प्राचीन बावड़ी Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 05:17:07 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 चाँद बावड़ी – आभानेरी की मनमोहक कहानी https://inditales.com/hindi/abhaneri-chand-baori-rajasthan/ https://inditales.com/hindi/abhaneri-chand-baori-rajasthan/#comments Wed, 16 May 2018 02:30:12 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=763

जयपुर, राजस्थान के समीप आभानेरी गाँव में स्थित चाँद बावड़ी भारत की सबसे सुन्दर बावड़ी है। मैं तो इसे सर्वाधिक चित्रीकरण योग्य बावड़ी भी मानती हूँ। यह १३ तल गहरी बावड़ी है। बावड़ी के भीतर, जल सतह तक पहुँचती सीड़ियों की सममितीय त्रिकोणीय संरचना देख आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। राजस्थान एक सूखा रेगिस्तानी […]

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जयपुर, राजस्थान के समीप आभानेरी गाँव में स्थित चाँद बावड़ी भारत की सबसे सुन्दर बावड़ी है। मैं तो इसे सर्वाधिक चित्रीकरण योग्य बावड़ी भी मानती हूँ।

चाँद बावड़ी - आभानेरी - राजस्थान
चाँद बावड़ी – आभानेरी – राजस्थान

यह १३ तल गहरी बावड़ी है। बावड़ी के भीतर, जल सतह तक पहुँचती सीड़ियों की सममितीय त्रिकोणीय संरचना देख आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। राजस्थान एक सूखा रेगिस्तानी प्रदेश होने के कारण यहाँ बावड़ियों का निर्माण सामान्य है। उत्क्रुष्ट जल प्रबंधन प्रणाली होने के साथ साथ ये बावड़ियाँ ग्रीष्म ऋतू में वातावरण में शीतलता भी प्रदान करती हैं। शोचनीय तथ्य यह है कि एक जल प्रबंधन प्रणाली को वास्तुशिल्पीय दृष्टी से इतना मनमोहक निर्मित करने के पीछे क्या हेतु था? कहीं ऐसा तो नहीं कि ९वी शताब्दी की सर्व सार्वजनिक संरचनाएं इतनी ही मनोहारी हुआ करती थीं और हमारी धरोहर स्वरुप कुछ ही शेष है? यदि यह सत्य है तो उस युग के भारत को विश्व का चमकता हीरा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।

जयपुर आभानेरी की चाँद बावड़ी

आभानेरी चाँद बावड़ी का इतिहास

चाँद बावड़ी के सोपान
चाँद बावड़ी के सोपान

चाँद बावड़ी राजस्थान की तथा कदाचित सम्पूर्ण भारत की प्राचीनतम बावड़ी है जो अब भी सजीव है। भारत की इस सर्वाधिक गहरी बावड़ी का निर्माण निकुम्भ वंश के राजा चंदा या चंद्रा ने ८वी से ९वी शताब्दी में करवाया था। १२०० से १३०० वर्ष प्राचीन यह संरचना ताजमहल, खजुराहो के मंदिर तथा चोल मंदिरों से भी प्राचीन हैं किन्तु अजंता एवं एलोरा गुफाओं के शिल्पों से अपेक्षाकृत नवीन हैं।

आभा नगरी अर्थात् चमकने वाला नगर, जयपुर-आगरा मार्ग पर स्थित एक छोटा क़स्बा है जिसे राजा चाँद ने बसाया था। रोमांचक बावड़ियों एवं माता मंदिर हेतु प्रसिद्ध इस कस्बे का नाम कालान्तर में आभानेरी में परिवर्तित हो गया।

आईये ९वीं शताब्दी में निर्मित इस बावड़ी अर्थात् वाव या पुष्कर्णी के २१वी. शताब्दी के रूप से आपका परिचय कराती हूँ-

चाँद बावड़ी के दर्शन

त्रिकोण सोपान - चाँद बावड़ी - आभानेरी
त्रिकोण सोपान – चाँद बावड़ी – आभानेरी

इस आकर्षक बावड़ी के कई चित्र देखने के पश्चात मैं पहले ही इस पर मंत्रमुग्ध थी। इस अद्भुत बावड़ी के प्रत्यक्ष दर्शन करने के विचार से मन रोमांचित हो उठा था। एक ऊंचे मंडप से होकर इस बावड़ी के परिसर पर पहुँची। वहां कुछ स्त्रियाँ एक शिवलिंग की पूजा कर रही थीं। कुछ पग आगे चल कर जो दृश्य देखा मेरे रोंगटे खड़े हो गए। चित्रों में जिस आकर्षक बावड़ी को देखा था, प्रत्यक्ष में यह बावड़ी उससे कहीं अधिक भव्य एवं प्रभावशाली प्रतीत हुई। कुछ क्षण मंत्रमुग्ध होकर मैं उस बावड़ी को ताकती रही। सचेत होने पर बावड़ी का सूक्ष्मता से निरिक्षण आरम्भ किया।

चाँद बावड़ी का वास्तु शिल्प

चाँद बावड़ी के प्रथम दर्शन
चाँद बावड़ी के प्रथम दर्शन

१९.५ मीटर गहरी इस बावड़ी की तीन भित्तियों पर ज्यामितीय आकार प्रदान करते सोपान निर्मित हैं। आप इन सोपानों पर सीधे न चढ़ते हुए, एक तरफ से चढ़ते हैं। यह ज्ञात नहीं हो पाया कि इस प्रकार की त्रिकोणीय संरचना केवल सौंदर्य एवं कलात्मकता की दृष्टी से की गयी थी अथवा इसका अन्य हेतु था। मेरे अनुमान से ऊंचे सोपानों पर एक तरफ से चढ़ना कदाचित सुरक्षा की दृष्टी से श्रेयस्कर हो। भूलभुलैय्या के रूप में बने इन सोपानों को देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे जिन सीड़ियों से हम नीचे उतरें, वापिस उन्ही सीड़ियों से चाह कर भी ऊपर नहीं आ पायेंगे।

चाँद बावड़ी पे बैठने के गलियारे
चाँद बावड़ी पे बैठने के गलियारे

चौथी भित्ति पर कई तलो में स्तंभ युक्त गलियारे निर्मित हैं। दो आलिन्द अर्थात् आगे की ओर निकली बुर्ज सदृश संरचनाएं हैं जो बावड़ी की ओर मुख किये हुए हैं। बावड़ी की निचली तल पर गणेश एवं महिषासुरमर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं बावड़ी की सुन्दरता को चार चाँद लगा रहे थे। सामान्यतः किसी भी बावड़ी के भीतर कहीं न कहीं शेषशायी विष्णु की प्रतिकृति अवश्य होती है। छानबीन करने पर मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई कि चाँद बावड़ी के एक निचले गलियारे के भीतर विष्णु की प्रतिकृति है। चूंकि पर्यटकों को बावड़ी के भीतर जाने की अनुमति नहीं है, मैं उसके दर्शन नहीं कर पायी। वास्तव में बावड़ी अथवा कोई भी जल स्त्रोत क्षीरसागर का स्वरूप माना जाता है। दुग्ध का वह सागर जहां भगवान् विष्णु निवास करते हैं।

ध्यान से देखने पर आपको जल ऊपर खींचने का यंत्र-स्तंभ दृष्टिगोचर होगा। इसकी निर्मिती इतनी सूझबूझ से की गयी है कि यह बावड़ी की संरचना में विलीन प्रतीत होती है।

चाँद बावड़ी के कलात्मक सोपान

चाँद बावड़ी की सीढियां
चाँद बावड़ी की सीढियां

चाँद बावड़ी अन्य बावड़ियों की तरह जैसे जैसे नीचे जाती है, संकरी होती जाती है। बावड़ी के तह तक १३ तलो में ३५०० सीड़ियाँ बनायी गयी हैं जो अद्भुत कला का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

मैं बावड़ी के आसपास विचरण कर प्रत्येक कोण से उसका निरिक्षण करने लगी। स्तंभयुक्त गलियारों से घिरी यह बावड़ी चारों ओर से वर्गाकार है जिस पर आकर्षक एवं कलात्मक विधि से सोपान बनाए गए हैं। बावड़ी के जल का रंग चटक हरा हो चुका था जो दृश्य को और चमकीला एवं रंगीन बना रहा था। यद्यपि सीड़ियाँ उतरने की अनुमति नहीं है, तथापि मेरा चित्त कल्पना जगत में विचरण करने लगा। राजस्थान की कड़क उष्णता में इन गलियारों में बैठ शीतलता का आनंद लेने का अनुभव कितना सुखद होगा। उस पर चारों ओर छाई कलात्मकता की छटा सोने पर सुहागा होगी। काश हमारी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी भी इस सुखद आनंद का अनुभव प्राप्त कर सकती।

चाँद बावड़ी को घेरे हुए गलियारा
चाँद बावड़ी को घेरे हुए गलियारा

मैंने अपने कैमरे के लेंस से इस कलात्मकता को समीप से देखने का प्रयत्न किया। मुझे कुछ अत्यंत आकर्षक द्वार चौखट दृष्टिगोचर हुए। गलियारों पर बने वृत्तखंड निश्चय ही पुनरुद्धार के समय निर्मित किये गए होंगे क्योंकि ८-९वीं सदी में वृत्तखंडों की कल्पना उपलब्ध नहीं थी।

मन भर कर बावड़ी को निहारने एवं पर्याप्त छायाचित्र लेने के उपरांत मैंने चारों ओर दृष्टी दौड़ाई। चाँद बावड़ी एक ऊंची चारदीवारी से घिरी हुई है तथा एक गलियारा इसके समान्तर निर्मित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मुझे जानकारी दी कि यह चारदीवारी तथा प्रवेशद्वार मूल योजना के भाग नहीं थे। इन्हें बाद में बनाया गया था।

उत्कृष्ट शिल्पकला के उदहारण - पाषाण काव्य
उत्कृष्ट शिल्पकला के उदहारण – पाषाण काव्य

इस गलियारे में कई उत्खनित कलाकृतियाँ रखी हुई हैं। भिन्न भिन्न कलाकृतियों में जिन्हें मैं पहचान सकी वह हैं-
• लाल पत्थर में बना शिव का शीष, ध्यानमग्न शिव तथा शिव-पार्वती
• कल्की अवतार में विष्णु तथा परशुराम
• कार्तिकेय
• महीन नक्काशी की गयी महिषासुरमर्दिनी
• ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश के फलक
• हर्षत अथवा हरसिद्धि माता
• लक्ष्मी
• जैन मूर्तियाँ
• यक्ष की प्रतिमाएं
• आकर्षक उत्कीर्णित स्तंभखंड

आभानेरी महोत्सव

आभानेरी में प्रत्येक शरद नवरात्री के समय ३ दिवसीय वार्षिक आभानेरी महोत्सव आयोजित किया जाता है। दशहरा से १० दिवस पूर्व अथवा दीपावली से ३० दिवस पूर्व प्रत्येक वर्ष आयोजित किये जाने वाले इस महोत्सव के अवसर पर यह चाँद बावड़ी पर्यटकों के लिए ३ दिवस खुली रहती है। गाँव के युवाओं हेतु बावड़ी के भीतर छलांग लगाने की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है।

बावड़ी के समीप हर्षत माता का एक मंदिर है। अतः नवरात्री के अवसर पर शक्ति पूजन यहाँ इस प्रकार की जाती है।

चाँद बावड़ी देखने यहाँ अनेक पर्यटक आते है। वास्तव में यह भारत के उन चुनिन्दा पर्यटन स्थलों में से एक है जहां देशी पर्यटकों की अपेक्षा विदेशी पर्यटक अधिक संख्या में आते हैं।

हर्षत माता का मंदिर

हरषत माता मंदिर - आभानेरी, राजस्थान
हरषत माता मंदिर – आभानेरी, राजस्थान

चाँद बावड़ी के पश्चिमी ओर दृष्टी दौड़ाएं तो आप लगभग १०० मीटर की दूरी पर एक मंदिर देखेंगे। गुम्बद युक्त यह मंदिर हर्षत माता को समर्पित है। कुछ अभिलेखों में हर्षत माता को हरसिद्धि माता भी कहा गया है। उन्हें हर्ष एवं उल्हास की देवी माना जाता है। यह ज्ञात होने पर कौन होगा जो इस मंदिर के दर्शन के बिना लौटेगा!

हर्षत माता मंदिर तथा चाँद बावड़ी समकालीन संरचनाएं हैं। इनकी निर्मिती एक ही राजा ने एक ही काल में करवाई थी। यदि इतिहास में झांके तो आप प्रत्येक महत्वपूर्ण मंदिर के समीप एक प्राचीन बावड़ी अवश्य पायेंगे। मेरे ध्यान में केवल एक ही अपवाद है, पाटन स्थित रानी की वाव

पत्थर पे सुर्यमुखी फूल - हरषत माता मंदिर
पत्थर पे सुर्यमुखी फूल – हरषत माता मंदिर

हर्षत माता का मंदिर एक छोटा सा मंदिर है जो एक ऊंचे मंच पर स्थापित है। यहाँ पहुँचने हेतु कुछ सीड़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मैंने जब इस मंच के चारों ओर परिक्रमा की, मेरी दृष्टी पाषाणी भित्तियों पर सूर्यमुखी पुष्पों की नक्काशी पर पड़ी। यूँ तो आभानेरी की राह के दोनों ओर सूर्यमुखी के लहलहाते खेत देख मैं प्रसन्न हो उठी थी। उन्ही सूर्यमुखी के पुष्पों को नक्काशीदार फलकों पर देख मन प्रफुल्लित हो उठा। ये पुष्प भित्तियों पर बनी प्रतिमाओं की शोभा में वृद्धि कर रहे थे। इन पुष्पों की नक्काशी इस तथ्य का द्योतक है कि इस मंदिर एवं बावड़ी की निर्मिती से पूर्व भी लोग सूर्यमुखी पुष्प के विषय में जानकारी रखते थे। अन्यथा भारत तथा अधिकतर आशियाई देशों के मंदिरों में सूर्यमुखी पुष्प की नक्काशी दुर्लभ है। अधिकतर मंदिरों में कमल एवं जवाकुसुम पुष्पों की नक्काशी की गयी है।

अमलाका

हरषत माता मंदिर की कलात्मक दीवारें
हरषत माता मंदिर की कलात्मक दीवारें

पूर्व मुखी हर्षत मंदिर का मूल शिखर उत्तर भारतीय नागर पद्धति में निर्मित है। इसे महामेरु शिखर भी कहा जाता है। नागर पद्धति का शिखर ऊंचा बेलनाकार होता है जो उत्तर भारत में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इस शिखर के ऊपर किसी काल में गोल पाषाणी चकती हुआ करती थी जिसे अमलाका कहा जाता है। वर्तमान में उस अमलाका के भंगित अवशेष मंदिर के चारों ओर बिखरे पड़े हैं। अमलाका शब्द आंवला नामक फल से व्युत्पन्न है। गुम्बद का मध्यकालीन युग में परिवर्तन किया गया था। वर्तमान में यहाँ नागर पद्धति के भीतर पंचरथ पद्धति का मंदिर है।

मंदिर के चारों ओर ऊपरी आलों पर देवी देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्णित हैं। निचले आलों पर युग्मों तथा सुर सुंदरियों की मंगल प्रतिमाएं हैं। मंदिर के कुछ भागों पर विस्तृत परन्तु महीन नक्काशी की गयी है।

मंदिर के जमीन पर सारिपाट (शतरंग) सदृश खेलों के मंच बने हुए हैं जो यह दर्शाते हैं कि पूजा स्थल होने के साथ साथ यह एक सार्वजनिक भेंट स्थल भी था।

मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही भीतर स्थापित मूर्ति के अपेक्षाकृत नवीन होने का आभास हुआ। मेरे परिदर्शक ने बताया कि यह मंदिर मूलतः विष्णु मंदिर था। किन्तु इसके प्रमाण स्वरुप मुझे कोई संकेत यहाँ प्राप्त नहीं हुआ।

यह स्थल राजस्थान के यशस्वी एवं गौरवशाली अतीत का जीता जागता उदाहरण था।

आभानेरी चाँद बावड़ी के दर्शन हेतु कुछ आवश्यक सुझाव-

• आभानेरी, राजस्थान के दौसा जिले में है जो जयपुर से ९० की.मी. पर स्थित है। इसके दर्शन हेतु यहाँ रुकने की अपेक्षा, जयपुर में ही ठहर कर दिन के समय दर्शन करना उपयुक्त होगा।
• चाँद बावड़ी जाते समय, मध्य स्थित भानगढ़ दुर्ग के दर्शन अवश्य करिए। यह भारत का सर्वाधिक भुतहा स्थल है।
• आभानेरी के दर्शन हेतु ३०-६० मिनट का समय पर्याप्त है। हालांकि मैंने यहाँ २ घंटे बिताये थे क्योंकि मैंने प्रत्येक शिल्पकला का बारीकी ने निरिक्षण किया था।
• दर्शन एवं जानकारी प्रदान करने हेतु परिदर्शक उपलब्ध हैं। यदि आपने यह संस्मरण पढ़ा है तो आपको परिदर्शक की आवश्यकता नहीं रहेगी।

जयपुर के अन्य पर्यटन स्थलों पर मेरे संस्मरण-
1. जयपुर का जंतर मंतर – सवाई जयसिंह की वेधशाला
2. भानगढ़ दुर्ग – भारत का सर्वाधिक भुतहा स्थल
3. जयपुर में खरीददारी – जयपुर की १५ सर्वोत्तम स्मारिकाएं

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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सहस्त्रलिंग तलाव – एक प्राचीन विरासत, पाटण गुजरात https://inditales.com/hindi/ancient-sahastralinga-talav-patan/ https://inditales.com/hindi/ancient-sahastralinga-talav-patan/#respond Wed, 25 Apr 2018 02:30:53 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=743

मंत्रमुग्ध कर देनेवाली रानी की वाव के ठीक पीछे सहस्त्रलिंग तलाव स्थित है। अगर आज भी यह संरचना अपने पूर्ण स्वरूप में होती तो रानी की वाव से अधिक शानदार हो न हो पर शायद उतनी ही सुंदर और रमणीय जरूर होती। इस तलाव का निर्माण रानी की वाव से पहले किया गया था जो […]

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सहस्त्रलिंग तलाव - पाटन गुजरात
सहस्त्रलिंग तलाव – पाटण गुजरात

मंत्रमुग्ध कर देनेवाली रानी की वाव के ठीक पीछे सहस्त्रलिंग तलाव स्थित है। अगर आज भी यह संरचना अपने पूर्ण स्वरूप में होती तो रानी की वाव से अधिक शानदार हो न हो पर शायद उतनी ही सुंदर और रमणीय जरूर होती। इस तलाव का निर्माण रानी की वाव से पहले किया गया था जो कि सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित जल प्रबंधन की और एक संरचना थी। यह तलाव एक नहर द्वारा सरस्वती नदी से जल प्राप्त करता था। यह न सिर्फ नदी के पानी का संचयन करता है बल्कि उस पानी को साफ भी करता है।

सहस्त्रलिंग तलाव – गुजरात में देखने की जगहें 

सहस्त्रलिंग तलाव पाटण में मंदिर के स्तम्भ
सहस्त्रलिंग तलाव पाटण में मंदिर के स्तम्भ

रानी की वाव से सहस्त्रलिंग तलाव की ओर जाते हुए, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कार्यालय और संग्रहालय पार करते ही पूरे रास्ते में आपको एक दीर्घीभूत खाई नज़र आएगी, जिसके तल भाग में सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इस खाई में बने मार्ग पर कुछ स्तंभ थे जो बिना किसी सहारे के खड़े हैं तथा किसी प्राचीन मंदिर जैसी दिखनेवाली एक संरचना भी थी। इस खाई के आस-पास घूमते हुए आपको वहाँ पर एक और खाई नज़र आएगी जो मेहराब के आकार में बने द्वार जैसी दिखनेवाली संरचना से इस खाई से जुड़ी हुई है।

सीढ़ियों वाली बावड़ी 
जल आवागमन को संचालित करती प्रणालियाँ – सहस्त्रलिंग तलाव -पाटण
जल आवागमन को संचालित करती प्रणालियाँ – सहस्त्रलिंग तलाव -पाटण

जैसे-जैसे आप सीमा के अंतिम छोर तक पहुंचेंगे, आपको सामने ही एक विशाल और गोलाकार सीढ़ियों वाली बावड़ी दिखेगी जो बिलकुल सूखी पड़ी है। ऐसी स्थिति में यह बावड़ी किसी रंगभूमि के समान लग रही थी जिसमें सिर्फ एक मंच की कमी थी। एक स्थान पर यह बावड़ी खाईयों से जुड़ी हुई है, जो अनेक मोड़ों पर घूमते हुए आगे बढ़ती हैं। ये खाइयाँ करीब-करीब आधुनिक पानी व्यवस्था के अभिन्यास के समान लग रही थीं। आगे जाकर दूसरे छोर पर यह विस्तृत खाई एक मंदिर से जाकर जुड़ती है।

यहाँ पर घूमते हुए मैंने कुछ गांववालों से बातचीत करने की कोशिश की जो यहाँ पर अपनी गाय-भैसों को चराने के लिए लेकर आए थे। उनका कहना था कि सहस्त्रलिंग तलाव तो सूखा पड़ा हुआ है, तो आप वहाँ पर जाकर क्या देखना चाहते हैं? और जब मैंने उनसे वहाँ पर स्थित मंदिर के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि वह मंदिर नहीं है और वहाँ से कुछ दूर खड़े एक और मंदिर की ओर इशारा किया। शायद वे हमे यही सूचित करना चाहते थे कि इस मंदिर में कोई पूजा-पाठ नहीं होता और इसलिए उन्होंने वास्तव में पूजे जाने वाले मंदिर की ओर इशारा किया था।

जसमा ओडन से जुडे उपाख्यान 
जल प्रबंधन का उत्कृष्ट उदहारण – सहस्त्रलिंग तलाव – पाटण
जल प्रबंधन का उत्कृष्ट उदहारण – सहस्त्रलिंग तलाव – पाटण

गांववालों से हुई इस बातचीत के दौरान हमे जसमा ओडन की कथा को जानने का मौका मिला। जसमा ओडन कुआँ खोदने वाले समुदाय की एक महिला थी। तत्कालीन राजा, महाराज सिद्धराज जयसिंह किसी भी कीमत पर जसमा ओडन से विवाह करना चाहते थे। महाराज द्वारा जबरदस्ती उठा ले जाने के बजाय जसमा ओडन ने आत्मदहन करना उचित समझा। परंतु सती होने से पूर्व उसने महाराज को यह शाप दिया कि वे हमेशा निस्संतान ही रहेंगे और जो कुआँ वे खोद रहे थे वह भी हमेशा निर्जल ही रहेगा।

उपाख्यानों के अनुसार आगे चलकर यह शाप सच हो गया और महाराज हर हाल में इस शाप से मुक्त होने के अनेक उपाय ढूँढने लगे। किसी ने उन्हें बताया कि अगर 32 लक्षणों वाले व्यक्ति अर्थात मंगल व्यक्ति, यानी अनिवार्य रूप से किसी सद्गुणों वाले व्यक्ति की बलि चढ़ा दी जाए तो वे इस शाप से हमेशा के लिए मुक्त हो सकते हैं। महाराज ने तुरंत 32 लक्षणों वाले व्यक्ति की खोज जारी की। जिसके चलते मायो नाम के किसी व्यक्ति को लाकर उसकी बलि चढ़ा दी गयी। फिर उसके नाम से यहाँ पर एक मंदिर का निर्माण किया गया। यह वही मंदिर है जिसे आज भी गांववालों द्वारा पूजा जाता है। समय की कमी के कारण मैं इस मंदिर के दर्शन तो नहीं कर पायी लेकिन गांववालों से इस मंदिर की कहानियाँ सुनना भी एक अलग ही अनुभव था।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का संग्रहालय   
पाटण संग्रहालय में पुरातत्त्व अवशेष
पाटण संग्रहालय में पुरातत्त्व अवशेष

सहस्त्रलिंग तलाव के ठीक बगल में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कार्यालय और संग्रहालय स्थित है। जब हम वहाँ पर पहुंचे तो खुली हवा में बसे इस संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर ताला लगा हुआ था। हमने संग्रहालय के अधिकारियों से प्रवेश द्वार खोलने का निवेदन किया ताकि हम इस संग्रहालय के दर्शन कर सके। इसपर उनका जवाब यह था कि यह संग्रहालय आम जनता के लिए नहीं है। यह सुनकर मैं हैरान रह गयी और मैंने उनसे पूछा कि, फिर यह संग्रहालय किसके लिए बना है?

तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था। उस व्यक्ति ने फिर से हमसे कहा कि उन्होंने अपने पूरे कार्यकारी जीवन में कभी भी यह संग्रहालय आम लोगों के लिए नहीं खोला था। मैंने उन्हें मुझे यही बात लिखित रूप में देने के लिए कहा, कि वे यह संग्रहालय आम जनता के लिए नहीं खोल सकते। या फिर विडियो रिकॉर्डिंग द्वारा उनका बयान लेने पर जोर दिया, ताकि मैं वह दिल्ली में स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुख्य कार्यालय में भेज सकूँ और उनसे आम जनता के लिए इस संग्रहालय के द्वार न खोलने का कारण भी पूछ सकूँ। तब जाकर उन्होंने यहाँ-वहाँ कुछ फोन लगाए औए फिर संग्रहालय के द्वार खोले।

यह द्वार काफी लंबे समय से बंद होने के कारण उसके जंग लगे जंगलों ने खुलने में थोड़ा समय लिया। और दरवाजा खुलते ही लगभग और 20 लोग हमारे साथ भीतर आए और उन्हें भी संग्रहालय के दर्शन करने का मौका मिला। इस पूरे संग्रहालय में मुझे रानी उदयमती की मूर्ति कहीं पर भी नहीं दिखी, जो मुझे लगता था कि शायद यहाँ हो सकती है। इसके बावजूद भी इस संग्रहालय के दर्शन करके मुझे एक छोटी सी जीत हासिल करने की खुशी थी, जिसके कारण हम संग्रहालय में रखी गयी अन्य मूर्तियाँ तो देख पाए थे।

अगर आप कभी पाटण गए तो सहस्त्रलिंग तलाव जरूर जाइए और वहाँ की प्राचीन अभियांत्रिकी उपलब्धियों को जरूर देखिये जो सार्वजनिक हित के लिए निर्मित की गयी थीं।

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मोढेरा सूर्य मंदिर – अद्वितीय वास्तुशिल्प का उदाहरण https://inditales.com/hindi/sun-temple-modhera-gujarat-architecture/ https://inditales.com/hindi/sun-temple-modhera-gujarat-architecture/#comments Wed, 13 Dec 2017 02:30:29 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=564

जी हाँ! भारत में दो विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर हैं। एक है देश के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य में स्थित प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर। और दूसरा है देश के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में, पाटन से ३० की.मी. दक्षिण में स्थित, मोढेरा सूर्य मंदिर। कोणार्क सूर्य मंदिर के सम्बन्ध में आपने बहुत कुछ […]

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मोढेरा का सूर्य मंदिर
मोढेरा का सूर्य मंदिर

जी हाँ! भारत में दो विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर हैं। एक है देश के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य में स्थित प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर। और दूसरा है देश के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में, पाटन से ३० की.मी. दक्षिण में स्थित, मोढेरा सूर्य मंदिर। कोणार्क सूर्य मंदिर के सम्बन्ध में आपने बहुत कुछ देखा व पढ़ा होगा। इस संस्मरण द्वारा मैं आपको मेहसाना जिले में पुष्पावती नदी के किनारे स्थित इस मोढेरा सूर्य मंदिर के उत्कृष्ट एवं विश्वप्रसिद्ध वास्तुशिल्प की बारीकियों से अवगत कराना चाहती हूँ।

हमारे देश के प्राचीन मंदिरों से मेरा विशेष लगाव रहा है। मेरे वश में होता तो मैं अवश्य ११वी. शताब्दी के हिन्दुस्तान में स्थानांतरित हो जाती। यह हिन्दुस्तान का वो स्वर्णिम युग था जब यह उत्कृष्ट मंदिरों का देश हुआ करता था। वर्तमान में स्थित मंदिरों के प्राचीन अवशेष कभी रंगीन भित्तियों के भीतर स्थित अप्रतिम देवस्थान थे। वर्षों तक शिल्पकारी कर असंख्य निपुण कारीगरों ने देश में कई उत्तम कृतियाँ तैयार की थीं। इन चित्ताकर्षक प्राचीन मंदिरों को देख मन इनके अतीत की कल्पना में विचरण करने लगता है। मोढेरा सूर्य मंदिर भी अपने समृद्ध काल में पूजा अर्चना, नृत्य एवं संगीत से भरपूर जागृत मंदिर था। पाटन, गुजरात के सोलंकी शासक सूर्यवंशी थे एवं सूर्यदेव को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसलिए सोलंकी राजा भीमदेव ने सन १०२६ ई. में इस सूर्य मंदिर की स्थापना करवाई थी। यह दक्षिण के चोल मंदिर एवं उत्तर के चंदेल मंदिर का समकालीन वास्तुशिल्प है। महमूद गजनी और अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर यहाँ बहुत लूटपाट मचाई थी। तत्पश्चात जो शेष बचा है, आईये उससे ही इसकी संरचना, वास्तुशिल्प एवं भव्यता की बारीकियों का विश्लेषण करते हैं।

मोढेरा सूर्य मंदिर का वास्तुशिल्प

सूर्य कुंड, सभा मंडप एवं सूर्य मंदिर - मोढेरा
सूर्य कुंड, सभा मंडप एवं सूर्य मंदिर – मोढेरा

आइये मैं आपको मोढेरा के सूर्य मंदिर का वास्तुशिल्प समझती हूँ।

इस मंदिर के तीन मुख्य भाग हैं – गर्भ गृह एवं गूढ़ मंडप लिए मुख्य मंदिर, सभामंड़प एवं सूर्य कुंड या बावड़ी।

प्रथम भाग है, गर्भगृह तथा एक मंडप से सुसज्जित मुख्य मंदिर जिसे गूढ़ मंडप भी कहा जाता है। अन्य दो भाग हैं, एक प्रथक सभामंड़प तथा एक बावड़ी। जब मंदिर का प्रतिबिम्ब इस बावड़ी के जल पर पड़ता है तब वह दृश्य सम्मोहित सा कर देता है। इस मंदिर के प्रमुख देवता सूर्य भगवान् हैं। सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य की जादुई किरणें इस मंदिर एवं जल पर पड़ते इस प्रतिबिम्ब की सुन्दरता को चार चाँद लगा देते हैं।

मंदिर के पृष्ठ भाग से होकर बहती पुष्पावती नदी मंदिर के परिप्रेक्ष्य को और अधिक आकर्षक बना देती है। मंदिर के एक भाग में आपको कुछ कीर्ति तोरण भी दृष्टिगोचर होंगे जो अवश्य किसी रण विजय का प्रतिक हैं। वर्तमान में इस मंदिर के भीतर किसी भी देवी अथवा देवता की प्रतिमा उपस्थित नहीं है। अतः यह जागृत मंदिर नहीं है।

इस मंदिर के निर्माण में मूल खण्डों को आपस में गूंथ कर संरचना खड़ी की गयी है। कहा जाता है कि इस पद्धति के कारण यह भूकंप के झटकों को भी आसानी से सहन कर सकती है। भूकंप की स्थिति में इसकी संरचना भले ही थरथरा जाए, किन्तु यह गिरेगी नहीं। यह मंदिर भारत को चीरती कर्क रेखा के ऊपर स्थापित है। अपनी उत्कृष्ट वास्तुशिल्प के साथ साथ यह मंदिर अपनी अप्रतिम सुन्दरता हेतु भी जाना जाता है। इस पर पड़ी आपकी प्रथम दृष्टी आपको दांतों तले उंगली दबाने को बाध्य कर देगी।

सम्मोहित हो मैंने इस मंदिर की कुछ परिक्रमायें की। तत्पश्चात इसके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने की अभिलाषा ने मन को घेर लिया। अपनी ज्ञान पिपासा शांत करने हेतु मैंने एक परिदर्शक की सेवायें प्राप्त करने का निश्चय किया। उस परिदर्शक ने धैर्य पूर्वक मंदिर की सर्व सूक्ष्मताओं एवं विशेषताओं से मुझे अवगत कराया।

सूर्यकुंड

सूर्य कुंड और उसके इर्द गिर्द अनेक छोटे बड़े मंदिर - मोढेरा
सूर्य कुंड और उसके इर्द गिर्द अनेक छोटे बड़े मंदिर – मोढेरा

मोढेरा के सूर्य मंदिर परिसर के पूर्वी छोर पर, सभा मंडप के समक्ष सूर्यकुंड अर्थात् बावड़ी की संरचना की गयी है। बावड़ी का भीतरी भाग सीड़ियों द्वारा शुण्डाकार में बनाया गया है। सीड़ियाँ अनोखे ज्यामितीय आकार में बनायी गयी हैं। यह बावड़ी, अन्य मंदिरों के बावडियों से किंचित भिन्न है, क्योंकि इसकी सीड़ियों पर कई छोटे बड़े मंदिरों की स्थापना की गयी है। इनमें कई मंदिर भगवान् गणेश एवं भगवान् शिव को समर्पित हैं। सूर्य मंदिर के ठीक सामने की सीड़ियों पर शेषशैय्या पर विराजमान भगवान् विष्णु का मंदिर है। एक मंदिर चेचक की देवी शीतला माता की भी है। एक हस्त में झाड़ू एवं एक हस्त में नीम की पत्तियां धारण किये शीतला माता का वाहन गर्दभ है। अन्य मंदिर भंगित अवस्था में होते हुए भी अब भी बहुत सुन्दर हैं।

सूर्य कुंड - सूर्य मंदिर मोढेरा
सूर्य कुंड – सूर्य मंदिर मोढेरा

कहा जाता है कि इन सीड़ियों पर मूलतः १०८ मंदिर स्थापित थे। भंगित अवस्था में होने के कारण कई मंदिरों की गिनती स्पष्ट रूप से नहीं की जा सकती। इन सब के बावजूद, ये मंदिर बहुत सुन्दर प्रतीत होते हैं। इनका ज्यामितीय परिप्रेक्ष्य अत्यंत लुभावना है।

साहित्यों के अनुसार सूर्यकुंड की सीड़ियों की शैली मंदिर के शिखर के सामान है। परन्तु मंदिर के शिखर की अनुपस्थिति में इसकी पुष्टि संभव नहीं है।

सूर्यकुंड को भगवान् राम के नाम पर रामकुंड भी कहा जाता है। कुंड के जल में अब भी अनेक कछुए निवास करते हैं।

सूर्य मंदिर सभामंडप

सूर्य मंदिर मोढेरा का अष्ट कोण वाला सभामंड़प
सूर्य मंदिर मोढेरा का अष्ट कोण वाला सभामंड़प

मोढेरा सूर्य मंदिर का सभामंडप एक अष्टभुजीय कक्ष है जो बाहरी परिप्रेक्ष्य से अपेक्षाकृत विकर्ण दिशा में संरचित है। सभामंडप के भीतर लगे तोरण भक्तों का स्वागत करते प्रतीत होते हैं। सभामंडप की जो शिल्पकला सबसे मनमोहक है, वह है, उत्तम नक्काशी किये गए स्तंभ। इन्ही स्तंभों के बीच लगे वृत्तखण्डों पर तोरण की शिल्पकारी की गयी है। यह वृत्तखण्ड अर्धवृत्ताकार एवं त्रिकोणीय आकार में बारी बारी से बनाए गए हैं। इस सभामंडप में ५२ स्तंभ हैं। साहित्यों के अनुसार यह, एक सौर वर्ष के ५२ सप्ताहों को दर्शाते हैं।

सभामंड़प के तोरण - सूर्य मंदिर मोढेरा
सभामंड़प के तोरण – सूर्य मंदिर मोढेरा

स्तंभों पर की गयी महीन उत्कीर्णनों में रामायण, महाभारत एवं कृष्ण लीला के दृश्य स्पष्ट देखे जा सकते हैं। जो दृश्य मेरी स्मृतिपटल पर अब भी खुदे हुए हैं, उनमें से कुछ हैं, श्रीलंका के अशोक वाटिका में बैठी देवी सीता, हाथों में शिलाखंड लिए रामसेतु की रचना में रत वानर सेना, अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाये कृष्ण, द्रौपदी के स्वयंवर में धनुष धारण किये अर्जुन, साजश्रंगार करती विषकन्याएं इत्यादि।

मुझे बताया गया कि प्राचीनकाल में इस सभामंडप का इस्तेमाल आमसभा हेतु किया जाता था। यहाँ धार्मिक कृत्यों के साथ साथ, राजदरबार की गतिविधियाँ एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।

मुख्य सूर्य मंदिर

मुख्य सूर्य मंदिर - मोढेरा, गुजरात
मुख्य सूर्य मंदिर – मोढेरा, गुजरात

सूर्य मंदिर की संरचना ऐसी की गयी है कि विषवों के समय, अर्थात् २१ मार्च एवं २१ सितम्बर के दिन सूर्य की प्रथम किरणें गर्भगृह के भीतर स्थित मूर्ति के ऊपर पड़ती हैं। इसका स्पष्ट अर्थ है कि हमारे पूर्वजों को प्राचीन काल में विज्ञान, तकनीक एवं खगोलशास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान था। इस मंदिर का न्याधार उलटे कमल पुष्प के सामान है। आप सब जानते हैं कि कमल का पुष्प सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही खिला रहता है। अर्थात् कमल का पुष्प सूर्य की किरणों पर पूर्णतः आधारित रहता है।

उलटे कमल रुपी आधार के ऊपर लगे फलकों पर सर्वप्रथम असंख्य हाथियों की मूर्तियाँ बनायी गयी हैं। इसे गज पेटिका कहा जाता है। इन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है मानो असंख्य हाथी अपनी पीठ पर सूर्य मंदिर को धारण किये हुए हैं। गज पेटिका के ऊपर लगे फलक पर मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन चक्र को दर्शाती नक्काशियाँ हैं। सम्भोग द्वारा गर्भधारण से लेकर मृत्यु पश्चात अंतिम क्रिया तक दृश्य यहाँ दर्शाये गए हैं। इनके अतिरिक्त मंदिर की बाहरी भित्तियों पर कुछ रतिक्रीडारत मूर्तियाँ भी उत्कीर्णित हैं। जीवन चक्र की मूर्तियों के ऊपर कई संगीत वाद्य बजाते लोगों के शिल्प बनाए गए हैं।

मोढेरा सूर्य मंदिर के दीवारें
मोढेरा सूर्य मंदिर के दीवारें

संगीत वाद्य बजाते मूर्तियों के ऊपर देवी देवताओं की मूर्तियाँ गढ़ी हुई हैं। द्वादश गौरी अर्थात् पार्वती के १२ अवतार एवं सर्वव्यापी सूर्य की १२ प्रतिमाएं इनमें मुख्य हैं। कुछ सूर्य की प्रतिमाओं को ऊंचे जूते एवं लम्बी टोपियाँ पहना कर ईरानी पद्धति का रूप दिया गया है। मेरे परिदर्शक के अनुसार सूर्य आराधना सर्वप्रथम ईरान में आरम्भ हुई थी। यह मूर्तियाँ इसी तथ्य की ओर संकेत करती हैं।

८ दिशाओं के देवी देवता – अष्ट दिगपाल

इसके अतिरिक्त मंदिर के ८ दिशाओं में इन दिशाओं के देवों की प्रतिमाएं उत्कीर्णित हैं। यह हैं-
• उत्तर – धन के देव कुबेर
• ईशान कोण – रूद्र, शिव का रूप (उत्तर-पूर्व)
• पूर्व – वर्षा के देव इंद्र
• आग्नेय कोण – अग्नि देव (दक्षिण-पूर्व)
• दक्षिण – मृत्यु देव यम
• नैत्रुत्य – नैरिती, शिव का रूप (दक्षिण-पश्चिम)
• पश्चिम – वरुण देव
• वायव्य कोण – वायु देव (उत्तर-पश्चिम)

सूर्य मंदिर में लूटपाट

गज पेटिका - उलटे कमल के फूल पर - मोढेरा सूर्य मंदिर - मोढेरा
गज पेटिका – उलटे कमल के फूल पर – मोढेरा सूर्य मंदिर – मोढेरा

कहा जाता है कि इस मंदिर की मुख्य प्रतिमा शुद्ध स्वर्ण में बनायी गयी थी। सात विशाल घोड़ों एवं सारथी अरुण द्वारा हांके जाते एक भव्य रथ के भीतर सूर्य देव की प्रतिमा! यह प्रतिमा एक विशाल एवं गहरे आधार के ऊपर बनायी गयी थी जो स्वर्ण सिक्कों से भरा हुआ था। वर्तमान में गर्भग्रह में केवल एक गहरा गड्ढा ही शेष है जो इस मंदिर पर किये गए आक्रमण एवं लूटपाट की कहानी स्पष्ट कहता है। कहा जाता है कि प्रतिमा पर लगे हीरे सूर्य की किरणों में चमक कर सम्पूर्ण मंदिर को प्रकाशित करते थे। यह कथाएं मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जा रही हैं। मूल प्रतिमा कहाँ है यह कोई नहीं जानता। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि आक्रमण के समय कुछ ब्राम्हण परिवार प्रतिमा को अपने साथ लेकर छुप गए थे। परन्तु अब तक उस प्रतिमा के सम्बन्ध में कोई जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है। इस मंदिर के नीचे एक बंद सुरंग है जो संभवतः मंदिर को सोलंकी राजधानी पाटन से जोड़ती है।

मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है जो गूढ़ मंडप से जुडी हुई है। गूढ़ मंडप के आले, आदित्य की १२ अवस्थाओं को दर्शाती १२ प्रतिमाओं से अलंकृत है। संभवतः यह सौरवर्ष के १२ मासों की ओर संकेत करती है।

इस मंदिर का शिखर वर्तमान में अनुपस्थित है। इस कारण इस मंदिर का शीर्ष समतल है।

मोढेरा सूर्य मंदिर से जुड़ी किवदंतियां

सूर्य मंदिर मोढेरा की छत
सूर्य मंदिर मोढेरा की छत

स्कन्द पुराण एवं ब्रम्ह पुराण में कहा गया है कि जब रावण वध कर भगवान् राम श्रीलंका से वापिस अयोध्या लौट रहे थे, तब ब्राम्हण वध के पाप से मुक्ति पाने हेतु उन्होंने वशिष्ठ मुनि से सलाह मांगी। उन्होंने भगवान् राम को धर्मरण्य, अर्थात् धर्म के अरण्य में जाकर आत्मशुद्धी यज्ञ करने की सलाह दी। राम ने धर्मरण्य में यज्ञ किया एवं वहां सीतापुर नामक ग्राम की स्थापना की। कालान्तर में इसी ग्राम का नाम मोढेरा पड़ा। मोढेरा, अर्थात् मृत का ढेर। संभवतः अनेक सभ्यताओं की परतों से सम्बन्ध रखते हुए इसे मोढेरा कहा गया। एक किवदंती के अनुसार मोढेरा ग्राम, ब्राम्हणों के मोढ जाति से सम्बंधित है, जिन्होंने भगवान् राम को उनके आत्मशुद्धी यज्ञ में मदद की थी।

मोढेरा का सूर्य मंदिर उन कुछ पुरातात्विक स्थलों में से एक है जिसका रखरखाव भारतीय पुरातात्विक विभाग सर्वोत्तम रूप से कर रहा है। अपनी गुजरात यात्रा में आप मोढेरा अवश्य जाएँ। आशा है मेरे इस संस्मरण द्वारा आपको मोढेरा के सूर्य मंदिर की विशेषताओं के बारे में वांछित जानकारी अवश्य मिली होगी।

गुजरात राज्य के अन्य पर्यटन स्थलों के संस्मरण
• ऐतिहासिक पावगढ़ पहाड़ी, गुजरात
रानी की वाव – एक रानी की विरासत
• अहमदाबाद के ६ देखने लायक संग्रहालय
• चंपानेर की मध्यकालीन वास्तुकला
• दाभोई के उत्कीर्णित द्वार

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

 

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सूरजकुंड – एक ऐतिहासिक धरोहर हरियाणा के इतिहास से https://inditales.com/hindi/surajkund-faridabad-haryana-heritage/ https://inditales.com/hindi/surajkund-faridabad-haryana-heritage/#comments Wed, 14 Jun 2017 02:30:27 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=298

सूरजकुंड – यह नाम सुनते ही आपके सामने उस प्रसिद्द मेले का रंगीन सा दृश्य उभर आता है, जो पूरे भारत को एक साथ आपके सामने प्रस्तुत करता है। यहां पर आप भारत के विभिन्न क्षेत्रों की विशेष और परिचयात्मक वस्तुएं एक ही स्थान पर एकत्रित पाते हैं। देश भर के कारीगर इस मेले में […]

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सूरजकुंड हरियाणासूरजकुंड – यह नाम सुनते ही आपके सामने उस प्रसिद्द मेले का रंगीन सा दृश्य उभर आता है, जो पूरे भारत को एक साथ आपके सामने प्रस्तुत करता है। यहां पर आप भारत के विभिन्न क्षेत्रों की विशेष और परिचयात्मक वस्तुएं एक ही स्थान पर एकत्रित पाते हैं। देश भर के कारीगर इस मेले में अपनी हस्तकलाओं की वस्तुएं लेकर आते हैं। तथा लोक कलाओं के कलाकार अपने नृत्य, नाटकों से यहां के वातावरण में जीवंतता भर देते हैं। आपको यहां पर देश के विभिन्न भागों के खास व्यंजन खाने का मौका भी मिलता है। ये सारे नजारे मिलकर सूरजकुंड मेले को और भी आकर्षित बनाते हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि सूरजकुंड का मेला भारत को अपने उत्तम रूप में प्रस्तुत करता है। यहां की विशाल प्रतिमाएँ जो खास तौर पर मेले के लिए बनवाई गईं थी, अब साल भर वहां पर देखी जा सकती हैं। यह जगह भारत के पारंपरिक रूप से जुडने का अच्छा जरिया है।

आइए तो मैं आपको सूरजकुंड मेले के मैदानों के पीछे ले चलती हूँ, जहां पर वास्तव में सूरजकुंड बसा हुआ है, जो इस विश्व-प्रसिद्ध मेले को अपना नाम प्रदान करता है।

सूरजकुंड का जलाशय

सूरज की और झुकता हुआ सूरजकुंड
सूरज की और झुकता हुआ सूरजकुंड

मेले के मैदान के ठीक पीछे ही एम्फीथिएटर या सभागार जैसा एक बड़ा सा कुंड या जलशात है, जो 6 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है। इस जलाशय के तल भाग की चौढ़ाइ 130 मीटर की है। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अपने पूरे ढांचे को मिलाकर यह जलाशय कितना व्यापक होगा। सूर्य को श्रद्धांजलि देने हेतु बनाया गया यह कुंड, पूर्वी दिशा में ढला हुआ होने के कारण देखने वाले को यह दृश्य उगते हुए सूर्य सा प्रतीत होता है। भारत में व्यापक रूप से उगते हुए सूर्य को पूजा जाता है।

पहली बार सूरजकुंड के जलाशय को देखते ही आपको वह किसी रोमन एम्फीथिएटर जैसा लगता है, जहां पर चारों ओर पत्थरों की बड़ी-बड़ी सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। और इन सीढ़ियों के बीचोबीच एक बड़ा सा खुला मैदान है। इस जलाशय की एक ओर एक मंच जैसी संरचना है जो जलाशय के सामान्य स्तर से थोड़ा उभरा हुआ है। यह मंच पुराने जमाने में राजाओं को बैठने के लिए हुआ करता था।

इसके अलावा यहां पर एक छोटी सी ढलान या घाट जैसा है, जो इस ढांचे के ऊपरी स्तर को निचले भाग या जमीन से जोड़ती है। इस घाट को देखने पर जो सबसे पहला विचार मेरे दिमाग में आया था वह यह था कि शायद उस जमाने में भी अपाहिज लोगों के लिए खास जगहें बनवाई जाती होंगी। या फिर यह पथ बड़े-बड़े जानवरों, जैसे कि हाथी, को आने-जाने हेतु बनवाया होगा, जिन्हें यहां पर आयोजित कार्यक्रमों में भागीदार बनाया जाता है। लेकिन यह सिर्फ मेरी कल्पना है।

सूर्य पुष्कर्णी जलाशय

सूरजकुंड जलाशय
सूरजकुंड जलाशय

सूरजकुंड या सूर्य पुष्कर्णी वास्तव में एक सुनियोजित जलाशय है जो आस-पास के क्षेत्र की पानी संबंधी जरूरतों को पूरा करता है। इस जलाशय को निकट स्थित एक छोटी सी नदी से जोड़ा गया है, जो कुछ ही कि.मि. आगे जाकर अनंग बांध से जुड़ती है। यह सबकुछ इस प्रकार से बनाया गया है कि जब नदी के पानी की मात्र बढ़ती है तो उसके अतिप्रवाहित पानी को इस जलाशय की तरफ मोड़कर यहां पर जलसंचयन किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह जलाशय वर्षा ऋतु के समय अपने चारों ओर के अरावली पर्वतों से आने वाले पानी का भी संचयन कर सकता है।

इस कुंड के एक ओर बना हुआ घाट वास्तव में गायों के लिए है, ताकि वे आराम से कुंड में उतरकर पानी पी सके। इस घाट को गौ घाट कहा जाता है। इस कुंड का एक भाग ऐसा है जिसके बारे में मुझे ठीक जानकारी नहीं मिल पायी है। इस जलाशय के चारों ओर बीच-बीच में सीढ़ियों से बाहर झाँकते हुए पत्थर नज़र आते हैं। इस प्रकार के निर्माण के पीछे का कारण मैं नहीं जन पायी हूँ। इस संबंध में जितना भी साहित्य उपलब्ध है उसे पढ़ने के बाद भी मुझे इन पत्थरों से जुड़ा कोई स्पष्टीकरण कहीं नहीं मिला। शायद ये किसी वस्तु को रखने के लिए या फिर किसी को आधार देने के लिए बनवाए गए होंगे।

तोमर कुल – सूर्य के उपासक

पत्थर की सीढियां - सूरजकुंड
पत्थर की सीढियां – सूरजकुंड

इस कुंड को सूरजकुंड नाम देने के पीछे कुछ खास कारण हैं। पहला तोमर कुल, जिनके द्वारा 10वी शताब्दी में यह कुंड बनवाया गया था वे सूर्य उपासक हुआ करते थे। दूसरा, इस कुल के किसी राजा का नाम सूरज पाल था और संभवतः इस कुंड का नामकरण उन्हीं के नाम पर किया गया होगा। कहा जाता है कि जिस स्थान पर सूरजकुंड स्थित है वहां पर पहले तोमर राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। जो बाद में उनके द्वारा लालकोट में स्थानांतरित की गयी थी। जिसके पीछे आज कुतुब मीनार स्थित है। कहते हैं कि, इस जलाशय के पश्चिमी छोर पर एक सूर्य मंदिर था जिसके कोई निशान आज वहां नहीं मिलते। इस संबंध में लोगों का कहना है कि इस मंदिर के अवशेषों का प्रयोग यह जलाशय बांधने में किया गया था। लेकिन आस-पास देखने पर मुझे इस प्रकार के कोई भी उत्कीर्णित अवशेष नहीं मिले जो इस मंदिर के अस्तित्व की कथा को बयान करते हो। लेकिन वहां पर कुछ उत्कीर्णित से पत्थर जरूर हैं, जिन पर किसी खेल के तख्ते के नक्शे जैसे बने हुए हैं। हालांकि उन्हें 10वी शताब्दी में निर्मित मंदिर के उत्कीर्णित अवशेष मानना थोड़ा कठिन है। कुछ मौखिक स्रोतों द्वारा सूरजकुंड की निर्मिति 7वी शताब्दी के उत्तरार्ध में भी मानी जाती है।

सूरजकुंड का जलस्रोत

सूरजकुंड मेले की कलाकृतियाँ
सूरजकुंड मेले की कलाकृतियाँ

ब्रिटिश काल तक सूरजकुंड का प्रयोग जलस्रोत के रूप में हुआ करता था। मध्यकाल के आरंभिक काल के दौरान दिल्ली पर शासन चलानेवाले तुगलक वंशजों द्वारा इस जलाशय की देखरेख होती थी। और जरूरत पड़ने पर समयानुसार उसका सुधारणिकरण भी किया जाता था। जिस स्थान पर कभी मंदिर हुआ करता था वहां पर तुगलकों द्वारा एक छोटी सी गढ़ी भी बनवाई गयी थी।

कहा जाता था कि, इस चौढ़ाइ का जलाशय पूरे दक्षिण दिल्ली की पानी संबंधी जरूरतों का जिम्मा उठा सकता है। लेकिन आज अगर दिल्ली की आबादी देखी जाए तो शायद इस बात पर थोड़ी आपत्ति हो सकती है। लेकिन फिर भी यह जलाशय दिल्ली की आबादी के व्यापक भाग का पोषण करने में सक्षम है।

रंग रंगीला सूरजकुंड मेला
रंग रंगीला सूरजकुंड मेला

जुलाई के अंतिम दिनों में जब मैं सूरजकुंड देखने गयी थी तो उस समय वह पूर्ण रूप से सुख गया था और आप वहां पर फैली हरयाली पर आसानी से चल सकते थे। हो सकता है कि, कुंड के आस-पास धीरे-धीरे अपना सिर उठा रहे निर्माण कार्यों के कारण इस क्षेत्र के जल स्तर पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा हो।

सूरजकुंड जैसा जलाशय किसी क्षेत्र का जलस्तर सामान्य रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। हमारा कार्य सिर्फ इतना है कि, हमे इस जलाशय में पानी के संचयन की सुविधा करनी है और बाकी सबकुछ यह जलाशय स्वयं ही संभाल लेता है।
सूरजकुंड उन विरासत की जगहों में से एक है, जिसका प्रयोग आज भी किया जा सकता है। अगर आपके इरादे पक्के हैं तो आप व्यवस्थित ढंग से इसका लाभ उठा सकते हैं।

अगर आप कभी सूरजकुंड मेला देखने गए तो वहां की सुंदर और अप्रतिम विरासत की प्रशंसा में कुछ पल जरूर बिताईए।

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रानी की वाव – पाटन गुजरात का विश्व धरोहर का स्थल https://inditales.com/hindi/rani-ki-vaav-patan-gujarat/ https://inditales.com/hindi/rani-ki-vaav-patan-gujarat/#respond Wed, 31 May 2017 02:30:07 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=268

रानी की वाव सात मंजिला बावड़ी है जो भीतर से उत्कीर्णन और भारतीय शिल्पकला से पूर्ण रूप से अलंकृत है। यह बावड़ी एक रानी ने अपने पति की स्मृति में बनवाई थी। भारत के इस अद्वितीय स्थल ने 2014 में विश्व धरोहर के स्थलों में अपना स्थान ग्रहण किया था। इस प्रमुख बावड़ी के आस-पास […]

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रानी की वाव - पाटन, गुजरात
रानी की वाव – पाटन, गुजरात

रानी की वाव सात मंजिला बावड़ी है जो भीतर से उत्कीर्णन और भारतीय शिल्पकला से पूर्ण रूप से अलंकृत है। यह बावड़ी एक रानी ने अपने पति की स्मृति में बनवाई थी। भारत के इस अद्वितीय स्थल ने 2014 में विश्व धरोहर के स्थलों में अपना स्थान ग्रहण किया था। इस प्रमुख बावड़ी के आस-पास और भी कई कुएं हैं जिन में से एक कुआं ठीक इस बावड़ी के पीछे है। इन सब में रानी की वाव अपने आप में अप्रतिम है। इसकी भव्यता और वैभव की तुलना वहां पर मौजूद किसी अन्य बावड़ी से नहीं की जा सकती। रानी की वाव न सिर्फ अपने आकार-प्रकार में भव्य है, बल्कि वह अपनी शिल्पकारी की सुसज्जता के कारण भी अप्रतिम लगती है।

सीढ़ियों वाली बावड़ी की यह पूरी संरचना भू-स्तर से नीचे बसी हुई है। इसलिए जब आप उसकी ओर बढ़ते हैं तो आपको अपने आस-पास सिर्फ हरी-भरी जमीन ही नज़र आती है, जिस पर बने हुए मार्ग आपको जमीन में बनी एक बड़ी सी सुराख़ की ओर ले जाते हैं।

सीढ़ियों वाली अलंकृत बावड़ी

ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्तियाँ – रानी की वाव, पाटन, गुजरात
ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्तियाँ – रानी की वाव, पाटन, गुजरात

इस सुराख़ के प्रवेश द्वार पर पहुँचते ही आपको वहां की विशाल सीढ़ियों पर बनी बड़ी-बड़ी संरचनाएं नज़र आती हैं। तथा वहां की दीवारों पर भी आपको उत्कीर्णन की शिल्पकारी दिखाई देती है। ऊपरी स्तर की त्रिकोणीय सीढ़ियों से उतरते हुए जैसे-जैसे आप नीचे जाते हैं, इन सीढ़ियों की सुंदरता आपको मंत्रमुग्ध कर देती है। नीचे पहुँचते-पहुँचते इन सीढ़ियों का मिलन बड़ी सीढ़ियों के साथ होता है। जैसे-जैसे इस बावड़ी की गहराई में उतरते जाते हैं वैसे-वैसे उसकी खूबसूरती आपको और भी मोहित करती जाती है। प्रवेश द्वारा से लेकर अपनी गहराई तक यह बावड़ी पूरी तरह से उत्कृष्ट शिल्पकारी से सुसज्जित है। यहां की प्रत्येक चित्रकारी अपने आप में अद्वितीय है।

रानी की वाव की दो मंजिलों को जोड़ते गलियारे
रानी की वाव की दो मंजिलों को जोड़ते गलियारे

इस बावड़ी का निचला स्तर शायद बाहरी वातावरण से अधिक संपर्क में न होने के कारण आज भी काफी अच्छी परिस्थिति में है। इस निचले स्तर तक पहुँचते-पहुँचते ऐसा महसूस होता है, जैसे कि आप बाहरी दुनिया से कटे हुए इन सीढ़ियों में घिरे हुए हैं। और तब जाकर आप यहां की पत्थरों में लिखित कथाओं की प्रशंसा में पूर्ण रूप से खो जाते हैं।

रानी की वाव की मूर्तियाँ

विष्णु अवतार और मदनिकाएं – रानी की वाव – पाटन, गुजरात
विष्णु अवतार और मदनिकाएं – रानी की वाव – पाटन, गुजरात

सीढ़ियों वाली इस बावड़ी की दीवारों पे आपको मुख्य रूप से विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियाँ नज़र आती हैं। विष्णु के इन दस अवतारों को समूहिक रूप से दशावतार कहते हैं। इसी के साथ यहां पर स्त्री के साज-श्रृंगार के सोलह विविध प्रकारों को नारी मूर्तियों के द्वारा दर्शाया गया है। इसके अलावा यहां पर नागकन्याओं की भी कुछ मूर्तियाँ मिलती हैं। इस बावड़ी में प्रत्येक स्तर पर स्तंभों से बना हुआ गलियारा है जो वहां के दोनों तरफ की दीवारों को जोडता है। इस गलियारे में खड़े होकर आप रानी के वाव की सीढ़ियों की प्रशंसा कर सकते हैं। इन स्तंभों की बनावट देखकर ऐसा लगता है जैसे कि पत्थरों को ही कलश के आकार में ढाल दिया गया हो। इस प्रकार की शैली आप पूरे गुजरात में देख सकते हैं। यहां की उत्कीर्णित दीवारों के बीच कुछ दीवारें ऐसी भी हैं जिन पर बने हुए ज्यामितीय चित्र या रेखाचित्र देखने लायक हैं।

रानी की वाव का गहरा कुआं

रानी की वाव का गहरा कुआँ
रानी की वाव का गहरा कुआँ

रानी की वाव में नीचे अंतिम स्तर पर एक गहरा कुआं है जो उपर से भी देखा जा सकता है। यह कुआं भी इस सम्पूर्ण बावड़ी की तरह उत्कीर्णन से सुशोभित है। इस कुएं के अन्दर भी और गहराई तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। लेकिन आज अगर आप उपर से नीचे देखे तो आपको वहां पर दीवारों से बाहर निकले हुए सिर्फ कुछ कोष्ठ ही नज़र आएंगे जो कभी किसी प्रकार की वस्तु या संरचना को रखने हेतु इस्तेमाल होते थे। अगर आप इस कुएं में भीतर तक जाएं तो आपको उसके तल में स्थित शेष शैय्या पर लेटे हुए विष्णु की मूर्ति देखने को मिलती है।

पुतात्वविदों का मानना है की विष्णु की इस मूर्ति से शायद इस बावड़ी को क्षीरसागर समान मानने के लिए

पाटन, गुजरात

रानी की वाव की सुसज्जित दीवारें
रानी की वाव की सुसज्जित दीवारें

रानी की वाव अहमदाबाद से लगभग 140 कि.मी. उत्तर पश्चिमी भाग में, पाटन शहर के पास बसी हुई है, जो सोलंकी वंशजों की प्राचीनतम राजधानी हुआ करती थी। सोलंकी वंशज पहली सहस्त्राब्दी के बदलते युग के दौरान इस क्षेत्र पर शासन करते थे। राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयमती ने यह वाव 11 सदी के उत्तरार्ध काल के दौरान बनवाई थी। इस वाव के निर्माण के पीछे का मुख्य कारण था पानी का प्रबंध, क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत ही कम वर्षा होती है। तो इसके पीछे दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि शायद रानी उदयमती जरूरतमंद लोगों को पानी प्रदान करके पुण्य कमाना चाहती थी।

जब मैं रानी की वाव में खड़ी थी तो मुझे लगा कि, इसकी दीवारों पे उत्कीर्णित देवी-देवताओं की मूर्तियाँ या फिर वहां पर बने अन्य धार्मिक प्रतीक शायद उसे साफ और पवित्र बनाए रखने हेतु उत्कीर्णित किए गए होंगे। कभी कभी तो यहाँ की शिल्पकारी देख कर इस वाव के एक मंदिर होने का भ्रम होता है।

रानी की वाव की दीवारों पे वास करते देवी, देवता और अप्सराएं
रानी की वाव की दीवारों पे वास करते देवी, देवता और अप्सराएं

रानी की वाव देखने के बाद आप जरूर हमारे पूर्वजों के दृष्टिकोण की प्रशंसा करेंगे जो जीवन के प्रति द्वियम दृष्टिकोण रखते थे। सीढ़ियों वाली यह बावड़ी न सिर्फ इस क्षेत्र द्वारा प्रदान किए गए थोड़े से पानी को इकट्ठा करने की जगह थी, बल्कि यह एक ऐसी जगह है जहां पर आकर लोग शांति और सुख का एहसास करते हैं। यह पूरी बावड़ी प्राचीन काल की मान्यताओं और संस्कृति पर लिखी हुई जैसी कोई पुस्तिका है जो आनेवाली पीढ़ी के लिए लिखी गयी है। यह बावड़ी एक प्रकार से हमारी संस्कृति और परंपराओं का ज्ञान सागर है, जो अपनी सीढ़ियों द्वारा आपको हमारी संस्कृति की गहराई तक ले जाती है।

आप जब गुजरात जाएँ, तो रानी की वाव अवश्य जाइए।

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