कहते हैं यदि नियति में कुछ घटना लिखित है तो उसके घटित होने हेतु सारी कायनात एक हो जाती है। विश्वास ना हो तो मेरे साथ हुए इस वाकये पर गौर कीजिये। मैं इंडोनेशिया में योग्यकर्ता की यात्रा पर थी और अगले दिन भोर बोरोबुदुर मंदिर के सूर्योदय भ्रमण की योजना बना रही थी। मैंने इसकी जानकारी ट्विटर पर दी। तत्काल मुझे नरेन्द्र रामकृष्णजी से जवाब मिला जिसमें उन्होंने मुझे प्रमबनन मंदिर परिसर के भी भ्रमण की सलाह दी। उन्होंने सलाह दी कि बोरोबुदुर से मात्र २० मिनट की दूरी पर स्थित प्रमबनन मंदिर परिसर भ्रमण के लिए २ घंटे से भी कम समय लगता है और इसे बिना देखे वापस जाना स्वयं के साथ अन्याय होगा। मैंने कुछ खोजबीन की और अपने इण्डोनेशियाई मेजबान से भी चर्चा की। एक के पीछे एक मसले सुलझते गए और अंततः अपने जन्मदिन पर मुझे दोनों मंदिरों के दर्शन उपहार स्वरुप मिल गए। सुबह के समय मैंने बोरोबुदुर के दर्शन किये और दोपहर तक मैं प्रमबनन मंदिर परिसर के समक्ष खड़ी थी। मेरे साथ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व इंडोनेशिया के साथी ब्लॉगर भी उपस्थित थे।
प्रमबनन मंदिर परिसर के बारे में मेरे पास सीमित जानकारी थी। इसलिए सारे रास्ते मैंने किताबों से उसके बारे में और जानकारी हासिल की। वहां पहुँच कर गलती से मैंने अंतर्राष्ट्रीय यात्री के स्थान पर घरेलु यात्री का टिकट खरीद लिया था इसलिए आशंका से थोड़ी घबरायी हुई थी। बाद में मुझे पता चला कि विदेशी यात्री टिकट करीब १० गुना ज्यादा महंगा है पर उसके साथ एक कॉफ़ी भी मुफ्त मिलती है। किस्मत से मैंने एक स्वादिष्ट कॉफ़ी पहले ही पी ली थी।
प्रमबनन मंदिर परिसर
प्रमबनन मंदिर परिसर की तरफ जाते वक्त जो पहला विचार आपको झकझोर देता है वह है इसकी विशालता। तीन ऊँचे मंदिरों के शिखर बाकी मंदिर परिसर से ऊपर उठ कर दिखाई पड़ते हैं। बाकी के मंदिर इनकी तुलना में बौने नजर आते हैं। जैसे आप इनके पास पहुंचते हैं, वहां कई जगह गहरे धूसर रंग के पथरी के मलबे दिखाई पड़ते हैं। यह मलबे किसी काल में खड़े मंदिरों का वर्त्तमान रूप हैं।
किवदंतियों के अनुसार प्रमबनन मंदिर परिसर में कुल ९९९ मंदिर थे। हालाँकि वास्तुविदों के अनुसार केवल २४० मंदिरों के अस्तित्व के ही प्रमाण प्राप्त हैं।
इस मंदिर का गठन श्रीयंत्र की रूपरेखा से समानता रखती है। इसके मध्य में शिव मंदिर व दोनों तरफ ब्रम्हा और विष्णु मंदिर हैं। हर मंदिर से सम्बंधित भगवान् के वाहनों के भी मंदिर हैं, अर्थात् नंदी बैल, हंस व गरुड़। ब्रम्हा और हंस के मंदिरों के मध्य व इसी तरह विष्णु और गरुड़ के मंदिरों के मध्य दो मंदिर और हैं। इन्हें अपित मंदिर कहा जाता है। मेरे इण्डोनेशियाई मित्र के अनुसार अपित का अर्थ मध्य है। यह मंदिर किसे अर्पित है इसकी जानकारी मुझे प्राप्त नहीं हुई।
इस परिसर के तीन मुख्य व विशालतम मंदिर हिन्दू धर्म के त्रिमूर्ति अर्थात् ब्रम्हा, विष्णु और शिव भगवान् को समर्पित है। मध्य में स्थित शिवमंदिर को शिवगृह या शिवालय अर्थात् भगवान् शिव का निवासस्थान कहा जाता है।
प्रमबनन त्रिमूर्ति मंदिर
मैं यहाँ आपको तीन मुख्य मंदिरों के बारे में थोड़ा विस्तार से जानकारी देना चाहूंगी।
शिव मंदिर
शिव मंदिर, प्रमबनन का विशालतम मंदिर है। यह इस तथ्य का द्योतक है कि प्रबनन मंदिर के निर्माता शिव भक्त थे। हालांकि ब्रम्हा व विष्णु मंदिरों की उपस्थिति संकेत करती है कि ९वीं सदी के जावा में, जब इस मंदिर का निर्माण हुआ था, तीनों देवताओं की आराधना की जाती थी।
शिव मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचने के लिए खड़ी ऊंची सीड़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर की बाहरी भित्ति पर शिल्पकारी की गयी है परन्तु भीतरी दीवारें सादी हैं। निश्चित रूप से यह नहीं कह सकती कि यह पहले से ही साधी थीं या मरम्मत के उपरांत यह ऐसी हो गयी है। मंदिर का गर्भगृह छोटा है और मंडप व अग्रशाला की कोई पद्धति दिखाई नहीं दी।
चौकोर योनि पर रखे कमल के पुष्प के ऊपर शिव की ऊंची मूर्ति है। अर्थात् यहाँ मानवरूपी शिवलिंग स्थापित है। वस्त्र धारण किये शिव की प्रतिमा को देख मुझे भारत में गांधार रीति के बुद्ध के चित्रों की याद ताज़ा हो गयी।
शिव प्रतिमा पर अलंकृत अधोवस्त्र उनके टखने तक लम्बा है व उन्होंने पैरों में मोटी पायजेब पहनी हुई है। चार भुजाधारी शिव प्रतिमा की भुजाएं भंगित हैं, इसलिए उन्होंने हाथों में क्या पकड़ा था इसका अनुमान लगाना असंभव है। इनकी जटाएं शीष के ऊपर बंधी है और गर्दन पर एक सर्प लिपटा हुआ है।
प्रदक्षिणा पथ
गर्भगृह की परिक्रमा हेतु एक परिक्रमा पथ है। इस पथ के दोनों ओर की दीवारों पर, अर्थात् गर्भगृह की बाहरी दीवार व कटघरे की भीतरी दीवार पर शिल्पखंड लगे हैं जिन पर रामायण की कथाएँ कहतीं शिल्पकारी की गयी है।
यहाँ शिव व ब्रम्हा मंदिर की दीवारों पर लगे शिल्पखण्ड रामायण पर आधारित हैं व विष्णु मंदिर के शिल्पखंड भगवत पुराण पर आधारित हैं। यह देख थोड़ा अचरज हुआ कि उस काल में क्या शिव की कथाओं से अनभिज्ञ थे। उन्होंने शिव मंदिर के खण्डों पर शिव की कहानियां कहती शिल्पकारी क्यों नहीं की? क्या वे भगवान के मानवतार की ही कहानियां कहना चाहते थे? क्योंकि ऐसा मानना है कि राम और कृष्ण मानवतार हो कर, हमारे इतिहास का हिस्सा हैं।
अतः इस परिसर के मुख्य और पीठासीन देव शिव हैं, फिर भी विष्णु की गाथायें ही हर तरफ दिखाई पड़तीं हैं।
मंदिर की दीवारों पर घंटे के आकार की मूर्तियाँ है। पहली झलक में यह व्रतानुष्ठित स्तूप या मन्नत का स्तूप प्रतीत होता है।संभवतः यह पूर्ण घटक भी हो सकते हैं। इस घंटाकृत शीर्ष का कोई वैकल्पित अर्थ किसी को ज्ञात हो तो मैं जानने के लिए इच्छुक हूँ।
मंदिर के प्रवेश पर एक बड़े कीर्तिमुख की शिल्पकारी की गयी है, ठीक बोरोबुदुर मंदिर की तरह।
नंदी मंदिर
नंदी मंदिर शिव मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इसकी संरचना शिव मंदिर की तरह है पर उससे काफी छोटा है। मंदिर के भीतर एक विशाल पत्थर का बैल बना हुआ है। इन पत्थरों को कुछ इस तरह चमकाया हुआ है कि वह वास्तविक बैल प्रतीत होता है।
इसके दोनों बाजू चन्द्र और सूर्य की प्रतिमाएं है। निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकती कि यह दोनों प्रतिमाएं इसी मंदिर से सम्बंधित हैं या इन्हें बाद में रखा गया है।
विष्णु मंदिर
विष्णु मंदिर शिव मंदिर के बनिस्पत थोड़ा छोटा है, परन्तु उनकी संरचना में समानता है। गहरे धूसर पत्थरों से बना, नुकीला शिखर युक्त संकरा ऊंचा मंदिर!
विष्णु की प्रतिमा के ऊपर विष्णु के सारे चिन्ह उपस्थित है। उन्होंने अपनी चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा व कमल धारण किया है। वे कमल के ऊपर खड़े है जो एक योनि के ऊपर रखा गया है। यह मुझे बेहद अनोखा प्रतीत हुआ। एक बार फिर मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकती कि यह यहाँ की पद्धति थी या मरम्मत के दौरान हुई कोई चूक। शिव और विष्णु की प्रतिमाओं में समानता यह है कि दोनों प्रतिमाएं योनि पर रखे कमल के पुष्प पर खड़ी हैं।
इस मंदिर के परिक्रमा पथ पर लगे शिल्पखण्ड भगवत पुराण की कथाएं दर्शातीं हैं।
गरुड़ मंदिर
विष्णु मंदिर के समक्ष विष्णु के वाहन गरुड़ का मंदिर है। दुर्भाग्य से इसके अन्दर गरुड़ की प्रतिमा उपस्थित नहीं है और मंदिर रिक्त है। इसके बावजूद भी इस परिसर के दर्शन करने पर एक विचित्र बात महसूस होती है, वह है कि भगवान अपने निवासस्थान पर विराजित हैं और बाहर वाहन कक्ष में अपने वाहनों को रखा है।
ब्रम्हा मंदिर
जिस समय मैं प्रमबनन मंदिर का भ्रमण कर रही थी उस समय ब्रम्हा मंदिर की दुरुस्ती का कार्य चालू था। इसलिए मैं मंदिर के अन्दर प्रवेश नहीं कर सकी। बाद में मैंने ब्रम्हा की मूर्ति से सम्बंधित जानकारी बाहरी स्त्रोतों जैसे गूगल इत्यादि से एकत्र की। ब्रम्हा की त्रिमुखी मूर्ति यहाँ भी योनि पर रखे कमल पुष्प पर स्थित है।
हंस मंदिर
ब्रम्हा के वाहन हंस का मंदिर ब्रम्हा मंदिर के ठीक सामने स्थित है।
इनके अतिरिक्त बाकी मंदिर खंडहर में तब्दील हो गए हैं। परन्तु खंडहरों को मंदिरों के मूल स्थान पर सुनियोजित ढंग से एकत्रित कर रखा है।
प्रमबनन मंदिर का इतिहास
प्रमबनन इंडोनेशिया के जावा द्वीप का विशालतम मंदिर परिसर है। इसका निर्माण अनुमानतः ९वीं ई में संजय वंश ने किया। इसके उपरांत बोरोबुदुर मंदिर के निर्माता शैलेन्द्र वंश के कारण बौद्ध धर्म का पालन किया गया। मातरम राजाओं ने इनकी सुन्दरता में और बढ़ोतरी की।
इस मंदिर के पीछे ओपक नदी बहती है। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण हेतु ओपक नदी की दिशा में बदलाव किया गया था।
ऐसा अनुमान है कि १०वीं ई में इस मंदिर का परित्याग कर दिया था जब मेरापी पर्वत का ज्वालामुखी फटने लगा और राज्य को यहाँ से विस्थापित किया गया। इसके बाद हुए अनेक ज्वालामुखी व भूकम्पों के कारण इस मंदिर का और ह्रास हुआ। हालांकि २०१० नवम्बर में फटे ज्वालामुखी से यह अप्रभावित रहा क्योंकि लावा दूसरी दिशा में बहा था।
बोरोबुदुर मंदिर की तरह, प्रमबनन मंदिर की खोज भी थॉमस स्टेमफोर्ड रैफल्स ने की थी। योग्यकर्ता अपनी विरासती धरोहारों की खोज हेतु सदा उनका आभारी रहेगा। अधिकतर मंदिरों पर खोज के उपरांत मरम्मत का कार्य किया गया जो अब भी जारी है।
इस मंदिर को चंडी प्रमबनन भी कहते हैं। जावा भाषा में चंडी का अर्थ है मंदिर।
प्रमबनन मंदिर की प्रसिद्ध रोरो जोंग्रेंग किवदंतियां
जावा भाषा में अविवाहित कुलीन स्त्रियों को रारा या रोरो कहा जाता है। पड़ोस में स्थित पेंगिंग राज्य व बोको राज्य के बीच हुए युद्ध से सम्बंधित अनेक कथाएं व किवदंतियां प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि पेंगिंग राजकुमार ने बोको राजा का वध किया था। इसके पश्चात् वहां शोकाकुल राजकुमारी को देख राजकुमार उसकी सुन्दरता पर मोहित हो गया व उसे विवाह का प्रस्ताव दिया। बहुत मनुहार करने के पश्चात् राजकुमारी ने दो शर्तों पर विवाह की मंजूरी दी। पहली शर्त एक दीवार के निर्माण की व दूसरी शर्त १००० मंदिरों के निर्माण की थी, वह भी सिर्फ एक रात में! प्रेम में डूबे राजकुमार ने दोनों शर्तें मंजूर कर लीं।
अपनी अलौकिक शक्तियों का इस्तेमाल कर राजकुमार ने एक रात में १००० मंदिरों का निर्माण किया। राजकुमारी ने, जो इस विवाह के लिए अंतर्मन से राजी नहीं थी, एक चाल चली। उसने अपनी दासियों से आग जलाकर बहुत शोर व कोलाहल करने के लिए कहा ताकि निर्माणरत आत्माओं को भोर फटने का आभास हो और वे कार्य स्थगित कर दें। इस धोखे की जानकारी मिलते ही राजकुमार ने क्रोधित हो राजकुमारी को श्राप देकर शिला में परिवर्तित कर दिया।
ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी अब भी कुमारी देवी के रूप में शिला में बसती है और अंतिम मंदिर के निर्माण में रत है।
क्या यह कहानी आपको कन्याकुमारी की याद दिलाती है?
प्रमबनन में रामायण प्रदर्शन
ओपक नदी के तीर, त्रिमूर्ति बहिरंगमंच पर जावा के नृत्यनाटिका के रूप में रामायण का प्रदर्शन किया जाता है। हर पूर्णिमा को किये जाने वाले रामायण मंचन को देखने, फिर प्रमबनन जाने की मेरी प्रबल इच्छा है। इन मंदिरों व खंडहरों के बीच, पूर्ण चन्द्रमा तले इस रामायण को देखने का रोमांच अतुलनीय होगा। संभवतः यह विश्व की प्राचीनतम कहानी है जो रामायण द्वारा दिखाई जाती है।
प्रमबनन मंदिर परिसर भ्रमण के कुछ सुझाव
- प्रमबनन मंदिर के लिए योग्यकर्ता अथवा जोग्गा विमानतल इत्यादि से गाड़ियों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
- हालाँकि यहाँ वस्त्रों पर कोई खास अंकुश नहीं है, फिर भी शालीन वस्त्रों के तहत अपने घुटने व कंधे ढंके हुए रखें।
- घरेलु व अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के टिकट के अलग अलग मूल्य हैं। अंतरराष्ट्रीय यात्रियों का शुल्क करीब २५०००० इंडो. रु अर्थात १२५०रु हैं जिसमें एक स्वादिष्ट कॉफ़ी मुफ्त दी जाती है।
- यहाँ परिदर्शक की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए यहाँ के बारे में पूर्व जानकारी आवश्यक है।
- पूर्व दिशा में स्थित सभी मंदिरों को देखने का सर्वोत्तम समय सुबह का है। जबकि वाहनों के मंदिर संध्या समय सूर्य की रौशनी से रोशन होते हैं। चित्रकरण की दृष्टी से यह महत्वपूर्ण है।
- परिसर के बाहर निकालने पर वहां एक छोटा बाज़ार है। वहां मिलने वाली जावा की प्रसिद्ध कॉफ़ी अत्यंत स्वादिष्ट है।इसे पीना ना भूलें!
आपका लेख मुझे बहुत अच्छा लगा, लेकिन आपने जो जानकारी दी है वो बहुत कम लोगो को ही पता है.
धन्यवाद् हिना
People visit Indonesia but hardly visits these giant monuments because of lack of knowledge. Your attempt to make people aware for this “hot-spots” is heighly appreciable. Wish, soon i could have all this matter in the form of book. Ragars.
सही कहा तेजस. पुस्तक लिखने की इच्छा तो है, बस समय नहीं निकल पा रहा है, ब्लॉग ही इतना समय ले लेता है.
बहुत सुंदर प्रस्तुति है मुझे अपनी यात्रा का पुर्नस्मरण हो आया। मैंने भी पिछले 10 वर्षों में 10 से अधिक देशों की यात्राएं की है जिनमें कंबोडिया थाईलैंड श्रीलंका इंडोनेशिया लाओस वियतनाम प्रमुख है और इनका सभी पक्ष जानने का प्रयास किया है। आपका इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों से संबंधित लिखा सांस्कृतिक पक्ष निश्चित ही अन्य पर्यटकों को यात्रा के लिए प्रेरित करेगा।