विश्व की प्राचीनतम जीवंत नगरी वाराणसी में जब से नवनिर्मित ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का क्रियान्वय हुआ है, तब से वह प्रशंसा का विषय बना हुआ है। यहाँ तक कि हमने भी अपनी ‘यात्रा सम्मलेन’ के संभावित आयोजन स्थल के लिए इसी केंद्र का चुनाव किया था किन्तु कुछ कारणों से हमें उसे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में आयोजित करना पड़ा था। अब इस केंद्र का नामकरण पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल किया गया है। अपनी इस यात्रा में मैं बनारसी रेशमी साड़ियों पर शोध कार्य कर रही थी। इसी विषय पर मेरा अन्वेषण मुझे वाराणसी नगरी के इस नवीन गंतव्य तक खींच लाया था।
हमारी गाड़ी मुंशी प्रेमचंद के पैतृक गाँव लमही में बने उनके स्मारक के सामने से आगे गयी। उनके निवास को अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। आप यहाँ लोगों से वार्तालाप करें तो वे आपको मुंशी प्रेमचंद की कथाओं के पात्रों की गाथाएं अवश्य सुनायेंगे जिनका जीवन मुंशीजी ने इस निवास के चारों ओर ही बुना था। समय की कमी के कारण हम यहाँ अधिक समय व्यतीत नहीं कर पाए। किन्तु मेरा निश्चित सुझाव रहेगा कि आप मुंशी प्रेमचंद के निवास में, जो कि अब एक संग्रहालय है, कुछ समय अवश्य व्यतीत करें।
वाराणसी में नवनिर्मित ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का उद्देश्य है, वाराणसी में व्यापार को बढ़ावा देना। हमने वाराणसी या काशी की सदा एक तीर्थस्थल के रूप में ही कल्पना की है तथा उसे एक धार्मिक स्थल ही माना है जहां मुख्यतः तीर्थयात्री ही आते हैं। किन्तु, इसके ठीक विपरीत वाराणसी सदा से एक व्यापारिक केंद्र रहा है। वास्तव में वाराणसी उस चौराहे पर स्थित है जहां दो प्रमुख व्यापार मार्ग एक दूसरे से मिलते थे। जी हाँ! मैं उत्तरपथ एवं दक्षिणपथ के विषय में कह कर रही हूँ। उत्तरपथ पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर जाते हुए काबुल से ढाका जाता है। दक्षिणपथ उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा की ओर आते हुए पटना से पैठन तक जाता है।
हमारे धर्म ग्रंथों में काशी के एक व्यापारिक केंद्र के रूप में अनेक उल्लेख दृष्टिगोचर होते हैं। आपको राजा हरीश्चंद्र की कथा का स्मरण तो अवश्य ही होगा। जब वे अयोध्या के सम्राट थे तब किसी विवशतावश उन्हें स्वयं की बोली लगानी पड़ी थे। यह बोली काशी के हाट में ही हुई थी। समय-चक्र में आगे चलें तो संत-कवि कबीर काशी में ही एक जुलाहे थे। वे अपनी कविताओं में काशी की मंडियों का उल्लेख यदा कदा करते थे।
बनारसी साड़ियों एवं बनारसी पान के विषय में तो हम सब जानते ही हैं। किन्तु इनके अतिरिक्त भी वाराणसी में अनेक ऐसी वस्तुएं हैं जिन्हें भौगोलिक संकेत या जी आइ टैग प्राप्त हैं। वाराणसी की इन्ही विशेषताओं का गुणगान करता है, ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का यह संग्रहालय।
यह एक प्रकार से काशी नगरी या वाराणसी या बनारस का उत्सव मनाता है। इस प्रकार का संग्रहालय, जो किसी नगरी का उत्सव मानता हो, इससे पूर्व मैंने एक ही देखा था, मुंबई का भाऊ दाजी लाड संग्रहालय। किन्तु काशी का यह संग्रहालय असंख्य कलाशैलियों को पोषित करते हुए इतना अनुनादी है, इतना जीवंत है कि इसकी श्रेणी में इसका कोई सानी नहीं है।
वाराणसी का ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर
प्रथमदर्शनी लाल बलुआ पत्थर में निर्मित यह केंद्र दिल्ली के लुटियंस क्षेत्र में स्थित किसी भी अन्य संरचना जैसा प्रतीत होता है। समीप आते ही उसकी बाह्य भित्तियों पर सुनहरे रंग में मंदिर के शिखरों की उभरी आकृतियाँ दिखाई पड़ती हैं। यह आपको स्मरण करता है कि आप दिल्ली में नहीं अपितु वाराणसी में हैं। यह एक विशाल सार्वजनिक स्थल है जिसके भीतर एवं बाहर बड़ी संख्या में लोगों को समाने की क्षमता है।
बाह्यदर्शनी मुझे इस संरचना की सर्वाधिक प्रशंसनीय जो विशेषता लगी, वह है इसकी वास्तुकला। इसकी स्थापत्यशैली में वाराणसी के तत्व समाये हुए हैं। वह चाहे बुद्ध हो, या कबीर, भारत रत्न द्वारा सम्मानित वाराणसी नगरी के पाँच महानुभाव हों या वाराणसी की कलाशैली। वाराणसी के सुप्रसिद्ध गंगा घाट को कभी नेत्रों से ओझल ही नहीं होने दिया है। मैं सदा इस अंतरद्वन्द में रहती थी कि जीवंत परंपराओं एवं जीवंत संस्कृतियों के लिए संग्रहालयों की क्या आवश्यकता है? किन्तु इस संग्रहालय को देखते ही मेरा वह अंतरद्वन्द पूर्णतया लुप्त हो गया।
इस संग्रहालय में वाराणसी की सभी परम्पराओं, सभी संस्कृतियों को एक ही स्थान में इस प्रकार प्रदर्शित किया है कि सभी दर्शनार्थियों एवं हितधारकों को ये सरलता से उपलब्ध हो जाएँ। एक ही स्थान पर कलाकृतियों का भी प्रदर्शन है तथा कलाकारों को अपनी कलाकृतियाँ प्रदर्शित करने का मंच भी उपलब्ध है। ठप्पा निर्मातक, लकड़ी के खिलौने बनाने वाले कारीगर, चित्रकार, शिल्पकार जैसे अनेक दक्ष कारीगरों को यहाँ आमंत्रित किया जाता है ताकि वे अपनी कला का प्रदर्शन कर सकें, कलाकृतियाँ गढ़ सकें तथा दर्शनार्थियों एवं हितधारकों से कला संबंधी संवाद भी कर सकें। यह सब मुझे अत्यंत प्रशंसनीय प्रतीत हुआ।
क्रय-विक्रय क्षेत्र भी अत्यंत विलक्षण है। उनमें क्रय के लिए रखी वस्तुओं के विषय में तथा उनके मूल्य के विषय में मैं अधिक जानकारी नहीं दे सकती क्योंकि जब मैं वहां गयी थी, अधिकतर दुकानें बंद थीं। कदाचित महामारी का प्रभाव रहा होगा। आशा है कि अब महामारी के सभी दुष्प्रभावों को पीछे छोड़कर हम आगे बढ़ चुके हैं तथा अब वे दुकानें ग्राहकों से सुशोभित हो रही हों।
यहाँ अनेक भित्तिचित्र एवं प्रतिमाएं हैं जो वाराणसी नगरी के मूल तत्व को दर्शाते हैं। प्रवेश करते ही हमारी दृष्टि भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा पर आकृष्ट हुई जो उनके तत्वज्ञान का स्मरण कराती है। मध्य में लोकप्रिय संत-कवि कबीर की प्रतिमा है जो काशी नगरी में एक जुलाहा भी थे। एक भित्तिचित्र में भारत रत्न से सम्मानित वाराणसी के पाँचों महानुभावों को दर्शाया है। वे हैं, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित रवि शंकर, उस्ताद बिस्मिल्ला खान, लाल बहादुर शास्त्री एवं भगवान दास जी। आपने ऐसे कितने नगर देखे हैं जिन्होंने उनके क्षेत्र के राष्ट्र-विभूषित व्यक्तित्व को इस प्रमुखता से सम्मानित किया हो?
ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का शिल्प संग्रहालय
शिल्प संग्रहालय के भवन के तीन तलों में वाराणसी की शिल्प शैलियों को प्रदर्शित किया है। संग्रहालय की प्रदर्शनी दीर्घा को अप्रतिम रूप से सुसज्जित किया है।
प्रवेश करने से पूर्व ही आप स्वयं को रंगबिरंगे एवं उजले सुन्दर पटलों से घिरा पायेंगे जो बनारसी रेशम की विविधता एवं सुन्दरता को प्रस्तुत करते हैं। एक प्रकार से आप स्वयं को उस उत्कृष्ट सम्पन्नता से घिरा पायेंगे जो इस नगरी की अतिविशिष्ट बुनाई तकनीक की परिभाषा है।
वाराणसी पर चलचित्र
वाराणसी के वैशिष्ट्य को प्रदर्शित करता एक लघु चित्रपट आप एक विशेष प्रेक्षागार में देखेंगे जो आपको वाराणसी नगरी के विभिन्न आयामों को ३६०अंश में प्रदर्शित करते हैं। एक प्रकार से ये सम्पूर्ण नगरी को आपके समक्ष प्रदर्शित कर देते हैं। आप अपनी इच्छा के अनुसार उसके विभिन्न तत्वों पर लक्ष्य केन्द्रित कर सकते हैं तथा काशी की गलियों में भ्रमण करते समय सीधे अपने गंतव्य की ओर जा सकते हैं।
आप मध्य में खड़े होकर अपने चारों ओर प्रदर्शित चलचित्र में काशी को परिभाषित करते उसके सर्वोत्कृष्ट तत्वों का आनंद ले सकते हैं जैसे उसका संगीत, वहाँ के संगीतज्ञ, उसके घाट एवं वहाँ का जीवन, उसके लोकप्रिय पानवाले, मिठाई की दुकानें, बुनकर, लकड़ी के खिलौने बनाने वाले, मीनाकारी के आभूषण बनाने वाले, शैल शिल्पकार आदि। इन सभी आयामों में सर्वप्रसिद्ध तत्व तो सदा काशी की लोकप्रिय गलियाँ ही होती हैं जो स्वयं में किसी संग्रहालय से कम नहीं हैं। काशी की गलियों में भ्रमण करना एक मुक्तांगन संग्रहालय में भ्रमण करने जैसा होता है।
मध्य में खड़े होकर ऐसा प्रतीत होता है मानो आप चारों ओर से काशी से घिरे हुए हैं।
वस्त्र दीर्घा
संग्रहालय का यह क्षेत्र आपको उत्कृष्ट रेशमी वस्त्रों के स्वप्निल विश्व में ले जाता है। इस क्षेत्र को सुरुचिपूर्ण रीति से सज्जित किया है। विभिन्न प्रकार के रेशम, विभिन्न प्रकार की रेशमी बुनाई तकनीक आदि की जानकारी हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में दी गयी हैं। रेशमी वस्त्रों की सम्पूर्ण बुनाई तकनीक को दृश्यों एवं शब्दों द्वारा समझाया गया है।
यहाँ की एक अन्य विशेषता है, वाराणसी की उत्कृष्ट धरोहर, बनारसी साड़ियों के अद्भुत संग्रह का प्रदर्शन। आप उनमें जामुनी, रानी, लाल आदि चटक रंगों में काशी की पारंपरिक आकृतियाँ देख सकते हैं। आप उन्हें ध्यान से देखें तो आपको विभिन्न बुनाई तकनीक की सूक्ष्मताएँ एवं उनमें अंतर स्पष्ट दृष्टिगोचर होगा। विभिन्न प्रकार की बुनाई, आकृतियाँ एवं रूपरेखाओं में विविधताओं को पहचान सकते हैं।
एक प्रदर्शनी का उल्लेख करना चाहूंगी जिसमें मोर के पंखों को रेशम के साथ बुनकर आकृतियाँ बनाई गयी हैं। एक अन्य वस्त्र है गयसर, जिसे ब्रोकेड में बनाया जाता है। बौद्ध लामा प्रार्थना के लिए इसका प्रयोग करते हैं।
गालीचा दीर्घा
इस दीर्घा में गालीचों के कुछ उत्कृष्ट नमूने प्रदर्शित हैं।
एक गालीचे में चन्द्रमा एवं उसका प्रतिबिम्ब दर्शाया गया है जो अत्यंत सुन्दर है। कुछ गालीचों में राजाओं की कथाएं बुनी गयी हैं। गालीचा बुनाई में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के बुनाई तकनीक एवं आकृतियाँ प्रदर्शित की गयी हैं।
वाराणसी कला दीर्घा
इस दीर्घा में वाराणसी में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की प्रदर्शनी है। मैं काशी के विभिन्न कला शैलियों पर जानकारी एकत्र कर उन पर एक संस्करण लिख चुकी थी। इसके पश्चात भी मुझे यहाँ नवीन जानकारियाँ प्राप्त हो रही थीं। वाराणसी की टेराकोटा कलाशैली मैंने सर्वप्रथम यहीं देखी। उनमें काली चिकनी मिट्टी (टेराकोटा) में बने पात्र भी सम्मिलित हैं। इससे पूर्व मेरा अनुमान था कि कुम्हारी के लिए काले टेराकोटा का प्रयोग केवल मणिपुर में किया जाता है। अब मैं जब भी वाराणसी के हाट में जाऊँगी तब इन काले टेराकोटा के पात्रों को अवश्य ढूंडूंगी।
यहाँ प्रसिद्ध रामनगर रामलीला में प्रयुक्त होने वाले मुखौटे हैं।
आपका ध्यानाकर्षित करने वाली गुलाबी मीनाकारी की गयी अनेक उत्कृष्ट वस्तुएं हैं।
पीतल एवं अन्य धातुशैलियों में निर्मित मूर्तियाँ है जिनमें पुरातन एवं आधुनिक, दोनों कलाशैलियों को देखा जा सकता है।
दीर्घा के अंतिम भाग में एक विस्तृत चित्ताकर्षक राम दरबार है।
वाराणसी की वे सभी वस्तुएं जिन्हें भौगोलिक संकेत प्राप्त है, यहाँ प्रदर्शित की गयी हैं। यह संग्रहालय एक प्रकार से उन उत्कृष्ट वस्तुओं का उत्सव मनाता है।
ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर के परिसर में आप कारीगरों से भेंट भी कर सकते हैं तथा उन्हें अपनी रचनाओं को गढ़ते प्रत्यक्ष देख सकते हैं। मैं ठप्पा छपाई के लिए ठप्पा बनाने वाले एक कारीगर से मिली। वह ठप्पा यंत्रों के लिए आवश्यकतानुसार ठप्पे बना रहा था। एक अन्य शिल्पकार छोटी छोटी काष्ट कलाकृतियाँ बना रहा था। कुछ आभूषण भी बना रहा था। उनसे चर्चा करना तथा उनकी कलाओं के विषय में जानना अत्यंत आनंददायी होता है। साथ ही सीखने को भी मिलता है।
यदि किसी का इन कलाओं की ओर झुकाव हो तो उस के लिए यह स्वर्ग प्राप्त करने के समान है। बच्चों के लिए यह उत्तम स्थान है। आशा है यह संग्रहालय बच्चों एवं बड़ों के लिए कार्यशालाएँ भी आयोजित करे ताकि अधिक से अधिक लोग इन कलाओं से जुड़ सकें, उन्हें सीख सकें।
वाराणसी के ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर से संबंधित कुछ सूचनाएं
यह संग्रहालय प्रातः ११:३० बजे खुलता है तथा संध्या ०७:३० बजे बंद होता है। सोमवार को संग्रहालय बंद रहता है।
प्रवेश शुल्क नाममात्र है।
संग्रहालय के भीतर कैमरे ले जाने की अनुमति नहीं है।
संग्रहालय में सभी प्रदर्शित कलाकृतियों की जानकारी के लिए आप गाइड की सहायता ले सकते हैं। अभी तक तो गाइड सेवा निशुल्क उपलब्ध है।
सम्पूर्ण संग्रहालय के अवलोकन के लिए तथा दुकानों में उपलब्ध वस्तुओं को देखने के लिए कुछ घंटों का समय आवश्यक है।
यदि कोई विशेष प्रदर्शनी लगी हुई हो तो उसके लिए कुछ समय अधिक लग सकता है।