राजाजी राष्ट्रीय उद्यान – चीला आरक्षित वन के वन्यजीवन का आनंद उठायें

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मैंने अपने जीवन में अनेकों बार ऋषिकेश की यात्रा की है। हर बार राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का दर्शन किसी ना किसी कारणवश छूट जाता था। इस बार जब में हरिद्वार गयी, मुझे गढ़वाल मंडल विकास निगम(GMVN) के चीला अतिथी गृह में ठहरने का निमंत्रण मिला। मैंने मन ही मन विचार किया कि एक बार जंगल सफारी करूंगी, एक रात्री इस अतिथी गृह में बिताउंगी और शेष दिन हरिद्वार में ठहरूंगी। किन्तु मुझे चीला का वातावरण इतना भा गया कि अंततः मैं इस अतिथी गृह में चारों दिन ठहर गयी। केवल दिन के समय हरिद्वार नगरी के दर्शन के लिए चली जाती थी।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के पास गंगा जी
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के पास गंगा जी

मैं दोपहर के भोजन के समय गढ़वाल मंडल विकास निगम के चीला अतिथी गृह में पहुँची। अधिक समय शेष नहीं था। जल्दी जल्दी थोड़ा कुछ खाया और सफारी के लिए निकल पड़ी। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का मुख्यद्वार हमारे अतिथी गृह से सटा हुआ ही था। आवश्यक औपचारिकता पूर्ण कर राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का अनुभव लेने आगे बढ़ गयी। वाहन चालक एवं परिदर्शक दोनों की भूमिका निभाते, कुन्दन जी हमारे साथ थे।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास

८०० वर्ग की.मी. से भी अधिक क्षेत्रफल में फैला यह अपेक्षाकृत बड़ा उद्यान है। हरिद्वार एवं ऋषिकेश की पवित्र नगरियों को चारों ओर से घेरा यह उद्यान सहारनपुर, पौड़ी गढ़वाल एवं देहरादून जिलों तक फैला हुआ है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि इन नगरों के विस्तृत होने से पूर्व यहाँ के अधिकतर क्षेत्र वन ही रहे होंगे। उद्यान भीड़भाड़ भरे नगरों के इतने समीप है, फिर भी इसकी जैव-विविधता आज भी अछूती है। आप कई प्रकार के वन्य प्राणी एवं पक्षी यहाँ देख सकते हैं।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान - उत्तराखण्ड
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान – उत्तराखण्ड

आरम्भ में यहाँ ३ वन्यजीव अभयारण्य थे। १९७७ में स्थापित चीला अभयारण्य, १९६४ में स्थापित मोतीचूर अभयारण्य एवं १९४८ में स्थापित राजाजी अभयारण्य। १९८३ में इन तीनों अभयारण्यों को मिलाकर राजाजी वन्यजीव अभयारण्य बना दिया गया। २०१५ में इसे टाइगर रिज़र्व का ओहदा प्रदान किया गया। वास्तव में इसका नामकरण स्वतन्त्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल श्री सी राजगोपालाचारी के नाम पर किया था।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान हाथियों के लिए अधिक जाना जाता है। मैंने कई बार सुना था कि इन वनों से जाते हुए आप हाथियों के झुण्ड देख सकते हैं। भारत में हाथियों की उपस्थिति का यह उत्तर-पश्चिमी छोर है। यहाँ से यदि आप कुछ और दूरी उत्तर अथवा पश्चिम की ओर चले जाएँ, आप वहां इन जंगली हाथियों को नहीं पायेंगे।

चीला आरक्षित वन – राजाजी राष्ट्रीय उद्यान

चीला आरक्षित वन जल-विद्युत् घर के समीप है। इस बिजली घर में जल आपूर्ति करती, गंगा की एक सहायक नदी यहाँ दिखाई देती है। इस सहायक नदी में कई मौसमी नदियों का भी समागम होता है। गढ़वाल मंडल विकास निगम का अतिथी गृह ऐसे ही एक संगम पर, धरती की एक संकरी पट्टी पर निर्मित है।

गंगा इस उद्यान में लगभग २४ की.मी. की दूरी तक बहती है। इस दौरान कई मौसमी नदियाँ इसमें आकर समाती हैं। यह नदियाँ अन्यथा सूखी एवं लुप्त रहती हैं।

मुंडल देव की कथा

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान - मुंडल देव मंदिर
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान – मुंडल देव मंदिर

हमने शनैः शनैः  राष्ट्रीय उद्यान के भीतर प्रवेश किया। कच्चा रास्ता था। केवल वनों के लिए उपयुक्त  शक्तिशाली गाड़ियां ही उस पर चल सकती थीं। हमारा पहला पड़ाव था एक छोटा सा मंदिर। जंगल के भीतर एक छोटा सा मंदिर हो एवं उसकी कोई कथा ना हो, यह कैसे हो सकता है। कुंदन जी ने मुझे बताया कि यह मंदिर मुंडल देव को समर्पित है। मुंडल देव एक स्थानीय संरक्षक माने जाते हैं जो शिकारियों से जंगल एवं जंगल के प्राणियों की रक्षा करते हैं। उनके सम्मान में आज भी सारे गांववासी फसल निजी उपयोग में लाने अथवा बेचने से पूर्व उन्हें अर्पित करते हैं।

संयोग से मुंडल एक मौसमी नदी का भी नाम है। कुंदनजी ने मुझे बताया कि स्थानीय लोग इसे मंगेतर भी कहते हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। यह नदी किसकी मंगेतर हो सकती है! यहाँ भी कुन्दनजी ने मेरी जिज्ञासा शांत की। उन्होंने यह कथा सुनायी:

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में सूर्यास्त का मनोरन दृश्य
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में सूर्यास्त का मनोरन दृश्य

एक बार मुंडल नदी, अपितु मैं नद कहूँगी , को गंगा नदी से प्रेम हो गया। वह उससे विवाह करना चाहता था। उसने भगवान् शिव एवं अन्य देवों से गंगा का हाथ माँगा। देवतागण असमंजस में पड़ गए। सामान्यतः सूखा रहता मुंडल, मौसम में अत्यंत आकर्षक दिखाई पड़ता था। अंततः देवताओं ने अपनी ओर से सम्मति देते हुए अंतिम निर्णय गंगा पर छोड़ दिया। गंगा मुंडल से विवाह हेतु इच्छुक नहीं थी। किन्तु वह जानती थी कि मुंडल आसानी से उनका निर्णय स्वीकार नहीं करेगा। इसलिए जब मुंडल ने गंगा के समक्ष विवाह की मांग रखी तब गंगा ने उसकी मांग सशर्त स्वीकार की। शर्त यह थी कि मुंडल ग्रीष्म ऋतु में बारात लेकर उनके पास आये। आप जानते ही हैं कि मुंडल ग्रीष्म ऋतू में अस्तित्वहीन हो जाता है जबकि गंगा शाश्वत है।

खोती उभरती मौसमी नदी एवं अविनाशी गंगा नदी के अस्तित्वों की गाथा कहती इस किवदंती ने मुझे रोमांचित कर दिया था।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के चीला वन में जीप सफारी

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण करते मृग
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण करते मृग

मुंडल देव मंदिर से हमारी जीप आगे बढ़ी। राह में हमें हिरणों के कई झुण्ड दिखाई दिए। उछलते कूदते वे कभी जंगल में भटकते तो कभी नदी के पास पहुँच कर पानी पीते। कभी अचानक हमारी गाड़ी के सामने से दौड़कर सड़क पार करते तो कभी उन्हें देख हम स्वयं ही गाड़ी रोक देते ताकि वे उस पार जा सकें।

साम्बर अपने कान ऊंचे किये चौकन्ना खड़ा था। आशा जागी कि अब हमें बाघ या तेंदुआ दिखेगा। किन्तु हमारी इच्छाओं पर पानी फिर गया। हमें हंसी भी आयी। ऐसा साम्बर  हमें सड़क के हर मोड़ पर खड़ा दिखाई दिया।

लम्बी घास के बीच गजराज
लम्बी घास के बीच गजराज

हाथी छोटे छोटे झुण्ड में दिखाई पड़ रहे थे। कई बार हर हाथी के साथ एक बच्चा भी होता था । ये झुण्ड हाथियों का परिवार प्रतीत हो रहे थे। दूर पर एक हाथियों का जोड़ा अपने बछड़े के संग घास चर रहा था। घास की ऊंचाई मुझे तब समझ में आयी। अपनी ऊंची पतली डंठलों में वे इन हाथियों को लगभग पूर्णतया छुपा रहे थे।

गोह - राजाजी राष्ट्रीय उद्यान
गोह – राजाजी राष्ट्रीय उद्यान

गोह अर्थात् मॉनिटर लिज़र्ड यहाँ वहां दौड़ रहे थे। कभी सड़क की मिट्टी पर शांत लेटे रहते और अचानक ही घास में अदृश्य हो जाते। उनका छद्म आवरण उन्हें घास से एकाकार कर रहा था। ढूंढ पाना कठिन हो रहा था।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के पक्षी

मई माह का अंत था। उस पर दोपहर की सफारी थी। इस गर्मी में किसी भी पक्षी दर्शन की उम्मीद नहीं थी। कहते हैं ना! जब उम्मीद ना हो तभी घटनाएँ आश्चर्यचकित कर देती हैं। इस गर्मी में भी हमने कई पक्षी ढूंढें। अब मैं शीत ऋतू में एक बार फिर यहाँ आना चाहती हूँ जब यह उद्यान पक्षियों से भरा रहेगा।

आँखें तो देखिये इस बाज़ की
आँखें तो देखिये इस बाज़ की

सबसे पहले मैंने बाज अर्थात हॉक ईगल देखा। उसकी गोल बड़ी बड़ी पीली आँखें थी। इसकी एक विशेषता है। पास जाने पर भी यह डर कर उड़ता नहीं। शांत बैठकर दर्शन करने देता है। आप जितनी चाहें इसके चित्र खींच सकते हैं। मुझे स्मरण है, बांधवगड राष्ट्रीय उद्यान में भी मैंने इसके अच्छे छायाचित्र खींचे थे।

जल स्त्रोतों के पास हमें नद कुरारी एवं टिटहरी यहाँ वहाँ चलते व पानी पीते दिखाई दिए। पानी की सतह पर पड़ते उनके प्रतिबिम्ब अत्यंत मनमोहक प्रतीत हो रहे थे। चाह हुई कि पास जाकर उनके चित्र खींचूँ। किन्तु इसके लिए मुझे जीप से उतरना पड़ता। राष्ट्रीय उद्यान के भीतर इसकी अनुमति नहीं होती है।

छुपता निकलता तोता
छुपता निकलता तोता

पतरिंगा, नीलकंठ, ढेलहरे तोते, रामचिरैया, हरियल जैसे कई रंगबिरंगे पक्षी चारों ओर फुदक रहे थे। अपने चटक रंगों के कारण वे सहसा उठकर दिख रहे थे। अकस्मात् मेरी दृष्टी पेड़ के तने पर स्थित एक छोटे छिद्र से झांकते एक तोते पर पड़ी। तने के अन्दर बाहर होता वह तोता मानो मुझसे आँख-मिचौली खेल रहा था। उसने मेरा मन प्रफुल्लित कर दिया था।

राष्ट्रीय पक्षी मोर - है कोई इस से रंग बिरंगा
राष्ट्रीय पक्षी मोर – है कोई इस से रंग बिरंगा

इन सबमें सर्वाधिक विशाल एवं रंगीन पक्षी थे मोर। अपने बहुमूल्य पंखों के साथ वे राजसी ठाठ से यहाँ वहां घूम रहे थे। इस उद्यान में वे आपको हर ओर दिखाई देंगे।

बन कुक्कुट अर्थसत जंगली मुर्गे  भी कीट भोजन चुगते इधर उधर दौड़ रहे थे। बन कुक्कुट के पंखों के भीतर इतने रंग होते हैं कि आप गिनते गिनते थक जायेंगे। इनके चित्र खींच पाना भी अपने आप में एक चुनौती है। इनको कैमरे में कैद करने के लिए इनके समक्ष झुकना ही पड़ता है।

पतेना पक्षी
पतेना पक्षी

श्वेत श्याम दैया अथवा रोबिन एवं जंगली मैना झाड़ों पर फुदक रहे थे।

फ़ाकता या चितकबरे कबूतर पेड़ों की शाखाओं पर बैठे आलस निकाल रहे थे।

भारतीय धनेश
भारतीय धनेश

कई धनेश भी उड़ते दिखाई दिए। समस्या यह थी कि वे सदैव सड़क से दूर स्थित पेड़ों की डंगाल पर ही जाकर छुप रहे थे। चित्र खींचना मुश्किल हो रहा था। अंततः घनेश के एक  बच्चे का चित्र खींचने में सफलता मिल ही गयी।

हमेशा की तरह सात भाई आपस में बड़बड़ा रहे थे। इनके सिवाय भी कई पक्षी थे जिन्हें मैं पहचान नहीं पायी। फिर भी उन्हें ताकते रहना अत्यंत आनंददायक था। काश इतनी स्वतंत्रता से जीना सबके बस में होता।

हम राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में जीप सफारी के अंतिम चरण पर पहुँच रहे थे। सूर्यास्त हो रहा था। परिदृश्य अन्यंत ही मनोरम हो गया था। डूबते सूर्य की किरणें पेड़ों की शाखाओं से आँख मिचौली खेल रही थीं। सम्पूर्ण परिदृश्य सूर्य की सुनहरी आभा में मदमस्त था। बड़ी कठिनाई से मैंने अपने आप को समझाया कि यह सफारी के अंत होने का संकेत भी है।

और पढ़ें:- गोवा में पक्षी दर्शन के १५ सर्वोत्तम स्थान

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के होटल

गढ़वाल विकास मंडल निगम का विश्राम गृह
गढ़वाल विकास मंडल निगम का विश्राम गृह

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के किस भाग में आप रहना चाहते हैं, सर्वप्रथम आपको यह निश्चित करना होगा। तत्पश्चात होटल का चुनाव करें। यदि आप मेरी तरह चीला आरक्षित वन का अवलोकन करना चाहते हैं तो ठहरने के लिए सर्वोत्तन स्थान है – गढ़वाल मंडल विकास निगम(GMVN) का चीला अतिथी गृह। यहाँ लठ्ठों की कई सुन्दर कुटीयाँ हैं जहां से गंगा का अप्रतिम दृश्य दिखाई पड़ता है। यहाँ से आप आसानी से गंगा किनारे तक पहुँच सकते हैं। गंगा किनारे सैर कर सकते हैं अथवा शांत बैठ कर उसे घंटों निहार सकते हैं।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान दर्शन के लिए कुछ सुझाव

  • राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का चीला आरक्षित वन ऋषिकेश एवं हरिद्वार के मध्य सुगम्य स्थान पर स्थित है। स्थानीय रहवासियों के लिए यह एक अत्यंत इष्ट सैर स्थल है।
  • यह उद्यान वर्षा ऋतू अर्थात् जून मध्य से नवम्बर मध्य तक बंद रहता है।
  • आप प्रातःकालीन सफारी सुबह ६ बजे से ९ बजे तक कर सकते हैं। दोपहर की सफारी ३ से ५ बजे तक की जाती है। यदि संभव हो तो आप एक प्रातःकालीन सफारी अवश्य कीजिये।
  • राजाजी राष्ट्रीय उद्यान दर्शन का सर्वोत्तम समय है अक्टूबर से मार्च महीने के बीच कभी भी।
  • चीला वन के मुख्य द्वार के ठीक बाहर एक स्मारिका दूकान है। वन्य प्राणियों से सम्बंधित कई यादगार स्मारिकाएं आपको यहाँ मिल जायेंगी।
  • वन्य प्राणी व्याकुल ना हों, इसलिए हमें चटक रंग के कपड़ों से बचाना चाहिए। जहां तक हो सके, स्वयं को ढँक कर रखें। धूल एवं धूप से बच सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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