पेट्रा जॉर्डन – विश्व का अनोखा अचम्भा यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

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पेट्रा जॉर्डन अथवा पेत्रा जॉर्डन – जब जॉर्डन देश के पर्यटन विभाग ने मुझे अपने देश में भ्रमण करने का आमंत्रण दिया था तब मैं इस धरोहर स्थल के विषय में जो जानती थी, वह था केवल उसका नाम। किन्तु एक विश्व धरोहर स्थल होने के कारण मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। कुछ छायाचित्र देखने के पश्चात गुलाबी रंग के स्तंभों की मनमोहक छवि ने मन-मस्तिष्क में कौतूहल उत्पन्न कर दिया था. मैं जान गयी थी कि क्यों पर्यटक पेट्रा जॉर्डन की यात्रा के लिए लालायित रहते हैं।

पेट्रा - जॉर्डन का प्राचीन नगर
पेट्रा – जॉर्डन का प्राचीन नगर

हम इस स्थान का अवलोकन करने के लिए इतने उत्सुक थे कि हमने हमारे गाइड से प्रातः अति शीघ्र प्रस्थान करने का प्रस्ताव दिया, ताकि हमें उस गुलाबी बलुआ पाषणों की नगरी को निहारने के लिए कुछ अतिरिक्त घंटे मिलें, जो दीर्घ काल तक एक लुप्त नगरी थी।

पेट्रा जॉर्डन का भ्रमण

हमारा गाइड कदाचित हमारे जैसे अति उत्साही पर्यटकों से अभ्यस्त था। उसने हमें बातों व कथाओं में उलझाकर यह सुनिश्चित कर लिया कि हम उसके द्वारा नियोजित समय पर ही अम्मान से निकलें। तकनीकी रूप से पेट्रा म’आन प्रांत के शोबक गाँव के अंतर्गत आता है। यह जॉर्डन के दक्षिणी भाग में स्थित है। राजधानी अम्मान से यहाँ तक पहुँचने के लिए लगभग ३-४ घंटों की सड़क यात्रा करनी पड़ती है।

पेट्रा की प्रथम झलक – नाबातियन की खोई नगरी

चौकोर कटे हुए मकबरे
चौकोर कटे हुए मकबरे

पेट्रा पहुँचते पहुँचते दोपहर होने को थी। हमने प्रवेश टिकट क्रय किया जिसका मूल्य ९० जॉर्डन दीनार प्रतिव्यक्ति था। उस समय १ जॉर्डन दीनार का भारतीय मूल्य १०० रुपये था। हम स्तब्ध थे क्योंकि यह मेरे द्वारा  अवलोकित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के प्रवेश शुल्कों में अब तक का सर्वाधिक शुल्क था। धरोहर स्थल के प्रवेश द्वार पर पहुँचने का रोमांच अपनी चरम सीमा पर था। प्रवेश द्वार से भीतर जाते हुए हमें आशा थी कि हमें कुछ अद्भुत स्मारकों के दर्शन होंगे। यद्यपि, पूर्व में यहाँ का भ्रमण किये हुए मेरे कुछ मित्रों ने मुझे सावधान कर दिया था कि मुझे लम्बी दूरी तक पैदल चलने के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से सज्ज रहना पड़ेगा। किन्तु मेरे समक्ष तो एक विशाल विस्तृत नगर था। हम उबड़-खाबड़ मार्ग पर चलते हुए आगे बढ़े। हमारे दोनों ओर उत्कीर्णित पहाड़ थे। वास्तव में वे चौकोर मकबरे थे जिन्हें पहाड़ियों को काटकर बनाया गया था। उन पर शुभ शकुन एवं चिन्ह उत्कीर्णित व चित्रित थे। उत्कीर्णन अब भी शेष हैं किन्तु चित्र अब धुंधले पड़ चुके हैं।

पेट्रा के चट्टानी पहाड़
पेट्रा के चट्टानी पहाड़

यहाँ-वहाँ जाते रंगबिरंगे तांगे उस नीरस परिवेश को रंगों से सजा रहे थे। वे उन लोगों को ले जा रहे थे जो पैदल चलना टालना चाहते थे। हम लगभग १ किलोमीटर तक संकीर्ण घाटी के मध्य से चलकर सिक नामक स्थान पर पहुंचे। यह गुलाबी-लाल रंग की नगरी है। हमारे गाइड ने इस विश्व धरोहर स्थल के इतिहास की जानकारी देना आरम्भ किया। उसने यह भी बताया कि इसका बाइबल में भी उल्लेख किया गया है, जिसका अर्थ है कि यह उस काल में एक जीवंत नगर था। पेट्रा एक यूनानी शब्द पेट्रोस से लिया गया है जिसका अर्थ है चट्टानें। इस नगरी के दर्शनोपरांत आप भी यह मानेंगे कि इस नगरी का पेट्रा से अधिक उपयुक्त नाम नहीं हो सकता।

पेट्रा मुख्य रूप से नाबातियन नामक प्राचीन लोगों द्वारा बसाई गयी थी जिस पर कालान्तर में रोमन साम्राज्य ने आधिपत्य स्थापित कर लिया था। ७वीं शताब्दी में रोमन साम्राज्य द्वारा त्याग देने के पश्चात यह एक लुप्त नगर बन गया था। सन् १८१२ में एक स्विस खोजकर्ता जोहान्न लुडविग ने इसकी पुनः खोज की थी। गुलाबी रंग की चट्टानों के कारण इसे “रोज़ सिटी” अर्थात् गुलाबी नगरी कहा जाता है। इसे “लॉस्ट सिटी” अर्थात् खोई नगरी भी कहा जाता है क्योंकि अनेक सदियों तक यह नगरी विश्व की दृष्टी से लुप्त थी।

नाबातियन सभ्यता की राजधानी

पेट्रा नाबातियन सभ्यता की राजधानी थी। उस समय इसकी शोभा अपनी चरम सीमा पर थी। इतिहासकारों का मानना है कि इस धरोहर नगरी का इतिहास लगभग ३१२ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ था। यहाँ नाबातियन की व्यापारिक जनजाति निवास करती थी। दक्षिण के अरब, मृत सागर के किनारे स्थित मिस्त्र के अरब एवं प्राचीन रोमवासियों से उनके व्यापारिक सम्बन्ध थे। ऐतिहासिक साहित्यों में यहाँ से भारत तक के व्यापारिक मार्गों का भी उल्लेख में किया गया है। नाबातियन जनजाति मूलतः अरबी मूल के निवासी हैं। वे दुशरा नामक भगवान की आराधना करते थे जो ग्रीको-रोमन पौराणिकी के जूस अथवा जुपिटर के समकक्ष है। वे ग्रीस की प्रेम की देवी एफ्रोडाईट की समकक्ष एक देवी की भी आराधना करते थे। जूस के समान दुशरा भी समीप स्थित पर्वत पर निवास करते थे। मुझे अनायास ही स्मरण हो आया कि हमारे देवी-देवताओं को भी पर्वतों पर निवास करना भाता है, जैसे भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं।

चट्टानों को काट कर बनाये मकबरे
चट्टानों को काट कर बनाये मकबरे

नाबातियन जनजाति के लोग यहाँ १०६ ईसवी तक निवास करते रहे। तदनंतर रोमन साम्राज्य ने यहाँ अधिपत्य स्थापित कर लिया। यहाँ किये गए उत्खननों में नाबातियन चिन्हों के साथ साथ रोमन वसाहत के अंश भी प्राप्त हुए हैं। इस संकुल में गिरिजाघरों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि नाबातियन जनजाति के निवासियों ने ईसाई धर्म अपनाया था जो संभवतः प्रथम ईसवी के आरम्भ में हुआ था।

सिक

पेट्रा का सिक
पेट्रा का सिक

कच्चे मार्ग पर पैदल चलते हुए लगभग एक किलोमीटर की दूरी पार करने के पश्चात आप पहाड़ी का ग्रैंड कैनयन सदृश द्विभाजन देखेंगे। ऐसा प्रतीत होता है मानो हमारा मार्ग प्रशस्त करने के लिए पहाड़ी दो भागों में विभक्त हो गयी हो। वास्तव में एक भयंकर भूकंप के फलस्वरूप यह पहाड़ी प्राकृतिक रूप से विभाजित हो गयी है। इसे ध्यानपूर्वक देखने पर आपको आभास होगा कि यदि आप पहाड़ी के दोनों भागों को जोड़ने का प्रयास करें तो ये दोनों मिलकर एक पूर्ण पहाड़ी का रूप ले लेंगे, मानो वे किसी पहेली के दो टुकडें हों।

सिक - चट्टानों के बीच से जाता मार्ग
सिक – चट्टानों के बीच से जाता मार्ग

पहाड़ी के दोनों भागों के मध्य स्थित गली लगभग ८०० मीटर लम्बी है। इस गली की एक अनूठी विशेषता है। पहाड़ी के दोनों भागों के मध्य गली अत्यंत संकरी है तथा पहाड़ी ऊंची है। अतः सूर्य का प्रकाश ऊपर से इस गली में एक संकरी पट्टी के रूप में प्रवेश करता है तथा चट्टानों को प्रकाशित करता है। इसके कारण, भूमि पर खड़े होकर हमें सूर्य तो दृष्टिगोचर होता है किन्तु उसकी उष्मा का आभास नहीं होता। अतः यह प्राकृतिक गलियारा इस धरोहर नगरी का सर्वाधिक शीतल भाग है।

मत्सयाकर में चट्टान
मत्सयाकर में चट्टान

इस क्षेत्र में अनेक प्राकृतिक संरचनाएं हैं जो आश्चर्यचकित कर देती हैं। जैसे एक स्थान पर चट्टान का प्राकृतिक आकार मछली के मुख के समान प्रतीत होता है। यहाँ अनेक मानव-निर्मित शिल्प हैं जिन्हें देखने के पश्चात आप उन्हें अवश्य सराहेंगे। जैसे यहाँ एक वेदिका है जिसकी भित्तियों पर आकृतियाँ उत्कीर्णित हैं। मेरे अनुमान से वे आकृतियाँ उन देवी-देवताओं की हैं जिनकी यहाँ वंदना की जाती थी। यदि मैं उन सभी आकृतियों की पृष्ठभागीय कथाएँ व जानकारियाँ जान पाती तो मुझे संतुष्टि होती। किन्तु सीमित समयावधि के कारण प्रत्येक शिल्प से सम्बंधित जानकारी एकत्र करना संभव नहीं था। मुझे आश्चर्य हुआ कि इतना लोकप्रिय पर्यटन स्थल होते हुए भी इसके विषय में इन्टरनेट में अत्यंत सीमित प्रलेखन उपलब्ध है।

ऐसी मान्यता है कि नाबातियन निवासी इस संकरी प्राकृतिक गली का प्रयोग अपनी सुरक्षा हेतु करते थे। यह संकरी गली नगरी में प्रवेश हेतु एकमात्र मार्ग होने के कारण वे अपनी सुरक्षा की ओर आश्वस्त रहते थे। आक्रमणकारियों के लिए संकरी लम्बी गली के द्वारा नगरी में प्रवेश करना एवं आक्रमण करना आसान नहीं होता था।

पेट्रा जॉर्डन का जल प्रबंधन

जल प्रवाह के साधन
जल प्रवाह के साधन

सिक में विचरण करते समय वहां के एक तत्व पर अवश्य ध्यान दीजिये। आप उन्हें देख आश्चर्यचकित रह जायेंगे। भित्तियों के दोनों ओर जलवाहिकाएं बनी हुई हैं। एक लाल पकी मिट्टी अर्थात् टेराकोटा में निर्मित है जो पेयजल प्राप्त करने के लिए छलनी का कार्य करती है। दूसरी चूना मिट्टी द्वारा निर्मित है। एक मरुस्थल का भाग होते हुए भी यहाँ दीर्घकाल तक मानवी वसाहत की उपस्थिति का श्रेय इस जल प्रबंधन प्रणाली को ही जाता है। इस स्थान के जल प्रबंधन प्रणाली का एक विस्तृत अवलोकन किसी वैज्ञानिक खोज से कम नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि वर्ष भर में यहाँ केवल ६ इंच वर्षा होती थी जिसके जल का प्रबंधन इतनी कुशलता से किया था कि यहाँ के निवासियों को वर्ष भर जल की आपूर्ति हो जाती थी। इससे मुझे प्राचीन भारत के जल प्रबंधन प्रणालियों का स्मरण हो आया, जैसे रानी की वाव तथा सहस्त्रलिंग तलाव

पेट्रा राजकोष

पेट्रा का विश्व प्रसिद्द राजकोष
पेट्रा का विश्व प्रसिद्द राजकोष

राजकोष स्मारक इस भव्य पेट्रा की वास्तविक पहचान है। सिक के दूसरी ओर यह प्रथम स्मारक है। संकरी गली से जाते समय ही आपके समक्ष गुलाबी रंग के कुछ स्तम्भ प्रकट होने लगते हैं। जैसे आप उसके निकट जायेंगे, आप स्वयं को एक भव्य अग्रभाग आपके समक्ष पायेंगे। मेरे लिए यह एक स्वप्न के पूर्ण होने का आभास था। गुलाबी रंग के बलुआ पत्थर में उत्कीर्णित वह संरचना ग्रीक-रोमन शैली के मंदिर सदृश प्रतीत हो रही थी। किन्तु वह केवल अग्रभाग था। स्थानीय बदू अथवा बदूईन अरब जनजाति ने अनुमान लगाया कि उस भव्य अग्रभाग के पीछे अवश्य ही अपार संपत्ति संचित कर रखी गयी होगी। अतः उन्होंने उसे राजकोष कहना आरम्भ कर दिया। वास्तव में वह राजकोष ना होते हुए किसी प्रमुख नाबातियन राजा का मकबरा है। उसी प्रकार अन्य उत्कीर्णित अग्रभाग भी किसी महत्वपूर्ण व्यक्तियों के मकबरे हैं। राजकोष के निकट जाकर आप नीचे अनेक मकबरे देख सकते हैं।

अधिकांश प्राचीन सभ्यताएं मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म में विश्वास रखती हैं तथा आत्माओं को आगामी जीवन में स्थानांतरित करने के अनेक अनुष्ठान करती हैं। इस के विपरीत, नाबातियन जनजाति मृत्यु पश्चात स्वर्ग अथवा नर्क की प्राप्ति में आस्था रखती है। प्रत्येक मकबरे के ऊपर काक पंजो के चिन्ह उत्कीर्णित हैं जो नाबातियन आस्थाओं के अनुसार स्वर्ग अथवा नरक ले जाने का साधन हैं। राजकोष समेत अन्य प्राकृतिक संरचनाओं के अग्रभागों को एलोरा की कैलाश गुफा के समान ऊपर से नीचे की ओर उकेरा गया है। जिस प्रकार हमें अजंता की गुफाओं की निर्माण पद्धति के विषय में आवश्यक जानकारी अपूर्ण गुफाओं से प्राप्त हुई थी, पुरातत्वविदों ने खोज की कि इन अग्रभागों का उत्कीर्णन भी ऊपर से नीचे की ओर किया गया था। इसी कारण उन सभी की दूसरी कथाएं लोकप्रिय हैं, ना कि प्रथम।

वास्तुशिल्पिय विवरण

राजकोष स्मारक के अग्रभाग पर जो उभरे हुए शिल्प हैं उन पर यहाँ निवास किये ५ विभिन्न सभ्यताओं का प्रभाव है।

राजकोष के प्रथम तल के समक्ष ६ ऊंचे स्तम्भ हैं। अग्रभाग के दोनों छोरों में से प्रत्येक छोर पर, दो स्तंभों के मध्य घोड़े की सवारी करते वीर योद्धा का शिल्प है। वे रोम पौराणिकी की देन है। उन दोनों योद्धाओं को कास्त्रो तथा पोलिक्स कहा जाता है जो रोम पौराणिकी पात्र जूस एवं मानवी कन्या के पुत्र हैं। स्तंभों के शीर्ष कोरिंथियन हैं जो इस अग्रभाग पर यूनानी प्रभाव है। दूसरे तल पर मिस्र की देवी एजेस की छवि है।

कोरिंथियन शीर्ष के ऊपर आप ६ पात्र देख सकते हैं जिनके ऊपर ३० गुलाब पुष्प हैं। प्रत्येक तल में ६ स्तम्भ हैं। जिसका अर्थ है कि अग्रभाग में कुल १२ स्तम्भ हैं। दांतों के समान चिन्ह उत्कीर्णित हैं जिनकी कुल संख्या ३६५ है। इन संखाओं को देख क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता कि पूर्ण अंग्रेजी वार्षिक पञ्चांग उकेर दिया हो?

१० वर्ष पूर्व तक पर्यटकों को इस संरचना के भीतर जाने की अनुमति थी। किन्तु जब से इस अग्रभाग के नीचे समाधियाँ मिली हैं पर्यटकों का भीतर जाना निषिद्ध कर दिया गया है।

राजकोष की एक अनूठी विशेषता है कि इस सम्पूर्ण धरोहर स्थल के विभिन्न स्मारकों के अग्रभागों में राजकोष का अग्रभाग सर्वोत्तम रूप से संरक्षित है। इसके पृष्ठभाग में एक साधारण वैज्ञानिक कारण है। सिक से आती हुई तेज गति की वायु राजकोष के आसपास की भित्तियों पर आघात करती है किन्तु अग्रभाग पर नहीं। इसके कारण वातावरण की तीव्र परिस्थितियों से अग्रभाग का प्राकृतिक रूप से संरक्षण होता रहता है।

गुफाएं

पेट्रा की गुफाएं
पेट्रा की गुफाएं

यह विडम्बना है कि अप्रतिम रूप से अलंकृत सभी अग्रभाग वास्तव में मृत व्यक्तियों की समाधियों के अग्रभाग हैं। वहीं पहाड़ियों के अग्रभाग पर दृष्टिगोचर छोटे छोटे छिद्र वास्तव में गुफाएं है जहां किसी काल में लोग रहते थे। यह किसी व्यंग से कम नहीं कि विशाल अलंकृत व सज्जित स्थल मृत व्यक्तियों के लिए है जबकि पहाड़ियों पर स्थित केवल छिद्र-मात्र उन्ही लोगों के निवासस्थान थे जब वे जीवित थे।

मकबरे और रहने के लिए गुफाएं
मकबरे और रहने के लिए गुफाएं

१९८५ तक यहाँ बदू अथवा बदूईन जैसे स्थानीय जनजातियों की वसाहत थी। इसके पश्चात यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की श्रेणी में स्थान प्राप्त करने के लिए उन्हें यहाँ से बाहर निकाल दिया गया था। आज भी आपको यहाँ ऐसे लोग मिल जायेंगे जो प्रतिपादित करते हैं कि वे किसी समय इन गुफाओं में रहते थे। कुछ पर्यटन गाइड आपको इन गुफाओं में रहने का अवसर प्रदान कर सकते हैं किन्तु अधिकारिक स्तर पर इसकी अनुमति नहीं है।

बदू अथवा बदूईन

बेदूइन लोगों के तम्बू
बेदूइन लोगों के तम्बू

यहाँ निवास करती बदूईन जनजाति को जब यहाँ से अन्यत्र स्थानांतरित किया गया था तब उन्होंने एक चतुराई दिखाई। तब उन्होंने अधिकारियों से समझौता करवा लिया कि इस धरोहर स्थल के भीतर पर्यटकों को केवल वे ही पर्यटन गाइड सेवा मुहैया करवाएंगे। इसी कारण आपको इस जनजाति के लोग सर्वत्र दृष्टिगोचर होंगे, कुछ ताँगा हाँकते हुए तो कुछ ऊँट अथवा खच्चर पर सवारी उपलब्ध कराते हुए। वहीं इस जनजाति के कुछ सदस्य तम्बू गाड़कर, उनके भीतर जॉर्डन की स्मारिकायें बिक्री करते हैं। दक्षिणी भाग में एक अच्छा जलपानगृह भी है। इसके अतिरिक्त भी कुछ छोटी छोटी दुकानें यहाँ-वहाँ बिखरी हुई हैं किन्तु पर्यटकों की सुविधाओं के नाम पर उनमें अधिक कुछ उपलब्ध नहीं है। यहाँ तक कि हमारे गाइड ने हमें सावधान किया कि चूंकि यहाँ पर्यटन सुविधाएं उपलब्ध कराने में बदू जनजाति के सदस्यों का एकाधिकार है, अतः उनके द्वारा मुहैया कराई गयी सेवा का स्तर अत्यंत साधारण तथा महँगा है।

आप ही कल्पना कीजिए, प्रवेश शुल्क के नाम पर एक भारी मूल्य चुकाने के पश्चात इस भुतहा नगरी में विभिन्न साधनों पर सवारी की सुविधा प्राप्त करने के लिए भी उतना ही भारी मूल्य देना पड़ता है। मुझे वे अत्यंत अशिष्ट भी प्रतीत हुए। एक खच्चर का मालिक मुझसे इसलिए कुपित हो गया क्योंकि मैंने पैदल चलने का निश्चय किया, ना कि उसके खच्चर को भाड़े पर लेकर उसकी सवारी करना। उसने अपने सहयोगियों को एकत्र कर मुझे धमकाने का भी प्रयत्न किया। यह सब लगभग संध्या के समय हुआ जब वहां अधिक पर्यटक उपस्थित नहीं थे।

नाट्यगृह

रोमन नाट्यगृह
रोमन नाट्यगृह

यहाँ एक नाट्यगृह के अवशेष हैं। लोकप्रिय रोमन नाट्यगृहों से समानता के कारण सामान्यतः इसे भी रोमन नाट्यगृह कहा जाता है। यह एक मिथ्या है। यह नाट्यगृह भी नाबातियक काल से सम्बन्ध रखता है। इस नाट्यगृह का सर्वाधिक विशेष तत्व यह है कि इसे भी चट्टान को काटकर निर्मित किया गया है। क्या आप ऐसे ही किसी अन्य नाट्यगृह के विषय में जानते हैं?

दुर्भाग्य से यह नाट्यगृह अत्यंत भंगित अवस्था में है। उसे देख यह कल्पना करना कठिन है कि किसी काल में यह ६०० दर्शकों की क्षमता का एक उत्कृष्ट नाट्यगृह था।

दुशरा का मंदिर

दुशारा का मंदिर
दुशारा का मंदिर

यह यदि भंगित अवस्था में नहीं होता तो इस धरोहर स्थल का विशालतम अग्रभाग अथवा संरचना होता। दुर्भाग्यवश अब जो हम देखते हैं वह पूर्णतः भग्नावशेष हैं। पुरातत्ववेत्ता इसकी तुलना जेराश के आर्टेमिस मंदिर अथवा अम्मान गढ़ के हरक्युलिस मंदिर से करते हैं। यहाँ तक कि वे इसे उनसे भी विशाल आंकते हैं।

राजाओं की समाधि/छत्री

पेट्रा के राजसी मकबरे
पेट्रा के राजसी मकबरे

इस धरोहर नगरी में, अल खजानेह अर्थात राजकोष से आगे जाते हुए दाहिनी ओर देखें तो पहाड़ी की चोटी पर अनेक राजसी समाधियाँ हैं जिनके अग्रभाग भी राजकोष के अग्रभाग के समान हैं। इस पहाड़ी के आधार तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मुझे आगे इसी प्रकार की सीढ़ियाँ मठ पहुँचने के लिए भी चढ़नी थीं। मुझमें एक स्थान पर ही इस अभियान की पूर्ति करने की क्षमता एवं इच्छा शेष थी। अतः मैंने यहाँ की सीढ़ियाँ ना चढ़ते हुए मठ की सीढ़ियाँ चढ़ने का निश्चय किया। दूर से यह संरचना भव्य प्रतीत हो रही थी। इस समाधि संरचना के भीतर स्थित अभिलेख इन समाधियों की कालावधि दर्शाते हैं। साथ ही उन राजाओं का उल्लेख है जिन्हें यहाँ समाधिस्त किया गया था। उनमें से अधिकाँश नाबातियन राजा थे।

यहाँ स्थित अनेक संरचनाओं ने अपने आकार अथवा रंग पर आधारित नामों को प्राप्त किया है। उदहारण के लिए, रेशम के रंग की इमारत को रेशम समाधी अथवा छत्री कहते हैं। कोरिंथियन स्तंभों से युक्त संरचना को कोरिंथियन कहते हैं। महल के समान प्रतीत होती संरचना को महल कहा जाता है। किन्तु इन नामों का इन संरचनाओं के मूल नाम अथवा इनके उद्देश्य से नाममात्र भी सम्बन्ध नहीं है।

पेट्रा मठ की सैर

पेट्रा का प्रसिद्द मठ
पेट्रा का प्रसिद्द मठ

मठ भी एक उत्कीर्णित अग्रभाग है। किसी काल में यह एक श्रद्धा स्थल रहा होगा। किन्तु वह वर्तमान में जिस स्थिति में विद्यमान है, इसका भीतरी भाग अत्यंत साधारण है तथा अग्रभाग सुन्दरता से उत्कीर्णित है। इस मठ तक पहुँचने के लिए पहाड़ी की तलहटी से लगभग ८०० सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है। मार्ग में आपकी भेंट कुछ तम्बुओं के भीतर बैठे बदूईन जनजाति के स्थानिकों से होगी। उनमें से कुछ संगीत वाद्य बजाते दृष्टिगोचर होंगे तो कुछ चाय परोसते, किन्तु उनमें से अधिकतर लोग आभूषण एवं लाल व काले वस्त्र बिक्री करते दिखेंगे। मैंने देखा, अधिकतर तम्बुओं में स्त्रियाँ ही सभी कार्यकलापों का प्रबंधन कर रही थीं जबकि पुरुष पर्यटकों को खच्चर की सवारी करा रहे थे।

शैल आकृतियों की जटिलता के अतिरिक्त उनके रंग भी आपको आकर्षित करेंगे। चट्टानों के चटक पीले एवं गुलाबी रंग आपको स्तब्ध कर देंगे। इन्हें देख मेरी प्रथम प्रतिक्रिया थी कि ये रंग शिल्पकारों ने प्रदान किये हैं। किन्तु मैंने जाना कि यहाँ की बलुआ चट्टानों के विभिन्न परतों के भिन्न भिन्न रंग हैं। मैंने अनेकों गुफाओं के भीतर झांककर देखा। सभी के भीतर इन परतों के भिन्न भिन्न रंगों ने सुन्दर आकृतियाँ बनाई हुई थीं। इसके विषय में सही वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करने की मेरी तीव्र अभिलाषा थी। एक प्रशिक्षित भूवैज्ञानिक की कमी मुझे अत्यंत खल रही थी।

मठ के शीर्ष पर कलश
मठ के शीर्ष पर कलश

मठ के ठीक समक्ष एक बदूईन द्वारा चालित जलपान गृह है। पैदल चलने की थकान मिटाने के लिए यहाँ छोटा सा विश्राम एवं थोड़ी चाय अथवा कॉफी आपको पुनः उर्जा से भर देगी। यहाँ से आप मठ की सममितीय संरचना एवं सुन्दरता का आनंद भी उठा सकते हैं। यहां मून नामक एक बदूईन युवक मठ के एक भाग से दूसरे भाग तक छलांग लगा रहा था। उसे देख हम सब अचम्भे में पड़ गए थे। उसके साहस को सराह रहे थे। वह हमारी स्मृति में एक साहसी नायक के रूप में अमर हो सकता था किन्तु हमारी वापिसी के समय उसके खच्चर को भाड़े पर ना लेने के लिए उसने हमें बहुत उत्पीड़ित किया। हमारे मस्तिष्क पर पड़ी उसकी साहसी छाप पर उसकी अशिष्टता भारी पड़ गयी।

लघु पेट्रा

लघु पेट्रा
लघु पेट्रा

लघु पेट्रा इस पेट्रा की उत्तरी दिशा में, लगभग ८ किलोमीटर दूर स्थित है। यह एक लघु उपनगर प्रतीत होता है। जैसा कि इसका नाम है, संरचना की दृष्टी से लघु पेट्रा मूल पेट्रा के ही समान है किन्तु आकार में अपेक्षाकृत अधिक लघु है। मेरे लिए इस लघु पेट्रा के मायने अधिक सिद्ध हुए। कदाचित पेट्रा के विषय में इतना कुछ लिखा व कहा गया है कि कुछ पर्यटकों के लिए यह “नाम बड़े पर दर्शन छोटे” की कहावत सिद्ध करे। किन्तु मैं इसे देख प्रसन्नता से उछल पड़ी। इसका अग्रभाग भी उसी प्रकार उकेरा गया है जैसा कि समाधि अथवा छत्री। यहाँ भी अजंता की गुफाओं के समान गुफाएं हैं। शिलाओं के शीर्ष को पीठिका के रूप में उकेरा गया है। इसे देख ऐसा आभास होता है कि किसी काल में यहाँ प्राचीन सभ्यता जीवित थी। पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि यहाँ व्यापारी गण ठहरते थे क्योंकि यह सिल्क रूट व्यापारिक मार्ग पर स्थित है। हम जानते ही हैं कि नाबातियन व्यवसाय से व्यापारी थे।

लघु पेट्रा की सिक
लघु पेट्रा की सिक

लघु पेट्रा को सिक अल- बरीद भी कहा जाता है। यहाँ भी घाटी के समान शिलाओं के मध्य विभाजन है। किन्तु यह उतना ऊंचा तथा संकरा नहीं हैं जितना पेट्रा का सिक था। दोनों ओर की चट्टानों को उकेरा गया है। जहाँ-तहाँ आपके समक्ष उत्कीर्णित अग्रभाग प्रकट हो जायेंगे। कालांतर में मुझे ज्ञात हुआ कि यहाँ कुछ गुफाओं में भित्तिचित्र भी हैं, किन्तु उस समय कदाचित हमारे गाइड को, इस विषय में हमें जानकारी देना स्मरण नहीं रहा। इस प्रकार मैंने नाबातियन काल के कुछ अप्रतिम भित्तिचित्रों के अवलोकन का सुअवसर खो दिया। लघु पेट्रा भी एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

बैठने के लिए बनी गुफाएं
बैठने के लिए बनी गुफाएं

लघु पेट्रा दर्शन के लिए प्रवेश शुल्क नहीं है। यह पर्यटकों के लिए दिन के समय खुला रहता है। यहाँ तक आप पहाड़ी पर पर्वतारोहण करते हुए भी पहुँच सकते हैं किन्तु गाइड की अनुपस्थिति में ऐसा करना उचित नहीं है।

यदि मुझे जॉर्डन भ्रमण का अवसर पुनः प्राप्त हो तो पेट्रा में कुछ अधिक समय व्यतीत करने में अत्यंत आनंद होगा। आप जब भी पेट्रा भ्रमण पर आयें तो लघु पेट्रा अवश्य देखें।

पेट्रा जॉर्डन के भ्रमण हेतु कुछ व्यवहारिक सुझाव

  • अपने साथ पेयजल अवश्य रखें।
  • पैदल चलने के लिए उपयुक्त जूते पहनें
  • आप अपनी शौचालय सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिए टिकट खिड़की के समीप स्थित शौचालय का प्रयोग अवश्य करें क्योंकि दूसरा शौचालय अत्यंत दूरी पर प्राप्त होगा।
  • प्रातः शीघ्रतिशीघ्र यहाँ आने का प्रयास करें। वातावरण की उष्णता कम रहती है तथा छायाचित्र लेने के लिए भी पर्याप्त प्रकाश उपलब्ध रहता है।
  • दोपहर के पश्चात यहाँ पर्यटकों की संख्या कम होती है। उस समय यहाँ के स्थानीय लोग आपसे अशिष्ट व्यवहार कर सकते हैं।
  • संभव हो तो यहाँ समूह में आने का प्रयास करें।
  • यहाँ आने से पूर्व, विश्व धरोहर स्थल के भीतर अधिक महत्वपूर्ण स्थानों की जानकारी प्राप्त कर अपनी प्राथमिकता पूर्वनियोजित कर लें, जैसे किन स्थलों का अवलोकन अति आवश्यक है, किन स्थलों को देखने की आवश्यकता नहीं है तथा कौन से स्थल, उर्जा शेष रहने पर देखे जा सकते हैं।
  • अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार पैदल, खच्चर की सवारी तथा घोड़ागाड़ी की सवारी का चुनाव करें। सम्पूर्ण मार्ग में आप इनका सम्मिश्रण भी कर सकते हैं।
  • स्थानिक बदूईन आपको वस्तुएं क्रय करने के लिए अथवा खच्चर व घोड़ागाड़ी सवारी करने के लिए बाध्य करते हुए असभ्य व्यवहार कर सकते हैं। आप उन्हें नम्रता से नकार दें।
  • मैं यहाँ आने से पूर्व इस धरोहर स्थल के विषय में विश्वसनीय सूत्रों से विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं कर पायी थी। उस स्थिति में आप गाइड की सेवायें लें जो आपको इन संरचनाओं की वास्तु के विषय में सूक्ष्मता से जानकारी प्रदान करेंगे। साथ ही वे इसके विभिन्न युगों से सम्बंधित कथाएं भी सुनायेंगे।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

2 COMMENTS

  1. पेट्रा जॉर्डन – विश्व का अनोखा अचम्भा यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल – हमेशा की तरह पेट्रा जार्डन का बहुत ही खूबसूरत चित्रण किया, पढ़ते पढ़ते दिमाग मे यही चलता रहा कि ये लोग अपना जीवनयापन कैसे करते होंगे, आज हम जो सुविधाओं का उपभोग कर रहे है, उसे सोचकर तो हम उनकी दिनचर्या की कल्पना भी नही कर सकते जबकि वहाँ हरियाली भी नही दिख रही है हालांकि चित्र में तो बहुत ही सुंदर दिख रहा है। एक अलग ही नई जगह की सैर कराने के लिए आपका धन्यवाद। 🙏🙏

  2. मैंने पेट्रा पे बहुत से vlogs देखे लेकिन संतुष्ट नहीं हुआ, ये blog पढ़के संतुष्टि मिली। धन्यवाद 🙏

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