वाराणसी का जंगमवाड़ी मठ १० लाख से अधिक शिवलिंगों का संग्रह

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जंगमवाडी मठ - काशी
जंगमवाडी मठ शिवलिंग – काशी

वाराणसी अथवा काशी एक ऐसा नगर है जहां भारत के प्रत्येक हिन्दू समुदाय हेतु निर्धारित स्थान है एवं वहाँ उनके मंदिर एवं मठ स्थापित हैं। इन समुदायों के सदस्य इन मंदिरों एवं मठों के दर्शन व पूजा अर्चना करने हेतु यहाँ पधारते हैं। कुछ आराधक यहाँ कुछ दिन ठहर कर अपने आराध्य के सानिध्य का आनंद उठाते हैं। मेरी पिछली वाराणसी यात्रा में मुझे ऐसे ही एक स्थल, जंगमवाड़ी मठ, के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जंगम अर्थात शिव को जानने वाला तथा वाड़ी का अर्थ है रहने का स्थान। यह एक अतिविशिष्ट मठ है जिसके अनुयायी अधिकतर महाराष्ट्र एवं कर्नाटक से आते हैं। वीर शैव सिद्धांत का पालन करने वाले ये आराधक केवल शिवलिंग की ही आराधना करते हैं। शिवलिंग के प्रति इनकी आस्था एवं निष्ठा अपरंपार है। इसका अनुभव करने के लिए इस मठ का दर्शन करना आवश्यक है।

जंगमवाड़ी का इतिहास

जंगमवाड़ी मठ के रंग भरे द्वार
जंगमवाड़ी मठ के रंग भरे द्वार

जंगमवाड़ी मठ वाराणसी के प्राचीनतम मठों में से एक है। साहित्यों के अनुसार, हिन्दू कालसीमा के चार युगों में से पहले युग, सतयुग से इसका सम्बन्ध है। वहीं लिखित ऐतिहासिक आलेखों के अनुसार यह मठ ८ वीं. शताब्दी में निर्मित है। हालांकि इसके निर्माण की सटीक तिथि प्रमाणित करना कठिन है। कहा जाता है कि राजा जयचन्द ने इस मठ के निर्माण हेतु भूमि दान में दी थी। तत्पश्चात यह मठ ८६ जगत्गुरुओं की अटूट वंशावली का साक्षी है। इस मठ के वर्तमान गुरु, पीठाधिपति जगत्गुरू श्री चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामीजी हैं। इस मठ से सम्बंधित एक सुखद तथ्य यह भी है कि इस मठ में कई गुरुमाएँ भी थीं, जिन में धर्मगुरु शर्नम्मा प्रमुख थीं।

जंगमवाड़ी के दर्शन

जंगमवाड़ी मठ का मुख्य द्वार
जंगमवाड़ी मठ का मुख्य द्वार

मठ के प्रवेशद्वार पर पहुँच कर मैं कुछ क्षण इसके नाम पट्टिका को निहारती रही। इस पर बड़े बड़े अक्षरों में श्री १००८ जगद्गुरू विश्वासध्य ज्ञानसिंहासन जंगमवाड़ी मठ लिखा था। जंगमवाड़ी मठ हिंदी, कन्नड़ एवं अंग्रेजी तीन भाषाओं में लिखा हुआ था। यह मठ ज्ञान सिंहासन अथवा ज्ञानपीठ रूप में भी जाना जाता है। इसका अर्थ भी वही है, शिव को जानने वालों का आश्रम अथवा निवास।

जंगमवाड़ी मठ के वीर शैव

शिवलिंग - जंगमवाड़ी मठ - वाराणसी
शिवलिंग – जंगमवाड़ी मठ – वाराणसी

मैंने मठ के कार्यालय में वीर शैव समुदाय की एक कुलीन स्त्री से भेंट की जो मठ के विभिन्न क्रियाकलापों का निरिक्षण कर रही थी। मैंने उनसे वीर शैव उपासकों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रश्न किये। उन्होंने मुझे अवगत कराया कि इस समुदाय के सदस्य केवल शिवलिंग की आराधना करते हैं तथा अन्य किसी देव-दवियों अथवा पंथ की उपासना नहीं करते। वे जाति भेद में भी विश्वास नहीं करते।

स्फटिक एवं पत्थर के शिवलिंग
स्फटिक एवं पत्थर के शिवलिंग

उन्होंने मुझे यह भी बताया कि इस समुदाय की कोई भी स्त्री जब गर्भ धारण करती है तब वह एक लघु शिवलिंग अपने उदर पर बांधती है। उनकी मान्यता है कि यह श्याम वर्ण शिवलिंग गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा करता है। प्रसव उपरांत वही शिवलिंग नवजात शिशु के गले में लटकाया जाता है। शिशु के सर्व अहम् संस्कारों में उस लिंग का अत्यधिक महत्त्व होता है। उन्होंने मुझे काले पत्थर एवं स्फटिक के लघु शिवलिंग दिखाए जिन्हें इस समुदाय के सदस्य सदैव अपने समीप रखते हैं।

सिद्धांत शिखामणि

जंगमवाड़ी मठ के युवा स्वामी
जंगमवाड़ी मठ के युवा स्वामी

सिद्धांत शिखामणि उस तत्वज्ञान का नाम है जिसका वीर शैव समुदाय के सदस्य पालन करते हैं। भक्ति द्वारा मुक्ति, इसी ज्ञानसार की वे अनुशंसा करते हैं। यद्यपि भक्ति का प्रकार भक्त की अवस्था पर निर्भर करता है। इस सन्दर्भ में अधिक जानकारी प्राप्त करने हेतु ‘सिद्धांत शिखामणि’ पृष्ठ पढ़ें।

एक युवा स्वामीजी ने मुझे मठ का भ्रमण करवाया। उन्होंने मुझे मठ के प्रत्येक संभव कोनों में स्थापित शिवलिंगों के दर्शन कराये। अत्यंत मधुरता से उन्होंने मुझे अपने चित्र खींचने की भी अनुमति दी। मठ का भ्रमण एवं चित्रीकरण के उपरांत उन्होंने मुझे भोजन ग्रहण करने हेतु आमंत्रित किया। ज्ञात नहीं किन विचारों के आधीन होकर मैंने उनका आमंत्रण, नम्रता से ही सही, अस्वीकार कर दिया था। आज जब उन क्षणों का स्मरण होता है, तो विचारमग्न हो जाती हूँ कि मैंने मठ के भोजन का आस्वाद लेने का सुअवसर क्यों खो दिया था।

जंगमवाड़ी मठ के रंगीन द्वार
जंगमवाड़ी मठ के रंगीन द्वार

आज भी जब मैं इस मठ का स्मरण करती हूँ, मेरे मानसपटल पर मठ के रंगबिरंगी छटा से सज्ज प्रवेशद्वार छा जाते हैं। इनके हरे रंग की प्रभुत्वता को कहीं कहीं नीले रंग की छटा तोड़ती दिखाई पड़ती है। प्रत्येक प्रवेशद्वार के ऊपर एक शिवलिंग अवश्य दृष्टिगोचर होता है।

मठ में उपस्थित सर्व श्रद्धालु कन्नड़ अथवा मराठी भाषा में संवाद साध रहे थे। उनके हावभाव से यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि वे मठ के भीतर अत्यंत आश्वस्त एवं आनंदित अनुभव कर रहे थे। मठ के भीतर स्थित मंदिर के गर्भगृह में ऊंचे ऊंचे स्तंभों के मध्य एक शिवलिंग स्थापित है। मेरे अनुमान से मठ के प्रारम्भिक अवस्था में यही एक शिवलिंग यहाँ उपस्थित था। कालान्तर में अन्य शिवलिंगों को यहाँ स्थापित किया गया।

जंगमवाड़ी मठ के भीतर कई साधु एवं विद्यार्थी, वैदिक संस्कारों के अध्ययन हेतु निवास करते हैं।

यहाँ आयोजित किये जाने वाले भव्य उत्सवों में शिवरात्रि एवं दीपावली प्रमुख हैं।

जंगमवाड़ी मठ के शिवलिंग

जंगमवाड़ी मठ के छोटे बड़े शिवलिंग
जंगमवाड़ी मठ के छोटे बड़े शिवलिंग

जंगमवाड़ी मठ का सम्पूर्ण परिसर शिवलिंगों से अटा हुआ है। इनमें लघु शिवलिंगों की उपस्थिति प्राधान्यता से है। जैसे ही आप मठ के मुख भाग में पहुंचेंगे, आपकी दृष्टी शिवलिंगों की पंक्तियों को देखकर चौंधिया जायेंगी। चारों ओर सुव्यवस्थित ढंग से रखे शिवलिंगों की एक के बाद एक पंक्तियाँ हैं। यह पंक्तियाँ लम्बाई में भी एक के ऊपर एक आलों पर सजाई गयी हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो चारों ओर शिवलिंगों का अम्बार लगा हो। यहाँ कई कक्ष हैं जो शिवलिंगों से भरे हुए हैं।

मंदिर के भीतर भी प्रत्येक बड़ा शिवलिंग हजारों लघु शिवलिंगों से घिरा हुआ है।

जंगमवाड़ी मठ - लघु शिवलिंग
जंगमवाड़ी मठ – लघु शिवलिंग

आप अवश्य असमंजस में होंगे कि इतनी बड़ी संख्या में शिवलिंगों के संग्रह के पीछे क्या रहस्य है! इसके पीछे की कहानी यह है की कि इस मठ के अनुयायियों की आकस्मिक अथवा अकाल मृत्यु की स्थिति में उनकी आत्मा की शांति हेतु शिवलिंग दान किये जाते हैं। अर्थात् दिवंगत आत्मा की शान्ति हेतु पिंडदान के स्थान पर विधि-विधान से शिवलिंग दान किया जाता है। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस विचित्र परंपरा के चलते एक ही छत के नीचे दस लाख से भी अधिक शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं। इनमें से अधिकतर शिवलिंगों का दान श्रावण मास में किया जाता है जब वीर शैव अथवा लिंगायत भक्त दूर सुदूर शिवमंदिरों में पूजा अर्पित करने के लिए तीर्थयात्रा करते हैं।

मठ के भीतर अंततः कितने शिवलिंग?

शिवलिंग से भरे कमरे - जंगमवाड़ी मठ - काशी
शिवलिंग से भरे कमरे – जंगमवाड़ी मठ – काशी

प्रामाणिक रूप से यह आंका नहीं गया है कि ५०,००० वर्गमीटर में फैले इस मठ में अंततः कितने शिवलिंग हैं। यहाँ एक दो नहीं बल्कि कई लाख शिवलिंग विराजते हैं। जो शिवलिंग नष्ट होने लगते हैं उन्हें मठ में ही सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाता है।

जंगमवाड़ी मठ लोकप्रिय दशाश्वमेध घाट के समीप स्थित है जहां प्रत्येक संध्या प्रसिद्ध पारंपरिक गंगा आरती की जाती है। इस मठ तक पहुँचना कठिन नहीं है। कोई भी रिक्शा चालक आपको मठ तक आसानी से पहुंचा देगा।

यह एक अत्यंत अनोखा मठ है। अतः अपनी आगामी वाराणसी यात्रा के समय इस मठ के दर्शन अवश्य करें।

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अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

4 COMMENTS

  1. अनुराधा जी,
    आलेख मे प्रस्तुत छायाचित्रों से स्पष्ट है कि ८वीं शताब्दी में निर्मित इस अति प्राचीन मठ का रखरखाव आज भी कितना उम्दा है ! लाखो छोटे-बडे शिवलिंगों को इतने सुव्यवस्थित ढंग से एक स्थान पर संग्रहीत करना किसी अजुबे से कम नहीं ! आलेख , वीर शैव समुदाय की विभिन्न परम्पराओं से भी अवगत कराता है.
    वाराणसी भ्रमण का जब भी मौका मिलेगा,प्राचीन जंगमवाड़ी मठ के दर्शन अवश्य करेंगे. ज्ञानवर्धक जानकारी हेतू धन्यवाद.

    • धन्यवाद प्रदीप जी. भारत में इतना कुछ है की देखने जानने के लिए कुछ जनम लग जायेंगे. जितना देख पाती हूँ, चेष्टा रहती है की अपने पाठकों से साँझा कर सकूँ.

  2. आपने बिल्कुल सही कहा अनुराधा जी भारत को सही तरीके से देखने व जानने के लिये तो कुछ जन्म लग जायेंगे परन्तु आपके लेखों को विस्तार से पढ़ कर उन स्थानोंं को देखने की इच्छा प्रबल हो जाती है। आपका प्रयास अतुलनीय है। बहुत बहुत आभार…।।

    • चलिए शालिनी जी, निकालिए और देखना और समझना शुरू कीजिये इस नराले देश को।

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