ले कोर्बुसिएर केंद्र कहता है चंडीगढ़ नगर का आधुनिक इतिहास। चंडीगढ़ भारत का एकमात्र ऐसा शहर है जो पहले से ही एक आधुनिक राजधानी के रूप में योजनाबद्ध किया गया था। यह शहर भारत के प्रथम प्रधान मंत्री और फ्रेंच वास्तुकला के विद्वान ले कोर्बुसिएर के दृष्टिकोणों के आधार पर निर्मित किया गया था। यह मनुष्य के शरीर के अनुसार में बनाया गया है, जहां सिर के स्थान पर सरकारी कार्यालय, दिल की जगह पर बाज़ार, फेफड़ों की जगह पर हरे-भरे बगीचे और हाथ-पाँव के स्थान पर उद्योगिक क्षेत्र बसे हुए हैं और इनके बीच में से धमनियों और नसों के रूप में दौड़ती आड़ी-तिरछी सड़कें हैं।
इस शहर की हर सड़क सिर्फ सीधी ही जाती है, ना कोई मोड ना कोई घुमावदार रास्ता और यदि कोई मोड मिल भी जाए तो, या तो वह समकोण के आकार का होता है या फिर न्यूनकोण के आकार का। यह शहर आयताकार खंडों में विभाजित किया गया है जिन्हें फिर 4 समान भागों में विभाजित किया गया है। यह प्रत्येक भाग अपने आप में पर्याप्त है, जहां उनके खुद के बाज़ार और पाठशालाएं हैं। ध्यान से देखे तो, यह शहर सामंजस्यता के भाव से एक साथ वास करती विविध स्वतंत्र इकाइयों के समूह को दर्शाता है।
ले कोर्बुसिएर केंद्र – चंडीगढ़ शहर
जिस इमारत में कभी ले कोर्बुसिएर का कार्यालय हुआ करता था आज वह विरासत केंद्र में परिवर्तित किया गया है, जो उन्हें और उनकी निर्मिति – चंडीगढ़ को समर्पित किया गया है। वहां पर मुझे बताया गया कि कुछ सालों पहले चंडीगढ़ के प्रशासन ने एक खास खोज जारी की थी जिसके द्वारा इस केंद्र के लिए धरोहर से जुड़े सभी उपलब्ध दस्तावेज़ और असबाब की वस्तुओं को संगठित किया जा रहा था।
ले कोर्बुसिएर केंद्र अब इस शहर और उसके निर्माता से जुड़ी विरासत का प्रमुख केंद्र बन गया है। यहां पर ले कोर्बुसिएर के जीवन तथा उस समय के दौर का दस्तावेजीकरण किया गया है। इसी प्रक्रिया के अंतर्गत इस शहर की निर्माण प्रक्रिया का भी दस्तावेजीकरण हुआ है। संयोगवश यहां पर एक सुंदर सा चित्र है जो दर्शाता है, कि किस प्रकार से यह शहर वास्तव में प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों का प्रतिरूप है, जहां की निर्माण योजना भी इसी प्रकार आयताकार खंडों जैसी थी। इस शहर के निर्माणकाल के दौरान यहां पर हुए उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं से यह साफ पता चलता है कि यह क्षेत्र प्राचीन काल में सिंधु घाटी सभ्यता का भाग हुआ करता था।
देखा जाए तो, ले कोर्बुसिएर एक आधुनिक शहर का निर्माण करने के साथ-साथ, कभी इस भूमि पर बसे किसी प्राचीन शहर का भी अनुसरण रहे थे। यहां से उत्खनन द्वारा प्राप्त कुछ कलाकृतियाँ आप शहर के संग्रहालय में देख सकते हैं।
ले कोर्बुसिएर केंद्र का सभा कक्ष
यह सभा कक्ष ठेठ चंडीगढ़ की शैली में बनी हुई इमारत है जो भूरे रंग की है। यहां के गलियारों की दीवारें अब ले कोर्बुसिएर के चित्रों से सजी हुई हैं, जिसके साथ वास्तुकला पर उनके प्रसिद्ध उद्धरण भी हैं। ये सभी बातें कहीं ना कहीं आपको, शहर की रूपरेखा बनाते वक्त उनके मन में चल रहे विचारों की ओर ले जाती हैं। उनका सभा कक्ष जहां पर नेहरू से उनकी मुलाकात हुई थी, भी वैसे का वैसा संरक्षित किया गया है।
यहां पर आज भी लकड़ी और चमड़े की बनी वही कुर्सियां मौजूद हैं, जो ले कोर्बुसिएर द्वारा इस्तेमाल की जाती थीं, जिनके बीच लकड़ी का एक बड़ा सा मेज खड़ा है। इस शहर के नए-पुराने चित्र तथा उसके स्थूल वर्णन अब यहां की दीवारों की शोभा बढ़ाते हुए नज़र आते हैं। यहां पर इस वास्तुकलाकर द्वारा प्रयुक्त नवार की खाट और लकड़ी के मेज भी हैं और साथ में इस शहर के संपन्न नक्शे का एक विशाल नमूना भी है।
विरासत के असबाब
ले कोर्बुसिएर केंद्र पर रखी हुई लकड़ी की कुर्सियाँ देखते ही मुझे पंजाब विश्वविद्यालय के हॉस्टल की अपनी कुर्सी की याद आयी जो एकदम ऐसी ही दिखती थी। बाद में मेरे साथ आए हुए पर्यटन अधिकारी ने मुझे बताया कि असबाब की ये वस्तुएं वहीं से उपार्जित की गयी हैं। आगे जाते ही मुझे हमारे भौतिक विज्ञान के विभाग से प्राप्त की गयी एक खुर्सी दिखी, जिस पर शायद कभी मैं भी बैठी थी, लेकिन तब मुझे इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि वह कुर्सी एक दिन शहर की विरासत का हिस्सा बन जाएगी।
बाद में जब मैंने विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का छोटा सा दौरा किया तब मुझे पता चला कि वहां की सभी लकड़ी की कुर्सियों को वीभत्स सी दिखनेवाली प्लास्टिक की कुर्सियों से बदल दिया गया है। यह सब देखकर मेरे मन में अजीब से भाव उत्पन्न होने लगे, एक तरफ मुझे खुशी हो रही थी कि मैंने कभी विरासत से जुड़ी इन वस्तुओं का इस्तेमाल किया था, तो दूसरी ओर मुझे पुस्तकालय के असबाब की वर्तमान स्थिति पर जैसे दया आ रही थी।
केंद्र में प्रदर्शित चित्र और नक्शे
ले कोर्बुसिएर केंद्र में प्रदर्शित चित्रों में आप कोर्बुसिएर को विविध मनःस्थितियों में देख सकते हैं, जैसे काम में लीन होते समय की तस्वीर, अपने आदर्श के साथ खींची गयी उनकी तस्वीर, सरोवर में नौकाविहार का आनंद लेते हुए ली गयी तस्वीर तथा माननीय अतिथियों से मुलाकात के समय खींची गयी तस्वीर।
मैं इस बात से बिलकुल अज्ञात थी कि इस शहर के नालों के मुखावरणों पर उसका नक्शा बना हुआ है। मेरे लिए यह एकदम नवीन और आश्चर्य की बात थी। यह नक्शा आप केंद्र में स्थित कई जगहों पर देख सकते हैं, जिसमें यहां की स्मारिका दुकान भी शामिल है। यहां पर विभिन्न पत्र प्रदर्शन के लिए रखे गए थे, जिन्हें पढ़ने के लिए आपको खूब सारे समय की जरूरत होती है। मुझे तो इन पत्रों की विषय वस्तु से अधिक, उनमें अपने दौर का वर्णन करते उन व्यक्तियों की लिखावट ज्यादा आकर्षक लगी। यहां पर चंडीगढ़ और उसकी वास्तुकला से संबंधित व्यंगचित्रों के संग्रह का भी प्रदर्शन किया गया है जो बहुत ही दिलचस्प है।
ले कोर्बुसिएर केंद्र पर प्रदर्शित वास्तुकलात्मक चित्र और हाथ के चित्र द्वारा दर्शाये गए विविध आकार, इस शहर के प्रति इन लोगों के अनुराग और उनके अभिमान को दर्शाते हैं। चंडीगढ़ में पले-बड़े होने के नाते में, मैं यह जरूर कहना चाहूंगी कि यहां का प्रत्येक व्यक्ति, अद्वितीय विशेषताओं से परिपूर्ण इस शहर प्रति बहुत गर्व महसूस करता है। लेकिन इस सब से अधिक उन्हें इस बात पर गर्व है कि उनका शहर भारत का सबसे साफ-सुथरा और हारा-भरा शहर है।
ले कोर्बुसिएर केंद्र के पर्यटक
ले कोर्बुसिएर केंद्र में स्थानीय लोगों या भारतीय पर्यटकों से ज्यादा फ्रेंच पर्यटक ही अधिक संख्या में आते हैं। मुझे लगता है कि यहां पर एक ऐसे गाइड की आवश्यकता है जो इस शहर के इतिहास, उसकी विरासत और वास्तुकला तथा उसके वास्तुकलाकर के बारे में गहराई से जानता हो और जो अपने ज्ञान को ध्यानपूर्वक यहां पर आनेवाले लोगों से बांटने के योग्य हो, जिससे कि आगंतुकों के अनुभव अविस्मरणीय हो जाए।
मैंने भारत के अन्य किसी भी शहर में ऐसी जगह नहीं देखी है, जहां पर उसके इतिहास का इतनी अच्छी तरह से दस्तावेजीकरण किया है।