मैंने भारत भर के राष्ट्रीय उद्यानों में अनेक सवारियां की हैं। इस सब वन्य जीवन की सफारियों के दौरान किसी बाघ को उसके प्राकृतिक परिवेश में देखने का भाग्य अब तक नहीं मिला था। और सच कहूँ , मुझे उनके सामने जाने में काफी डर लगता था। एक तरफ दिल नहीं चाहता की वह मेरे सामने आए, और दूसरी तरफ, जिज्ञासावश आँखें उन्हें ढूँदती भी रहती हैं। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के कारण मेरा यह भय भी दूर हो गया। यहां पर मेरी मुलाक़ात इस जंगल के मशहूर बाघ से हुई जिसे प्यार से सब मुन्ना बुलाते हैं।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का चमकता हुआ सितारा – मुन्ना बाघ
हमारी मुलाकात जून की तपती हुई दोपहर में इस उद्यान की दूसरी जंगल सफारी के दौरान हुई। जब मैं इस वन्य सफारी पर जाने के लिए गाड़ी में बैठी, तब तक मैंने बाघ दिखने की सारी आशाएँ छोड़ दी थी। आखिरकार, बांधवगढ़ में 3 सफारियों के बाद और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की सुबह की सफारी के बाद भी मैंने उन्हें नहीं देखा। यहां पर एक बात का उल्लेख मैं जरूर करना चाहूंगी कि मैंने इस जंगल और उसकी विभिन्नता का भरपूर आनंद उठाया। बाघों से मुलाक़ात न होने पर भी मुझे कोई शिकायत नहीं थी। हाँ, मन में यह कौतुहल अवश्य था कि इस बार भी हमें बाघ के दर्शन होंगे या नहीं।
हमारी जीप
जब हमारी जीप कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के निर्धारित मार्ग से जा रही थी, हमारे वन गाइड मित्र ने बड़े अधिकार से कहा की आज आपको बाघ जरूर दिखेगा। हम सब ने उसकी बात हंसी में टाल दी। हमें यह शब्द सुनने की आदत जो हो चुकी थी। हर गाइड हमें बाघ दिखाई देने की कहानियाँ सुनाकर हमारी आशाओं को बढ़ा देते थे। यह कहने पर भी कि हम बाघों को देखने के लिए उतावले नहीं हैं, फिर भी वे हठ करते हैं कि अगर आप इस वन में आए हैं तो आपको बाघ जरूर देखने चाहिए। हमारे गाइड ने ड्राईवर से वह रास्ता लेने को कहा जहां पर उन्हें सुबह के समय मुन्ना बाघ के दिखाई देने की सूचना मिली थी।
मैंने मन में सोचा कि आप कैसे कह सकते हैं कि कोई जानवर 4-5 घंटों बाद भी उसी जगह पर मिलेगा, जबकि वह जंगल में कभी भी कहीं भी घूम सकता है। उसी समय मुझे अपना मंत्र याद आया कि हमे स्थानीय ज्ञान को हमेशा सम्मान देना चाहिए।
मुन्ना बाघ को इसी उद्यान के एक वन गाइड का नाम दिया गया है। यहां के लगभग सभी बाघों के नाम रखे गए हैं और आम तौर पर उनके नामकरण के पीछे कोई दिलचस्प सी कहानी होती है।
मुन्ना की पहली झलक
एक जगह पर अचानक से हमने बहुत सारी जीपों को खड़े देखा। अब हमें एहसास हुआ की मुन्ना बाघ की सूचना विश्वस्त है। इन लोगों को जरूर पता होगा कि बाघ यहीं-कहीं आस-पास ही है। प्रत्येक जीप बारी-बारी से एक विशेष स्थान पर जाकर आगे बढ़ती थी। इन जीपों पर लगे कैमरे उस स्थान पर बन्दूक की गोलियों की तरह तस्वीरें खींच रहे थे। यानि बाघ जंगल में कहीं आस-पास ही है और किसी विशेष स्थान से ही दिखाई दे रहा है। समय रहते हमारी बारी आयी और मुन्ना से हमारी मुलाक़ात हुई। मुन्ना बाघ अपनी जगह पर बैठे-बैठे जम्हाई ले रहा था। वह उदास सा दिखाई दे रहा था, या शायद वह अभी-अभी नींद से जागा था।
मुन्ना सड़क से लगभग 10-15 मीटर की दूरी पर बैठा था, जहां से वह ठीक से नज़र भी नहीं आ रहा था। सभी लोगों द्वारा मुन्ना के दर्शन होने के बाद भी जीपें अभी भी वहीं खड़ी थी, जैसे किसी का इंतज़ार कर रही हो।
हमारे गाइड और ड्राईवर ने हमें बताया कि यह मशहूर बाग मुन्ना अभी-अभी नींद से जागा है और अब वह पूरे जंगल की लंबी सैर पर जाएगा। मेरा तर्कसंगत मन सोचने लगा कि कैसे ये लोग इतने निश्चित रूप से इतना सब जान सकते हैं, लेकिन बाद में मुझे लगा कि ये लोग उसे रोज़ देखते हैं और इसी कारण उसकी आदतों से भी जरूर परिचित होंगे। शायद यह मुन्ना की रोज़ की दिनचर्या होगी।
मुन्ना की चहलकदमी
कुछ ही मिनटों में यह सारी जगह उन्माद से भर गयी। मुन्ना कुछ देर सुस्ता कर उठ गया था। उसने पास के कुछ पेड़ों को नोचा और सुस्त आलसी गति से चलने लगा। जीपों ने आगे पीछे हो उसके लिए रास्ता बनाया। वह झाड़ियों से बाहर निकलकर वहां पर खड़ी जैतुनी रंग की जीपों को ताड़ने लगा। वहां पर मौजूद सभी लोग उसकी झलक पाने के लिए इकठ्ठा होने लगे। मुन्ना चलते-चलते पेड़ों के पास से गुजरते हुए, सड़क पर घूमते हुए अपने क्षेत्र का अंकन करने लगा। वह बीच-बीच में रुककर उत्सुकता से उसकी तस्वीरें खीच रहे लोगों को देख रहा था।
मुझे लगा जैसे उसने रोज़ पर्यटकों का सामना करते हुए तस्वीरों के लिए अच्छे से पोज करना भी सीख लिया है। या फिर वह हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है जैसा हम अपने बालकनी में बैठे पक्षियों के साथ करते हैं, जो कुछ समय के लिए आकर बैठते हैं और फिर चले जाते हैं। और हम उन्हें तब तक वहां पर बैठने देते हैं जब तक वे कोई बाधा न उत्पन्न करे।
शोर के कारण चिड़चिड़ाहट
मुन्ना बाघ को देखने के लिए लोग बहुत शोर कर रहे थे। जीपें उसके बहुत नजदीक जाती थीं तो उस समय उसके चेहरे पर चिड़चिड़ाहट साफ दिखाई देती थी। जैसे किसी वयस्क व्यक्ति के आस-पास बहुत सारे बच्चे शोर मचा रहे हो, जिसके कारण वह व्यक्ति चिड़चिड़ा सा हो जाता है। आप चाहते तो हैं कि वे चुप हो जाए, लेकिन आप उन्हें चुप कराने के लिए कुछ नहीं करते। एक पल ऐसा आया जब मुन्ना हमारी जीप से कुछ ही मीटर की दूरी पर था। उसने मेरी आँखों में आँखें डालकर मुझे देखा। मैं अपने साथ वाले यात्री को लगभग जीप से बाहर धकेलते हुए पीछे सरक गयी।
मैं भयभीत हुई कि शायद उसे मुझमें अपना अगला शिकार दिखाई दे रहा है और वह मुझे मारने की योजना बना रहा हैं। शुक्र है कि हमारी जीप वहां से आगे बढ़ी और मैं उसकी नज़रों से दूर हो गयी। तब जाकर मैंने राम नाम लिया और उसके बाद शांत बैठ कर उसे दूर से निहारा।
लंबी सैर के बाद मुन्ना बाघ थोड़ी देर के लिए बैठ गया और वापस उठकर सड़क के उस पार जहां पर जीप ले जाने की अनुमति नहीं है, उस ओर सैर के लिए निकल पड़ा। उसकी चाल एकदम जंगल के राजा की चाल थी। इससे यह स्पष्ट था कि यह उसका क्षेत्र है और यहां पर उसी का राज्य चलता है। बाकी सब को उसके लिए रास्ता बनाना पड़ता है। लगभग एक घंटे के लिए उसने बाघ सफारी पर आए हर व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर केंद्रित रखा। लोगों की आँखें सिर्फ और सिर्फ मुन्ना को ही देखना चाहती थीं।
मशहूर बाघ मुन्ना का विडियो
यह विडियो जरूर देखिये जो मैंने बाघ सफारी के दौरान लिया था।
बाघ की खास पहचान है उसके माथे पर साफ-साफ लिखा हुआ सी ए टी (कैट) और उसके ठीक नीचे पी एम लिखा हुआ है।
मुन्ना – कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण
हमें बताया गया कि यहां के वन गाइड पर्यटकों को सिर्फ मशहूर मुन्ना के ही इतने नजदीक जाने की इजाजत देते हैं क्योंकि, वे उसके व्यवहार से भलीभाँति परिचित हैं। वह बहुत बूढ़ा हो गया है और बेपरवाह है। उसे अपने आस-पास के लोगों से कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां के वन गाइड उसके साथ मित्र के जैसा व्यवहार करते हैं। उन्हें मुन्ना की आदतें, उसकी पसंद, नापसंद अच्छे से मालूम है। और क्यों न हो, आखिरकार मुन्ना की एक झलक पाने के लिए ही तो पर्यटक यहां पर आते हैं। जो लोग यहां की पर्यटन अर्थव्यवस्था के सहारे अपनी जीविका चलाते हैं, उनकी उपजीविका का यह प्रमुख स्त्रोत है।
मुन्ना जैसे बाघ ही हैं जो अपनी उपस्थिती से वन्य जीवन की सफारी पर आए लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं। चाहे कुछ लोग उसे देखकर थोड़े से डर भी जाएँ। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की इस बाघ सफारी के दौरान मुन्ना बाघ की एक झलक से जुड़ी न जाने कितनी स्मृतियाँ होगी जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
बाघ के इतने नजदीक जाकर तथा अपने आस-पास के मनुष्यों के साथ उसका व्यवहार देखकर जो सबसे बड़ी सीख जो मैंने सीखी वह यह है, कि आप मनुष्यों की तरह बाघों के हाव-भाव भी पढ़ सकते हैं। बाघ को देखने का सारा कौतुहल समाप्त होने के बाद यही बातें हैं जो हमेशा मेरे साथ रहेंगी। अगर आपको कभी भी बाघों को करीब से देखने का मौका मिले तो इस बात पर जरूर ध्यान दीजिये।
मुन्ना, तुम सच में एक चमकता हुआ सितारा हो।