ओंकारेश्वर, नर्मदा नदी में स्थित एक अद्वितीय द्वीप! ४कि.मी. लंबा व २कि.मी. चौड़ा यह द्वीप, चारों ओर नर्मदा नदी से घिरा छोटा पहाड़ दिखाई पड़ता है। आकाश से यदि इसे देखा जाये तो यह ॐ चिन्ह के सामान प्रतीत होता है। इसे ओंकारेश्वर कहे जाने के पीछे के कई कारणों में से एक कारण यह भी है। ॐ को एक आदियुगीन मौलिक ध्वनि माना जाता है जिससे सबकी उत्पत्ति हुई है।
तो आईये चलते हैं भारत के सर्वाधिक पवित्र क्षेत्रों में से एक, ओंकारेश्वर, जिसे १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग धारण करने का मान प्राप्त है।
ओंकारेश्वर द्वीप
ऐसा माना जाता है कि सतयुग में जब श्री राम के पूर्वज, इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धता, नर्मदा स्थित ओंकारेश्वर पर राज करते थे, तब ओंकारेश्वर की चमक अत्यंत तेज थी। इसकी चमक से आश्चर्य चकित होकर नारद ऋषि भगवान् शिव के पास पहुंचे तथा उनसे इसका कारण पूछा। भगवान् शिव ने कहा कि प्रत्येक युग में इस द्वीप का रूप परिवर्तित होगा। सतयुग में यह एक विशाल चमचमाती मणि, त्रेता युग में स्वर्ण का पहाड़, द्वापर युग में तांबे तथा कलयुग में पत्थर होगा। पत्थर का पहाड़, यह है हमारे कलयुग का ओंकारेश्वर।
ओंकारेश्वर एक जागृत द्वीप है। इस द्वीप के वसाहत का भाग शिवपुरी कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि किसी काल में यहाँ ब्रम्हपुरी नगरी एवं विष्णुपुरी नगरी भी हुआ करती थीं। तीनों मिलकर त्रिपुरी कहलाते थे।
ओंकारेश्वर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग अवश्य है। तथापि ओंकारेश्वर में केवल यही नहीं है। हमारे देश में कोई भी महत्वपूर्ण मंदिर अकेले नहीं होता, बल्कि उसके साथ कई छोटे-बड़े मंदिर एवं परिक्रमा पथ भी होते हैं। आईये हम एक साथ इस प्राचीन व पवित्र द्वीप के पवित्र इतिहास व भूगोल का समीप से अनुभव करते हैं।
ओंकारेश्वर का इतिहास
शास्त्रों के अनुसार कम से कम ५५०० वर्षों से ओंकारेश्वर अनवरत बसा हुआ है। पुराणों में किये गए उल्लेख से यह पता चलता है कि ओंकारेश्वर कई कालों से एक जाना माना तीर्थ स्थल है।
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार १०-१३ वी. शताब्दी में ओंकारेश्वर पर परमार शासकों का राज था जिसके पश्चात चौहान राजपूत शासकों ने यहाँ राज किया था। यहाँ तक कि मुगलों के सम्पूर्ण शासन की अवधि में भी ओंकारेश्वर का शासन प्रबंध चौहान वंश के हाथों में था। १८ वीं. शताब्दी में मराठाओं ने इस पर अधिपत्य किया। इसी काल में यहाँ कई नवीन मंदिर बने तथा कई प्राचीन मंदिरों का पुनरुद्धार हुआ। अंततः अंग्रेजों ने इस पर अधिपत्य जमाया। १९४७ में देश के अन्य भागों का साथ ओंकारेश्वर भी स्वतन्त्र हुआ।
ओंकारेश्वर मंदिर
ओंकारेश्वर महादेव मंदिर नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। आप वहां या तो नाव से जा सकते है अथवा ममलेश्वर सेतु पार कर भी पहुँच सकते हैं। दोनों का अपना आनंद है। अतः बेहतर होगा यदि आप एक ओर नाव से तथा दूसरी ओर सेतु पर चलते हुए, विहंगम दृश्यों का आनद उठाते हुए, आ सकते हैं। नर्मदा के उस पार, घाट से आरम्भ होती सीड़ियाँ ऊपर मंदिर तक पहुंचती हैं। राह में दोनों ओर फूल बेचते विक्रेताओं के सामने से होते हुए आप मंदिर के आधार तक पहुंचेंगे।
मंदिर का मंडप अत्यंत मनोहारी है। ६० ठोस पत्थर के स्तंभों पर यक्षी आकृतियों उकेरी गयी हैं। मंदिर के चारों ओर भित्तियों पर देवी-देवताओं के चित्रों की नक्काशी की गयी है।
ओंकारेश्वर मंदिर की एक अनोखी बात यह है कि इसमें मुख्य शिवलिंग शिखर के नीचे नहीं है, अपितु एक ओर स्थित है। मैंने अनुमान लगाया कि हो सकता है मंदिर का निर्माण बाद में किया गया हो तथा पहाड़ी की ढलान के कारण शिखर को शिवलिंग के ऊपर निर्मित करना संभव नहीं हो पाया होगा। मेरी समझ में अन्य कोई कारण नहीं आ पाया। यदि आप जानते हों तो मुझे अवश्य बताइये।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
ओंकारेश्वर शिवलिंग एक पत्थर के रूप में है जिसके ऊपर निरंतर जल अर्पित होता रहता है। दिन में तीन बार दूध, दही तथा नर्मदा के जल से इसका अभिषेक होता है। शिवलिंग के पृष्टभाग भाग में एक आले पर पार्वती की चांदी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में प्रातःकालीन पूजा मंदिर के न्यास द्वारा, दिन की पूजा सिंधिया घराने द्वारा तथा संध्याकालीन पूजा होलकर घराने द्वारा की जाती है। यहाँ की शयन आरती अत्यंत प्रसिद्ध है। शिवलिंग के सम्मुख शिव व पार्वती के लिए एक बिछौना लगाया जाता है। शयन पूर्व आमोद हेतु चौपड़ का खेल मड़ा जाता है। भक्तगण यह आरती प्रत्येक रात्री ८:३० बजे देख सकते हैं। आप भी इसका आनंद लेना चाहें तो समय का ध्यान रखें।
ऐसी मान्यता है कि इक्ष्वाकु राजा मान्धाता की भक्ति शिवलिंग को यहाँ खींच लायी थी। इसलिए मंदिर को ओंकार मान्धाता मंदिर भी कहा जाता है। इक्ष्वाकु राजा मान्धाता की गद्दी अब भी मंदिर परिसर में देखी जा सकती है। मुख्य मंदिर को चारों ओर से घेरे कई छोटे मंदिर हैं जैसे पंच मुखी हनुमान मंदिर, एक शनि मंदिर एवं द्वारकाधीश को समर्पित एक मंदिर।
मान्धाता महल
मंदिर के पीछे बनी सीड़ियों से पहाड़ी की ओर जाने पर समक्ष एक श्वेत ऊंची भित्त दिखायी पड़ती है। यह ओंकारेश्वर के मान्धाता महल की भित्त है। ८० सीड़ियाँ पार कर आप इस महल के प्रवेशद्वार तक पहुँच सकते हैं। इस महल का एक भाग आम जनता हेतु खुला है।
भीतर प्रवेश करते ही आप किसी भी उत्तर भारतीय हवेली के समान, यहाँ भी स्तंभों से घिरा एक खुला प्रांगण देखेंगे। इसके एक ओर सादा, फिर भी चटक रंगों में रंगा दरबार है। इसकी छत पर सुन्दर गोल आकृति उकेरी है जिसकी नक्काशी पर आप बचे-खुचे कांच देख सकते हैं। इस दरबार का श्रेष्ठ आकर्षण है, इसके झरोखों से बाहर का दृश्य। यहाँ से बाहर का दृश्य अत्यंत आकर्षक है। यहाँ से आप ओंकारेश्वर मंदिर को ऊँचाई से देख सकते हैं। वास्तव में यहीं से देखने के पश्चात मुझे मंदिर की विशालता का अहसास हुआ।
स्वयं बनी हुई गहरी घाटियों से कलकल बहती नर्मदा नदी, इसके दो तटों के बीच तैरते कई रंगबिरंगी नौकायें, भक्तगणों की आवाजाई, यह सब देख आपको अत्यधिक आनंद आयेगा।
यह महल होलकर घराने की संपत्ति है।
ओंकारेश्वर परिक्रमा
ओंकारेश्वर द्वीप के चारों ओर १६कि.मी. लंबा परिक्रमा पथ है। परिक्रमा पथ हमारे देश के अधिकतर मंदिरों का अभिन्न अंग है। परिक्रमा पथ कभी गर्भगृह की होती है तो कभी सम्पूर्ण पवित्र क्षेत्र की। अधिकांशतः कई छोटे-बड़े मंदिर व आश्रम तथा कई बार कुछ गाँव भी पवित्र क्षेत्र का भाग होते हैं। भक्तगण मंदिर आकर केवल भगवान् के दर्शन ही नहीं करते, अपितु मंदिर की परिक्रमा भी करते हैं।
मैं तो यह परिक्रमा नहीं कर पायी, किन्तु मैंने सुना कि यह परिक्रमा कठिन नहीं है। हालाँकि कुछ स्थानों पर पथ उतार-चढ़ाव लिए हुए भी है। यह परिक्रमा पथ कई मंदिरों एवं आश्रमों से होकर जाती है जैसे, खेड़ापति हनुमान मंदिर, ओंकारनाथ आश्रम, केदारेश्वर मंदिर, रामकृष्ण मिशन आश्रम, मारकंड आश्रम जिसमें कृष्ण की १२ मीटर ऊंची प्रतिमा है, नर्मदा-कावेरी संगम जहां कुबेर तपस्या कर यक्षों का राजा बना था, ऋण मुक्तेश्वर मंदिर, धर्मराज द्वार, गौरी सोमनाथ मंदिर, पाताली हनुमान मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर एवं शिव की एक विशाल प्रतिमा।
जैसा कि मैंने पहले कहा है कि ओंकारेश्वर मंदिर चारों ओर से नर्मदा से घिरा द्वीप है। तो परिक्रमा का एक और विकल्प भी है। जी हां! सही पहचाना आपने। आप इस पवित्र क्षेत्र की परिक्रमा नौका द्वारा भी कर सकते हैं। आवश्यकता यह है की नर्मदा में भरपूर जल होना चाहिये ताकि नौका चारों ओर जा सके।
ममलेश्वर मंदिर
ममलेश्वर मंदिर या अमलेश्वर मंदिर अथवा अमरेश्वर मंदिर, ओंकारेश्वर के ज्योतिर्लिंग का आधा भाग है। यह मंदिर नर्मदा के दक्षिण तट पर, गोमती घाट के समीप, मुख्य भूमि पर स्थापित है। कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन बिना ओंकारेश्वर की तीर्थ यात्रा सम्पूर्ण नहीं होती।
ममलेश्वर मंदिर एक भित्तियों से घिरे परिसर के भीतर निर्मित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसकी देखरेख एवं मरम्मत करता है। इस परिसर में ७ विभिन्न मंदिर हैं। मंदिर वास्तुकला के अनुसार ममलेश्वर मंदिर परिसर में प्राचीन वास्तुशिल्प का आभास होता है। जब आप इस मंदिर परिसर के चारों ओर भ्रमण करेंगे, तराशी हुई विशाल पाषाणी भित्तियों से घिरे आप स्वयं को कई काल पीछे अनुभव करेंगे। मुख्य मंदिर के बाहर नंदी मंडप देखने लायक है।
ममलेश्वर मंदिर में एक अनोखी प्रथा है, लिंगार्चना। इसमें प्रतिदिन हजार बाणलिंगों की आराधना की जाती है जो मुख्य शिवलिंग के चारों ओर संकेंद्रित वृत्तों में रखी हुई हैं। मुझे इस आराधना के दर्शन का सौभाग्य यहाँ तो प्राप्त नहीं हो सका, पर महेश्वर में मुझे इस आराधना के दर्शनों का सुख अवश्य प्राप्त हुआ।
इन मंदिरों के अतिरिक्त काशी विश्वनाथ एवं एक विष्णु मंदिर भी है जहां भक्तगण दर्शन के लिये आते हैं।
ओंकारेश्वर में नर्मदा
नर्मदा की आराधना किये बिना ओंकारेश्वर के दर्शन संभव नहीं। नर्मदा नदी मान्धाता पहाड़ी के चारों ओर तो बहती ही है जिसके ऊपर मुख्य ओंकारेश्वर मंदिर निर्मित है, यह यहाँ के दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिरों, ममलेश्वर तथा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के मध्य से भी होकर बहती है।
ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी ने अपने बहाव द्वारा एक गहरी घाटी खोद दी है। सदियों से बहती नर्मदा ने इन ऊंची ऊंची चट्टानों को किस प्रकार काट रखा है, यह आप दोनों तटों को जोड़ती सेतु के ऊपर चलते हुए देख सकते हैं। किसी संकल्प पर अनवरत डटे रहना, यह कितना फलदायी हो सकता है, इसका आभास यहाँ नर्मदा को देखकर होता है जिसने सतत प्रयास करते हुए पहाड़ी को काटकर अपने लिए राह बनायी है। यदि आप गूगल के मानचित्र को देखें तो पता चलता है कि नर्मदा के जल ने पहाड़ी के दोनों ओर से राह बनायी है जिसके कारण इस पहाड़ी ने एक नन्हे द्वीप का रूप ले लिया है।
ओंकारेश्वर में नर्मदा के घाटों का अपना ही एक जीवन है। चारों ओर रंगबिरंगी नौकायें दिखाई पड़ती हैं जिनमें कुछ, लोगों को एक छोर से दूसरे छोर तक ले जाती हैं तो कुछ, लोगों को द्वीप के चारों ओर घुमाती हैं।
आप सब जानते हैं कि नर्मदा अमरकंटक से निकलकर ओंकारेश्वर होते हुए भरूच के निकट अरब महासागर में मिल जाती है। नर्मदा की इस यात्रा के बीचोबीच स्थित ओंकारेश्वर को नर्मदा का नाभि स्थल भी कहा जाता है। इसीलिए नर्मदा परिक्रमा आरम्भ करने के लिए यह सर्वथा उपयुक्त स्थान है। जो यात्री इस परिक्रमा को ओंकारेश्वर के बजाय अमरकंटक से आरम्भ करते हैं, उनके लिए भी ओंकारेश्वर एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
आदि शंकराचार्य एवं ओंकारेश्वर
केरल में जन्मे आदि शंकराचार्य ने अपने ३२ वर्ष के लघु जीवनकाल में ना केवल सम्पूर्ण भारत की यात्रा की बल्कि भारत के ४ कोनों में ४ मठों की भी स्थापना की। इससे भारत के चारों दिशाओं में दार्शनिक चिंतन आरम्भ हो सका। आदि शंकराचार्य जब पहली बार अपने गृहनगर कलडी से बाहर यात्रा पर निकले थे, तब वे अपने गुरु, गोविन्द भगवत्पाद से शिक्षा प्राप्त करने ओंकारेश्वर ही पहुंचे थे। ओंकारेश्वर में ही शंकराचार्य ने वेदान्त में महारथ प्राप्त की थी। जनमानस को आसान शब्दों में वेदान्त समझाने के लिए उस पर टिप्पणियाँ लिखी थीं। ओंकारेश्वर मन्दिर के नीचे एक गुफा में उन्होंने माँ काली का ध्यान कर, तपस्या भी की थी।
गोविन्देश्वर गुफा, जहां उन्होंने तपस्या की थी, अब भी यहाँ है। भीतर प्रवेश करने के लिए इस गुफा में दो मुख हैं। गुफा के भीतर, बीचों बीच आदि शंकराचार्यजी की एक प्रतिमा स्थापित है। यहाँ निर्मित स्तंभों व पत्थरों पर की गयी नक्काशी देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे कालान्तर में इस गुफा को मंदिर में परिवर्तित कर दिया था। कब? कोई नहीं जानता। गुफा के दाहिनी ओर कुछ सीड़ियाँ हैं जो एक अलंकृत द्वार के भीतर ले जातीं हैं। वहां एक छोटा कक्ष है। मैं सोचने लगी, कदाचित यहीं आदि शंकराचार्य कभी निवास करते थे। गुफा के दूसरी ओर अत्यंत संकरी सीड़ियाँ हैं जो कदाचित ऊपर स्थित मंदिर के भीतर ले जातीं हैं।
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इस गुफा के भीतर बैठ कर ललिता सहस्त्रनाम जपने की मेरी अभिलाषा इस यात्रा में पूर्ण हुई। मुझे गुफा में कुल ४५ मिनट अकेले बैठने का अवसर मिला। कभी आदि शंकराचार्यजी ने जिस प्रकार यहाँ देवी से संवाद साधा था, मैंने भी देवी से संपर्क करने की चेष्टा की।
ओंकारेश्वर यात्रा के लिए कुछ सुझाव
- ओंकारेश्वर इंदौर से केवल ७०कि.मी. दूर है। अतः इंदौर से दिन में ही ओंकारेश्वर के दर्शन कर वापिस लौटा जा सकता है। परन्तु, यदि आप शयन आरती एवं प्रातःकाल की भक्ति का आनंद उठाना चाहते हैं तो ओंकारेश्वर में एक रात्री बितानी होगी। और यदि ओंकारेश्वर परिक्रमा करना चाहते हों तो मेरा सुझाव है कि आपको दो रात्री रहने का विचार करना चाहिए। हालांकि समय की पाबंदी हो तो एक रात्री के निवास में भी परिक्रमा पूर्ण की जा सकती है।
- ओंकारेश्वर, इस प्राचीन तीर्थस्थल में हर प्रकार की निवास सुविधाएं उपलब्ध हैं। आप नाममात्र के शुल्क पर धर्मशाला में भी रह सकते हैं। ओंकारेश्वर में भोजन के भी भरपूर विकल्प हैं। मैं मध्य प्रदेश पर्यटन के नर्मदा रेसॉर्ट में ठहरी थी। यहाँ से ओंकारेश्वर मंदिर एवं नर्मदा नदी का अद्वितीय दृश्य दिखाई देता है।
- ओंकारेश्वर मंदिर के भीतर छायाचित्रकारी निषिद्ध है। बाकी स्थानों पर छायाचित्रकारी कर सकते हैं।
- ओंकारेश्वर एक पवित्र स्थल है। अतः अनुकूल पोशाक एवं व्यवहार रखें।
अनुराधा जी,
श्री औंकारेश्वर तीर्थ का बारीकी से किया गया अप्रतिम वर्णन ! समय समय पर तीर्थ-दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता रहा किन्तु इस तीर्थ स्थल की इतनी विस्तृत जानकारी नहीं थी । यहाॅं पहूंचने पर विश्वास नहीं होता कि यह छोटा सा द्विप लगभग चार कि.मी. लम्बा और दो कि.मी. चौडा होगा ! यह भी कम आश्चर्य जनक नहीं कि चारों ओर मुगल साम्राज्य होने के बावजूद भी यहाॅं का शासन चौहानों के ही अधीन था । प्रतिदिन तीन बार होने वाली पूजा के बारें मे भी नई जानकारी प्राप्त हुई ।पवित्र नर्मदा नदी से घिरा हुआ यह तीर्थ, बहुत ही कठीन “नर्मदा परिक्रमा” करने वाले भक्तों के लिये एक महत्वपूर्ण स्थान हैं । प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग होने के साथ ही आदि शंकराचार्य की तपस्या स्थली भी होने से इस तीर्थ की महत्ता और भी बढ़ जाती हैं ।शिवलिंग पर दूध,दही से सतत् अभिषेक होने से शिवलिंग के क्षरण होने की संभावनाए अत्यधिक बढ़ जाती है , स्थानीय प्रबंधन तथा भक्तों द्वारा इस पर ध्यान देना अत्यावश्यक है ।
सुंदर पठनीय जानकारी हेतू साधुवाद !
प्रोतसाहन के लिए धन्यवाद प्रदीप जी.
Excellent,
I have visited Omkareshwar long before may be before 40 years. When I was at Indore
There is another place near Omkareshwar
Khadi ghat where Sham baba who was sent to khed ghat bye Saibaba .
प्रदीप जी – अगली बार खाड़ी घाट एवं शाम बाबा अवश्य देखूंगी.
मधुमिताजी/अनुराधाजी
ओंकारेश्वर वाकई बहुत ही सुंदर दर्शनीय स्थल है। मैं इंदौर का होकर भी करीब 35 साल पहले स्कूटर से दोस्तो के साथ गया था बाद में भी काफी इच्छा रही कि ओंकारेश्वर फिर से दर्शन करने जाएं लेकिन नही जा पाया अब आपके द्वारा यहाँ का इतना अच्छा चित्रण एक चलचित्र की भांति किया गया है वैसे भी भारत मे धार्मिक नगरी का भृमण करना अपने आप मे एक सुखद और आत्मसंतुष्टि का अनुभव कराता है, आपके इस सुंदर यात्रा वृतान्त के लिए साधुवाद
धन्यवाद संजय जी, बाबा ओम्कारेश्वर और माँ नर्मदा आपको शीघ्र ही दर्शन दें।
I think you are also fan of God .I like your every post.Very deep description. Thanks for the nice post.
प्रणिता – मैं साधक हूँ, इश्वर के माध्यम से द्वयं को जानने के पथ पर। आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद, हमारा लेख आपको पसंद आया, इसके लिए धन्यवाद।
अनुराधा जी आपने बहुत ही सुंदर तरीके से ॐ कारेश्वर महादेव जी के मन्दिर में बारे में वर्णन किया हा जो की बहुत ही सराहनीय कार्य है इसी तरह भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाते रहिये . बेस्ट ऑफ़ लक
धन्यवाद राकेश जी। यूँ ही हमसे जुड़े रहिये और हमें प्रोत्साहित करते रहिये।
Anuradha Goyal mam, apka bhagwan ke uper jo lagan aur bharosha hai ye apke post me puri tarah dikh jati hai. aap aise hi kaam karte rahiye jisse hum bhartiyo humari culture ke baare me pta chalt rahe
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