चंडीगढ़ में बचपन बिताते समय हिमाचल प्रदेश हमारे घर का पिछवाडा सा हुआ करता था। हवा में थोड़ी सी शीतलता आते ही हम दौड़ते हुए छत पर जाते थे, यह देखने के लिए कि शिमला में बर्फ गिरी है कि नहीं और हमे अपने आप को ऊनी कपड़ों में लपेटने की जरूरत है या नहीं।
आगे विश्वविद्यालय में पहुँचने के बाद हमने कसौली और उसके आस-पास के जगहों की काफी यात्राएं की तथा टिंबर ट्रेल की अनेक पदयात्राएं की। शिमला हमारे लिए सबसे नजदीकी जगह थी पर मैं उससे आगे कभी नहीं गयी। इसलिए हिमाचल यात्रा बहुत समय तक मेरे लिए एक स्वपन ही रही। यहाँ तक कि हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रेणी जो इस राज्य में अपना प्रभुत्व जमाये बैठी है, की तलहटी में बड़े होने बावजूद भी यह क्षेत्र हमेशा मेरे लिए अनदेखा ही रहा।
२०१५ की शुरुवात में ही मैंने निश्चय कर लिया था कि इस बार तो मैं हिमाचल यात्रा या उत्तराखंड के दर्शन जरूर करूंगी। और भाग्य की बात देखिये कि मुझे मेरी सह-यात्री के रूप में लेखिका अल्का कौशिक का साथ प्राप्त हुआ। हम दोनों साथ में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और लाहौल और स्पीति जिले के दर्शन करने के लिए निकल पड़े।
मैं इन जिलों के बारे में कुछ अधिक नहीं जानती थी, सिवाय इसके कि वे प्रमुख रूप से बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। मैं हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मंदिरों के दर्शन करने के लिए बहुत उत्सुक थी। मैं उनकी पहाड़ी वास्तुकला और वहाँ पर अखंड चली आ रही परंपरागत प्रथाओं के बारे जानना चाहती थी। जितना मैंने सोचा था उससे कई अधिक हमे वहाँ पर जाकर जानने का मौका मिला – जिसके बारे में एक दिन मैं फुर्सत से जरूर लिखूँगी। तो ये रहे इस खूबसूरत से पहाड़ी प्रदेश के बारे में मेरे कुछ प्रथम अनुभव।
सुखी और समृद्ध हिमाचल
हिमाचल प्रदेश भारत का एक सुखद राज्य है। प्रकृति की प्रचुरता और बहुत ही कम जनसंख्या होने के कारण यहाँ पर सभी के लिए अपनी जरूरते पूरी करने हेतु पर्याप्त साधन है। हिमाचल में बिताए गए इन कुछ दिनों के दौरान किन्नौर, स्पीति और लाहौल में घूमते हुए हमने यहाँ के लोगों को सदा हँसते मुस्कुराते हुए देखा। यहाँ पर हमे एक भी व्यक्ति भीख माँगता हुआ नहीं दिखा और ना ही कोई बेघर या सड़क पर गुजारा करते हुए दिखा। वहाँ की चाय की दुकानों या अन्य किसी भी सार्वजनिक जगहों पर मिलने वाले लोगों ने हमे अपने घर पर आमंत्रित किया तो कुछ लोगों ने हमे बहुत किलोमीटर दूर बसे अपने गाँव में आने का आमंत्रण दिया। जब हमने उन्हें बताया कि हम हिमाचल के दर्शन करने आए हैं, तो उन्होंने हमे अपने गाँव के दर्शन करवाने चाहे।
यहाँ की साक्षरता का स्तर निश्चित रूप से ऊंचा है। बहुत सी जगहों पर हमे बताया गया कि साक्षरता में हिमाचल ने केरल को भी पीछे छोड़ दिया है। और घर लौटकर मैंने इसकी पड़ताल की तो 2011 की जनगणना के अनुसार केरल अब भी सबसे ऊपरी श्रेणी में था, जिसके बाद बहुत से उत्तर पूर्वीय राज्य थे। लेकिन हाँ पिछले एक दशक में साक्षरता के क्षेत्र में हिमाचल ने बहुत ही ज्यादा विकास किया है और यहाँ के लोगों से बातचीत करते समय आप इस बात को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश एक बहुत ही समृद्ध देश है, जिसके कारण हिमाचल से बाहर स्थानांतरण की संख्या बहुत कम है। एक बार तो मैंने शाम को बैठे-बैठे ऐसे ही हिमाचल से बाहर मिले हिमाचली लोगों की संख्या के बारे में सोचने की कोशिश की और मैं सिर्फ चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय के अपने सहपाठियों अधिक नहीं गिन पाई। हमे यहाँ पर बहुत से छोटे-बड़े व्यवसायी मिले जो चंडीगढ़ या दिल्ली में पढे हैं, लेकिन अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अब वापस हिमाचल लौट आयें हैं। भारत में ऐसे कितने राज्य होंगे जिनके पास अपने नागरिकों को रोजगार प्रदान करने के लिए पर्याप्त अवसर होंगे जिसके चलते वे बड़े गर्व से कम स्थानांतरण के बारे में शेख़ी बघार सकते हैं? और तो और यहाँ का समाज भी कृषि प्रधान है।
किन्नौर तक तो दूरसंचार ने बड़े अच्छे से हमारा साथ निभाया लेकिन स्पीति में पहुँचते-पहुँचते सिर्फ बीएसएनएल का नेटवर्क ही ठीक से चल रहा था। लेंडलाइन तो जैसे यहाँ से विलुप्त ही हो गए हैं और यहाँ के लोग भी जैसे उनके अस्तित्व को ही भूल गए हैं।
पर्यावरण हितैषी हिमाचल
हिमाचल यात्रा के दौरान हमने देखा कि वहाँ पर प्लास्टिक का बहुत ही कम प्रयोग किया जाता है। हर जगह हमे कपड़े के थैले दिखे जो बाहर फेंकने पर आसानी से मिट्टी में घुल जाते थे, बिना प्रकृति को कोई हानी पहुंचाए। नाको जैसे छोटे-छोटे गांवों में तो युवा संघों ने अपने गाँव को प्लास्टिक मुक्त और साफ रखने का पूरा दायित्व ले रखा है। मैंने देखा कि मुझे गाँव के दर्शन कराते हुए स्वयंसेवक रास्ते पर गिरे हुए कचरे को उठाकर कचरे के डिब्बे में डाल रहा था। पर्यावरण के प्रति हिमाचली लोगों की यह जागरूकता देखकर इस यात्रा में जैसे खुशी की एक और वजह जुड़ गयी थी। उनकी यह पहल देखकर आप को भी यही महसूस होगा कि अगर ये लोग कर सकते हैं तो बाकी का भारत क्यों नहीं।
हमे इस क्षेत्र में एक भी बड़ा या विलासिता वाला होटल नहीं मिला। लेकिन यह पूरा क्षेत्र यहाँ पर आनेवाले पर्यटकों की मेजबानी के लिए काफी अच्छी तरह से सज्ज था। उन्होंने आगंतुकों के खास आश्रय-गृह और छोटे-छोटे अतिथि-गृहों का बंदोबस्त किया था। हम बंजारा शिविर द्वारा संचालित कुछ अच्छे से होटलों में ठहरे थे। यहाँ के अधिकतर होटल राज्य विद्युत् मंडल द्वारा उपलब्ध विद्युत पर चल रहे थे। यहाँ के ज़्यादातर होटलों में जनित्रों का प्रयोग नहीं होता था और जिन होटलों में जनित्रों का प्रयोग होता था वे बहुत ही विवेकपूर्ण तरीके से उनका इस्तेमाल करते थे। पानी गरम करने का पूरा काम सौर तापक के इस्तेमाल से किया जाता था और उनकी अधिकतर रोशनाई भी सौर कंदीलों की मदत से होती थी।
सरकार का योगदान
मुझे पता है कि आपको यह बात थोड़ी अजीब जरूर लगेगा, लेकिन हिमाचल में कई जगहों पर आपको सरकार द्वारा निर्मित कुछ ऐसी बाते मिलेंगी जिन्हें अनदेखा करना मुश्किल है। यहाँ के सबसे छोटे गाँव में जिसकी जनसंख्या लगभग 100 है, ऐसे गांव में भी हमे प्राथमिक पाठशाला देखने को मिली। तथा इससे थोड़े बड़े गांवों में माध्यमिक पाठशालाएं थीं, यद्यपि मुझे यह बात सता रही थी कि इन पाठशालाओं में जाने के लिए इन गांवों में उतने बच्चे होंगे भी या नहीं।
यहाँ के ताबो और धनकर जैसे सबसे दूरस्थ गांवों में भी हमे हेलीपैड देखने को मिला। हमे बताया गया कि आपातकालीन स्थिति में लोगों को अनुमानित शुल्क पर यहाँ से हटाया जाता है। देश के बाकी हिस्सों में सरकारी सेवाओं की स्थिति देखी जाए तो इस क्षेत्र में सरकार के इस योगदान को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। यहाँ पर प्रत्येक गाँव के बाहर एक सूचना फ़लक लगा हुआ था, जिस पर उस गाँव का नाम, उसकी जनसंख्या और वह कितनी ऊंचाई पर बसा हुआ आदि, जैसी अन्य कई महत्वपूर्ण बातों को दर्शाया गया था। हमारे देश में और कहाँ ऐसी बातें देखने को मिलती हैं?
यहाँ के लगभग सभी घरों में सौर तापक हैं, जो सरकार द्वारा सहायिकी दरों पर उपलब्ध कराये गए हैं। जिसके चलते इस शीतल पर्यावरण में विद्युत के प्रयोग में बड़ी तेजी से गिरावट आ गयी है।
हिमाचल यात्रा में स्थानियों से मिली सीख
हिमाचल में बिताए गए इन कुछ दिनों के दौरान वहाँ के लोगों का अवलोकन कर मैंने उनसे कुछ बातें सीखी। इस कड़कती धूप में भी यहाँ के सभी लोगों ने कपड़ों की अनेक परतें पहनी हुई थीं, जिसके ऊपर उन्होंने गरम कपड़ों की एक और परत चढ़ाई थी, तो कुछ लोगों शाल ओढ़ रखी थी। यहाँ के लोग हमेशा अपने सिर को टोपी या कपड़े से ढकते हैं। इसके पीछे उनकी कोई सांस्कृतिक या धार्मिक महत्ता नहीं है (जो उनकी पसंद के रंगों और विविध शैलियों से साफ झलकता है, जिसके बारे में आप मेरे आगे के लेखों में जरूर पढ़ेंगे)। यह सबकुछ हवामान में होते बदलाओं से शरीर के नाजुक भागों की रक्षा करने के लिए किया जाता है।
यहाँ पर सभी लोग घोड़े की तरह बड़ी ही धीमी और लयात्मक गति से चलते हैं। जब उन्होंने मुझे जल्दी-जल्दी चढ़ाई करते हुए देखा और फिर आगे जाकर सांस पकड़ने के लिए रुकते हुए देखा तो उन्होंने मुझसे बार-बार कहा कि – घोड़े की तरह चलो – धीरे-धीरे लयात्मक रूप से छोटे-छोटे कदम लेते हुए चलना – चाहे वह कोई ढलान हो, चढ़ाई का मार्ग हो या सीधा रास्ता हो। कई बार उनकी बात को सुनने के बाद आखिर मैं एक जगह बैठ गयी और और मैंने देखा कि वे लोग कैसे चलते हैं। वे सभी छोटे-छोटे कदम लेते हुए चल रहे थे और उनकी चाल में भी एक प्रकार की लय थी। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ये बिना थके और बिना रुके सरलता से इतना चल पाते हैं। हमे अपने जीवन में भी इसी प्रकार चलना चाहिए – धीरे-धीरे और छोटे-छोटे कदम लेते हुए, अपने हर कदम और अपनी गति का आनंद उठाते हुए।
हिमाचल के प्राचीन मंदिर
हिमाचल प्रदेश की यात्रा पर जाने के पीछे मेरे प्रमुख उद्देश्यों में से एक यह था कि मैं यहाँ के प्राचीन पहाड़ी मंदिरों के दर्शन करना चाहती थी। मैं इन मंदिरों की वास्तुकला देखना चाहती थी और स्थानीय हिमाचली लोगों के जीवन में उनकी प्रासंगिकता के बारे में भी जानना चाहती थी।
हिमाचल यात्रा पूर्ण होते-होते मैंने यहाँ पर अनेक मंदिर देखे जिनकी वास्तुकला विविध प्रकार की थी जो प्रसिद्ध और कुछ अप्रसिद्ध सी मिथकीय कथाओं से संबंधित थी। यहाँ के मंदिर अद्वितीय पहाड़ी शैली में बनाए गए थे लेकिन वहाँ पर मौजूद कुछ मूर्तियों की आकृतियाँ बहुत ही सामान्य सी थीं और कुछ अन्य शैलियों से संबंधित थीं, जिन्हें आप चाहकर भी अलग नहीं कर सकते। जिसका उत्तम उदाहरण है एक परिवार का भाग होने के बावजूद भी अपनी एक अलग पहचान बनाना।
हिमाचल प्रदेश के सभी मंदिरों में मैंने हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म का एक बहुत ही अनोखा और सुंदर मिलन देखा। ये दोनों धर्म यहाँ पर एक ही श्रद्धाभाव के स्वरूप में वास करते हैं।
मौत का कोई भय नहीं
धरती के उन सबसे भयानक रास्तों पर मौत जैसे बस कुछ ही पलों की दूरी पर खड़ी थी। इतने सारे भयानक मोड, नदियों को पार करना, पदयात्रा के मार्ग से जाना, पत्थरीले रास्तों से गुजरना – इन सब के बीच मौत जैसे हमारे पीछे-पीछे चल रही थी। लेकिन मौत इस खौफ से मैं जरा सी भी भयभीत नहीं हुई। मेरे लिए तो इन विशाल हिमालय पर्वतों में विलीन होने से ज्यादा अच्छी मृत्यु और कोई हो ही नहीं सकती थी, या फिर इनमें से कोई एक गतिशील नदी आपको अपने साथ ले चले या फिर यहाँ के हिमखंड आपको अपनी गोदी में कई सदियों तक छिपाकर रखे।
लेकिन नहीं, मुझे जीना था, क्योंकि मुझे इन सभी खूबसूरत अनुभवों के बारे में आपको बताना था। और इसलिए आज मैं इन अनुभवों को आपके साथ साझा कर रही हूँ। लेकिन यह एकमात्र ऐसी जगह थी जहाँ पर मुझे मौत का बिलकुल ही डर नहीं लगा, एक पल के लिए भी नहीं। मुझे अन्य कई बातों का डर लग रहा था परंतु मौत का नहीं। शायद यह इन विशाल हिमालय पर्वतों का ही प्रभाव होगा।
शायद वास्तव में यह दुनिया बहुत छोटी है
स्पीति घाटी में हम ज़्यादातर पूरे समय अकेले ही थे। वहाँ पर दूर-दूर तक कोई गाँव भी नहीं थे और अगर हम किसी गाँव में पहुँच भी जाते तो जनसंख्या की दृष्टि से वे बहुत ही छोटे होते थे, हमारे यहाँ के सामाजिक समुदायों से भी छोटे।
चंद्रताल, जो लाहौल और स्पीति का सबसे दूरस्थ भाग है, में मेरी मुलाक़ात इंफ़ोसिस के एक पूर्व-सहकर्मी से हुई जो, किसी बाइकिंग समूह के साथ वहाँ पर आया हुआ था। सालों बाद मुझे हमारे जान-पहचान वाले व्यक्तियों के बारे में कुछ निगमित गपशप सुनने को मिली। शायद सच में यह दुनिया बहुत ही छोटी है।
राजमा चावल हिमाचल प्रदेश का प्रधान आहार है, जो यहाँ पर हर जगह मिलता है, चाहे वह सड़क के किनारे हो, विद्यालयों के भोजनालयों में हो, अतिथिगृहों में हो या फिर लोगों के घरों में हो। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि यहाँ पर राजमा को दाल कहा जाता है। लंबे समय बाद यह साधारण सा उत्तर भारतीय खाद्य पदार्थ खा कर मुझे बहुत आनंद आया।
यहाँ पर हर जगह कौवे और गौरैया पक्षी देखने को मिलते हैं। हमारे इस पूरे 1200 से भी अधिक किलोमीटर के मार्ग पर हमे बहुत ज्यादा पक्षी नहीं दिखे। लेकिन गौरैया पक्षी और कौवे यहाँ पर बहुत बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं, चाहे वह क्षेत्र कैसा भी हो, चाहे वह कोई घाटी हो, पर्वत की चोटी हो या किसी नदी का किनारा।
चंद्रताल सरोवर की यात्रा का विडियो
हिमाचल यात्रा के अंतर्गत चंद्रताल सरोवर का यह विडियो देखिये, और वहाँ के हिमखंडों, इलाकों, परिदृश्यों, डरावने रास्तों और चंद्रताल – नीली झील – को महसूस करने की कोशिश कीजिये।
किन्नौर, लाहौल और स्पीति के अद्वितीय परिदृश्यों को प्रत्यक्ष रूप से देखने में ही उसकी खूबसूरती बसी हुई है। जो सड़कों और नदियों के प्रत्येक मोड पर अपना रूप बदलते रहते हैं। जैसे-जैसे मैं हिमाचल की इस यात्रा पर लिखती जाऊँगी, वैसे-वैसे मैं भारत के इस अद्वितीय क्षेत्रों के बारे में आपको विस्तार से बताती जाऊँगी। यह प्रदेश जितना कि नदियों से घिरा हुआ है, जो भारत के समतल प्रदेशों को पानी प्रदान करती हैं, उतना ही वह प्राचीन मंदिरों और मठों से भरा पड़ा है।
Bahut hi badhiya post aapne share kiya hain himachal ke bare me Thanks.