होलोंग – जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान का जैव विविधता अतिक्षेत्र

1
1707

जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान को स्थानीय भाषा में दुआर कहते हैं। इस दुआर का एक छोटा सा कोना है, होलोंग। यह भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में उस स्थान पर स्थित है जिसे मुर्गी का गला कहते हैं। तकनीकी रूप से यह जैव विविधता अतिक्षेत्र पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित है। किन्तु यह भूटान, बांग्लादेश एवं असम से घिरा हुआ है। आप किसी भी दिशा में कुछ किलोमीटर जाएँ तो आप कदाचित अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा पार कर लेंगे। किन्तु पशु क्या करते होंगे? वे कैसे मानवों द्वारा बनाई गई सीमारेखा का सम्मान कर पाते हैं?

जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान – जैव विविधता अतिक्षेत्र

जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान का सफारी मार्ग
जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान का सफारी मार्ग

जोरेथाँग, पेलिङ्ग, गंगटोक तथा कुछ दिन सिलिगुड़ी में, इस प्रकार सिक्किम में कुछ ७ दिवस व्यतीत करने के पश्चात हम जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान पहुंचे। हम आगामी कुछ दिवस होलोंग वन विश्रामगृह में रहना चाहते थे। किन्तु इस विश्रामगृह की मांग अत्यधिक होने के कारण हमें यहाँ केवल एक ही रात्रि ठहरने की सुविधा प्राप्त हो पायी। अन्य रात्रियों के लिये हम ने अपनी व्यवस्था जलदापारा विश्रामगृह में की। यह विश्रामगृह ठीक उस मुख्य मार्ग पर स्थित है जो जलदापारा के मध्य से होकर जाती है।

दुआर का वन्य जीवन व्याख्या केंद्र
दुआर का वन्य जीवन व्याख्या केंद्र

दुआर से हमारा साक्षात्कार एक व्याख्या केंद्र से आरंभ हुआ जहाँ हमें वन के विषय में श्रेष्ठ जानकारी प्रदान की गई। हमें यहाँ कैसा व्ययहार करना चाहिए तथा हमें यहाँ क्या क्या देखने की आस रखनी चाहिए इत्यादि। दुआर हाथियों का एक निकास गलियारा है। अतः हमें हाथियों को देख पाने की आस थी। हमें यह भी बताया गया कि दुआर में गेंडे, गौर तथा हिरण भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इस व्याख्या केंद्र की दीर्घा में घूमते हुए हमें इस वन के विषय में पर्याप्त दिशानिर्देश प्राप्त हुए।

जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान के मदारीहाट प्रवेशद्वार से जीप सफारी

जलदापारा विश्रामगृह से हमने वन में दो बार जीप सफारी की। उन सफ़ारियों में हमने केवल कुछ गेंडों को देखा, वह भी दूर से। वे ऊंचे ऊंचे घास के बीच में लगभग छुपे हुए थे। उन्हे देखने के लिए हमें पर्यवेक्षण अटारी पर चढ़ना पड़ा था। किन्तु दोनों सफ़ारियों में जंगली हाथी हमसे लुक-छुपी का खेल खेलते रहे। हमारी भेंट वन विभाग के एक पालतू हाथी से अवश्य हुई किन्तु वह भी हमारी ओर ध्यान केंद्रित करने का इच्छुक नहीं था। सफारी करते समय हमने चारों ओर अनेक प्रकार के पक्षी देखे। उनके छायाचित्र लेने की हमारी तीव्र इच्छा थी। हमने हमारे गाइड से कहा भी, किन्तु हमारी प्रार्थनाएँ भैंस के आगे बीन बजाने जैसी व्यर्थ हो रही थीं। सजीले हावभाव वाला एक मनमोहक मोर मुझे आज भी स्मरण है। अत्यंत सामान्य घटना बता कर गाइड तब भी नहीं रुका था। जैसा कि बहुधा देखा गया है, उसका लक्ष्य केवल हमें विशाल वनीय पशु दिखाने की ओर केंद्रित था। शेष वन तथा छोटे पशु व पक्षी दिखाने में उसकी अधिक रुचि नहीं थी।

दुआर का चिलापाटा वन

अगले दिन हमने कूच बिहार का भ्रमण करने का निश्चय किया। वहाँ से वापिस आते समय हम चिलापाटा वन के मध्य से आए। वह वन कुछ ही किलोमीटर लंबा था किन्तु उसके मध्य से गाड़ी की सवारी करना किसी जादुई अनुभव से कम नहीं था। हमें पूर्व निर्देश दिए गए थे कि हमें ना तो कहीं रुकना है, ना ही कहीं गाड़ी से उतरना है क्योंकि कहीं से भी जंगली पशु के आने की संभावना सदैव रहती है तथा समीप कोई सहायता केंद्र भी उपस्थित नहीं है। हम धीमी गति से चलती गाड़ी से बाहर देखते हुए मनोरम वनीय परिदृश्यों को आँखों में भर रहे थे। हरेभरे वन ने हमें तीन ओर से घेर रखा था। जी हाँ, ऊंचे ऊंचे बांस के वृक्ष मार्ग के ऊपर मंडप सा बना रहे थे। सूर्यास्त का समय था। वन से अनेक प्रकार के स्वर सुनायी दे रहे थे। मार्ग में अन्य कोई वाहन भी नहीं था। अर्थात् वहाँ मानवी शोर नाममात्र भी नहीं था।

चिलापाटा वन्य मार्ग
चिलापाटा वन्य मार्ग

वन के सर्वाधिक सघन भाग को पार करने के पश्चात हम एक पुलिया के समीप कुछ क्षण रुके। पुलिये के नीचे से एक छोटी जलधारा बह रही थी। जैसे ही हमने अपने पाँव धरती पर रखे, हमें ऐसा आभास हुआ मानो हम भी इसी वन का एक अभिन्न अंग हों। हमें ऐसा लग रहा था मानो हम भी वन के भीतर विचरण कर सकते हैं, वृक्षों की शाखाओं पर रह सकते हैं। मदमस्त चाल से चलते जंगली हाथी एवं इधर उधर कूदते-फाँदते हिरणों के बीच रह सकते हैं। अचानक मन से सम्पूर्ण भय लुप्त हो गया था।

जैसे ही अंधकार छाने लगा, हमने चिलापाटा वन से विदा ली। एक आस लिए यहाँ से निकले कि हम पुनः कभी इस वन के दर्शन करने आ पाएं।

होलोंग वन विश्राम गृह – वन्यजीव उत्साहियों के लिए एक अविस्मरणीय स्थल

तीसरे दिन हम होलोंग वन विश्राम गृह में स्थानांतरित हो गए। यहाँ तक पहुँचने के लिए कुछ बाधाओं को पार करना पड़ता है। सर्वप्रथम एक किराये की गाड़ी द्वारा वन के प्रवेश द्वार तक पहुंचना पड़ता है। यहाँ आपके पहचान पत्र की जांच की जाती है। तत्पश्चात आपके पहचान पत्र के साथ आपका छायाचित्र लिया जाता है। इसके पश्चात वन विभाग की गाड़ी आपको विश्रामगृह तक ले जाती है।

होल्लोंग जलदापारा का वन विश्राम गृह
होल्लोंग जलदापारा का वन विश्राम गृह

होलोंग वन विश्राम गृह को देख ऐसा आभास होता है मानो किसी शिकारी के प्राचीन बंगले को परिवर्तित कर इस विश्रामगृह की रचना की गई है। इस विश्रामगृह में गिने-चुने ही कक्ष हैं। उनमें से कक्ष क्रमांक ५ की मांग सर्वाधिक है क्योंकि यहाँ से सीधे वन का दृश्य प्राप्त होता है। यदि आपको इस कक्ष में ठहरने का अवसर प्राप्त हुआ तो आप अपने कक्ष में बैठकर भी वन एवं वहाँ की गतिविधियों को ऐसे देख सकते हैं मानो आप एक वन्यजीव चलचित्र देख रहे हों। अन्य पर्यटकों को भी इसी प्रकार का अनुभव प्राप्त कराने के लिए विश्रामगृह में एक सामूहिक क्षेत्र है जहाँ से आप भी सीधे वन के परिदृश्यों का अवलोकन कर सकते हैं। हमारा भाग्य अच्छा था जो हमें इस कक्ष क्रमांक ५ में ठहरने का अवसर प्राप्त हुआ। इसका कारण यह था कि उस दिन इस विश्रामगृह में पहुँचने वाले प्रथम पर्यटक हम थे। जी हाँ। आपने सही अनुमान लगाया। जो सर्वप्रथम यहाँ पहुँचकर उस कक्ष की मांग करे, उसे ही यह कक्ष दिया जाता है।

होलोंग वन विश्राम गृह भी अन्य वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित अतिथिगृहों के समान विशेष है जहाँ सूर्यास्त के पश्चात आपको अतिथिगृह के भीतर ही सुरक्षित कर दिया जाता है। रात्रि के समय गौर तथा गेंडों जैसे जंगली पशु विश्रामगृह के परिसर में स्वच्छंद विचरण करने आ सकते हैं। अतः आपको कड़े निर्देश दिए जाएंगे कि आप सूर्यास्त के पश्चात विश्रामगृह की चारदीवारी के भीतर ही रहें। चिड़ियाघर में तो पशु-पक्षी पिंजड़े में रखे जाते हैं तथा आप उन्हे बाहर से देखते हैं। इसके विपरीत, यहाँ जैसे ही अंधकार छाता है, आप पिंजड़े में बंद तथा जंगली पशु आपको देखने दूर से आते हैं।

होलोंग वन विश्राम गृह में भोजन की अत्यंत मूलभूत सुविधा है तथा भोजन निर्धारित समय पर ही परोसा जाता है।

होलोंग के जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान के वन्यजीव

एकल सींग वाला गैंडा - जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान
एकल सींग वाला गैंडा

होलोंग वन विश्राम गृह के कर्मचारी अत्यंत जागरूक हैं तथा रात्रि में भी आपको जंगली पशु दिखाने से नहीं चूकते। हम जब रात्रि का भोजन कर रहे थे, हमें सूचना दी गई कि सामने के बगीचे में कई गौर आ गए हैं। हम सब अपना भोजन छोड़कर उन्हे देखने के लिए दौड़ पड़े। विश्रामगृह में इस प्रकार रात्रि में आये जीवों को न्यूनतम प्रकाश में दिखाने की अत्यंत रोचक व्यवस्था है। रात्रि के भोजन के पश्चात निद्रा के अतिरिक्त अधिक कुछ गतिविधि नहीं रहती। जैसे ही हम निद्रामग्न हुए, किसी कर्मचारी ने हमारे द्वार पर आघात कर हमें जगा दिया क्योंकि वह हमें पिछवाड़े बगीचे में आए कुछ गेंडे दिखाना चाहता था। घूमते घूमते गेंडे भोजन कक्ष के समीप तक आ गए थे। १० से १२ फीट की दूरी से, अर्थात् अत्यंत निकट से हमने उन्हे देखा, वह भी बिना किसी भय के क्योंकि हम भीतर थे तथा वे बाहर। हमारी उपस्थिति से उन्हे किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न होती प्रतीत नहीं हो रही थी। मैंने अनुमान लगाया कि वे अचंभित पर्यटकों  की उपस्थिति से अभ्यस्त होंगे। अततः यह विश्रामगृह सदैव भरा जो रहता है।

हिरण
हिरण

विश्रामगृह के बगीचे एवं वन के मध्य से एक छोटी जलधारा बहती है। जलधारा के उस ओर एक छोटा सा खुला क्षेत्र है। प्रत्येक दिवस प्रातःकाल में विश्रामगृह के कर्मचारी यहाँ नमक के ढेर रखते हैं। पशु एवं पक्षी इस नमक को खाने के लिए आते हैं। मैंने इससे पूर्व अनेक वन्यजीव अभयारण्यों का भ्रमण किया है किन्तु इस प्रकार नमक रखने की प्रथा सर्वप्रथम देख रही थी। सम्पूर्ण दिवस एक-दो गेंडे विश्रामगृह के आसपास विचरण करते रहे। थोड़े अंतराल में हमें गौर तथा जंगली सूअर भी दिख जाते थे। किन्तु हाथी अब भी हमसे दूर ही थे।

होलोंग के वन्यजीवों का विडिओ

होलोंग वन विश्राम गृह में हमें एकल-सींग गेंडे, गौर तथा अनेक प्रकार के पक्षी दृष्टिगोचर हुए जिनका एक छोटा सा विडिओ चलचित्र आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ। मेरा सुझाव है कि उत्तम दर्शन हेतु आप यह विडिओ HD पद्धति में देखें। आप हमारा यात्रा विडिओ इंडिटेल के यूट्यूब चैनल में भी देख सकते हैं।

एकल-सींग गेंडे का विडिओ

इस विडिओ में आप एकल-सींग गेंडों को स्वच्छंद विचरण करते एवं घास खाते देख सकते हैं। जंगली जीव किस प्रकार अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहते हैं, इसका अनुमान आप उनके कानों की हलचल देख कर लगा सकते हैं।

भारतीय गौर का विडिओ

इस विडिओ में देखिए कि किस प्रकार एक जंगली भारतीय गौर लवणों की आपूर्ति हेतु नमक के ढेर की ओर आया, तत्पश्चात नमक खाकर जल पीने के लिए जलधारा की ओर चला गया। अपने मार्ग पर आगे बढ़ने से पूर्व किस प्रकार उसने अपने आसपास की स्थिति का सर्वेक्षण किया, यह भी आपके ध्यान में आएगा।

जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान के पक्षी

जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान में हमें कुछ पक्षी देखने की आशा अवश्य थी किन्तु जो हमने देखा उसके लिए भी हम कदापि तैयार नहीं थे। हमने हजारों की संख्या में पीले पैरों वाले हरे कबूतर अर्थात् हरियाल पक्षी नाचते व फुदकते देखे। वे नमक के ढेरों पर बैठते थे, तत्पश्चात एक साथ आकाश में उड़ जाते थे जिसके पश्चात फिर से नमक के ढेरों पर आकर किंचित सुस्ताते थे। हरियाल के विशाल झुंड में अनेक प्रकार के जंगली हरियाल पक्षी थे, जैसे सादा हरियाल, मोटी चोंच वाला हरियाल, पीले पाँव वाला हरियाल, नारंगी गले वाला हरियाल इत्यादि।

नमक का आनंद लेते रंग बिरंगे पक्षी
नमक का आनंद लेते रंग बिरंगे पक्षी

तोते भी हरियालों के समान व्यवहार कर रहे थे। तोतों की भी अनेक प्रजातियाँ हमें यहाँ देखने मिली। उनमें ढेलहरा तोते, लाल गले के तोते, टुइयाँ सुग्गा, हीरामन तोते, मदना तोते, लाल चोंच का साधारण तोता, कुसुमशीर्ष सुग्गा इत्यादि सम्मिलित थे।

नदी के आसपास मोर छलांग लगा रहे थे। उन्हे देख अत्यंत आनंद आ रहा था। वे नदी तक चलकर जाते थे, जल के घूंट भरते थे तथा उड़कर नदी के उस पार पहुँच जाते थे। उनकी प्रत्येक क्रिया में उल्हास कूट कूट कर भरा हुआ था। उन्हे देख हमें भी उनके साथ प्रफुल्लित होने की इच्छा होने लगी थी।

होलोंग के पक्षियों का विडिओ

हजारों की संख्या में नमक चुगते अनोखे जंगली पक्षी आहट होते ही उड़ जाते थे तथा सब शांत होते ही उड़कर वापिस आ जाते थे। इन्ही सुंदर क्षणों को इस विडिओ के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ। मेरा सुझाव है कि उत्तम दर्शन हेतु आप यह विडिओ HD पद्धति में देखें।

एक नीलकंठ पक्षी बड़े ही ठाठ से एक शाखा पर बैठ था। शहरी नीलकंठों के विपरीत उसमें किसी भी प्रकार की आकुलता नहीं थी। वृक्षों के अनावृत शाखाओं पर अनेक रंगबिरंगे पक्षी बैठे थे। उनके एवं हमारे मध्य के अंतराल से अबाधित, हमारा कैमरा प्रफुल्लित होकर उनके छायाचित्र ले रहा था। जंगल के विषय में हमने जो भी पढ़ा था अथवा दूरदर्शन में देखा था वह सब जीवंत होकर हमारे समक्ष उपस्थित हो गया था।

नीलकंठ
नीलकंठ
चील
चील

चूंकि पशु एवं पक्षी अपने स्थानों पर ही क्रीड़ा कर रहे थे, हमें उनके छायाचित्र एवं चलचित्र लेने में कठिनाई नहीं हुई।

हाथी की सफारी

दूसरे दिवस हमने हाथी की प्रातःकालीन सफारी की। हाथी की पीठ पर बैठकर, उस ऊंचाई से हमने एक घंटे में जो जंगल का दृश्य देखा, उससे जंगल का एक भिन्न स्वरूप हमारे समक्ष प्रस्तुत हुआ। उथले जल एवं ऊंचे ऊंचे घास को चीरते हुए हाथी आगे बढ़ रहा था। कई बार हमें वृक्षों की शाखाओं को हाथों से पकड़ कर उनसे स्वयं को बचाना पड़ रहा था। जब हाथी तालाब के उथले जल में चल रहा था तब उसके प्रत्येक पग पर मेरी हृदयगति बढ़ जाती थी। जब वह ऊंची-नीची सतह पर चल रहा था तो प्रत्येक क्षण मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मैं उसकी पीठ पर से नीचे गिर जाऊँगी। महावत मुझे सांत्वना दे रहा था कि हाथी की पीठ पर से साधारणतः कोई नीचे नहीं गिरता है।

हाथी की सवारी
हाथी की सवारी

हाथी की सफारी में हमें केवल पक्षी ही दृष्टिगोचर हुए। स्वाभाविक ही है, हाथी की पीठ पर बैठकर हम वृक्षों की ऊपरी शाखाओं के सम्मुख थे। उस ऊंचाई पर, जंगल के ऊपरी परत का भाग बनकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो हम वृक्षों से आमने-सामने चर्चा कर रहे हों।

जलदापारा जंगल से मिलाते रास्ते
जलदापारा जंगल से मिलाते रास्ते

उस समय हम जंगल के जीवन को सर्वाधिक समीप से अनुभव कर रहे थे। जंगल के जीवन से हमारा पूर्ण सामंजस्य स्थापित हो रहा था। वन्यजीवन का यह अप्रतिम अनुभव मेरे मस्तिष्क में सर्वाधिक प्रगाड़ स्मृति के रूप में सदा के लिए अंकित हो गया है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

1 COMMENT

  1. जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान की आपके माध्यम से सैर करी, वाकई प्रकृति के बीच वन्य पशु पक्षियों को देखना बहुत ही रोमांचित कर देता है, वहाँ पर हरेक जगह अतिसुन्दर होती है, मैंने भी सपरिवार काफी साल पहले MP के कान्हा किसली राष्ट्रीय उद्यान का भृमण कर था वही उद्यान के अंदर ही होटल में रुके थे वह यात्रा अविस्मरणीय रही। आपका लेख पढ़कर यादें ताजा हो गई। सुंदर आलेख के लिए धन्यवाद। 🙏🙏👍🏽👌🏽

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here