राजगीर – बौद्ध परिषदों का मेजबान – बिहार के ऐतिहासिक स्थल

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विश्व शांति स्तूप - राजगीर, बिहार
विश्व शांति स्तूप – राजगीर, बिहार

राजगीर या राजगृह, जैसे कि यह जगह अपने अच्छे दिनों में जानी जाती थी, मगध महाजनपद की सबसे पहली राजधानी हुआ करती थी, जो बाद में गंगा नदी के किनारे बसे पाटलीपुत्र शहर में स्थानांतरित की गयी। आज यह एक छोटा सा नगर है जो पटना से दक्षिण-पूर्वी दिशा में 60 कि. मी. की दूरी पर बसा हुआ है। सात पहाड़ियों से घिरी यह जगह इन्हीं पहाड़ियों से घिरी घाटी में बसी हुई है। इसका शाब्दिक अर्थ है राजपरिवारों का निवासस्थान।

राजगीर – बिहार की ऐतिहासिक जगहें 

रंग बिरंगी बोद्ध पताकाएं - राजगीर, बिहार
रंग बिरंगी बोद्ध पताकाएं – राजगीर, बिहार

ऐतिहासिक दृष्टि से राजगीर जैनों, बौद्धों, हिंदुओं और इतिहास के विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि बुद्ध अनेक बार राजगीर की यात्रा कर चुके हैं। यहां पर आने का उनका प्रमुख उद्देश्य था बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार। यहीं वह जगह है जहां पर उन्होंने अपने महत्वपूर्ण उपदेशों को व्याख्यायित किया था। इन्हीं उपदेशों में से एक उपदेश ऐसा था जिसने यहां के पूर्व महाराज बिंबिसार को अन्य बहुत से लोगों के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया था।

माना जाता है कि भगवान महावीर ने भी राजगीर में 14 वर्षा ऋतु या चौमास बिताए थे। और यहीं पर उन्होंने अपना पहला उपदेश भी दिया था, यद्यपि उनके इस धर्मोपदेश को बुद्ध जितनी प्रसिद्धि नहीं मिल पायी। राजगीर में जैनों का एक श्वेतांबर और एक दिगंबर मंदिर भी है। इस शहर की जड़ें महाभारत तक फैली हुई हैं, जिसके अनुसार यह जरासंध की नगरी हुआ करती थी। कहते हैं कि इस शहर में आज भी जरासंध का अखाड़ा मौजूद है जहां पर पहलवान अपना अभ्यास करते हैं। लेकिन समय की कमी के कारण हमे यह अखाड़ा देखने का मौका नहीं मिला।

राजगीर वह जगह है, जहां पर सम्राट अशोक ने अपने प्रसिद्ध स्तंभ का निर्माण किया था, जिस पर हाथी का चिह्न बना हुआ है। यहां पर इस स्तंभ की मौजूदगी इसी बात की ओर संकेत करती है कि यह जगह सम्राट अशोक के शासनकाल में भी, यानी 2400 से भी अधिक साल पहले भी बहुत महत्वपूर्ण हुआ करती थी। कुछ लेखों के अनुसार सम्राट अशोक की मृत्यु यहीं राजगीर की किसी पहाड़ी के ऊपर हुई थी। यहां से शासन करने वाले मगध के अंतिम शासक बिंबिसार को उन्हीं के पुत्र अजातशत्रु द्वारा यहां की जेल में बंदी बनाकर रखा गया था, जिसने बाद में मगध की राजधानी को पाटलीपुत्र में स्थानांतरित किया। वह जेल आप आज भी वहां के दुर्ग की दीवारों के सहारे खड़ी देख सकते हैं।

विश्व शांति स्तूप, राजगीर 

किसी ज़माने का रोपवे - राजगीर, बिहार
किसी ज़माने का रोपवे – राजगीर, बिहार

आज विश्व शांति स्तूप राजगीर का सबसे प्रसिद्ध स्थल बन गया है, जो एक पहाड़ी के ऊपर बसा हुआ है। यहां पर पहुँचने का सिर्फ एक ही तरीका है और वह है रोपवे यानी रस्सी का मार्ग अर्थात इसी रस्सी के द्वारा आप उस स्तूप तक पहुँच सकते हैं। यह रोपवे बहुत साधारण सा है, जिसमें बैठने के लिए एक कुर्सी है जिसमें एक समय पर एक ही व्यक्ति बैठ सकता है। इस आसान को एक लोहे की रोड से ऊपर की मजबूत रस्सी से जोड़ा जाता है। जब आप इससे सवारी करते हैं तो आपको बार-बार अपने आसन से उछला और बैठना पड़ता है। आधे रास्ते तक पहुँचते-पहुँचते यह सवारी अचानक से थोड़ी डरावनी सी लगती है। रोपवे की यह सवारी लगभग 12 मिनटों की है। इसी बीच अगर अचानक से बिजली ने कुछ समय के लिए आराम करने का मन बना लिया तब तो आप इस छोटे से आसन पर, घाटी के ऊपर, बीच राह पर लटकते हुए अटके ही समझो। लेकिन अगर इन बातों को नज़रअंदाज़ किया गया तो यह सवारी बहुत ही मजेदार होती है।

विश्व शांति स्तूप एक विशाल स्तूप है जो धुँधले से सफ़ेद रंग का है और जिस पर बुद्ध की स्वर्णिम प्रतिमाएँ हैं, जो उनकी विविध मुद्राओं को दर्शाती हैं। यह स्तूप जापानी लोगों द्वारा बनवाया गया था। आज भी यहां पर एक जापानी साधु रहते हैं, जिन्हें फूजी बाबा के नाम से जाना जाता है, जो इस स्तूप और यहां के मंदिर की देखरेख करते हैं। हम बहुत भाग्यवान थे कि हमे बाबा द्वारा उनके घर पर जापानी चाय पीने के लिए आमंत्रित किया गया। उनका कक्ष उतना ही मनोहर था जितना कि वहां का स्तूप। यह कक्ष पहाड़ी की नैसर्गिक चट्टानों के सहारे बनवाया गया था, जो वहां पर मौजूद अन्य सभी वस्तुओं की तरह इस कक्ष का अविभाज्य हिस्सा थे। यहां पर खड़े होकर आप नीचे फैले पूरे राजगीर शहर और उसके आस-पास की जगहों का सुंदर नज़ारा देख सकते हैं।

इस जगह की बहुत ही अच्छे से देखरेख की जाती है। यहां पर आकर आप एक अलग ही प्रकार की खुशी और शांति महसूस करते हैं, जिसकी जरूरत आज हम सभी को है। यहां पर बहती हुई मंद-मंद हवा के साथ फहराते यहां पर लगे रगबिरंगी ध्वज इस जगह को और भी रंगीन और जीवंत बना देते हैं। यहां का वातावरण कभी भी सुस्त नहीं होता और आपको यहां कभी उबाऊपन महसूस नहीं होता।

सोन भंडार की गुफाएँ, राजगीर 

सोन भंडार गुफाएं - राजगीर, बिहार
सोन भंडार गुफाएं – राजगीर, बिहार

राजगीर की सोन भंडार की गुफाएँ आपको इस जगह से जुडे उपाख्यानों के बारे में बताती हैं। कहा जाता है कि इन गुफाओं के पीछे स्थित पहाड़ी स्वर्ण से जड़ी हुई है। इन्हीं में से किसी एक गुफा के भीतर वहां तक पहुँचने का दरवाजा है। इस दरवाजे के पास की दीवार पर शंखलिपि में एक मंत्र लिखा गया है, जिसका अर्थ अब तक नहीं पता है। कहते हैं कि जब उस मंत्र का अर्थ पता चलेगा और उसका उच्चारण होगा तभी यह दरवाजा खुल पाएगा, जिससे की उसमें छिपे स्वर्ण का पता लगाया जा सकता है।

हमे यह भी बताया गया कि अंग्रेजों ने, जिन्होंने इन सारी गुफाओं की खोज की थी, इस दरवाजे को खोलने की सारी कोशिशें की थी लेकिन सबकुछ व्यर्थ था। इन गुफाओं की दीवारों पर कुछ और भी नक्काशी काम दिखाई देते हैं, जो भारत में पत्थर पर नक्काशी काम के शुरुवाती दौर को प्रदर्शित करते हैं। इन में से एक गुफा की बाहरी दीवारों पर जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ भी देखी जा सकती हैं।

शीलालेखों के अनुसार जैन साधुओं का मानना है कि, इन गुफाओं का उत्खनन 3-4वी शताब्दी के दौरान हुआ था। ये गुफाएँ दुमंजिला हुआ करती थी लेकिन अब ऊपर की मंजिलों तक पहुँचना असंभव है। 20वी शताब्दी के आरंभिक काल में हुए व्यापक भूकंप में इन संरचनाओं के बहुत से भाग उद्धवस्थ हुए थे।

मनियार मठ, राजगीर 

मनियार मठ - राजगीर, बिहार
मनियार मठ – राजगीर, बिहार

मनियार मठ राजगीर का एक और खुदाई स्थल है। यह एक अष्टकोणी मंदिर है, जिसकी दीवारें गोलाकार हैं। इन गोलाकार दीवारों में नियमित अंतर की दूरी पर आले बने हुए हैं, जिनमें प्लास्टर से बनी विविध हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और प्रतिमाएँ स्थापित थीं। इनमें से अधिकतर मूर्तियाँ आज विस्थापित हो गयी हैं। लेकिन इनके बारे में हमे जितनी भी जानकारी मिली है, उससे तो यही लगता है कि, यह जगह नाग देवताओं की पुजा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। आप मंदिर के आलों के कोनों और छोरों पर इसके कुछ निशान देख सकते हैं। मनियार मठ के परिसर में आप विविध राजकुलों की छाप देख सकते हैं, जैसे गुप्त राजकुल का धनुष, जो आज पुराने राजगीर के बीचोबीच स्थित है और यह महाभारत में उल्लिखित मणि-नाग का समाधि स्थान माना जाता है।

राजगीर में स्थित गरम पानी के स्तोत्र  

गरम पानी के झरने - राजगीर, बिहार
गरम पानी के झरने – राजगीर, बिहार

राजगीर में ऐसे भी गरम पानी के स्तोत्र पाये जाते हैं, जिनके बारे में यह मान्यता है कि उनमें रोग निवारण की शक्तियाँ हैं। इस परिसर के बाहर लगे सूचना फलक के अनुसार यहां पर 22 कुंड और 52 छोटी-छोटी नदियां हैं, जिनके नाम भी इस फलक पर दिये गए हैं। इन स्तोत्रों का उद्गम सप्तर्णी गुफाओं के पीछे बताया जाता है जो पहाड़ियों के पीछे बसी हैं। यहां का सबसे गरम स्तोत्र है ब्रह्मकुंड, जिसके पास में ही लक्ष्मी नारायण का एक मंदिर है। जीतने भी लोग यहां पर आते हैं, वे सारे इस कुंड में स्नान करने के बाद ही मंदिर के दर्शन करने जाते हैं।

टम टम या घोड़ागाड़ी 

टमटम पड़ाव - राजगीर
टमटम पड़ाव – राजगीर

राजगीर में घूमते वक्त आप अपने आस-पास नज़र आते रंगीन और ऊंचे-ऊंचे तांगों को बिलकुल भी अनदेखा नहीं कर सकते। यहां के तांगे बहुत ही आकर्षक होते हैं। इन तांगों के लिए यहां पर एक खास अड्डा है जिसे ‘टम टम पड़ाव’ कहा जाता है। यहां पर कोई भी तांगा किराए पर लेकर शहर में जहां चाहे घूम सकते हैं। यहां का प्रत्येक तांगा सुंदर रूप से सजाया गया होता है और हर तांगे का अपना एक नाम भी होता है। सजावट के साथ इन तांगों में घुंगरू या फिर छोटी-छोटी घंटियाँ भी बांधी जाती हैं। जब भी तांगा चलता है तो ये घुंगरू एक अलग ही प्रकार की ध्वनि पैदा करते हैं। यहां के सभी तांगे एक जैसे हैं, लेकिन उनका शृंगार ही है जो उन्हें एक दूसरे से अलग बनाता है। ये तांगे इतने लुभावने होते हैं, कि जो भी तांगा आपकी नज़रों को मोह लेता है आप बस उसी पर सवारी करना चाहते हैं। इन तांगों का मूल उद्देश्य यही है कि, इस शहर में कम से कम गाडियाँ हो जिससे कि प्रदूषण भी नियंत्रण में रह सके।

सिलाओ का खाजा

सिलाओ का खाजा
सिलाओ का खाजा

राजगीर और नालंदा के बीच एक छोटी सी जगह है सिलाओ, जो खाजा, यानी बिहार का एक प्रकार का मीठा या नमकीन पदार्थ, के लिए बहुत प्रसिद्ध है। सिलाओ का खाजा बिहारी लोगों का सबसे पसंदीदा खाद्य पदार्थ है। जब भी आप इस शहर से गुजरते हैं आपको यहां हर जगह सिर्फ खाजा की ही दुकानें दिखाई देती हैं। अगर आप कभी यहां पर गए तो इस स्वादिष्ट व्यंजन का लुत्फ जरूर लीजिये।

राजगीर में और भी बहुत सी अच्छी-अच्छी जगहें हैं जो हम नहीं देख पाए। इस जगह को अच्छी तरह से देखने और घूमने के लिए आपको लगभग दो दिन चाहिए। मैं आशा करती हूँ कि मुझे यहां पर आने का एक और मौका जरूर मिले ताकि मैं इस जगह को अच्छे से देख सकू।

7 COMMENTS

    • वंदना जी – आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद. आप पढ़ते रहिये, अपने विचार हमसे साँझा करते रहिये और विश्व भर से कहानियां बटोर कर आपके पास लाते रहेंगे.

  1. Bihar ke ho KR Bhi kbhi Nalanda aur Rajgir nhi travel kre h…PR aapke experience se ab visit krne ka mn hota h… Inspired krti h aap Bahut…… Thanks

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