प्राचीन बंगाल में व्यापार- एक चर्चा अनीता बोस जी से

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अनुराधा गोयल: नमस्ते! डीटूर्स में आपका मनःपूर्वक स्वागत है। आज डीटूर्स के इस संस्करण में हमारे साथ चर्चा करने के लिए उपस्थित हैं, कोलकाता से श्रीमती अनीता बोस जी। अनीताजी एक लेखिका हैं, एक कलाकार हैं, एक स्वतन्त्र शोधकर्ता हैं, बैंकाक के राष्ट्रीय संग्रहालय में परिदर्शिका रह चुकी हैं तथा ग्लोबल रामायण इंसाइक्लोपीडिया प्रकल्प की संयोजक हैं। उनके द्वारा लिखित दो पुस्तकें हैं, “Ramayana: Footprints in South-East Asian Culture and Heritage” तथा “Patachitra of Odisha and Jagannath Culture”। आज हम अनीताजी से बंगाल के प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों पर चर्चा करेंगे।

नमस्ते अनीताजी! डीटूर्स में आपका हृदयपूर्वक स्वागत है।

अनीता बोस: नमस्ते अनुराधाजी! डीटूर्स में मुझे आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद।

पॉडकास्ट

प्राचीन बंगाल की यात्रा कराती इस चर्चा को यहाँ सुनिए।

प्राचीन बंगाल- डीटूर्स में अनीता बोस से एक चर्चा

अनुराधा: अनीताजी, आईये इस चर्चा का आरंभ हम उस स्थान से करते हैं, जहां बंगाल की प्राचीनतम जीवंत धरोहर उपस्थित है। बंगाल का प्राचीनतम ज्ञात स्वरूप क्या है?

अनीता: प्राचीन बंगाल को हम साधारणतः औपनिवेशिक बंगाल, ब्रिटिश बंगाल अथवा मुगल बंगाल के रूप में जानते हैं, किन्तु बंगाल का इतिहास इन कालखण्डों से कहीं अधिक प्राचीन है। यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने अपनी यात्रा संस्मरण पुस्तक इंडिका में प्राचीन बंगाल का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्वी एशिया के अनेक समुद्री यात्रा संस्मरणों में भी इसका निरंतर उल्लेख मिलता है। अतः बंगाल का इतिहास हमारी जानकारी से भी कहीं अधिक पूर्व आरम्भ हुआ था। ऐतिहासिक आलेखों के अनुसार इसका आरम्भ ईसापूर्व हुआ था। यह अत्यंत प्राचीन तथा अतिसंपन्न धरोहर स्थल है। पूर्व में इसे बंगहृदय कहते थे जिसका अर्थ बंगाल हृदय है, अर्थात भारत के सम्पूर्ण पूर्वी भाग का हृदय। मुगल एवं ब्रिटिश इसकी संपन्न धरोहर से आकर्षित होकर यहाँ खिंचे चले आये थे।

मेगस्थनीज पुस्तक इंडिका

मेगस्थनीज की इंडिका के अनुसार, एक समय सिकंदर की भेंट एक नागा सन्यासी से हुई थी। वह उस सन्यासी के जीवन एवं उसके दार्शनिक विचारों से अत्यंत प्रभावित हुआ था। जब सिकंदर को यमुना नदी पार कर भारत के इस भाग में आने की चाह उत्पन्न हुई तब उसने एक दूत भेजकर सन्यासी को अपने निर्णय से अवगत कराया। सन्यासी ने सिकंदर को रोकते हुए कहा कि क्या तुम इस भाग पर आधिपत्य जमाकर प्रसन्न नहीं हो जो उस पार जाना चाहते हो? वहां मत जाओ क्योंकि वहां बंग नामक एक स्थान है, जहां के निवासी अत्यंत शक्रिशाली एवं पराक्रमी हैं। तुम उन्हें हरा नहीं सकोगे।

बिश्नुपुर के टेराकोटा मंदिर
बिश्नुपुर के टेराकोटा मंदिर

मेगस्थानीज द्वारा दिया यह उल्लेख बंगो का सर्वप्रथम प्रलेखित इतिहास है। पेरिप्लस तथा क्लाडियस टॉलमी ने भी बंग का उल्लेख किया है। टॉलमी के मानचित्र में भी दो संपन्न क्षेत्रों का उल्लेख है, बंग तथा प्रासी अथवा प्रास्वयी।

अनुराधा: क्या बंग में वर्तमान का पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, त्रिपुरा तथा आसाम के क्षेत्र भी सम्मिलित थे?

अनीता: जी हाँ।

घोड़ों का व्यापार

अनीता: बंगाल में समुद्री व्यापार के अंतर्गत घोड़ों का व्यापार प्रमुख था। बंगाल से घोड़ों को ना केवल भारत के अन्य स्थानों तक पहुँचाया जाता था, अपितु इन घोड़ों को यूनान, प्राचीन चीन, तत्पश्चात कम्बुजा, मलय, सुमात्रा तथा फिलिपीन तक भेजा जाता था। बंगाल की भौगोलिक अवस्थिति समुद्र तथा नदी, दोनों के अत्यंत निकट होने के कारण समुद्री व्यापार नदी परिवहन पर आश्रित था।

इस प्रकार, बौंगो हृदय अथवा गंगा हृदय बंगाल का प्राचीनतम कबीला था। आप उनके विषय में History of early southeast Asia by Kenneth R Hall में पढ़ सकते हैं। पुरातात्विक साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि गंगा के तट पर स्थित बंगाल के मैदानी क्षेत्र २री एवं ३री सदी में अत्यंत लोकप्रिय थे। बंगाल की खाड़ी से चीन के दक्षिणी भाग के मध्य समुद्री मार्ग द्वारा माल का परिवहन एवं व्यापार होता था।

अनुराधा: बंगाल के प्राचीन बंदरगाहों के विषय में कुछ बताएं।

बंगाल के प्राचीन बंदरगाह

प्राचीन बंगाल में व्यापर
प्राचीन बंगाल में व्यापर

अनीता: गंगाहृदय बंगाल का प्रथम बंदरगाह था। उसके पश्चात चंद्रकेतुगढ़ तथा सप्तगाँव या सातगाँव बंदरगाह अस्तित्व में आये। सातगाँव बंदरगाह एक प्रसिद्ध बंदरगाह था जहां विशाल जहाज लंगर डालते थे। प्राचीन होने के कारण इसे अब आदिसप्तग्राम कहते हैं। इसे देवानंदपुर भी कहा जाता है। सन् १५६० में फ्रांसीसी यात्री सीजर फ्रेड्रिसेह ने सप्तगाँव की समृद्धि की तुलना श्री लंका से की थी। उसने गांववासियों के स्वर्ण आभूषणों एवं स्वर्णजड़ित वास्तुशैली का भी उल्लेख किया था। एक अन्य ब्रिटिश यात्री ने भी १५८३ में सप्तगाँव की यात्रा की थी तथा यहाँ की समृद्धि के विषय में लिखा था। सातगाँव अत्यंत लोकप्रिय था। सातों गाँवों के तट पर विशाल सभ्यता पनप रही थी। यह कोलकाता से अधिक दूर नहीं है।

अनुराधा: सप्तगाँव एवं चंद्रकेतुगढ़ में कौन सा बंदरगाह अधिक प्राचीन है?

अनीता: चंद्रकेतुगढ़ अधिक प्राचीन है क्योंकि कुछ सूत्र इसे १२वीं ईसा पूर्व बताते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार यह कम से कम ४ ईसापूर्व प्राचीन है।

गंगासागर

अनुराधा: अनीताजी, पौराणिक कथाओं में गंगानगर का उल्लेख किया गया है। गंगानगर हमारे महाकाव्यों का एक महत्वपूर्ण अंग है। आज बंगाल के निवासियों के लिए गंगानगर का क्या महत्त्व है?

अनीता: गंगानगर का सम्बन्ध कपिल मुनि से है। यहाँ कपिल मुनि का आश्रम था। आज मूल आश्रम का स्थान भिन्न है क्योंकि गंगा नदी निरंतर अपना मार्ग परिवर्तित करती रहती है। हम सब भागीरथ एवं राजा सगर के १०० पुत्रों की कथा जानते ही हैं। ऋषि भागीरथ के नाम पर गंगा को भागीरथी कहा जाता है। बंगाल में इसे आज भी भागीरथी कहा जाता है। यह मुर्शीबाद से सातगाँव की ओर आती है। तत्पश्चात त्रिवेणी तक आती है। एक त्रिवेणी प्रयागराज में है तथा एक त्रिवेणी सप्तग्राम में है। गंगा, यमुना, सरस्वती का त्रिवेणी संगम सप्तग्राम के समीप होने के कारण यह एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह था।

अनुराधा: वही तीन नदियाँ?

अनीता: उस काल में सातगाँव में प्रमुख बंदरगाह तथा व्यापार सरस्वती नदी पर निर्भर थे।

अनुराधा: समुद्री व्यापार पर चर्चा से पूर्व मैं यह जानना चाहती हूँ कि क्या गंगासागर में आज भी किसी प्रकार के वार्षिक अथवा नियमित उत्सव मनाये जाते हैं? क्या वे प्रत्येक वर्ष आयोजित होते हैं?

अनीता: जी हाँ। गंगानगर में पौष संक्रांति के दिन विशाल पौष मेले का आयोजन किया जाता है। भारत के कोने कोने से लोग इस उत्सव में भाग लेने, ध्यान करने तथा पवित्र स्नान करने के लिए आते हैं। यह एक प्रकार से कुम्भ मेले के ही समान है। यह प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है।

अनुराधा: प्राचीन सभ्यता की एक डोर अनेक सदियों पश्चात भी जीवंत है, यह देख अत्यंत आनंद हुआ।

अनीता: गंगासागर एवं कपिल मुनि के आश्रम का रामायण साधुओं से एक प्राचीन सम्बन्ध है। रामायण गाने वाले तथा रामायण की कथा सुनाने वाले साधुओं को बंगाल में रामायण साधू कहते हैं जो मूलतः प्राचीन कपिल मुनि आश्रम से सम्बंधित हैं। यद्यपि वर्तमान में ऐसे साधुओं की संख्या अल्प है, तथापि रामायण साधुओं एवं कपिल मुनि आश्रम के मध्य सम्बन्ध अब भी जीवित है।

व्यापार

अनुराधा: इस संस्करण के पाठकों को यह जानकार अत्यंत प्रसन्नता होगी कि प्राचीन सभ्यता के अंश अब भी जीवित हैं। आपके तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि अंग्रेजों के कोलकाता में प्रवेश से पूर्व ही बंगाल एक महत्वपूर्ण व्यापारिक बंदरगाह था। इस बंदरगाह से किन वस्तुओं का व्यापार होता था? कौन सी वस्तुओं का प्रमुखता से आयात एवं निर्यात होता था? कृपया इस विषय में कुछ बताएं।

अनीता: उस समय बंग अविभाजित था। उसका बांग्लादेश एवं बंगाल में विभाजन नहीं हुआ था। सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में, बंग उच्च स्तर के कपास एवं मलमल के लिए प्रसिद्ध था। ये वस्त्र इतने मुलायम एवं महीन होते थे कि उन्हें एक अंगूठी के मध्य से निकाला जा सकता था। बंगाल से इन वस्त्रों का दक्षिण-पूर्वी क्षेत्रों में निर्यात किया जाता था, विशेषतः सुमात्रा, फिलिपिन्स, मलक्का, मलय, जावा इत्यादि। इसके अतिरिक्त इन व्यापार मार्गों द्वारा अन्य अनेक वस्तुओं का आयात-निर्यात होता था, जैसे चावल, सूखे मेवे, फल, तेजपत्ता, सुपारी इत्यादि। इब्न बतूता ने भी अपने यात्रा संस्करणों में लिखा है कि भारत के पूर्वी भागों, बंगभूमि का तेजपत्ता ना केवल मसाले के रूप में प्रसिद्ध है, अपितु अपनी सुगंध के लिए भी लोकप्रिय है।

सुपारी   

अनीता: एक बार हम थाईलैंड के प्राचीन बंदरगाह में गए थे। वहां एक छोटा सा संग्रहालय था। वहां के संग्रहाध्यक्ष ने मुझे प्राचीनकाल में संग्रहीत बंगाल की सुपारी एवं कुम्हारी की कलाकृतियाँ दिखाई। इससे सिद्ध होता है कि मुगल एवं ब्रिटिश के आगमन से पूर्व ही बंगाल के बंदरगाहों की व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका थी। बंगाल का विश्व के अन्य भागों से अत्यंत प्राचीन सम्बन्ध है।

अनुराधा: प्राचीनकाल में हम बंगाल से कपास, सूखे मेवे, तेजपत्ता, सुपारी इत्यादि का निर्यात करते थे। विनिमय के रूप में हम वहां से क्या आयात करते थे?

अनीता: कुछ समाजशास्त्रियों एवं पुरातत्वविदों का मानना है कि विनिमय के रूप में हम स्वर्ण मुद्राओं तथा हस्तिदंत का आयात करते थे। हम धन अर्जित करने में सक्षम थे क्योंकि हमारा देश पूर्णतः आत्मनिर्भर था। मेरे पिता एक नौसैनिक थे। देश-विदेश की जलयात्रा करने के पश्चात उनका अनुभव कहता था कि सम्पूर्ण विश्व में भारत जैसा देश नहीं है। इसीलिए हमारे व्यापारी अपनी इच्छित वस्तुओं का आयात करने में पूर्णतः सक्षम थे। उन्हें इंडोनेशिया एवं जापान की अप्रतिम कलाकृतियों में विशेष रूचि होती थी। इनके अतिरिक्त, वे विनिमय के रूप में बर्मा से माणिक एवं आभूषणों का भी आयात करते थे।

बहुमूल्य धातु एवं माणिक

अनुराधा: क्या हम सभी प्रकार के बहुमूल्य धातु एवं माणिक आयात कर रहे थे? कदाचित स्वर्ण भी ऐसे ही एकत्र किया था?

अनीता: कुछ बहुमूल्य धातु एवं माणिक अवश्य आयात किये थे। जहां तक स्वर्ण का प्रश्न है, रोम एवं यूनान में तो कहावत ही थी कि भारत उन्हें कपास निर्यात करने की एवज में उनका स्वर्ण ले जाता है।

प्राचीन मंदिर

अनुराधा: इसका अर्थ है कि हमारे कपास का महत्त्व उनके स्वर्ण के समान था। अनीताजी, आपने हमें पौराणिक से प्राचीन, तत्पश्चात मध्ययुगीन बंगाल के विषय में बताया। क्या उस काल के कुछ अवशेष हैं जिन्हें हम देख सकते हैं? क्या कोई प्राचीन मंदिर अथवा प्राचीन बंदरगाह अब भी शेष हैं?

अनीता: पूर्वकालीन बंगाल अब पश्चिम बंगाल एवं बंगला देश में विभाजित हो चुका है। विभाजन के समय अनेक बहुमूल्य धरोहरों को नष्ट किया गया था। फिर भी, महास्थानगढ़ विश्वविद्यालय अब भी है। हम सब नालंदा के विषय में जानते हैं किन्तु महास्थानगढ़ के विषय में अधिक लोगों को जानकारी नहीं है। यह ७०० ईसा पूर्व का अत्यंत प्राचीन स्तूप विश्वविद्यालय है। अब यह बांग्लादेश में स्थित है।

कोलकता से लगभग १०० किलोमीटर दूर, बर्धमान एवं बांकुरा जिलों में ७वीं – ८वीं सदी के कई प्राचीन मंदिर अब भी शेष हैं, जैसे सोनातपल (शोनातपल) मंदिर, देउलघाटा पुरुलिया, बांकुरा मंदिर, जौटारदेउल, बहुलारा मंदिर, सातदेउल, पाकुरिया इत्यादि।

अनुराधा: बंगाल के कुछ प्राचीनतम मंदिरों की वास्तुशैली एवं निर्माण सामग्री के विषय में कुछ बताएं।

अनीता: यदि आप ८वीं – ९वीं सदी के मंदिर देखेंगे तो उनमें प्रमुख रूप से टेराकोटा (लालमिट्टी) के मंदिर हैं। कुछ मंदिरों में शिलाओं का प्रयोग किया गया है। एक अत्यंत प्राचीन एवं विशाल टीला भी है जिसे पांडू राजार धिबी कहते हैं। यह बर्धमान में है। लोग महाभारत के पांडू राजा से इसका सम्बन्ध मानते हैं। इसका उत्खनन बी. बी. लाल के निर्देशन में किया गया था। उनके अनुसार यह १६००-१७०० ईसा पूर्व का अवशेष है। उन्हें वहां ताम्रयुग के ताम्बे के एवं मिट्टी के पात्र प्राप्त हुए थे। हमारी संस्कृति पर अधिक शोध करने की आवश्यकता है।

प्राचीन मंदिरों की धरोहर

अनुराधा: यदि किसी को प्राचीन धरोहरों के अवलोकन में रुची जो तो उन्हें कौन से मंदिर देखने चाहिए?

अनीता: ८वीं सदी का गोकुल मठ मंदिर पाल वास्तुशैली का मंदिर है। यह बांग्लादेश के बोगुरा जिले में स्थित है। कोलकाता के समीप, दक्षिण २४ परगना में १०वीं सदी का जौटारदेउल मंदिर है। यह डायमंड बंदरगाह के समीप है। बांकुरा जिले में भी ८वीं सदी का एक अत्यंत सुन्दर बहुलारा मंदिर है।

अनुराधा: मैंने पाल युग की अनेक कलाकृतियाँ भारत के कई संग्रहालयों में देखी हैं। उनमें से अधिकतर पटना संग्रहालय में तथा कुछ दिल्ली संग्रहालय में भी हैं। वे सभी अत्यंत आकर्षक, सूक्ष्मता से उत्कीर्णित काली शिलाओं की कलाकृतियाँ थीं। काली शिलाएं बंगाल में नहीं पायी जाती हैं। उन्हें अवश्य बाहर से लाया गया होगा। क्या पाल युग के मंदिर अथवा अन्य संरचनाएं अब भी शेष हैं?

अनीता: यदि आप भारतीय संग्रहालय में जाएँ तो आप उस युग की अनेक कलाकृतियाँ देख सकते हैं। पाल युग के अप्रतिम रूप से उत्कीर्णित शैल प्रतिमाएं, विशेषतः बोधिसत्व तथा बौद्ध तारा की प्रतिमाएं अत्यंत आकर्षक हैं। यदि आप बिश्नुपुर अथवा बांकुरा जाएँ तो उस ओर मल्ल वंश का राज था।

अनुराधा: मल्ल राजवंश १६०० ईसवी लगभग में अस्तित्व में था। मुझे उससे पूर्व की जानकारी चाहिए।

अनीता: जब आप सोनातपल मंदिर या बहुलारा मंदिर देखेंगे तो आपको उनकी उत्कृष्ट संरचना की झलक प्राप्त होगी। अब ऐसे मंदिरों की संख्या अत्यंत अल्प हो गयी है। बिश्नुपुर में एक छोटा संग्रहालय है जहां आप पाल युग की कुछ प्राचीन कलाकृतियाँ देख सकते हैं। अधिकतर कलाकृतियाँ अब भारत के बाहर हैं।

मैं जब प्राचीन सुरबाया में थी तब मैंने  मजापहित तथा मोजोकेरतो देखे। उनकी संरचना, वास्तुशैली तथा आसपास की संरचनाएं एवं परिदृश्य ठीक वैसे ही थे जैसे मैंने देउलघाटा एवं सोनातपल में देखे थे। उनमें से अधिकतर सूर्य मंदिर तथा विष्णु मंदिर थे। ११वीं शताब्दी में दोनों की समरूप स्थिति थी।

अनुराधा: क्योंकि उन दोनों में एक प्रगाढ़ सम्बन्ध था।

सूर्य की आराधना

अनुराधा: क्या बंगाल में सूर्य की आराधना का भी प्रचलन है? हम बंगाल को साधारणतः चंडी पूजा अथवा देवी पूजा से जोड़ते हैं।

अनीता: जी हाँ। बंगाल में माँ शक्ति की आराधना अवश्य की जाती है, किन्तु बंगाल में सूर्य की आराधना भी प्रचलित है। यदि आप बंगाल से दक्षिण-पूर्वी एशिया की ओर जाएँ तो समुद्र किनारे के सभी स्थानिक माता की आराधना करते हैं।

अनुराधा: इसके लिए आप कौन सा मार्ग अपनाती है? क्या आप बंगाल से ओडिशा की ओर जाती हैं?

अनीता: जी नहीं। मैं बंगाल से बर्मा, तत्पश्चात कम्बोज थाईलैंड की ओर जाती हूँ। इसे पूर्व में शैम कम्बोज कहते थे। वे उमादेवी की भक्ति करते थे।

बैंकाक में उमा देवी की प्रतिमा
बैंकाक में उमा देवी की प्रतिमा

अनुराधा: जी, मैंने उमादेवी की प्रतिमा देखी है।

अनीता: उमादेवी माँ दुर्गा का ही रूप हैं। इंडोनेशिया में आप महिषासुरमर्दिनी की अनेकों प्रतिमाएं देख सकते हैं। बाली में देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है। उनका सम्बन्ध भी बंगाल से है। प्रत्येक बंगाली घर में हर बहस्पतिवार को लक्ष्मी की पूजा की जाती है। उनका सम्बन्ध धान की खेती से है, इसलिए उन्हें धनलक्ष्मी कहा जाता है। बाली में भी लक्ष्मी को धनलक्ष्मी कहा जाता है। बाली में देवी सरस्वती की भी वर्ष में दो बार पूजा आयोजित की जाती है।

अनुराधा: बंगाल में अप्रतिम सरस्वती मंदिर भी हैं ना?

अनीता: जी, बंगाल में अत्यंत सुन्दर सरस्वती मंदिर भी हैं।

बंगाल में पोइला बैसाख अर्थात् वैशाख मास का प्रथम दिवस का उत्सव मनाया जाता है। आसाम में इसे बीहू कहा जाता है। पंजाब में इसे ही बैसाखी कहते हैं। सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्वी एशिया में बैसाखी का उत्सव भिन्न भिन्न नामों से जाना एवं मनाया जाता है। संक्रांति को बर्मा में थिनग्युमिन कहते हैं।

बंगाल, आसाम तथा पंजाब के कुछ भाग बंगाल बंदरगाह द्वारा ही अपना व्यापारिक आदान-प्रदान करते थे। ऐंगो-बौंगो कलिंगो बंदरगाह को कलिंगन तथा बंगन भी कहते हैं। फुकट में एक स्थान है जिसका नाम बांग्ली है। बांग्ली लोग बंग से तथा क्लिंग लोग कलिंगा से आये हैं। दक्षिणपूर्वी एशिया के अनेक क्षेत्रों में क्लिंग एवं बांग्ली लोग रहते हैं।

बंगाल से श्री लंका तक समुद्री मार्ग

अनुराधा: मैंने कुछ दिवसों पूर्व ही चंडीमंगल पढ़ा था जो बंगाल का १५वीं-१६वीं सदी का भाष्य है। इसमें बंगाल से श्रीलंका तक के समुद्री मार्ग का विस्तृत वर्णन है। उसमें मध्य स्थित प्रयेक बंदरगाह का उल्लेख किया गया है।

अनीता: यदि आप श्रीलंका का इतिहास देखेंगे तो उसका सिंघल नामकरण राजकुमार विजयसिंघा ने किया था जो बंगाल का था। इस प्रकार दक्षिणपूर्वी एशिया के अनेक ऐसे आश्चर्यजनक सत्य एवं ऐतिहासिक तथ्य हैं जो उन्हें बंगाल से जोड़ते हैं।

अनुराधा: हमें इस विषय में अधिक विस्तृत चर्चाएँ करनी चाहिए ताकि हम सब जान सकें कि भारत एक वैश्विक देश है।

अनीता: जी हाँ, भारत ने सदैव वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत का पालन किया है।

अनुराधा: अनीताजी, बंग की इस अप्रतिम यात्रा पर हमें ले चलने के लिए आपका बहुत धन्यवाद। आशा है कि विभिन्न क्षेत्रों में आपके द्वारा किये विस्तृत कार्यों के विषय में हमें और अधिक जानने का पुनः अवसर प्राप्त होगा। रामकृष्ण मिशन के साथ किये सामाजिक कार्यों के विषय में जानने की भी उत्सुकता है। मैं आपके कार्यों को सोशल मीडिया पर देखती रहती हूँ। हम रामायण प्रकल्प द्वारा भी जुड़े हुए हैं।

अनीता: मुझे यहाँ आमंत्रित करने के लिए आपका भी हार्दिक आभार।

अनुराधा: बंगाल के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने के लिए आपका हृदयपूर्वक आभार व्यक्त करती हूँ। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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