ओडिशा को लोग भारत के प्रसिद्ध सांस्कृतिक केंद्रों में से एक के रूप में कम ही जानते हैं। ओडिशा जैसे संस्कृति के धनी प्रदेश के प्रति यह अन्याय है। यहाँ हस्तकला द्वारा एक से बढ़कर एक कलाकृतियाँ बनायी जाती हैं। ओडिशा के प्रसिद्द स्मृतिचिन्ह के रूप में यदि आप उन्हे क्रय करना चाहें तो आप समझ नहीं पाएंगे कि क्या लें तथा क्या छोड़ें। ओडिशा में अनेक सांस्कृतिक केंद्र हैं जहां से आप ये वस्तुएं ले सकते हैं। वह चाहे ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर हो अथवा रघुराजपुर जैसे शिल्पग्राम हों या पुरी जैसे तीर्थस्थान हों, आपको ओडिशा की कुछ ना कुछ स्मृतिचिन्ह अवश्य प्राप्त होंगी। भुवनेश्वर के आदिवासी संग्रहालय का एक दर्शन आपको यह आभास कर देगा कि आप यहाँ की अनेक प्रकार की आदिवासी कलाकृतियों से अपने घर की शोभा बढ़ा सकते हैं।
उनमें से कुछ अत्यंत लोकप्रिय एवं सुलभ ओडिशा स्मृतिचिन्हों के विषय में यहाँ उल्लेख कर रही हूँ जिन्हे आप अपने ओडिशा यात्रा के समय क्रय करने का विचार कर सकते हैं।
भुवनेश्वर एवं पुरी से लेने वाले ओडिशा के प्रसिद्द स्मृतिचिन्ह ?
कला प्रेमियों के लिए
पाषाण के शिल्प
ओडिशा भारत के उन कुछ क्षेत्रों में से एक है जहां अब भी शिलाओं पर शिल्पकारी की जाती है। कई स्थानों पर मार्ग के दोनों ओर आपको कई कार्यशालाएं दृष्टिगोचर होंगी जहां आपको अनेक शिल्पकार शिलाओं पर विभिन्न छवियाँ उत्कीर्णित करते दिखायी देंगे। विशिष्ट व अतिविशिष्ट स्तर के अनेक अतिथिगृह इस प्रकार के पाषाणी शिल्पकारी की कलाकृतियों का अपने परिवेश की साज-सज्जा में प्रयोग करते हैं। अधिकतर मंदिरों में देवी देवताओं की प्रतिमाओं के रूप में इन शिल्पों की स्थापना की जाती है। आप या तो उपलब्ध कलाकृतियों में से किसी का चुनाव कर सकते हैं अथवा अपनी व्यक्तिगत मांग के अनुसार भी अपने लिए एक शिल्प उत्कीर्णित करवा सकते हैं। वे आज भी प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर के चक्र की अप्रतिम प्रतिकृति बनाते रहते हैं।
ये स्मृति चिन्ह अपने साथ ले जाना आसान कार्य नहीं है। ये भारी एवं क्षणभंगुर तो होते ही हैं, साथ ही यदि आप अपनी इच्छा के अनुसार प्रतिमाएं उत्कीर्णित करवा रहे हैं तो आवश्यक शिला का प्रबंध करने तथा उन्हे उत्कीर्णित करने में समय व्यतीत होता है। आप विभिन्न प्रकार के शिल्प कलाकृतियों के छायाचित्र अवश्य लीजिए।
चांदी पर महीन जालीदार फिलग्री कारीगरी
चांदी पर महीन जालीदार फिलग्री कारीगरी अर्थात् तारकशी द्वारा अत्यंत सूक्ष्मता से तक्षित कर चांदी के आभूषण तथा चांदी की अन्य वस्तुएं बनायी जाती हैं। इन पर की गई नक्काशी इतनी महीन होती है मानो चांदी के महीन धागों को आपस में बुना गया हो। आप फिलग्री कारीगरी के आभूषण एवं छोटी छोटी डिबिया क्रय कर सकते हैं। इन्हे साथ ले जाना आसान है। साथ ही ये निकट सगे-संबंधियों के लिए अत्यंत मनमोहक उपहार सिद्ध होंगे। फिलग्री कारीगरी की वस्तुएं आप उच्च स्तर की किसी भी दुकान से क्रय कर सकते हैं। ऐसी दुकानें उच्च एवं उच्चतर स्तर के अतिथिगृहों में भी उपलब्ध होते हैं।
मुझे बताया गया कि फिलग्री कारीगरी की वस्तुओं के लिए कटक का निमचौरी सर्वोत्तम स्थल है। आपको स्मरण कराना चाहूँगी कि भारत में सर्वोत्तम फिलग्री कारीगरी कटक में ही की जाती है। अतः यदि आप फिलग्री कारीगरी की वस्तुओं में रुचि रखते हैं तो अपनी इस यात्रा का भरपूर लाभ उठायें।
पट्टचित्र – ताड़ के पत्ते पर पारंपरिक चित्रकला
ओडिशा पट्टचित्र अर्थात् ताड़ के पत्ते पर पारंपरिक चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है। पट्टचित्र चित्रकारी पारंपरिक रूप से ताड़ की पत्तियों की आपस में जुड़ी संकरी पट्टियों पर किया जाता है। ताड़ की पत्तियों की सतह को उकेर कर उसमें रंग भरा जाता है। चित्रकला की यह शैली विशेषतः ओडिशा में ही दृष्टिगोचर होती है। इस चित्रकला में अपार मात्रा में कौशल एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है। पुरी के निकट स्थित सम्पूर्ण रघुराजपुर गाँव इसी कलाशैली को समर्पित है। आप यह पट्टचित्र चित्रकारी ओडिशा में कहीं से भी खरीद सकते हैं।
पट्टचित्र – वस्त्र पर पारंपरिक चित्रकला
पट्टचित्र ताड़ के पत्तों पर चित्रकारी करने की एक प्राचीन कला है। किन्तु वर्तमान में यहाँ के कलाकार ताड़ पत्तों के अतिरिक्त अन्य माध्यमों पर भी अपनी कलाकृतियाँ प्रदर्शित कर रहे हैं, जैसे सूती व रेशमी वस्त्र, नारियल की खोपड़ी, सुपारी, कांच की बोतल, पत्थर, लकड़ी इत्यादि। जगन्नाथ मंदिर एवं इसके भगवान की कथाएं ही सदैव इस चित्रकला शैली का प्रमुख विषय रहते हैं। इस कला को समझने के लिए यह विडिओ देखिए।
यूं तो इन्हे क्रय करने का सर्वोत्तम स्थान रघुराजपुर है, किन्तु अब ये ओडिशा के प्रायः सभी प्रमुख स्थानों में प्राप्त हो जाते हैं।
पिपली
पुरी-भुवनेश्वर मार्ग पर स्थित पिपली एक छोटा सा गाँव है। आप यहाँ चारों ओर रंगबिरंगे आकाशकन्दिल, छतरियाँ, थैलियाँ देखेंगे जिन पर एप्लीक वर्क किया गया है। एक मूल वस्त्र के ऊपर विभिन्न रंगों एवं छापों के वस्त्रों के टुकड़ों को सिलकर सुंदर आकृतियाँ बनायी जाती हैं। पारंपरिक रूप से इस पिपली कलाशैली का प्रयोग जगन्नाथ यात्रा में प्रयुक्त छतरियों को बनाने में किया जाता था। इस शैली का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की सुंदर आकृतियाँ तैयार की जाती हैं।
आज इस कलाशैली का प्रयोग कर थैलियाँ, आकाशकन्दिल, छोटे बटुए इत्यादि बनाए जाते हैं। स्मारिका के रूप में इन्हे साथ ले जा कर वास्तव में आप इस उत्कृष्ट कला के साथ न्याय करेंगे।
नारियल के खोल पर चित्रकारी
जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की रंगबिरंगी छवियों से चित्रित नारियल के खोल आप पुरी की दुकानों में देखेंगे। आप इन्हे अपने घर के प्रवेश द्वार की चौखट पर लटका सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये कुदृष्टि से आपकी रक्षा करते हैं। कुछ समय पूर्व मुझे भी किसी ने यह उपहार स्वरूप प्रदान किया था। अब ये मेरे घर के मंदिर का एक भाग है।
इसी का लघु रूप भी उपलब्ध है जिसे सुपारी पर चित्रित कर बनाया जाता है। यह एक सर्वोत्तम उपहार वस्तु है। छोटी होने के कारण बड़ी मात्रा में इन्हे ले जाया जा सकता है। भगवान की छवि होने के कारण यह लोगों को सहज भा जाती है।
कोणार्क चक्र
ओडिशा के नाम से कोणार्क तथा कोणार्क सूर्य मंदिर सहज ही हमारे समक्ष प्रकट हो जाता है। कोणार्क सूर्य मंदिर का एक महत्वपूर्ण भाग है उसका चक्र। यह अभूतपूर्व चक्र कौन अपने साथ नहीं ले जाना चाहेगा? २० रुपये एवं १० रुपये की प्राचीन मुद्रा पर असली चक्र की छवि है। ये मुद्रा तो आप रख ही सकते हैं। स्मारिका के रूप में कोणार्क चक्र के लकड़ी अथवा शिला में बने लघु स्वरूप आप यहाँ से अवश्य क्रय कर सकते हैं। आप यहाँ से ऐसी साड़ियाँ एवं वस्त्र भी क्रय कर सकते हैं जिन पर कोणार्क चक्र की आकृतियों की छपाई की गई है।
शिला में उत्कीर्णित सूर्य मंदिर का लघु अथवा सूक्ष्म रूप भी स्मारिका के रूप में लिया जा सकता है।
लकड़ी के मुखौटे
रघुराजपुर गाँव में तथा कुछ स्मारिका दुकानों में लकड़ी के रंगबिरंगे मुखौटे उपलब्ध हैं जिन पर यहाँ के लोकप्रिय देवताओं की छवि चित्रित होती है।
तीर्थयात्रियों के लिए ओडिशा के प्रसिद्द स्मृतिचिन्ह
ताड़ के पत्तों की टोकरी में प्रसाद
पुरी का जगन्नाथ मंदिर हो अथवा भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर या जाजपुर का बिरजा देवी मंदिर, ओडिशा के मंदिरों में प्रसाद एक चौकोर टोकरी में मिलता है जिसे ताड़ के सूखे पत्तों द्वारा बनाया जाता है। अधिकतर कोटरियां ढक्कन सहित होती हैं तथा जूट की रस्सी से बंधी हुई होती हैं। इन्हे आप आसानी से साथ ला सकते हैं। इन्हे देख आभास होता है कि कैसे प्राचीन काल से तीर्थयात्रा से इसी प्रकार प्रसाद घर लाया जाता रहा है।
ओडिशा के मंदिरों के प्रसाद को स्मारिका तो नहीं कहा जा सकता किन्तु भक्तों के लिए यह प्रसाद प्राप्त कर घर ले जाने के पीछे उनकी असीम श्रद्धा निहित होती है। मेरे लिए यह एक ऐसी परंपरा है जिसके द्वारा स्थानीय एवं पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं का प्रयोग कर टोकरियाँ बनाई जाती हैं जिन्हे आप ना केवल पुनः प्रयोग में ले सकते हैं, अपितु बाहर फेंकने पर भी यह पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं है।
निर्माल्य
धान को गुलाबी वस्त्र में बांधकर भगवान को अर्पित किया जाता है। इसे यहाँ निर्माल्य कहते हैं। दर्शन के उपरांत भक्तगण इसे अपने साथ वापिस लेकर आते हैं तथा घर के धान में मिला देते हैं। ऐसा करने के पीछे भक्तों की ऐसी भावना है कि इस सम्मिश्रण से उनका सम्पूर्ण धान प्रसाद में परिवर्तित हो जाता है। तत्पश्चात वे उस धान का उसी श्रद्धा से सेवन करते हैं मानो वे प्रसाद का ही सेवन कर रहे हैं।
आप ये निर्माल्य जगन्नाथ मंदिर के भीतर से प्राप्त कर सकते हैं। मंदिर के ठीक बाहर भी ये उपलब्ध हो जाते हैं। चटक गुलाबी रंग के आवरण के कारण आप इन्हे तत्काल पहचान सकते हैं।
बेंत की छड़ी
पुरी के मंदिर के चारों ओर मैंने अनेक स्थानों पर बेंत की छड़ी की बिक्री होते देखी। प्रथमदर्शनी मुझे ये पैदल सैर में सहायक छड़ी प्रतीत हुईं। मैं अचंभे में थी क्योंकि इनकी लंबाई विशेषरूप से लघु प्रतीत हो रही थी। मैंने अपने आसपास के कुछ लोगों से अपनी शंका व्यक्त की। उन लोगों ने मुझे बताया कि ये पैदल सैर की छड़ी नहीं है, अपितु चिन्ह है कि इस छड़ी धारक ने पुरी की यात्रा की है। अतः यदि आप यह छड़ी अपने साथ घर वापिस ले जाएंगे तो इसका सीधा अर्थ यह होगा कि आप पुरी की यात्रा से वापिस आए हैं। यह पुरी की एक रोचक स्मृति हो सकती है।
जगन्नाथ की लघु प्रतिकृति
लकड़ी में बनी जगन्नाथ की लघु प्रतिकृति पुरी के जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवानों की प्रतिमा के समान ही प्रतीत होती हैं। पुरी की स्मृति के रूप में इन्हे अपने साथ लाना अत्यंत उत्तम विचार होगा। यह पुरी की सर्वाधिक लोकप्रिय स्मारिकाओं में से एक है। जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की रंगबिरंगी छवियों से चित्रित ये लकड़ी की छोटी छोटी कृतियाँ प्रत्येक छोटी-बड़ी स्मारिका दुकानों में उपलब्ध हैं। इन रंगों में काले, श्वेत एवं पीले रंगों की प्राधान्यता होती है। अपने इष्ट भगवान की इन लघु मूर्तियों को अपने साथ घर लाने की प्रथा अत्यंत प्राचीन है। इससे इन्हे बनाने वाले कारीगरों का भी भरण-पोषण होता है।
भगवान जगन्नाथ की छवि आपको जूट की थैलियों, धातु की थालियों सहित अन्य अनेक वस्तुओं पर दृष्टिगोचर हो जाएंगी।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर का लकड़ी में बना लघु प्रतिरूप भी उपलब्ध है जिसके भीतर तीनों देवों की छवियाँ होती हैं।
जगन्नाथ भगवान के भक्तों के लिए यह सर्वोत्तम उपहार होते हैं।
सोलापीठ (भारतीय काग) की सजावट
मेरे एक संस्करण, ‘बंगाल के १० स्मृतिचिन्ह’ में मैंने आपको सोलापीठ (भारतीय काग) से हस्तशिल्प द्वारा बनी कलाकृतियों के विषय में बताया था। शोला अथवा सोला एक पौधा है जो आर्द्र भूमि के दलदल में उगता है। बंगाल के साथ यह पौधा ओडिशा में भी पाया जाता है। किन्तु ओडिशा में इसका उपयोग किंचित भिन्न है। सोलापीठ के पतले कतलों द्वारा मंदिर एवं घरों को सजाने की वस्तुएं बनाई जाती हैं। भक्तगण इन्हे मंदिर में भगवान को अर्पित करने के लिए अथवा घर के मंदिर में देवी-देवताओं को अर्पित करने के लिए क्रय करते हैं।
पारंपरिक चटाई
मेरे बालपन में ग्रीष्म ऋतु में हम धरती पर चटाई बिछाकर उस पर सोते थे। आज यह प्रथा क्वचित ही दृष्टिगोचर होती है। शहरी प्रदेशों में यह लगभग लुप्त होती प्रथा है। अतः जब मैंने कोणार्क मंदिर के समक्ष स्थित स्मारिका दुकानों में हाथों से बुनी चटाइयाँ देखीं तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ।
साड़ी प्रेमियों के लिए ओडिया साड़ियाँ
साड़ियों, विशेषतः हथकरघे में बुनी गई साड़ियों से प्रेम करने वाली स्त्रियों के लिए ओडिशा एक कलाकृति-भंडार है। यहाँ आपको साड़ियों के इतने प्रकार दृष्टिगोचर होंगे कि आपको उनमें से चुनाव करने में अवश्य ही कठिनाई होने वाली है। अन्यथा भरपूर धन लेकर ओडिशा आईए तथा हृदय प्रसन्न होने तक इन्हे क्रय करिए। तब तक आईए इन साड़ियों के विषय में मैं आपको कुछ पूर्व ज्ञान दे दूँ:
पासापल्ली साड़ियाँ
यह एक लोकप्रिय ओडिया साड़ी है। इस पर छपे श्वेत-श्याम चौकोन तथा लाल रंग की छटा इसकी पहचान है। इसी साड़ी के विविध रूप आप ओडिशा के प्रत्येक स्त्री की देह पर देखेंगे। इसी साड़ी का एक साधारण रूप भी है जिसमें केवल श्वेत-श्याम चौकोन होते हैं। उनका केवल एक ही तत्व मुझे नहीं भाया, वह है उनकी कीमत। ये साड़ियाँ मेरे अनुमान से कहीं अधिक महंगी हैं। आपको इनकी अद्वितीय सुंदरता एवं कीमत में से एक का चुनाव करना होगा।
बोमकाई साड़ियाँ
ये साड़ियाँ मूलतः ओडिशा के गंजम जिले में बनती हैं। इन्हे इनके उत्कृष्ट काठ एवं पल्लू से जाना जाता है। इन साड़ियों पर आप प्रायः मछली की आकृतियाँ देखेंगे जिन्हे यहाँ अत्यंत शुभ माना जाता है।
कोटपाड़ साड़ियाँ
हथकरघे पर बुनी गयी ये पारंपरिक साड़ियाँ वास्तव में ओडिशा के कोरापुट की आदिवासी स्त्रियों द्वारा बुनी गई हैं। इन साड़ियों का भार कुछ अधिक होता है। इनका वस्त्र खुरदुरा होता है तथा इन पर हस्तकला द्वारा निर्मित वस्तुओं जैसी अनियमितताएं होती हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक साड़ी स्वयं में अद्वितीय होती है। मैंने इस प्रकार की कुछ साड़ियाँ भुवनेश्वर के आदिवासी संग्रहालय के स्मारिका दुकान में देखी थी। वे अत्यंत मनमोहक व आकर्षक थीं किन्तु एक बार फिर मेरे अनुमान से अधिक कीमती थीं। यह आप पर निर्भर है कि आप इन साड़ियों की कीमत देखेंगे कि इनकी अद्वितीय सुंदरता।
संबलपुरी इकत साड़ियाँ
संबलपुरी इकत साड़ियों की विशेषता यह होती है कि सर्वप्रथम सूत को विभिन्न रंगों में रंगा जाता है, तत्पश्चात उन्हे बुना जाता है। आप समझ ही गए होंगे कि इस तकनीक में कितनी सटीक कौशल्य की आवश्यकता पड़ती होगी। वस्त्र के दोनों ओर नियत आकृति उभारने के लिए सोच-समझ कर सही सूत सही स्थान पर सटीकता से रखना पड़ता है। इन साड़ियों में सरल एवं जटिल दोनों प्रकार की आकृतियाँ एवं बूटे उपलब्ध हैं।
इनके अतिरिक्त हब्सापुर एवं डोंगरिया साड़ियाँ भी हैं जो इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं।
यदि आप इनमें से कुछ साड़ियाँ क्रय करना चाहते हैं तो भुवनेश्वर के ओडिशा हथकरघा स्टोर-बोयानिका अथवा बाजार की इमारत में स्थित किसी भी दुकान से ले सकते हैं। जगन्नाथ मंदिर के चारों ओर तथा पुरी के समुद्रतट के समीप स्थित अनेक दुकानें हैं जहां से आप ये साड़ियाँ ले सकते हैं।
भोजन प्रेमियों के लिए ओडिशा के प्रसिद्द स्मृतिचिन्ह
ओडिशा भोजन प्रेमियों का स्वर्ग है, विशेषतः यदि आपको मीठे व्यंजन भाते हैं। आपकी मीठी रुचि को संतुष्ट करने वाले कुछ व्यंजनों के विषय में यहाँ उल्लेख कर रही हूँ जिन्हे आप ओडिशा से अपने साथ वापिस घर ले जा सकते हैं:
रसगोल्ला – सामाजिक संचार माध्यमों में मैंने सदैव बंगाल एवं ओडिशा के निवासियों को रस भरे रसगुल्लों पर दावा ठोकते देखा है। ओडिशा में ऐसी कहावत है कि बंगाल में रसगुल्ला मानवों के लिए बनता है जबकि ओडिशा में रसगुल्ले जगन्नाथ के लिए बनाए जाते हैं, अतः ओडिशा के रसगुल्ले दिव्य हैं। सामान्य रसगुल्लों के अतिरिक्त उनके कुछ विशेष प्रकार भी यहाँ उपलब्ध हैं। एक प्रकार है गुरेर रसगुल्ला जिसमें चीनी के स्थान पर गुड़ का प्रयोग किया जाता है। एक अन्य प्रकार है भूरा रसगुल्ला जिसे मैंने भुवनेश्वर विमानतल के प्रस्थान कक्ष की दुकान में देखा था। मैंने वहीं से इन रसगुल्लों का एक डिब्बा क्रय कर लिया।
खाजा – यह एक अत्यंत लोकप्रिय सूखा मिष्टान्न है जो पुरी के मंदिरों में उपलब्ध हैं। इन्हे साथ ले जाना भी अत्यंत सुलभ है।
छतिया पेड़ा – छतिया नगरी में स्थित प्रसिद्ध कलकी मंदिर के बाहर यह पेढा मिलता है जिसे छतिया पेड़ा कहा जाता है। यह अत्यंत स्वादिष्ट होता है।
ओडिशा के स्मृतिचिन्ह – आदिवासी कलाकृतियाँ
आदिवासी आभूषण – मेरे लिए ये सर्वाधिक प्रिय स्मृतिचिन्ह हैं किन्तु इन्हे ढूँढना आसान नहीं है।
धान के कणों से बनी कलाकृतियाँ – यहाँ के कारीगर धान के कणों को आपस में जोड़कर मूर्तियाँ बनाते हैं। धान के एक एक कण को सावधानी से तथा अत्यंत कुशलता से जोड़ते हुए इन मूर्तियों को गढ़ने में कितने धैर्य की आवश्यकता होती है इसका हम अनुमान भी नहीं लगा सकते। अत्यंत भंगुर होने के कारण इन कलाकृतियों को साथ लाना आसान नहीं होता किन्तु मैं कुछ छोटे छोटे गले के लटकन लाने में सफल हुई।
डोकरा धातु कला – अन्य कई आदिवासी समुदायों के समान ओडिशा के आदिवासी समुदाय भी अपनी विशेष शैली में धातु की कलाकृतियाँ बनाते हैं।
पशुओं के सींगों से बनी कलाकृतियाँ – मृत पशुओं के सींगों को उत्कीर्णित कर के भी कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं। यद्यपि मैं इन कलाकृतियों का समर्थन नहीं करती हूँ, तथापि ऐसी अनेक कलाकृतियाँ आपको स्मारिका दुकानों में उपलब्ध हो जाएंगी।
हस्तकला, बुनाई, चित्रकारी, पाकशास्त्र जैसी अनेक कलाशैलियों के आधार पर ओडिशा भारत के सर्वाधिक धनी प्रदेशों में से एक है। आप जब भी जाएँ, यह ओडिशा के प्रसिद्द स्मृतिचिन्ह अपने साथ अवश्य लाएं।
उड़ीसा में हाथ से बनाई हुई बहुत ही खूबसूरत चीजे वहाँ के कलाकार बनाते है, वैसे सभी प्रदेशो में भी ऐसे हस्तकला में पारंगत कलाकार होते है जहाँ की बनाई हुई इन्ही वस्तुओं से उस प्रदेश का नाम रोशन होता है। पर उड़ीसा में शिला पर, नारियल के खोल पर, साड़ियों पर, चांदी से व लकड़ी से अनेकानेक निर्जीव वस्तुओं में जैसे प्राण फूंक दिये हो। वाकई काबिलेतारीफ है।????????????????????????????????????
भारत के कला की समृद्धि यहाँ दिखाई देती है।
अनुराधाजी एवं मीताजी
ओडिशा की कलाकृतियों के विषय मे आपका लेख बहुत ही सुंदर लगा.वहां की हस्तकला भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है.बहुत ही अद्भुत कलाकारी करते है वहां के लोग, जो उनकी लगन, कौशल्य और परिश्रम की पराकाष्ठा है, फिर चाहे वो पाषाण की मूर्ति हो, कोणार्क सूर्य-मंदिर के चक्र की प्रतिकृति हो या फिर काष्ठ की जगन्नाथ प्रतिमा. वहां का कला -कौशल्य अद्भुत है जिसे आपने अपनी लेखनी से और भी सुशोभित किया है.
नारियल के खोल पर की चित्रकारी, सुपारी पर की गई कलाकृति या फिर ताड- पत्र पर की गई कारीगरी सभी उत्कृष्टता का सुंदर नमूना है.कपडे पर की पिपली गांव की कलात्मकता आकर्षक और लुभावनी है. महीन फिलग्री कारीगरी से बने चांदी के आभुषण और अन्य वस्तुऐं महंगी होने के बावजूद खरीदने के लिये प्रेरित करती है.
सुंदर आलेख और प्रस्तुति के लिये धन्यवाद.
धन्यवाद चंद्रहास जी