पांगोंग त्सो सरोवर – लद्दाख का प्रसिद्द पर्यटक स्थल

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पांगोंग सरोवर अथवा पांगोंग झील को स्थानीय भाषा में पांगोंग त्सो कहते हैं। भारत के नवनिर्मित केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी लेह से लगभग १५० किलोमीटर दूर स्थित पांगोंग सरोवर एक मनोरम हिमालयी सरोवर है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग ४५०० मीटर है। यह एक अत्यंत सुन्दर सरोवर है। इस सरोवर के जल पर पड़ती सूर्य की किरणें जब दिन भर की यात्रा करती हैं, इसका आकाशी नीलवर्ण जल इन किरणों के साथ अठखेलियाँ करता विभिन्न आभा बिखेरता रहता है।

जमी हुई पांगोंग त्सो
जमी हुई पांगोंग त्सो

पांगोंग सरोवर बॉलीवुड चित्रपटों के छायाचित्रीकरण के लिए एक अतिविशेष स्वप्निल स्थल माना जाता है। लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि सन् २०१८ में निर्मित हॉलीवुड चित्रपट गेम्स ऑफ थ्रोंस के कुछ भागों  का छायाचित्रीकरण भी यहीं हुआ था। पांगोंग सरोवर एक अछूते हिमालयीन परिदृश्य का सर्वोत्तम उदहारण है।

अपनी लद्दाख यात्रा में हम कुछ दिवस लेह में ठहरे थे। नारोपा उत्सव का अवलोकन करने व लद्दाख की संस्कृति को जानने व समझने के लेने वहीं से हमने हेमिस मठ तक की यात्रा की थी। यदि आपकी रूचि केवल पर्यटन भी हो तब भी लद्दाख की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक आप पांगोंग सरोवर ना देख लें।

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पांगोंग त्सो: लद्दाख का आकर्षक सरोवर

वर्ष के अधिकांश समय, लद्दाख के शीत ऋतु की कड़ाके की ठण्ड में खारे जल का यह विशाल सरोवर जमा हुआ ही रहता है। जब पांगोंग सरोवर जमा हुआ नहीं रहता है, आप उसमें नीले रंग की विभिन्न छटाएं देख सकते हैं। अप्रैल मास से सितम्बर के आरम्भ तक इस सरोवर की सुन्दरता अपनी चरम सीमा पर रहती है जब इस पर नीलवर्ण की विभिन्न छटाओं का मेला लगा रहता है।

पांगोंग सरोवर के रंग
पांगोंग सरोवर के रंग

इस सरोवर का दो-तिहाई भाग तिब्बत के पठार के अंतर्गत आता है जो अब चीनी अंतर्राष्ट्रीय सीमारेखा के भीतर स्थित है। शेष एक-तिहाई भाग भारतीय सीमा के अंतर्गत आता है। स्वाभाविक है कि अंतर्राष्ट्रीय विवादित सीमा रेखा के समीप होने के कारण आप सरोवर के आसपास कदाचित सेना के तम्बू एवं उनकी तोपें देखें। सन् १९६० में हुए भारत-चीन युद्ध के समय यह शांत एवं रम्य स्थान सेना की अनेक तोपों एवं उनके द्वारा हुए रक्तपात का साक्षी रहा है। वह सब क्यों हुआ? कौन जाने!!

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यदि आप हिमालय के इतिहास के पन्नों को पलटें तथा इस स्थान के भूगर्भ शास्त्र में डुबकी लगाएं तो आप हिन्द महासागर एवं इस सरोवर के मध्य सम्बन्ध अवश्य खोज निकालेंगे। तिब्बती शब्द पांगोंग त्सो का शाब्दिक अर्थ है, ऊँचे मैदानी क्षेत्र का सरोवर। ऐसी मान्यता है कि भूगर्भीय उथल-पुथल के पश्चात जब समुद्र की गहराई से हिमालय उभर कर आया तब आसपास का समुद्र सिमट कर केवल यह सरोवर ही शेष रहा। इसी कारण सरोवर का जल खारा है तथा इसमें मछलियाँ भी नहीं हैं।

समुद्र सतह से ४५०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण पांगोंग त्सो मछलियों के प्रजनन एवं जीवन के अनुकूल जलवायु नहीं प्रदान कर पाता है। इसी कारण इसके जल में मछलियों का अभाव है। इसके पश्चात भी यह सरोवर प्रवासी पक्षियों का प्रिय स्थल है। प्रत्येक वर्ष यहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं, काई अथवा मॉस खाते हैं तथा घोंसले बनाकर अंडे देते हैं।

सरोवर में रात्रि का पड़ाव डालें अथवा केवल दिवसीय यात्रा करें?

जब मानव प्रकृति से खिलवाड़ ना करे तब प्रकृति की सुन्दरता किस प्रकार आकाश को छू लेती है, यह सरोवर उसका जीवंत उदहारण है। स्वाभाविक ही है कि आप ऐसे सरोवर के तट पर कुछ रात्रि व्यतीत करते हुए माँ स्वरूप प्रकृति से अवश्य जुड़ना चाहेंगे।

पांगोंग त्सो का सूर्योदय
पांगोंग त्सो का सूर्योदय

किन्तु ध्यान रखें कि जिस अनछुई प्रकृति से आप जुड़ना चाहते हैं उसकी कान्ति को उतनी ही पवित्र बनाए रखना भी आपका ही उत्तरदायित्व है। साथ ही आपको अपने स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा। जैसे, रात्रि का तापमान अत्यंत शीतल हो जाता है। मौसम के अनुसार यह शुन्य तापमान से २०-३०अंश नीचे भी जा सकता है। साथ ही रहने की सुविधाएं भी मूलभूत हैं, जैसे तम्बू इत्यादि। अतः सम्पूर्ण वातावरण आपके स्वास्थ्य के लिए एक कठिन परीक्षा सिद्ध हो सकता है।

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सरोवर के तट पर रात्रि व्यतीत करने के आनंद का अर्थ है, तट पर बैठकर तारे देखते हुए गर्म गर्म मैगी खाना। यदि खगोलीय छायाचित्रीकरण में आपकी रूचि है तो इससे अधिक उपयुक्त स्थल सम्पूर्ण भारत में कहीं नहीं होगा!

अनेक पर्यटकों का मानना है कि पांगोंग त्सो में जो सूर्योदय उन्होंने देखा है, वह अविस्मरणीय एवं अतुलनीय है!

रात्रि के कड़ाके की ठण्ड एवं कठिन सड़क यात्रा से भयभीत होकर मैंने तो पांगोंग में रात्रि व्यतीत करना स्वयं के लिए उचित नहीं जाना तथा लेह से एक दिवसीय यात्रा करने का निश्चय किया।

प्रादेशिक संचार अनुज्ञा पत्र: इनर लाइन परमिट (आइ एल पी)

यह क्षेत्र संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय सीमारेखा जांच के अंतर्गत आता है जिसके कारण हमें पांगोंग सरोवर तक जाने के लिए अनुज्ञा पत्र प्राप्त करना पड़ा। इस अनुज्ञा पत्र को प्रादेशिक संचार अनुज्ञा पत्र अथवा इनर लाइन परमिट (आइ एल पी) कहते हैं। इनर लाइन परमिट एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज है जिसे संबंधित राज्य सरकार जारी करती है।

पांगोंग त्सो लद्दाख
पांगोंग त्सो लद्दाख

इस तरह का परमिट भारतीय नागरिकों को देश के अंदर के किसी संरक्षित क्षेत्र में एक तय समय के लिए यात्रा की अनुमति देता है। इस परमिट के एवज में कुछ शुल्क भी लिया जाता है। हमें इसके लिए ६०० रुपये प्रतिव्यक्ति शुल्क देना पड़ा। इसे प्राप्त करने में हमारे अतिथिगृह के अधिकारी ने हमारी सहायता की थी।

यदि आप लेह से पांगोंग सरोवर तक एक दिवसीय यात्रा करना चाहते हैं तो मेरा सुझाव है कि आप प्रातः शीघ्रातिशीघ्र यात्रा आरम्भ करें। यह पांच घंटे की एक कठिन सड़क यात्रा है जो अत्यंत जोखिम भरी है। यहाँ तक कि मौसम की स्थिति बिगड़ने पर सड़क मार्ग अवरुद्ध भी हो सकता है। अवरुद्ध सड़क मार्ग के कारण यदि आप कहीं फंस जाएँ तो भयभीत ना होयें। वहां से सुरक्षित निकलने में भारतीय सेना आपकी अवश्य सहायता करेगी। इसीलिए यदि आप प्रातः शीघ्र यात्रा आरम्भ करें तो इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में आसानी होती है।

हमने प्रातः पांच बजे यात्रा आरम्भ की तथा अनवरत ४० किलोमीटर गाड़ी चलाते हुए हेमिस मठ पहुंचे। मठ के समक्ष सिन्धु नदी के तट पर बैठकर जलपान किया तथा आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े।

यात्रा एवं पड़ाव

यदि आप लेह से आ रहे हैं तो पांगोंग त्सो तक की यात्रा में आपको कुछ आवश्यक पड़ाव लेने पड़ते हैं।

आप जैसे जैसे ऊपर चढ़ते जायेंगे, आपके समक्ष परिदृश्यों में तीव्र गति से परिवर्तन हो सकता है। कदाचित चारों ओर मानवीय उपस्थिति की किंचित मात्र भी झलक प्राप्त ना हो। चारों ओर केवल हिमाच्छादित बीहड़ पर्वत, अतिविरल हरियाली तथा स्वर्ग की ओर जाती प्रतीत होती सड़क।

आप समझ जाईये कि आप चांग ला दर्रे में प्रवेश कर रहे हैं!

चांग ला दर्रा: ऊँचा हिमालयी दर्रा

इस सड़क को विश्व का दूसरा सर्वोच्च वाहन योग्य मार्ग माना जाता है। ५३६० मीटर की ऊँचाई पर स्थित चांग ला सामान्यतः सरोवर तक की यात्रा का प्रथम पड़ाव होता है। दर्रे के शीर्ष पर चांग ला बाबा का मंदिर है। मंदिर की भित्तियों पर रंगबिरंगे ध्वज फहराए हुए हैं।

चांग ला दर्रा
चांग ला दर्रा

अत्यंत ऊँचाई पर स्थित होने के कारण चांग ला दर्रा आपके स्वास्थ्य की दृष्टी से महत्वपूर्ण है। यदि आपको तीव्र पर्वतीय अस्वस्थता (Acute mountain sickness, AMS) की आशंका है तो उसके लक्षण आपको यहाँ से दिखने आरम्भ हो जायेंगे।

परिदृश्य

चांग ला से तीव्र उतार आरम्भ हो जाता है। चांग ला से हमें आगे तीन घंटे की यात्रा करनी पड़ती है। घुमावदार सर्पिल मार्ग आपके समक्ष कुछ अद्वितीय एवं विलक्षण परिदृश्य प्रस्तुत करेंगे। दूर स्थित पर्वत सतह पर स्थानीय घुमंतू बंजारे अपने पालतू पशुओं को चराते हुए दिखने आरम्भ हो जायेंगे।

प्रकृति का आनंद लेते पर्यटक
प्रकृति का आनंद लेते पर्यटक

हिमनद से पिघलकर आती जलधाराएं धरती पर विरली हरियाली उत्पन्न करती दृष्टिगोचर होंगी जिन्हें चरने में व्यस्त याक पशु भी दिखाई देंगे। यहाँ के श्वान या कुत्ते भी भिन्न प्रतीत होते हैं। यहाँ की जलवायु के अनुकूल उनका शरीर बालों की मोती परत से ढंका होता है। ये हिमालयी कुत्ते भी आपको बर्फ की महीन सतह पर इधर-उधर विचरण करते व जल खोजते दिखाई पड़ेंगे।

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सेना के कुछ कैम्पों में २४ घंटों की चाय की दुकानें हैं। वहां प्रसाधन गृह अथवा शौचालय भी उपलब्ध होते हैं। इस क्षेत्र में जल की उपलब्धि अत्यंत विरली होती है। अतः शौचालय का प्रयोग करते समय इसका स्मरण अवश्य रखें।

यह यात्रा लम्बी अवश्य है किन्तु ये हमारे नयनों के लिए अमृततुल्य है। हमारी कार के साथ दौड़ते जंगली गधे, घाटियों के मध्य से बहती एवं हमारे संग आँख-मिचौली का खेल खेलती कई छोटी छोटी नदियाँ हमें मंत्रमुग्ध कर रहे थे। एक ओर ग्रीष्म ऋतु में ये नदियाँ सूख जाती है तो वहीं शीत ऋतु के ठंडे वातावरण में इनकी उपरी सतह जम जाती है।

हिमालय वासी मर्मोट
हिमालय वासी मर्मोट – एक बड़ी गिलहरी 

कुछ क्षणों पश्चात हिमालयी मर्मोट आपका स्वागत करने के लिए आ जायेंगी। बड़े चूहे अथवा गिलहरी के समान दिखाई देते ये जीव इस क्षेत्र के मूल जीव हैं। अपनी आँखों में जिज्ञासा एवं भोलापन लिए इन जीवों को देख आपको अंटार्टिका का प्रथम सुप्रसिद्ध मानव-पेंगुइन भिडंत का स्मरण हो आएगा। ये जीव भूमि के भीतर निवास करते हैं। सम्पूर्ण क्षेत्र की भूमि के भीतर इन जीवों ने अनेक बिलों का परस्पर जुड़ा हुआ एक जाल बनाया हुआ है। अतः यहाँ चलते हुए अत्यंत सावधानी बरतें।

पांगोंग त्सो के तीन संकेत

अत्यंत सुन्दर पांगोंग सरोवर का प्रथम विहंगम दृश्य हमारे अस्तित्व को इस प्रकार झकझोर देता है कि उसे शब्दों में ढालना संभव नहीं है। सरोवर की नीलवर्ण जल सतह पर नीले आकाश का प्रतिबिम्ब अत्यंत मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है। सरोवर का नीला रंग इतना गहरा है कि वह आपके नयनों को सहज ही नहीं होने देता है!

किन्तु सरोवर क्षेत्र का प्रवेश स्थल आपको धरातल पर ले आता है। चित्रपट चित्रीकरण के लिए लोकप्रिय इस स्थान पर असंख्य पर्यटकों की उपस्थिति आँखों को खटकने लगती है। आपको ज्ञात ही होगा कि थ्री इडियट्स नामक लोकप्रिय चित्रपट के कुछ भागों का चित्रीकरण भी यहीं हुआ था। चित्रपट में दिखाए गए तीन रंगबिरंगे चौकियों की विशेष बैठक की स्मृति में यहाँ पर्यटकों के लिए उसका प्रतिरूप भी रखा हुआ है। इस अनछुए स्थल पर इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों के आने का कारण भी वही चित्रपट है। यदि आपको यह दृश्य विचलित नहीं करता है तो आप सहर्ष यहाँ कुछ समय व्यतीत कर सकते हैं।

किन्तु हमें यहाँ एक क्षण भी ठहरना स्वीकार्य नहीं था। हम यहाँ से कुछ किलोमीटर आगे जाकर रुके। वहां का दृश्य अत्यंत मनोरम था। शांत, मनमोहक एवं पर्यटकों के कोलाहल से अछूता!

एक समय यह सरोवर प्रदूषण रहित माना जाता था। यह अपने स्वच्छ निर्मल जल के लिए जाना जाता था। किन्तु बड़ी संख्या में आते संवेदनहीन व दायित्वहीन पर्यटकों के कारण अब आप यहाँ-वहां प्लास्टिक कचरा देख सकते हैं।

यदि आप पर्यावरण प्रेमी हैं तथा आपको अपनी धरती माता की चिंता है तो आप यहाँ प्लास्टिक जैसा किसी भी प्रकार का अजैवनिघ्नीकरणीय कचरा ना डालें। उन्हें अपनी गाड़ी में ही एकत्र करें तथा लेह जाकर उपयुक्त स्थान में ही डालें। आपकी श्रद्धा हो तो आप यहाँ के कुछ प्लास्टिक कचरे को कम करने में भी सहायता कर सकते हैं।

पांगोंग त्सो दर्शन के लिए कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं:

  • पांगोंग सरोवर सड़क मार्ग द्वारा चांग ला दर्रा होते हुए पहुंचा जा सकता है जिसकी ऊँचाई ५३६० मीटर है। पांगोंग सरोवर भ्रमण ले लिए यहाँ तक पहुँचने का सर्वोत्तम उपाय है कि आप साझा टैक्सी करें ताकि अन्य यात्रियों के साथ व्यय भी साझा हो जाए तथा पर्यावरण पर भी अधिक दबाव ना पड़े। अनेक लेह-लद्दाख भ्रमण सेवायें उपलब्ध हैं जिनके द्वारा आप ऐसी साझा टैक्सी सेवा पूर्वनियोजित कर सकते हैं।
  • अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। यहाँ तीव्र पर्वतीय अस्वस्थता (Acute mountain sickness, AMS) होना सामान्य है। इससे आपके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है जो तीव्र भी हो सकता है। हो सकता है दुर्गम मार्गों में आपको औषधिक सेवायें भी शीघ्र उपलब्ध ना हो पाए। यदि आपका स्वास्थ्य तीव्र गति से घटे तो मेरा सुझाव यही है कि आप वापिस लौट जाएँ। अपने साथ अपनी सभी औषधियां लेकर जाएँ।
  • आवश्यकनुसार ऊनी वस्त्र एवं परिधान ले जाएँ। जल एवं सूखे खाद्य पदार्थ साथ रखें। तीव्र पर्वतीय अस्वस्थता से बचाना है तो भ्रमण आरम्भ करने से पूर्व लेह में कम से कम दो दिवस केवल विश्राम करें तथा स्वयं को ऊँचाई की जलवायु से अभ्यस्त करें।
  • लद्दाख एक शीत मरुस्थल है। दिन के समय सूर्य की तीखी किरणें आपकी त्वचा को झुलसा सकती हैं। आप देखेंगे कि यहाँ की लद्दाखी स्त्रियों के मुखड़े लालवर्ण के हो जाते हैं। उसका कारण ये तीव्र सूर्य की किरणें ही हैं। निचले अथवा मैदानी क्षेत्रों में रहने के कारण हमारी त्वचा ऐसे तीखे वातावरण को सहन करने के लिए अभ्यस्त नहीं होती है तथा उस पर गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। अतः अपनी त्वचा की रक्षा करने के लिए आवश्यक सूर्य प्रतिरोधक प्रसाधनों का प्रयोग करें तथा स्वयं को ढँक कर रखें।
  • वापिस लौटते समय अपने भ्रमण के किसी भी प्रकार के चिन्ह वहाँ ना छोड़ें। अपना सभी प्रकार का प्लास्टिक का कचरा अपने साथ वापिस लायें। अन्यथा यहाँ की सुकोमल भौगोलिक अवस्थिति अतिसंवेदनशील होकर पारिस्थितिक असुंतलन की भेंट चढ़ जायेगी।
  • सरोवर के जल में जाने अथवा तैरने की अनुमति नहीं है।

यह संस्करण मधुरिमा चक्रवर्ती ने लिखा है जिन्होंने लद्दाख के नरोपा उत्सव में इंडीटेल्स का प्रतिनिधित्व किया था।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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