भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखंड को प्रकृति ने अनेक अद्भुत उपहारों से अलंकृत किया है। उनमें से एक है, इस प्रदेश के मनमोहक पक्षी। भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले पक्षियों की विविध प्रजातियों में से लगभग ७०० प्रजातियाँ उत्तराखंड में भी देखी गयी हैं।
अब तक मैंने देवभूमि उत्तराखंड में जितने भी भ्रमण किये हैं, मेरी भ्रमण सूची हिमालय, सूर्योदय के दृश्यों, वहाँ के परिदृश्यों आदि के चारों ओर ही केन्द्रित रही है। यद्यपि उत्तराखंड में पाए जाने वाले भिन्न भिन्न मनभावन पक्षियों के दर्शन करने की मेरी अभिलाषा सदा से थी, तथापि मैं वहाँ के पक्षियों के दर्शन के उद्देश्य से एक विशेष यात्रा का नियोजन अब तक नहीं कर पायी हूँ।
पूर्णरूपेण ना सही, कुमाऊँ के पक्षियों पर सरसरी दृष्टि डालने का अवसर मुझे अवश्य प्राप्त हुआ। कुमाऊँ के इन मनमोहक पक्षियों ने मुझे इस प्रकार मंत्रमुग्ध किया कि मैंने पक्षी दर्शन के उद्देश्य से भविष्य में एक पूर्वनियोजित भ्रमण करने का निश्चय अवश्य कर लिया है।
कुमाऊँ में विविध पक्षियों के दर्शन
जब तक कुमाऊँ में पक्षी दर्शन हेतु विशेष भ्रमण की मेरी योजना यथार्थ में परिवर्तित नहीं हो जाती, आईये मैं कुमाऊँ क्षेत्र के कुछ ऐसे पक्षियों से आपका परिचय कराती हूँ जिन्होंने मेरे पूर्व भ्रमण में मुझे अपने दर्शन देकर अनुग्रहीत किया था।
काठगोदाम
कुमाऊँ में हमारे सड़क भ्रमण का प्रथम पड़ाव था, काठगोदाम। हल्दवानी पार कर हम काठगोदाम पहुँचे। यहीं से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र आरम्भ होते हैं। दिल्ली से लम्बी यात्रा कर जब हम यहाँ पहुँचे, हमारी क्षुधा अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी। दोपहर के भोजन के लिए हम नदी के तट पर स्थित एक जलपानगृह पर रुके। अकस्मात् ही सुग्गों की किलबिलाट ने हमारा ध्यान आकर्षित किया। नदी के दूसरे तट पर दर्रे के भीतर बैठे दर्जन भर लाल सर वाले टुइयाँ सुग्गे अथवा टुइयाँ तोते (Plum-Headed Parakeet) चहचहा रहे थे। कुछ क्षणों पश्चात हमने एक ओकाब (Steppe Eagle) को नदी के ऊपर उड़ते हुए देखा। वह हमारे जलपानगृह के छज्जे के अत्यंत निकट उड़ रहा था। इस प्रकार अनायास ही हमारा पक्षी दर्शन आरम्भ हो गया था।
भीमताल
काठगोदाम से कुछ दूरी पार कर हम भीमताल पहुँचे। कुमाऊँ मंडल विकास निगम के विश्राम गृह में ठहरने की सर्व औपचारिकताएं पूर्ण करने के पश्चात हम नौकुचिया सरोवर पहुँचे। वहाँ रामचिरैया (Kingfisher) से लेकर काले बगुलों (Heron) की विविध प्रजातियों तक अनेक पक्षी थे। जल क्रीड़ाओं एवं हंसों के एक विशाल समूह ने हमें मंत्रमुग्ध कर रखा था। कुछ नन्हे बालक-बालिकाएं सरोवर के जल में बिस्कुट के टुकड़े डाल रहे थे जिनसे आकर्षित होकर अनेक हंस वहाँ एकत्रित हो गए थे। टुकड़े समाप्त होने पर वे कलरव करते हुए उनसे अधिक भोजन की मांग कर रहे थे। उनका पीछा करते हुए वे सरोवर के सोपानों तक पहुँच गए थे।
अगले दिवस प्रातः काल हम अपने विश्राम गृह के उद्यान में बैठकर अपनी प्रातःकालीन चाय की प्रतीक्षा कर रहे थे कि अकस्मात् ही हमें पक्षियों की किलबिलाट सुनाई पड़ी। वहाँ हमने अनेक पक्षियों को देखा। उनमें से कुछ ऐसे पक्षी थे जिन्हें हम सर्वप्रथम प्रत्यक्ष देख रहे थे। इससे पूर्व हमें उन पक्षियों को देखने एवं उनके चित्र लेने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था। वहाँ लाल चोंचधारी नीली मैगपाई (Red- Billed Blue Magpie), हिमालयी बुलबुल, पहाड़ी बुललचष्म (Scarlet Minivet) तथा जंगली मैना जैसे अनेक पक्षी दृष्टिगोचर हुए।
भीमताल के निकट पदभ्रमण करने के पश्चात हम सातताल पहुँचे। यहाँ हमने कुछ जलक्रीड़ाओं का आनंद उठाया। सरोवर के सानिध्य में पदभ्रमण किया। वहाँ हमें कौए के समान श्याम वर्ण पक्षी अनवरत दिखाई पड़ रहे थे। किन्तु उनका आचरण कौओं के समान प्रतीत नहीं हो रहा था। साधारणतः कौए भोजन की अपेक्षा में मानवों के समीप मंडराते रहते हैं। किन्तु ये पक्षी हमसे लुका-छिपी खेल रहे थे। उनके चित्र लेने के हमारे सर्व प्रयास निष्फल हो रहे थे। अंततः उनके कुछ चित्र लेने में हम सफल हुए। उन चित्रों को देख विशषज्ञों ने हमें जानकारी दी कि वह पक्षी सीटी बजाने वाला नीलवर्ण कस्तुरा (blue-Whistling Thrush) था। मुक्तेश्वर
हमारा अगला पड़ाव था, मुक्तेश्वर। प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही हम विश्राम गृह से चल पड़े थे। हिमालय के पर्वत शिखरों के मध्य से उगते सूर्य को देखने की अभिलाषा थी। अप्रतिम सूर्योदय के दर्शन तो हुए ही, साथ ही भिन्न भिन्न पक्षियों को देख रोम रोम आनंदित हो गया। हमें वहाँ अनेक श्याम शीर्षा वनकाग (Black-Headed Jay), धूसर पिद्दा (Grey Bush Chat), बबूना (Oriental White-Eye), हिमालयी बुलबुल, मस्जिद अबाबील (Striated Swallow), गौरैया (Russet-Sparrow) आदि के दर्शन हुए। अप्रतिम सूर्योदय के दर्शन के पश्चात पदभ्रमण करते हुए हमें कठफोड़वा (Rufous-Bellied Woodpecker) के दर्शन का आनंद प्राप्त हुआ।
बिनसर
हिमालय पर्वत श्रंखलाओं का निकट से दर्शन करने के लिए हमने बिनसर में पड़ाव डाला। वहाँ अनेक अचम्भे हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने वहाँ काला तीतर (Black Francolin) देखा जो हमें देखते ही तुरंत कहीं जाकर छुप गया। वहाँ अनेक कछुआ कबूतर (Oriental Turtle Dove) थे जो बिनसर में आये पर्यटकों का आनंदपूर्वक अभिनन्दन कर रहे थे।
कुमाऊँ में पक्षी दर्शन के लिए कुछ आवश्यक सूचनाएं
इस संस्करण में अब तक जो मैंने प्रस्तुत किया है, वह हिमशैल का केवल शीर्ष है। देवालय शिखर का कलश मात्र है। उत्तराखंड में अनेक असाधारण हिमालयी पक्षियों का वास है जो केवल इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं।
- उत्तराखंड एक पर्वतीय क्षेत्र है जहाँ मार्ग अत्यंत जोखिम भरे तथा संकरे होते हैं। पक्षियों के अवलोकन तथा चित्रांकन हेतु अपने वाहनों को इन संकरे मार्गों पर जहाँ चाहें वहाँ खड़ा ना करें।
- पक्षी दर्शन का सर्वोत्तम साधन है, पदभ्रमण। प्रातः, अरुणोदय काल में, अर्थात सूर्योदय से कुछ पूर्व ही नगरी वातावरण से दूर जाकर प्राकृतिक परिवेश में पदभ्रमण प्रारंभ करें। आप विविध पक्षियों के दर्शन उनके प्राकृतिक परिवेश में कर सकते हैं।
- पक्षी दर्शन एक गहन उपक्रम है जिसके लिए धैर्य, सूक्ष्म दृष्टि एवं विविध पक्षियों के कलरव को ध्यान पूर्वक सुनने की आवश्यकता होती है।
हमने अपने उत्तराखंड भ्रमण में अनेक पक्षियों के दर्शन किये। किन्तु हमारी यह यात्रा पक्षी दर्शन विशेष नहीं थी। इन पक्षियों के अवलोकन के पश्चात हमारे भीतर यह तीव्र अभिलाषा उत्पन्न हो गयी है कि भारत के इस पर्वतीय राज्य में हम पुनः शीघ्र आयें तथा उत्तराखंड के वैशिष्ट्य पूर्ण पक्षियों के अवलोकन का आनंद उठायें। मेरे पंख-युक्त प्रिय सखाओं, मैं आपसे भेंट करने पुनः शीघ्र आऊंगी! इस संस्करण में पक्षियों के चित्रों की संख्या को सीमित करने के लिए मैंने उनके समुच्चित चित्र प्रकाशित किये हैं।