क्या हमें भारत में जंगल सफारी करनी चाहिए? जी हाँ! भारत अब भी जैव विविधता का धनी है। इसका अनुभव प्राप्त करने के लिए जंगल सफारी से उत्तम अन्य कोई साधन नहीं है। प्रकृति से हस्तक्षेप किये बिना भारत की जैव धरोहर का आनंद उठाना है तो अवश्य जंगल सफारी कीजिये।
छुट्टियों में जंगल सफारी क्यों जाएँ?
वर्तमान में हमारा जीवन नगरीय भीड़भाड़ एवं सीमेंट कंक्रीट के जंगले में उलझ कर रह गया है। हम इस भौतिकवादी विश्व के दलदल में धंसते जा रहे हैं। इसी कारण बीच बीच में जंगल में भ्रमण करना अति आवश्यक हो जाता है।
जंगल के भीतर एक भिन्न विश्व बसता है। यहाँ इसके अपने नियम एवं जीवन शैली होती है। जंगलों एवं राष्ट्रीय अभयारण्यों की हरियाली एवं वहां के जीव-जंतुओं के बीच कुछ समय बिताना एक अविस्मरणीय अनुभव है। यह हमारे जीवन की भागदौड़ में शान्ति एवं ठहराव देता है। इसीलिए आप अपनी आगामी छुट्टी में जंगल अथवा अभयारण्य के भ्रमण का कार्यक्रम अवश्य बनाएं।
जंगल सफारी छुट्टियों में कौन कौन से अनुभव लेना चाहिए?
जंगल सफारी आपको जंगल के सम्पूर्ण पारितंत्र का अनुभव प्रदान करता है। हम में से कई पर्यटक जंगल जाकर केवल बड़े जंगली जानवरों को खोजते हैं। स्मरण रखिये कि सिंह, बाघ, तेंदुआ, भालू, जंगली कुत्ते इत्यादि जंगल में अकेले नहीं रहते। उनके साथ सम्पूर्ण पारितंत्र होता है।
बाघ वहीं होगा जहां उसका भोजन होगा। अर्थात जंगल में आपको हिरणों के झुण्ड दिखाई पड़ेंगे। रूककर इस मनभावन पशु की सुन्दरता निहारिये। इसकी वह मनमोहक चाल देखिये जिस पर सदियों से कवियों ने कई प्रसिद्ध कवितायें रची हैं। इनके साथ साथ आप जंगली हाथी, नीलगाय, गौर, सियार, जंगली कुत्ते इत्यादि कई जानवरों को देख सकते हैं।
नदी-तालाब के आसपास आपको मगरमच्छ अथवा घड़ियाल भी दृष्टिगोचर हो सकते हैं। यह इस तथ्य पर निर्भर है कि आप किस क्षेत्र के जंगल में विचरण कर रहे हैं।
शाकाहारी पशु
हाथी, हिरण, गेंडे, सांबर, गौर इत्यादि मेरे सामान शाकाहारी हैं। स्मरण रहे, इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे किसी पर हमला नहीं कर सकते। यदि उन्हें अपने प्राणों पर आघात का आभास होने लगे तो वे अवश्य हमला कर सकते हैं।
पक्षी
घने जंगलों में पक्षियों को ढूंढ पाना आसान नहीं! वहां उन्हें छुपने के लिए भरपूर स्थान प्राप्त होते हैं। वे हमसे लुका-छुपी का खेल खेलते रहते हैं। उन्हें ढूँढने का एक आसान उपाय आपको बताना चाहती हूँ। वे जब उड़ें तब उनके पीछे दृष्टि दौड़ाएं तथा उनके बैठने की प्रतीक्षा करें। कुछ पक्षियों को उनके विशिष्ट रंगों द्वारा पहचाना जा सकता है। नीलकंठ को उड़ते देखना अथवा नवरंग पक्षी के नौ रंगों को निहारना सदैव ही एक मनमोहक दृश्य होता है।
जंगलों के बाहरी सीमा पर यदि आप पगभ्रमण करें तो पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ देख आप विस्मित हो जायेंगे। उनके रंगों एवं चहचहाहट को ध्यानपूर्वक सुनने की चेष्टा करें। ये आपको उन्हें पहचानने में सहायता करेंगी। कदाचित वहां आपको कई ऐसे पक्षी दिखेंगे जिन्हें इससे पूर्व ना तो आपने कभी देखा होगा ना ही इन्हें जानते होंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत में पक्षियों की लगभग १३०० प्रजातियाँ पायी जाती हैं।
तितलियाँ
रंगबिरंगी तितलियाँ! छोटी बड़ी तितलियाँ! सूर्य के प्रकाश में फडफडाते ये नन्हे कीट सहज ही आपका मन मोह लेंते हैं। जंगलों में तो ये बहुतायत में उपलब्ध होते हैं। भारत में तितलियों की १००० से भी अधिक प्रजातियाँ पायी जाती हैं।
पतंगे
भारत के जंगलों में आप अनगिनत पतंगे देख सकते हैं। त्रिभुज के आकार के इस पतंगे को देखिये जिसे हमने सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान में किये गए जंगल सफारी के समय ढूंढा था। है ना यह अनोखा?
एशिया से लेकर दक्षिण प्रशांत के ऊष्णकटिबंधीय तथा उप-ऊष्णकटिबंधीय स्थानों में पाया जाने वाला यह त्रिभुज पतंगा (Trigonodes hyppasia)एक कीट है। इसके दोनों पंखों के अग्रभाग पर श्वेत किनारी के काले त्रिभुज बने होते हैं। प्रत्येक त्रिभुज के भीतर दो और त्रिभुज होते हैं।
ये जब पंख समेट कर बैठते हैं तब एक बड़ा श्वेत किनारी का त्रिभुज बनाते हैं जिसके भीतर चार त्रिभुज बन जाते हैं। अर्थात् ये चाहे उड़ रहे हों या बैठे हों, आप इन्हें आसानी से पहचान सकते हैं। पंखों पर इस आकर्षक त्रिकोणीय आकृति के कारण इसे चौकोणीय पतंगा भी कहा जाता है। इसका आकर लगभग २ सेंटीमीटर तथा पंखों का फैलाव ४ सेंटीमीटर होता है।
वृक्ष एवं लताएँ
लियाना बिना पत्तों की लम्बी तने वाली बेल है। इसकी जड़ें मिटटी की सतह पर फैली होती हैं तथा इसे ऊंचा बढ़ने के लिए अन्य वृक्षों के आधार की आवश्यकता होती है। जंगल के अन्य वृक्षों के समान यह भी धूप, जल एवं पोषण के लिये उसी मिट्टी पर निर्भर रहता है।
जंगल सफारी के समय आप वहां के वृक्षों एवं पौधों की जैव विविधता का बारीकी से अवलोकन करें। नवीन अंकुरित पौधों से ले कर दशकों पुराने वृक्षों तक, सब जंगल के पारितंत्र (ecology) का भाग हैं। इनमें कुछ वृक्ष सदियों प्राचीन हैं। जंगल के कुछ भाग इतने घने होते हैं कि सूर्य का प्रकाश जंगल के भीतर, धरती तक नहीं पहुँच पाता। इन ऊंचे ऊंचे वृक्षों पर कई प्रकार की लतायें लिपटी हुई होती हैं।
सर्प
जंगल में सर्पों की कई प्रजातियाँ दृष्टिगोचर होती हैं जिनमें कुछ विषैले भी होते हैं। नाग से लेकर वाईपर जैसे विषैले सर्प एवं अजगर से लेकर हरी वाइन सर्प से धामिन सर्प तक के बिना विषयुक्त सर्प यहाँ सफारी में बहुधा दिखाई पड़ जाते हैं। इनमें अजगर में एक विशेषता होती हैं।
अजगर एक विशाल सर्प होने के बाद भी विषैला नहीं होता। वह अपने शिकार को जकड़ कर उसका श्वास अवरुद्ध कर देता है, तत्पश्चात उसे निगल लेता है। सलग्न छायाचित्र में आप देख सकते हैं किस प्रकार एक अजगर लंगूर बन्दर को जकड़ रहा है।
मकड़ी
छोटे, बड़े एवं विशाल मकड़ियां एवं उनके जाले आपको जंगल में हर ओर दिखाई देंगे। जंगलों की झाड़ियों एवं वृक्षों की शाखाओं को जाले में बुनते, भिन्न भिन्न प्रकार की मकड़ियों को देख आप विस्मित हो जायेंगे।
नेफिला पिलिपेस मकड़ी जंगलों में बहुतायत में पायी जाती हैं। मादा मकड़ी अपेक्षाकृत बड़ी होती है। ३० से ५० मिलीमीटर के धड़ के साथ इसका सम्पूर्ण आकार २० सेंटीमीटर तक हो सकता है। वहीँ नर मकड़ी का धड़ केवल ५ से ६ मिलीमीटर तक ही होता है। जाले बुनने वाली मकड़ियों में इस प्रजाति की मकड़ियां सर्वाधिक विशाल होती हैं। इसके सुनहरे लंबवत जाल पर अनियमित आकार की जालियां होती हैं जो असममित होती हैं। यह विश्व की सर्वाधिक विशाल मकड़ियों में से एक है।
अर्गिओपे एमुला अथवा अंडाकार सेंट एंड्रू क्रॉस मकड़ी ऊष्णकटिबंधीय घास के मैदानों में पाए जाने वाली विशिष्ट मकड़ी है। ये मकड़ियां जब जाला बुनती हैं तब उन पर टेढ़ी-मेढ़ी वक्र रेखाएं बनाती हैं। छद्मावरण की भूमिका निभाते इस जाले के कारण ही इस मकड़ी को क्रॉस मकड़ी कहा जाता है।
फनल मकड़ी अथवा कीप मकड़ी द्वारा बुने जाल भी आकर्षक होते हैं। आप सोच में पड़ जाते हैं कि क्या इन्ही से ही कीप नाली की आकृति का आरम्भ हुआ था?
कीट
जंगल सफारी के समय, विशेषकर झीलों एवं जलनिकायों के समीप, आप विभिन्न प्रकार के कीट, पतंगे, कृमि एवं कुकुर्मुत्ते देखेंगे।
जंगली पुष्प
ऋतु के अनुसार जंगल में आप कई प्रकार के जंगली पुष्प देखेंगे, जैसे दुर्लभ एवं अनोखे जंगली आर्किड इत्यादि।
जंगल सफारी के प्रकार
जीप सफारी
जीप द्वारा राष्ट्रीय उद्यानों में सफारी करना, जंगल के जीवन का आनंद उठाने का सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। अधिकतर जंगल सफारी योजनाबद्ध रीत से प्रातःकाल एवं सान्झबेला में किये जाते हैं। सफारी का सही समय राष्ट्रीय उद्यान के पर्यावरण एवं वहां के नियमों पर निर्भर करता है। मेरी सलाह है कि आप अपनी सफारी पूर्व नियोजित कर लें क्योंकि अधिकतर प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यानों में वहां पहुंचकर टिकट प्राप्त नहीं हो पाता।
नौका सफारी
देश में कई ऐसे राष्ट्रीय उद्यान हैं जो नदी, तालाब अथवा ऐसे ही किसी जल स्त्रोत के समीप स्थित हैं। ऐसे कुछ राष्ट्रीय उद्यानों में नौका द्वारा भी सफारी करने का विकल्प उपलब्ध होता है। आप नौका में बैठकर अपने आसपास हरे भरे जंगल देख सकते हैं।
नौका सफारी पक्षियों के अवलोकन के लिए अति-उपयुक्त है क्योंकि पक्षी बहुधा जल स्त्रोत के समीप ही विचरण करते हैं। रही बात जंगली जानवरों की, तो वे जल पीने अथवा जल में बैठकर शीतल होने के लिए इन स्त्रोतों के समीप आते ही हैं।
रात की सफारी
निशाचर जंगली जानवरों एवं पक्षियों को देखने के लिए रात की सफारी सर्वोत्तम विकल्प है। ये जानवर आसानी से नहीं दिखाई देते। मुझे स्मरण है, ऐसे ही एक सफारी में हमें दो भालू दिखे थे। रात में उनकी आँखें चमक रही थीं।
रात की सफारी अनिवार्य रूप से जीप की सवारी होती है। यह सफारी प्रतिबंधित वन क्षेत्र की बाहरी सीमा पर स्थित मार्गों अथवा बफर क्षेत्रों पर ही की जाती है।
पैदल सफारी
आप अचरज में आ गए? जी हाँ! कई राष्ट्रीय उद्यानों में पैदल सफारी करने की अनुमति दी जाती है। इनमें सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान एक है। इस सफारी में आपके साथ वन पथप्रदर्शक, प्रकृतिविद एवं वन सहायकों का दल भी चलते हैं। वन प्रदर्शक को ना केवल जंगल के भीतर की पगडंडियों का ज्ञान होता है, वहां के जानवरों एवं पक्षियों का भी ज्ञान होता है। वे इन्हें ढूँढने में अत्यंत निपुण होते हैं। जंगल में उगती वनस्पतियों एवं वृक्षों की जानकारी भी वे रखते हैं।
यदि आप जिज्ञासु हैं तो उनसे एवं इन जंगलों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। यह सफारी भी मुख्य वन में नहीं की जाती, बल्कि जंगल की बाहरी सीमा अथवा बफर क्षेत्र में की जाती है। चूंकि यह सफारी पैदल की जाती है, पैरों में आरामदेह जूते एवं सर पर टोपी अवश्य लें।
हाथी पर सफारी
हाथी पर सफारी अब कुछ ही स्थानों पर कराई जाती है। मैंने हाथी पर सफारी का आनंद पश्चिम बंगाल के जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान में उठाया था। यह अपने आप में एक अनोखी सफारी थी। एक अद्भुत अनुभव था। इतनी ऊंचाई से जंगल का दृश्य अत्यंत रोमांचक होता है। ऊंची-नीची धरती पर हाथी का इतनी आसानी से चलना आश्चर्यजनक है।
अचानक मैंने अनुभव किया कि हम ऊंचे ऊंचे घास के मैदानों पर चल रहे थे। हमसे भी ऊंचे इन घास के बीच से केवल हाथी की पीठ पर बैठ कर ही जा सकते हैं। मध्यप्रदेश के बांधवगड राष्ट्रीय उद्यान में जीप सफारी के साथ हाथी सफारी भी कराई जाती है। हाथी द्वारा बाघ को अत्यंत समीप से देखा जा सकता है।
जंगल सफारी के लिए सर्वोत्तम राष्ट्रीय उद्यान
भारत के कई जंगलों में मैंने सफारी की है। अब भी कई राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीव अभयारण्यों के दर्शन शेष हैं। अपने द्वारा किये गए जंगल सफारी में से मुझे जो सर्वोत्तम प्रतीत हुए, उनके विषय में यहाँ उल्लेख करना चाहती हूँ। इन्हें समझ कर कम से कम २-३ जंगल सफारी चुनिए जो भिन्न अनुभव प्रदान करने में सक्षम हैं। अपनी आगामी अवकाश में आप उन जंगल सफारी में से एक अवश्य कीजिये।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान – मध्य प्रदेश
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान अर्थात् कान्हा बाघ संरक्षण क्षेत्र के जंगल में ही सर्वप्रथम मुझे जंगल के बाघ को अपने जंगली परिवेश में देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। मध्य प्रदेश राज्य के १९०० वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पसरे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में मध्य भाग एवं बाहरी भाग सीमांकित है। कहा जाता है कि कान्हा में बाघ के दिखने की संभावना सर्वाधिक है।
कान्हा का बाघों में बाघ, जिसे प्रेम से मुन्ना बुलाया जाता है, सर्वाधिक मित्रवत बाघ है। वह पर्यटकों से अत्यंत सहज है। वह हमारी जीप के समीप से शान्तिपूर्वक पदचाप करता निकल जाता था, हमारे मार्ग को काटता हुआ उस पार चला जाता था तथा अपनी जंगली प्रणाली से अपना क्षेत्र सीमांकित करता था। इस प्रकार वह पर्यटकों को आनंदित कर देता था।
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कान्हा राष्ट्रीय उद्यान बारहसिंघों के लिए भी प्रसिद्ध है। इनके साथ साथ कान्हा में कई अन्य प्रकार के जंगली जानवर, पक्षियों की लगभग ३०० प्रजातियाँ तथा लगभग १००० प्रकार के पुष्पीय पौधे हैं।
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सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान – मध्य प्रदेश
जीप सफारी, नौका सफारी, पदयात्रा सफारी एवं रात्रि सफारी, इन सब सफारी का अप्रतिम आनंद हमने मध्य प्रदेश के इस सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान व बाघ संरक्षित क्षेत्र में उठाया। १४०० वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पसरे इस उद्यान के कई भाग हैं। यहाँ का एक अन्य विशेष आकर्षण है देनवा नदी का अप्रवाही जल। इस जल पर नौका विहार का आनंद लेते हुए आप प्रतिबंधित वन क्षेत्र के भीतर निर्बाध प्रवेश कर सकते हैं।
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गाँव के समीप, वन के सीमावर्ती क्षेत्रों में आप पक्षी दर्शन का आनंद उठा सकते हैं। इसके लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त कर, प्रातःकालीन पक्षीदर्शन अवश्य करें। हम जिस रेसॉर्ट में ठहरे थे, उसके उद्यान में हमने अनेक तितलियों को भी देखा। नवम्बर का महीना होने के कारण हमें कई आकर्षक रंगबिरंगी तितलियाँ दिखीं।
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पेंच राष्ट्रीय उद्यान – मध्य प्रदेश
पेंच राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ संरक्षित क्षेत्र का नाम पेंच नदी पर रखा गया है जो इस जंगल के मध्य से बहती है। इस उद्यान में भी बाघ के दिखने की संभावना अत्यधिक है।
इस जंगल की प्रसिद्ध रानी बाघिन, जिसे प्रेम से कॉलरवाली बाघिन कहा जाता है, इस जंगल का मुख्य आकर्षण है। कॉलरवाली बाघिन ने अब तक २२ से भी अधिक शावकों को जन्म दिया है। यह अपने आप में एक इतिहास है। कुछ का मानना है कि कदाचित उसके २६ शावकों को जन्म दिया था। कॉलरवाली बाघिन भी पर्यटकों से अत्यंत सहज एवं निर्भय है। इसी कारण कई लोगों ने उसे अपने शावकों के संग अत्यंत समीप विचरण करते देखा। उन पर्यटकों में मैं भी एक हूँ।
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पेंच राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश राज्य के दक्षिणी सीमा पर स्थित है जहां वह महाराष्ट्र राज्य से जुड़ता है। इस उद्यान का ७५० वर्ग कि.मी. भाग मध्य प्रदेश में तथा ७०० वर्ग कि.मी. भाग महाराष्ट्र में है।
सफारी के समय आप पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ यहाँ देख पायेंगे। इस उद्यान के सीमावर्ती गावों में भी आप कई प्रकार के पक्षी देख सकते हैं।
पेंच में मेरी सफारी के समय जो पक्षी मैंने देखे उनमें मुख्य आकर्षण थे, पीले सर वाला कठफोड़वा तथा भारतीय उल्लुओं का जोड़ा।
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पेंच राष्ट्रीय उद्यान एक अन्य आकर्षण था वृक्ष के ऊपर बना भव्य अतिथि कक्ष।
आसाम का नामेरी राष्ट्रीय उद्यान
आसाम एवं अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित नामेरी राष्ट्रीय उद्यान लगभग २०० वर्ग कि.मी के क्षेत्र में पसरा हुआ है। जिया भोरोली नदी एवं उसकी सहायक नदियाँ इसका पोषण करती हैं। नामेरी के उत्तर-पूर्वी छोर पर, अरुणाचल प्रदेश राज्य के भीतर पाखुई वन्यजीव अभ्यारण्य है। ये दोनों जुड़े अभ्यारण्य जंगली पशु-पक्षियों के लिए भरपूर साधन प्रदान करते हैं।
उत्तर-पूर्वी राज्यों के भ्रमण के समय मेरे पास समय की किंचित तंगी थी। सीमित समय में हम केवल नामेरी इको कैंप से जिया भोरोली नदी तक की प्रातःकालीन सफारी ही कर पाए। मुझे विश्वास है नामेरी राष्ट्रीय उद्यान में इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ था जो मैं देख नहीं पायी थी। नामेरी राष्ट्रीय उद्यान का प्रमुख आकर्षण हाथी हैं।
मध्य प्रदेश का बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में विश्व के सर्वाधिक बाघों की उपस्थिति मानी जाती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि आप यहाँ सफारी करते समय बाघ नहीं देख पाए तो यह आपका दुर्भाग्य होगा। मेरे विषय में यह सत्य सिद्ध हुआ। मैंने ताला एवं मगधी क्षेत्र में ३ सफारी किये किन्तु मैं बाघ नहीं देख पायी। परन्तु मैं निराश नहीं हुई। मैंने जंगल के अन्य आकर्षणों की ओर ध्यान केन्द्रित किया।
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४५० वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में पसरा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान का नामकरण बांधवगढ़ नामक एक प्राचीन दुर्ग पर किया गया है। इस उद्यान में स्तनपायी पशुओं की लगभग ३७, पक्षियों की ३५० तथा तितलियों की ८० प्रजातियाँ पायी जाती हैं। यह बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान तथा बाघ संरक्षित क्षेत्र को जीप व हाथी सफारी का उत्तम स्थान बनाता है।
बांधवगढ़ एक समय जीवित दुर्ग था। अतः इसका एक संपन्न इतिहास एवं विरासत है।
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पश्चिम बंगाल का जल्दापारा राष्ट्रीय उद्यान
उत्तरी बंगाल क्षेत्र में हिमालय की तलहटी में जल्दापारा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। यह एकल सींग वाले गेंडे के लिए प्रसिद्ध है। २०० वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पसरा यह राष्ट्रीय उद्यान कई प्राकृतिक आरक्षित क्षेत्रों के समीप है, जैसे चिलापाटा नामक हाथी गलियारा, बुक्सा बाघ संरक्षित क्षेत्र तथा गोरुमारा राष्ट्रीय उद्यान।
बंगाल पर्यटन का होल्लोंग टूरिस्ट लॉज इस जंगल में रहने का सर्वोत्तम स्थान है। यहाँ से आप इसके समक्ष बहती छोटी सी नदी के उस पार एकल सींग वाले गेंडे, गौर, जंगली सूअर तथा हिरण देख सकते हैं। सैकड़ों पक्षी इसके ऊपर मंडराते रहते हैं।
होल्लोंग टूरिस्ट लॉज इकलौता स्थान है जहां जंगल में मुझे जीप सफारी के साथ हाथी सफारी का भी भरपूर आनंद प्राप्त हुआ।
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जी हाँ! रात होते ही एकल सींग वाले गेंडे होल्लोंग टूरिस्ट लॉज के समीप तक आ जाते थे। इससे पूर्ण इतने समीप से मैंने कभी किसी जंगली जानवर को नहीं देखा था।
उत्तराखंड का राजाजी राष्ट्रीय उद्यान
८०० वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में पसरा राजाजी राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड में हिमालय के चरणों में स्थित है। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का नामकरण भारतरत्न सी. राजगोपालचारी के नाम पर किया गया है जो भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। हाथी, हिमालयी वन्य जीवन तथा पक्षी दर्शन के लिए यह उद्यान सर्वोत्तम राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। भारत में पक्षियों की जितनी भी प्रजातियाँ हैं, उनमें से कम से कम एक तिहाई आप यहाँ एक उद्यान में ही देख सकते हैं।
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भरपूर समय साथ लेकर यहाँ आईये तथा शांतिपूर्वक इस उद्यान का आनंद उठाईये।
तेलंगाना का पोचरम अभयारण्य
पोचरम बाँध द्वारा सृजित पोचरम झील पर इस अभयारण्य का नामकरण किया गया है। लगभग १०० वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पसरा तेलंगाना का यह अभयारण्य अपेक्षाकृत छोटा है। आप इस जंगल की पगडंडियों पर पदयात्रा करते हुए कई हिरण एवं पक्षी देख सकते हैं। यह अभयारण्य हैदराबाद से लगभग ४० कि.मी. की दूरी पर ही स्थित है। अतः आप हैदराबाद से दिवसीय यात्रा कर सकते हैं।
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राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर पक्षी अभयारण्य के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। यहाँ आप पक्षियों की लगभग ३७० प्रजातियाँ देख सकते हैं। २९ वर्ग कि.मी. में पसरे इस दलदली क्षेत्र में कई प्रवासी पक्षी डेरा डालते हैं। पुष्पों की ३७९ प्रजातियाँ देख सकते हैं। सारस, नीलगाय, सियार, अजगर इत्यादि भी देख सकते हैं।
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भरतपुर अभयारण्य के भीतर पक्के मार्ग हैं जिन पर सूर्योदय से सूर्यास्त के भीतर सफारी की अनुमति दी जाती है। पैदल, सायकल, घोड़ागाड़ी तथा सायकल रिक्शा द्वारा पर्यटक इस अभयारण्य का अवलोकन कर सकते हैं। हमने सर्वप्रथम सायकल रिक्शा द्वारा अभयारण्य की सफारी की। तत्पश्चात अभयारण्य के भीतर ११ कि.मी. लम्बे मार्ग पर पदयात्रा करते हुए अभयारण्य का सविस्तार अवलोकन किया। यदि आप में सहनशक्ति है तो इस अभयारण्य को जानने हेतु पैदल सफारी ही सर्वोत्तम विकल्प है।
आसाम का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान युनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व विरासती स्थल है जहां विश्व के लगभग दो-तिहाई एकल सींग गेंडों का वास है। इनके अलावा बाघ, हाथी, जंगली दलदलीय भैंसों इत्यादि के लिए भी यह महत्वपूर्ण स्थान है। ८०० वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पसरा यह राष्ट्रीय उद्यान आसाम के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। एक एकल सींग मादा गेंडे को उसके शावक के संग हमारे जीप के अत्यंत समीप देखने का सौभाग्य हमें काजीरंगा में ही प्राप्त हुआ था। यहाँ ३-४ क्षेत्र हैं जहां प्रातःकालीन एवं दोपहर की जीप सफारी कराई जाती है। हाथी की सवारी करते हुए भी सफारी का आनंद उठाया जा सकता है।
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काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान को आड़ी-तिरछी रखाओं में कई नदियाँ काटती हैं। इनमें ब्रह्मपुत्र नदी प्रमुख है।
राजस्थान का सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ संरक्षित क्षेत्र
८६६ वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैला यह अभयारण्य राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है। यहाँ हमने जीप सफारी की थी किन्तु बाघ देख पाने में दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुए थे। फिर भी हमने यहाँ भरपूर आनंद उठाया। हमने यहाँ कई पक्षी एवं जल स्त्रोतों के समीप कई मगरमच्छ ढूंडे। घने जंगल की छत्रछाया के नीचे से गाड़ी चलायी जहां सूर्य की किरणें भी क्वचित ही पहुँच पाती हैं।
गोवा का बोंडला अभयारण्य
८ वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पसरा, गोवा राज्य के उत्तर-पूर्वी परिक्षेत्र में स्थित बोंडला अभयारण्य में एक चिड़ियाघर, एक मृगवन, एक वनस्पति उद्यान तथा भरपूर पक्षी अवलोकन के सुअवसर हैं। इस छोटे से अभयारण्य में केवल पैदल चलकर ही आनंद लिया जा सकता है। अतिउत्साही पर्यटकों के लिए अभयारण्य जंगल में पैदल यात्रा भी आयोजित करता है।
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उत्तराखंड का जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान
उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में लगभग १३१८ वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैला यह जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत के प्राचीनतम राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ संरक्षित क्षेत्र में से एक है। पर्यटक यहाँ मुख्यतः बाघ एवं जंगली हाथी देखने आते हैं। यहाँ स्तनपायी जानवरों की लगभग ५० प्रजातियाँ एवं पक्षियों की लगभग ५८० प्रजातियाँ हैं।
यहाँ प्रमुख रूप से जीप सफारी कराई जाती है जो उद्यान के कई भागों में पृथक रूप से आयोजित की जाती हैं। चूंकि यह एक अत्यंत फैला हुआ उद्यान है, यहाँ कई बार सफारी के समय बाघों के दर्शन नहीं हो पाते। मैं भी उनमें से एक हूँ। अतः मैं आपको एक से अधिक सफारी करने का सुझाव देती हूँ। पैदल सफारी की अनुमति केवल बफर जोन में ही है। यहाँ की वनस्पति, जीव एवं जंतुओं के अवलोकन हेतु पैदल सफारी सर्वोत्तम उपाय है।
कर्नाटक का बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान
कर्नाटक राज्य के चामराजनगर जिले में लगभग ९१२ वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पसरा बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ संरक्षित क्षेत्र कदाचित दक्षिण भारत का सर्वोत्तम राष्ट्रीय उद्यान है। इस उद्यान के आसपास स्थित नागरहोले एवं मदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान, वायनाड अभयारण्य तथा निलगिरी संरक्षित जैव मंडल इस सम्पूर्ण क्षेत्र को भारत में बाघों एवं हाथियों का विशालतम संग्रह बनाता है। जीप एवं बस द्वारा यहाँ जंगल सफारी आयोजित की जाती है।
यह उद्यान वनस्पतियों, जीव-जंतुओं पक्षियों तथा तितलियों से परिपूर्ण है।
कर्नाटक का दान्डेली अभयारण्य
मलाबारी चितकबरे धनेश एवं मलाबारी विशाल गिलहरियों से भरा दान्डेली अभयारण्य कर्नाटक के पश्चिमी घाट के ऊपर स्थित है। उत्तरी कन्नड़ जिले के ८६६ वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैला यह अभयारण्य एक बाघ संरक्षित एवं हाथी संरक्षित क्षेत्र है। यहाँ जीप सफारी करते समय हमने कई गीदड़ों एवं नेवलों को ढूंडा। एक दर्शन स्थल से पश्चिमी घाट के घने विशाल जंगल की हरियाली देखकर दंग रह गए। आप यहाँ जीप सफारी ले सकते हैं जो सूर्योदय से पूर्व तथा संध्या के समय की जाती हैं।
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इस अभयारण्य के समीप से काली नदी बहती है। बाँध के जल से पोषित इस नदी में १२ महीने भरपूर जल बहता है। इसी कारण यह नदी एवं इसकी झीलें कई जलक्रीडाओं का केंद्र भी है। आप जंगल सफारी के साथ इन जल क्रीडाओं का भी आनंद ले सकते हैं। पक्षी अवलोकन के लिए भी यह उत्तम स्थान है। यहाँ आप २००से भी अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ ढूंड सकते हैं।
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उत्तराखंड का बिनसर अभयारण्य
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में अल्मोड़ा से लगभग ३५ कि.मी. दूर स्थित बिनसर अभयारण्य का क्षेत्रफल लगभग ४५ वर्ग कि.मी. है। बिनसर के जंगल में जीप सफारी एवं पैदल सफारी दोनों उपलब्ध है। हमने यहाँ पैदल सफारी की थी। इस जंगल को जानने के लिए यहाँ की वनस्पतियों एवं पशु-पक्षियों के मध्य पैदल सफारी सर्वोत्तम है। बिनसर अभयारण्य हिमालय दर्शन के लिए भी अत्यंत प्रसिद्ध है। अभयारण्य के भीतर स्थित कुमाऊं मंडल विकास निगम के अतिथिगृह से एवं जीरो-पॉइंट से हिमालय का अकल्पनीय दर्शन प्राप्त होता है।
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पहाड़ पर स्थित होने के कारण इस अभयारण्य में संकरी पगडंडियाँ हैं। यहाँ आप हिमालयी जंगली जानवरों को तो देख ही सकते हैं, साथ ही पहाड़ी शुद्ध वायु में पनपते वृक्ष एवं वनस्पतियों के भी दुर्लभ दर्शन कर सकते हैं। इस अभयारण्य में पक्षियों की भी कई प्रजातियाँ दिख जाती हैं।
जंगल सफारी का सही समय
किसी भी जंगल के भीतर सफारी करने का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल, संध्या तथा रात्रि का समय होता है। ऐसा देखा गया है कि प्रातःकाल सूर्योदय के समय अधिकतर जंगली प्राणियों के दुर्लभ दर्शन हो जाते हैं। रात की सफारी में निशाचर प्राणियों को देखा जा सकता है।
जंगल सफारी के लिए कुछ आवश्यक जानकारियाँ:
• जंगल सफारी के समय कुछ भी खाद्य पदार्थ अपने साथ ना ले जाएँ।
• जंगल में भ्रमण केवल वन विभाग कर्मियों एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों के संग ही करें।
• जंगल सफारी करने से पूर्व वन विभाग के अनुमति लेकर उनके दिशा-निर्देश में ही सफारी करें।
• जंगल में स्वयं भ्रमण करने कदापि ना निकलें।
• चटक एवं चमकीले रंग के वस्त्र धारण ना करें। इससे जंगली प्राणी डरकर दूर चले जाते हैं अथवा छुप जाते हैं। जंगल के परिवेश से मिलते जुलते वस्त्र ही पहनें।
• जंगल में गाना-बजाना ना करें। ना ही किसी अन्य प्रकार का शोर करें। इससे भी प्राणी दूर भाग जायेंगे। जंगल के संगीत पर ध्यान केन्द्रित करें। यह आपको अन्यथा नहीं सुनायी देंगे।
• जंगल सफारी के समय दूरबीन अवश्य साथ ले लें। इससे आप जंगली परिवेश एवं यहाँ के जीव-जंतुओं को समीप से देख सकेंगे।
• जानवरों को त्रास ना दें, ना ही उन्हें कुछ खिलाएं।
• जानवरों के समीप जाने का प्रयास ना करें। जानवरों के अपने सुरक्षित घेरे होते हैं। उस घेरे के समीप जाने पर वे भाग सकते हैं तथा कुछ दशाओं में वे आक्रामक भी हो सकते हैं। उनके क्षेत्र का आदर दें।
• जंगलों की पगडंडियाँ बहुधा ऊंची-नीच, घुमावदार एवं संकरी होती हैं। इन पर जीप द्वारा भ्रमण करते समय स्वयं का ध्यान रखें ताकि जीप के किसी भाग से आपको चोट ना पहुंचे। चौकस रहें तथा जीप की डंडी को कसकर पकड़ें।
• जंगल सफारी की जीप अधिकतर बंटवारे के आधार पर दिया जाता है। यदि आप समूह में भ्रमण कर रहें हैं तो पूर्ण जीप आपको दी जा सकती है।
• जीप सफारी करने से पूर्व इसके शुल्क की जानकारी प्राप्त कर लें। साथ ही इनकी अग्रिम बुकिंग कर लें ताकि वहां जाकर निराशा ना हो।
• अन्य सफारी के विषय में भी पूर्व जानकारी एकत्र करें। अपनी इच्छानुसार सफारी का चयन करें।
• प्रातःकालीन एवं रात्रि सफारी के समय शीतल वायु असहनीय हो सकती है। अतः सफारी के समय गर्म वस्त्र साथ ले लें। दोपहर की सफारी के समय टोपी भी अवश्य लें।
• जंगली जानवर अपने परिवेश में अपने नियमों से जीवन जीते हैं। अतः किसी भी जंगल में इन जानवरों के दिखने की गारंटी कोई नहीं दे सकता है। यदि आप बाघ, तेंदुआ अथवा अन्य दुर्लभ प्राणी ना देख पायें तो निराश ना होइये। जंगल के अन्य आकर्षणों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन करें। शहरी परिवेश में यह असंभव है।
छुट्टियों में जंगल सफारी की योजना
सामान्यतः वर्षा ऋतु में सभी राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्य पर्यटकों के लिए बंद होते हैं। भारत में वर्षा ऋतू की समयावधि विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न होती है। अन्य समय में यहाँ सप्ताह में एक दिन तथा किसी राष्ट्रीय/स्थानीय उत्सवों में छुट्टी हो सकती है। अतः वन विभाग से प्रवेश की अग्रिम अनुमति एवं सफारी बुकिंग अवश्य प्राप्त कर लें। आप यह उनके वेबस्थल से प्राप्त कर सकते हैं अथवा आपने टूर ऑपरेटर या अपने होटल द्वारा भी इसकी व्यवस्था कर सकते हैं।
सफारी करने के लिए आपको राष्ट्रीय उद्यान का प्रवेश शुल्क, जीप का किराया तथा परिदर्शक का शुल्क देना पड़ेगा। वन्य जीवन प्रशिक्षण प्राप्त परिदर्शक आपको वन्य जीव-जंतु देखने में अत्यंत सहायक होते हैं। साथ ही वे आपको वन्य जीवन के विषय में आवश्यक जानकारी भी देते हैं।
प्रातःकालीन एवं दोपहर की जीप सफारी की व्यवस्था सामान्यतः उपलब्ध होती है। कई अभयारण्यों में हाथी सफारी, नौका सफारी, रात्री सफारी तथा पैदल सफारी की भी व्यवस्था होती है। इनके विषय में एवं इनके समय की पूर्ण जानकारी अवश्य प्राप्त करें। तत्पश्चात अपनी इच्छानुसार सफारी का चयन कर अग्रिम बुकिंग कर लें। सफारी के समय आपका परिचय पत्र तथा राष्ट्रीयता प्रमाण साथ रखें।
भारत के विभिन्न भौगोलिक भागों में भिन्न वन क्षेत्र हैं तथा उनमें भिन्न भिन्न ऋतुओं में सफारी की समयावधि भी भिन्न होती हैं। सफारी की योजना बनाते समय इन सब तथ्यों का अवश्य ध्यान रखें।
जंगल सफारी करने के पश्चात अपना अनुभव हमसे बांटना ना भूलें।
Beautiful detailed and well arranged article. Excellent job.
धन्यवाद शैलेश जी
अनुराधा जी बहुत काम की जानकारी दी है जंगल प्रेमियों के लिए। जंगल सफारी करने की मेरी बहुत इच्छा है। परंतु हर साल किसी न किसी कारण की वजह से नेशनल पार्क तक पहुँचने के बाद भी जा नही पाता। जैसे अभी हम सब परिवार वाले हरिद्वार गये थे। तो रास्ते में राजाजी राष्ट्रीय उद्यान दिखा था। तब मेरी छोटी बहन व मेरी बहुत इच्छा हुई विजिट करने की।