हरिद्वार का नाम लेते ही आँखों के समक्ष हर की पौड़ी का दृश्य उभर कर आ जाता है। संध्या की आरती की जगमगाहट आँखों को चुँधियाने लगती है। गंगा के तट पर खचाखच भरे भक्तों एवं पर्यटकों के मध्य, पंडितों के मुख से उमड़ते स्त्रोतों के स्वर कानों को गुंजायमान करने लगते हैं। जैसा कि आप जानते हैं, गंगा यहाँ की सर्वाधिक पूजनीय देवी है। हिमालय ने नीचे उतरती हुई गंगा जब मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है तब अपनी महिमा से वे यहाँ के निवासियों का पालन-पोषण करती है। हम सब जानते हैं, जहां गंगा है, भगवान शिव भी वहाँ से अधिक दूर नहीं हो सकते। जी हाँ, आप भी जानते हैं कि हरिद्वार नगरी अनेक शिव मंदिरों से भरी हुई है। किन्तु आप में से कई इस तथ्य से अनभिज्ञ होंगे कि हरिद्वार में कई शक्ति मंदिर भी हैं जो प्राचीनतम एवं सर्वाधिक प्रभावशाली शक्ति मंदिरों में से हैं।
हरिद्वार के देवी मंदिरों के दर्शन
आईए मेरे साथ, हम हरिद्वार के शक्ति अर्थात देवी मंदिरों की खोज पर चलते हैं।
कनखल का सती मंदिर
आप सब ने पढ़ा अथवा सुना होगा, भगवान शिव की पहली पत्नी सती अपने पिता दक्ष के निवास स्थान पर आयोजित यज्ञ के समय अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पायी थी तथा उन्होंने स्वयं को अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था। सती के पिता दक्ष का निवास स्थान यहीं कनखल में था जो हरिद्वार के प्राचीनतम निवासित स्थलों में से एक है। दक्षेश्वर महादेव मंदिर में सती की यह कथा अब भी जीवित है। इस मंदिर के पृष्ठभाग पर एक छोटा सा मंदिर है जिसे सती का जन्मस्थल माना जाता है। गंगा के तट पर स्थित यह एक छोटा एवं साधारण सा मंदिर है। आपको शिव एवं सती की यह कथा स्मरण होगी, वह सम्पूर्ण घटना यहीं घटी थी। शिव द्वारा सती की देह को हाथों में उठाकर तांडव किये जाने की घटना के पश्चात भारतीय उपमहाद्वीप में ५२ शक्तिपीठों की रचना हुई थी।
यहाँ आप वह अग्नि कुंड भी देख सकते हैं जिसे भीतर कूदकर देवी सती ने स्वयं को अग्नि को समर्पित किया था। यह मंदिर अधिक पुराना नहीं है। वैसे भी श्रद्धा के समक्ष संरचना के क्या मायने।
शीतला माता मंदिर
दक्षेश्वर महादेव मंदिर के पृष्ठभाग में शीतला माता को समर्पित एक छोटा मंदिर है। इस मंदिर की महत्ता यह है कि यह हरिद्वार में स्थित तीन शक्ति अर्थात देवी मंदिरों में से एक है जो आपस में एक त्रिकोण बनाते हैं। अन्य दो शक्ति मंदिर हैं, मानसा देवी मंदिर तथा चंडी मंदिर।
दश महाविद्या मंदिर
दक्षेश्वर महादेव मंदिर के समीप दश महाविद्या को समर्पित एक मनोरम मंदिर है। दश महाविद्या अर्थात देवी के १० स्वरूप हैं, काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी तथा कमला। दश महाविद्या को समर्पित ऐसे किसी मंदिर के दर्शन करने का यह मेरा प्रथम अवसर था। इससे पूर्व इनके विषय में मैंने केवल पढ़ा था। जैन मंदिरों के समान कांच के टुकड़ों से जड़ा यह मंदिर छोटा होते हुए भी अत्यंत आकर्षक है।
इस मंदिर में देवी के १० स्वरूप उनके संबंधित मंत्रों के साथ विराजमान हैं। भित्ति पर एक विशाल श्री यंत्र है।
श्री यंत्र मंदिर – हरिद्वार में देवी का सर्वाधिक नवोदय मंदिर
यह अपेक्षाकृत एक नवीन मंदिर है। मुझे कहीं इनका नाम दृष्टिगोचर नहीं हुआ। अतः मैं इसे श्री यंत्र मंदिर से संबोधित कर रही हूँ। मुझे इस मंदिर की जिस विशेषता ने अत्यंत आकर्षित किया, वह है इसकी संरचना जो श्री यंत्र के आकार में की गई है। श्री यंत्र ब्रह्मांड का ज्यामितीय निरूपण है जिसके शीर्ष पर देवी विराजमान है। मंदिर के भीतर देवी की ललिता त्रिपुरसुंदरी रूप की प्रतिमा है। साथ ही एक विशाल व सुंदर श्री यंत्र एक अन्य छोटे श्री यंत्र के संग विराजमान है।
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मैं जब यहाँ आई थी तब मंदिर परिसर में अनेक प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे थे। कई स्थानों पर यज्ञ किये जा रहे थे। एक अन्य कक्ष में किसी विषय पर व्याख्यान दिया जा रहा था। मेरे लिए यह मंदिर इस पावन नगरी में देवी के प्रति अनवरत श्रद्धा का प्रतीक है। यह एक ऐसा मंदिर है जहां सौंदर्य शास्त्र मंदिर की रूपरेखा एवं संरचना का ही भाग हो। इसकी अनोखी संरचना के दर्शन के लिए आप यहाँ अवश्य आईये।
चंडी देवी मंदिर
गंगा के पूर्वी तट पर स्थित नील पर्वत के ऊपर चंडी मंदिर स्थित है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए आप पैदल मार्ग से ४ की.मी. की चढ़ाई चढ़ सकते हैं अथवा रज्जु मार्ग अर्थात रोपवे द्वारा भी पहुँच सकते हैं। मैंने रोपवे द्वारा यहाँ तक पहुँचने का निर्णय लिया। मंदिर के आधार तक पहुँचने में हमें १० मिनटों का समय लगा। यहाँ से भी मुख्य मंदिर तक पहुँचने के लिए हमें कुछ और सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ीं।
ऐसा कहा जाता है कि शुंभ एवं निशुंभ असुरों का वध करने के पश्चात देवी ने नील पर्वत पर विश्राम किया था। नील पर्वत की दोनों चोटियों को इन दो असुरों के नाम से जाना जाता है।
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हनुमान की माता देवी अंजनी को समर्पित एक मंदिर समीप ही है। यहाँ सभी मंदिर छोटे हैं तथा उनकी संरचना नवीन है। किन्तु भीतर स्थापित प्रतिमाएं एवं स्थल प्राचीन हैं। यदि आप इनके प्रति संवेदनशील हैं तो आप इनसे आती तरंगे अनुभव कर सकते हैं।
गंगा के उस पार, इस मंदिर के ठीक समक्ष स्थित बिल्व पर्वत के ऊपर मानसा देवी मंदिर है। ऐसा प्रतीत होता है मानो दोनों देवियाँ एक दूसरे को निहार रही हैं। साथ ही हरिद्वार नगरी का संरक्षण कर रही हैं।
ऐसा माना जाता है कि चंडी देवी की मुख्य प्रतिमा की स्थापना स्वयं आदि शंकराचार्य ने की थी।
मानसा देवी मंदिर
हरिद्वार के पश्चिमी ओर स्थित बिल्व पर्वत पर यह मानसा देवी मंदिर स्थित है। यह हरिद्वार नगरी के चहल-पहल भरे केंद्र के समीप ही है। आप यहाँ पर भी पैदल मार्ग से ३ की. मी. चढ़ते हुए पहुँच सकते हैं अथवा रोपवे की सुविधा ले सकते हैं। मैं यहाँ प्रातः ८ बजे के आसपास पहुंची थी। यहाँ भक्तों की इतनी भीड़ थी, मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मेरा दम घुट जाएगा। अतः आप यहाँ आने का समय सोच समझ कर तय करें। प्रातः शीघ्र यहाँ आना उत्तम होगा।
मानसा देवी सौम्य देवी हैं जो भक्तों की इच्छा पूर्ण करती हैं। ऐसी मान्यता है कि उनका जन्म भगवान शिव के मस्तक से हुआ था। इसीलिए उन्हे भगवान शिव की मानस पुत्री भी कहा जाता है।
माया देवी मंदिर – हरिद्वार में अधिष्ठात्री देवी का मंदिर
माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी हैं। हरिद्वार का एक अन्य नाम, मायापुरी भी माया देवी से ही व्युत्पन्न है। वे इस पावन नगरी के हृदयस्थली वास करती हैं। मायादेवी मंदिर एक शक्ति पीठ है। देवी सती के पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में हुए दुर्भाग्यपूर्ण घटना के समय क्रुद्ध भगवान शिव ने जब सती की मृत देह उठाए तांडव किया तब देवी की नाभि एवं हृदय यहीं गिरे थे।
यह मंदिर उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अब तक अखंडित हैं। अन्य प्राचीन मंदिरों के समान यह भी एक छोटा सा मंदिर है। गर्भगृह के भीतर माया देवी की प्रतिमा है जो बाईं ओर माँ काली तथा दाहिनी ओर माँ कामाख्या की छवियों से घिरी हुई है। गर्भगृह के बाहर प्रदक्षिणा पथ है जहां दश महाविद्या के दस स्वरूपों के चित्र हैं। प्रत्येक छवि के नीचे देवी के उस स्वरूप का नाम तथा उससे संबंधित बीज मंत्र लिखे हुए हैं।
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जैसा कि मैंने बताया था, तीन सिद्धपीठ मंदिर एक त्रिकोण बनाते हैं जिसके उत्तरी कोने पर मनसा देवी मंदिर, दक्षिणी कोने पर शीतला देवी मंदिर तथा पूर्वी कोने पर चंडी देवी मंदिर हैं। इस त्रिकोण के मध्य, उत्तरी दिशा की ओर माया देवी मंदिर है तथा दक्षिणी भाग में दक्षेश्वर महादेव मंदिर है।
अधिष्ठात्री देवी होने के कारण देवी का यह मंदिर हरिद्वार नगरी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिर है।
सुरेश्वरी देवी मंदिर
यह एक प्राचीन मंदिर है जो देवी के सुरेश्वरी स्वरूप को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि सुरेश्वरी देवी लोगों को संतान सुख का वरदान देती हैं तथा उनके संचारी रोगों का निवारण करती हैं। किवदंतियों के अनुसार जब इन्द्र को उनके ही राज्य से निष्कासित किया गया था तब देवी को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने इसी स्थान पर तपस्या की थी। यहीं देवी ने इन्द्र को दर्शन दिए थे। आज उसी स्थान पर यह देवी सुरेश्वरी का मंदिर स्थित है।
देवी सुरेश्वरी मंदिर के समीप ही एक काली मंदिर है।
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर सूरकूट पर्वत के ऊपर यह मंदिर स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको वन विभाग द्वारा मान्य गाड़ियों की सेवा लेनी पड़ेगी। राष्ट्रीय उद्यान होने के कारण यहाँ आप केवल दिन के समय ही आ सकते हैं।
गंगामंदिर – हरिद्वार का सर्वाधिक लोकप्रिय देवी मंदिर
यह हरिद्वार नगरी का सर्वाधिक लोकप्रिय देवी मंदिर है। गंगा नदी जब मैदानी क्षेत्रों में आती है तब यहाँ स्थित देवभूमि के द्वारा मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। इसी कारण इसे गंगाद्वार भी कहा जाता है। ब्रह्मकुंड के समीप, गंगा के किनारे को लगभग छूता हुआ यह एक अत्यंत छोटा मंदिर है जिसके भीतर गणेशजी की प्रतिमा है। शास्त्रों में गंगा को देवी का द्रव्य अवतार माना गया है। गंगा यहाँ की प्रमुख देवी हैं जिनके दर्शन प्राप्त करने के लिए ही भक्तगण यहाँ आते हैं।
एक हिन्दू तीर्थयात्री के लिए गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाकर स्नान करने से अधिक पुण्य कार्य कोई नहीं। यदि यह स्नान हरिद्वार की गंगा अथवा काशी की गंगा में हो तो सोने पर सुहागा।
सत्य कहूँ तो हरिद्वार के अधिकतर मंदिरों में गंगा की एक प्रतिमा कहीं ना कहीं अवश्य होती है। नदी से घिरी इस पावन नगरी में वे सर्वत्र उपस्थित हैं।
बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर
हरिद्वार नगरी के समीप ही बिल्वकेश्वर महादेव का एक छोटा मंदिर है। यह एक शिव मंदिर है जो किसी समय बिल्व वृक्ष के नीचे था। आज उस बिल्व वृक्ष के स्थान पर नीम का वृक्ष है। यही वह स्थान है जहां शिव को पति रूप में पाने के लिए पार्वतीजी ने कठिन तपस्या की थी। कदाचित इसी स्थान पर वे दोनों की सर्वप्रथम भेंट हुई थी। इसकी स्मृति में अब यहाँ केवल एक कुंड है। इसे गौरी कुंड कहते हैं। यहाँ गौरी अर्थात पर्वतीजी स्नान करती थीं। यह कुंड एक छोटी सी जलधारा के उस पार है जहां तक आपको एक छोटा पुल पहुंचाएगा।
देखा जाए तो इस मंदिर में दर्शनीय कुछ विशेष नहीं है। किन्तु यदि आप शिव एवं शक्ति में श्रद्धा व भक्ति रखते हैं तो यह एक तीर्थस्थल है। यह ऐसा देवी मंदिर है जिसके दर्शन करना मैं भूल से भी नहीं भूलूँगी।
श्री दक्षिण काली मंदिर
यह काली मंदिर गंगा के किनारे स्थित है जहां गंगा को नीलधारा कहते हैं। चंडी मंदिर के समीप स्थित यह मंदिर लगभग वनीय क्षेत्र में है। गंगा की शांत एवं निर्मल धारा यहाँ दक्षिण की ओर बहती है। इसी कारण इस मंदिर को दक्षिण काली कहा जाता है। यह भी एक छोटा सा मंदिर है जिसका प्रांगण मंदिर से कुछ बड़ा है। संगमरमर में निर्मित एक सिंह कदाचित कालांतर में जोड़ा गया है। श्याम रंग की प्रतिमा प्राचीन प्रतीत होती है किन्तु कितनी प्राचीन, इसका अनुमान लगाना कठिन है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ मध्यरात्रि पूजा अर्चना की जाती है तथा देवी को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
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एक विस्तृत सूचना पटल के अनुसार यह वही स्थान है जहां भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय निकले विष का पान किया था। उन्होंने विषपान करने के पश्चात उस विष को अपने कंठ में ही थाम लिया था। विषपान के पश्चात उनकी देह इतनी ऊष्ण हो गई थी कि उन्होंने यहाँ गंगा के शीतल जल में स्नान किया था। इसी कारण गंगा को यहाँ नीलधारा कहा जाता है। हम जानते ही हैं कि कंठ में विष को संचित रखने के कारण भगवान शिव नीलकंठ भी कहलाते हैं। इस सूचना पटल में हिन्दू पंचांग के अनुसार इस मंदिर में आयोजित सभी अनुष्ठानों एवं उनसे संबंधित तिथियों की जानकारी भी दी गई है।
देवी के भक्तों को जानकारी देना चाहती हूँ कि यह मंदिर दश महाविद्या के दस पीठों में से प्रथम सिद्धिपीठ है।
शक्ति मंदिर के दर्शन
इन शक्ति मंदिरों की एक विशेषता यह है कि अधिकतर मंदिरों से संबंधित दंत कथाएं मंदिर के सूचना पटल में विस्तृत रूप से अंकित हैं। ये पटल ना केवल आपको इनकी कथाओं से अवगत कराते हैं अपितु किन शास्त्रों में इनका उल्लेख किया गया है, उसकी भी जानकारी देते हैं। साथ ही यह भी जानकारी देते हैं कि किस वंश के संतों ने इनकी देखरेख की थी। सभी पटल हिन्दी भाषा में हैं।
मैं नहीं जानती थी कि हरिद्वार में इतने देवी मंदिर हैं। इसने विषय में मैंने अघोरी नामक पुस्तक में पढ़ा अवश्य था। इसके लिए मैं इस पुस्तक के लेखक को धन्यवाद देना चाहती हूँ।
मेरे लिए हरिद्वार के देवी मंदिर किसी खोज से कम नहीं थे। क्या आप इन सभी मंदिरों के विषय में जानते थे या आप भी मेरे साथ इन्हे खोजने का प्रयत्न कर रहे हैं?
अनुराधा जी,
पौराणिक नगरी हरिद्वार के शक्ति पीठ एवम् विभिन्न देवी मंदिरों के बारे में पठनीय जानकारी ! वैसे भी भारत में स्थित देवी के शक्ति पीठों का अपना एक विशेष महत्व है और ये देवी के शक्ति पुंज के प्रतीक हैं । मोक्ष दायिनी पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित होने से हरिद्वार एक धार्मिक स्थल तो है ही साथ ही देवी के इतने आराध्य स्थल होने तथा भगवान शिव के द्वारा यहीं विषपान किये जाने से यहां की महत्ता और भी बढ़ जाती है । सुंदर पठनीय जानकारी के लिये धन्यवाद ।
प्रदीप जी – जब तक मैंने यह सब नहीं देखा था, मुझे अंदेशा ही नहीं था की हरिद्वार में इतने देवी मंदिर हैं।