यूँ तो हम सभी जानते हैं कि महात्मा गाँधी का जन्म पोरबंदर में हुआ था। लेकिन कोचरब – अहमदाबाद में एक महात्मा का जन्म उस समय हुआ जब वो अफ्रीका से सन् १९१५ में वापस आये और यहाँ आकर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना करी। बैरिस्टर जीवनलाल देसाई ने अहमदाबाद के कोचरब नामक स्थान में एक सुंदर सा बंगला गांधीजी को उपहार स्वरूप दिया था जो अब सत्याग्रह आश्रम के नाम से जाना जाता है।
सत्याग्रह आश्रम – कोचरब, अहमदाबाद में गाँधी जी का प्रथम निवास
साबरमती के किनारे जब साबरमती आश्रम की स्थापना हो रही थी, तब गांधीजी अपनी पत्नी कस्तूरबा गाँधी के साथ दो साल तक इस दो मंजिले बंगले में १९९७ तक रहे। एक सूक्ष्म से सर्वेक्षण से मुझे ज्ञात हुआ कि कई कारणों से गाँधीजी ने अहमदाबाद का चुनाव अपने पहले आश्रम के रूप में किया था। जैसे यहाँ पर वो अपनी मात्रभाषा गुजराती का प्रयोग कर सकते थे। अहमदाबाद हथकरघा उद्योग का मुख्य स्थान था इसलिए उनके चरखा आन्दोलन को एक अच्छी शरुआत मिल सकती थी और तीसरा, यह शहर धनवान उद्योगपतियों का शहर था जिनसे वो भारत की आज़ादी में चंदे की आशा रख सकते थे। १९९७ में, प्लेग की महामारी ने उन्हें कोचरब से बाहर जाने के लिये मजबूर कर दिया।
साबरमती आश्रम को ही हम गाँधी आश्रम के नाम से जानते हैं। लेकिन यह एक खोज थी की पहला गाँधी आश्रम अहमदाबाद के कोचरब इलाके में था। मेरे दोस्त तुषार मुझे इस सत्याग्रह आश्रम में ले गए। वो जबकि इस शहर को बहुत अच्छी तरह जानते थे पर फिर भी उस आश्रम तक पहुँचने के लिये हमें थोडा परिश्रम करना पड़ा। कुछ दूर से देखने पर वह पीले रंग का बंगला ब्रिटिश काल का लग रहा था। किनारे पर एक दुकान थी जहाँ पर हाथ से बने कपड़े और ग्रामोधोग का सामान बिक रहा था। जिस प्रकार साबरमती आश्रम को देखने के लिये दर्शको की भीड़ लगी रहती है यहाँ ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला।
पूजा स्थल
जब हमने आश्रम में प्रवेश किया तो हमें वहां कोई भी व्यक्ति नही दिखा। आश्रम के दाएँ तरफ एक बहुत बड़ा मैदान था जिसके एक तरफ एक बड़ा सा चबूतरा था। एक बोर्ड के माध्यम से हमें जानकरी प्राप्त हुई कि यह मैदान गाँधी जी पूजा के लिये प्रयोग किया करते थे। आश्रम की बाएँ तरफ बंगला था और उस बंगले के पीछे कतार में कुछ कमरे थे। हमने उन व्यवस्थित कमरों के दरवाज़ों को बहुत हिचकिचाते हुए खोला जहाँ पर महात्मा गाँधी अपनी पत्नी के साथ रहते थे। वहाँ की दीवारों पर महत्मा गाँधी द्वारा रचित पुस्तक हिन्द स्वराज से लिये हुए उनके विचरों को लिखा गया था। वहाँ पर उन सभी महान व्यक्तियों की तस्वीरें थी जो महात्मा गाँधी से प्रभावित थे जैसे टैगोर इत्यादि। प्रदेश के सभी आश्रमों की तस्वीरें भी उनके परिचय के साथ वहाँ अंकित थीं। दीवारों पर और वहाँ की सभी अलमारियों के शीशों पर महात्मा गाँधी और उनकी पत्नी की तस्वीरें अंकित थीं। वहाँ एक चौखट पर गांधीजी को चंचल हास्य चित्रों द्वारा भी दर्शाया गया था।
गांधीजी का कमरा
गांधीजी के कमरे में उनकी पसंदीदा मेज़ थी जिसपर वो लिखने पढने का काम करते होंगे।सफेद गद्दे फर्श पर बिछे हुए थे और उस कमरे में एक तरफ़ लकड़ी से बना हुआ गांधीजी का प्रिय साधारण सा चरखा रखा हुआ था। हर तरह से यहाँ के कमरे साबरमती आश्रम के कमरों के समान ही लग रहे थे। कमरों को देखकर हम लोग बाहर आये तो वहाँ हमारी मुलाकात उन व्यक्ति से हुई जो इस बंगले की देखभाल करते हैं। वह हमें बंगले के पीछे बने उन कमरों की तरफ ले गए जो रसोई घर की तरह लग रहे थे। हमारा आधुनिक दिमाग इस बात को मानने को राज़ी नही था कि इतने बड़े बंगले में कोई भी शौचालय न हो – यह कैसे हो सकता है। लेकिन तुरंत ही ध्यान आया कि आज से सौ साल पूर्व शौचालय घर के अंदर नहीं होते थे। सामने वाले गलियारे में एक सज्जन पुरुष अख़बार पढ़ रहे थे। उन्होंने हमें पहली मंजिल पर बने पुस्तकालय के बारे में अवगत कराया।
पुस्तकालय
अब मैं जल्दी से जल्दी पुस्तकालय में पहुँचना चाहती थी लेकिन अफ़सोस एक अधेड़ व्यक्ति – जिनके पास पुस्त्कालय की चाबी थी, इनकार कर दिया। मैंने उनसे आग्रह किया लेकिन उन्होंने कहा कि यह पुस्तकालय सिर्फ़ यहाँ के लोगों के लिये ही है। मैंने उनसे एक बार फिर से आग्रह किया कि वो मुझे केवल पुस्तकालय को देखने की मंजूरी दे दें लेकिन उनका उत्तर था कि विश्वविद्यालय जाओ और वहाँ किताबों को देखो। मैं उन्हें कैसे बताऊँ कि पुस्तकालय का मेरे जीवन में कितना बड़ा महात्व है। मैंने और तुषार नें उनको मनाने का हर संभव प्रयास किया परन्तु उनका वही उत्तर था कि पुस्तकालय केवल यहाँ के लोगों के लिये ही है। मैं सोच रही थी कि गांधीजी का क्या कभी यह उद्देश्य रहा होगा कि कोई भी उनके पुस्तकालय को नहीं देख सकता सिर्फ़ कुछ लोगों के जो अपने आपको गांधीजी का अनुयायी मानते हैं।
गुजरात विद्यापीठ विश्वविद्यालय
गुजरात विद्यापीठ विश्वविद्यालय जो कोचरब आश्रम के समीप ही है – इस आश्रम देख रेख करता है। गांधीजी नें ही इस विद्यापीठ की स्थापना १९२० में की थी। मैं गांधीजी से सम्बंधित कुछ पुस्तकें लेने वहाँ गयी। मुख्य रूप से उस पुस्तक का संस्करण जो हाथ से बने कागज़ पर गांधीजी द्वारा गुजरती में लिखी पुस्तक हिन्द स्वराज जिसका बाद में हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद हुआ था। यह एक बहुत ही अच्छा पुस्तक भंडार था जहाँ पर आज़ादी के आन्दोलनों से जुड़ी हुई बहुत सी पुस्तकें थीं।
पर्यटन विभाग
कुछ समाचारपत्रों से मुझे ज्ञात हुआ कि गुजरात पर्यटन विभाग इस कोचरब स्थित सत्याग्रह आश्रम को लोगों के रहने की जगह में परिवर्तित कर रहा है। जहाँ पर पर्यटक आकर गांधीजी के समय में बनाएं हुए नियमों का पालन करते हुए रह सकते हैं। मैं पूर्णरूप से विश्वस्त नहीं हूँ कि इस विरासत को एक पर्यटन संपत्ति बनाना चाहिए या नहीं। लेकिन इस विचार पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए शायद इसलिए कि यह सम्पति आश्रम का प्रतिरूप है।
मेरे विचार से आश्रम को आश्रम ही रहने दिया जाए क्योंकि यह हमारे इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है लेकिन हाँ पुस्तकालय में जाने की अनुमति सभी को होनी चाहिए।