मेरे लिए कोल्हापुर का अर्थ था, कोल्हापुर का प्रसिद्ध महालक्ष्मी मंदिर, कोल्हापुरी चप्पल, तीखी लाल मिर्च तथा लावणी नृत्य। इससे पूर्व मैंने कोल्हापुर की यात्रा ‘डेक्कन ओडिसी’ नामक विशेष रेल यात्रा के एक भाग के रूप में की थी। उस समय मुझे कोल्हापुर में कुछ घंटे ही मिले थे। कोल्हापुर दर्शन के लिए यह समय पूर्णतः अपर्याप्त था। किन्तु उस भेंट ने मुझे यह आभास अवश्य कराया कि कोल्हापुर में अनेक अद्भुत दर्शनीय स्थल हैं। मैं अत्यंत प्रेरित थी कि अपनी आगामी कोल्हापुर यात्रा शीघ्र नियोजित करूँ तथा इन स्थलों के दर्शन का आनंद उठाऊँ। किन्तु अपने स्वप्न को साकार करने में मुझे कुछ वर्ष लग गए। अपनी इस यात्रा के समय मैंने कोल्हापुर के ना केवल दर्शन किये, अपितु यहाँ के दृश्यों, स्वरों एवं स्वादों को आत्मसात किया।
मुझे स्मरण है, मैंने कोल्हापुर के रेल स्थानक में केसरिया फेटा पहना था। यह कोल्हापुर की संस्कृति से मेरा प्रथम साक्षात्कार था।
कोल्हापुर का संक्षिप्त इतिहास
लिखित इतिहास के अनुसार, कोल्हापुर में १०वी. से १३वी. शताब्दी तक शिलाहार वंश का साम्राज्य था। मध्यकालीन युग में यहाँ मराठा राजाओं ने राज किया था जिनमें शाहू महाराज सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा थे। शिवाजी महाराज की बहू, ताराबाई ने भी इस क्षेत्र का राजपाट संभाला था। सम्पूर्ण नगर में उनकी कई प्रतिमाएं दृष्टिगोचर होती हैं।
पौराणिक साहित्यों में कोल्हापुर को करवीरपुर क्षेत्र का भाग माना गया है।
कोल्हापुर के दर्शनीय स्थल
महालक्ष्मी मंदिर
यह कोल्हापुर नगर का सर्वोत्तम आकर्षण है। अतः मैंने कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर पर एक सम्पूर्ण यात्रा संस्मरण लिखा है। इसे अवश्य पढ़ें।
नवीन राजमहल
कोल्हापुर का नवीन राजमहल १९वी. सदी से सम्बन्ध रखता है। इसे प्राचीन महल के स्थान पर निर्मित किया गया है। इसलिए इसे नवीन राजमहल कहा जाता है। यह शब्द नवीन, इससे सदैव के लिए जुड़ गया है क्योंकि यहाँ भविष्य में एक और नवीन महल निर्मित होगा, मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता। भूतपूर्व राजपरिवार अब भी इस महल के एक भाग में निवास करता है।
मिश्रित वास्तुशैली में निर्मित यह राजमहल गहरे स्लेटी रंग का है। इस राजमहल के आठ कोण हैं जिनके मध्य एक घंटाघर है। इस भवन का निचले तल अब एक संग्रहालय है जहां राजपरिवार द्वारा संग्रहीत वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है।
इस संग्रहालय में राजपरिवार के सदस्यों के विशाल छायाचित्र, प्राचीन भवन-साजसज्जा की वस्तुएं, कलाकृतियाँ, मूर्तियाँ, गंजिफा पत्ते इत्यादि हैं। राजाओं ने जिन पशुओं का शिकार किया था, उन मृत पशुओं के भीतर कृत्तिम वस्तु भरकर, उन्हें एक सम्पूर्ण दीर्घा में प्रदर्शित किया गया है। एक ओर शस्त्रों एवं आयुधों की प्रदर्शनी है।
इस राजमहल का सर्वाधिक विशेष भाग है इसका सभा-कक्ष जिसकी ऊंची छत, उत्कीर्णित स्तंभ तथा कांच की फलकों पर की गयी, राजपरिवार के सदस्यों की जीवनी पर आधारित, अप्रतिम चित्रकारी इसकी विशेष धरोहर है। संग्रहालय उत्तम रीति से संगठित एवं प्रलेखित है। भवन के समक्ष एक छोटा जलाशय एवं प्राणी संग्रहालय है। जलाशय में स्थित ऊंचे वृक्षों पर हमें प्रवासी पक्षियों समेत पक्षियों की अन्य कई प्रजातियाँ दिखीं।
कोल्हापुर भ्रमण के समय इन्हें अवश्य देखें।
भवानी मंडप – प्राचीन राजमहल
भवानी मंडप प्राचीन राजमहल है। एक विशाल प्रवेश द्वार से आप इसके भीतर पहुंचते हैं। एक अग्निकांड में यह राजमहल पूर्ण रूप से भस्म हो गया था। इसके स्थान पर अब नवीन संरचना का निर्माण किया गया है। इसकी विशाल संरचना गहरी राखाड़ी रंग में मध्यकालीन शैली में की गयी है। यहाँ कोल्हापुर नगर के प्रिय सम्राट शाहू महाराज की आदमकद प्रतिमा है।
हम भवानी मंडप के भव्य विशाल प्रवेश द्वार की ओर बढे।
इससे पूर्व हमने करवीर नगर वाचन मंदिर अर्थात् स्थानीय पुस्तकालय देखा। मुख्य प्रवेश द्वार के बाईं ओर हमने आकर्षक राजाराम महाविद्यालय देखा। इस अप्रतिम संरचना की विशेषतायें हैं झरोखे तथा तोरण जैसे राजस्थानी वास्तुशैली में की गयी सूक्ष्म कलाकृतियाँ, मुग़ल तथा औपनिवेशिक वास्तुकला। १८८० में निर्मित इस भवन का अब भी एक पाठशाला के रूप में प्रयोग किया जाता है।
हमने भवानी मंडप में प्रवेश किया। ये क्या? प्रवेश द्वार से भीतर जाते ही किसी भवन की अपेक्षा हमने स्वयं को एक खुले प्रांगण में पाया जिसके चारों ओर दुकानें थीं। चारों ओर चहल-पहल थी। एक ओर खाद्य पदार्थों की दुकानें थीं तो दूसरी ओर मंदिर में अर्पण करने के लिए प्रसाद एवं सुन्दर साड़ियाँ बिक रही थीं।
मुझे स्मरण आया कि मेरी पिछली यात्रा के समय, यहाँ से कुछ आगे जाकर मैंने दंडपट्ट प्रदर्शन देखा था।
दंडपट्ट का विडियो
कोल्हापुर में मुझे कुछ नवयुवक एवं नवयुवतियों द्वारा प्रदर्शित पारंपरिक मराठा युद्धकला, दंडपट्ट देखने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ था। उसी प्रदर्शन का विडियो यहाँ प्रस्तुत है:
दंडपट्ट स्त्रियों द्वारा किये जाने वाला एक पारंपरिक युद्ध कला है। केसरिया रंग की नौ-गज की साड़ियाँ एवं आभूषण धारण किये, हाथों में तलवार लिये, नवयुवतियों को इतनी सहजता से तलवार चलाते हुए इस युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते देखना अत्यंत आनंददायक एवं रोमांचक था। कुछ नवयुवकों ने भी तलवारबाजी की कला प्रदर्शित की थी। किन्तु उन्होंने पारंपरिक वस्त्र धारण नहीं किये थे। मुझे यह कमी अत्यंत खली.
तुलजा भवानी मंदिर
मेरी पिछली कोल्हापुर यात्रा के समय मैं तुलजा भवानी मंदिर के दर्शन नहीं कर पायी थी। इस यात्रा में मैंने इस मंदिर के दर्शन किये। मुझे यहाँ एक छोटा संग्रहालय भी दिखा।
शिवाजी गद्दी– भवानी मंडप
यहाँ कोल्हापुर के लोकप्रिय महाराजा शाहू जी की आदमकद प्रतिमा है। शाहू जी महाराज द्वारा शिकार किये गए जानवरों की चित्रावली भी है जिनमें एक विशालकाय जंगली भैसा भी सम्मिलित है।
जब आप भवानी मंडप के विशाल प्रांगण में खड़े होते हैं, तब आपको किसी भित्तिदार नगरी की कल्पना प्राप्त होगी। मैं भी कल्पना के विश्व में खो गयी। महालक्ष्मी मंदिर के समीप, दृड़ भित्तियों से चारों ओर से सुरक्षित जीवन कैसा होगा?
इस संग्रहालय सह मंदिर की एक अत्यंत रोचक वस्तु है शिवाजी महाराज का सिंहासन। इस सिंहासन के पीछे उनका चित्र भी टंगा हुआ है।
कहा जाता है कि यहाँ एक भूमिगत सुरंग है। यह सुरंग भवानी मंडप को पन्हाला दुर्ग से जोड़ती है जो यहाँ से लगभग २० की.मी. की दूरी पर है। किन्तु इसके विषय में यहाँ किसी को जानकारी नहीं थी।
कुश्ती अथवा तालीम
कोल्हापुर कुश्ती का बड़ा केंद्र है। कुश्ती कोल्हापुर का सर्वाधिक लोकप्रिय खेल है, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। भूतपूर्व महाराजाओं ने इस खेल को भरपूर समर्थन एवं संरक्षण दिया था। यह धरोहर अब भी जीवित है।
ओलिंपिक खिलाड़ी के. डी. जाधव, जिन्होंने १९५२ के ओलिंपिक खेलों में कांस्य पदक प्राप्त किया था, उन्हें शाहजी महाराज द्वितीय ने खोजा था एवं उन्हें यहीं प्रशिक्षण दिया था।
कुश्ती में रूचि रखने वाले पर्यटकों को मैं दो अखाड़े देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हूँ.
काशबाग कुश्ती मैदान अथवा काशबाग कुश्ती अखाड़ा
भारत में कुश्ती अखाड़े को देखने का यह मेरा प्रथम अवसर था। वह भी इतना विशाल! यहाँ एक ऊंचा मंच था जो छत द्वारा ढंका हुआ था। मैंने अनुमान लगाया कि कदाचित किसी समय यहाँ स्वयं महाराजा बैठते थे। इसी धरोहर के तहत अब यहाँ अति महत्वपूर्ण व्यक्ति बैठते हैं।
मध्य में कुश्ती का मैदान है। इस पर मुलायम मिट्टी बिछाई हुई है। इसके चारों ओर की तिरछी घरती पर गोबर लीपा जाता है। इस अखाड़े की संरचना कुछ इस प्रकार की गयी है कि आप कहीं भी बैठ जाएँ, आपको मैदान में खेली जाने वाली कुश्ती पूर्ण रूप से दृष्टिगोचर होगी।
कोल्हापुर के इस पूर्ण रूपेण कुश्ती को समर्पित अखाड़े के समान अखाड़ा मैंने इससे पूर्व नहीं देखा था।
गंगावेस तालीम अर्थात् अखाड़ा
कोल्हापुर में कई अखाड़े हैं। स्थानीय लोग इसे तालीम के नाम से जानते हैं। गंगावेस अखाड़ा यहाँ का एक लोकप्रिय अखाड़ा है। मैंने जब यहाँ गई थी, तब दोपहर का समय हो रहा था। सभी पहलवान एवं उनके गुरूजी अपने दैनिक अभ्यास के उपरांत विश्राम कर रहे थे।
मैंने देखा कि एक विशाल कक्ष के भीतर एक चौड़ा गड्ढा खोदा गया था। मिट्टी में हल्दी, घी एवं कुछ जड़ी-बूटियाँ मिलकर उसे कुश्ती योग्य बनाया जाता है। अपने दैनिक कुश्ती अभ्यास से पूर्व सभी पहलवान अखाड़े के मैदान को देवी सामान पूजते हैं। भित्ति पर हनुमान की छवि थी जो सभी पहलवानों के इष्ट देव हैं।
और पढ़ें: – वाराणसी के तुलसी अखाड़े में पहलवानों का दैनिक अभ्यास
तुलसी अखाड़े का यह विडियो देखें:
कोल्हापुर के अन्य महत्वपूर्ण अखाड़े हैं, शाहूपुरी अखाड़ा, मोतीबाग अखाड़ा तथा नवीन मोतीबाग अखाड़ा।
साधारणतः खिलाड़ियों द्वारा कुश्ती के अभ्यास के समय, स्त्रियों को अखाड़े में जाने की अनुमति नहीं होती। अतः अखाड़े के दर्शन करने की अभिलाषा हो तो कृपया अधिकारियों से इसकी पूर्व अनुमति ले लें।
मुझे बताया गया कि भारत भर से कुश्ती के खिलाड़ी यहाँ कुश्ती सीखने आते हैं। इनमें हरियाणा के प्रसिद्ध पहलवान भी सम्मिलित हैं जिन्होंने ओलिंपिक पदक सहित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई अन्य पदक प्राप्त किये थे।
अब तक यह परम्परा रही है कि सभी पहलवान गाँवों एवं नगर के बाहरी क्षेत्रों से आते हैं। कुछ परिवारों के लिए यह पारिवारिक खेल बन गया है। वर्तमान में भारत के कई पहलवानों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक एवं असीम ख्याति प्राप्त हुई है। उनसे प्रेरणा लेते हुए कई युवक एवं युवतियों ने पेशेवर कुश्ती को अपना व्यवसाय बनाना आरम्भ कर दिया है। कुछ अखाड़े अब स्त्रियों के लिए भी खोले जा रहे हैं।
मैंने गंगावेस अखाड़े में कुछ पहलवानों से चर्चा की। उनसे मुझे ज्ञात हुआ कि वे सभी कुश्ती की किसी न किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अभ्यास कर रहे थे। आशा करती हूँ तथा उन्हें शुभकामनाएं देती हूँ कि वे सब अपने अपने प्रयास में अत्यधिक सफल हों।
रंकाला तालाब
महालक्ष्मी मंदिर से लगभग १ की.मी. दूर पर यह रंकाला तालाब स्थित है। दिन के समय तो यह तालाब अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता ही है, सूर्यास्त के पश्चात यहाँ की छटा अद्भुत आयाम लेकर प्रस्तुत होती है। ऐसा प्रतीत होता है मानो सम्पूर्ण कोल्हापुर इस तालाब के चारों ओर सिमट गया हो। तालाब के चारों ओर चटपटे खाद्यपदार्थों के विक्रेताओं की कतार लग जाती है। इसे कोल्हापुर की रंकाला चौपाटी भी कहते हैं।
रंकाला तालाब का वर्तमान रूप मानव निर्मित है। तालाब के समीप रंक भैरव का मंदिर है जिन्हें श्री महालक्ष्मी देवी का रक्षक माना जाता है। इन्ही के नाम पर इस तालाब का नाम रंकाला तालाब पड़ा। इसे कोल्हापुर का मरीन ड्राइव भी कहा जाता है। दूर दूर से पर्यटक यहाँ आकर यहाँ के सुखद वातावरण का आनंद उठाते हैं।
कैलाशगढ़ची सावरी मंदिर अर्थात् कैलाशगढ़ की सावरी मंदिर
कोल्हापुर की यात्रा नियोजित करते समय यह स्थल मेरी सूची में नहीं था। ट्विट्टर से मुझे इस अप्रतिम मणि की जानकारी प्राप्त हुई।
कोल्हापुर नगर की गलियों के भीतर यह एक छोटा सा मंदिर है। इस प्राचीन शिव मंदिर का कुछ वर्षों पूर्व जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में भगवान् शिव कैलाशेश्वर के रूप में विराजमान हैं। ठीक वैसे ही जैसे वे काशी में विश्वेश्वर के रूप में विराजमान हैं। कोल्हापुर को करवीरपुर क्षेत्र का काशी जो कहा जाता है। मंदिर द्वार के समक्ष दीपस्तंभ एवं एक सुनहरे रंग का नंदी विराजमान हैं।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा घोषित शिवाजी महाराज का एक अधिकारिक चित्र मुझे यहाँ तक खींच लाया था।
इन मंदिर में प्रसिद्ध चित्रकार श्री जी. काम्बले द्वारा चित्रित अनेक अद्वितीय कलाकृतियाँ हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- शिवाजी दरबार
- शाहूजी महाराज का रूपचित्र
- महाभारत युद्ध का दृश्य अर्थात् रणभूमि का तीन आयामी चित्र
- शिव तांडव नृत्य का दृश्य
पंचगंगा नदी तथा इसके सुन्दर मंदिर
कोल्हापुर पंचगंगा नदी के किनारे बसा है। मैं तो नदी देखने की मंशा से यहाँ आ रही थी। मुझे किसी ने यह नहीं कहा था कि इन नदी पर सुन्दर घाट भी हैं। पन्हाला दुर्ग जाते समय जब नदी के ऊपर स्थित सेतु पर पहुँची, मेरी दृष्टी अनायास ही इन घाटों पर पड़ गयी। मैंने तभी निश्चय कर लिया कि पन्हाला दुर्ग से वापिस आते समय मैं यहाँ अवश्य आऊँगी।
पंचगंगा के घाट भिन्न भिन्न मंदिरों एवं ऊंचे दीपस्तम्भों से भरे हैं। सभी मंदिर शिलाओं से निर्मित हैं। प्रत्येक मंदिर में शुण्डाकार शिखर का एकल कक्ष तथा मुख्य द्वार के समक्ष एक नंदी विराजमान है। सर्व मंदिर विभिन्न तलों में स्थित हैं। मैं यहाँ अप्रैल मास में आयी थी। तब कुछ मंदिर जल सतह से नीचे, डूबे हुए थे। उनके केवल छत दिखाई पड़ रहे थे। कुछ मंदिर आधे डूबे हुए थे तो कुछ के चरणों तक जल पहुँच चुका था।
इन्हें देख मुझे बुरहानपुर में ताप्ती नदी के घाटों पर स्थित मंदिरों का स्मरण हो आया। वहां पर मंदिरों द्वारा जल सतह को मापा जाता है। मैं सोचने लगी कि क्या पंचगंगा के घाटों पर स्थित मंदिरों द्वारा भी जल सतह मापा जाता था? किसी ने मेरे प्रश्न का संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। घाट के समक्ष एक बड़ा मंदिर है जो अधिकतर बंद रहता है।
घाट पर मुझे उत्कीर्णित नायक स्मारक शिलाएं दिखीं जो युद्ध में प्राणों की आहुति देने वाले वीर नायकों की स्मृति में लगाए जाते हैं। आसपास देख मेरा हृदय भारी हो गया। चारों ओर गन्दगी तथा कचरा फैला हुआ था। आशा है कोल्हापुर के निवासी, पर्यटक तथा अधिकारी इस विषय में ठोस कदम उठायें। यह स्थानीय निवासियों एवं पर्यटकों के लिए सुन्दर आमोद स्थल बन सकता है। विशेषतः सूर्योदय एवं सूर्यास्त का समय अत्यन्त मनभावन प्रतीत होगा।
एक व्यक्ति ने मुझे कहा कि ये मंदिर ना होकर कोल्हापुर के राजपरिवार के स्वर्गीय सदस्यों की स्मृति में निर्मित छत्रियाँ हैं। यदि आपके पास इस विषय में जानकारी हो तो कृपया मुझसे साझा करें। आपका प्रयास सराहनीय होगा।
टाउन हॉल संग्रहालय
एक ओर नवीन महल का संग्रहालय पर्यटकों में अत्यंत प्रसिद्ध है, वहीं टाउन हॉल संग्रहालय में स्थायीय पुरातात्विक रत्नों का संग्रह है। एक समय यह स्थान एक जैन मठ था जिसे १९४९ में संग्रहालय में परिवर्तित किया गया था। इस संरचना की वास्तुशैली पूर्णतः औपनिवेशिक अर्थात् ब्रिटिश शैली की है।
टाउन हॉल संग्रहालय में दर्शनीय कुछ कलाकृतियाँ इस प्रकार हैं:
- शिवलिंग जिनके ऊपर श्री यन्त्र है
- विष्णु मूर्तियाँ
- गज प्रतिमाएं
- कोल्हापुर के ब्रम्हपुरी क्षेत्र से उत्खनित कलाकृतियाँ
- नायक शिलाएं तथा सती शिलायें
लावणी नृत्य
मेरी डेक्कन ओडिसी यात्रा के समय मुझे कोल्हापुरी लावनी नृत्य की एक झलक प्राप्त हुई थी। स्थानीय दूरदर्शन के कलाकारों ने इस क्षेत्र के नृत्य एवं गायन की विभिन्न शैलियों का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन का शीर्षक था, इस क्षेत्र के ग्रामीण परिवारों के जीवन का एक दिवस। इस प्रदर्शन का समापन भाग उन्होंने कोल्हापुर की अधिष्ठात्री देवी अम्बाबाई को समर्पित किया था। सम्पूर्ण कक्ष उर्जायमान हो गया था। हमें भी देवी की उपस्थिति का आभास होने लगा था।
मुजरा
कोल्हापुर में आयोजित होने वाले मुजरे की घोषणा मैंने एक फलक पर देखी। किन्तु मैं इस प्रदर्शन को देख नहीं पायी। अपनी अगली कोल्हापुर यात्रा में मैं ऐसे प्रदर्शन को देखने का प्रयत्न अवश्य करूंगी। आपकी अनुमति से यह स्थान तब तक के लिए रिक्त छोड़ती हूँ।
क्या खाएं?
यूँ तो कोल्हापुर अपनी सामिष भोजन पद्धति की लिए प्रसिद्ध है। किन्तु शाकाहारियों के लिए भी यहाँ खाद्य पदार्थों के आकर्षणों में कमी नहीं है। मिसाल-पाव तथा वाडा-पाव जैसे कई चटपटे अल्पाहार भी प्रसिद्ध हैं। मैंने एक दिन भवानी मंडप के भीतर इन पदार्थों का भरपूर आस्वाद लिया। साबूदाना वडा इनमें मेरा सर्वाधिक प्रिय नाश्ता है।
कोल्हापुर के निकट अन्य दर्शनीय स्थल
कोपेश्वर महादेव मंदिर – यह एक अत्यंत आकर्षक प्राचीन मंदिर है जो कोल्हापुर से लगभग ७० की.मी. दूरी पर स्थित है। इसका दर्शन कोल्हापुर में ठहर कर एक-दिवसीय यात्रा के रूप में किया जा सकता है।
पन्हाला का गढ़ – यह कोल्हापुर की बाहरी सीमा पर स्थित है।
नरसोबाची वाडी – यह मंदिर पंचगंगा एवं कृष्णा नदी के संगम पर स्थित है। इस मंदिर के दर्शन आप कोपेश्वर मंदिर दर्शन के साथ कर सकते हैं।
ज्योतिबा मंदिर – यह एक अत्यंत मनभावन मंदिर है। यहाँ भगवान् को चटक गुलाबी गुलाल अर्पित किया जाता है।
सिद्धगिरी संग्रहालय – यह संग्रहालय महाराष्ट्र के साधारण जनजातीय जीवन को सजीव करने का प्रयास है। मेरे विचार से यह सफल प्रयास नहीं है।
अम्बोली घाट – पश्चिमी घाट का यह सर्वाधिक प्रसिद्ध जलप्रपात है।
कोल्हापुर के लिए यात्रा सुझाव
महालक्ष्मी मंदिर, टाउन हॉल संग्रहालय एवं नवीन महल के भीतर छायाचित्रिकरण की अनुमति नहीं है। अन्य अधिकतर स्थानों में छायाचित्रिकरण की जा सकती है।
कोल्हापुर के दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए ऑटो किराए पर लेकर घूमना आसान है। कोल्हापुर में ऑटो सर्वथा उपलब्ध हैं।
कोल्हापुर में हर प्रकार के अतिथिगृह उपलब्ध हैं। मैं मराठा रेजीडेंसी में ठहरी थी। उचित मूल्य में उपलब्ध यह एक उत्तम स्थान है।
कोल्हापुर नगर मुंबई, पुणे एवं बेलगावी से हर प्रकार के यातायात साधनों द्वारा जुड़ा हुआ है।
जितना अच्छा लेख है उतना ही अच्छा अनुवाद किया गया है। लेखिका एवं अनुवादिका, दोनों को साधुवाद।
धन्यवाद विकास