रानी की वाव सात मंजिला बावड़ी है जो भीतर से उत्कीर्णन और भारतीय शिल्पकला से पूर्ण रूप से अलंकृत है। यह बावड़ी एक रानी ने अपने पति की स्मृति में बनवाई थी। भारत के इस अद्वितीय स्थल ने 2014 में विश्व धरोहर के स्थलों में अपना स्थान ग्रहण किया था। इस प्रमुख बावड़ी के आस-पास और भी कई कुएं हैं जिन में से एक कुआं ठीक इस बावड़ी के पीछे है। इन सब में रानी की वाव अपने आप में अप्रतिम है। इसकी भव्यता और वैभव की तुलना वहां पर मौजूद किसी अन्य बावड़ी से नहीं की जा सकती। रानी की वाव न सिर्फ अपने आकार-प्रकार में भव्य है, बल्कि वह अपनी शिल्पकारी की सुसज्जता के कारण भी अप्रतिम लगती है।
सीढ़ियों वाली बावड़ी की यह पूरी संरचना भू-स्तर से नीचे बसी हुई है। इसलिए जब आप उसकी ओर बढ़ते हैं तो आपको अपने आस-पास सिर्फ हरी-भरी जमीन ही नज़र आती है, जिस पर बने हुए मार्ग आपको जमीन में बनी एक बड़ी सी सुराख़ की ओर ले जाते हैं।
सीढ़ियों वाली अलंकृत बावड़ी
इस सुराख़ के प्रवेश द्वार पर पहुँचते ही आपको वहां की विशाल सीढ़ियों पर बनी बड़ी-बड़ी संरचनाएं नज़र आती हैं। तथा वहां की दीवारों पर भी आपको उत्कीर्णन की शिल्पकारी दिखाई देती है। ऊपरी स्तर की त्रिकोणीय सीढ़ियों से उतरते हुए जैसे-जैसे आप नीचे जाते हैं, इन सीढ़ियों की सुंदरता आपको मंत्रमुग्ध कर देती है। नीचे पहुँचते-पहुँचते इन सीढ़ियों का मिलन बड़ी सीढ़ियों के साथ होता है। जैसे-जैसे इस बावड़ी की गहराई में उतरते जाते हैं वैसे-वैसे उसकी खूबसूरती आपको और भी मोहित करती जाती है। प्रवेश द्वारा से लेकर अपनी गहराई तक यह बावड़ी पूरी तरह से उत्कृष्ट शिल्पकारी से सुसज्जित है। यहां की प्रत्येक चित्रकारी अपने आप में अद्वितीय है।
इस बावड़ी का निचला स्तर शायद बाहरी वातावरण से अधिक संपर्क में न होने के कारण आज भी काफी अच्छी परिस्थिति में है। इस निचले स्तर तक पहुँचते-पहुँचते ऐसा महसूस होता है, जैसे कि आप बाहरी दुनिया से कटे हुए इन सीढ़ियों में घिरे हुए हैं। और तब जाकर आप यहां की पत्थरों में लिखित कथाओं की प्रशंसा में पूर्ण रूप से खो जाते हैं।
रानी की वाव की मूर्तियाँ
सीढ़ियों वाली इस बावड़ी की दीवारों पे आपको मुख्य रूप से विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियाँ नज़र आती हैं। विष्णु के इन दस अवतारों को समूहिक रूप से दशावतार कहते हैं। इसी के साथ यहां पर स्त्री के साज-श्रृंगार के सोलह विविध प्रकारों को नारी मूर्तियों के द्वारा दर्शाया गया है। इसके अलावा यहां पर नागकन्याओं की भी कुछ मूर्तियाँ मिलती हैं। इस बावड़ी में प्रत्येक स्तर पर स्तंभों से बना हुआ गलियारा है जो वहां के दोनों तरफ की दीवारों को जोडता है। इस गलियारे में खड़े होकर आप रानी के वाव की सीढ़ियों की प्रशंसा कर सकते हैं। इन स्तंभों की बनावट देखकर ऐसा लगता है जैसे कि पत्थरों को ही कलश के आकार में ढाल दिया गया हो। इस प्रकार की शैली आप पूरे गुजरात में देख सकते हैं। यहां की उत्कीर्णित दीवारों के बीच कुछ दीवारें ऐसी भी हैं जिन पर बने हुए ज्यामितीय चित्र या रेखाचित्र देखने लायक हैं।
रानी की वाव का गहरा कुआं
रानी की वाव में नीचे अंतिम स्तर पर एक गहरा कुआं है जो उपर से भी देखा जा सकता है। यह कुआं भी इस सम्पूर्ण बावड़ी की तरह उत्कीर्णन से सुशोभित है। इस कुएं के अन्दर भी और गहराई तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। लेकिन आज अगर आप उपर से नीचे देखे तो आपको वहां पर दीवारों से बाहर निकले हुए सिर्फ कुछ कोष्ठ ही नज़र आएंगे जो कभी किसी प्रकार की वस्तु या संरचना को रखने हेतु इस्तेमाल होते थे। अगर आप इस कुएं में भीतर तक जाएं तो आपको उसके तल में स्थित शेष शैय्या पर लेटे हुए विष्णु की मूर्ति देखने को मिलती है।
पुतात्वविदों का मानना है की विष्णु की इस मूर्ति से शायद इस बावड़ी को क्षीरसागर समान मानने के लिए
पाटन, गुजरात
रानी की वाव अहमदाबाद से लगभग 140 कि.मी. उत्तर पश्चिमी भाग में, पाटन शहर के पास बसी हुई है, जो सोलंकी वंशजों की प्राचीनतम राजधानी हुआ करती थी। सोलंकी वंशज पहली सहस्त्राब्दी के बदलते युग के दौरान इस क्षेत्र पर शासन करते थे। राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयमती ने यह वाव 11 सदी के उत्तरार्ध काल के दौरान बनवाई थी। इस वाव के निर्माण के पीछे का मुख्य कारण था पानी का प्रबंध, क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत ही कम वर्षा होती है। तो इसके पीछे दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि शायद रानी उदयमती जरूरतमंद लोगों को पानी प्रदान करके पुण्य कमाना चाहती थी।
जब मैं रानी की वाव में खड़ी थी तो मुझे लगा कि, इसकी दीवारों पे उत्कीर्णित देवी-देवताओं की मूर्तियाँ या फिर वहां पर बने अन्य धार्मिक प्रतीक शायद उसे साफ और पवित्र बनाए रखने हेतु उत्कीर्णित किए गए होंगे। कभी कभी तो यहाँ की शिल्पकारी देख कर इस वाव के एक मंदिर होने का भ्रम होता है।
रानी की वाव देखने के बाद आप जरूर हमारे पूर्वजों के दृष्टिकोण की प्रशंसा करेंगे जो जीवन के प्रति द्वियम दृष्टिकोण रखते थे। सीढ़ियों वाली यह बावड़ी न सिर्फ इस क्षेत्र द्वारा प्रदान किए गए थोड़े से पानी को इकट्ठा करने की जगह थी, बल्कि यह एक ऐसी जगह है जहां पर आकर लोग शांति और सुख का एहसास करते हैं। यह पूरी बावड़ी प्राचीन काल की मान्यताओं और संस्कृति पर लिखी हुई जैसी कोई पुस्तिका है जो आनेवाली पीढ़ी के लिए लिखी गयी है। यह बावड़ी एक प्रकार से हमारी संस्कृति और परंपराओं का ज्ञान सागर है, जो अपनी सीढ़ियों द्वारा आपको हमारी संस्कृति की गहराई तक ले जाती है।
आप जब गुजरात जाएँ, तो रानी की वाव अवश्य जाइए।