श्री कृष्ण के काल को बहुधा इन तीन धरोहरों से जोड़ा जाता है, गोवर्धन पर्वत, ब्रज भूमि तथा यमुना नदी।
यमुना नदी का श्याम वर्ण जल कृष्ण के श्याम वर्ण के समान है। यमुना उनकी आठ पत्नियों में से एक है। यहाँ मथुरा में तो वह उनकी पटरानी है। ब्रज भूमि के दर्शन यमुना नदी के दर्शन के बिना अपूर्ण है।
मथुरा में यमुना नदी पर नौका विहार
इस पवित्र नदी पर नौका विहार तीर्थ यात्रियों तथा पर्यटकों का लोकप्रिय क्रियाकलाप है। अतः एक दिवस प्रातः काल मैंने भी नौका द्वारा मथुरा के विभिन्न घाटों के दर्शन करने का निश्चय किया। प्रतिदिन यमुना नदी जिन दृश्यों को निहारती है, कदाचित उन्ही दृश्यों को निहारने की कामना मुझमें थी।
नौका विहार का विडियो
मैंने जब घाट की ओर चलना आरम्भ किया, मैंने कुछ नवयुवकों को एक मंडप के नीचे, अपने गुरूजी के संग वेदों का जाप करते सुना। बाजार खुलना आरंभ हो रहा था। चारों ओर से मंदिर की घंटियों का नाद सुनायी दे रहा था।
विश्राम घाट
मैं प्रसिद्ध विश्राम घाट पहुँची तथा वहां एक रंग बिरंगी नौका में बैठ गयी। ऐसा माना जाता है कि कंस का वध करने के पश्चात कृष्ण ने यहीं विश्राम किया था। इसीलिए इस घाट का नाम विश्राम घाट पड़ा। दोनों ओर १२-१२ घाटों के ठीक मध्य यह विश्राम घाट है।
नौका के चारों ओर रंग बिरंगी पताकाएं फहरा रही थीं। बैठने के लिये भी उतनी ही रंगबिरंगी दरी बिछी हुई थी। नाविक ने हमें ब्रज भाषा में ब्रज भूमि की कई कथाएं सुनाईं। कवितायें एवं मुहावरें उसके मुंह से झरने के समान बह रहे थे। मार्च के सुहावने वातावरण में नौका विहार का आनंद उसने कई गुना बढ़ा दिया था।
कंस किला अर्थात कंस का दुर्ग
विश्राम घाट से हम बाईं ओर कंस का किला अर्थात् दुर्ग की ओर बढ़ रहे थे। नाविक हमें विभिन्न घाटों एवं उनसे सम्बंधित कथाओं के विषय में बता रहा था। कंस के दुर्ग के भीतर जाकर देखने की मेरी प्रबल इच्छा थी, जबकि मुझे भलीभांति ज्ञात था कि यह कंस का दुर्ग है। सबने मुझे बताया कि भीतर देखने योग्य कुछ नहीं है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित यह दुर्ग अपेक्षाकृत नवीन है। दूर से यह दुर्ग विशाल प्रतीत हो रहा था। नदी की सतह पर पड़ते अपने प्रतिबिम्ब के साथ वह और भी अधिक भव्य दिखाई पड़ रहा था।
यमुना की होली
सम्पूर्ण नदी के किनारे स्थित रंगबिरंगे घाटों पर विभिन्न कार्यकलापों की गजबजाहट स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मैं यहाँ होली के पर्व से कुछ दिनों पूर्व आयी थी। किन्तु यह ऐतिहासिक नगरी अभी से होली के रंग में रंग गयी थी। मैंने यहाँ कई परिवारों को यमुना से होली खेलते देखा। जी हाँ, आपने सही पढ़ा। पवित्र नदी यमुना के संग होली! वे होली के लोकगीत गाते, नदी में कुछ रंग छिड़कते तत्पश्चात आपस में होली खेलते। यह प्रथा अधिकतर उन सभी अनुष्ठानों में पाली जाती है जिनका आयोजन घाटों में होता है। चारों ओर हर्ष एवं उल्हास का वातावरण था जो यहाँ सदैव रहता है। यूँ ही नहीं कृष्ण ने इस स्थान को खेलने तथा रास लीला रचाने के लिए चुना था।
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यहाँ एक संरचना विशेषतः मेरी स्मृति में है। लाल बलुआ पत्थर द्वारा राजस्थानी झरोखा शैली में निर्मित एक ऊंचा बुर्ज जिसे सती बुर्ज कहा जाता है। कहा जाता है कि एक रानी जो अकबर की सास भी थीं, यहाँ सती हुई थीं। उनकी स्मृति में यह बुर्ज खड़ा किया गया था।
पुराणों के छंद
घाट के उस पार, कुछ फलकों पर पुराणों के छंद थे जो संस्कृत भाषा में मथुरा की गाथा कह रहे थे। साथ ही हिंदी में उनका अर्थ भी प्रदर्शित था। यह मुझे अत्यंत भाया। आशा करती हूँ कि अन्य तीर्थ स्थलों पर भी यह प्रथा शीघ्र आरम्भ की जायेगी जो उस स्थान का स्थल पुराण अर्थात् उस स्थान के पौराणिक आलेख सार्वजनिक स्थानों पर इसी प्रकार प्रदर्शित करेंगे।
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यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि नदी के घाट स्वच्छ नहीं हैं। मैंने स्वयं देखा कि गंदे नाले द्वारा मैला सीधे नदी में जा रहा था। कचरा तो इतना था कि वह घाट की सीड़ियों एवं नदी के जल के बीच ड्योढी के समान प्रतीत हो रहा था। नदी के मलिन जल को देख मेरा हृदय अत्यंत आहत हुआ था।
उपरोक्त चर्चा के पश्चात भी मैं यही कहूंगी कि मथुरा की महिमा इसके परे है। यहाँ के अर्धचन्द्राकार घाटों पर शांत बहते जल के किनारे बैठकर इनकी कथाओं में खो जाना अतुलनीय अनुभव है। शान्ति से बैठिये तथा ब्रजवासियों के मुख से इस धरती की कथाएं सुनकर आत्म विभोर हो जाईये।
चुनरी मनोरथ – जब यमुना चुनरी ओढ़ती है
नौका सवारी के समय मेरे गाइड ने मुझे इस पवित्र नदी पर आयोजित किये जाने वाले इस अनोखे अनुष्ठान की जानकारी दी। और मेरा सौभाग्य देखिये, नाविक ने जानकारी दी कि उस दिन भी कुछ चुनरी मनोरथ अनुष्ठान नियोजित थे। मैंने अपने दिन के बचे कार्यक्रम की सूची में झटपट फेर-बदल किया तथा यह सुनिश्चित किया कि मैं भी इस अनोखे अनुष्ठान का आनंद ले सकूं।
यह चुनरी मनोरथ क्या है?
मनोरथ का अर्थ है मनोकामना अथवा इच्छा। चुनरी का अर्थ आप जानते ही हैं, जो भारतीय परिधान का एक अभिन्न अंग है। किसी भी घरेलू उत्सव में अथवा विवाह, मंगनी जैसे पवित्र आयोजनों में स्त्रियों को चुनरी ओढाने की रीत है। यह सुहागन का अधिकार है। दिव्य नारी सुलभ पवित्रता का प्रतीक है।
चुनरी मनोरथ में यमुनाजी को चुनरी अर्पित की जाती है। उन्हें पावन मथुरा की देवी माना जाता है। परिवारजन उन्हें अर्पित करने के लिए अत्यंत लम्बी साड़ी लाते हैं जिसे वे कई साड़ियों को जोड़कर बनाते हैं। अधिकतर १०१ साड़ियों को आपस में सिलकर यह साड़ी तैयार की जाती है। कभी कभी तो भक्तगण ४०० साड़ियों तक को जोड़कर ये लम्बी साड़ी तैयार करते हैं। इस लम्बी साड़ी के एक छोर को इसी तट पर रखकर साड़ी को अनेक नौकाओं द्वारा पावन नदी के उस पार तक ले जाते हैं। जब साड़ी का दूसरा छोर नदी पार कर दूसरे किनारे तक पहुंचता है तो ऐसा प्रतीत होता है मानो नदी ने चुनरी ओढ़ ली है।
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साधारणतः यह परिवारजनों द्वारा किसी विशेष प्रयोजनों में आयोजित किया जाता है अथवा किसी मनोकामना के पूर्ण होने पर कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आयोजित किया जाता है। उस दिन मैंने दो चुनरी मनोरथ देखे। एक चुनरी मनोरथ में एक गुजराती परिवार के ९०-१०० सदस्य अपने आदरणीय कुलपिता के जन्म दिवस का उत्सव मना रहे थे। वे वृद्ध पुरुष अपनी अर्धांगिनी के संग सर्व पूजा विधि संपन्न कर रहे थे। दूसरे चुनरी मनोरथ में एक राजस्थानी परिवार के १०-१२ सदस्य अपने परिवार में प्रवेश करती नयी नवेली दुल्हन के स्वागतार्थ यह अनुष्ठान कर रहे थे।
चुनरी मनोरथ कौन कर सकता है?
चुनरी मनोरथ मुख्यतः गुजरात एवं राजस्थान के वैष्णव परिवार के सदस्य करते हैं जो पुष्टिमार्ग के अनुयायी हैं। यमुना देवी पुष्टिमार्ग भक्ति के अनुयायियों की प्रमुख देवी हैं। इनके अतिरिक्त किसी अन्य भक्त के लिए यह अनुष्ठान करने के लिए कोई बंधन नहीं है। वहां के पुजारीगण प्रसिद्ध सांसद हेमा मालिनी द्वारा किये गए चुनरी मनोरथ की कथा सुनाते नहीं थकते। उन्होंने यह अनुष्ठान करवाया था, कदाचित सांसद बनने के पश्चात कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए।
यह अनुष्ठान वर्ष भर किसी भी समय किया जा सकता है। घाट की सीड़ियों पर एक आश्रय निर्मित किया गया है ताकि अनुष्ठान के समय लोग इसके नीचे बैठकर देख सकें। यह अनुष्ठान अत्यंत विस्तृत है तथा इसके संपन्न होने तक कई घंटे लग जाते हैं।
चुनरी मनोरथ की कथा
एक समय ब्रज की गोपियों को कृष्ण के संग खेलते एवं रास लीला रचाते हुए गर्व उत्पन्न हो गया था। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि कृष्ण सदैव उनका कहा मानते हैं तथा वे जो कहें वह करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। जैसे ही कृष्ण को यह आभास हुआ, उन्होंने गोपियों को सही दिशा दिखने का निश्चय किया। वे पवित्र यमुना के जल के भीतर जाकर छुप गए। उन्हें ना देखकर सभी गोपियों को अत्यंत पीड़ा हुई तथा उनकी दुर्गति होने लगी। बावरी होकर उन्होंने गोपी गीत गाना आरम्भ किया।
वे एक वन से दूसरे वन तक तथा एक तालाब से दूसरे तालाब तक दर दर भटकने लगीं। अंततः वे यमुना के समीप गयीं तथा उनसे कृष्ण के विषय में पूछा। गोपियों की दुर्दशा एवं उनका दुःख देख पावन नदी का हृदय पिघल गया। उन्होंने कृष्ण से बाहर आकर गोपियों के मुख व जीवन में आनंद वापिस लाने का अनुनय किया।
गोपियों ने यमुनाजी को धन्यवाद दिया तथा कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु उन्हें चुनरी अर्पित की। उस समय से यह परंपरा स्थापित हो गयी। भक्तगण इच्छा पूर्ति के उपरांत पावन नदी की ओर कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उन्हें चुनरी उढ़ाते हैं।
विडियो: चुनरी मनोरथ अनुष्ठान देखें
अनुष्ठान
परिवारजन अपने शीश पर साड़ियों का गट्ठा रख कर धूमधाम से शोभायात्रा निकालते हैं। वे स्वयं भी जितना संभव हो, उत्तम वस्त्र धारण करते हैं। मैंने देखा, चुनरी मनोरथ करते एक परिवार की सभी स्त्रियाँ लाल रंग की बांधनी साड़ी पहने, विशेष रूप से सजी हुई थीं। दूसरे परिवार की स्त्रियों ने भारी रेशमी साड़ियाँ एवं भव्य आभूषण धारण किया हुआ था। मेरे अनुमान से सभी साड़ियाँ नवीन थीं। सभी मधुर तान पर गीत गाते एवं नृत्य करते पवित्र नदी के घाट पर जा रही थीं। वे जब बाजार से होते हुए जा रही थीं, वहां उपस्थित सभी के मुख पर दिव्य प्रसन्नता थी क्योंकि उनकी लाडली यमुनाजी का आज विशेष श्रृंगार होने जा रहा है।
वे सब जाकर यमुना के घाट की सीड़ियों पर बैठ गयीं तथा पुजारीजी को चुनरी मनोरथ की तैयारियां करते देखने लगीं। वहां एक मंच तैयार किया गया था जिस पर क्रमशः ये अनुष्ठान किये जाने थे:
गणेश पूजा
कैलाश पूजा
मातृका पूजा
कृष्ण तथा यमुना पूजा
दो घड़ों को रंग कर कृष्ण एवं यमुना का रूप प्रदान किया गया था। उनका वर-वधु के समान श्रृंगार किया गया था। अनुष्ठान में भाग लेने वाला प्रत्येक सदस्य उन्हें वस्त्र एवं आभूषण अर्पित कर रहा था। उनके चारों ओर भिन्न भिन्न प्रकार के मिष्टान रखे थे। मैंने देखा कि पुजारीजी एवं परिवार के सदस्य मूर्तियों को अत्यंत प्रेम एवं श्रद्धा से सुसज्जित कर रहे थे।
पवित्र नदी का चढ़ावा
पवित्र नदी के किनारे बैठकर परिवारजन उन्हें वे सर्व चढ़ावे चढ़ा रहे थे जो अन्यथा वे मंदिर में भगवान् को चढ़ाते हैं, जैसे दूध, दही, हल्दी, कुमकुम इत्यादि। होली का समय होने के कारण उन्होंने यमुना को होली के ५ रंग भी अर्पित किये।
सर्व पूजा विधि समाप्त होते ही वे सब नौकाओं पर सवार होने लगे। उन्होंने अपने हाथों में साड़ी उठायी हुई थी। उनके समक्ष चुनौती थी कि उन्हें इतनी लम्बी साड़ी ऊंची उठाकर पकड़नी थी । जैसे जैसे नदी उस पार जाने के लिए आगे बढ़ रही थी वैसे वैसे रंग बिरंगी साड़ी का गट्ठा खुल रहा था। यमुना नदी इसकी रंगीन छटा में खिल रही थी। परिवारजनों के मुख पर अपार आनंद स्पष्ट झलक रहा था, मानो वे एक स्वप्न को जी रहे थे।
“यमुना मैय्या की जय” चारों ओर यमुना मैया की जय जयकार गूँज रहा था। यमुना को चुनरी उढ़ाने का कार्य सम्पूर्ण होते ही वे एक दूसरे को बधाइयां दे रहे थे।
विस्तृत अनुष्ठान
जितना समय इस सम्पूर्ण अनुष्ठान के पूर्ण होने में व्यतीत हुआ तथा जितनी वस्तुएं यमुनाजी को अर्पित की गयीं, उनसे मैंने यह अनुमान लगाया कि यह एक मूल्यवान अनुष्ठान है।
मैंने कुल ३ घंटे यहाँ व्यतीत किये थे इस अनुष्ठान को देखने में। जो बड़ा परिवार यहाँ अनुष्ठान करवा रहा था, उन्होंने मुझे भी अनुष्ठान में सहभागी होने का आमंत्रण दिया तथा मुझे भी यमुना को रंग अर्पित करने का अवसर दिया। उन्होंने तो मुझे नौका में सवार होकर चुनरी उढ़ाने में भी भाग लेने का आमंत्रण दिया था। किन्तु मैंने उन्हें विनम्रता से मना कर दिया तथा तट पर बैठकर यहाँ से वह विहंगम दृश्य देखने का निश्चय किया।
यह मेरे लिए वह आकस्मिक लाभ था जो मुझे सही समय पर सही स्थान में उपस्थित होने के कारण प्राप्त हुआ था। एक दिवस पूर्व तक मैं इस अनुष्ठान से पूर्णतः अनभिज्ञ थी। प्रातःकाल मैंने यूँ ही निश्चय किया था कि नौका पर सवारी करते हुए यमुना के तटों का आनंद लूंगी तत्पश्चात मथुरा के अन्य स्थलों के दर्शन करूंगी। किन्तु यमुनाजी ने मेरे लिए कुछ और ही निश्चित किया हुआ था। वे चाहती थीं कि मैं उनका चुनरी श्रृंगार होते देखूं। उनके आशीर्वाद के बिना यह असंभव था। ये वे क्षण थे जो एक यात्री को सही मायने में तृप्त कर देते हैं।
मुझे बाद में यह जानकारी प्राप्त हुई कि नर्मदा नदी में भी इसी प्रकार का अनुष्ठान किया जाता है। मैं प्रतीक्षा में हूँ कि कब नर्मदा माँ भी मुझे इसी प्रकार बुलाएंगी तथा उनके श्रृंगार में सहभागी होने का अवसर प्रदान करेंगी।
आप भी जैसे ही अवसर प्राप्त हो, इस अनोखे अनुष्ठान को अवश्य देखिये।
कृष्ण एवं यमुना की कथाएं
यमुना के घाटों पर आप कई गाथाएँ सुनेंगे।
एक कथा के अनुसार, कृष्ण के जन्म के पश्चात् सर्वप्रथम यमुनाजी को उनके चरण स्पर्श करने का अवसर प्रदान हुआ था। जब कृष्ण का जन्म हुआ था, उनके पिता वसुदेव उन्हें एक टोकरी में रखकर यमुना पार गोकुल ले गए थे जहां उनके मित्र नन्द एवं यशोदा का निवास था। वे जब यमुना में उतरे, नदी का जल उनके गले तक पहुँच गया था। तब कृष्ण ने टोकरी से चरण बाहर निकाल लिए। जैसे ही यमुना ने उनके चरण स्पर्श किये, उसका जल स्तर नीचे जाने लगा। वसुदेव ने आसानी से यमुना पार कर ली।
एक अन्य किवदंती के अनुसार, कृष्ण ने अपनी अनेक लीलाएं यमुना नदी के तट पर ही की थीं, जैसे रास लीला, बंसी बजाना, गायें चराना, गोपियों का चीर हरण इत्यादि।
एक अन्य कथा में दर्शाया गया है कि यमुना नदी मानवी रूप धर कर, हाथों में कमल पुष्प की वरमाला लिए कृष्ण से विवाह करने आयी थीं।
यमुनाजी सूर्य की पुत्री एवं मृत्यु देव यम की भगिनी हैं। उन्हें कृष्ण की प्रवाही शक्ति भी कहा जाता है। कुछ लोग उन्हें बिरजा देवी भी बुलाते हैं। यहाँ और पढ़ें।
नौका सवारी के लिए सुझाव
• घाट एवं नौका सवारी का आनंद उठाने के लिए १ घंटे का समय आवश्यक है।
• १ घंटे की विशेष सवारी के लिए मैंने ४००/- रुपये भुगतान किये थे। यह नौका १५-२० लोगों को बिठाने में सक्षम है।
• प्रयत्न कर यहाँ प्रातः आने का प्रयास करें। तब ये घाट विविध क्रियाकलापों से जीवंत रहता है। सूर्य भी अनुकूल रहता है।