हिमाचली सेब तो आपने खाएं ही होंगे। वर्षा ऋतु के दौरान शिमला के उत्तर में जाइए, वहां हर तरफ सेबों के बड़े-बड़े बागीचे दिखाई देंगे। यहां के पेड़ हरे से लाल में बदल रहे सेबों से भरे हुए होते हैं। अगर मुसलधार वर्षा के कोई लक्षण दिखाई दे तो इन पेड़ों को कोमल सी जाली से ढका जात है, जिसे देखकर ऐसा लगता है, जैसे इन पहाड़ियों पर कोमल सी झोपड़िया एक कतार में खड़ी हो। जुलाई के शुरुआती दिनों में जब मैंने हिमाचल की यात्रा शुरू की थी, ये सेब अधपके ही थे। ये अभी पूरी तरह से पके नहीं थे जिन्हें तोड़कर खाया जा सके, लेकिन मुझे हर समय ललचाने के लिए काफी बड़े थे।
हम नारकंडा से होते हुए शिमला से ठानेधार गए और रास्ते भर इन कच्चे सेबों को जी भर देखने के लिए रुकते रहे। हमारे वाहन चालक भाई हमे धीर रखने के लिए कहते रहे और बताते रहे कि अगले कुछ दिनों के लिए हमे यही नज़ारे देखने को मिलेंगे। पहली बार जब आप कोई खूबसूरत नज़ारा देखते हैं तो आपकी हालत इसी प्रकार हो जाती है, जब तक कि आप उससे परिचित न हो जाए।
बादलों के बीच
हम ठानेधार में सुंदर से बंजारा कैंप होटल में पहुंचे जो छोटी सी पहाड़ी पर स्थित था, जहां से हिमालय की पर्वतमालाओं से घिरी घाटी को देखा जा सकता था। इस दृश्य ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया, क्योंकि, यहां पर ठहरने के दौरान हमारा अधिकतर समय बादलों के बीच या धुंध में गुज़रा। बाल्कनी में बैठकर, नीचे की घाटी को निहारते हुए हमने हिमाचली सेब की कथा सुनी। हमे बताया गया कि कैसे इस नकदी फसल के कारण इस क्षेत्र को इतनी समृद्धि प्राप्त हुई और कैसे सेब के बागानों के उभरने से इस क्षेत्र का भाग्य और चरित्र परिभाषित होता गया।
हिमाचली सेब और सत्यानंद स्टोक्स
20वी सदी के आरंभ में, सैमुएल एवान्स स्टोक्स नाम का एक अमरीकी पुरुष, जो फिलाडेल्फ़िया के समृद्ध खानदान से थे, भारत में, शिमला के पास ही कुष्ठ रोग से पीड़ित मरीजों को देखने के लिए आए। ये ठानेधार से थोड़ी सी दूरी पर स्थित कोटगढ़ में, किसी चर्च में आराम करने के लिए ठहरे थे। धीरे-धीरे उन्हें इस जगह और यहां के लोगों से लगाव होता गया। उन्होंने यहीं की एक स्थानीय राजपूत-ईसाई लड़की से शादी कर अपनी बाकी ज़िंदगी यहीं गुजारने का फैसला किया।
एक बार जब वे अपने घर गए थे, तब वे लाल रसीले सेबों के छोटे-छोटे पौधे अपने साथ कोटगढ़ लेकर आए और उन्हें यहीं पर लगा लिया। इस नए देश के प्रति उनके लगाव को महसूस कर उनकी माँ ने उनके लिए 200 एकड़ जमीन खरीदी जहां पर पहले चाय बागान हुआ करता था। उन्होंने स्टोक्स के लिए इन रसीले सेबों के कुछ और पौधे भी भेजे। लगभग 5 सालों में सेब बहरने, खिलने लगे और स्थानीय लोगों के बीच तेजी से प्रचलित भी होने लगे। सेब प्रेमियों के बीच ये आज भी अपनी जगह कायम रखे हुए हैं।
स्टोक्स परिवार के द्वारा लाये गए सेब
स्टोक्स परिवार के द्वारा लाये गए अमरीकी सेब इस क्षेत्र में आने से पहले भी भारत में सेब मौजूद हुआ करते थे। कश्मीर में सेबों का उत्पादन पहले भी होता था पर ये सेब उस घाटी के बाहर ज्यादा प्रचलित नहीं थे। कश्मीरी सेबों का स्वाद लेने के लिए आपको कश्मीर घाटी तक जाना पड़ता था। याद रहे कि मैं 19वी सदी की समाप्ती और 20वी सदी के प्रारंभ के दौर की बात कर रही हूँ। अंग्रेज़, जो भारत पर अपनी सत्ता कायम कर चुके थे और जो पहाड़ी प्रेमी थे, उन्होंने कुल्लू के क्षेत्र में सेब के पौधे लगाए थे। पर ये थोड़े खट्टे किस्म के होने के कारण स्थानीय लोगों के स्वाद को ज्यादा नहीं भाए।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
स्टोक्स परिवार द्वारा इन पहाड़ियों पर लाये गए ये लाल रसीले सेब स्थानियों में अपनी जगह बनाने में सफल रहे। इस स्वाद ने पूरे क्षेत्र की नियति ही बदल दी। स्टोक्स का यह प्रयोग सफल होने पर उनकी जमीन के आस-पास के लोगों ने इससे प्रेरणा लेकर, अपनी सामान्य आलू और बेर की फसल की बजाय सेब लगाने शुरू किए। बहते हुए समय के साथ पूरा शिमला और किन्नौर क्षेत्र सेबों के विशाल बाग में बदल गया। धीरे धीरे यह सेब, देश और विदेशी सीमाओं के पार जाकर हिमाचल में समृद्धि लाने लगे।
समृद्धि और प्रसन्नता
इस क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर हिमाचली सेब का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। आप हर जगह समृद्धि और प्रसन्नता देख सकते हैं। इन क्षेत्रों से स्थानांतरण की संख्या बहुत कम है क्योंकि, यहां पर प्रचुर मात्र में रोज़गार के अवसर है। अपनी सुबह की सैर के दौरान मैंने इन फलों को बक्सों में पैक करते हुए और उन्हें गाड़ियों में लदकर भेजते हुए देखा। यहां के लोग तनाव मुक्त सामुदायिक जीवन जीते हैं, जहां उन्हें अपनी जिंदगी, या अपने बच्चों की जिंदगी की ज्यादा फिक्र नहीं रहती। उन्हें विश्वास है कि यहां के सेब और बाकी के फल, आने वाले कई वर्षों तक उनका पालन-पोषण करने के लिए बहुत है। यही उम्मीद की जाती है, कि पूरे विश्व में सेबों की खपत में बढोतरी होती रहे।
ये सेब कार्बनिक हैं या नहीं – हिमाचली सेब
जब आप हाथ की दूरी पर लटकते हुए सेबों के बीच बैठे होते हैं, तो आपके मन में यही सवाल घूमता है कि क्या आप एक सेब तोड़कर खा सकते है? क्या इन्हें खाना सुरक्षित होगा? क्या इन पर कीटनाशक छिड़काया होगा, जिसे खाने से पहले धोने की आवश्यकता हो? इन सेबों पर छोटी-छोटी बूंदें दिखाई दे रही थी, जो या तो धुंध, बारिश की बूंदें या फिर कीटनाशक भी हो सकता था। मैंने बाग आश्रय के एक कार्यकर्ता श्री. शर्मा जी, जो हमारे गाइड भी थे, से इसके बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि, हम कीटनाशक का प्रयोग फसल की सुरक्षा के लिए करते हैं, फलों पर उनका प्रयोग नहीं किया जाता। यह सही भी था।
मैंने यह भी पूछा कि क्या वे सेबों को गहरा लाल बनाने के लिए कुछ करते हैं, क्योंकि पकते हुए सेबों का रंग अभी भी काफी हारा नज़र आ रहा था। इसपर उनका जवाब ना था और उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे ये फल पकते हैं उनका लाल रंग और भी गहरा हो जाता है।
सत्यानंद स्टोक्स द्वारा स्थापित की गयी पाठशाला
अगली दिन मैं सुबह की सैर के लिए निकली और राह में एक बुजुर्ग सज्जन श्री. रतनचंद से मेरी मुलाक़ात हुई। 80 से ऊपर की उम्र वाले रतन जी ने याद करते हुए बताया कि वे सत्यानंद स्टोक्स द्वारा स्थापित की गयी पाठशाला में पढ़ते थे और उनके पुत्रों के साथ पाठशाला में जाया करते थे। यादों में बहते हुए वे हिमाचली सेब क्रांति के बारे में भी बताते गए, जैसा उन्होंने खुद अपनी आँखों से यह सब देखा हो। जब मैंने उनसे कीटनाशक के प्रयोग के बारे में पूछा, तो उन्होंने स्वीकार किया कि सेबों के लाल रंग को और गहरा बनाने के लिए किसी प्रकार की दवाई का प्रयोग किया जाता है। हालांकि उन्होंने बताया कि इस दवाई का प्रयोग अनुमति से ही हो रहा है और इससे खानेवाले को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
चाहे ये सेब कार्बनिक हो या ना हो पर मैं इस बात पर जरूर ध्यान दूंगी कि इन सेबों को खाने से पहले अच्छी तरह से धो लिया जाय।
ठानेधार का शब्द साधन
ठानेधार का उच्चारण अक्सर थानेदार यानि पुलिस चौकी वाला थानेदार के रूप में होता है। जब मैंने इस नगर के नामकरण से जुड़ी शब्द-व्युत्पत्ति को जानने की कोशिश की, तो मैंने किसी साहसी पुलिस की कहानी की अपेक्षा की थी, जिसके आधार पर इस जगह का नामकरण हुआ है। लेकिन किसने कहा है कि जिंदगी कभी उम्मीद के अनुसार चलती है? मुझे बताया गया कि वह शब्द ठानेधार है, यानि ठंडी और धार का मेल। ठंडी यानि ठंड और धार का स्थानीय अर्थ है हरी पर्वतमाला।
ठानेधार में सत्यानंद स्टोक्स की विरासत
कहा जाता है कि स्टोक्स साधुओं के साथ बहुत समय बिताया करते थे। ये साधू कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने के लिए, भारत-तिब्बती मार्ग जहां रास्ते में ही ठानेधार पड़ता है, का इस्तेमाल किया करते थे। वे इन साधुओं से इतने प्रभावित थे कि वे हिन्दू धर्म में या यूं कहे कि आर्य समाज में परिवर्तित हुए। उन्होंने अपना पहला नाम बदलकर सत्यानंद रख लिया लेकिन अपने परिवार के नाम को बरकरार रखा।
परमज्योति मंदिर
परमज्योति मंदिर, जो स्टोक्स के पारिवारिक घर ‘हारमोनी हाल’ के पास ही स्थित है, उनका वैदिक संस्कृति को अपनाने का प्रतीक रूप है। यह एक साधारण सा कक्ष है जिसके चारों ओर लकड़ी के खंबों से बना गलियारा है, जहां से नीचे की घाटी को देख सकते है, जो अब हिमाचली सेब के बागों से भरी हुई है। इस मंदिर की दीवारों पे हर जगह संस्कृत श्लोक लिखे हुए हैं। मैंने उन में से कुछ श्लोक पढ़ने का प्रयास भी किया पर मैं नहीं जान सकी कि वे किस वेद से संबंधित हैं। इंटर्नेट पर की गयी खोज के अनुसार मुझे पता चला कि वे विभिन्न उपनिषदों और भगवद गीता से हैं। अभी के लिए तो वह कक्ष बंद है, लेकिन मुझे बताया गया है कि यह एक खाली कक्ष है जिसमें हवन किए जाते हैं।
मैं तो सिर्फ हिमालय की चोटियों से घिरी हरी पहाड़ी पर बैठकर हवन करने की कल्पना भर कर सकती हूँ, जो बहुत ही ध्येयपूर्ण अनुभव है।
हार्मोनी हाल
हार्मोनी हाल एक प्यारा सा पुराना घर है। आगंतुकों को इस घर के भीतर जाने की अनुमति नहीं है, लेकिन आप दूर से इसे देख सकते हैं। आप यहां पर स्टोक्स द्वारा स्थापित की गयी पाठशाला भी देख सकते हैं, जो अब सरकार द्वारा चलायी जाती है। स्टोक्स परिवार हिमाचल प्रदेश की राजनीति में आज भी सक्रिय है। सत्यानंद जी की बेटी का विवाह हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री से हुआ था और उनकी बहू विद्या स्टोक्स मुख्य रूप से राज्य की राजनीति में सक्रिय है। इस परिवार का एक अतिथि गृह सत्यानंद स्टोक्स जी को समर्पित है। यहां से आप नीचे घाटी में बहने वाली सतलुज नदी देख सकते हैं। सत्यानंद जी की अर्धप्रतिमा यहां के बरामदे में रखी गयी है। यहां की निचली मंज़िल पर स्थित विशाल सभागृह में सार्वजनिक उत्सव मनाए जाते हैं।
सफल प्रयोग – हिमाचली सेब
अनेक सूत्रों से सत्यानंद स्टोक्स की कहानी सुनने और पढ़ने के बाद मुझे नहीं लगता कि उन्होंने हिमाचली सेब के पौधे किसी उद्देश्य से भारत में लाये थे। उन्होंने बस एक प्रयोग किया था, जिसकी सफलता का फायदा स्थानीय लोगों को हुआ। मेरे लिए यह बहुत बड़ा अध्ययन था, कि कैसे एक प्रवर्तक लोगों को प्रेरित और प्रोत्साहित कर बहुत बड़े बदलाव का निम्मित बन सकता है। प्रयोग के संबंध में हिमाचली सेब का उदाहरण बहुत ही प्रेरणा दायक है जिसको आगे बढ़ाना चाहिए। आप नहीं बता सकते कि कब, कहां, कैसे, कौनसी बात, किसी बहुत बड़े बदलाव का कारण बनकर लाखों लोगों का और आनेवाली कई पीढ़ियों का भाग्य बदल सकती है।
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