरिया सराय रेल स्थानक ब्रिटिश अधिकारियों के लिए था तो दरभंगा रेल स्थानक सामान्य जनता के लिए था। तीसरा स्थानक राजपरिवार का राजभवन था जहाँ तक जाने के लिए विशेष रेल लाइन बिछाई गयी थी।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय - दरभंगा
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय – दरभंगा

मिथिला भ्रमण की मेरी अभिलाषा कई वर्षों से अपूर्ण थी। दो अवसरों पर मैंने मिथिला भ्रमण का नियोजन किया था किन्तु कुछ अपरिहार्य कारणों से मुझे अंतिम समय में उन्हे निरस्त करना पड़ा था। अंततः मेरी मिथिला भ्रमण व दर्शन की अभिलाषा साकार हुई।

दरभंगा का इतिहास

दरभंगा को भारत के प्राचीनतम नगरों की सूची में सम्मिलित किया जा सकता है।

निकटतम अतीत में दरभंगा पर खंडवाला राजवंश के शासकों ने शासन किया था जो राज दरभंगा के नाम से भी लोकप्रिय हैं। लगभग १६ वीं सदी के अंत में वे मध्य प्रदेश के खंडवा क्षेत्र से यहाँ आये थे। खंडवाला राजवंश ने लगभग ४०० वर्षों तक यहाँ शासन किया था।

सूक्ष्म रूप से देखा जाए तो खंडवाला राजवंश के शासक वास्तव में मैथिली ब्राह्मण जमींदार थे जिनके नियंत्रण में कई विशाल भूभाग थे। उन भूभागों पर उनका प्रभुत्व उनके समकालीन देशी रियासतों से कहीं अधिक होने के पश्चात भी उन्हे रियासत की श्रेणी प्रदान नहीं की गयी थी। इसका कारण यह हो सकता है कि उन्होंने ब्रिटिश राज अथवा मुगलों के आधिपत्य को अस्वीकार किया तथा स्वतंत्र रूप से अपने भूभाग पर नियंत्रण किया था।

आप खंडवाला राजवंश के पदचिन्ह दरभंगा में चहुँओर देख सकते हैं। सम्पूर्ण नगर में उनके अनेक राजभवन एवं महल हैं जिनमें से अधिकांश को अब महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में परिवर्तित कर दिया गया है। दरभंगा नगर में दो विश्वविद्यालय हैं, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं कामेश्वर सिंग दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय।

दरभंगा के जलाशय

मिथिला क्षेत्र अपने जलाशयों एवं जलकुंडों के लिए प्रसिद्ध है। अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि मिथिला क्षेत्र का एक प्रमुख भाग होने के नाते दरभंगा भी अनेक जलाशयों एवं जलकुंडों से अलंकृत है।

दरभंगा के पोखर
दरभंगा के पोखर

दरभंगा के मानचित्र पर तीन प्रमुख जलाशय स्पष्ट देखे जा सकते हैं जो एक दूसरे के निकट स्थित हैं। वे हैं,

  • हराही
  • दिघी
  • गंगा सागर

इनके अतिरिक्त भी दरभंगा में अनेक छोटे-बड़े जलाशय हैं। दरभंगा में आप जहाँ भी दृष्टि दौड़ायिए, आपको जलस्रोत दृष्टिगोचर होगा। मैंने दरभंगा में उन्हे सर्वत्र पाया, जैसे मंदिर के निकट, राजभवन एवं दुर्ग के भीतर व आसपास।

अधिकांश जलस्रोतों के निकट हमने अनेक निवासियों को मछली पकड़ते देखा। जी हाँ, यहाँ के निवासियों के प्रिय भोजन में मछली का विशेष स्थान है। पुष्करों के उथले जल में मखाने की खेती भी की जाती है। किन्तु यह खेती ऋतु अनुसार वर्ष में कुछ काल ही की जाती है। इसे देखने के लिए आपको उचित ऋतुकाल में यहाँ का भ्रमण करना होगा।

दरभंगा में चहुँओर उपस्थित कूड़े-कचरे ने मुझे अत्यंत आहत किया। दरभंगा नगर एवं उसके जलस्रोत स्वच्छ होते तो उनके आसपास भ्रमण करना अत्यंत आनंददायक होता। मैंने भारत के अनेक छोटे-बड़े नगरों में भ्रमण किया है किन्तु उन सभी की तुलना में दरभंगा मुझे मलिनतम नगर प्रतीत हुआ।

दरभंगा के मंदिर

श्यामा माई मंदिर संकुल

दरभंगा की हृदयस्थली श्यामा माई मंदिर संकुल है जिसमें अनेक मंदिर हैं। इस संकुल के चारों ओर भी अनेक मंदिर हैं। इस मंदिर संकुल की विशेषता यह है कि यह वास्तव में राज परिवार का समाधिस्थल है। राजाओं एवं रानियों की समाधियों के ऊपर मंदिर निर्मित किये गए हैं जो देवी के विभिन्न स्वरूपों को समर्पित हैं।

श्यामा काली मंदिर दरभंगा
श्यामा काली मंदिर दरभंगा

समाधि का भाग होने के पश्चात भी इन मंदिरों ने अपार प्रसिद्धि अर्जित की है। इन मंदिरों में श्यामा काली मंदिर सर्वाधिक लोकप्रिय है। ये सभी मंदिर एक चौकोर जलकुंड के चारों ओर स्थित हैं।

हम इन मंदिरों के दर्शन के लिए प्रातः शीघ्र ही आ गए थे। मंदिर संकुल भक्तगणों से भरा हुआ था। हमें बताया गया कि इन में से अधिकांश मंदिरों के नीचे भूमिगत कक्ष हैं जहाँ पर तांत्रिक अनुष्ठान किये जाते हैं।

जलकुंड के चारों ओर दक्षिणावर्त जाते हुए हमने इन मंदिरों के दर्शन करना आरंभ किया:

माधवेश्वर महादेव मंदिर

यह इस संकुल का इकलौता मंदिर है जिसका निर्माण समाधि स्थल के ऊपर नहीं किया गया है। इस मंदिर का निर्माण सन् १८०६ में महाराजा माधव सिंग ने करवाया था। यह एक शिव मंदिर है। इसका नाम इसके निर्माता के नाम पर रखा गया है।

यह एक छोटा सा मंदिर है जिसे श्वेत रंग में रंगा गया है। इसकी किनारियाँ लाल रंग की हैं। इसके प्रवेश स्थल पर तीन द्वार हैं जो बंगाल-चला शैली में निर्मित मंडप की ओर खुलता है। मंडप के समक्ष गर्भगृह है जहाँ शिवलिंग स्थापित है।

श्यामा माई मंदिर

श्यामा काली मंदिर इस संकुल का ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण दरभंगा का सर्वाधिक लोकप्रिय मंदिर है। दूर-सुदूर से भक्तगण अपनी कामनायें लेकर इस मंदिर में आते हैं।

इस मंदिर का निर्माण सन् १९२९ में महाराजा रामेश्वर सिंग के निधन के उपरांत उनकी समाधि के ऊपर किया गया है। यह मंदिर रामेश्वर काली मंदिर भी कहलाता है। सम्पूर्ण मंदिर उजले लाल रंग में रंगा है। मंदिर के गर्भगृह के भीतर माँ काली का काले रंग का विशाल विग्रह स्थापित है। माँ काली की सम्पूर्ण छवि वशीभूत कर देती है जो स्मृति में अनंत काल के लिए अंकित हो जाती है। विग्रह में माँ काली की चार भुजायें दर्शाई गई हैं किन्तु उन्हे निहारने के पश्चात मुझे उनकी दो भुजायें दीर्घ काल के लिए स्मरण रहेंगी। एक है उनका ऊपरी बायाँ हाथ जिसमें वे तलवार उठाए हुए हैं। दूसरा है उनका निचला बायाँ हाथ जिसमें उन्होंने असुर का शीष पकड़ा हुआ है। अन्य दो हाथ उदार मुद्रा में स्थिर हैं, अभय एवं वरदान।

मूर्ति के समक्ष एक कलश रखा हुआ है।

लक्ष्मेश्वर तारा मंदिर

लक्ष्मेश्वर सिंग ने १९ वीं सदी के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र पर राज किया था। उनके देहांत के पश्चात उनकी समाधि के ऊपर यह मंदिर बनाया गया था। इस मंदिर के चारों ओर गुलाबी रंग में रंगी कम ऊंचाई की भित्तियाँ हैं। कुछ सोपान चढ़कर हमने इस मंदिर के भीतर प्रवेश किया।

इस समाधि मंदिर के भीतर लक्ष्मेश्वर सिंग की इष्ट देवी तारा की प्रतिमा स्थापित है। माँ तारा की प्रतिमा अपेक्षाकृत लघु होते हुए भी विशाल प्रतीत होती है। चतुर्भुजा माँ तारा ने अपने दोनों ऊपरी हाथों में आयुध धारण किया है।

इस मंदिर के समीप ही रानी लक्ष्मीवती को समर्पित एक मंदिर है।

अन्नपूर्णा मंदिर

चटक लाल रंग का यह एक छोटा सा मंदिर है।

रुद्रेश्वर काली मंदिर

यह इस संकुल का प्राचीनतम मंदिर है। यह अन्य मंदिरों की तुलना में स्वच्छ था। हमने मंदिर के पुजारी को इसे स्वच्छ करते हुए देखा भी। यह अपेक्षाकृत एक बड़ा मंदिर है। मध्य स्थित जलकुंड के विपरीत तट पर श्यामा काली मंदिर है।

रुद्रेश्वर काली मंदिर महाराजा रुद्र सिंग की समाधि के ऊपर निर्मित किया गया है। इस मंदिर में देवी माँ काली के रूप में विराजमान हैं। चतुर्भुजा माँ काली ने अपने दो ऊपरी हथेलियों में तलवार पकड़ी हुई है।

कामेश्वर श्यामा मंदिर

यह मंदिर दरभंगा के अंतिम महाराजा बहादुर कामेश्वर सिंग की स्मृति में निर्मित किया गया है। मंदिर के भीतर माँ काली श्यामा के रूप में उपस्थित हैं।

इन मंदिरों के अतिरिक्त कुछ रिक्त स्थान हैं जहाँ कदाचित राज परिवार के अन्य सदस्यों की समाधियाँ हैं।

मनोकामना मंदिर

यह लघु व अत्यंत सुंदर मंदिर है जिसके भीतर हनुमान विराजमान हैं। श्वेत संगमरमर में निर्मित यह मंदिर जैन शैली में निर्मित मंदिर का लघु रूप प्रतीत होता है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए कुछ सोपान निर्मित हैं।

मनोकामना मंदिर
मनोकामना मंदिर

यह मंदिर इतना छोटा है कि इसके भीतर प्रवेश करने के लिए लगभग रेंगना पड़ता है। अधिकांश भक्तगण मंदिर के समक्ष स्थित मुक्तांगन में बैठकर ही हनुमान जी के दर्शन करते हैं।

यहाँ हमने कुछ बालकों को हनुमान चालीसा का जाप करते देखा। हम भी इस जाप में उनके साथ हो लिए।

समीप स्थित एक गुमटी में हनुमान जी का प्रिय प्रसाद लड्डू उपलब्ध था। आप उन्हे क्रय कर सकते हैं।

राम मंदिर

यह अन्य मंदिरों की तुलना में एक विशाल मंदिर है। नरगौना महल के समीप स्थित यह मंदिर ठेठ भारतीय-मुगल (Indo-Saracenic) शैली में निर्मित है। मंदिर के शिखर गुंबद के रूप में निर्मित हैं। मंदिर के भीतर की वास्तुकला आपको राजस्थान का स्मरण करा देगी। काष्ठ पर किये गए उत्कीर्णन एवं भित्तियों पर की गयी गचकारी अत्यंत आकर्षक हैं। किन्तु मंदिर के रूप में यह संरचना लगभग परित्यक्त प्रतीत हुई। एक परिवार इस मंदिर के भीतर निवास करता भी प्रतीत हो रहा था।

गर्भगृह के भीतर राम दरबार है। वहाँ चारों भ्राताओं, माँ सीता एवं हनुमान जी के विग्रह हैं। संकुल में राधा कृष्ण का भी एक लघु मंदिर है।

कंकाली देवी मंदिर

यह मंदिर दरभंगा दुर्ग के भीतर स्थित है। यह मंदिर देवी के कंकाली स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर श्यामा माई मंदिर संकुल के भीतर स्थित मंदिरों के अनुरूप ही निर्मित है। इस मंदिर को देख मुझे मथुरा का कंकाली टीला स्मरण हो आया।

दरभंगा के संग्रहालय

दरभंगा एक छोटा सा नगर है। इतने छोटे नगर के भीतर संग्रहालयों के आकार व संख्या देख सुखद आश्चर्य होता है। किन्तु इन संग्रहालयों की स्वच्छता एवं रखरखाव उतनी ही दुखद स्थिति में है।

लक्ष्मीश्वर सिंग संग्रहालय

विशाल दिघी सरोवर के निकट स्थित इस संग्रहालय का कार्यभार कला संस्कृति एवं युवा विभाग के अंतर्गत है। हमें बताया गया कि कुछ काल पूर्व ही इस संग्रहालय का जीर्णोद्धार एवं नवीनीकरण किया गया है।

हाथीदांत से बनी महिषासुरमर्दिनी
हाथीदांत से बनी महिषासुरमर्दिनी

संग्रहालय में राज परिवार से प्राप्त हस्तिदंत कलाकृतियों का बड़ा संग्रह है। उनमें गृह साज-सज्जा की वस्तुएं एवं अनेक मूर्तियाँ हैं। हमें बताया गया कि हाथी का हौदा टीपू सुल्तान के हाथी का है किन्तु इसकी पुष्टि करने के लिए हमें कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ।

चंद्रधारी संग्रहालय

यह संग्रहालय लक्ष्मीश्वर सिंग संग्रहालय के समीप ही स्थित है। यद्यपि यह एक विशाल संरचना के भीतर स्थित है तथापि इसके प्रदर्शित संग्रह अपेक्षाकृत सीमित हैं। मुझे संग्रहालय की संरक्षण स्थिति दयनीय प्रतीत हुई। प्रदर्शित चित्र अत्यंत दुर्लभ होने के पश्चात भी उनका अनुरक्षण नहीं किया गया है। उनमें से कई ऐसे यंत्रों के दुर्लभ चित्र हैं जिनका प्रयोग विविध धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता रहा होगा।

संग्रहालय में इस क्षेत्र से प्राप्त भगवान विष्णु की अनेक प्रतिमाएँ हैं जो यह दर्शाती हैं कि इस क्षेत्र में विष्णु आराधना की प्राधान्यता थी।

दरभंगा से मिथिला की स्मृतियाँ – क्या क्रय करें?

मधुबनी चित्र – मिथिला की स्मृतियों की चर्चा करें तो सर्वप्रथम नाम जो मस्तिष्क में उभरता है, वह है मधुबनी चित्र। किन्तु यह विडंबना है कि मुझे दरभंगा अथवा मधुबनी से उन्हे क्रय करने के लिए कोई स्रोत दृष्टिगोचर नहीं हुए। आपको मधुबनी चित्रकारों अथवा कारीगरों से सीधे संवाद साधना पड़ेगा।

हमें जानकारी दी गयी कि कुछ चित्रकार वस्त्रों एवं साड़ियों पर मधुबनी चित्रकारी करते हैं। उन्होंने कई आधुनिक कार्यशालाएँ भी स्थापित की हैं, जैसे मधुबनी पैंटस्।

मिथिला के स्वर्ण वैदेही मखाने
मिथिला के स्वर्ण वैदेही मखाने

मखाने  – दरभंगा की कोई स्मृति साथ लाना चाहें तो वहाँ के मखाने सर्वोत्तम विकल्प हैं। दरभंगा के किसी भी हाट में मखाने सुलभता से उपलब्ध हैं। किसी भी प्रमुख नगर में उपलब्ध मखानों की तुलना में दरभंगा में आप मखाने कम से कम ३०-४०% कम मूल्य में क्रय कर सकते हैं। यदि आप इन पौष्टिक मखानों के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप दरभंगा के मखाना अनुसंधान केंद्र का भ्रमण कर सकते हैं।

सत्तू – बिहार का सर्वव्यापी पौष्टिक पेय है सत्तू। यहाँ पूर्वनिर्मित सत्तू विविध आकार के पुलिंदों में सर्वत्र उपलब्ध हैं। उन्हे क्रय कर अपने साथ ले जाएँ तथा अपने घर पर बैठकर बिहार के इस पौष्टिक पेय का आनंद लें।

दरभंगा के महल अथवा राजभवन

दरभंगा एक रियासती नगरी रही है। अतः यहाँ अनेक दुर्ग एवं राजमहल थे जो अब भी देखे जा सकते हैं। मुझे दरभंगा के महलों की एक विशेषता अत्यंत प्रशंसनीय प्रतीत होती है। वह यह है कि यहाँ के राजमहलों को अब शैक्षणिक संस्थानों में परिवर्तित कर दिया गया है। इससे यहाँ की धरोहर अनवरत जीवित है, साथ ही सर्वोत्तम रूप से अनुरक्षित व संरक्षित भी है।

भूकंप सुरक्षित नरगौना महल

श्वेत रंग में रंगा यह एक साधारण महल है। इसकी संरचना में परिलक्षित सममिति औपनिवेशिक काल की देन है। यह संरचना अब संस्कृत विश्वविद्यालय का एक भाग है। विश्वविद्यालय के परिसर में प्रवेश करते ही पटलों पर लिखे संस्कृत दोहे आपका स्वागत करते हैं।

नरगौना महल
नरगौना महल

नरगौना महल की एक विशिष्टता है। यह आधुनिक भारत में निर्मित भूकंप से सुरक्षित सर्वप्रथम संरचनाओं में से एक है। सन् १९३४ में इस क्षेत्र को तीव्र भूकंप का सामना करना पड़ा था। इसके पश्चात ही नरगौना महल का निर्माण हुआ था। भूकंप को ध्यान में रखते हुए इसकी संरचना में भूकंप संरक्षण तत्व सम्मिलित किए गए थे। महल के भूतल में आप एक रिक्त स्थान देख सकते हैं। संरचना की यह रिक्तता भूकंप के उत्पन्न प्रघाती तरंगों को सोख लेती है तथा उसके आघातों से संरचना का रक्षण करने में सहायता करती है। इसके पश्चात सन् १९८८ में पुनः इस क्षेत्र को तीव्र भूकंप का सामना करना पड़ा था। इस विशेष संरचना के कारण यह भूकंप नरगौना महल को क्षति नहीं पहुँचा पाया।

नरगौना महल के समक्ष स्थित सरोवर में कुछ लोग मछली पकड़ रहे थे। बुद्धि-बल अथवा शतरंज की बिसात के अनुरूप निर्मित भूमि तथा यहाँ के मंडप इस के समृद्ध काल का साक्ष्य दे रहे थे।

लक्ष्मी विलास महल एवं आनंदबाग महल

ये दोनों महल अब दरभंगा के दो विश्वविद्यालयों के रूप में कार्यरत हैं। महल के समक्ष महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंग की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है। लाल रंग का सम्पूर्ण महल तथा उसके समक्ष उजले श्वेत रंग की प्रतिमा दोनों अत्यंत मनभावन प्रतीत होते हैं। महल के एक ओर घंटाघर है।

संस्कृत विश्वविद्यालय महारजा लक्ष्मीश्वर सिंह की प्रतिमा
संस्कृत विश्वविद्यालय महारजा लक्ष्मीश्वर सिंह की प्रतिमा

महल के भीतर उत्कृष्ट काष्ठ उत्कीर्णन किये गए हैं। कुछ कार्यालयों में आप उन्हे देख सकते हैं। महल में एक दरबार कक्ष है। इस कक्ष में भी उत्कृष्ट काष्ठकारी की गयी है जिसके लिए गहरे रंग के बर्मा टीक लकड़ी का प्रयोग किया गया है। ऊपरी मुंडेर को आधार देते कोष्ठकों को उड़ान भरती युवतियों के रूप में यूरोपीय शैली में निर्मित किया गया है। झूमर एवं भित्ति व भूमि पर लगी टाइलें अब भी संरक्षित हैं किन्तु प्राचीन मंच के स्थान अब एक असंगत सा प्रतीत होता नवीन मंच स्थित है।

बर्मा की लकड़ी से बना दरबार हॉल
बर्मा की लकड़ी से बना दरबार हॉल

महल के परिसर में आप अनेक विद्यार्थियों को अध्ययन करते एवं अपनी आयु के चरम चरण का आनंद उठाते देखेंगे।

महात्मा गांधी सदन

प्राचीन काल में यह यूरोपीय अतिथियों की आवभगत करने में प्रयुक्त एक औपनिवेशिक शैली का विश्राम गृह था। अब यह विश्वविद्यालय का विश्राम गृह है। इस संरचना के भूतल में एक कक्ष है जहाँ महात्मा गांधी ने एक रात्रि व्यतीत की थी। उनकी स्मृति में यह कक्ष अब उनको समर्पित है। अब यहाँ उनके जन्म एवं मृत्यु दिवस के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

इंद्र भवन

एक विस्तृत रिक्त भूमि के मध्य में खड़ी तथा श्वेत रंग में रंगी यह एक एकल संरचना है। इस स्थान पर हाथियों एवं अश्वों के साथ इन्द्र की आराधना की जाती थी। किन्तु अब यह प्रथा अस्तित्व में नहीं है। अब यह संरचना लगभग परित्यक्त पड़ी हुई है।

इंद्र भवन
इंद्र भवन

यह उन दुर्लभ स्थलों में से एक है जहाँ इन्द्र की आराधना की जाती थी तथा जिसके चिन्ह अब भी शेष हैं। मेरी अभिलाषा है कि कोई अनुसंधानकर्ता इसके विषय में अध्ययन करे तथा भावी पीढ़ी के लिए उसका यथोचित प्रलेखन करे।

दरभंगा दुर्ग

दुर्ग की लाल रंग की भित्तियाँ तथा अलंकृत द्वार आपका दुर्ग में स्वागत करते हैं। दुर्ग के नाम पर अब इतना ही शेष है। अब यह नगर का ही एक भाग हो गया है। दुर्ग की भित्तियाँ तथा द्वार केवल यह स्मरण कराती हैं कि किसी काल में यहाँ एक दुर्ग था। यह दरभंगा नगर का सर्वाधिक मलिन व कीचड़ भरा क्षेत्र है। दुर्ग के मुख्य द्वार का अवलोकन करने के लिए हमें हमारे वाहन को दो फीट गहरे जल में से ले जाना पड़ा जो जलकुंभियों से भरा हुआ था।

यहाँ दुर्ग की भंगित भित्तियों एवं कंकाली मंदिर के अतिरिक्त कुछ भी दर्शनीय शेष नहीं है।

बेला महल

यह राजा बहादुर विशेश्वर सिंग का महल है जो राजा बहादुर कामेश्वर सिंग के अनुज भ्राता थे। इसे दरभंगा के सभी महलों में सबसे सुंदर माना जाता है। इस महल के विषय में मैं यह कह सकती हूँ कि यह इस क्षेत्र की सर्वोत्तम अनुरक्षित संरचना है।

बेला महल अब डाक प्रशिक्षण केंद्र
बेला महल अब डाक प्रशिक्षण केंद्र

सन् १९६६ से इस महल का उपयोग भारतीय डाक विभाग के डाक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में किया जा रहा है। यह महल भी डाक सेवा के लाल एवं श्वेत रंगों में रंगा हुआ है।

महल के उद्यान अप्रतिम हैं। उनका रखरखाव उत्तम है। आप यहाँ के दूब उद्यानों, पुष्प उद्यानों एवं सरोवरों के चारों ओर भ्रमण कर सकते हैं।

यात्रा सुझाव

  • दरभंगा भारत के सभी प्रमुख नगरों से वायु, रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा सुविधाजनक रूप से संयुक्त है।
  • यहाँ कुछ मध्यम वर्गीय विश्राम गृह उपलब्ध हैं।
  • दरभंगा में भोजन के लिए राधे-राधे नाम से एकमात्र भोजनालय उपलब्ध हैं जहाँ आप शांति से बैठकर भोजन कर सकते हैं। अन्यथा दरभंगा के मार्गों पर भुंजा एवं सत्तू के अनेक ठेले उपलब्ध हैं।
  • नगर में भ्रमण करने के लिए ऑटोरिक्शा की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
  • दरभंगा में पड़ाव डालकर आप मिथिला के अधिकांश क्षेत्रों का भ्रमण कर सकते हैं। दरभंगा के विस्तृत दर्शन के लिए १-२ दिवस पर्याप्त हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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  1. Never thought that Darbhanga is great.. Its amazing place. Very informative and tempting text to motivate to visit Darbhanga.. Thanks a lot for intrduction.

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