पंचक्रोशी यात्रा – काशी खंड का प्राचीन तीर्थ मार्ग

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चार साल पहले वाराणसी के दौरे के समय मुझे पहले-पहल पंचक्रोशी यात्रा के बारे में पता चला। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के भारत कला भवन की दीवारों पे मैंने एक अनुपम नक्शा देखा था। इसके एक साल पहले ही मैंने मथुरा-वृन्दावन क्षेत्र में ब्रज की 84 कोस यात्रा पूरी की थी। पंचक्रोशी तीर्थ यात्रा के प्राचीन मार्ग के बारे में जानने के लिए मैं बहुत उत्सुक थी। इन्टरनेट या लोगों से मुझे, इस यात्रा से संबंधित बहुत जानकारी तो नहीं मिली, सिवाय इसके कि यह यात्रा शिवरात्री के दिन पैदल की जाती है। मैं पंचक्रोशी यात्रा पर जाने का मन बनाकर वाराणसी से वापस लौटी।

कशी के घाट - पंचक्रोशी यात्रा
कशी के घाट

मुझे प्रसन्नता है कि मैं यह यात्रा इस वर्ष संपन्न कर सकी। इसके लिए मैंने बहुत शोधकार्य किए और आस-पास से बहुत सारी जानकारी भी प्राप्त करने की कोशिश की थी, जो आखिर सफल हो ही गयी। पंचक्रोशी यात्रा संपन्न करना एक स्वप्न संपन्न होने जैसा है. इस यात्रा के सन्दर्भ में मिली जानकारी आपके साथ साँझा कर रही हूँ।

पंचक्रोशी यात्रा कब करनी चाहिए?

लक्ष्मी नारायण मंदिर - पंचक्रोशी यात्रा यात्रा पथ पे
लक्ष्मी नारायण मंदिर – पंचक्रोशी यात्रा पथ पे

पंचक्रोशी यात्रा अधिकतर शिवरात्री के दिन की जाती है. पूरी यात्रा के दौरान आपको अधिकतर शिवमंदिरों के ही दर्शन होते हैं। यात्री इस यात्रा का प्रारंभ या तो मणिकर्णिका कुंड से संध्या के समय करते हैं, या फिर अस्सी घाट से मध्यरात्री के आस-पास यात्रा का प्रारंभ करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी चलने की क्षमता के अनुसार यह यात्रा 1, 3 या 5 दिनों में पूरी करता है।

यह यात्रा पुरुषोत्तम मास में भी की जा सकती है। जिसे हिन्दू तिथिपत्र या पंचांग के अनुसार मलमास या अधिक मास भी कहा जाता है, जो हर 2-3 सालों में आता है। मेरा तर्क कहता है, क्योंकि, यह अधिक मास है तो इस यात्रा के लिए यह शुभ काल भी हो सकता है।

हिन्दू तिथिपत्र के फालगुन, वैशाख और चैत्र महीनों में भी यह यात्रा की जा सकती है।

मेरा मानना है कि, अगर आप स्वयं तैयार है तो आप कोई भी तीर्थ यात्रा कभी भी कर सकते हैं।

पंचक्रोशी यात्रा पर जाने का मार्ग

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पंचक्रोशी यात्रा का आरंभ मणिकर्णिका कुंड से होता है। यह एक छोटा सा जलाशय है जो प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट के पास स्थित है। कहा जाता है कि यह कुंड वाराणसी में बहनेवाली गंगा से भी प्राचीन है। उपाख्यानों ने इस कुंड को शिव, शक्ति और विष्णु से जोड़ते हुए हिन्दू धर्म के तीनों संप्रदायों के लिए इसे महत्वपूर्ण बताया गया है। भक्त इस कुंड में डुबकी लगाकर अपनी अंजुली में पानी लेकर यात्रा करने का संकल्प करते हैं। यह एक प्रकार से यात्रा पूरी करने का वचन है। अगर आप के मन कोई इच्छा हो तो उसकी पूर्णता की कामना करने का यही अच्छा समय है। और आपकी इच्छा पूर्ण होने के बाद आपको फिर से यहां पर माथा टेकने आना होता है।

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मणिकर्णिका कुंद में संकल्प ले भक्तगण नाव से अस्सी घाट की ओर बढ़ते हैं, जो वाराणसी में गंगा के दक्षिणी क्षेत्र की ओर स्थित है। यहीं से यात्रा का वास्तविक आरंभ होता है। इसके बाद आपको रास्ते में 5 पड़ावों से गुजरते हुए जाना है, जो 50 मील या करीब-करीब 80 की.मी. के मार्ग पर स्थित है। पंचक्रोशी यात्रा का यह मार्ग, तीर्थ यात्रा का बहुत ही प्राचीन मार्ग है। इस मार्ग पर आपको अनेकों सूचना पट्ट दिखेंगे जो इस पूरी यात्रा में आपका मार्गदर्शन करेंगे और आपको इन पड़ावों के बारे में सूचित भी करेंगे।

प्रत्येक पड़ाव के बीच की दूरी

मणिकर्णिका से कर्दमेश्वर – 3 कोस
कर्दमेश्वर से भीम चंडी – 5 कोस यानि कुल 8 कोस
भीम चंडी से रामेश्वर – 7 कोस यानि कुल 15 कोस
रामेश्वर से शिवपुर – 4 कोस यानि कुल 19 कोस
शिवपुर से कपिलधारा – 3 कोस यानि कुल 22 कोस
कपिलधारा से मणिकर्णिका – 3 कोस यानि कुल 25 कोस

1 कोस = 3.2 की.मी.

इस यात्रा के दौरान आपको अपने दाहिने और बहुत सारे छोटे-छोटे मंदिर दिखाई d, जिनमें से अधिकतर लाल रंग के हैं। ये मंदिर जो विभिन्न रंगों और आकारों के हैं, समय के अलग-अलग मोड पर सुधारणिकरण और सुशोभिकरण से गुजर चुके हैं। रास्ते में मिलने वाले सूचना पट्टों को गौर से पढ़ने पर आपको इन मंदिरों के नाम और उनके क्रमांक का उल्लेख मिलेगा।

पंचक्रोशी यात्रा के 5 पड़ाव

पंचक्रोशी यात्रा पथ के सूचना चिन्ह
यात्रा पथ के सूचना चिन्ह

ये 5 पड़ाव असल में 5 मंदिर हैं, जो इस यात्रा के महत्वपूर्ण स्थल हैं। यहां पर धर्मशालाओं की भी व्यवस्था है, जहां पर यात्री विश्राम करने के लिए ठहर सकते हैं। ये धर्मशालाएँ लगभग 25,000 लोगों को अपनी छत्रछाया प्रदान करने में सक्षम है। ये स्थान तीर्थ यात्रियों के लिए मुफ्त में उपलब्ध है। आपको सिर्फ अपने खाने का बंदोबस्त करना पड़ता है। पारंपारिक रूप से भारत में होटल या रेस्टोरांत की कोई धारणा नहीं थी इसलिए यात्री अपना खाना खुद बनाकर खाते थे। मेरी दादी से मैंने सुना है कि जब वे ऐसी यात्राओं पे जाते थे तो अपनी जरूरत की सारी चीजें साथ ले जाते थे और जब रात में विश्राम करने के लिए रुकते थे तब अपना खाना खुद पकाकर खाते थे।

नियमित अंतराल पर स्थित ये 5 पड़ाव यात्रियों को ठहरने, विश्राम करने और भगवान की आराधना करने के लिए ही बनाया गया होगा। इन पाँचों मंदिरों के पास एक बड़ा सा जलकुंड है, जो बड़ी संख्या में दर्शन के लिए आए श्रद्धालुओं की आवश्यकताओं का भार उठा सकते हैं।

इन पांचों पड़ावों पर अर्पित करने के लिए तीर्थ यात्री अपने साथ पान-सुपारी ले जाते हैं।

राह में मिलने वाले प्रत्येक मंदिर में अक्षत या भगवान को चढ़ाने योग्य कच्चे चावल अर्पित किए जाते हैं।
पंचक्रोशी यात्रा के मार्ग पर मिलने वाले प्रत्येक मंदिर को क्रमांकित किया गया है, जिसके आधार पर आप आसानी से आगे बढ़ सकते हैं।

पंचक्रोशी यात्रा या परिक्रमा से संबंधित कहानियाँ

मणिकर्णिका कुण्ड - पंचक्रोशी यात्रा
मणिकर्णिका कुण्ड

कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम ने अपने तीनों भाइयों और पत्नी सीता के साथ पंचक्रोशी यात्रा की थी। इनके द्वारा स्थापित किए गए शिवलिंग रामेश्वर मंदिर में पाये जाते हैं। भगवान राम ने यह यात्रा अपने पिताजी दशरथ को श्रवण कुमार के मता-पिता के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए की थी।

द्वापर युग में पांडवों ने यह यात्रा द्रौपदी के साथ की थी। इनके द्वारा स्थापित किए गए शिवलिंग शिवपुरी के पांडव मंदिर में पाये जाते हैं। इस मंदिर के पास में ही एक जलकुंड है, जिसे द्रौपदी कुंड के नाम से जाना जाता है। पांडवों ने यह यात्रा अपने निर्वासन काल या अज्ञात वास के दौरान की थी।

अस्सी घाट के पास स्थित लोलार्क कुण्ड - पंचक्रोशी यात्रा
अस्सी घाट के पास स्थित लोलार्क कुण्ड

पंचक्रोशी यात्रा दक्षिणावर्त तरीके से परिक्रमा के रूप में की जाती है। यह परिक्रमा करते समय आपको सारे मंदिर आपके दाहिने तरफ और सारी धर्मशालाएं आपके बाईं तरफ ही मिलेंगी। इस यात्रा के मार्ग से सीमित क्षेत्र पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत शौचालयों पर पाबंदी है। लेकिन यहां पर रहने वाले लोगों के अपने घरों में शौचालय जरूर हैं।

गेंदे के फूलों के खेत
गेंदे के फूलों के खेत

भीम चंडी मंदिर के एक पुजारी ने हमे बताया कि काशी खंड, यानि यात्रा के मार्ग से सीमित क्षेत्र में विभिन्न हिन्दू देवी-देवताओं की 3,65,000 से अधिक मूर्तियाँ थी। इन में से कुछ मूर्तियाँ दिखाई देती हैं, तो कुछ अदृश्य सी रूप में हैं। पहले तो मैं इस संख्या को मानने के लिए तैयार नहीं थी, पर यात्रा पूरी करने के बाद मेरे पास इस संख्या पर शंका करने का कोई भी कारण नहीं बचा। गाड़ी से की गयी एक दिन की इस लंबी यात्रा के दौरान मैंने पूरे रास्ते में हजारों लिंग देखे जो मूर्तियों की संख्या से समान थे।

मेरी पंचक्रोशी यात्रा

अस्सी घाट - काशी, पंचक्रोशी यात्रा
अस्सी घाट – काशी

मणिकर्णिका घाट तक जाने वाली पतली गलियों से निकलते हुए में मणिकर्णिका घाट पहुंची। कुंड का पानी सूखा होने के कारण मैंने मौन प्रार्थना की और अस्सी घाट पर जाने के लिए वापस अपनी गाड़ी की ओर लौटी।

अस्सी घाट पर जाने से पहले मैं लोलार्क कुंद पर थोडा ठहरी, जो सूर्य कुंड के नाम से भी जाना जाता है। संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ति के लिए इस कुंड की बहुत मान्यता है और इसी कारण वह प्रसिद्ध भी है।

घाट पर मैंने चहल कदमी करते हुए थोडा समय व्यतीत किया। डॉ. काशीनाथ सिंह की पुस्तक ‘काशी का अस्सी’ में चित्रित काशी काशी का पूरा दृश्य मेरे सामने जीवंत हो उठा। सुबह की आरती के लिए खास बनाया गया नया मंच भी मैंने देखा। मुझे लगा जैसे यह घाट विदेशियों और पर्यटकों के लिए ही बनाया गया है। सही मायनों में पंचक्रोशी यात्रा का आरंभ यहीं से होता है।

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अस्सी घाट से हमने अपने पहले पड़ाव की ओर जाना शुरू किया। रास्ते में मैंने पहली बार अस्सी नदी देखी। हाँ, यह नदी छोटी जरूर है पर यह नाला नहीं है, जैसा कि अक्सर सुनने में आता है।

वाराणसी शहर की सीमाओं को पार करते ही गाँव और खेतों के बीच में पाया। यहाँ वहां मिटटी के छोटे बड़े हर थे। यहां पर व्यवसायिकरण ने अभी तक दस्तक नहीं दी थी। इन नज़ारों को देखकर मुझे लगा कि मैं पहली बार काशी आयी हूँ।

कर्दमेश्वर मंदिर पड़ाव

कर्दमेश्वर शिव मंदिर, पंचक्रोशी यात्रा
कर्दमेश्वर शिव मंदिर

हमारे गाइड ने ड्राईवर को अचानक से गाड़ी रोकने के लिए कहा। यह देखकर मैंने प्रश्न भरी दृष्टि से उनकी ओर देखा। उन्होंने एक छोटे पर सुंदर से मंदिर की ओर इशारा करा हुए बताया कि यही कर्दमेश्वर मंदिर है।हम गाड़ी से उतरकर मंदिर की ओर बढ़े। वहां पहुँचते ही एक बहुत बड़ा जलकुंड दृष्टिगोचर हुआ, जिसमें कई युवक डुबकियाँ लगा रहे थे और बच्चे तैर रहे थे। कुंड के उस पार हमने कुछ पक्की इमारतें देखी। पूछ-ताछ करने पा पता चला कि ये तीर्थ यात्रियों को ठहरे के लिए धर्मशालाएँ हैं।

कर्दमेश्वर प्रवेश द्वार एवं शिवलिंग
कर्दमेश्वर प्रवेश द्वार एवं शिवलिंग

मैंने इस छोटे लेकिन ऊंचे से मंदिर में प्रवेश किया जो 10-11 वी सदी में बनवाया गया था। ये वाराणसी के उस काल के मंदिरों में से एक है जिनमें से कुछ आज तक बचे हुए हैं। बाकी के बचे अधिकतर मंदिर अपने मूल स्वरूप का आधुनिक परिवर्तित रूप है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार अनेकों घंटियों से घिरा हुआ है। शिवलिंग को प्रणाम करने के बाद मैंने वहां के पुजारी से कुछ बातें की । उन्होंने मुझे कर्दमेश्वर मंदिर से जुड़े उपाख्यान के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि इस मंदिर के शिवलिंग की स्थापना ऋषि कर्दम ने की थी। इस मंदिर के पास स्थित जलकुंड को बिन्दु सरोवर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की यह सरोवर स्वयं शिवजी के आंसू से निर्मित हुआ है।

कर्दमेश्वर मंदिर का पृष्ठ भाग
कर्दमेश्वर मंदिर का पृष्ठ भाग

पंचक्रोशी यात्रा में कर्दमेश्वर मंदिर का क्रमांक 33वा है। मैंने पहली बार इस क्रमांक पर गौर किया। यानि इस मार्ग के पहले 32 मंदिर हमसे छूट गए। उसी समय मैंने ठान लिया कि अगली बार मैं 0 या 1 से ही शुरू करते हुए आगे बढूंगी। तब तक मैं पंचक्रोशी से संबंधित पुस्तकें पढ़ रही हूँ ताकि इन मंदिरों की और जानकारी प्राप्त कर सकू।

मंदिर के आस-पास की संरचनाओं पर सफ़ेद संगमरमर के सूचकों पर काली स्याही से रुद्रष्टकम और शिव तांडव स्त्रोत लिखे हुए हैं। यह जगह कंडवा नाम से भी प्रसिद्ध है। यह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्यादा दूर नहीं है।

भीम चंडी मंदिर पड़ाव

चंदिकेश्वर महादेव मंदिर - काशी
चंदिकेश्वर महादेव मंदिर – काशी

भीम चंडी के मंदिर जाते समय हम रास्ते में गेंदे के फूलों के बागों में गए। फूलों का वह प्रफुल्लित पीला और केसरी रंग, धरती के हरे रंग और आकाश के नीले रंग पर खिला हुआ, जीवंत लग रहा था। अब मुझे पता चला कि वाराणसी के मंदिरों के फूल कहां से आते हैं।

चंदिकेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार
चंदिकेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार

भीम चंडी पड़ाव पर स्थित शिव मंदिर चंडीकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर कर्दमेश्वर मंदिर से काफी मिलता-झूलता है। चंडीकेश्वर महादेव मंदिर भी संकीर्ण और ऊंचा मंदिर है, जिसका शिखर पत्थर खुदाई से बनाया गया है। यह मंदिर बहुत छोटा है, पर इसके पास स्थित जलकुंड बहुत बड़ा है। इस कुंड को गंधर्व सागर कुंड या गंधेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।

चंडीकेश्वर मंदिर में स्थित शिवलिंगों के पास पांडवों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ हैं।

गन्धर्व सागर कुण्ड
गन्धर्व सागर कुण्ड

यह बहुत ही दुख की बात है कि मंदिर के इस पवित्र कुंड में भी लोग अपने कपड़े धोते हैं, जिसके कारण कुंड का पानी प्रदूषित हो रहा है। गौर से देखने पर आपको इस कुंड की दीवारों में जलमार्ग दिखेंगे जो इस क्षेत्र में हो रहे बारिश के पानी के संचयन की ओर इशारा करते हैं।

इस पड़ाव का नामकरण पास में स्थित देवी भीम चंडी के मंदिर के आधार पर किया गया है। इस मंदिर के परिसर में बहुत सारे छोटे-बड़े मंदिर हैं। पंचक्रोशी यात्रा के मार्ग पर इस मंदिर का क्रमांक 60 है।

रामेश्वर मंदिर पड़ाव

भगवान् राम द्वारा स्थापित रामेश्वरम मंदिर
भगवान् राम द्वारा स्थापित रामेश्वरम मंदिर

रामेश्वर मंदिर वर्णा नदी के किनारे स्थित है। वर्णा उन दोनों नदियों में से एक है जिनके नाम के मेल से वाराणसी शहर को अपना नाम मिला है। दूसरी नदी का नाम है अस्सी नदी जिसका वर्णन हम पहले ही कर चुके हैं। इस मंदिर के शिवलिंग स्वयं भगवान राम ने अपनी पंचक्रोशी यात्रा के दौरान स्थापित किए थे, जिसके कारण यह मंदिर रामेश्वर के नाम से जाना जाता है।

वरुणा नदी
वरुणा नदी

रामेश्वर मंदिर के पास ही लक्षिमणेश्वर मंदिर, भरतेश्वर मंदिर और शत्रुघ्नेश्वर मंदिर स्थित है जो राम के छोटे भाइयों से संबंधित है। यह बहुत कम देखने को मिलता है कि भगवान राम के साथ उनके भाइयों के भी मंदिर हैं।

तुलजा भवानी मूर्ति - रामेश्वरम मंदिर परिसर में
तुलजा भवानी मूर्ति – रामेश्वरम मंदिर परिसर में

यहां पर एक और मंदिर है जो देवी तुलजा भवानी को समर्पित है। यह देवी का ही एक रूप है जो पश्चिम भारत में पूजा जाता है। यह महाराष्ट्र के शिवाजी महाराज की कुल देवी है और शिवाजी से जुड़ी हर जगह पर उनके मंदिर पाये जाते हैं। रामेश्वर में तुलजा भवानी की मूर्तियां बहुत बड़ी और सुंदर हैं। अगर आप इन मूर्तियों को ध्यान से देखेंगे तो आपके भीतर एक स्वभाभिक सा श्रद्धा भाव उत्पन्न होगा।

रामेश्वर मंदिर के पुजारी ने मुझे बताया कि औरंगजेब की सेना इस मंदिर तक कभी पहुँच नहीं पायी क्योंकि, तुलजा भवानी इस मंदिर की रक्षा करती है। पुजारी जी के अनुसार जब जब औरंगज़ेब की सेना ने मंदिर की ओर बढ़ने का प्रयास किया तब बिच्छू, सांप और मधुमक्खियाँ उनपर तब तब आक्रमण करती थी और उन्हें रास्ते में ही रोक दिया जाता था। इस मंदिर में आपको हर जगह शिवलिंग ही शिवलिंग दिखेंगे।

रामलीला खेलने को तत्पर बच्चे
रामलीला खेलने को तत्पर बच्चे

यहाँ मुझे बच्चों की एक टोली मिली जो रामलीला की तैयारी में मगन थे। राम, सीता, लक्ष्मण और साधारण मनुष्यों की पोशाख पहने ये बच्चे रामलीला की शुरुवात होने की राह देख रहे थे। आज पहली बार मैंने काशी की प्रसिद्ध रामलीला इतने नजदीक से देखा।

शिवपुर मंदिर पड़ाव

पांडव और द्रौपदी - शिवपुर पड़ाव मंदिर में
पांडव और द्रौपदी – शिवपुर पड़ाव मंदिर में

शिवपुर में स्थित मंदिर बहुत ही साधारण है। यहां पर अवरोही क्रम में 5 विभिन्न आकारों के 5 शिवलिंग हैं, जो पांडवों द्वारा स्थापित किए गए थे। इसी मंदिर के पास स्थित जलकुंड को द्रौपदी कुंड के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर शहर की सीमाओं के भीतर स्थित होने के कारण, आप यहां से पूरे शहर का दृश्य देख सकते हैं।

कपिल धारा मंदिर पड़ाव

कपिल मुनि द्वारा स्थापित महादेव मंदिर - कपिल धारा - काशी
कपिल मुनि द्वारा स्थापित महादेव मंदिर – कपिल धारा – काशी

वाराणसी के उत्तरी छोर की ओर स्थित यह मंदिर बहुत ही सुंदर है और यहाँ से आप नीचे स्थित बड़े से जलकुंड को देख सकते हैं। हम सीढ़िया चढ़कर मंदिर तक गए और प्रार्थना करने के बाद मंदिर के पुजारी से बातचीत करने लगे। वे हमे मुख्य मंदिर के पास ही स्थित एक छोटे से मंदिर के पास ले गए जहां पर कपिल मुनि की मूर्ति स्थापित है। माना जाता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग उन्हीं के द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था।

जौं गणेश मंदिर और आदि केशव घाट

अदि घाट पे स्थित जौ गणेश मंदिर
अदि घाट पे स्थित जौ गणेश मंदिर

पंचक्रोशी यात्रा का आखिरी पड़ाव है जौं गणेश मंदिर जो छोटा सा है पर बहुत सुंदर है। इसमें गणेशजी की बहुत  ही सुंदर मूर्ति स्थापित है। यहां से आप गंगा और वर्णा नदी के संगम को देख सकते हैं। यह मंदिर आदि केशव घाट, जो वाराणसी के उत्तरी भाग में बसा हुआ है, के पास ही स्थित है। लोग इस मंदिर से जौं के छोटे-छोटे पौधे ले जाकर गंगा में लगाते हैं। कहा जाता है कि गंगा में जौं लगाना यानि बहुत बड़ा कार्य पूरा करना है। स्थानीय बोली में कहे तो ‘गंगा जी में जौं बो दिये’ यानि आपने बहुत बड़ी चीज प्राप्त कर ली है।

यहां से आपको फिर से नाव लेकर मणिकर्णिका घाट तक जाना होता है, जिससे कि आपकी यात्रा पूरी हो। मैंने यह पथ फिर अपनी गाड़ी में ही संपन्न किया।

जब से मैंने वाराणसी की यात्रा की थी तब से मेरे मन में पंचक्रोशी यात्रा करने की बहुत इच्छा थी। यात्रा पूरी करते ही मुझे एक पूर्णता का आभास हुआ । अब मैं कह सकती हूँ कि, मैंने गंगाजी में जौं बो दिये।

पंचक्रोशी परिक्रमा के लिए कुछ सुझाव

चना समोसा - पञ्च क्रोशि का प्रिय भोजन
चना समोसा – पञ्च क्रोशि का प्रिय भोजन

समोसा चना इस क्षेत्र का मुख्य आहार हैं। आपको इसके अलावा यहां पर ज्यादा कुछ खाना नहीं मिलेगा इसलिए आपने साथ खाना जरूर ले जाइए।

पानी के संबंध में भी अगर आप विशेष ध्यान रखते हैं तो अपने साथ पानी भी ले जाना अच्छा होगा।

क्योंकि मैंने नाव से सवारी नहीं की थी तो मुझे गाड़ी से परिक्रमा करने के लिए लगभग 12 घंटे लगे। इसलिए आपने वाहन के चुनाव के अनुसार आपने समय का भी ध्यान रखिए।

राह में मिलने वाले प्रत्येक मंदिर में चढ़ाने के लिए कुछ छुट्टे अपने पास जरूर रखिए। वहाँ के पुजारी आपसे विभिन्न रूपों में पैसों की माँग करेंगे, तो आप पहले से ही सोच लीजिये कि आपको क्या दान देना है और उस पर डटे रहिए।

वहां के पुजारियों से बातचीत कीजिये, उनके पास बताने के लिए बहुत सी कथाएँ होती है, जिसे सुनकर आपको आश्चर्य होगा।

पंचक्रोशी की पूरी यात्रा 25 कोस या लगभग 80 की.मी. की है। बीच-बीच में भीड़ भरे रास्तों से गुजरते हुए इस यात्रा का आरंभ और अंत वाराणसी के सीमाओं के भीतर ही होता है।

काशी को मेरा धन्यवाद

इस यात्रा को सफल बनाने में बहुत से लोगों ने मेरी सहायता की है। सबसे पहले अशोक भैया का धन्यवाद, कि उन्होंने मेरे लिए अपनी गाड़ी भेजी। प्रदीप जी का भी धन्यवाद, कि उन्होंने मुझे पूरे दिन बिना किसी हिचकिचाहट के चेहरे पर बड़ी सी हंसी के साथ काशी घुमाया। दिलीप कुमार गुप्ता जी, उत्तर प्रदेश के पर्यटन पुलिस,का भी धन्यवाद, कि उन्होंने काशी से संबंधित अपना ज्ञान मुझसे बांटा तथा मेरी सुरक्षा का दायित्व भी निभाया। आप मेरे गुरु हुए जो प्रत्येक समय काशी और पंचक्रोशी यात्रा से संबंधित कोई भी जानकारी हमे देते रहे। और आखिर में विकास सिंह का धन्यवाद, जिन्होंने पहले भी यह यात्रा की थी और हमारे साथ उन्होंने यह यात्रा फिर से की।

मैं खुश हूँ कि हमारे साथ आकर आपको इस यात्रा से संबंधित कुछ नयी बातें जानने का मौका मिला। मैं आशा करती हूँ कि आप आगे भी ऐसे ही जिज्ञासु यात्रियों को आपने साथ यात्रा पर ले जाएंगे।

16 COMMENTS

    • बहुत धन्यवाद् पुजारी जी, आपके आशीर्वाद से आगे भी यात्रायें करते रहेंगे और उन्हें लोगों तक पहुंचाते रहेंगे. नमस्कार.

  1. पंचकोशी यात्रा की बहुत अच्छी जानकारी विस्तार में जानने को मिला इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

  2. विस्तृत जानकारी के लिए आभार ,
    मैं यह परिक्रमा छब्बीस बार कर चुका हूँ लेकिन किसी मंदिर में कभी किसी ने पैसे की माँग नहीं की ! आप के आलेख में यही एक बात खटकती है | एक बार फिर से धन्यवाद |

    • राम जी, मैंने जो भी लिखा है वो मेरा अनुभव हैं, मुझे एक अपेक्षा की अनुभूति हर मंदिर में हुई| मैं शायद एक पर्यटक के रूप में वहां थी – संभवतः इसलिए यह अनुभव रहा हो|

  3. इस अद्भुत जानकारी के लिए आपको कोटिश: धन्यवाद । मुझे भी यह पावन यात्रा करनी है ।

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