कोंकण रेल्वे – हरियाली और झरनों में खो जाने का आनंद

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कोंकण रेल्वे को हमेशा से आधुनिक भारत की अभियांत्रिकी की उत्कृष्ट कृति के रूप में देखा जाता है। ऐसे तटीय क्षेत्र , जो कस्बों और शहरों से आबाद है , ऐसे भू-भागों में रेल्वे लाइन बनाना कोई आसान काम नहीं है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि , कोंकण रेल्वे के ज़्यादातर स्टेशन शहरों से थोड़े दूर ही हैं, जिनकी तुलना में पुराने समय के स्टेशन्स आमतौर पर शहरों में ही स्थित हैं ।

कोंकण रेलवे

कोंकण रेल्वे नाज़ुक पर्वतमालाओं से तथा कम ठोस और रेतीले रास्तों से गुजरती हुई जाती है। इसके अलावा यहाँ पर विभिन्न नदियां बहती हैं जिन्हें पार करते हुए गुजरना पड़ता है।

रत्नागिरी रेलवे स्टेशन
रत्नागिरी रेलवे स्टेशन

कोंकण रेल्वे

इससे पहले भी मैं कोंकण रेल्वे में सफर कर चुकी हूँ। दरअसल , अब जब मैं गोवा में रहती हूँ तो मेरा रेल्वे का हर सफर कोंकण रेल्वे से ही होता है कम से कम इस भाग में तो। केरल की यात्रा के समय मैंने दक्षिण गोवा की यात्रा की और अहमदाबाद की यात्रा के समय उत्तर गोवा की। इस बार बरसात के दिनों में हम गणपती पूले गए और वहाँ से वापस लौटते समय कोंकण रेल्वे का मजा लूटने के लिए हम ट्रेन से लौटे। कोंकण रेल्वे की सवारी हमेशा सुंदर होती है। लेकिन बरसात के मौसम में पश्चिमी घाटी से बहने वाले झरनों का नज़ारा देखते ही आपकी सांसे थम सी जाती हैं , आँखें खुली की खुली रह जाती हैं।

रत्नागिरी रेलवे स्टेशन पे वारली चित्रांकन
रत्नागिरी रेलवे स्टेशन पे वारली चित्रांकन

हम रत्नागिरी के स्टेशन पर दोपहर के खाने के बाद पहुंचे , जहां से हमे गोवा के लिए ट्रेन पकडनी थी। वहाँ के दीवारों पे वार्ली चित्रकला की सुंदर कलाकृतियों को देखकर मेरा मन मुग्ध हो गया। वहाँ के रैम्प की जो  तिरछी दीवार है उसे गेरुआ रंग से रंग दिया गया था और उसपर सफ़ेद रंग के रूपांकनों के चित्र बनाए गए थे। थोड़ा नजदीक से देखने पर पता चला कि वहाँ के पानी वाले कूलर और खिड़कियों के चौखटों को भी सुंदर ढंग से सजाया गया था। इन कलाकृतियों पर चित्रकारों के नाम और पता भी दृष्टिगोचर होता है । कितनी अच्छी तरकीब है। स्थानीय कलाकृतियों का सार्वजनिक जगहों पर प्रयोग कर स्थानीय कारीगरों के लिए रोजगार निर्माण करना।

कोंकण रेल्वे पर जब मैं गलत ट्रेन में चढ़ी

अपनी पूरी जिंदगी में मैंने अपनी ज़्यादातर यात्राएं ट्रेन से ही की हैं। अपने छात्र दिनों में मुझे चंडीगढ़ से औरंगाबाद अपने परिवार से मिलने जाते समय विभिन्न ट्रेने बदलनी पड़ती थी लेकिन , कभी भी मैं गलत ट्रेन में नहीं चढ़ी। पर रत्नागिरी स्टेशन पर यह हुआ । मांडवी एक्सप्रेस , जो एक तरफ से उत्तर की ओर मुंबई जाती है और दूसरी तरफ से दक्षिण की ओर मडगांव जाती है। दोनों ट्रेने एक ही समय पर स्टेशन पहुंची और मैं गलती से मुंबई जानेवाली ट्रेन में चढ़ गयी।

कोंकण रेल्वे से मनोरम दृश्य
कोंकण रेल से मनोरम दृश्य

शुक्र है कोंकण रेल्वे के कर्मचारियों के मित्रता भरे व्यवहार का कि , उन्होंने हमे चिपलून स्टेशन पर उतर कर गोवा जाने वाली अगली ट्रेन पकड़ने की सलाह दी। इसका अर्थ यही हुआ कि अब 2-3 घंटे चिपलून में ही गुजारने पड़ेंगे। इसका यह भी अर्थ हुआ की हमे अपने एसी कम्पार्टमेंट के बजाय सेकंड क्लास के साधारण कम्पार्टमेंट से सफर करना होगा। लेकिन इसका एक फायदा यह हुआ कि हमे असापास के सारे नजारों का अबाधित लुत्फ उठाने का मौका मिला।

मिलने वाले झरनों की बहार

कोंकण रेल्वे की यात्रा के समय आपको अनेक झरनों की झलक मिलती है। ये झरने ज़्यादातर मौसमी होते हैं और बरसात के मौसम में बारिश पर निर्भर होते हैं। जैसे जैसे ट्रेन सुरंगों से गुजरती हुई जा रही थी , नदियों को पार करती हुई संकीर्ण पटरियों से जा रही थी , वहाँ के सारे नज़ारे देखने लायक थे। ऐसा लगा जैसे मैं सारी जिंदगी इसी ट्रेन में गुज़ार सकती हूँ।

कोंकण के मन मोहक झरने
कोंकण के मन मोहक झरने

रास्तों के दोनों तरफ की शोभा बढ़ा रहे इन झरनों ने किसी एक तरफ देखते रहना मुश्किल कर दिया था । समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरफ देखूँ और किस तरफ नहीं। वहाँ पर व्यापक भागों में हरियाली ही हरियाली फैली हुई थी और बीच-बीच में ही पानी छितराया हुआ था। सुरंगों के भीतर जाने और सुरंगों से बाहर निकलने में बहुत मजा आ रहा था। मेरे लिए तो आश्चर्य कि बात यह थी कि सुरंगों के भीतर भी पानी टपक रहा था। एक पल के लिए मुझे लगा कि क्या इन सुरंगों से गुजरना सुरक्षित है? लेकिन इससे पहले कि में कुछ और सोच पाती , दूसरे ही पल एक और झरना मेरी आँखों के सामने था।

कोंकण क्षेत्र के सावन के झरने
कोंकण क्षेत्र के सावन के झरने

छः घंटे के विलंबित प्रवास के कारण हम आधी रात को घर पहुंचे। जैसा कि कहा जात है , हर विपत्ति में एक अवसर छिपा होता है।

 कोंकण तट का पूरा मजा लूट लेने की आपकी खुशी को दुगुना कर देती है। और झरने तो जैसे सोने पे सुहागा।

अनुवादक – रूनिता नायक

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