मोढेरा सूर्य मंदिर – अद्वितीय वास्तुशिल्प का उदाहरण

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मोढेरा का सूर्य मंदिर
मोढेरा का सूर्य मंदिर

जी हाँ! भारत में दो विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर हैं। एक है देश के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य में स्थित प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर। और दूसरा है देश के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में, पाटन से ३० की.मी. दक्षिण में स्थित, मोढेरा सूर्य मंदिर। कोणार्क सूर्य मंदिर के सम्बन्ध में आपने बहुत कुछ देखा व पढ़ा होगा। इस संस्मरण द्वारा मैं आपको मेहसाना जिले में पुष्पावती नदी के किनारे स्थित इस मोढेरा सूर्य मंदिर के उत्कृष्ट एवं विश्वप्रसिद्ध वास्तुशिल्प की बारीकियों से अवगत कराना चाहती हूँ।

हमारे देश के प्राचीन मंदिरों से मेरा विशेष लगाव रहा है। मेरे वश में होता तो मैं अवश्य ११वी. शताब्दी के हिन्दुस्तान में स्थानांतरित हो जाती। यह हिन्दुस्तान का वो स्वर्णिम युग था जब यह उत्कृष्ट मंदिरों का देश हुआ करता था। वर्तमान में स्थित मंदिरों के प्राचीन अवशेष कभी रंगीन भित्तियों के भीतर स्थित अप्रतिम देवस्थान थे। वर्षों तक शिल्पकारी कर असंख्य निपुण कारीगरों ने देश में कई उत्तम कृतियाँ तैयार की थीं। इन चित्ताकर्षक प्राचीन मंदिरों को देख मन इनके अतीत की कल्पना में विचरण करने लगता है। मोढेरा सूर्य मंदिर भी अपने समृद्ध काल में पूजा अर्चना, नृत्य एवं संगीत से भरपूर जागृत मंदिर था। पाटन, गुजरात के सोलंकी शासक सूर्यवंशी थे एवं सूर्यदेव को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसलिए सोलंकी राजा भीमदेव ने सन १०२६ ई. में इस सूर्य मंदिर की स्थापना करवाई थी। यह दक्षिण के चोल मंदिर एवं उत्तर के चंदेल मंदिर का समकालीन वास्तुशिल्प है। महमूद गजनी और अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर यहाँ बहुत लूटपाट मचाई थी। तत्पश्चात जो शेष बचा है, आईये उससे ही इसकी संरचना, वास्तुशिल्प एवं भव्यता की बारीकियों का विश्लेषण करते हैं।

मोढेरा सूर्य मंदिर का वास्तुशिल्प

सूर्य कुंड, सभा मंडप एवं सूर्य मंदिर - मोढेरा
सूर्य कुंड, सभा मंडप एवं सूर्य मंदिर – मोढेरा

आइये मैं आपको मोढेरा के सूर्य मंदिर का वास्तुशिल्प समझती हूँ।

इस मंदिर के तीन मुख्य भाग हैं – गर्भ गृह एवं गूढ़ मंडप लिए मुख्य मंदिर, सभामंड़प एवं सूर्य कुंड या बावड़ी।

प्रथम भाग है, गर्भगृह तथा एक मंडप से सुसज्जित मुख्य मंदिर जिसे गूढ़ मंडप भी कहा जाता है। अन्य दो भाग हैं, एक प्रथक सभामंड़प तथा एक बावड़ी। जब मंदिर का प्रतिबिम्ब इस बावड़ी के जल पर पड़ता है तब वह दृश्य सम्मोहित सा कर देता है। इस मंदिर के प्रमुख देवता सूर्य भगवान् हैं। सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य की जादुई किरणें इस मंदिर एवं जल पर पड़ते इस प्रतिबिम्ब की सुन्दरता को चार चाँद लगा देते हैं।

मंदिर के पृष्ठ भाग से होकर बहती पुष्पावती नदी मंदिर के परिप्रेक्ष्य को और अधिक आकर्षक बना देती है। मंदिर के एक भाग में आपको कुछ कीर्ति तोरण भी दृष्टिगोचर होंगे जो अवश्य किसी रण विजय का प्रतिक हैं। वर्तमान में इस मंदिर के भीतर किसी भी देवी अथवा देवता की प्रतिमा उपस्थित नहीं है। अतः यह जागृत मंदिर नहीं है।

इस मंदिर के निर्माण में मूल खण्डों को आपस में गूंथ कर संरचना खड़ी की गयी है। कहा जाता है कि इस पद्धति के कारण यह भूकंप के झटकों को भी आसानी से सहन कर सकती है। भूकंप की स्थिति में इसकी संरचना भले ही थरथरा जाए, किन्तु यह गिरेगी नहीं। यह मंदिर भारत को चीरती कर्क रेखा के ऊपर स्थापित है। अपनी उत्कृष्ट वास्तुशिल्प के साथ साथ यह मंदिर अपनी अप्रतिम सुन्दरता हेतु भी जाना जाता है। इस पर पड़ी आपकी प्रथम दृष्टी आपको दांतों तले उंगली दबाने को बाध्य कर देगी।

सम्मोहित हो मैंने इस मंदिर की कुछ परिक्रमायें की। तत्पश्चात इसके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने की अभिलाषा ने मन को घेर लिया। अपनी ज्ञान पिपासा शांत करने हेतु मैंने एक परिदर्शक की सेवायें प्राप्त करने का निश्चय किया। उस परिदर्शक ने धैर्य पूर्वक मंदिर की सर्व सूक्ष्मताओं एवं विशेषताओं से मुझे अवगत कराया।

सूर्यकुंड

सूर्य कुंड और उसके इर्द गिर्द अनेक छोटे बड़े मंदिर - मोढेरा
सूर्य कुंड और उसके इर्द गिर्द अनेक छोटे बड़े मंदिर – मोढेरा

मोढेरा के सूर्य मंदिर परिसर के पूर्वी छोर पर, सभा मंडप के समक्ष सूर्यकुंड अर्थात् बावड़ी की संरचना की गयी है। बावड़ी का भीतरी भाग सीड़ियों द्वारा शुण्डाकार में बनाया गया है। सीड़ियाँ अनोखे ज्यामितीय आकार में बनायी गयी हैं। यह बावड़ी, अन्य मंदिरों के बावडियों से किंचित भिन्न है, क्योंकि इसकी सीड़ियों पर कई छोटे बड़े मंदिरों की स्थापना की गयी है। इनमें कई मंदिर भगवान् गणेश एवं भगवान् शिव को समर्पित हैं। सूर्य मंदिर के ठीक सामने की सीड़ियों पर शेषशैय्या पर विराजमान भगवान् विष्णु का मंदिर है। एक मंदिर चेचक की देवी शीतला माता की भी है। एक हस्त में झाड़ू एवं एक हस्त में नीम की पत्तियां धारण किये शीतला माता का वाहन गर्दभ है। अन्य मंदिर भंगित अवस्था में होते हुए भी अब भी बहुत सुन्दर हैं।

सूर्य कुंड - सूर्य मंदिर मोढेरा
सूर्य कुंड – सूर्य मंदिर मोढेरा

कहा जाता है कि इन सीड़ियों पर मूलतः १०८ मंदिर स्थापित थे। भंगित अवस्था में होने के कारण कई मंदिरों की गिनती स्पष्ट रूप से नहीं की जा सकती। इन सब के बावजूद, ये मंदिर बहुत सुन्दर प्रतीत होते हैं। इनका ज्यामितीय परिप्रेक्ष्य अत्यंत लुभावना है।

साहित्यों के अनुसार सूर्यकुंड की सीड़ियों की शैली मंदिर के शिखर के सामान है। परन्तु मंदिर के शिखर की अनुपस्थिति में इसकी पुष्टि संभव नहीं है।

सूर्यकुंड को भगवान् राम के नाम पर रामकुंड भी कहा जाता है। कुंड के जल में अब भी अनेक कछुए निवास करते हैं।

सूर्य मंदिर सभामंडप

सूर्य मंदिर मोढेरा का अष्ट कोण वाला सभामंड़प
सूर्य मंदिर मोढेरा का अष्ट कोण वाला सभामंड़प

मोढेरा सूर्य मंदिर का सभामंडप एक अष्टभुजीय कक्ष है जो बाहरी परिप्रेक्ष्य से अपेक्षाकृत विकर्ण दिशा में संरचित है। सभामंडप के भीतर लगे तोरण भक्तों का स्वागत करते प्रतीत होते हैं। सभामंडप की जो शिल्पकला सबसे मनमोहक है, वह है, उत्तम नक्काशी किये गए स्तंभ। इन्ही स्तंभों के बीच लगे वृत्तखण्डों पर तोरण की शिल्पकारी की गयी है। यह वृत्तखण्ड अर्धवृत्ताकार एवं त्रिकोणीय आकार में बारी बारी से बनाए गए हैं। इस सभामंडप में ५२ स्तंभ हैं। साहित्यों के अनुसार यह, एक सौर वर्ष के ५२ सप्ताहों को दर्शाते हैं।

सभामंड़प के तोरण - सूर्य मंदिर मोढेरा
सभामंड़प के तोरण – सूर्य मंदिर मोढेरा

स्तंभों पर की गयी महीन उत्कीर्णनों में रामायण, महाभारत एवं कृष्ण लीला के दृश्य स्पष्ट देखे जा सकते हैं। जो दृश्य मेरी स्मृतिपटल पर अब भी खुदे हुए हैं, उनमें से कुछ हैं, श्रीलंका के अशोक वाटिका में बैठी देवी सीता, हाथों में शिलाखंड लिए रामसेतु की रचना में रत वानर सेना, अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाये कृष्ण, द्रौपदी के स्वयंवर में धनुष धारण किये अर्जुन, साजश्रंगार करती विषकन्याएं इत्यादि।

मुझे बताया गया कि प्राचीनकाल में इस सभामंडप का इस्तेमाल आमसभा हेतु किया जाता था। यहाँ धार्मिक कृत्यों के साथ साथ, राजदरबार की गतिविधियाँ एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।

मुख्य सूर्य मंदिर

मुख्य सूर्य मंदिर - मोढेरा, गुजरात
मुख्य सूर्य मंदिर – मोढेरा, गुजरात

सूर्य मंदिर की संरचना ऐसी की गयी है कि विषवों के समय, अर्थात् २१ मार्च एवं २१ सितम्बर के दिन सूर्य की प्रथम किरणें गर्भगृह के भीतर स्थित मूर्ति के ऊपर पड़ती हैं। इसका स्पष्ट अर्थ है कि हमारे पूर्वजों को प्राचीन काल में विज्ञान, तकनीक एवं खगोलशास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान था। इस मंदिर का न्याधार उलटे कमल पुष्प के सामान है। आप सब जानते हैं कि कमल का पुष्प सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही खिला रहता है। अर्थात् कमल का पुष्प सूर्य की किरणों पर पूर्णतः आधारित रहता है।

उलटे कमल रुपी आधार के ऊपर लगे फलकों पर सर्वप्रथम असंख्य हाथियों की मूर्तियाँ बनायी गयी हैं। इसे गज पेटिका कहा जाता है। इन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है मानो असंख्य हाथी अपनी पीठ पर सूर्य मंदिर को धारण किये हुए हैं। गज पेटिका के ऊपर लगे फलक पर मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन चक्र को दर्शाती नक्काशियाँ हैं। सम्भोग द्वारा गर्भधारण से लेकर मृत्यु पश्चात अंतिम क्रिया तक दृश्य यहाँ दर्शाये गए हैं। इनके अतिरिक्त मंदिर की बाहरी भित्तियों पर कुछ रतिक्रीडारत मूर्तियाँ भी उत्कीर्णित हैं। जीवन चक्र की मूर्तियों के ऊपर कई संगीत वाद्य बजाते लोगों के शिल्प बनाए गए हैं।

मोढेरा सूर्य मंदिर के दीवारें
मोढेरा सूर्य मंदिर के दीवारें

संगीत वाद्य बजाते मूर्तियों के ऊपर देवी देवताओं की मूर्तियाँ गढ़ी हुई हैं। द्वादश गौरी अर्थात् पार्वती के १२ अवतार एवं सर्वव्यापी सूर्य की १२ प्रतिमाएं इनमें मुख्य हैं। कुछ सूर्य की प्रतिमाओं को ऊंचे जूते एवं लम्बी टोपियाँ पहना कर ईरानी पद्धति का रूप दिया गया है। मेरे परिदर्शक के अनुसार सूर्य आराधना सर्वप्रथम ईरान में आरम्भ हुई थी। यह मूर्तियाँ इसी तथ्य की ओर संकेत करती हैं।

८ दिशाओं के देवी देवता – अष्ट दिगपाल

इसके अतिरिक्त मंदिर के ८ दिशाओं में इन दिशाओं के देवों की प्रतिमाएं उत्कीर्णित हैं। यह हैं-
• उत्तर – धन के देव कुबेर
• ईशान कोण – रूद्र, शिव का रूप (उत्तर-पूर्व)
• पूर्व – वर्षा के देव इंद्र
• आग्नेय कोण – अग्नि देव (दक्षिण-पूर्व)
• दक्षिण – मृत्यु देव यम
• नैत्रुत्य – नैरिती, शिव का रूप (दक्षिण-पश्चिम)
• पश्चिम – वरुण देव
• वायव्य कोण – वायु देव (उत्तर-पश्चिम)

सूर्य मंदिर में लूटपाट

गज पेटिका - उलटे कमल के फूल पर - मोढेरा सूर्य मंदिर - मोढेरा
गज पेटिका – उलटे कमल के फूल पर – मोढेरा सूर्य मंदिर – मोढेरा

कहा जाता है कि इस मंदिर की मुख्य प्रतिमा शुद्ध स्वर्ण में बनायी गयी थी। सात विशाल घोड़ों एवं सारथी अरुण द्वारा हांके जाते एक भव्य रथ के भीतर सूर्य देव की प्रतिमा! यह प्रतिमा एक विशाल एवं गहरे आधार के ऊपर बनायी गयी थी जो स्वर्ण सिक्कों से भरा हुआ था। वर्तमान में गर्भग्रह में केवल एक गहरा गड्ढा ही शेष है जो इस मंदिर पर किये गए आक्रमण एवं लूटपाट की कहानी स्पष्ट कहता है। कहा जाता है कि प्रतिमा पर लगे हीरे सूर्य की किरणों में चमक कर सम्पूर्ण मंदिर को प्रकाशित करते थे। यह कथाएं मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जा रही हैं। मूल प्रतिमा कहाँ है यह कोई नहीं जानता। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि आक्रमण के समय कुछ ब्राम्हण परिवार प्रतिमा को अपने साथ लेकर छुप गए थे। परन्तु अब तक उस प्रतिमा के सम्बन्ध में कोई जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है। इस मंदिर के नीचे एक बंद सुरंग है जो संभवतः मंदिर को सोलंकी राजधानी पाटन से जोड़ती है।

मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है जो गूढ़ मंडप से जुडी हुई है। गूढ़ मंडप के आले, आदित्य की १२ अवस्थाओं को दर्शाती १२ प्रतिमाओं से अलंकृत है। संभवतः यह सौरवर्ष के १२ मासों की ओर संकेत करती है।

इस मंदिर का शिखर वर्तमान में अनुपस्थित है। इस कारण इस मंदिर का शीर्ष समतल है।

मोढेरा सूर्य मंदिर से जुड़ी किवदंतियां

सूर्य मंदिर मोढेरा की छत
सूर्य मंदिर मोढेरा की छत

स्कन्द पुराण एवं ब्रम्ह पुराण में कहा गया है कि जब रावण वध कर भगवान् राम श्रीलंका से वापिस अयोध्या लौट रहे थे, तब ब्राम्हण वध के पाप से मुक्ति पाने हेतु उन्होंने वशिष्ठ मुनि से सलाह मांगी। उन्होंने भगवान् राम को धर्मरण्य, अर्थात् धर्म के अरण्य में जाकर आत्मशुद्धी यज्ञ करने की सलाह दी। राम ने धर्मरण्य में यज्ञ किया एवं वहां सीतापुर नामक ग्राम की स्थापना की। कालान्तर में इसी ग्राम का नाम मोढेरा पड़ा। मोढेरा, अर्थात् मृत का ढेर। संभवतः अनेक सभ्यताओं की परतों से सम्बन्ध रखते हुए इसे मोढेरा कहा गया। एक किवदंती के अनुसार मोढेरा ग्राम, ब्राम्हणों के मोढ जाति से सम्बंधित है, जिन्होंने भगवान् राम को उनके आत्मशुद्धी यज्ञ में मदद की थी।

मोढेरा का सूर्य मंदिर उन कुछ पुरातात्विक स्थलों में से एक है जिसका रखरखाव भारतीय पुरातात्विक विभाग सर्वोत्तम रूप से कर रहा है। अपनी गुजरात यात्रा में आप मोढेरा अवश्य जाएँ। आशा है मेरे इस संस्मरण द्वारा आपको मोढेरा के सूर्य मंदिर की विशेषताओं के बारे में वांछित जानकारी अवश्य मिली होगी।

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अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

 

6 COMMENTS

  1. बहुत खूबसूरत आलेख !! मंदिर में लूटपाट की बात पढ़कर दुःख हुआ

    • धन्यवाद योगी जी. जब आप मंदिर के सूने गर्भगृह के सामने खड़े होते हैं, तब जो भावनाएं उत्पन्न होती हैं, उन्हें शब्दों में ढालना मुश्किल है.

    • धयवाद सपना जी. अब आप मोढेरा के सूर्य मंदिर के बारे में जानती है – वहां जाने की भी तैय्यारी कीजिये.

    • आशा है इन अद्भुद मंदिरों के दर्शन कर के हमें कुछ प्रेरणा मिलेगी और हम भी कुछ सृजनशील हो पाएंगे

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