अखाड़ों के बारे में जानने की उत्सुकता मुझे हमेशा रही और कभी कोई अखाड़ा देख पाऊं यह इच्छा भी बहुत दिनों से थी। मेरी यह इच्छा पूर्ण हुई जब हाल ही की मेरी वाराणसी यात्रा के दौरान प्रख्यात तुलसी अखाड़े में कुछ समय बिताने का अवसर मिला। वाराणसी के प्रसिद्ध अस्सी घाट से कुछ ही दूरी पर स्थित तुलसी घाट पर यह तुलसी अखाड़ा है। उस दिन मैं सुबह साढ़े बजे ही अखाड़े पहुँच गयी। चूंकि पहलवान अभी अखाड़े पहुंचे नहीं थे, मैं आसपास का नज़ारा देखने चल पड़ी।
चलते चलते मैं तुलसी रामायण के रचयिता गोस्वामी तुलसीदासजी के आवास गृह पहुँच गयी। मंदिर सदृश यह आवास गृह दर्शनार्थ सदैव खुला रहता है। मुझे भी प्रवेश की अनुमति मिली परन्तु छायाचित्र लेने की मनाही के साथ। गोस्वामी तुलसीदासजी के आवास गृह में घूमते समय रोमांच से मेरे रोंगटे खड़े हो रहे थे। हिन्दू साहित्य के प्रमुख ग्रंथों में से एक ग्रन्थ की रचना हुई थी यहाँ! सादा सा घर, जिसकी तीन खिड़कियाँ गंगा की तरफ खुलतीं हैं। वहां से तैरती हुई नौकाओं में श्रद्धालु प्रार्थना करते दिखाई पड़ रहे थे। अत्यंत रचनात्मक वातावरण मेरे चारों ओर उपस्थित था। इसी वातावरण में तुलसीदासजी ने रामायण की रचना की होगी!
गृह के एक कोने में हनुमानजी का एक छोटा सा मंदिर है। छोटे से आले पर कई किताबें रखी हुई हैं। पर वहां मुझे तुलसी रामायण कहीं दिखाई नहीं दी। वहां कुछ लोगों से चर्चा कर मुझे ज्ञात हुआ कि तुलसी अखाड़े की स्थापना तुलसीदासजी ने ही की थी। अर्थात् ५०० वर्ष पुराने इस अखाड़े में स्वयं तुलसीदासजी ने भी पहलवानी का अभ्यास किया था!
अखाड़ा
भारत देश की मूल व्यायामशाला है यह अखाड़ा! दैनिक व्यायाम और हृष्ट पुष्ट शरीर के लिए पुरुष इस व्यायामशाला में आते हैं। आधुनिक व्यायामशाला से भिन्न, अखाड़े में अलग तरह के साज-सामानों का उपयोग होता है।
तुलसी अखाड़े की छत छप्पर की व फ़र्श मिट्टी का है। दीवार पर भगवान् राम का छोटा सा मंदिर है और इसके हर खम्बे पर ‘जय श्रीराम’ लिखा हुआ है। बाहर खुली छत में व्यायाम करने के लिए भी अलग से एक मिट्टी का फ़र्श बनाया हुआ है। अखाड़े के दो तरफ बैठने के लिए तख्त की व्यवस्था भी है।
तुलसी अखाड़े की दिनचर्या
आधुनिक व्यायामशालाओं के विपरीत, यहाँ आते से ही व्यायाम के अभ्यास की शुरुआत नहीं की जाती। अखाड़ों को श्रद्धा व सम्मान की दृष्टी से देखा जाता है। इसलिए व्यायाम आरम्भ करने से पहले कई और अनुष्ठान किया जाते है।
- जिस तरह एक किसान बीज बुआई से पहले मिट्टी की जुताई कर उसे ढीला व हवादार बनाता है, उसी तरह अखाड़े में भी कुदाल व फावड़े से पहले मिट्टी को खोदा जाता है। फिर हाथों से रगड़ रगड़ कर उसे बारीक व मुलायम बनाया जाता है। मेरे सामने ही दो पहलवानों ने मिट्टी को कुश्ती के लिए इसी तरह तैयार किया।
- उस तैयार मिट्टी पर पानी का छिडकाव किया।
- फिर उस मिट्टी पर पुष्प अर्पण किये।
- अखाड़े की दीवार पर स्थित राम मंदिर में पूजा अर्चना की। उसके उपरांत भगवान राम व अखाड़े की मिट्टी, दोनों को धूप अर्पित किया। सभी पहलवान कतार में खड़े होकर हाथ जोड़े प्रार्थना करने लगे।
- प्रार्थना के उपरांत ही पहलवानों ने कसरत व कुश्ती करने के लिए अखाड़े में प्रवेश किया।
तुलसी अखाड़े के पहलवान
प्रातः करीब ७ बजे तक सारे पहलवान अखाड़े में कुश्ती के लिए उपस्थित हो गए। सबसे वरिष्ठ कुश्तीबाज श्री मेवाराम ने अपनी कसरत आरम्भ की। साथ ही साथ वे अन्य पहलवानों की कसरत का भी ध्यानपूर्वक निरिक्षण कर रहे थे। पहलवानों के शरीर पर सिर्फ एक लंगोट होती है और कुश्ती से पहले वे सब तख्त पर बैठ कर अपने शरीर पर अच्छी तरह से तेल की मालिश करते हैं। मालिश के उपरांत उनकी कसरत आरम्भ होती है।
पहलवानों की कसरत को समझने के लिए मैंने एक पहलवान के कार्यकलापों को ध्यानपूर्वक देखा। वह अखाड़े की पूरी लम्बाई दौड़ने लगा और कई चक्कर लगाए। हर लम्बाई भिन्न तरीके से पूर्ण की। आखिरकार वह एक भारी चक्के को गले में पहनकर दौड़ने लगा। भारी वजन गले में पहन कर भिन्न भिन्न तरीकों की दौड़ देखकर मैं आश्चर्य चकित हो गयी। उसकी तैयारी प्रशंसनीय थी। साथ ही उसकी लयदार चाल देखकर मैं अचंभित रह गयी। एसा प्रतीत हो रहा था जैसे यह सब उसके लिए अत्यंत आसान है। उसे देख मुझे एक सीख मिली की शोभा व लावण्य जो दृडता, हठ व अभ्यास से प्राप्त होती है, उसका कोई पर्याय नहीं।
सारे युवा पहलवान अपनी कसरत, व्यायाम या वर्जिश के लिए सारे अखाड़े में बिखर गए। मैं श्री मेवाराम के अभ्यास को ध्यानपूर्वक देखने लगी। इस उम्र में भी उनके शरीर की लोच और फुर्ती प्रशंसनीय है। वे अपने शरीर को किसी भी कोण में मोड़ रहे थे। अचानक ही वे उल्टा लटक कर झूले की तरह झूलने लगे। अखाड़े में कई वर्षों के अभ्यास उपरांत ही ऐसी सफलता मिलती है। मेरा ह्रदय उनके लिए श्रद्धा व आदर से भर गया।
अखाड़े के उपकरण
अखाड़े में पहलवानों के उपयोग के प्रायः सभी उपकरण भारी लकड़ी के बने होते हैं। तुलसी अखाड़े के सभी उपकरणों को लाल रंग से रंगा हुआ था। सुबह के वक्त यह सारे उपकरण एक पेड़ के इर्दगिर्द रखे हुए थे। उन में से कुछ उपकरणों के नाम निम्नलिखित हैं और उनके उपयोग की विधि एक विडियो में इस संस्मरण के अंत में युक्त है।
- गदा
- नाल
- जोड़ी
- संतुलन
करीब साढ़े ७ बजे पहलवानों ने कुश्ती का अभ्यास आरम्भ किया। चेहरा शांत और शरीर स्फूर्ति से भरा हुआ। मेवारामजी लगातार उन पर नजर रखते हुए उन्हें अनुदेश दे रहे थे। साथ ही साथ उनकी अपनी कसरत भी उन्होंने जारी रखी हुई थी। उनके बहुतांश अनुदेश पहलवानी से जुड़े छोटे छोटे शब्दों के रूप में आ रहे थे। कई बार वे सिर्फ पहलवानों के नाम ही लेते थे। उनके नाम पुकारने के अंदाज़ से ही पहलवानों को समझ आ जाता था कि गुरूजी क्या कहना चाहते हैं। दिमाग ठंडा, बदन गरम जैसे शब्दों से वे उनका हौसला बढ़ा रहे थे।
कुश्ती
कुश्ती के अभ्यास के लिए पहलवानों ने जोड़ियाँ बनायी और कुश्ती आरम्भ की। वे कुश्ती इतनी शांति, गरिमा और भव्यता से कर रहे थे कि उन्हें देख मन आनंदित हो उठा। कुश्ती के बीच बीच में वे मिट्टी को अपने शरीर के ऊपर मलते रहते थे। उन्हें बीच में रोक कर इसका कारण पूछने की तो हिम्मत नहीं हुई पर मेरे अंदाज से वे ऐसा अपने तेल लगे शरीर पर पर्याप्त पकड़ प्रदान करने के लिए कर रहे थे।
मैंने कुछ घंटे कुश्ती का आनंद उठाने व इन क्षणों को अपने कैमरे में कैद करने में बिता दिए। मेरे लिए यह एक ठेठ भारतीय अद्भुत अनुभव था। जिस तरह पहलवान अखाड़े को मंदिर की तरह पूजते हैं उसने हमारे व हमारे चुने व्यवसाय के बीच रिश्ते पर कई सवाल खड़े कर दिए। क्या हम अपने व्यवसाय को अध्यात्म और हमारे अंतर्मन से जोड़ पाते हैं? क्या हम भी अपने व्यवसाय को इतना सम्मान दे पाते हैं? इसी तरह यदि हम भी अपना व्यवसाय ईमानदारी और भक्ति से करते तो क्या वह और बेहतर नहीं हो जाता? क्या हम इस बात को समझ पाते हैं कि हम जो भी करते हैं वह एक बड़े चक्र का छोटा परन्तु अहम् हिस्सा है?
तुलसी अखाड़े का विडियो
मैंने कुश्ती व अखाड़े की कुछ अविस्मरणीय स्मृतियाँ इस विडियो में कैद कीं हैं। विडियो की बारीकियों पर गौर फरमाईये।
मेवारामजी व अन्य पहलवानों के बीच के संवादों को सुन प्राचीन भारत के गुरु शिष्य परंपरा का अनुभव हुआ। इन अखाड़ों ने इस परंपरा को अभी भी जीवित रखा हुआ है। इन अखाड़ों में गुरु द्वारा शिष्यों को सिर्फ कला नहीं, बल्कि संपूर्ण संस्कार प्रदान किये जाते हैं।
तुलसी अखाड़े के इस अनुभव ने मुझे विनम्रता का आभास कराया। मुझे धरती से जुड़े रहने की प्रेरणा मिली और गर्व महसूस हुआ कि मैं भी इस गरिमामयी संस्कृति का एक हिस्सा हूँ।
वाराणसी के अन्य दर्शनीय स्थलों के संस्मरण – कुछ अंग्रेजी में जब तक हम अनुवाद करते हैं.
- काशी पंचक्रोशी यात्रा- तीर्थयात्रियों का एक प्राचीन मार्ग
- वाराणसी के घाटों की चहल पहल
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- वाराणसी के घाटों पर संध्या आरती
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