२० उत्कृष्ट कृष्ण भजन – जन्माष्टमी के लिए बॉलीवुड की सदाबहार सौगात

0
2185

कृष्ण भजन अनेक रसों एवं भावनाओं से ओतप्रोत होते हैं। किसी में गोकुल में बाल गोपाल की चंचल क्रीड़ाओं का आनंद है तो किसी में उनकी युवावस्था में ब्रज भूमि की गोपियों संग की रासलीलाओं का बखान है। किसी में राधा का निश्छल प्रेम है तो किसी में मीरा की भक्ति है। कृष्ण के भजन हर प्रकार के भक्तों की भक्ति से सराबोर होते हैं। कृष्ण के लिए लिखे गीतों में श्रृंगार रस एवं भक्ति रस की प्राधान्यता होती है। कृष्ण की भक्ति एवं प्रेम के अनेक रंगों को बॉलीवुड ने सुन्दरता से सजीव किया है। उनमें से कुछ भजन जो मुझे अत्यंत प्रिय है, मैं आपके लिए ले कर आयी हूँ।

बॉलीवुड के चित्रपटों से कृष्ण के कुछ भजन

कृष्ण भजन यह कालक्रम के अनुसार संग्रहीत सूची है।

मोहे पनघट पे – मुगल-ए-आजम (१९६०)

एक ख्यातिप्राप्त चित्रपट का एक सुमधुर गीत! इस गीत के आरम्भ में जन्माष्टमी उत्सव का दृश्य प्रदर्शित किया है। यह गीत स्वयं भी चंचल व मनोहर चेष्टाओं द्वारा कृष्ण एवं गोपियों के मध्य के प्रेम को उजागर करता है। सुन्दर परिधान एवं आभूषण धारण कर मधुबाला ने अपने सुकोमल हावभाव द्वारा उत्कृष्ट नृत्य प्रस्तुत किया है। यह गीत व नृत्य मंत्र मुग्ध कर देता है। यहाँ सुनिए.

मधुबन में राधिका नाचे रे – कोहिनूर (१९६०)

यह उन कुछ गीतों में से है जिसमें कृष्ण की अपेक्षा राधा के विषय में कहा गया है। ऐसा प्रतीत होता है मानो कृष्ण स्वयं अपनी सर्वप्रिय गोपिका, अपनी मनभावन सखी राधा का हमसे परिचय करा रहे हैं।

गोविंदा आला रे – ब्लफमास्टर (१९६३)

दही हाँडी उत्सव का किसी भी चित्रपट में कदाचित यह सर्वप्रथम प्रदर्शन था। कृष्ण अथवा गोविंदा के पात्र को अल्हड़ शम्मी कपूर एवं उनकी चंचलता के अतिरिक्त कौन पूर्ण न्याय दे सकता था? मोहम्मद रफी के मंत्रमुग्ध करते मधुर स्वर इस गीत का आनंद दुगुना कर देते हैं। इस गीत का श्वेत-श्याम चित्रीकरण हमें प्राचीन युग में ले जाता है तथा सोचने को बाध्य करता है कि उस समय सभी उत्सव शालीनता से मनाये जाते थे। इस गीत के अंत का चरमोत्कर्ष मुझे अत्यंत भाता है जिसमें अंततः दही की मटकी फोड़ी जाती है। इस चित्रीकरण में पुराने रुपयों पर अवश्य ध्यान दीजिये। निम्न विडियो में इसी गीत पर आज के महानगरों की दही हाँडी दिखाई गयी है। यदि ब्लफमास्टर चित्रपट में चित्रित गीत देखना चाहें तो यूट्यूब पर यहाँ देखें।

कृष्णा ओ काले कृष्णा – मैं भी लड़की हूँ (१९६४)

जब मैं इस संस्करण के लिए शोध कार्य कर रही थी तब मुझे इस गीत के विषय में अनायास ही ज्ञात हुआ। इस चित्रपट में मीनाकुमारी एक सांवली कन्या का पात्र निभा रही है। इस गीत में वह कृष्ण को उलाहना दे रही है कि कैसे कृष्ण का श्याम रंग उसके लिए अभिशाप बन गया है। यह गीत हमारे समाज की संकुचित मानसिकता को दर्शाता है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही गौर वर्ण की त्वचा को प्राधान्यता दी जाती है। हमारे सभी प्रमुख देव श्याम वर्ण होने के पश्चात भी हमारे देश में गौर त्वचा की कामना की जाती है तथा श्यामवर्ण के व्यक्तियों की अवहेलना की जाती है। भगवान कृष्ण की तो ना केवल त्वचा, अपितु उनका नाम भी श्याम है।

बड़ी देर भई नंदलाला – खानदान (१९६५)

इस कृष्ण भजन में ब्रज की गोपिकाओं का नंदलाला के प्रति ललक एवं उत्कंठा को दर्शाया गया है। इसमें वे कृष्ण को पुकार रही हैं कि वे पुनः आयें एवं इस जगत की रक्षा करें।

कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार – शागिर्द (१९६७)

श्री कृष्ण की भक्ति से ओतप्रोत यह कृष्ण भजन मुझे उस समय की कल्पना करने पर बाध्य कर देता है जब भारतीय घरों में प्रतिदिन प्रातः भजन गाना कदाचित उनकी दैनिक जीवन शैली का एक अभिन्न भाग होता था।

ओ कन्हैया – राजा और रंक (१९६८)

यह एक कम प्रचलित किन्तु लम्बा गीत है जिसमें श्री कृष्ण की दो पत्नियां, रुक्मिणी एवं सत्यभामा कृष्ण का साथ पाने के लिए आपस में स्पर्धा कर रही हैं। वे कृष्ण के प्रति अपना प्रेम व्यक्त कर रही हैं तथा उनसे आग्रह कर रही हैं कि वे उनके संग चलें। कृष्ण अपनी दोनों पत्नियों की भक्ति एवं समर्पण देख निश्चय नहीं कर पा रहे हैं कि वे किसके संग जाएँ। संयोग से, कृष्ण की पत्नियों का उल्लेख करते गीत एवं भजन अधिक नहीं हैं। यह गीत एक नृत्य नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसमें कविता एवं गायन के कथावाचन रूप को भी सम्मिलित किया है।

शोर मच गया शोर – बदला (१९७४)

इस गीत में कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में आयोजित दही हाँडी के उल्ल्हास को प्रदर्शित करने का सफलतापूर्ण प्रयास किया है। गोपियों द्वारा ऊँचाई पर लटकाई दही की हाँडी तक पहुँचने के लिए गोपाल रूपी नवयुवकों का उत्साह दर्शनीय होता है। इसका संगीत शम्मी कपूर के ‘गोविंदा आला रे’ का स्मरण करता है।

श्याम तेरी बंसी पुकारे – गीत गाता चल (१९७५)

इस कृष्ण भजन में प्रत्येक व्यक्ति का श्री कृष्ण से सम्बन्ध दर्शाया गया है। इसमें यह बताया गया है कि भगवान हम सभी से समान रूप से प्रेम करते हैं। वे हम सब के हैं।

यशोमती मैय्या से – सत्यम शिवम् सुन्दरम (१९७८)

इस गीत से मेरी अनेक स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। मैंने अपने बालपन में अनेक समारोहों पर इस गीत की प्रस्तुति की थी। हमारे पास इसका एल पी रिकॉर्ड था जिसमें यह गीत दो बार बजता था, एक जो यहाँ प्रस्तुत किया गया है तथा दूसरा वयस्क स्वर में गाया गया है। यह मेरा सर्वप्रिय कृष्ण भजन है। मैं प्रत्येक जन्माष्टमी के अवसर पर इसे अवश्य सुनती तथा गुनगुनाती हूँ।

मेरे तो गिरिधर गोपाल – मीरा (१९७९)

वाणी जयराम के भक्ति से ओतप्रोत स्वर में मीरा का यह भजन, ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल’, चित्रपटों में प्रदर्शित, मीरा द्वारा रचित भजनों पर आधारित एकमात्र भजन है। इसे संगीत बद्ध किया था, पंडित रवि शंकर ने।

और पढ़ें: चित्तौडगढ़ में मीरा का मंदिर

तू मन की अति भोरी – गोपाल कृष्ण (१९७९)

सूरदास द्वारा रचित कृष्ण भजनों में से ‘मैय्या मोरी मैं नहीं माखन खायो’ यह मेरा सर्वप्रिय भजन है। किसी भी चित्रपट निर्माता ने अब तक इस गीत का प्रयोग किसी भी चित्रपट में नहीं किया है। इस गीत में बाल कृष्ण माता यशोदा से गुहार कर रहे हैं कि उन्होंने माखन चोरी कर नहीं खाया है। उनके बाल मित्रों ने उनके मुख पर माखन यूँ ही लगा दिया है। गोपियाँ व्यर्थ ही उनकी शिकायत कर रही हैं। इन भावनाओं को यदि किसी गीत ने उतना ही न्याय प्रदान किया है तो वह है, ‘तू मन की अति भोरी’। जिस बाल कलाकार ने कृष्ण की भूमिका की है, वह बाल कृष्ण के समान मनमोहक एवं चंचल है।

मच गया शोर सारी नगरी में – खुद्दार (१९८२)

दही हाँडी के उल्लासपूर्ण उत्सव को अमिताभ बच्चन एवं परवीन बाबी पर चित्रित किया गया है। गीत व नृत्य के आवरण में कुछ अनकही को भी कहा गया है। रोशन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार एवं लता मंगेशकर ने इस गीत को स्वर प्रदान किये हैं।

करना फकीरी फिर क्या –  बड़े घर की बेटी (१९८९)

मीरा द्वारा रचित भजनों में यह मेरा सर्वाधिक प्रिय भजन है। मूल भजन की इस प्रस्तुति में कुछ फ़िल्मी परिवर्तन हैं किन्तु इसके पश्चात भी यह एक सुन्दर भजन प्रस्तुति है।

मीरा चित्रपट में भी इस भजन को प्रदर्शित किया है। यहाँ उसका आनंद लीजिये।

आला रे गोविंदा – काला बाजार (१९८९)

 ‘गोविंदा आला रे’ का ही एक अन्य रूप! कदाचित इस गीत के नवीनतम संस्करण आते ही रहेंगे।

मोहे छेड़ो ना नन्द के लाला – लम्हे (१९९१)

इस चित्रपट में कई मधुर व लोकप्रिय गीत हैं किन्तु मुझे उस सब में यह गीत सदा स्मरण रहता है। इस गीत का अविस्मरणीय तत्व है, भगवान एवं भक्त के मध्य मैत्री सम्बन्ध। इस गीत में नायिका स्वयं की कल्पना ब्रज की एक सर्वसामान्य ब्रजबाला के रूप में कर रही है, ऐसी ब्रजभूमि जहां सभी ब्रजवासी कृष्ण से असीम प्रेम करते हैं। इस चित्रपट में नायिका श्री देवी अत्यंत सुन्दर दिखाई दी है। उनके मुखड़े के भाव भी अनमोल प्रतीत हो रहे हैं।

मोरे कान्हा जो आये पलट के – सरदारी बेगम (१९९६)

यह ठुमरी ब्रज की होली का चित्रण करती है जहां राधा एवं गोपिकाएं कान्हा संग होली खेलने हेतु सज्ज हो रही हैं। कान्हा की प्रतीक्षा करते हुए वे अपने काल्पनिक विश्व में ही कान्हा के संग होली खेल रही हैं। एक ओर कान्हा उन्हें रंगों में सराबोर कर रहे हैं तो दूसरी ओर राधा एवं गोपिकाएं उन्हें गारी सुना रही हैं।

राधा कैसे ना जले – लगान (२००१)

‘राधा कैसे ना जले’ यह गीत ब्रज में श्री कृष्ण की राधा एवं गोपिकाओं संग रासलीला के क्षणों को सजीव करता है। राधा की जो मनःस्थिति है, वही मनःस्थिति ब्रज की सभी गोपिकाओं की है। आशा भोंसले के स्वरों ने राधा की ईर्ष्या को पूर्ण सत्यता से उजागर किया है। वहीं उदित नारायण ने श्री कृष्ण के चंचल शांत स्वभाव का सुन्दर चित्रण किया है। यद्यपि यह कृष्ण भजन नहीं है, तथापि यह उन क्वचित गीतों में से है जिनमें कृष्ण की रासलीला के क्षणों को प्रदर्शित किया गया है।

वो किस्ना है –  किस्ना द वारियर पोएट (२००४)

यह कृष्ण की स्तुति का एक आधुनिक रूप है। मूल संगीत वाद्य के रूप में बांसुरी की तान का प्रयोग कर इस गीत को नयी उंचाईयों तक पहुँचाया है। सुखविंदर सिंग का प्रबल स्वर सोने पर सुहागा के समान है। मुझे सुखविंदर सिंग का स्वर अत्यंत भाता है।

मोहे रंग दो लाल – बाजीराव मस्तानी (२०१५)

यह हमारे चित्रपटों में प्रदर्शित उन क्वचित भजनों में से एक भजन है जिसमें शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य दोनों का प्रयोग किया है। इसी कारण मैंने इस गीत को इस सूची में सम्मिलित किया है।

मैंने यह कृष्ण भजन सूची कैसे चुनी?

इस सूची के लिए भजनों एवं गीतों का चयन करते समय मैंने सर्वप्रथम उन भजनों तथा गीतों को चुना जो मुझे ज्ञात थे। जैसे ‘यशोमती मैय्या से’, ‘मच गया शोर’ इत्यादि। यूट्यूब ने मुझे इस कार्य में सहायता की जब उसने मुझे कुछ दुर्लभ भजनों का सुझाव दिया, जैसे ‘ओ काले कृष्णा’। ऐसे अनेक गीत प्रचलित हैं जिनमें कृष्ण, गोविंद अथवा राधा शब्दों का प्रयोग किया गया है किन्तु उनका श्री कृष्ण से कोई सम्बन्ध नहीं है । अतः मैंने उन्हें अपनी सूची में सम्मिलित नहीं किया है। कुछ गीत चित्रपट के कारण लोकप्रिय हैं, ना कि एक भजन के रूप में। मैंने उनका चयन भी नहीं किया। मैंने उन भजनों/गीतों को अधिक प्राधान्यता दी है जो श्री कृष्ण एवं उनके जीवन का गुणगान करते हैं तथा उनका उत्सव मनाते हैं।

यदि आप अन्य भजनों /गीतों के विषय में जानते हैं जो इस मापदंड के अनुरूप है, तो उनके विषय में टिपण्णी खंड में अवश्य लिखें। जय श्री कृष्ण!

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here