हल्दी घाटी! मेरे सम्पूर्ण शालेय जीवन में इतिहास की पुस्तकों के माध्यम से हल्दी घाटी मेरे मानस पटल पर छाई हुई है। महाराणा प्रताप एवं उनकी वीरता की गाथाओं पर हमने अनेक पुस्तकें पढ़ी हैं, अनेक कवितायें सुनी हैं। आज भी जब महाराणा प्रताप एवं उनके साहस का स्मरण होता है तो मन रोमांचित हो उठता हैं।
हल्दी घाटी के युद्ध ने मुगल एवं राजपूताना इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके घोड़े चेतक एवं उसकी स्वामिभक्ति की गाथाओं ने आपकी स्मृतियों में भी अवश्य अमिट छाप छोड़ी होगी। अपने स्वामी महाराणा प्रताप की रक्षा करने के लिए उसका तीन टांगों पर सरपट दौड़ना, इतने युगों पश्चात् भी निष्ठा एवं साहचर्य का प्रतीक स्वरूप माना जाता है।
मैं नाथद्वारा की यात्रा पर थी। यह स्थान हल्दी घाटी से अधिक दूर नहीं है। जब मैं उदयपुर से नाथद्वारा एवं महाराणा प्रताप स्मारक की ओर जा रही थी, मेरे मानसपटल पर महाराणा प्रताप के विषय में सुनी व पढ़ी सभी गाथाएँ पुनः जागृत हो उठी थीं। मैं जैसे जैसे उस स्थान से जा रही थी, मैं उन सभी घटनाओं को उस परिदृश्य से जोड़ते हुए पुनः जीवंत करने का प्रयास करने लगी।
हल्दी घाटी क्या है?
हल्दी घाटी में सर्व प्रथम मैं यह देखना चाहती थी कि क्या उस स्थान की मिट्टी वास्तव में हल्दी के समान चटक पीले रंग की है! उसे देखने के लिए मुझे तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ी जब तक मैं अरावली पर्वत माला में एक छोटी पहाड़ी दर्रे तक ना पहुँची। वहाँ एक छोटी पहाड़ी को काटकर एक मार्ग निकाला गया है। जी हाँ! वहाँ की चट्टानें अक्षरशः हल्दी के समान पीले रंग की हैं। हम मार्ग के मध्य में खड़े हो गए तथा इस पूर्णतः पीले परिदृश्य से अभिभूत होकर छायाचित्र लेने लगे।
हमारे वाहन चालक के अनुसार यह हल्दी घाटी के युद्ध में हुतात्मा हुए उन वीर सैनिकों का रक्त है जिसने यहाँ की चट्टानों एवं भूमि को पीला कर दिया। निश्चित ही यह एक मिथक है क्योंकि हमने अनेक रंगों की चट्टानें देखी हैं जिनमें पीला रंग भी सम्मिलित है।
अरावली पर्वत माला में स्थित यह दर्रा एक पर्यटन बिंदु बन गया है जहाँ पर्यटक रूककर परिदृश्य एवं स्वयं के छायाचित्र लेते ही हैं।
हल्दी घाटी का युद्ध
हल्दी घाटी का युद्ध सन् १५७६ में महराना प्रताप एवं अकबर का प्रतिनिधित्व करते मान सिंह के मध्य हुआ था। मुगलों की सेना महाराणा प्रताप की सेना से कई गुना अधिक होने के कारण उन पर भारी पड़ रही थी। राजपूत सेना अत्यंत वीरता से लड़ रही थी किन्तु युद्ध के मध्य में महाराणा प्रताप घायल होकर बेसुध हो गए। तब महाराणा प्रताप सिंग के सेनापति मान सिंग झाला ने मुगलों की सेना को असमंजस में डालने के लिए अपना कवच महाराणा को पहना दिया तथा स्वयं महाराणा का कवच धारण कर लिया।
तत्पश्चात महाराणा के घोड़े चेतक को उन्हें कहीं दूर ले जाने का आदेश दिया। तब तक चेतक का एक पाँव घायल हो चुका था। वह स्वामिभक्त घोड़ा अपने स्वामी को पीठ पर लादकर तीन पैरों पर ही सरपट दौड़ने लगा तथा अनेक पहाड़ियों एवं नदियों को पार कर उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले गया। इसके पश्चात उसने अपने प्राण त्याग दिए। चेतक की यह वीरता, सूझबूझ एवं स्वामिभक्ति इतिहास में सदा के लिए अमर हो गयी।
मान सिंग झाला को युद्ध भूमि में वीरगति प्राप्त हुई। मुगलों की सेना कुछ समय तक यह समझ ही नहीं पायी कि उन्होंने महाराणा प्रताप को नहीं, अपितु मान सिंग झाला को परस्त किया है। यद्यपि मुगलों ने उस क्षेत्र पर अपना अधिपत्य जमा लिया किन्तु वे महाराणा प्रताप को नहीं ढूँढ पाए।
ऐसा कहा जाता है कि यह युद्ध लगभग ४ घंटों तक चला था।
चेतक की समाधि
मुझे जितनी जानकारी है उसके अनुसार किसी घोड़े की यह इकलौती समाधि है। चेतक, महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा, जिसने अपने स्वामी के साथ युद्ध में समान रूप से भाग लिया। अपने स्वयं के प्राणों की आहुति देकर भी अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा की।
चेतक की स्मृति में एक उद्यान के मध्य उसके मृत्यु स्थल पर एक छोटी सी छत्री बनाई गयी है जिसके समक्ष एक चौकोर स्तंभ पर उसकी वीरगाथा अभिलिखित है। छत्री के नीचे एक छोटा सा चौकोर शिलाखंड है जिस पर चेतक पर आरूढ़ महाराणा प्रताप का शिल्प है। यह वही स्थान है जहाँ पर चेतक ने अपना अंतिम श्वास लिया था।
समाधी के निकट एक पुरातन शिव मंदिर है।
चेतक समाधि के समक्ष खड़े होकर मेरे भीतर दुःख एवं गर्व दोनों का एक मिश्रित भाव उत्पन्न हो रहा था।
महाराणा प्रताप स्मारक
महाराणा प्रताप स्मारक में महाराणा प्रताप, उनके जीवन, उनके शासनकाल, उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं तथा उनके द्वारा लडे गए सभी युद्धों को प्रलेखित किया है। चेतक समाधि के निकट स्थित यह स्मारक एक नवीन संरचना है जिसे ठेठ मेवाड़ी स्थापत्य शैली में बनाया गया है।
स्मारक के भीतर स्थानीय शैली में भ्रमण करवाने के लिए परिसर के बाहर ऊँटों की एक पंक्ति तत्पर खड़ी थी।
आईये टिकट खिड़की से टिकट लेकर इस दुर्ग सदृश सुन्दर स्मारक में प्रवेश करते हैं। दाहिनी ओर भगवान शिव का छोटा सा मंदिर है। श्वेत रंग में निर्मित यह एक सुन्दर मंदिर है।
समक्ष ही काँस्य धातु में निर्मित एक विशाल शिल्प है जिसमें मान सिंह झाला द्वारा मुगलों को चकमा देने की घटना को सांकेतिक रूप से दर्शाया है। हाथी पर बैठे शत्रु पक्ष पर धावा बोलते मान सिंग को घोड़े पर आरूढ़ दिखाया गया है। मान सिंह के इस घोड़े का शीष हाथी का है।
संग्रहालय के भीतर युद्ध के दृश्यों को अनेक चित्रों एवं कई संवादात्मक चित्रावलियों द्वारा दर्शाया गया है। महाराणा प्रताप की जीवनी एवं उनके जीवन की विभिन्न गौरवशाली गाथाओं को सजीव करने के लिए सम्पूर्ण मेवाड़ को ही यहाँ पुनर्रचित किया गया है। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो मैं अपने विद्यालय की इतिहास की कक्षा में पुनः बैठ गयी हूँ।
यहाँ केवल महाराणा प्रताप के इतिहास को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण मेवाड़ के इतिहास को प्रदर्शित किया गया है जिसमें कुम्भलगढ़ एवं चित्तोड़गढ़ भी सम्मिलित हैं।
संग्रहालय के पीछे एक गाँव को पुनर्रचित किया गया है जिसमें एक सरोवर भी है। इस सरोवर में नौका विहार किया जा सकता है। कुछ दुकानें हैं जहाँ स्थानीय वस्तुएं विक्री के लिए रखी हुई हैं। मुझे उनमें से एक के ऊपर एक रखी रंगबिरंगी मेवाड़ी पगड़ियों की पंक्तियों को देख अत्यंत आनंद आया।
कविता
मेवाड़ी राजपूतों की वीरता की गाथाओं को श्याम नारायण पांडे जैसे अनेक कवियों ने सुन्दरता से बखान किया है। कवि श्याम नारायण ने अपनी कविता के माध्यम से हल्दी घाटी के रक्तरंजित युद्ध का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है जिसमें उन्होंने ऐसे ऐसे रूपकों का प्रयोग किया है जो दोनों पक्षों की सेनाओं में निहित असमानता के परिणामों एवं युद्ध के प्रभाव को चरम सीमा तक पहुंचा देते हैं।
चैत्री गुलाब
यह क्षेत्र अब एक अन्य विशेषता के लिए भी लोकप्रिय हो चला है। चैत्री गुलाब अथवा गुलाबी रंग के गुलाब, जिनकी अब यहाँ व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है। चैत्री हिन्दू पंचांग के चैत्र मास की ओर संकेत करता है। यह लगभग मार्च महीने में आता है। यहाँ चैत्री गुलाब द्वारा निर्मित अनेक वस्तुओं का भी उत्पादन किया जाता है, जैसे गुलाब जल, गुलकंद, गुलाब शरबत, गुलाब इत्र तथा अनेक अन्य औषधीय उत्पाद। हल्दी घाटी जाने के मार्ग पर आप अनेक दुकानें देखेंगे जहाँ इन वस्तुओं की विक्री की जाती है।
गुलाब के पुष्पों से लदे खेतों को देखने के लिए आपको यहाँ मार्च के महीने में आना पड़ेगा। मैं यहाँ नवम्बर मास में आयी थी जब यहाँ चारों ओर गेंदे के पुष्प खिले थे जो पीले रंग की विभिन्न छटाओं को चारों ओर बिखेर रहे थे।
उदयपुर से हल्दी घाटी की एक-दिवसीय यात्रा आसानी से की जा सकती है। एक ही दिन में आप हल्दी घाटी के साथ साथ नाथद्वारा एवं एकलिंगी की यात्रा भी कर सकते हैं।
Memories of my visit to Haldighati brightened up. I literally felt history to be happening there during my visit! Amazing!