जब चंचल वर्षा विनाश करने पर उद्धत हो जाती है, जिसके कारण जब असम जलमग्न हो जाता है, मैं असहाय सी, यहाँ के स्थानिकों की स्थिति पर विचार करने पर विवश हो जाती हूँ। वहीं शीत ऋतु का वातावरण अत्यंत अनुकूल रहता है। शीत ऋतु में यहाँ साधारणतः किसी भी प्रकार के प्राकृतिक विपदा की आशंका लगभग नगण्य रहती है। इस लेख की रचना करते समय मेरी स्मृतियाँ मुझे मेरे भूतकाल की ओर ले जा रही हैं जब मुझे असम के इस मनोरम पोबितोरा वन्यप्राणी अभयारण्य में विचरण करने का अवसर प्राप्त हुआ था, जो मध्य से बहती तेजस्वी ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा पोषित होती है।
पोबितोरा वन्यप्राणी अभयारण्य – भारतीय गेंडों का प्राकृतिक आवास
गुवाहाटी विमानतल पर उतरने के पश्चात पोबितोरा वन्यप्राणी अभयारण्य पहुँचने के लिए हमने एक वाहन का प्रबंध किया। वहाँ पहुँचने के लिए हमें लगभग तीन घंटों का समय लगा। असम के मोरीगांव जिले में स्थित यह अभयारण्य ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। यद्यपि सम्पूर्ण असम को भारतीय गेंडों का प्राकृतिक आवास माना जाता है, तथापि पोबितोरा उन कुछ क्षेत्रों में से एक है जहाँ गेंडों की संख्या सर्वाधिक है।
पोबितोरा पहुँचकर हमने गाँव में स्थित एक सर्वानुकूल विश्रामगृह में अपना पड़ाव डाला जो अभयारण्य के प्रवेशद्वार के निकट स्थित था। साधारणतः पर्यटक पोबितोरा अभयारण्य का त्वरित अवलोकन कर उसी दिवस काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की ओर कूच कर जाते हैं। किन्तु हम इस अभयारण्य का पूर्ण आनंद उठाते हुए मंद गति से विस्तृत अवलोकन करना चाहते थे। केवल अभयारण्य ही नहीं, अपितु देहाती परिवेश में निसंकोच रहते हुए विशाल वृक्षों एवं सरसों के खेतों से घिरे इस ग्रामीण रिसोर्ट का भी भरपूर्ण आनंद उठाना चाहते थे। इसी कारण हमने यहाँ कुछ दिवस व्यतीत करने का निश्चय किया।
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असम के पोबितोरा राष्ट्रीय उद्यान का अवलोकन
यदि आप किसी अन्य राज्य से असम यात्रा पर आ रहे हैं तो मेरा सुझाव है कि आप पोबितारा वन्यप्राणी अभयारण्य का अवलोकन सप्ताहांत में ना करें, अपितु मध्य सप्ताह के दिवसों में ही करें। सप्ताहांत में यह अभयारण्य बहुधा स्थानीय दर्शनार्थियों से भरा रहता है।
जब तक हम अपने रिसोर्ट पहुँचे, मध्यान्ह हो चुका था। हमने असम के भिन्न भिन्न व्यंजनों से भरी थाली का भरपूर्ण आस्वाद लिया तथा छज्जे पर दो कुर्सियाँ डालकर बैठ गए। वहाँ से समक्ष स्थित अप्रतिम उद्यान के उत्तम परिदृश्यों का आनंद उठाने लगे।
देखते देखते सूर्यास्त का समय आ गया था। कच्चे पथ पर धूल उड़ाती कुछ गौमाताएं एवं बकरियां अपने अपने आवासों की ओर प्रस्थान कर रही थीं। अन्धकार छाते ही चारों ओर का परिदृश्य पूर्णतः परिवर्तित हो गया था। प्रकृति का एक अनोखा रूप समक्ष उभर रहा था। सूर्य के तेजस्वी प्रकाश का स्थान अब दूर टिमटिमाते प्रकाश ने ले लिया था। चारों ओर से उठती अपरिष्कृत ध्वनी कानों में गुंजायमान हो रही थी। चारों ओर झींगुरों का कोलाहल था। एक ओर कहीं दूर किसी एकांत खलिहान में बैठा उल्लू चीख चीख कर अपनी उपस्थिति दर्शा रहा था। मैं पूर्ण एकाग्रता से एक ऐसे वातावरण का आनंद उठा रही थी जो नगरी परिवेश में दुर्लभ होता है।
हमारे विश्राम गृह के बाहर संकरी गली के अंत में एक दुकान थी। हमने निश्चय किया कि उस दुकान में कुछ क्षण व्यतीत किया जाए। लेकिन जैसे ही हम वहाँ जाने के लिए विश्राम गृह से बाहर निकले, विश्राम गृह का एक कर्मचारी पूर्ण आवेग से हमारी ओर दौड़ा। वह आवेशपूर्ण कुछ संकेत भी कर रहा था। हमारे निकट पहुँचते ही उसने हमें विश्राम गृह से बाहर जाने से रोका तथा अन्धकार में बाहर विचरण करने पर उत्पन्न संकटों के विषय में आगाह किया। उन्होंने हमें बताया कि रात्रि में जंगली भैंसें तथा गेंडे विचरण करते हुए वन के बाहर तक आ जाते हैं। ताजी हरी दूब को ढूँढते हुए वे मानवी आवासों तक पहुँच जाते हैं। गेंडे यदि आक्रामक हो जाएँ तो हमारे लिए संकट उत्पन्न कर सकते हैं। जंगली भैसों ने तो अब तक अनेक गाँववासियों पर आक्रमण कर उनके प्राण ले लिए हैं। इसलिए वह हमें अरक्षित रूप से बाहर जाने नहीं देना चाहता था। वह लालटेन के प्रकाश में हमें दुकान तक ले गया तथा हमारे लिए दुकान भी खोल दी।
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गाँव में पदभ्रमण
दूसरे दिवस हम प्रातः शीघ्र उठ गए थे। आसपास के परिदृश्यों का अनुभव जो लेना था। हमारा प्रयास सफल भी हुआ। चित्ताकर्षक परिदृश्यों का अनुभव हमें भावविभोर कर रहा था। निर्मल वायु, प्रातःकालीन सूर्य, सरसों के विस्तृत खेत आदि सब ग्रामीण परिवेश में हमारे पदभ्रमण को अद्वितीय बना रहे थे।
घुमक्कड़ी करते करते हम दूर तक आ गए थे। थकान एवं भूख अपने रंग दिखा रहे थे। अंततः हम अपने विश्राम गृह की ओर वापिस मुड़े। पहुँच कर जलपान किया। कुछ घंटे विश्राम कर, दोपहर के पश्चात सफारी के लिए प्रस्थान किया। सप्ताहांत नहीं होने के कारण पर्यटकों की संख्या सीमित थी।
हमारा सौभाग्य था कि हमारा जीप चालक ना केवल एक प्रशिक्षित वाहन चालक था, अपितु उसे अभयारण्य एवं वन्यप्राणियों के विषय में गहन ज्ञान भी था। अवसर पाते ही मैंने उससे पर्याप्त जानकारी एकत्र की। यह अभयारण्य ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। इस अभयारण्य की पारिस्थितिकी मूलतः घास के मैदानों, आर्द्रभूमि के क्षेत्रों तथा भिन्न भिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों द्वारा निर्मित है।
भारतीय गेंडे
यह अभयारण्य पर्यटकों के लिए सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। प्रवेश के लिए टिकट वहाँ पहुँचकर लिया जा सकता है। इन्टरनेट द्वारा पूर्व आरक्षण की आवश्यकता नहीं है। किन्तु उच्च पर्यटन काल में समय से पूर्व टिकट क्रय कर अपना स्थान आरक्षित करना उचित होगा।
गेंडों को निकट से देखने का अनुभव प्राप्त करना हो तो आप हाथी पर बैठकर सफारी कर सकते हैं। एक ओर जहाँ सफारी की जीपें सड़क पर ही रहती हैं, हाथी सड़क से नीचे उतरकर ऊँचे ऊँचे घास को रोंदते हुए वन के भीतरी क्षेत्रों तक पहुँच जाते हैं। इससे पर्यटकों को भीतरी क्षेत्रों में विचरण करते गेंडों को समीप से निहारने का अवसर प्राप्त हो जाता है।
हमने जीप द्वारा सफारी करने का निश्चय किया। असम के अन्य राष्ट्रीय उद्यानों के विपरीत यहाँ हमें सशस्त्र परिदर्शक प्रदान नहीं किया गया था। इसलिए हमें किंचित भय प्रतीत हो रहा था क्योंकि गेंडों द्वारा सफारी जीपों पर आक्रमण की अनेक घटनाएँ यहाँ भी देखी गयी हैं। ऐसी परिस्थिति में सफारी परिदर्शक अपनी बन्दूक से आकाश में गोली दागते हैं जिससे वन्यप्राणी भयभीत होकर दूर भाग जाते हैं।
इन सभी विचारों को मस्तिष्क से दूर करते हुए हमने सफारी पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। उबड़-खाबड़, कच्चे व संकरे मार्गों पर वाहन चलाते हुए हमारा वाहन चालक हमें वन के भीतरी क्षेत्र में ले गया।
जीप सफारी
इससे पूर्व हम भारत के अनेक राष्ट्रीय उद्यानों में विस्तृत रूप से भ्रमण कर चुके थे। इसलिए हमें वन के भीतर पाले जाने वाले सभी नियमों की पूर्ण जानकारी थी। उन सभी नियमों का पालन करते हुए हमने केवल अपने नेत्र एवं कान सक्रिय रखे तथा वन में वन्य प्राणियों को ढूँढने लगे।
एक वृक्ष के शीर्ष पर एक कलगीदार परभक्षी चील(Crested Serpant Eagle) बैठी हुई थी। वह सक्रिय मुद्रा में बैठी अपनी भेदक दृष्टि किसी शिकार पर गड़ाये हुए थी। कदाचित आक्रमण की योजना बना रही थी। अतिदक्षता का पालन करते हुए मैंने चुपके से अपना कैमरा उठाया। किन्तु उसे मेरी चाल का पूर्वाभास हो गया तथा त्वरित गति से मेरे नेत्रों से ओझल हो गयी।
कुछ क्षणों पश्चात हमारी जीप सुन्दर घास के मैदान के मध्य से जाने लगी। आगे जाकर यह मैदानी क्षेत्र संकुचित होते हुए संकरे मार्ग में परिवर्तित हो गया। इस मार्ग द्वारा हमने सघन वन के भीतर प्रवेश किया। मार्ग में हमने अनेक हिरणों को यहाँ-वहाँ कुलाँचे मारते देखा।
इस अभयारण्य के भीतर अनेक जल-स्त्रोत हैं जहाँ पशु-पक्षी अपनी तृष्णा शांत करने के लिए आते हैं। कुछ सरोवरों पर जंगली भैंसों ने अपना पूर्ण अधिपत्य स्थापित कर रखा था। उनके आक्रामक रौद्र रूप से भयभीत होकर वन के अन्य प्राणी उनसे दूरी बनाए रखते हैं।
हम अभयारण्य की सुन्दरता एवं वन्य प्राणियों को ढूँढने में मग्न हो गए थे। अकस्मात् ही हमारे वाहन चालक ने वाहन को रोका। समीप ही कोई वन्य प्राणी उपस्थित था। हमने अपनी दृष्टि चारों ओर दौड़ाई। हमारे समक्ष विशालकाय शक्तिशाली एकल श्रृंगी गेंडा आकर खड़ा हो गया।
वन्यप्राणी
पोबितोरा वन्यप्राणी अभयारण्य में गेंडों के अतिरिक्त जंगली सूअर, जंगली भैंसे, कांकड़(Barking Deer), भारतीय तेंदुए, सुनहरा गीदड़ जैसे अनेक वन्य प्राणी भी निवास करते हैं। भोजन एवं प्राकृतिक आवास द्वारा घास के ये विस्तृत मैदानी क्षेत्र उनका पोषण करते हैं। हमें जानकारी दी गयी कि पोबितोरा राष्ट्रीय उद्यान में गेंडों की संख्या अत्यधिक हो जाने के कारण कुछ गेंडों को असम के ही मानस राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया गया है।
विस्तृत घास के मैदानों, असंख्य जलस्त्रोतों तथा ऊँचे ऊँचे वृक्षों से अलंकृत पोबितोरा राष्ट्रीय उद्यान हमारे नेत्रों एवं हृदय को सुख प्रदान कर रहा था। किंचित दूर से ही सही, गेंडों के दर्शन करने के पश्चात हमारी अतृप्ति बढ़ने लगी थी। पोबितोरा राष्ट्रीय उद्यान में साम्राज्य तो गेंडों का ही है। अतः इन्हें निकट से देखने की अभिलाषा बलवत्तर होती जा रही थी।
अकस्मात् ही हमारे समक्ष एक विशालकाय गेंडा प्रकट हो गया। वह नम भूमि को सींग से खोदते हुए कुछ ढूंढ रहा था। हमारी जीप उसके निकट जाने लगी। चूँकि वह अपने क्रियाकलाप में व्यस्त था, कदाचित उसे हमारी उपस्थिति का भान नहीं था। हमने उसके अनेक चित्र लिये। हमारा वाहन चालाक सावधान था। उसने वाहन को गेंडे से किंचित दूर ही रोका हुआ था। उसे पूर्ण बोध था कि किसी भी समय वह हम पर आक्रमण कर सकता था।
पोबितोरा वन्यप्राणी अभयारण्य में पक्षी दर्शन
पोबितोरा वन्यप्राणी अभयारण्य इस तथ्य पर गौरवान्वित होता है कि उसमें सर्वाधिक संख्या में गेंडे निर्बाध विचरण करते हैं। इस अभयारण्य में पक्षियों की भी अनेक प्रजातियाँ पायी जाती हैं। हम भी भिन्न भिन्न प्रकार के पक्षियों का दर्शन कर आत्मविभोर हो रहे थे। भूरी सिल्ही (Whisteling Duck) से लेकर जलकाक (Cormorant), हरियल(Green Pigeon), ढेलहरा तोता(Parakeet) आदि तक हमने अनेक पक्षियों के दर्शन किये। आप नाम लीजिये, वह पक्षी वहाँ दृष्टिगोचर हो रहा था। वह भी बड़ी संख्या में!
संध्या होते ही हम अपने विश्राम गृह पहुंचे तथा विश्राम करने लगे। हमारे विश्राम गृह में एक पक्षी वेधशाला भी थी जहाँ हमने भरपूर समय व्यतीत किया। भिन्न भिन्न पक्षियों के चित्र लिए। उन्हें आकर्षित करने के लिए वृक्षों की शाखाओं पर फल एवं अन्य खाद्य वस्तुएँ राखी हुई थीं। पके केले पर चोंच मारते तीन आकर्षक धनेश(Hornbill) देखे।
आज पोबितोरा में हमारी अंतिम रात्रि थी। रात्रि अत्यंत शीतल थी। हमने अपना अपना सामान बंधा तथा शीघ्र ही निद्रा की गोद में समा गए। जैसे ही मध्य रात्रि हुई, विश्राम गृह के पृष्ठभाग से एक उग्र तथा विचित्र स्वर सुनाई पड़ा। मैं हड़बड़ाकर कर उठी। उस उग्र स्वर से मेरा रोम रोम काँप उठा था। अंततः यह स्वर किसका थी, हम निश्चित नहीं कर पा रहे थे। खिड़की के बाहर झाँककर देखा तो बाहर घुप्प अन्धकार था। केवल एक व्यक्ति ऊँचे स्वर में चिल्ला रहा था। कुछ क्षणों पश्चात यह आभास हुआ कि वह कोलाहल करते हुए किसी प्राणी को परिसर से दूर भगाने का प्रयत्न कर रहा था जो अन्धकार में परिसर के निकट आ गया था। वह व्यक्ति उस प्राणी पर कंदील का प्रकाश डालते हुए उसे डराने का भी प्रयत्न कर रहा था।
गेंडे का रात्रि भ्रमण
दूसरे दिवस प्रातः हमारी भेंट विश्राम गृह के स्वामी से हुई। हमारे भय पर स्मित हास्य करते हुए उसने हमें जानकारी दी कि गत रात्रि एक गेंडा विश्राम गृह के निकट आ गया था। कदाचित उसे यहाँ के स्वादिष्ट घास ने आकर्षित किया था। उन्होंने हमें बताया कि वे उनके नियमित भेंटकर्ता हैं। इसलिए रिसोर्ट के कर्मचारी सदा सावधान रहते हैं, विशेषतः रात्रि के समय। विश्राम गृह परिसर में दो श्वान भी हैं जो अनवरत रखवाली करते रहते हैं। वन्य प्राणियों के परिसर के निकट आते ही वे कर्मचारियों को आगाह कर देते हैं।
साधारणतः जंगली भैसे कोलाहल एवं कंदील का प्रकाश डालने पर भयभीत होकर भाग जाते हैं। किन्तु गेंडों पर इन उपायों का तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ता है। वह तृप्ति होने तक घास चरते रहता है तथा स्वेच्छा से ही वापिस जाता है। किसी भी प्रकार का शोर अथवा प्रकाश उसे भयभीत नहीं करता है।
इस रोचक घटना के पश्चात हमने विश्राम गृह के कर्मचारियों को उनकी सेवा के लिए धन्यवाद दिया तथा उनसे विदा ली। इसके पश्चात पुनः एक नवीन अभियान के लिए काजीरंगा की ओर कूच कर गए।
यह कोयल बर्मन द्वारा रचिर एक अतिथि संस्करण है।
अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे
We had also been to Pobitra by luck long back. Got to see numerous Rhinos and wild buffaloes. When we got back , we were shocked to know from our learned hotel manager that the place is also (in)famous for black magic! People known to vanish a person sitting on chair right in front of you! Any ways we had a pleasant tour there.