हम लोगों नें बाणगंगा से वापस आते हुए एक बोर्ड देखा जो मणि चौक से अवगत करा रहा था। मैंने मेरे भाई से पूछा कि क्या ये वही जगह है जहाँ मणि भवन है – उसने हाँ कहा और वाहन को वहीं खड़ा कर दिया। बहुत आराम से उसने मुझे इस बात की अनुमति दी कि मैं जाकर उस संग्रहालय के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकती हूँ। इसलिए मैंने उस ओर रूख किया जो 1980 के एक शहर के उच्च मध्य वर्ग के लोगों के रहने की जगह की तरह लग रहा था। लेकिन ये बीसवी शताब्दी के शरुआत की मुम्बई है। मणि भवन उस जगह की आज की बहुत प्रसिद्ध इमारत है और जिसे देखने के लिये बहुत बड़े बड़े लोग भी आते हैं।
मणि भवन – गाँधी संग्राहालय
अब मैं फीके रंगों में रंगी हुई सौ साल पुरानी इमारत के सामने जो हमारे राष्ट्र पिता को समर्पित है खड़ी थी। संग्रहालय के बाहर एक धातु के बोर्ड के ऊपर उस जगह का पूरा नाम – मणि भवन गाँधी संग्रहालय, गाँधीजी के निशान चरखे के साथ लिखा था। मुझे इस जगह की जानकारी मुख्य द्वार पर बने एक छोटे से काउंटर से प्राप्त हुई। मैं जानकर हैरान और खुश हुई जब उन्होंने मुझे तस्वीरें खींचने की अनुमति दी, वो भी निशुल्क। वहां की दीवारों पर महात्मा गाँधी के बारे में बड़ी और छोटी सूचनाएं थीं और एक तख्ते पर गाँधी जी को समर्पित डाक टिकट भी रखे थे।
पुस्तकालय और किताबों का संरक्षण
अंदर प्रवेश करते ही वहां का पुस्तकालय देखकर मैं खुशी से झूम उठी। एक खास किताबों की अलमारी पर एक कागज़ पर लिखा था – गाँधीजी द्वारा पढ़ी गयीं पुस्तकें। मैंने अनुमान लगाया कि बाकी पुस्तकें उन्हे उपहार स्वरुप मिली होंगी।पुस्तकालय में समय बिताने के बाद उसके दूसरी तरफ के कमरे में मैंने प्रवेश किया । यहाँ किताबों को सुरक्षित रखने की प्रयोगशाला को देखकर अचंम्भित रह गयी। पुराने दाग लगे हुए किताबों के पन्नों को एक कपड़े पर चिपका कर सूखने के लिये टांगा गया था। वहाँ पर और भी बहुत सी पुस्तकें फटे हुए पन्नों के साथ मैंने देखीं और ऐसा महसूस किया जैसे वहां कोई शल्य चिकित्सा चल रही हो और अलग अलग भागों को सिर्फ़ उन्ही चिकित्सकों द्वारा ही पहचाना जा सकता है। मेरे लिये यह पहली बार था जब मैं किताबों को सुरक्षित रखने का स्थान देख रही थी। मेरे मन में कई प्रश्न थे परंतु उस दिन रविवार होने के कारण वहां के सभी कर्मचारी अवकाश पर थे, इसलिए मेरे मन में उठने वाले सवालों के उत्तर मुझे नहीं मिल पाये। संग्रहालय के इस भाग को जानने में अगर आपको थोड़ी सी भी उत्सुकता है तो कृप्या सप्ताह के अंत या किसी भी छुट्टी वाले दिन न जायें।
बहुत ही संकरी लकड़ी की सीढियाँ जो पहले और दुसरे तल पर जाती हैं वहां मैंने चारो ओर गाँधीजी को पाया। यहाँ गाँधी जी के जीबन को उनकी मूर्ति , चित्र और तस्वीरों के माध्यम से दिखाया गया था। पहली मंजिल पर एक साधारण सा रंगभवन था जहाँ पर आप गाँधीजी से सम्बंधित चलचित्र देख सकते हैं और उनके भाषण को सुन सकते हैं। दूसरी मंजिल पर गाँधीजी के जीवन की महत्वपूर्ण घटना की श्रंखलाओं को चित्रावली द्वारा दर्शाया गया है। अहमदाबाद में जब साबरमती आश्रम स्थापित हो रहा था तब गाँधीजी इस घर में भी रहे। यह भवन रीवाशंकर जगजीवन ज़वेरी का है। आज़ादी के बाद यह भवन संग्रहालय में बदल दिया गया। यहाँ से गाँधीजी ने कई आन्दोलनों की शरुआत की जैसे रोव्लेट एक्ट के विरुद्ध आन्दोल।
महात्मा गाँधी का व्यकतिगत कमरा
इस संग्रहालय का सबसे साधारण व प्रभावशाली हिस्सा गाँधीजी का व्यकिगत कमरा, जो ऊपर की मंजिल पे एक कोने में स्थित है। इस कमरे में एक छोटा सा बिस्तर, लिखने के लिये एक मेज़, कुछ किताबें, उनका सबसे प्रिय चरखा, खुली खिड़कियाँ और दरवाजे उनके साधारण व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। इस कमरे के अन्दर जाने की अनुमति नहीं है, बस आप शीशे के माध्यम से उस कमरे को देख सकते हैं। इस मणि भवन पर उस समय ध्यान दिया गया जब अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा भारत आये और उन्हें इस भवन को देखने के लिये लाया गया।
हर शहर गॅाव गाँधीजी को अपने तरीके से याद करता है। मुम्बई का यह सौभाग्य है कि गाँधीजी कुछ समय यहाँ रहे थे। जब भी आप मुम्बई जाए तो मणि भवन को देखना न भूलें।
गाँधी जी के अन्य निवास
सत्याग्रह आश्रम – कोचरब, अहमदाबाद