कन्याकुमारी और तिरुवनंतपुरम से वापस घर लौटते समय केरला के कोल्लम शहर के पास स्थित अष्टमुडी झील के किनारे बिताए गए पूरे दो दिन सच में बहुत यादगार रहे। गूगल पर दिखाये गए नक्शे के अनुसार यह सरोवर काफी बड़ा है। मुझे उसकी व्यापकता को समझने और जानने के लिए थोड़ा समय चाहिए था। लेकिन, इससे भी अधिक मुझे उसके जीवन और उसकी आत्मा को समझना था। अष्टमुडी झील केरल के पर्यटकों के बीच उतना मशहूर नहीं है, क्योंकि, केरल में आने वाले अधिकतम पर्यटक या तो कोल्लम में या फिर दक्षिण में कोवलम में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। तो कुछ पर्यटक उत्तरी भागों में जैसे कि अलेप्पी और कोचीन में रहना पसंद करते हैं।
अष्टमुडी झील – केरल के स्थिर जल स्रोत
अष्टमुंडी का शब्दशः अर्थ है 8 शंकु। उसके इस विचित्र से आकार को कुछ लोग तारे की उपमा देते हैं, तो कुछ इसे ऑक्टोपस के आकार का बताते हैं। लेकिन अगर आप इंटरनेट पर जाकर अष्टमुंडी सरोवर का नक्शा देखे तो वह कुछ अजीब सा लगता है। इसे देखने के बाद आप खुद तय कर सकते हैं कि, उसे कौन सी उपमा देना उचित होगा।
कोल्लम पहुँचते ही हम अपने होटल में गए और हाथ मुह धोकर, तैयार होकर दोपहर के खाने के लिए उपस्थित हुए। हमरा खाना होटल की खास नाव पर आयोजित किया गया था। इस बड़ी सी नाव पर सिर्फ हम दोनों के लिए ही भोजन का प्रबंध किया गया था। जैसे ही हमारी नाव अष्टमुडी झील के शांत, स्थिर पानी पर धीरे-धीरे चलने लगी तो नाव पर मौजूद कर्मचारी वर्ग ने हमे खाना परोसना शुरू किया। यह सब कुछ एक सपने जैसा था। जब हम खाना खा रहे थे तो अपने आस-पास देखकर मुझे लगा कि, प्रकृति के सारे नज़ारे जैसे हमारे लिए खास चलचित्र पेश कर रहे हो। यह दृश्य सच में बहुत खूबसूरत था। जैसे-जैसे हमारी नाव सरोवर की सीमाओं के पास से गुजरते हुए, एक कोने से दूसरे कोने तक जा रही थी वैसे-वैसे मुझे सरोवर का आकार कुछ-कुछ समझ में आने लगा था।
रोशनी की देवी
सरोवर की सैर करते हुए हमे एक स्थान पर हाथ में मशाल पकड़े एक स्त्री की विशाल मूर्ति दिखी जिसे रोशनी की देवी कहा जाता है। यहां के लोग उसे ‘स्टेचू ऑफ लिबर्टी’ का स्थानीय रूप मानते हैं। वास्तव में शायद यह सरोवर में घूमनेवाली नावों के लिए प्रकाशस्तंभ का कार्य करती होगी, ताकि वे अपना रास्ता ना भटक जाए। अपने विशिष्ट रूपाकार से यूरोपीय लगने वाली इस स्थूलकाय महिला की मूर्ति काफी दूर से भी देखी जा सकती है। कुछ नाविकों का कहना है कि यह मूर्ति मल्लाहों को उनके घर-परिवार और पत्नी की याद दिलाने का तरीका है जिन्हें वे अपने व्यापार के लिए पीछे छोड़ आए हैं। इस मूर्ति के नीचे ही एक छोटा सा सूचना पट्ट है जिस पर ‘रोशनी की देवी’ लिखा गया है। मेरे खयाल से शायद यहां पर अनेवाला प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुसार उसकी व्याख्या करता है। लेकिन इन सभी भिन्न विचारों के अलावा एक बात तो तय है कि यह मूर्ति जल, हरियाली और आकाश की नीरसता को भंग करते हुए दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। इस सुंदर सी मूर्ति को अनदेखा करना थोड़ा कठिन है।
मछली पकड़ने का चीनी जाल
अष्टमुडी झील की सैर करते हुए जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, हमे धीरे-धीरे मछली पकड़ने के चीनी जाल नज़र आने लगे जो अब हर जगह पर पाये जाते हैं। सरोवर के किनारे से पानी के ऊपर लटकते हुए ये जाल बहुत ही आकर्षक लग रहे थे। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने हाथ में विशालकाय चाय की छलनी पकड़ी हो। इन जालों को अक्सर एक साथ एक कतार में लगाया जाता है। यह नज़ारा सच में अद्वितीय है जो अनेकों फोटोग्राफरों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह प्रसन्नता भरा दृश्य इन फोटोग्राफरों का दिन बना देता है। और आप विभिन्न दृष्टिकोणों से उनकी तस्वीरें लेने में खो जाते हैं। अगर केरल के तटीय क्षेत्र की बात करते समय इन चित्रों से आपका सामना हो जाए तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी। कुछ ही जगहों पर इन जालों को सरोवर के बीचोबीच लगाया जाता है। लेकिन अधिकतर जगहों पे ये जाल आपको सरोवर के किनारे पर ही लगे हुई दिखाई देती हैं। दूर से देखने पर ये जाल बहुत ही साधारण से दिखते हैं, पर पास जाकर देखने से पता चलता है कि इनकी बुनावट कितनी जटिल है।
रंगीन नावें
अष्टमुडी झील के किनारे पर स्थित खूबसूरत से मकानों के पास ही मछली पकड़नेवाली रंगीन नावें रखी गयी थी। और मछली पकड़ने की सभी जालें किनारे पर लेटे हुए आराम करती हुई नज़र आ रही थी, जो पुनः नए उत्साह के साथ सूर्यास्त के बाद पानी में खड़े होने का इंतजार कर रही थी।
इस सरोवर के आस-पास का निर्मल पर्यावरण बहुत सारे पक्षियों का घर है। इन पक्षियों को सरोवर के एक स्थान से दूसरे स्थान पर उड़ते हुए जाते देखना बहुत ही आमोदजनक बात थी।
पर्यटकों के लिए खास हाउसबोट
यहां पर पर्यटकों के लिए खास हाउसबोट होते हैं जो उन्हें पूरे सरोवर की सैर कराते हैं। कुछ ऐसी ही नावें हमारे सामने से गुजरती हुई जा रही थी, जिनमें कुछ ही लोग नज़र आते थे। ये नावें कभी भी लोगों से भरी हुई नहीं होती थीं। यह देखकर मेरे मन में खयाल आया कि, या तो हम सरोवर के कम भीड़ वाले भाग में होंगे या तो यह सरोवर ही इतना बड़ा होगा कि आप यहां पर कहीं भी आराम से एकांत में समय बिता सकते हैं।
सूर्य और बादल भी अपनी ओर से हमारे लिए अद्वितीय परिदृश्य निर्माण कर रहे थे। नारियल और ताड़ के पेड़ भी अपने हरे रंग से पानी और आकाश के क्षेत्र की सीमाओं को निर्धारित कर रहे थे। इस सरोवर में उपस्थित द्वीप हरे बिन्दुओं के समान पानी पर तैरते हुए नज़र आ रहे थे।
अष्टमुडी झील से जुड़े कुछ तथ्य
अष्टमुडी झील क्लैम मत्स्य पालन का प्रमुख केंद्र है। यहां पर वार्षिक रूप से 10,000 टन क्लैम मछली का उत्पादन होता है। जिस में से अधिकतर निर्यात की जाती हैं। रामसर सम्मेलन के अनुसार यह महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आर्द्रभूमि की सूची में गिना जाता है। मत्स्य पालन पर लिखा गया ‘हिन्दू लेख’ आपको जरूर पढ़ना चाहिए जो यहां के विकासशील और टिकाऊ मत्स्य पालन के बारे में विस्तार से बताता है। इस सरोवर के पर्यावरण की सबसे अच्छी बात यह है कि, वह दिन में अपने पर्यटकों और पर्यटन अर्थशास्त्र का पूरा-पूरा खयाल रखता है, और रात को वह मछुआरों का इलाका बन जाता है। ये मछुआरे रात के समय ही अपना जाल बिछा देते हैं ताकि अगली सुबह उनकी पकड़ में अच्छी और ताजी मछली आ सके। इस वक्त अष्टमुडी झील में पर्यटकों की नावों को घूमने की अनुमति नहीं दी जाती।
अष्टमुडी झील का पानी कल्लाडा नदी से आता है, जिसका उद्गम पोंन्मुड़ी पर्वतों में होता है। यह केरल का दूसरा विशालतम एस्चुरिन एकोसिस्टम है।
केरल में स्थिर जल पर्यटन का सबसे लंबा किनारा अष्टमुडी झील और अलपुझा के बीच है। इस पूरे किनारे की यात्रा करने के लिए लगभग 8 घंटे लगते हैं। और अब इस किनारे की यात्रा करना मेरी इच्छा सूची में अव्वल क्रमांक पर होगा।
मैं सही-सही तो नहीं बता सकती लेकिन शायद अष्टमुडी झील ने केरल के बंदरों पर हो रहे व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका जरूर निभाई होगी।
स्थानीय यातायात की नावें
दूसरे दिन शाम के समय हम आराम से अपने कमरे में बैठे सरोवर में घूम रही नावों को देख रहे थे। इनमें जो लंबी और बड़ी नावें थी उन्हें दोनों छोरों से खेया जा रहा था। ये नावें इसी सरोवर के आस-पास रहने वाले परिवारों को एक किनारे से दूसरे किनारे तक ले जा रही थीं। इनके अतिरिक्त यहां पर उत्कृष्ट हाउसबोट भी थे जो केरल पर्यटन का प्रमुख आकर्षण है। जिस नाव में पिछले दिन हम सैर कर रहे थे वह अब सूर्यास्त के खूबसूरत से दृश्य को अपने चौखटे में समेटने की कोशिश कर रही थी।
अष्टमुंडी सरोवर की यात्रा किए कई साल बीत गए हैं, लेकिन आज भी मेरे दिमाग में उससे जुडी यादें उतनी ही ताजा हैं जितनी उसे अलविदा कहते समय थी।