सबसे लोकप्रिय भारतीय धर्मग्रन्थ भागवत गीता तथा सबसे चर्चित महाभारत युद्ध की बात आते ही, कुरुक्षेत्र का नाम स्वयं ही चर्चा में आ जाता है। कुरुक्षेत्र, जहां कौरवों तथा पांडवों के बीच धर्मयुद्ध हुआ था। कदाचित ही कोई भारतीय होगा जो कुरुक्षेत्र के विषय में नहीं जानता हो। मुझे आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं कि कौरवों तथा पांडवों के बीच हुए धर्मयुद्ध के आरम्भ में यहीं भगवान् कृष्ण ने पांडुपुत्र अर्जुन को भग्वदगीता का ज्ञान दिया था जो हिन्दुओ के लिए परमग्रन्थ है। इसलिए इसे धर्मक्षेत्र या धर्म की भूमि भी कहा जाता है। धर्मक्षेत्र यह शब्द भागवत गीता का पहला शब्द भी है।
मैंने कुरुक्षेत्र की पहली यात्रा अपने बालपन में की थी जिसकी स्मृति मेरे मन में कुछ विशेष नहीं है। इसलिए कुछ दिनों पहले मैंने एक बार फिर कुरुक्षेत्र के दर्शन किये। कुरुक्षेत्र पर मेरा यह संस्मरण इसी यात्रा का परिणाम है।
कुरुक्षेत्र कहाँ है?
कुरुक्षेत्र का शाब्दिक अर्थ है कुरु का क्षेत्र। कुरु भरत वंश के सम्राट थे। कालान्तर में कौरव तथा पांडव उनके वंशज हुए। क्षेत्र का अर्थ है भूभाग, ना कि नगर या कस्बा। वर्तमान में जिस कुरुक्षेत्र नगर को हम जानते हैं, वह सन १९४७ के पश्चात की संरचना है। कुरुक्षेत्र वास्तव में सन १९४७ के पश्चात स्थापित एक शरणार्थी शिविर था जो कालान्तर में एक नगर में परिवर्तित हो गया।
यह प्राचीन स्थल जो महाभारत युद्ध से सम्बंधित है, उसे थानेसर भी कहा जाता है। यह स्थानेश्वर शब्द का अपभ्रंशित रूप है जो एक प्राचीन शिव मंदिर का नाम है।
उपलब्ध सूत्रों के अनुसार कुरुक्षेत्र इन स्थलों से घिरा हुआ है-
दक्षिण – तुरघन (कदाचित शत्रुघन शब्द का अपभ्रंश रूप) या पंजाब में स्थित आज का सिरहिंद
उत्तर – खांडव या आधुनिक दिल्ली
पूर्व – मरू या मरुस्थल जो वर्तमान का राजस्थान है
पश्चिम – परीन ( इसका अर्थ मुझे ज्ञात नहीं हो पाया)
जैसा कि आप जानते ही होंगे, पौराणिक सरस्वती नदी कुरुक्षेत्र से भी होकर जाती थी। वास्तव में कुछ सूत्रों के अनुसार यह क्षेत्र सरस्वती नदी तथा दृशाद्वती नदी के बीच स्थित है।
चीनी यात्री हुआन त्सांग ने राजा हर्ष के राजकाल में थानेसर की यात्रा की थी। उन्होंने अपने यात्रा संस्मरण में यहाँ उपस्थित विभिन्न मंदिरों तथा कई बौध मठों व स्तूपों की व्याख्या की थी। आईये पता लगाते हैं कि उनमें से कितने मंदिर तथा बौध मठ व स्तूप आज भी उपलब्ध हैं।
प्राचीन काल में कुरुक्षेत्र अन्य कई नामों द्वारा भी पहचाना जाता था, जैसे उत्तरवेदी, ब्रह्मवेदी तथा समस्त पंचाक।
मेरी कुरुक्षेत्र यात्रा के समय मैंने पाया कि कुरुक्षेत्र का ४८ कोस का क्षेत्र कई तीर्थों द्वारा चिन्हित है। इनके दर्शन के लिए एक ४८ कोस की यात्रा भी आयोजित की जाती है, यद्यपि इस यात्रा में भाग लिए हुए किसी यात्री की मुझे जानकारी नहीं है।
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२१ वीं. सदी का कुरुक्षेत्र
मैं कई वर्षों के उपरांत कुरुक्षेत्र की यात्रा कर रही थी। अन्य नगरों की भान्ति कुरुक्षेत्र के प्रत्येक क्षेत्र ने भी दिन दूना रात चौगुना परिवर्तन झेला है। मेरी बालपन की स्मृति से विपरीत यह अत्यधिक भीड़भाड़ भरा तथा अव्यवस्थित स्थल में परिवर्तित हो चुका है। इस यात्रा के समय मेरी इच्छा थी कि मैं कुरुक्षेत्र के सब महत्वपूर्ण स्थलों के दर्शन करूं। उन स्थलों के दर्शनोपरांत अब मैं उन संस्मरणों को आपके संग बांटना चाहती हूँ।
मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर – शाहबाद मरकंडा
पटियाला से हम गाड़ी द्वारा कुरुक्षेत्र के लिए निकले। कुरुक्षेत्र पहुँचने से पहले हम मरकंडा नदी के तट पर स्थित शाहबाद मरकंडा नामक नगरी पहुंचे। इस नगरी का नामकरण प्रख्यात महर्षी मार्कंडेय के नाम पर किया गया है।
आईए आपको मार्कंडेय से सम्बंधित एक कथा सुनाती हूँ। दंतकथाओं के अनुसार निःसंतान ऋषि मृकंदु ने संतानप्राप्ति के लिए भगवान् शिव की घोर तपस्या की थी। उनके समक्ष एक दीर्घायुषी किन्तु मंदबुद्धि पुत्र अथवा एक गुणी बुद्धिमान किन्तु अल्पायु पुत्र के चुनाव का विकल्प था। उन्होंने एक गुणी बुद्धिमान किन्तु अल्पायु पुत्र का चुनाव किया। १६ वें वर्ष में जब मार्कंडेय को सत्य का ज्ञान हुआ तो वह भगवान् शिव की तपस्या में लीन हो गए। अप्रतिम तेज प्राप्त किया और भगवान् शिव से अपनी आयु दीर्घ करने की प्रार्थना की। भगवान् शिव ने कहा, मैं तुम्हारी आयु तो नहीं बढ़ा सकता किन्तु तुम्हारा हर दिन एक युग के सामान होगा. इस तरह ऋषि मार्कंडेय चिरायु हुए।
आपने जब भी मार्कंडेय का चित्र देखा होगा, उसे शिवलिंग का आलिंगन करते हुए ही देखा होगा। इसी मुद्रा में तप करने के कारण मार्कंडेय को सदैव इसी रूप में दर्शाया जाता है।
बालक को मरकंडा नदी के तीर भगवान् शिव की तपस्या करने के कारण मार्कंडेय नाम दिया गया। इसी प्रसंग के कारण यहाँ एक शिव मंदिर स्थापित है जिसे मारकंडेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर के पास, सूखी मारकंडा नदी के ऊपर वर्तमान में एक रेल पटरी का पुल है।
मार्कंडेय महादेव मंदिर के साथ साथ मैंने यहाँ मार्कंडेय ऋषि को समर्पित एक मंदिर देखा। दोनों नए मंदिर कदाचित प्राचीन मंदिरों का जीर्णोधार कर बनाए गए हैं। सिरेमिक टाईलों के प्रयोग के कारण यह अस्पताल का सा आभास दे रहा था। चारों ओर सुन्दर बागीचों से घिरा यह मंदिर अच्छा लग रहा था। मंदिर के सामने स्थित दुकानों से मैंने अनुमान लगाया कि कई श्रद्धालू दर्शनार्थ इस मंदिर में आते होंगे।
कुरुक्षेत्र के दर्शनीय स्थल
कुरुक्षेत्र में कई दर्शनीय स्थल हैं किन्तु इनके दर्शनों के लिए अधिक समय की आवश्यकता नहीं है। एक दिन में आप कई स्थलों के दर्शन कर सकते हैं।
कुरुक्षेत्र के मंदिर
कुरुक्षेत्र एक ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थल होने के कारण स्वाभाविक ही है कि यह मंदिरों से परिपूर्ण होगा। कुरुक्षेत्र में इतने मंदिर है कि सबका उल्लेख यहाँ करना असंभव है। इसलिए कुछ प्रमुख मंदिरों के विषय में अवश्य लिखना चाहूंगी।
स्थानेश्वर महादेव मंदिर
कुरुक्षेत्र के इस प्राचीनतम मंदिर, स्थानेश्वर महादेव मंदिर, पर ही इस नगर को थानेसर कहा जाता है। थानेसर या स्थानेश्वर को यहाँ का ग्रामदेवता भी माना जाता है।
अभिलेखों की मानें तो इसे स्थानु भी कहा जाता था। उनके अनुसार ब्रम्हाजी ने स्वयं यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। स्थानु तीर्थ के नाम से पहचाना जाने वाला यह मंदिर उत्तर दिशा में शुक्र तीर्थ, पूर्व में सोम तीर्थ, दक्षिण में दक्ष तीर्थ तथा पश्चिम में स्कन्द तीर्थ से घिरा हुआ है। मान्यता है कि किसी काल में स्थानेश्वर का मुख्य शिवलिंग कई सहस्त्र लिंगों द्वारा घिरा हुआ था।
कहा जाता है कि महाभारत युद्ध से पहले भगवान् कृष्ण तथा पांडवों ने इसी शिवलिंग की आराधना की थी। बाणभट्ट हर्षचरित बाणभट्ट द्वारा लिखित भारत सम्राट हर्ष का चरित्र दर्शन है। इसके अनुसार स्थानेश्वर के घर घर में शिव की पूजा आराधना की जाती है। पानीपत के तृतीय युद्ध के पश्चात मराठाओं ने मंदिर के जीर्णोद्धार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर ने भी इस स्थल की यात्रा की थी। इस यात्रा की स्मृति में पास ही एक गुरुद्वारा भी निर्मित है।
इस मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के सामने एक छोटा जलकुंड भी है। हमारे सौभाग्य से पुजारी द्वारा शिवलिंग के संध्या श्रृंगार के समय ही हमें दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ था। यह और बात है कि ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृष्टी से अत्यंत महत्वपूर्ण यह मंदिर मुझे छोटा तथा सादा प्रतीत हुआ।
भद्रकाली मंदिर या देवीकूप
भद्रकाली मंदिर भी एक प्राचीन मंदिर है जिसका संकरा ऊंचा शिखर हमें दूर से ही दिखाई दे रहा था। देवी के भद्रकाली अवतार को समर्पित यह मंदिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थल पर देवी सती का दायाँ टखना गिरा था।
महाकाव्य महाभारत में उल्लेख है कि पांडवों ने महाभारत युद्ध से पहले इस मंदिर में देवी की आराधना की थी। मंदिर के अभिलेखों के अनुसार कृष्ण तथा बलराम का मुंडन संस्कार इसी मंदिर में किया गया था।
कुरुक्षेत्र में सब मंदिरों में मुझे यह अपेक्षाकृत बेहतर रखरखाव युक्त मंदिर प्रतीत हुआ। एक पीले रंग के चक्रव्यूह के चित्र से एक मंजिल ऊपर चढ़ कर हमने मंदिर में प्रवेश किया।
कुरुक्षेत्र के सरोवर
कुरुक्षेत्र कई प्राचीन सरोवरों का स्थल था। अधिकतर सरोवर तीर्थस्थल भी हैं। सूर्य ग्रहण तथा अमावस जैसे महत्वपूर्ण दिनों में इन सरोवरों में पवित्र स्नान किया जाता है। विशेष रूप से सोमवार को पड़ने वाला अमावस अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे सोमवती अमावस्या भी कहा जाता है। आईये आपको कुरुक्षेत्र के कुछ महत्वपूर्ण सरोवरों का भ्रमण कराती हूँ।
ब्रह्म सरोवर
कुरुक्षेत्र का ब्रह्म सरोवर एक विशाल मानव-निर्मित जलाशय है। कहा जाता है कि कुरु राजा द्वारा निर्मित यह पहला मानव-निर्मित जलाशय है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्म देव ने सर्वप्रथम इसी स्थान पर यज्ञ पूर्ण कर सृष्टि की रचना की था। इसी कारण जलाशय का नाम ब्रह्म जलाशय पड़ा। ब्रह्म जलाशय कुरुक्षेत्र का अभिन्न अंग है। इसलिए इसे कुरुक्षेत्र जलाशय भी कहा जाता है।
ब्रह्म सरोवर का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है। आतंरिक एवं बाह्य पावित्र्य प्राप्ति के लिए भक्तगण इसमें स्नान करते हैं। विशेषतः सूर्यग्रहण के समय यहाँ भक्तों का तांता लग जाता है। अनंत काल से सूर्य ग्रहण के उपलक्ष में पवित्र स्नान के लिए करोड़ों की संख्या में भक्त यहाँ आते रहे हैं।
जलाशय के चारों ओर अनेक घाट हैं। जिस दिन मैं यहाँ पहुँची, यहाँ अन्य कोई उपस्थित नहीं था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो जलाशय कल ही निर्मित किया गया हो। जलाशय के किनारे चलते हुए हम सर्वेश्वर महादेव मंदिर पहुंचे। हमें ज्ञात हुआ कि मंदिर का स्वामित्व निर्वाणी अखाड़ा को प्राप्त है।
मंदिर पर प्रदर्शित सूचना पट्टिका तथा शिलालेख कुछ पुराने थे। वहीं गुलाबी बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित वर्तमान मंदिर संरचना अपेक्षाकृत नयी प्रतीत हुई। मंदिर के भीतर रंगीन सिरामिक पट्टियों से घिरा एक शिवलिंग था।
ब्रह्म सरोवर तथा सर्वेश्वर मंदिर दोनों की स्वच्छता देख हम अत्यंत प्रभावित हो गए। किन्तु सर्वस्व छाई वीरानता मुझे खल रही थी। यूँ तो मुझे प्राचीन ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थलों से अत्यंत प्रेम है क्योंकि ऐसे स्थलों में मुझे सदैव ऐसा प्रतीत होता है मानो अतीत का कुछ भाग अब भी वहां जीवंत हो। इसका सम्पूर्ण श्रेय वहां उपस्थित आत्मिक अनुभूति को जाता है। किन्तु यहाँ पर मैंने ऐसा कुछ भी अनुभव नहीं किया। ब्रह्म सरोवर तथा मंदिर, दोनों स्थलों पर ऐसी कोई भी सिहरन अनुभव नहीं हुई जो आत्मा को झकझोर दे। सूचना पट्टिका पर अंकित अभिलेखों पर ही विश्वास कर हम आगे बढ़ गए।
महाभारत में भी ब्रह्म सरोवर का उल्लेख है जो इस प्रकार है। महाभारत युद्ध के अंतिम दिवस, पराजय के उपरांत, दुर्योधन यहीं आकर छुप गया था।
ज्योतिसर
मेरे अनुमान से कुरुक्षेत्र का सबसे विशिष्ट सरोवर ज्योतिसर ही है। यह वही स्थल है जहां महाभारत युद्ध से पहले कृष्ण ने अर्जुन को भगवत गीता का ज्ञान प्रदान किया था। ज्योतिसर सरोवर के समीप ही देवी सरस्वती को समर्पित एक मंदिर है।
ज्योतिसर सरोवर दर्शन का अनुभव किंचित विचित्र सा था। ज्योतिसर सरोवर पर नियमित आयोजित किये जाने वाले प्रकाश तथा ध्वनी प्रदर्शन का अनुभव लेते के लिए हम यहाँ सांझ बेला के समय पहुंचे थे, किन्तु यहाँ कोई भी उपस्थित नहीं था। कोई सूचना पट्टिका भी उपलब्ध नहीं थी जो हमें इस विषय में कोई जानकारी दे सके। अन्यथा कुरुक्षेत्र के अन्य अनेक पर्यटन स्थलों पर सूचना पट्टिकायें उपलब्ध थीं।
चारों ओर कहीं भी पर्यटक दृष्टिगोचर नहीं था, ना ही पर्यटकों के लिए कोई सुविधा उपलब्ध थी। पर्यटन अधिकारी या सूचना खिड़की भी नहीं थी। यह सब अत्यंत निराशाजनक व एक दृष्टी से असुरक्षित था। वहां उपस्थित इकलौता सुरक्षा कर्मचारी भी हमें कुछ जानकारी प्रदान करने से कतरा रहा था। उल्टे वह हमें यहाँ वहां भटका रहा था। चूंकि अन्धकार छाने लगा था, हमें उस वीरान स्थल में अधिक रुकना उचित नहीं लगा तथा हमने वहां से जल्द निकल जाना ही ठीक समझा।
भीष्म कुण्ड
यह लघु जलाशय अपने भीतर विशाल किवदंतियां समेटे हुए है। यह वही कथाएं हैं जिनके विषय में आपने अनेक बार देखा व पढ़ा होगा। महाभारत युद्ध के समय भीष्म अर्जुन के बाणों द्वारा घायल होकर पृथ्वी की ओर गिरे थे तथा वेधित बाणों की सेज पर लेट गए थे। प्यास से व्याकुल भीष्म की तृष्णा शांत करने के लिए अर्जुन ने यहीं पृथ्वी पर बाण छोड़कर जल स्त्रोत उत्पन्न किया था। महाभारत युद्ध के समापन के पश्चात युधिष्ठिर ने यहाँ वापिस आकर शर-शैया पर लेटे भीष्म पितामह से राज धर्म की शिक्षा प्राप्त की थी।
अभिलेखों के अनुसार भीष्म कुण्ड, वर्तमान में लुप्त सरस्वती नदी के बाएं तट पर स्थित है। अनर्क तीर्थ के नाम से भी पहचाने जाने वाला यह भीष्म कुण्ड पूर्व में ब्रह्मा, दक्षिण में शिव, उत्तर में विष्णु तथा पश्चिम में रूद्र की अर्धांगिनी द्वारा घिरा हुआ है।
कुण्ड के समीप एक छोटा सा मंदिर है जहां शर शैया पर लेटे भीष्म की प्रतिकृति चटक पीले रंग में प्रदर्शित है।
सन्निहित सरोवर
संस्कृत में सन्निहित का अर्थ है, वह स्थान जहां सब एकत्रित होकर मिलते हैं। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक अमावस तथा विशेषतः सूर्यग्रहण के दिन सम्पूर्ण भारत का पवित्र जल यहाँ इस सरोवर में एकत्र होता है। इसलिए इस सरोवर के जल को अत्यंत पवित्र मानते हुए इसमें स्नान के पश्चात भक्त मोक्ष प्राप्त करते हैं।
सन्नहित सरोवर को ७ नदियों का संगम स्थल भी माना जाता है। मुझे बताया गया कि ऋषि दधिची ने यहीं इंद्र को अपनी अस्थियाँ दान में दी थी। उन्ही अस्थियों के उपयोग से इंद्र ने वृतासुर के वध के लिए वज्र का निर्माण किया था।
सन्निहित सरोवर के समीप सन १९२१ के ब्रिटिश काल के अभिलेख प्राप्त हुए थे। उनसे कुरुक्षेत्र के समीप निर्मित पुस्तकालय के नींव सम्बंधित जानकारी प्राप्त हुई थी। इसमें २५०० रुपयों के दान का भी उल्लेख है। इस अभिलेख में सन १८५१ में भी दिए गए दान के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र के ब्राम्हणों ने पंजाब के गवर्नर जनरल से प्रार्थना की थी कि वे पवित्र सरोवर के मछलियों को ना मारें तथा सरोवर के चारों ओर स्थित वृक्षों को भी ना काटें। दुर्भाग्य से वर्तमान में सरोवर के समीप नाममात्र ही वृक्ष शेष हैं।
यहाँ सूर्य नारायण , ध्रुव नारायण तथा लक्ष्मी नारायण को समर्पित तीन उत्कृष्ट लघु मंदिर हैं। समीप ही देवी दुर्गा को समर्पित भी एक छोटा सा मंदिर है जिसके विषय में कहा जाता है कि यही महाभारत युद्ध में रचे चक्रव्यूह का स्थल था।
कुरुक्षेत्र के भित्तिचित्र
मेरी कुरुक्षेत्र यात्रा के सबसे रोचक भाग थे वे चित्ताकर्षक भित्ति चित्र जो श्री कृष्ण संग्रहालय के सामने स्थित गीता भवन नामक भवन की बाहरी भित्तियों पर चित्रित थे।
चित्रकारों ने इन भित्ति चित्रों में महाभारत के दृश्यों को अत्यंत मनमोहक प्रकार से उड़ेल दिए हैं जिनमें मुख्यतः कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता ज्ञान के दृश्यों का विशेष समावेश है। चित्रकारों ने इन भित्तिचित्रों की रचना के लिए भारत की सर्व प्रमुख पारंपरिक चित्रकारी शैलियों का सदुपयोग किया है। मुझे यहाँ मधुबनी, पहाडी, गुलेर तथा पट्टचित्रों के साथ साथ समकालीन शैलियों के चित्रों का भी आनंद उठाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गंजिफा पत्तों पर की जाने वाली चित्रकारियों की तरह भी एक भित्तिचित्र यहाँ है जिसमें आकृतियों को वृत्ताकार में रखा गया है।
कुरुक्षेत्र के संग्रहालय
कुरुक्षेत्र के संग्रहालय निश्चित रूप से इस नगर के नूतन संकलन है।
श्री कृष्ण संग्रहालय
कुरुक्षेत्र का यदि सर्वश्रेष्ठ संग्रहालय का चुनाव करूं तो वह निश्चय ही श्री कृष्ण संग्रहालय होगा। इस संग्रहालय में बड़े ही जतन से भिन्न भिन्न प्रकार की कलाकृतियाँ एकत्र की गयी थीं, चाहे वह मौलिक कलाकृति हो या किसी मौलिक कलाकृति की प्रतिकृति। मुझे इन सर्व कलाकृतियों में एक समानता दिखी। वे सर्व कलाकृतियाँ किसी न किसी रूप में भगवान् कृष्ण से सम्बन्ध रखती थीं। यहाँ प्रदर्शित प्रतिमाओं, चित्रों, कांस्य मूर्तियों जैसे कई कलाकृतियों द्वारा कृष्ण की गाथाएँ कही गयी थीं। इस बहुमंजिली इमारत में प्रदर्शित इन सर्व कलाकृतियों के दर्शन को यहाँ बजता कृष्ण भजनों का मधुर संगीत और अधिक आनंदित बना रहा था। संग्रहालय दर्शन के अंतिम चरण में एक विशाल बहुमाध्यम प्रदर्शन द्वारा महाभारत तथा महाभारत युद्ध के दृश्यों को सजीव किया जा रहा था।
संग्रहालय से जैसे ही बाहर निकले, हमारी दृष्टी बाग़ में स्थापित उड़िया पद्धति में बनी प्रतिमाओं पर पड़ी। बाग़ में खड़ी यह आदमकद प्रतिमाएं अत्यंत आकर्षक लग रही थीं। यद्यपि ये देवकी-कृष्ण थे या यशोदा-कृष्ण, यह पहचान नहीं पायी। कृष्ण के विराट रूप की भी एक अद्भुत प्रतिमा थी।
इस संग्रहालय को देखने के लिए कम से कम एक घंटे का समय आवश्यक है।
विज्ञान केंद्र तथा कुरुक्षेत्र चित्रावली
कुरुक्षेत्र का विज्ञान केंद्र श्री कृष्ण संग्रहालय के पास में ही है। यहाँ भी कुरुक्षेत्र में घटे प्रसंगों पर आधारित महाभारत चित्रावली प्रदर्शित की जाती है। समयाभाव के चलते मैं इस केंद्र के दर्शन नहीं कर सकी।
धरोहर संग्रहालय
धरोहर संग्रहालय कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय परिसर के भीतर ही स्थित है। हरियाणा की मूल संस्कृति को जानने तथा पहचानने के लिए यह सर्वोत्तन संग्रहालय है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग संग्रहालय
यह संग्रहालय शेख चिल्ली के मकबरे के भीतर स्थित है। हमें बताया गया कि यहाँ हर्ष के टीले से प्राप्त पुरातत्व खोजों का प्रदर्शन किया गया है।
कुरुक्षेत्र के अन्य दर्शनीय स्थल
ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक युग अपनी समाप्ति के पश्चात एक छाप अवश्य छोड़ जाता है। प्रस्तुत है कुरुक्षेत्र के कुछ ऐसे स्थल जो कुरुक्षेत्र के अनवरत धरोहर के प्रतीक हैं।
शेख चिल्ली का मकबरा
इसे विडम्बना ही कहेंगे कि भागवत गीता तथा महाभारत युद्ध के नगर, कुरुक्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ संरक्षित स्मारक है यह मकबरा जो किसी शेख चिल्ली नामक व्यक्तित्व की है। इस शेख चिल्ली के सम्बन्ध में मुझे जानकारी नहीं है किन्तु इस स्मारक की सुन्दरता तथा त्रुटिहीन रखरखाव पर मैं मोहित हो गयी। इसके चारों ओर आकर्षक चार बाग़ बगीचा बनाया गया था। इसी इमारत के भीतर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का संग्रहालय स्थापित है जो मेरी भेंट के समय बंद था।
हर्ष का टीला
हर्ष का टीला कुरुक्षेत्र का प्राचीनतम जीवित खँडहर है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा स्थापित सूचना पट्टिका के अनुसार यह स्थान ७ वीं सदी के आरंभ में पुष्यभूति कुल के राजा हर्षवर्धन की राजधानी थी। जैसा कि आप जानते हैं, कवी बाणभट्ट के अपनी रचना हर्षचरित में राजा हर्षवर्धन तथा उनकी राजधानी का बखान किया है। उनकी रचना के अनुसार यहाँ एक दुर्ग तथा श्वेत दुमंजिला महल था जिसका वर्तमान में कोई अस्तित्व शेष नहीं है। केवल हर्ष का टीला अब भी विद्यमान है।
इस पुरातात्विक स्थल की खुदाई सर्वप्रथम कन्निन्घम ने की थी। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के कई अधिकारियों के इस कार्य को गति प्रदान की। खुदाई के समय प्राप्त जानकारी के अनुसार यह स्थान १००० ई.पू. से निरंतर बसा हुआ रहा है। कुशन, गुप्त, राजपूत जैसे कई वंश कुरुक्षेत्र में राज करते थे। यहाँ से खुदाई में प्राप्त कई अनमोल वस्तुएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संग्रहालय में देखी जा सकती हैं।
हर्ष के टीले का चित्र देखते ही आप भी मेरा समर्थन करेंगे कि इस टीले पर चढ़ना उतरना अत्यंत रोमांचक था। चारों ओर हरी भरी घास उगी हुई थी। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो मनोरम बगीचे में कई झरोखे हैं जिनके द्वारा मैं अतीत में झाँक रही थी।
कुरुक्षेत्र यात्रा के लिए कुछ सुझाव
• कुरुक्षेत्र के १५ पर्यटन स्थलों के दर्शन के लिए सरकारी बस सुविधाएं उपलब्ध हैं जो मात्र ५० रुपयों के शुल्क पर आपको कुरुक्षेत्र दर्शन कराती हैं। इस विषय में जानकारी देती सूचना पट्टिकाएं कुरुक्षेत्र के सब महत्वपूर्ण स्थलों पर हैं। चूंकि मैंने इस सुविधा का उपयोग नहीं किया था, मैं बसों की गुणवत्ता तथा उपलब्धता पर टिप्पणी नहीं करना चाहूंगी।
• कुरुक्षेत्र के सब दर्शनीय स्थल कुछ दूरी पर स्थित हैं। इसलिए आपको इन पर्यटन स्थलों के दर्शन के लिए परिवहन साधन की आवश्यकता होगी। साइकिल रिक्शा तथा ऑटो रिक्शा की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
कुरुक्षेत्र के विश्रामगृह
• कुरुक्षेत्र में हरियाणा पर्यटन विभाग के दो विश्रामगृह हैं। इनमें एक नगर के बीच तथा दूसरा राष्ट्रीय राजमार्ग के समीप है। मैंने दूसरे विश्रामगृह में अपना डेरा डाला था जो मेरे मत से ठीकठाक था।
• कुरुक्षेत्र में दो उच्च श्रेणी के भी विश्रामगृह हैं। यह तीन तारा स्तर के होटल हैं। कुरुक्षेत्र में रहना ना चाहें तो चंडीगढ़ में रहते हुए आप कुरुक्षेत्र की दिवसीय यात्रा कर सकते हैं। चंडीगढ़ में रहने के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं।
भारतीय इतिहास तथा हिन्दू धर्म में कुरुक्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए मेरी इच्छा है कि हरियाणा पर्यटन विभाग कुरुक्षेत्र को पर्यटकों के लिए अधिक सुविधाजनक बनाए। सुविधाओं को सस्ता बनाने की होड़ में गुणवत्ता को अनदेखा करना समझदारी नहीं होगी। वर्तमान का पर्यटन प्रेमी उच्च स्तर की सुविधाएं चाहता है।
कुरुक्षेत्र यात्रा के समय हमें अच्छे भोजनालय भी नहीं मिले। सड़क किनारे ढाबों में अवश्य भोजन ठीकठाक था, किन्तु भोजनकाल के समय भोजन के साथ साथ थकान मिटाने व कुछ क्षण विश्राम पाने की भी इच्छा होती है।
पर्यटन अनुभव को भी उत्तम बनाने की आवश्यकता है। परिदर्शकों की संख्या में वृधि की जानी चाहिए ताकि वे पर्यटकों को नगर दर्शन कराने के साथ साथ उन्हें कुरुक्षेत्र से सम्बंधित आवश्यक जानकारी तथा प्रचलित किवदंतियों द्वारा संतुष्ट कर सकें। वर्तमान में यह कार्य केवल सूचना पट्टिकाएं ही कर रही हैं।
अनुराधा जी,
विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक एवम् पौराणिक स्थल कुरूक्षेत्र के बारे में बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । कुरूक्षेत्र, चारों ओंर से आज के पंजाब, दिल्ली, राजस्थान आदि से घिरा होने से कीतना विस्तारित रहा होगा इसकी कल्पना की जा सकती है ! चीनी यात्री हुआन त्सांग के यात्रा संस्मरण के अनुसार यहां बौद्ध धर्म का भी प्रचार प्रसार हुआ होगा । कालान्तर में बौद्ध मठ एवम् स्तूप नष्ट हो गये होंगे ।
ब्रम्ह सरोवर तथा ज्योतिसर सरोवरों की सुंदरता इनके रखरखाव की गुणवत्ता प्रदर्शित करती हैं ।
इतने प्राचीन,पौराणिक,ऐतिहासिक स्थल पर पर्यटकों की अनुपस्थिती का प्रमुख कारण शायद इस क्षेत्र की , शासन स्तर पर की जा रही उपेक्षा ही होगा ।
हां ,एक विरोधाभास भी दृष्टिगोचर हुआ, श्री भद्रकाली मंदिर के छायाचित्र में ५२ शक्तिपीठ होने का दर्शाया गया हैं जबकि आलेख मे इनकी संख्या ५१ उल्लेखित हैं ! मेरी जानकारी के अनुसार भी भारत में ५१ शक्तिपीठ ही हैं ।
सुंदर, पठनीय जानकारी के लिये अनेकानेक धन्यवाद ।
प्रदीप जी – कुरुक्षेत्र में पर्यटन की अनेक संभावनाएं हैं । आशा है पर्यटन विभाग इस पर ध्यान देगा. देवी के कितने पीठ हैं कहना कठिन है – कुछ लोग ५१ मानते हैं तो कुछ ५२. किन्ही दो लोगों की सूची एक दुसरे से मेल नहीं खाती।
bahut hi rochak jaankari,main aapk hindi aur angreji k dono blog niyamit padhti hun.hamesha ek utsukta or intezaar k saath.
धन्यवाद सरिता जी, आपकी ये उत्सुकता जी हमारा प्रोत्साहन है, अपने विचार हमसे साँझा करते रहिये.