हर्वले गाँव – गोवा में पांडव गुफाएं, वल्लभाचार्य बैठक और जलप्रपात

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गोवा के उत्तर गोवा जिले में स्थित बिचोली गाँव के आगे हर्वले नामक एक गाँव है। इसे अर्वलेम भी कहा जाता है। यहाँ स्थित, ६० फीट ऊंचा, बारहमासी जल-प्रपात एवं अनेक किवदंतियों से जुड़ा, प्राचीन गुफाओं का एक समूह, इस गाँव के ना केवल गौरव हैं, अपितु मुख्य परिचायक भी हैं। गोवा के इस शांतिपूर्ण गाँव में विचरण करने से पूर्व मैं इस गाँव के विषय में केवल इतना ही जानती थी। जिस दिन मैं हर्वले गाँव के अवलोकन के लिए वहां पहुंची, मूसलाधार वर्षा हो रही थी।

हर्वले गाँव - गोवा में पांडव
हर्वले गाँव – गोवा में पांडव

हरियाली से ओतप्रोत, गोवा के ग्रामीण क्षेत्रों से होकर हम हर्वले गाँव की ओर जा रहे थे। चित्ताकर्षक दृश्यों से मन आनंदविभोर हो उठा था। उत्तर गोवा के कई छोटे-बड़े गाँवों से होते हुए, प्रकृति की सुन्दरता को आत्मसात करते हुए, घुमावदार रास्ते से हम हर्वले गाँव पहुंचे।

गोवा के हर्वले गाँव की खोज

प्राचीन रुद्रेश्वर मंदिर

हर्वले गाँव में प्रवेश करते ही सर्वप्रथम हमारा साक्षात्कार प्राचीन गुफाओं से हुआ। किन्तु मूसलाधार वर्षा अनवरत सक्रिय थी। अतः गुफाओं के अवलोकन को विलंबित कर हम आगे बढे तथा रुद्रेश्वर महादेव मंदिर पहुंचे। मंदिर की सूचना पट्टिका पर इस क्षेत्र का नाम ‘तीर्थ क्षेत्र’ अंकित था। इसका तात्पर्य है कि यह स्थान सनातन धर्मावलम्बियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही हमारी दृष्टी एक अप्रतिम शिवलिंग पर केन्द्रित हो गयी जिसके ऊपर चांदी का आवरण था, जैसे फोंडा के मंगेशी मंदिर के शिवलिंग पर है। गुरूजी से वार्तालाप करने के उद्देश्य से मैं वहीं उनके समीप बैठ गयी। गुरूजी ने मुझे बताया कि यह स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात् मानव निर्मित नहीं, अपितु स्वयं उद्भवित लिंग है।

प्राचीन रुद्रेश्वर महादेव मंदिर
प्राचीन रुद्रेश्वर महादेव मंदिर

यह मंदिर सहस्त्रों वर्ष प्राचीन माना जाता है। मंदिर अवश्य प्राचीन प्रतीत होता है। इसके समक्ष एक नवीन सभागृह निर्माणाधीन है। मंदिर के एक ओर मंदिर के गुरूजी का आवास है। उनका आवास गोवा की ठेठ वास्तु शैली में निर्मित एक विशाल एवं सुन्दर निवास गृह है।

रुद्रेश्वर महादेव शिवलिंग
रुद्रेश्वर महादेव शिवलिंग

मैंने भीतर प्रवेश किया तथा गुरूजी से मंदिर से सम्बंधित कथा कहने का आग्रह किया। उनसे मुझे ज्ञात हुआ कि यह मंदिर भगवान शिव के रूद्र रूप को समर्पित है। इस मंदिर की एक अन्य विशेषता है कि हिन्दू धर्म के अनुयायी अपने स्वर्गवासी परिजनों के श्राद्ध संस्कार के लिए इस मंदिर में आते हैं। स्वर्गवासी परिजनों के अस्थियों को समीप स्थित जल-प्रपात से निर्मित नदी के जल में प्रवाहित करते हैं। आगे उन्होंने मुझे गोवा की  इन विरासती धरोहरों, प्राचीन गुफाओं एवं जल-प्रपात से सम्बंधित अनेक कथाएं सुनाईं। तत्पश्चात, उन्होंने नदी के दूसरे छोर पर स्थित एक मंदिर की ओर संकेत किया जो जैन गुजराती समुदाय से सम्बन्ध रखता है। मुझे यह आभास हो गया था कि गोवा के ग्रामीण क्षेत्र पर्यटन के अंतर्गत अनेक स्थल हैं जिनके अवलोकन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हो रहा है।

हर्वले जल प्रपात का विडियो

वर्षा ने कुछ क्षणों का विराम लिया हुआ था। अतः मैंने गोवा के इस बारहमासी जल-प्रपात की ओर जाने का निश्चय किया। कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर मैं एक अवलोकन मंच पर पहुँची। यह मंच सर्वोत्तम अवलोकन बिंदु पर विशेष रूप से जल-प्रपात को देखने के लिए निर्मित प्रतीत होता है। यहाँ से जल-प्रपात का उत्तम दृश्य प्राप्त होता है। मंच पर पहुंचते ही जल-प्रपात से उठते तुषार की बूंदों ने हमारा स्वागत किया।

जल-प्रपात का जल ऊंचाई से अत्यंत वेग से गिर रहा था तथा परवर्तित होकर उछल रहे बूंदों से अठखेलियाँ खेल रहा था। उनके संगम से उत्पन्न तुषार के कारण जल-प्रपात के निचले भाग में धुंए जैसा वातावरण उत्पन्न हो गया था। जल-प्रपात के कोलाहल एवं चारों ओर उड़ते तुषार के कारण हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व अन्यत्र वातावरण से असम्बद्ध हो चुका था। कुछ क्षण मंत्रमुग्ध सी मैं जल-प्रपात एवं उसके आसपास के वातावरण को निहारती रही। तत्पश्चात अपने कैमरे में उनकी छवि को स्थाई रूप से संजोने लगी। जल-प्रपात से उड़ती जल की बूँदें तथा तुषार भरे वातावरण के कारण छायाचित्रीकरण कठिन हो रहा था।

फिर भी, प्रयत्न पूर्वक मैंने आपके लिए यह लघु चलचित्र  संकलित किया है। आप जब भी गोवा भ्रमण के लिए आयें तथा गोवा के ग्रामीण क्षेत्रों में यदि आपकी रूचि हो तो यह विडियो आपके लिए ही है। इसे अवश्य देखें।

लोहे का पुल
लोहे का पुल

जल-प्रपात का जल एक जलाशय में गिरता है। वहां से निकलती एक जलधारा रुद्रेश्वर मंदिर की परिक्रमा करती है। तत्पश्चात वनों एवं गाँवों से होते हुए वह जलधारा मेरी प्रिय नदी माण्डवी से जा मिलती है। मंदिर के गुरूजी ने बताया था कि इस जलाशय की रचना पांडव भीम ने की थी। हर्वले की गुफाओं में वास करते समय उन्होंने एक अन्यत्र जल स्त्रोत से जल यहाँ की ओर पथान्तरित किया था।

महाप्रभु वल्लभाचार्य बैठक

लोहे के एक छोटे से सेतु को पार कर मैं नदिया के उस पार पहुँची। कुछ ऊपर चढ़कर मैं एक अन्य मंदिर में पहुँची। अधिकारिक रूप से यह स्थान ४३वें महाप्रभु वल्लभाचार्य की बैठक के रूप में जाना जाता है जो एक गुजराती संत थे। मुझे बताया गया कि गुजराती भाषा के ५०० वर्षों से भी अधिक प्राचीन ग्रंथों में इस स्थान का विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है। उनमें रुद्रेश्वर मंदिर, जल-प्रपात एवं गुफाओं का भी उल्लेख है। उस दिन मंदिर बंद होने के कारण, आरम्भ में, मुझे किसी अन्य दिवस उपस्थित होने का निर्देश दिया गया। किन्तु निवेदन करने पर पुजारी जी बाहर आये तथा उन्होंने दर्शन के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए।

महाप्रभु वल्लभाचार्य के पदचिन्ह
महाप्रभु वल्लभाचार्य के पदचिन्ह

इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती। अपितु लेटराइट शिला पर अंकित गुरु के पदचिन्हों की आराधना की जाती है। गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्यजी किसी काल में यहाँ आये थे तथा प्रवचन दिया था। कौन सोच सकता है कि गोवा के किसी दूरस्थ गाँव में गुजरात का एक अंश जीवित है। यदि आप विरासती धरोहरों में रूचि रखते है तो गोवा के धरोहरों का अवलोकन अवश्य करें। गोवा में ऐसे धरोहरों की असीमित संपत्ति जो है।

हर्वले की गुफाएं – गोवा की अनोखी धरोहर

जब तक हम वापिस हर्वले की गुफाओं के समीप पहुंचे, वर्षा ने हम पर उपकार कर दिया था। भारत में देखे अनेक गुफाओं में से यह सर्वाधिक सामान्य एवं सादी उत्खनित गुफाएं हैं। लेटराइट की एक विशाल शिला को काटकर ६ कक्षों की रचना की गई है। उनपर किसी भी प्रकार का उत्कीर्णन अथवा नक्काशी नहीं है। इसका प्रमुख कारण शिला का प्रकार हो सकता है क्योंकि लेटराइट शिला पर किसी भी प्रकार का सूक्ष्म उत्कीर्णन कठिन है।

हर्वले में गोवा की पांडव गुफाएं
हर्वले में गोवा की पांडव गुफाएं

५ कक्षों में काले ग्रेनाईट शिला में निर्मित ५ शिवलिंग स्थापित हैं। किवदंतियों के अनुसार, अज्ञातवास के समय, पांडव भ्राता यहाँ आकर कुछ काल निवास किये थे। ५ कक्षों में वे पृथक रूप से शिव की आराधना करते थे। छठा कक्ष द्रौपदी का रसोईघर था। यह छठा कक्ष अत्यंत जिज्ञासा उत्पन्न करता है। किसी आधुनिक रसोईघर के सामान इस कक्ष में भी एक ओर रसोई बनाने के लिए एक चबूतरा है। इस चबूतरे पर सामान आकार के एवं सामान दूरी पर ८ गड्ढे हैं जो चूल्हों के सामान प्रतीत होते हैं।

ये गड्ढे चूल्हें है, यह केवल एक अनुमान है। हो सकता है कि ये गड्ढे ऊपर से टपकते जल के प्रहार से बने हों। किन्तु कक्ष के भीतर जाते ही, प्रथम दर्शन में ऐसा प्रतीत होता है मानो हम एक आधुनिक रसोईघर में प्रवेश कर रहे हैं।

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गुफाएं हिन्दू हैं या बौद्ध?

ये गुफाएं आरम्भ से हिन्दू थीं अथवा बौद्ध, यह चर्चा का विषय है। कक्षों के भीतर स्थापित शिवलिंगों से तो ऐसा प्रतीत होता है कि इन गुफाओं का भूतकाल एवं वर्त्तमान काल हिन्दू धर्म से सम्बंधित है। किन्तु ऐसा भी कहा जाता है कि गुफाओं के निकट बुद्ध की आवक्ष प्रतिमा भी प्राप्त हुई थी। बुद्ध की ऐसी ही एक अन्य आवक्ष प्रतिमा दक्षिण गोवा के रिवोना गुफाओं से भी प्राप्त हुई थी। गोवा में बौद्ध धर्म के केवल यही ज्ञात चिन्ह उपस्थित हैं। किन्तु पड़ोसी राज्यों, कर्णाटक एवं महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म के चिन्ह बहुतायत में दृष्टिगोचर होते हैं।

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मेरे अनुमान से भारत में उपस्थित अधिकतर गुफाओं का उत्खनन ३ई.पू. के पश्चात ही हुआ था। बोध गया की बराबर गुफाएं भारत के प्राचीनतम गुफा समूह हैं। हर्वले गुफाओं की कटाई भी उन्ही गुफाओं समान है। इन गुफाओं का प्रयोग कदाचित उन धुमक्कड़ गवैयों ने किया होगा जो उस काल में इस स्थान पर प्रचलित धर्म का पालन करते थे। प्राचीन काल में इनका प्रयोग उन तीर्थयात्रियों ने भी किया होगा जो अपने स्वर्गवासी परिजनों की स्मृति में धार्मिक अनुष्ठान कराने रुद्रेश्वर मंदिर आये होंगे। उस काल में कदाचित इनका प्रयोग इस क्षेत्र से जाते व्यापारियों ने भी किया होगा।

यदि आप प्रत्येक स्थान की संस्कृति एवं इतिहास में रूचि रखते हैं तथा गोवा भ्रमण करना चाहते हैं तो गोवा भ्रमण स्थलों की यात्रा सूची में हर्वले गुफाओं का नाम अवश्य सम्मिलित करें।

कुछ ही वर्ग किलोमीटर के छोटे से क्षेत्र में विचरण करते हुए मेरा साक्षात्कार अनेक ऐतिहासिक तत्वों से हुआ। अनेक कथाएं, भिन्न भिन्न धर्म तथा प्राकृतिक सौंदर्य से एक साथ सामना हुआ। मेरा महान भारत मुझे आश्चर्यचकित करने में सदेव अग्रसर रहता है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

4 COMMENTS

  1. अनुराधा जी/ मीता जी,
    उत्तरी गोवा के हर्वले गाँव में स्थित अति प्राचीन पांडव गुफाओं , मनोहारी जलप्रपात और प्राचीन रूद्रेश्वर मंदिर की जानकारी देता सुंदर आलेख । महाप्रभु वल्लभाचार्य के पद चिह्नों का गोवा के इस सुदूर गाँव में होना आश्चर्यजनक है । आलेख के साथ जलप्रपात का विडियो बहुत ही सुंदर है । ऊँचाई से गिरती जलधाराओं से निर्मित तुषार के कण वास्तव में नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करते हैं और वैसे भी गोवा अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध है !
    धन्यवाद ????

  2. अनुराधाजी एवं मीताजी,
    गोवा के हर्वले गाँव और वहां जाने वाले रास्ते का बहुत ही शानदार वर्णन आपने किया है. रुद्रेश्वर महादेव का स्वयंभू शिवलिंग और उसके महात्म्य की सुंदर जानकारी दी है.
    वहां के जल प्रपात का व्हिडिओ मन को लुभाने वाला है. उसके जलाशय से निकलने वाली जलधारा मंदिर की परिक्रमा करके मांडवी नदी से मिलने का दृष्य अतिशय सुंदर होगा.
    महाप्रभु वल्लभाचार्य के पदचिंन्ह और पांडव गुंफाऐं अचंभित करने वाली लगी.
    सुंदर आलेख हेतु बहुत बहुत धन्यवाद.

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