वाराणसी के दशाश्वमेध घाट में गंगाजी की आरती एक विलोभनीय दृश्य है। नदियों को पूजने की भारत की प्राचीन परंपरा को नवीनता प्रदान कर विभिन्न जन समुदायों को कैसे आकर्षित किया जाता है, गंगाजी की आरती इसका जीवंत उदाहरण है। एक ओर भक्त गण यहाँ आकर पवित्र गंगाजी की आराधना करते हैं, वहीं पर्यटक यहाँ आकर इस अप्रतिम दृश्य का आनंद लेते हैं जब अग्नि जीवनदायिनी जल का अभिषेक करती है।
वाराणसी, यह शब्द जैसे ही कानों में पड़ता है, गंगाजी के इन चंद्राकार घाटो की छवि मानसपटल पर छा जाती है। गंगा को वाराणसी नगरी से जोड़ती सीधी गहरी सीड़ियाँ गंगा आरती के प्रसिद्ध दृश्यों एवं मधुर सुरों का पावन स्थल है।
प्रत्येक संध्या, भक्तगण अपनी प्रिय गंगा मैय्या के समक्ष उपस्थित होकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं तथा लाखों दीपों से उसकी आरती करते हैं। उनका पालन पोषण करने के लिए तथा अपने पवित्र जल से उनके तन-मन को शुद्ध करने के लिए वे गंगा मैय्या को धन्यवाद देते हैं। लाखों भक्तगण, तीर्थयात्री, पर्यटक एवं यात्रीगण वाराणसी के प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट में गंगा की आरती का विलक्षण दृश्य देखने यहाँ आते हैं।
वाराणसी में गंगा आरती
वर्षों से होती आ रही गंगा की आरती इतनी प्रसिद्ध हो चुकी है कि यह वाराणसी में पर्यटकों हेतु आवश्यक दर्शनीय कृत्य हो गयी है। यूँ तो गंगा की यह आरती विधिपूर्ण की जाने वाली एक गंभीर, संस्कारपूर्ण एवं पावन कृति है, किन्तु पर्यटकों एवं यात्रियों की नित नयी अपेक्षाओं ने इसमें चकाचौंध भी जोड़ दिया है।
आरती करते सभी युवा पंडितों के कुलीन वस्त्र एक सामान होने के कारण आरती को गंभीरता प्रदान करते हैं, साथ ही एक विलक्षण छटा बिखेरते हैं। सुनहरे किनारी वाली रेशमी धोती, भगवा कुर्ता एवं कन्धों पर रेशमी उपवस्त्र डाले ये पंडित ऊंचे मंचों पर खड़े होकर जन समुदायों से ऊपर उठकर दिखायी देते हैं। हाथों में आरती के दिये लेकर वे अपने हाथों को एक साथ घुमाते हैं। आरती करते समय वहां उपस्थित सब पर्यटकों व श्रद्धालुओं की आँखें उन पर ही केन्द्रित होती हैं, इसकी चेतना उन्हें भली भांति रहती है। अतः उनके मुखमंडल पर दर्शित भाव भी देखने योग्य होते हैं।
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सामान्यतः सूर्यास्त के पश्चात नाविकों के पास जीविका के साधनों में कमी आ जाती है। किन्तु यहाँ वाराणसी के घाट पर उन्होंने सूर्यास्त के पश्चात भी जीविका का अनोखा साधन ढूंढ लिया है। वे लोगों को अपनी नौका में बिठाकर नदी में घाट के ठीक सामने तक ले जाते हैं जहां से दर्शक इस आरती को सामने से देख सकते हैं। इसके लिए वे पर्यटकों व श्रद्धालुओं से मोटा शुल्क भी वसूलते हैं। यूँ तो गंगा आरती को आप घाट एवं नदी, दोनों ओर से देख सकते हैं, फिर भी मैं यह कहना चाहूंगी कि आरती की भव्यता देखने एवं उन क्षणों को छायाचित्र में कैद करने के लिए नौका में बैठकर नदी की ओर से देखना अधिक अच्छा विकल्प होगा। परन्तु, यदि आप गंगा मैय्या की पूजा करवाना चाहते हों तो आप घाट की सीड़ियों पर आरती करते पुजारियों के पास खड़े होकर पूजा कर सकते हैं।
गंगा आरती के विभिन्न स्थल
आप सब जानते हैं कि गंगा नदी हिमालय से निकल कर पूर्व की ओर अग्रसर हो अंततः बंगाल की खाड़ी में समुद्र में समा जाती है। अपने लम्बे प्रवास में कुछ ही स्थानों में गंगा की पूजा आर्चना की जाती है। सर्वप्रथम गंगा की आरती ऋषिकेश एवं हरिद्वार में की जाती है जब गंगा पहाड़ों से बाहर आकर मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। अर्थात् देवों भूमि से निकलकर मानव भूमि में प्रवेश करती है।
तत्पश्चात गंगा वाराणसी में पूजी जाती है। गंगाजी का पूर्व दिशा की ओर का प्रवाह यहाँ कुछ दूरी के लिए उत्तर दिशाभिमुख होता जाता है। सांकेतिक रूप से ऐसा माना जाता है कि आगे बढ़ने से पूर्व गंगा पीछे मुड़कर अपनी मातृभूमि को अंतिम बार देख रही है, जैसे कोई नई नवेली दुल्हन विदा के समय मुद कर अपने मायके के तरफ देखती है। वाराणसी की जनता विनोदपूर्वक कहती है कि ‘वाराणसी में तो गंगा भी उलटी बहती है’।
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गंगा भारत में सबसे पावन नदी है, यह आप सब जानते ही हैं। इसके तटों में बसे नगरों में से कई और छोटी नगरियों में भी इसकी पूजा की जाती है। इसकी जानकारी अधिक लोगों को नहीं है। कदाचित छोटे प्रमाण में की जाती हो अथवा इतनी भव्य न हो या प्रत्येक दिवस ना की जाती हो। परन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि पवित्र गंगा की आराधना सम्पूर्ण भारत के करोड़ों नागरिक अपने मन व ह्रदय में करते हैं।
दशाश्वमेध घाट
वाराणसी में गंगा के अनेकों घाटों के लगभग मध्य में स्थित है यह दशाश्वमेध घाट। उत्तरी छोर पर राज घाट है जहां किसी समय यह नगरी फल-फूल रही थी। दक्षिणी छोर पर अस्सी घाट है जो रूढ़ीमुक्त अर्थात् स्वतन्त्र विचार रखते लोगों में अत्यंत प्रसिद्ध है। दशाश्वमेध घाट एक ऐसा घाट है जहां अन्य घाटों की अपेक्षा सड़क मार्ग द्वारा अधिक आसानी से पहुंचा जा सकता है। अन्य घाटों तक पहुँचने के लिए संकरी गलियाँ पार करनी पड़ती हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप स्थित इस घाट के विषय में ऐसा कहा जाता है कि इस घाट की रचना भगवान् शिव का इस नगरी में स्वागत करने के लिए स्वयं ब्रम्हाजी ने की थी । आप सब जानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी नगरी की पहचान है। वस्तुतः दशाश्वमेध का अर्थ है दस अश्वमेध यज्ञों के बराबर। अश्वमेध यज्ञ कर राजा-महाराजा दूर दूर तक अपनी सत्ता का लोहा मनवाते थे।
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विगत अभिलेखों से यह पता चलता है कि मालवा की रानी अहिल्या बाई होलकर ने १८वी. सदी में इस घाट का पुनर्निर्माण करवाया था।
दशाश्वमेध घाट में गंगा आरती
दशाश्वमेध घाट में गंगा आरती सर्वाधिक भव्य एवं विस्तृत होने के कारण सर्वाधिक प्रसिद्ध है। पिछले कुछ समय से गंगा की आरती अस्सी घाट जैसे अन्य घाटों में भी की जा रही है।
दशाश्वमेध घाट के दो विभिन्न भागों में मंचों के दो समूह थे। मुझे ये आरती देखने का अवसर कई बार मिला। प्रत्येक मंच के ऊपर पुष्पों से सजी छत्री डंडे द्वारा लगाई गयी थी। प्रत्येक डंडे पर बिजली का एक कंदील भी लगाया गया था। हर मंच के ऊपर एक और छोटा मंच था जिस पर केसरिया वस्त्र बिछाकर उस पर पूजा सामग्री रखी गयी थी। पुष्प, जल भरा तांबे का लोटा, धातु का भारी व तपा हुआ दीप-समूह पकड़ने के लिए गीला वस्त्र, शंख इत्यादि सजाये हुए थे। दीप-समूह में तेल डालकर, उन्हें प्रज्ज्वलित कर मंचों पर रखा गया था। मंत्रमुग्ध कर देने वाला यह सम्पूर्ण दृश्य हमें किसी दूसरे विश्व में ले जा रहा था।
इन सब के बीचों-बीच स्थित मंच पर एक छोटा मंदिर है जो देवी गंगा को समर्पित है। मंदिर के भीतर देवी गंगा की मानवरूपी प्रतिमा है जिसे सुन्दर पुष्पहारों द्वारा सजाया गया था।
वाराणसी की भव्य गंगा आरती आप तक पहुंचाता यह विडियो
वाराणसी की पावन नगरी में मेरी यात्रा के समय दशाश्वमेध घाट पर हुए भव्य गंगा आरती की कुछ छटा मैं अपने कैमरे में कैद करने में सफल हुई। यह विडियो आपको गंगा आरती के विलक्षण दृश्य की एक झलक दिखायेगी। HD प्रणाली में देखने पर यह और अधिक भव्य प्रतीत होती है।
मेरे यूट्यूब चैनल inditales पर आपके लिए और भी कई यात्रा विडियो हैं।
गंगा मैय्या की आरती
आरती का शुभारम्भ शंखनाद कर किया गया। शंखनाद द्वारा भक्तगणों को गंगा आरती के औपचारिक आरम्भ की सूचना दी जाती है। इसके पूर्व किये गए सर्व धार्मिक संस्कार आरती की पूर्व तैयारी में आते हैं। शंखनाद के पश्चात सभी युवा पंडित पीतल की घंटियाँ बजाकर पूर्ण वातावरण गुंजायमान कर रहे थे। तत्पश्चात अगरबत्तियों के धूप से उन्होंने गंगा की आराधना की जिससे चारों ओर की वायु सुगन्धित हो गयी। इन सभी धार्मिक क्रियाकलापों के साथ सतत होते मंत्रोच्चारण हमें सांसारिक परिवेश से दूर एक भिन्न विश्व में ले जा रहे थे।
गंगा एवं वाराणसी पर कुछ अप्रतिम पुस्तकें:
- गंगा – जूलियन क्रेन्दल्ल होल्लीक्क
- बनारस – प्रकाश की नगरी द्वारा डायना एकक
- दर दर गंगे – अभय मिश्र एवं पंकज रामेन्दू
- काशी का अस्सी – काशीनाथ सिंह
- काशी मर्नान्मुक्ति – मनोज ठक्कर
और यह भक्ति भाव एवं रोमांच अपनी चरम सीमा पर पहुंचा जब पीतल के शुण्डाकार विशाल दीप-समूह हाथों में उठाये सब पंडित मंच पर आ गये। दूर से भी इन प्रज्ज्वलित दीपों के वजन एवं उनसे आती ऊष्मा का आभास हमें हो रहा था। इन भारी दीपों को उठाकर पंडित इन्हें दक्षिणावर्त घुमाते हुए शनैः शनैः स्वयं भी दक्षिणावर्त घूम रहे थे। इस प्रकार वे चारों दिशाओं में दीप आराधना अर्पित कर रहे थे।
एक बड़े दीप के नीचे छोटे छोटे अनेक दीपों के स्तरों से बना होता है यह दीपसमूह। मेरे अनुमान से यह आरती कपूर द्वारा की जाती है। अंत में पंडितों ने माँ गंगा को पुष्प अर्पित किया, मोरपंखों से बने पंखों से माँ गंगा को पंखा झला तथा एक बार फिर शंखनाद कर उस दिन की आरती समाप्ति की घोषणा की।
वाराणसी की गंगा आरती का विहंगम दृश्य
यदि आप एक भक्त के रूप में वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर यह आरती देखेंगे तो यह शायद आपको अनावश्यक दिखावे से परिपूर्ण प्रतीत हो सकता है। यदि आप इसे एक पर्यटक के रूप में देखेंगे तो यह एक चकाचौंध कर देने वाला अद्भुत दृश्य है। मंत्रोच्चारण, घंटानाद, संध्या के अप्रतीम रंग, अग्नि एवं जल का अनोखा मिश्रण! दीपों के अनेक समूहों को सब पंडित जब तालमेल के साथ घुमा रहे थे तब उसे देख सब मंत्रमुग्ध हो गए थे। सांध्यप्रकाश के स्याह होते आकाश में आरती की लौ एवं उनसे निकालता धुंआ मनमोहक आकृतियाँ बना रहे थे। यह अद्भुत दृश्य गंगा के शांत जल पर सुन्दर प्रतिबिम्ब बना रहा था। गंगा भी ध्यान लगा कर भक्तों व पर्यटकों के संग आरती का आनंद उठा रही थी।
आरती के दर्शन करने आया जन-समूह चाहे जितना भी विशाल हो, वह सरलता से यहाँ समा जाता है। कुछ लोग इन मंचों के चारों ओर खड़े होते हैं तो कुछ उनके पीछे व कुछ उनके समक्ष सीड़ियों पर। कई लोग गंगा के जल पर तैरती नौकाओं में बैठकर भी आरती का आनंद लेते हैं।
वाराणसी की गंगा आरती में बजता संगीत
गायक व वादक मंचों के पीछे बैठकर आरती गा रहे थे। वहां एकत्रित भक्तगण जिन्हें आरती ज्ञात थी, वे भी उनके साथ गा रहे थे। बाकी ताली बजाकर साथ दे रहे थे। यह मेरे लिए आरती का सर्वोत्तम क्षण था। इतनी स्वाभाविकता से लोग आरती में अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार भाग ले रहे थे। आशा है भक्तों में यह भाव सदैव बना रहे।
जगह जगह साधुओं की भी उपस्थिति थी जो आरती में भाग ले रहे थे। इनमें से कुछ दानधर्म की आशा से भक्तों को खोज रहे थे।
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर यह आरती औपचारिक अनुष्ठान एवं अनौपचारिक चकाचौंध का अद्भुत मिश्रण है।
वाराणसी की गंगा आरती के लिए कुछ यात्रा सुझाव
• वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर यह आरती प्रत्येक संध्या को आयोजित की जाती है।
• आरती में भाग लेने के लिए कोई शुल्क नहीं है। दान-धर्म भी आवश्यक नहीं है। आरती का आनंद लेने किसी भी दिन यहाँ आ सकते हैं।
• मौसम के अनुसार आरती के समय में परिवर्तन किया जाता है। यह सूर्यास्त के पश्चात, दिन ढलने पर किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के आसपास अर्थात् नवम्बर-दिसंबर में यह आरती सर्वाधिक आकर्षक दिखायी पड़ती है। इस समय संध्या लगभग ७ बजे आरती आरम्भ होती है। स्थानीय लोगों से आरती के समय का अनुमान लेकर यहाँ आयें।
• मेरी सलाह है कि आप आरती से लगभग आधे घंटे पूर्व ही यहाँ आकर इच्छित स्थान ग्रहण कर लें जहां से उत्तम दृश्य प्राप्त हो एवं सर्वोत्तम छायाचित्रिकरण भी संभव हो।
• गंगा आरती में लगभग ४५ मिनट का समय लगता है।
• आरती के समय दशाश्वमेध घाट पर अत्यधिक भीड़ रहती है। आप अपने सामान की सुरक्षा का ध्यान रखें।