सबरीमाला यात्रा निर्देशिका – अरविन्द सुब्रमण्यम

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सबरीमाला, भारत के पश्चिमी घाटों के अंक में स्थित भगवान अयप्पा का धाम। केरल के पथानमथिट्टा जिले में स्थित सबरीमाला में भगवान अयप्पा का प्रसिद्ध मंदिर है जो दक्षिण भारतीय श्रद्धालुओं में अत्यंत लोकप्रिय है। सबरीमाला तीर्थयात्रा के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर आध्यात्मिक संपदा का महत्वपूर्ण स्रोत है।

आज हमने इंडिटेल के माध्यम से प्रसारित डीटूअर्स में आमंत्रित किया है, श्री अरविन्द सुब्रमण्यम जी को, जो सबरीमाला अयप्पा मंदिर से प्रगाढ़ रूप से संलग्न हैं। वे हमें इस मंदिर एवं सबरीमाला तीर्थयात्रा के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। उन्होंने अपने जीवन में सबरीमाला की अनेक यात्राएं की हैं तथा उस पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं।

सबरीमाला शब्द का क्या अर्थ है?

तमिल, मलयालम तथा अन्य अनेक भारतीय भाषाओं में शिकारी को शबरी अथवा सबरी कहा जाता है। माला का अर्थ पहाड़ी होता है। अर्थात सबरीमाला का शाब्दिक शिकारियों की पहाड़ी होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर का नामकरण शबरी नामक एक योगिनी पर किया गया है जो ऋषि अगस्त्य की शिष्या थी। वह दीर्घ काल से तपस्या में लीन, देव शास्ता के मणिकण्ठ रूप में अवतरित होने की प्रतीक्षा रह रही थी। मणिकण्ठ को अयप्पा स्वामी का अवतार माना जाता है। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान मणिकण्ठ ने इस पहाड़ी पर निवास करते अपने भक्तों के कल्याण के लिए यहीं स्थायी हो जाने का निर्णय लिया।

सबरीमाला का संक्षिप्त इतिहास

ब्रह्मांड पुराण, स्कन्द पुराण एवं ब्रह्म पुराण में मणिकण्ठ अथवा अयप्पा स्वामी को शास्ता भगवान का आठवाँ अवतार माना गया है।

शास्ता महाविष्णु के मोहिनी अवतार एवं महाशिव के संयोग से उत्पन्न पुत्र है। देवी ने महाविष्णु एवं महाशिव को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। अतः बिना गर्भधारण के उन्हे पुत्र की प्राप्ति हुई थी।

श्री अरविन्द सुब्रमण्यम सबरीमाला में
श्री अरविन्द सुब्रमण्यम सबरीमाला में

शास्ता भगवान के आठ अवतरण हैं। अपने अंतिम अवतार में शास्ता भगवान अयप्पा के रूप में प्रकट हुए हैं जो एक ब्रह्मचारी हैं। आठवें अवतार में शास्ता को मणिकण्ठ भी कहा जाता है क्योंकि वे अपने कंठ में नवरत्न माला धारण करते हैं।

ऐसी मान्यता है कि कलियुग के भक्तों के कल्याण के लिये भगवान अयप्पा स्वामी वर्ष भर ध्यानमग्न रहते हैं। अपने भक्तों को आशीष प्रदान करने के लिए वे संक्रांति तथा अन्य कुछ विशेष दिवसों पर भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके अतिरिक्त यह मंदिर सामान्य दर्शनार्थियों के लिए वर्ष भर बंद रहता है।

सबरीमाला मंदिर

सबरीमाला को सबरीगिरी भी कहते हैं। यह पश्चिमी घाट के सह्याद्री पर्वत श्रंखलाओं में स्थित है। पंपा नदी की उपस्थिति के कारण इस क्षेत्र को किष्किन्धा भी कहा जाता है, यद्यपि किष्किन्धा क्षेत्र की अवस्थिति के विषय में अनेक तर्क-वितर्क दिए जाते हैं। कुछ उसे कर्नाटक, तो कुछ उसे केरल में मानते हैं।

सबरीमाला मंदिर
सबरीमाला मंदिर

मुख्य मंदिर के चारों ओर १८ पहाड़ियाँ हैं। इन पहाड़ियों के मध्य में महायोगपीठ है जहाँ मंदिर का गर्भ गृह स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में महर्षि मतंग ने घोर तपस्या की थी। इसलिए इस क्षेत्र को मतंग वन भी कहते हैं।

सबरीमाला तीर्थयात्रा के निर्धारित पथ का वर्णन पुराणों में किया गया है। जो भक्तगण ४५ दिवसों के इस सबरीमाला तीर्थयात्रा व्रत को धारण करते हैं, उन्हे कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है तथा कुछ निर्धारित संस्कारों एवं जप आदि का अनुष्ठान करना पड़ता है। उनके कठोर नियमों के अंतर्गत भूमि पर सोना, सादा भोजन ग्रहण करना, जप, ध्यान आदि का अनुष्ठान करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना आदि सम्मिलित हैं।

अष्टादश सोपान के साथ तीर्थ यात्री
अष्टादश सोपान के साथ तीर्थ यात्री

भक्तगण पदभ्रमण करते हुए पंपा नदी एवं नील पर्वत को पार करते हैं तथा सबरीमाला पहुँचते हैं। सबरीपीठ पहुँचने के पश्चात तीर्थयात्री १८ पवित्र सोपान चढ़ते हैं जिन्हे तत्व शोभनम् कहते हैं। अंततः वे मंदिर पहुंचकर भगवान अयप्पा का दर्शन करते हैं।

यह मंदिर मंडल पूजा के लिए सम्पूर्ण नवंबर, दिसंबर तथा जनवरी मास में खुला रहता है। तत्पश्चात, संक्रांति पर्व के कुछ दिवसों पश्चात इसके पट बंद कर दिए जाते हैं। वर्तमान में तमिल अथवा मलयालम पंचांग के प्रत्येक मास के प्रथम पाँच दिवसों में भी यह मंदिर खुला रहता है। जिन भक्तों ने सबरीमाला तीर्थयात्रा का व्रत धारण नहीं किया है, वे भी मंदिर में भगवान का दर्शन कर सकते हैं लेकिन उन्हे भगवान अयप्पा का प्रसाद प्राप्त नहीं होता है।

सबरीमाला तीर्थयात्रा के नियम

सबरीमाला तीर्थयात्रा के सभी नियम पुराणों में वर्णित हैं। इस तीर्थयात्रा को पूर्ण करने के लिए उन नियमों का उचित रूप से पालन करना आवश्यक है। सबरीमाला की यात्रा करने का प्रमुख उद्देश्य है, जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना तथा मोक्ष प्राप्त करना।

सबरीमाला यात्रा
सबरीमाला यात्रा

यह तीर्थयात्रा कौन कर सकता है? सभी आयुसीमा के पुरुष यह यात्रा कर सकते हैं। स्त्रियों के लिए यह नियम भिन्न है। अयप्पा भगवान के ब्रह्मचारी अवतार होने के कारण १० वर्ष से कम आयु की बलिकाएं तथा ५० वर्ष से अधिक आयु की स्त्रियाँ ही यह यात्रा कर सकती हैं।

सबरीमाला तीर्थयात्रा से पूर्व भक्तों को निम्नतम ४५ से ४८ दिवसों के व्रत का पालन करना होता है। वे चाहें तो यह अवधि बढ़ा भी सकते हैं। यह व्रत हिन्दू पंचांग के कार्तिगई अथवा कार्तिक पूर्णिमा से आरंभ किया जाता है जो नवंबर मास में पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिवस मंदिर के लिए भूमि पूजन का अनुष्ठान किया गया था। अतः इस अवधि में व्रत आरंभ करना अत्यंत पावन माना जाता है।

व्रत आरंभ करने से पूर्व भक्त को एक गुरु की शरण प्राप्त करना आवश्यक है। गुरु द्वारा स्वीकार किए जाने के पश्चात ही एक भक्त यह यात्रा आरंभ कर सकता है।

ब्रह्मचर्य

सबरीमाला तीर्थयात्रा के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का कठोर पालन अत्यंत आवश्यक है। इस व्रत के अंतर्गत भक्त सम्पूर्ण दिवस में केवल एक ही भोजन करता है। वह प्रत्येक दिवस पूजा-अर्चना के तीन अनुष्ठान करता है। सम्पूर्ण व्रत काल में वह गुरुस्वामी द्वारा प्रदान की गयी व्रत माला धारण करता है जो एक तुलसी माला होती है।

भक्त को दिवस भर में कम से कम दो स्नान आवश्यक है। वह भूमि पर निद्रा करता है। ये देह संबंधी नियम  आवश्यक हैं ही, लेकिन चित्त संबंधी नियम अधिक आवश्यक हैं। भक्त का उस चित्तावस्था में पहुँचना आवश्यक है जहाँ वह भगवान के परम आशीष की कामना करता है। यद्यपि सबरीमाला यात्रा के भक्तगण सम्पूर्ण व्रतकाल में श्याम वस्त्र धारण करते दृष्टिगोचर होते हैं, तथापि पुराणों में ऐसे किसी नियम का उल्लेख नहीं किया गया है।

इरुमुडी

इरुमुडी इस तीर्थयात्रा का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह एक बस्ता होता जिसमें दो खांचे होते हैं। अग्र भाग में स्थित खांचे में स्वामी जी को अर्पित भेंट एवं चढ़ावे रखे जाते हैं। पृष्ठभाग का खांचा भक्त के लिए होता है। अभिषेक अनुष्ठान आदि संपन्न करने के लिए घी को सर्वाधिक पवित्र सामग्री माना जाता है। व्रत के अंतिम दिवस के अभिषेक के लिए एक नारियल के भीतर घी भरा जाता है तथा उसे सीलबंद किया जाता है। मंदिर पहुँचते ही उस नारियल को फोड़कर घी भगवान को अर्पित किया जाता है।

घी आत्मा का द्योतक है। दूध, दही, माखन तथा अन्य दुग्धजन्य वस्तुएँ नाशवान प्रकृति की होती हैं। किन्तु शुद्ध घी नष्ट नहीं होता। घी द्योतक है, आत्मा के अनंत अस्तित्व का। जब तक मोक्ष प्राप्त नहीं होता, आत्मा एक देह से दूसरे देह में संसरण करती रहती है। अभिषेक के माध्यम से भगवान को घी अर्पण करना आत्मा समर्पण के अनुरूप होता है, अर्थात पूर्ण समर्पण।

सबरीमाला तीर्थयात्रा

सबरीमाला तीर्थयात्रा के लिए दो वैकल्पिक मार्ग हैं। उनमें एक पारंपरिक मार्ग है जो अधिक लंबा है। दूसरा मार्ग अपेक्षाकृत छोटा है।

अधिकांश भक्तगण प्राचीन मार्ग का अनुसरण करते हैं जो अधिक लंबा है। इस पथ की लंबाई ४० मील है। इस पथ के द्वारा गंतव्य तक पहुँचने में साधारणतः ५ से ६ दिवस लगते हैं। यात्रा का लघु पथ लगभग ५ किलोमीटर का है जो पंपा नदी से आरंभ होता है। मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए यह पथ सम्पूर्ण वर्ष खुला रहता है। प्राचीन लंबा पथ केवल दिसंबर मास में खुलता है।

सबरीमाला तीर्थयात्रा एवं उसके आध्यात्मिक लाभ की विस्तृत जानकारी के लिए सुनें, Detours Podcast with Aravind Subramaniyam

इस संस्करण में प्रकाशित सभी छायाचित्र श्री अरविन्द जी द्वारा प्रदत्त हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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