शेखावाटी हवेलियाँ और उनके भित्तिचित्र – राजस्थान की मुक्तांगण दीर्घा

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राजस्थान का शेखावाटी क्षेत्र विश्व के विशालतम मुक्तांगण संग्रहालय के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। यहाँ की रंग-बिरंगी शेखावाटी हवेलियाँ अपनी उज्ज्वल एवं जीवंत चित्रकारी के लिए विश्वप्रसिद्ध हैं। इस क्षेत्र के अधिकतर नगर चित्रित हवेलियों से भरे हुए हैं जो १०० से भी अधिक वर्ष पुरानी हैं। सघन भित्तिचित्रों से अलंकृत हवेलियों को देख आँखें चुँधिया जाती हैं। नगर की सड़कों पर चलते हुए आप की दृष्टि किसी एक भित्तिचित्र पर टिक ही नहीं पाती।

शेखावटी हवेलियाँ - राजस्थान
शेखावाटी हवेलियाँ – राजस्थान

हवेलियों के भीतर इन भित्तिचित्रों की सघनता और भी बढ़ जाती हैं। इन भित्तिचित्रों की विषय-वस्तु शास्त्रों में उपलब्ध प्राचीन किवदंतियों से लेकर उस समय के आधुनिक कथाओं तक विस्तृत हैं जब ये शेखावाटी हवेलियाँ निर्मित की गई थीं। आकर्षक एवं रंगों से परिपूर्ण एक एक भित्तिचित्र हमारा ध्यान आकर्षित करने में होड़ लगाता सा प्रतीत होता है। यदि कहूँ कि ये हमारी चेतना पर प्रहार से करते प्रतीत होते हैं, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

आईए आपको ऐसी ही शेखावाटी हवेलियों के दर्शन करती हूँ एवं उनकी विशेषताओं के विषय में आपसे चर्चा करती हूँ।

शेखावाटी हवेलियाँ क्या है?

नवलगढ़ की पोद्दार हवेली
नवलगढ़ की पोद्दार हवेली

शेखावाटी हवेलियाँ राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में स्थित हवेलियाँ है। यह क्षेत्र राजस्थान का अपेक्षाकृत अधिक हरा-भरा क्षेत्र है। किसी समय यह क्षेत्र राव शेखा का बाग अथवा वटी था। इसीलिए इसका नाम शेखावाटी पड़ा जिसका अर्थ है शेखा की वटी। इस क्षेत्र के विभिन्न नगरों का निर्माण उनके पुत्रों ने करवाया था।

हवेलियाँ विशाल भवनों के समान होती हैं जिनमें खुले प्रांगण होते हैं। स्पष्ट रूप से सीमांकित सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत क्षेत्र होते हैं जहां संबंधित परिवार निवास करते हैं।

शेखावाटी हवेलियाँ कब बनी?

१९ वी. सदी में निर्मित कुछ हवेलियों को छोड़ अधिकतर हवेलियों का निर्माण २० वी. सदी में किया गया था।

शेखावाटी हवेलियाँ किसने बनवाई?

मुख्यतः वैश्य एवं अग्रवाल समाज के व्यापारी परिवारों ने इन हवेलियों का निर्माण करवाया था। जब इस क्षेत्र में नगर विकसित लिए जा रहे थे तब यहाँ आर्थिक आधार एवं सहायता की आवश्यकता प्रतीत हुई ताकि विकसित किये जा रहे नगरों का पोषण किया जा सके। तब समीप के क्षेत्रों से व्यापारियों को यहाँ आमंत्रित किया गया। ये व्यापारी परिवार यहाँ आए तथा इस नगर के सीमावर्ती क्षेत्रों में बस गए जिसके लिए उन्हे भूमि प्रदान की गई थी। उन्होंने खसखस एवं मसालों का व्यवसाय आरंभ किया। आपको स्मरण ही होगा कि यह क्षेत्र प्राचीन रेशम पथ अर्थात सिल्क रूट से अधिक दूर नहीं है।

अग्रवाल एवं मारवाड़ी समुदाय की देवी - लक्ष्मी
अग्रवाल एवं मारवाड़ी समुदाय की देवी – लक्ष्मी

कुछ वर्षों के पश्चात, इनमें से अधिकतर परिवार व्यवसाय एवं धन की वृद्धि हेतु आवश्यक सुविधाओं के लिए कोलकाता में स्थानांतरित हो गए। वहाँ से अर्जित अधिक धन का उपयोग कर उन्होंने अधिक विशाल हवेलियाँ निर्मित कराईं, उन पर रंग-रोगन करवाए। उनमें एक प्रकार की होड़ थी कि कौन अधिक विशाल एवं अधिक भव्य हवेली का निर्माण करवाएगा।
जब आप आसपास पूछताछ करेंगे तो आपको यह ज्ञात होगा कि भारत के अधिकतर व्यापारी परिवार, विशेषतः वे व्यापारी परिवार जो कोलकाता में व्यवसाय कर रहे हैं, उनकी जड़ें इस क्षेत्र में फैली हैं।

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ये हवेलियाँ कहाँ कहाँ स्थित हैं?

शेखावाटी की चित्रमयी हवेलियाँ नवलगढ़, मंडावा, चुरू, झुंझुनू, बिसाउ, महनसर, रामगढ़ तथा फतेहपुर में स्थित हैं।

इन सभी नगरों में जहां जहां भी नगर-द्वार हैं, उन द्वारों के बाहर अथवा मुख्य बाजार क्षेत्र के बाहर आप इन हवेलियों के समूह देखेंगे। इसका मुख्य कारण यह है कि ये व्यापारी परिवार एक साथ इस क्षेत्र में आए थे तथा एक दूसरे के पास ही उन्होंने हवेलियों के लिए भूमि अर्जित की थी।

शेखावाटी हवेलियों की वास्तुकला

एक हवेली की वास्तुकला में कई नवीन प्रभावों एवं पद्धतियों का समावेश होता है। शेखावाटी हवेलियों की बाहरी भित्तियों पर बड़े भित्तिचित्र चित्रांकित किये गए हैं जिनमें अंग्रेजी शासन के समय का चित्रण किया गया है। इनमें बग्घियों, रेलगाड़ियों एवं अंग्रेजी जीवनशैली के चित्रों की प्राधान्यता है। कुछ हवेलियों में रेलगाड़ियों का चित्र तब बनाया गया था जब भारत में प्रथम रेलगाड़ी ने पदार्पण भी नहीं किया था। कदाचित हवेलियों के सेठ गांववासियों को परिवहन के नवीन साधनों के विषय में ज्ञान देने की चेष्टा कर रहे थे। मंडावा की एक हवेली में तो मैंने एक वायुयान का भी चित्र देखा था।

शेखावटी हवेली का सुसज्जित द्वार
शेखावाटी हवेली का सुसज्जित द्वार

अधिकतर हवेलियाँ दो तलों में निर्मित हैं। इनके सिवाय मैंने कुछ हवेलियाँ एक-तल की तथा एक हवेली तीन तलों में निर्मित भी देखी। इन हवेलियों की छतों से नगर का विहंगम दृश्य प्राप्त होता है। इन छतों से आप अन्य हवेलियाँ, मंदिर, दुर्ग तथा बावड़ियों जैसी नगर की अन्य प्रमुख संरचनाएं देख सकते हैं।

अधिकतर शेखावाटी हवेलियाँ संकरी गलियों में एक दूसरे के समीप स्थित हैं। कदाचित उनके स्वामियों में हवेलियों के बाहर अथवा भीतर गाड़ियों के रखने का स्थान बनाने की दूरदृष्टि नहीं थी।

मुख्य द्वार

मुख्य द्वार के ऊपर बिना चूके गणेश जी की प्रतिमा स्थापित होती है। मुख्य द्वार पर छोटी छोटी चौखटें हैं। द्वार की सतह पीतल अथवा तांबे से बनी है जिस पर कई नुकीली संरचनाएं हैं। इनके कारण द्वार को धक्का देकर खोलना कठिन होता है। हवेली की ओर जाता मुख्य द्वार अत्यंत भव्य होता है।

प्रथम आँगन अथवा चौक

मुख्य द्वार प्रायः एक खुले आँगन की ओर ले जाते हैं जिसे चौक भी कहा जाता है। यह एक सार्वजनिक क्षेत्र होता है जिसे आधुनिक परिवेश में कार्यालयीन क्षेत्र कहा जा सकता है। यहाँ सामान्यतः बैठकें आयोजित की जाती थीं, वह भी मुख्य द्वार के ठीक सामने ताकि परिवार तथा व्यवसाय का मुखिया प्रत्येक आने-जाने वाले पर दृष्टि रख सके। कुछ हवेलियों में बैठक प्रवेश द्वार से दाईं अथवा बाईं ओर हैं।

चौक की रंगी हुई दीवारें - शेखावटी
चौक की रंगी हुई दीवारें – शेखावाटी

बैठक के चारों ओर की भित्तियाँ चित्रित हैं। उनमें दर्शाये चित्र हिन्दू शास्त्रों से लिए गए हैं। कृष्ण की कथा सार्वलौकिक है क्योंकि वे इस क्षेत्र के सर्वाधिक लोकप्रिय देव हैं। स्मरण रहे कि यह क्षेत्र कृष्ण की भूमि, ब्रज भूमि से अधिक दूर नहीं है।
चौक के मध्य भाग पर ना तो छत होती है ना ही भूमि पक्की होती है। यहाँ से आकाश को निहारा जा सकता है। यहाँ प्रायः तुलसी का पौधा लगाया जाता है। कभी कभी इस भाग में बड़ा पेड़ भी देखने मिलता है।

बैठक

बैठक सामान्यतः स्तंभों युक्त विशाल कक्ष होता है जो एक अथवा दो तलों का हो सकता है। यह किसी अधिकारिक स्थान के सम्मेलन कक्ष के समान होता है। बैठक की भूमि पर श्वेत गद्दी, तकिये तथा लोड़ चारों ओर बिखरे हुए हैं। ऊपर हस्तपंख लटकाया गया है जिसे बहुधा गूंगा व बहरा व्यक्ति हिलाता था। गूंगा व बहरा व्यक्ति इसिलिए चुना जाता था ताकि बैठक में होने वाली चर्चा एवं व्यवहार विषयी कोई भी सूचना बैठक के बाहर ना पहुंचे। बैठक के मुख्य क्षेत्र के चारों ओर सुरक्षित कक्ष होते हैं जिनके भीतर तिजोरियाँ में धन एवं महत्वपूर्ण आलेख रखे जाते थे। आप इन कक्षों में रखीं धातु की भारी तिजोरियाँ देख सकते हैं।

शेखावटी हवेली की बैठक - जहाँ व्यवसाय की बातें होती थी
शेखावाटीहवेली की बैठक – जहाँ व्यवसाय की बातें होती थी

ऊपरी तल में एक छोटी खिड़की होती है जिसके द्वारा हवेली की स्त्रियाँ बैठक में जारी व्यवसायिक चर्चाओं को सुन सकती थीं। आप समझ सकते हैं कि परिवार का मुखिया सामान्यतः व्यवसाय संबंधी चर्चा अपनी पत्नी एवं परिवार की अन्य स्त्री सदस्यों से करते थे। उनके सर्व व्यवसाय भी बहुधा पारिवारिक व्यवसाय ही होते थे।

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यहाँ की भित्तियों पर भिन्न भिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के चित्र चित्रित हैं। इन चित्रों में धन व संपन्नता की देवी लक्ष्मी तथा उनके अवतारों की प्राधान्यता होती है। नवलगढ़ की पोद्दार हवेली के ऊपरी तल में मैंने नवरात्रि में पूजी जाने वाली देवी के ९ रूपों के चित्रण देखे। ऐसा प्रतीत होता है मानो सम्पूर्ण व्यवसाय देवी-देवताओं के साक्ष्य में किया जाता था।

दूसरा चौक

अधिकतर बड़ी हवेलयों में एक दूसरा चौक अथवा आँगन है जो प्रथम चौक के ही समान है किन्तु यह व्यक्तिगत है। यहाँ बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषेध था। अधिकतर गाइड आपसे कहेंगे कि यह जनाना अर्थात केवल स्त्रियों के लिए था। मैं इससे सहमत नहीं हूँ। अंतर केवल व्यापारिक क्षेत्र तथा पारिवारिक क्षेत्र का है। चूंकि परिवार के पुरुष सदस्य व्यावसायिक व्यवहार करते थे तथा स्त्रियाँ पारिवारिक क्षेत्र में रहती थीं। व्यावसायिक व्यवहारों की समाप्ति के पश्चात पुरुष सदस्य भी इस पारिवारिक क्षेत्र में आते थे।

हवेली के गलियारे में भित्तिचित्र
हवेली के गलियारे में भित्तिचित्र

चौक की बाहरी भित्तियों पर सम्पूर्ण चित्रकारी की गई है।

इन हवेलियों की एक अनूठी विशेषता है कि लगभग सभी हवेलियों के आँगन में मिट्टी की कच्ची भूमि है। इसका अर्थ है कि इस पर गिरने वाली वर्षा का सम्पूर्ण जल धरती की तृष्णा शांत करता है। तुलसी का पौधा भी प्रायः प्रत्येक हवेली में दृष्टिगोचर होता है।

रसोईघर

विशाल हवेलियों के भीतर रसोईघर अपेक्षाकृत छोटे दृष्टिगोचर हुए, वह भी एक से अधिक। साथ ही जल संचयन हेतु कई कक्ष हैं।

शेखावटी हवेली की सादी सी रसोई
शेखावाटी  हवेली की सादी सी रसोई

एक से अधिक रसोईघरों के देख मैंने अनुमान लगाया कि कदाचित एक हवेली में कई परिवार बसते थे जिनके भिन्न रसोईघर होते थे। ऐसा अधिकतर तभी होता है जब समय के साथ हवेली के स्वामी के परिवार में वृद्धि होने लगती हैं किन्तु परिवार के सदस्यों में अनबन होती है अथवा परिवार में शांति बनाए रखने हेतु वे स्वेच्छा से अपनी रसोई पृथक कर लेते हैं।

पारिवारिक बैठक कक्ष

बैठक कक्ष बहुधा विशाल होते हैं जिनके भीतर छोटी छोटी अलमारियाँ होती हैं। उन छोटी अलमारियों को देख मुझे अचरज हो रहा था कि अंततः हवेली के निवासी अपनी व्यक्तिगत वस्तुएं कहाँ रखते थे? पिरामल हवेली के एक सेवक ने मुझे बताया कि वस्तुओं के संचय के लिए वे संदूकों का प्रयोग करते थे तथा कभी कभी एक सम्पूर्ण कक्ष भंडार गृह के रूप में प्रयोग करते थे। उसने यह भी कहा कि हवेली के निवासी आज के समान इतनी वस्तुओं का संचयन भी नहीं करते थे।

हवेली के कक्षों की भीतरी भित्तियाँ अधिकांशतः सादी हैं। कुछ हवेलियाँ जिन्हे अब अतिविलासी अतिथिगृह में परिवर्तित किया गया है, उनकी भीतरी भित्तियों को अब रंगों से सजाया गया है किन्तु मूलतः वे सादे थे।

अतः हवेलियों की बाहरी भित्तियाँ तथा ऐसे कक्ष जहां अतिथियों तथा व्यवसायी परिचितों को ठहराया जाता था, उनकी भीतरी भित्तियाँ रंगों से चित्रित हैं जबकि निजी क्षेत्र सादे हैं।

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शौचालय

पिरामल हवेली जहां मैं ठहरी थी, उसका निर्माण १९२४ में किया गया था। इसके प्रत्येक कक्ष के भीतर एक एक संलग्न शौचालय है। किन्तु पुरानी हवेलियों में या तो छोटे भंडारगृहों को शौचालयों में परिवर्तित किया गया है या कक्षों के भीतर अतिरिक्त भित्ति उठाकर शौचालयों की व्यवस्था की गई है। मुझे यह ज्ञात नहीं हो पाया कि यदि यहाँ शौचालय थे तो कहाँ स्थित थे। कदाचित वे मुख्य हवेली के बाहरी भाग में स्थित थे।

स्वर्ण कक्ष

झुंझुनू की एक हवेली में स्वर्ण जडित भित्तिचित्र
झुंझुनू की एक हवेली में स्वर्ण जडित भित्तिचित्र

हवेलियों के कुछ कक्ष सुनहरे रंग में रंगे हैं। यूं तो उस सुनहरे रंग के कुछ ही अवशेष शेष हैं, फिर भी कक्ष के उजले रंग कक्ष को अत्यंत जीवंत बनाते हैं। सुनहरे रंग के कक्ष अधिकतर बैठक अथवा हवेली के व्यावसायिक कक्ष होते हैं। कदाचित यह संभावित ग्राहकों को प्रभावित करने के लिए किया जाता था।

दुहरी हवेली

दुहरी हवेली वस्तुतः दो समरूप संयुक्त हवेलियाँ अर्थात जुड़वां हवेलियाँ होती हैं। यह अधिकांशतः ऐसे पिता द्वारा निर्मित की जाती थीं जिनके दो पुत्र होते थे। यदि दो पुत्रों में आपस में किसी प्रकार की अनबन नहीं है तथा उनमें अच्छी निभती है तो दोनों हवेलियों के मध्य स्थित द्वार खोलकर उसे एक एकल हवेली बना दी जाती थी। अन्यथा मध्य स्थित द्वार बंद कर दिया जाता था ताकि एक दूसरे के जीवन में बिना हस्तक्षेप किये वे अपना अपना जीवन आनंद से जी सकें।

मैंने मंडावा में दो जुड़वां हवेलियाँ देखीं – चोखानी दुहरी हवेली तथा पोद्दार दुहरी हवेली। बागड़ में मैंने रुंगटा दुहरी हवेली देखी।

नृत्य कक्ष

शेखावटी हवेलियों में पाश्चात्य शैली के रंग
शेखावाटी हवेलियों में पाश्चात्य शैली के रंग

महणसर की एक हवेली में पाश्चात्य शैली का एक नृत्य कक्ष है जिसके भीतर यूरोपीय चित्रकारी की हुई है। हालांकि यह मुख्य बैठक कक्ष से जुड़ा हुआ नहीं है। इसका अस्तित्व एक स्वतंत्र कक्ष के रूप में होता था जिसका उपयोग मुख्यतः विदेशी अतिथियों अथवा कदाचित पश्चिमी सभ्यता अपनाए भारतीयों के मनोरंजन के लिए किया जाता था।

इन हवेलियों का रखरखाव कैसा है?

अधिकतर शेखावाटी हवेलियाँ अब खली पड़ी हैं मैंने मोटा अनुमान लगाया कि शेखावाटी की इन हवेलियों में औसतन २०-४० वर्षों तक ही निवास किया गया था। अधिकतर परिवार १९४७ में स्वतंत्रता के पश्चात इन हवेलियों को छोड़कर कहीं और बस गए थे। इनमें कुछ हवेलियों में रखवाले हैं किन्तु अधिकतर हवेलियाँ त्यक्त पड़ी हुई हैं।

महाभारत से द्युत क्रीडा का दृश्य - शेखावटी हवेलियाँ
महाभारत से द्युत क्रीडा का दृश्य – शेखावाटी हवेलियाँ

कुछ हवेलियों का नवीनीकरण कर उन्हे संग्रहालयों में परिवर्तित किया गया है। नवालगढ़ की पोद्दार हवेली, फतेहगढ़ की ‘Nadine Le Prince’ हवेली इनमें मुख्य हैं। मंडावा की कई हवेलियों का रखरखाव वहाँ रखे गए रखवाले करते हैं जो आपको शुल्क लेकर हवेली के दर्शन भी करा देंगे। कुछ परिवार हवेलियों के एक छोटे भाग में ही निवास करते हैं। हवेलियों के शेष भाग का वे पर्यटन के लिए प्रयोग कर जीविका अर्जित करते हैं।

सर्वाधिक उत्तम रखरखाव उन हवेलियों का हुआ है जिन्हे अतिविलासी अतिथिगृहों में परिवर्तित किया गया है।

शेखावाटी हवेलियाँ और चित्रकारी की विषय वस्तुएँ

शेखावाटी की हवेलियों में की गई चित्रकारियों में मुख्यतः ये विषय वस्तुएं होती हैं।

भारतीय विषय वस्तुएं

लक्ष्मी – लक्ष्मी व्यावसायिक परिवारों की मुख्य देवी हैं। बैठक के भीतर तथा आसपास आप लक्ष्मी की कई छवियाँ देखेंगे। हवेली के इसी क्षेत्र में व्यवसाय संबंधी चर्चाएं तथा निर्णय हुआ करते थे। आप लक्ष्मी देवी को गजलक्ष्मी के रूप में द्वार के ऊपर भी देख सकते हैं जिसका अर्थ है, लक्ष्मी के प्रवेश के लिए द्वार खुले हैं।

जयदेव के काव्य गीतगोविन्द का चित्रण
जयदेव के काव्य गीतगोविन्द का चित्रण

कृष्ण – शेखावाटी हवेलियों में सर्वत्र कृष्ण की कथाएं दृष्टिगोचर होती हैं। कृष्ण के जन्म की कथाएं, कृष्ण के बालपन में की गई शरारतों की कथाएं, उनके द्वारा की गई विभिन्न असुरों के वध की कथाएं, राधा संग लीलाओं की कथाएं तथा द्वारका की कथाएं इनमें प्रमुख हैं। मुझे महाभारत के विभिन्न घटनाओं पर की गई चित्रकारी कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुई। संभव है मुझसे कुछ अनदेखा हो गया होगा। पोद्दार हवेली में मैंने जयदेव द्वारा रचित गीत गोविंद का अद्भुत चित्रिकारण छः आदमकद चित्रों में किया हुआ देखा।

शास्त्रों में उल्लेख किये गए देवी-देवता एवं उनकी कथाएँ – भित्तियों पर सर्वत्र गणेश, शिव तथा देवी के कई स्वरूप दृष्टिगोचर होते हैं। एक हवेली में मैंने अग्नि देव तथा यमराज के भी भित्तिचित्र देखे। सागर मंथन जैसे पौराणिक घटनाओं पर भी चित्रकारी की गई हैं। कुछ काल पश्चात निर्मित एक हवेली में भारत माता पर भी एक भित्तिचित्र था।

रामायण तथा महाभारत का चित्रीकरण – मैंने कई हवेलियों में रामायण तथा महाभारत महाकाव्यों में उल्लेखित दृश्यों से संबंधित कई भित्तिचित्र देखे। इनमें लंका में हुई हनुमान की सीता से भेंट का दृश्य अत्यंत लोकप्रिय प्रतीत हुआ। मुझे स्मरण है, एक हवेली के एक विशाल भित्ति के ऊपर कौरवों एवं पांडवों के मध्य हुए कुप्रसिद्ध चौसर के खेल का भी चित्रिकारण मैंने देखा था।

उत्सव – होली, गणगौर, तीज, दिवाली इत्यादि ऐसे उत्सव हैं जिनमें जनमानस का विशाल सामूहिक सहभाग होता है। इन उत्सवों से संबंधित कई भित्तिचित्र भी इन हवेलियों में दिखाई पड़ते हैं। इन चित्रों में पुरुष एवं स्त्रियाँ प्रायः संगीत वाद्य बजाते दर्शाये गए हैं। राजसी शोभयात्राओं तथा सभाओं से संबंधित भित्तिचित्र भी कई पटलों पर विद्यमान हैं।

समकालीन रूपचित्र

चारों ओर कई रूपचित्र हैं जो अत्यंत यूरोपीय शैली में बनाए गए हैं। ये रूपचित्र अंग्रेज पुरुष एवं स्त्रियों के हैं। विभिन्न भूखंडों के व्यक्तिमत्व, उनकी विभिन्न वेशभूषा शैलियाँ, विभिन्न शिरोवस्त्र इत्यादि का अचूक चित्रण किया गया है।

एक शेखावटी हवेली में भारत माता का चित्रण
एक शेखावाटी हवेली में भारत माता का चित्रण

मंडावा की एक हवेली में मैंने नेहरू, गांधी एवं कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के रूपचित्र देखे। चुरू की एक हवेली की बाहरी भित्ति पर मैंने इसा मसीह का चित्र देखा वहीं उनका चित्र मैंने एक हवेली के भीतर भी देखा।

ऐसे ही कई चित्र कक्षों की छतों पर तथा द्वार के तोरणों के नीचे भी हैं। गोलाकार पदकों पर भी रूपचित्र चित्रित हैं जिनके चारों ओर पत्ते एवं सजावटी रूपांकन हैं।

ऊंची कुर्सियों में बैठे हुए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों तथा उसी प्रकार व्यापारियों के भी भित्तिचित्र हैं। कंधों पर बंदूकें उठाए मोर्चे पर निकली ब्रिटिश सेना का भी एक चित्र है।

परिवहन साधनों के चित्र

मंडावा की एक हवेली पे हवाई जहाज का चित्रण
मंडावा की एक हवेली पे हवाई जहाज का चित्रण

वस्तुओं एवं मनुष्यों की एक स्थान से दूसरे स्थान तक आवाजाही व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। व्यापार करने के लिए उस समय भी परिवहन साधनों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया होगा। इसी के परिणामस्वरूप हवेलियों के भित्तिचित्रों में उन्हे भी विशेष स्थान प्रदान किया गया है। इन भित्तिचित्रों में आप लोगों को ऊंटों, हाथियों तथा घोड़ों पर सवारी करते देख सकते हैं। घोड़ा गाड़ियों के विभिन्न प्रकार आप हवेलियों के बाहरी भित्ति पर चित्रित देख सकते हैं।

रेल - शेखावटी हवेलियों का प्रसिद्द दृश्य
रेल – शेखावाटी हवेलियों का प्रसिद्द दृश्य

कई हवेलियों में चित्रित रेल गाड़ियों को देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे उस काल में लोग रेल गाड़ियों की कल्पना से अत्यंत आकर्षित थे। कदाचित दूरियों को शीघ्रता से पार करने की आशा अथवा नवीन स्थलों के दर्शन की अभिलाषा रही होगी। एक स्थान पर तो मैंने एक रेल स्थानक के निर्माण का दृश्य चित्रित देखा।

समुद्री जहाज
समुद्री जहाज

बड़े जहाज तथा वायुयान के चित्र क्वचित ही थे। कार एवं दुचाकी सायकल भी इन चित्रों में मुझे कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुए। किन्तु नवीन संरचित ऊंचे सेतुओं के भी चित्र थे। इन भित्तिचित्रों को देख मेरे मन में एक विचार कौंधा। भित्तिचित्र किसी समय की वस्तुस्थिति की जानकारी प्रदान करने का उत्तम साधन होता है।

यूरोपीय विषयवस्तुओं से संबंधित भित्तिचित्र

शेखावटी हवेली पर इसा मसीह का चित्र
शेखावाटी  हवेली पर इसा मसीह का चित्र

ये हवेलियाँ उस काल की हैं जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। यूरोपीय संस्कृति से भारत का परिचय आरंभ हो चुका था। उनका प्रभाव इन हवेलियों के भित्तिचित्रों पर स्पष्ट दृष्टिगोचर हैं। चुरू की एक हवेली पूर्णतः इटली की पद्धति से चित्रित है जिसमें सौम्य रंगों का प्रयोग कर इटली एवं फ्रांस के दृश्यों का चित्रण किया गया है। यूरोपीय शैली के प्रभाव की चर्चा करें तो लगभग सभी हवेलियों में यह प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होगा। मुझे एक तथ्य अत्यंत रोचक लगा वह यह कि विभिन्न क्षेत्रों के दृश्यों के चित्रण के समय चित्रकारों ने उन क्षेत्रों के परिवेश तथा उन क्षेत्रों में प्रयोग होने वाले रंगों का प्रयोग किया है। भारतीय दृश्यों के चित्रण के लिए रंगबिरंगे चटक रंगों का प्रयोग किया गया है, वहीं यूरोपीय दृश्यों के चित्रण में सौम्य रंगों का प्रयोग किया गया है।

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कुछ हवेलियों में एक तल पर भारतीय बेलबूटियों का चित्रण है तो दूसरे तल पर यूरोपीय शैली के चित्र हैं।

दैनिक जीवन

यद्यपि बहुत आम नहीं है तथापि मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों पर भी कई दृश्य चित्रित हैं।

बांधनी बनाने का चित्रीकरण
बांधनी बनाने का चित्रीकरण

वनस्पति एवं जीव – मैंने कई भित्तियाँ ऐसी देखी जो पुष्पाकृतियों के भरी हुई थीं। गुलदानों में रखे पुष्प के चित्रों के विषय में कहूँ तो विभिन्न क्षेत्रों के पुष्पों एवं वनस्पतियों का प्रयोग कर उन क्षेत्रों के दृश्यों का सुंदर चित्रण किया गया है। मोर एवं तोतों के चटक रंगों की भिन्नता इन चित्रों को एक नवीन ऊंचाई तक पहुँचती प्रतीत हैं।

समग्र कला – समग्र कला उसे कहते हैं जब अन्य चित्रों के समूहों का प्रयोग कर एक नवीन परिकल्पना चित्रित की जाती है।

झरोखे एवं द्वार – कई बार भित्तियों पर झरोखों की प्रतिकृतियाँ चित्रित कर भित्ति पर समरूपता लाने का प्रयास किया जाता है। कई चित्रकार एक पग आगे जाकर उन झरोखों से झाँकते हुए लोगों को भी चित्रित करते हैं। कभी कभी भित्तियों पर द्वार की आकृति चित्रित की जाती है जिनसे भित्ति पर द्वार होने भ्रम उत्पन्न होता है। कुछ कोनों में मैंने हवेली की ही सूक्ष्म प्रतिकृति चित्रित देखी।

बेल्जियम का कांच – कुछ हवेलियों के मुख्य द्वार पर बेल्जियम के विशेष, रंगबिरंगे कांच के टुकड़ों की गढ़न की गई है। इनके साथ साथ हवेली के भीतर भी प्रमुख स्थलों पर इन टुकड़ों का गढ़न किया गया है।

बेल्जियन ग्लास और लोगों के चित्र
बेल्जियन ग्लास और लोगों के चित्र

सूक्ष्मता से उत्कीर्णित द्वारों, झरोखों तथा मुख्य द्वार के चारों ओर चित्रित ये भित्तिचित्र रंगों का उत्सव मनाते प्रतीत होते हैं।
कुछ भित्तियों पर देवी की छवियों के अवशेष हैं जिनका प्रत्येक नवरात्रि में नवीनीकरण किया जाता है। तत्पश्चात नवरात्रि के नौ दिवस उनकी पूजा अर्चना की जाती है। यह चित्र प्रायः गेरुए रंग में रंगा होता है।

कुछ बाहरी भित्तियों पर शब्द लिखे हुए हैं जिनके द्वारा चित्रित कथा के पात्रों का परिचय दिया गया है। अधिकतर शब्द अब अस्पष्ट हो चुके हैं तथा उन्हे पढ़ना संभव नहीं है। गाइड को भी इन कथाओं के विषय में कुछ अधिक ज्ञात नहीं है।

कौन सी शेखावाटी हवेलियाँ अवश्य देखें?

कृष्ण और दूरभाष - शेखावटी हवेली
कृष्ण और दूरभाष – शेखावाटी हवेली
  • यदि आप केवल एक ही हवेली के दर्शन करना चाहते हैं तो नवलगढ़ की पोद्दार हवेली अवश्य देखें।
  • यदि आप कुछ हवेलियाँ, कुछ दुहरी हवेलियाँ तथा इटली की विषयवस्तु से संबंधित हवेली देखना चाहते हैं तो मंडावा जाएँ।
  • यदि किसी हवेली का सुनहरे रंग में रंगा कक्ष देखना चाहते हैं तो महनसर का भ्रमण करें।
  • यदि आप किसी शांत तथा उत्तम रखरखाव युक्त हवेली में कुछ दिवस रहना चाहते हैं तो झुंझुनू के निकट, बागड़ की पिरामल हवेली में ठहरें।
  • यदि आप इस क्षेत्र के अद्भुत जल प्रबंधन प्रणाली के दर्शन करना चाहते हैं तो चुरू का भ्रमण करें।

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अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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