मुंबई यात्रा Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 05:04:28 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 मुम्बा देवी की मुंबई – नगर के प्राचीन मंदिरों की यात्रा https://inditales.com/hindi/mumba-devi-mumbai-ke-prachin-mandir/ https://inditales.com/hindi/mumba-devi-mumbai-ke-prachin-mandir/#comments Wed, 23 Mar 2022 02:30:18 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2624

अनुराधा गोयल – मुंबई निवासी भरत गोठोसकर मेरे घनिष्ठ मित्र हैं जो मुंबई के धरोहरों से सम्बंधित मेरी सभी जिज्ञासाओं को सहर्ष व अविलम्ब शांत करते रहते हैं। हमारी प्रथम भेंट पर वे मुझे लोअर परेल ले गए थे जहां उन्होंने मुझे मुंबई के प्राचीन इतिहास से सम्बंधित एक अप्रतिम शिल्प दिखाया था। मेरी पिछली […]

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अनुराधा गोयल – मुंबई निवासी भरत गोठोसकर मेरे घनिष्ठ मित्र हैं जो मुंबई के धरोहरों से सम्बंधित मेरी सभी जिज्ञासाओं को सहर्ष व अविलम्ब शांत करते रहते हैं। हमारी प्रथम भेंट पर वे मुझे लोअर परेल ले गए थे जहां उन्होंने मुझे मुंबई के प्राचीन इतिहास से सम्बंधित एक अप्रतिम शिल्प दिखाया था। मेरी पिछली मुंबई यात्रा के समय मुम्बा देवी मंदिर के दर्शन की मेरी तीव्र अभिलाषा थी। तब भी भरत ही मुझे वहां ले गए थे। दर्शन के पश्चात वे मुझे मंदिर के समीप के क्षेत्र में पदयात्रा के लिए ले गए। उन्होंने मुझे जो दिखाया, उसने मुझे विस्मित कर दिया था. मैंने मुंबई की परतों के भीतर स्थित वह मंदिर नगरी देखी जिसका अस्तित्व मेरे लिए लुप्त हो चुका था। वे सदा मुझे मुंबई के उन आयामों के दर्शन कराते रहे हैं जिनका मुझे अनुमान तक नहीं होता है। इसीलिए आज मैंने उनसे अनुरोध किया है कि वे हमें मुंबई के उस भाग के विषय में बताएं जिनसे हम अनभिज्ञ हैं। भरत, आज की चर्चा में आपका स्वागत है।

मुंबई के मंदिरों की खोज

अनुराधा – भरत, आज की चर्चा का आरम्भ हम मुम्बा देवी से करते हैं जिन्होंने मुंबई को अपना नाम प्रदान किया है। हमें उनके मंदिर, उसका इतिहास एवं मुंबई से उनके संबंधों के विषय में कुछ जानकारी दें।

मुंबई स्थित मुम्बा देवी मंदिर
मुंबई स्थित मुम्बा देवी मंदिर

भरत – कई लोगों को ऐसा भ्रम है कि सन् १९९५ में बॉम्बे का नाम परिवर्तित कर मुंबई रख दिया है। यह सही नहीं है। यह द्वीप लगभग १२वीं या १३वीं सदी से ही मुंबई के नाम से जाना जाता रहा है। इस नाम की पृष्ठभूमि में एक अत्यंत रोचक कथा है। किवदंतियों के अनुसार यहाँ के निवासियों ने देवी से प्रार्थना की थी कि वे मुम्बारख राक्षस से उनकी रक्षा करें। चूंकि देवी ने मुम्बारख राक्षस से उनकी रक्षा की थी, भक्तगण उन्हें मुम्बा देवी के नाम से पुकारने लगे। अतः मुम्बारख की संहारक मुम्बा देवी कहलाई।

यह अत्यंत रोचक है कि दिल्ली के सुलतान मुबारक शाह को ही स्थानिक मुम्बारख राक्षस मानते थे। अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया था। लोगों की श्रद्धा है कि देवी ने ही उनकी रक्षा की थी। अतः, दिल्ली रियासत का भी मुंबई नाम से कुछ सम्बन्ध अवश्य है।

मूल मुम्बा देवी मंदिर

मुम्बा देवी की मनोहर मूर्ति
मुम्बा देवी की मनोहर मूर्ति

मूल मंदिर लगभग उसी स्थान पर स्थित था जहां अब छत्रपति शिवाजी महाराज रेल स्थानक स्थित है। उस काल में यह औपनिवेशिक बॉम्बे नगर में, बाजार द्वार के ठीक बाह्य भाग में स्थित था। इस क्षेत्र की स्वच्छता के समय उन्होंने इसे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित किया था जो मूल नगरी है। दुर्ग क्षेत्र श्वेत नगर था जहां अंग्रेज निवास करते थे। स्थानीय निवासी दूसरी ओर निवास करते थे जिसे मूल नगर माना जाता है। अतः, क्रोफर्ड बाजार के उत्तर में मुम्बा देवी ने अपना नवीन स्थान निश्चित किया। मुम्बा देवी का नवीन मंदिर दो सौ वर्ष प्राचीन है।

अनुराधा – जी। तो बॉम्बे अथवा बम्बई नाम कैसे पड़ा?

भरत – इसके पृष्ठभाग में कई अनुमान हैं। कुछ का मानना है कि बम्बई शब्द की युत्पत्ति बोम्बाया शब्द से हुई है जो एक पुर्तगाली शब्द है। इसका अर्थ “अच्छी खाड़ी’ होता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इस क्षेत्र में बिम्बस्थान नामक एक राजा था जिसका सात द्वीपों पर साम्राज्य था तथा माहिम में उसकी राजधानी थी। कदाचित बिम्बस्थान शब्द ही अपभ्रंशित होता हुआ बॉम्बे में स्थिर हो गया। कुछ प्राचीन पुर्तगाली मानचित्रों में इस नगर को मुम्बईम के नाम से दर्शाया गया है। इस प्रकार बॉम्बे अथवा बम्बई से सम्बंधित अनेक सिद्धांत हैं किन्तु उनसे सम्बंधित लिखित अभिलेख नहीं हैं।

अनुराधा – आपके साथ इस क्षेत्र के भ्रमण के पश्चात मैंने मुंबई से सम्बंधित कुछ शोध किया था। तब मुझे मुम्बा देवी महात्म्य के विषय में ज्ञात हुआ।

भरत – जी हाँ। उसी ग्रन्थ में मुम्बारख राक्षस एवं उसकी कथा का उल्लेख है।

मुम्बा देवी मंदिर के आसपास अन्य मंदिर

अनुराधा –क्या आप मुम्बा देवी मंदिर के आसपास स्थित मंदिरों के विषय में बताएँगे, जो आपने मुझे दिखाए थे?

भरत –  आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि मुम्बा देवी मंदिर से भी अधिक प्राचीन कुछ मंदिर थे जिन्हें अन्यत्र स्थानांतरित किया गया था। गोवा राज्य के समान, उन मंदिरों को भी पुर्तगाली साम्राज्य में नष्ट किया गया था। उसी प्रकार, मुंबई के उत्तर में वसई से लेकर दमन तक तथा दक्षिण में अलीबाग तक के क्षेत्र पुर्तगालियों के अधीन थे। उस काल में अनेक मंदिरों को नष्ट किया गया था तथा अंग्रेजी शासनकाल में उनका पुनर्निर्माण किया गया था।

अधिकाँश मंदिरों का निर्माण ५० वर्ष पूर्व किया गया था जिनमें भूलेश्वर जैसे क्षेत्र के आकर्षण प्राचीन मंदिर भी सम्मिलित हैं। भुलेश्वर तीन सौ वर्ष प्राचीन एक भव्य मंदिर है। इसमें एक सुन्दर नगारखाना है। प्रवेश द्वार पर उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित एक कक्ष है जहां संगीतज्ञ विराजमान होते थे। महल अथवा हवेली का प्रवेशद्वार भव्य होता है। किसी भी अनुष्ठान के समय, गणमान्य व्यक्तियों एवं भक्तगणों के प्रवेश करने से पूर्व नगारखाने में वाद्ययंत्र बजाये जाते थे। भुलेश्वर का नगारखाना भी अत्यंत आकर्षक है जिस पर की गयी शिल्पकारी नासिक, गुजरात अथवा खानदेश की शैली के समान है।

स्थापत्य

मंदिर नागर स्थापत्य शैली में निर्मित है जो एक उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली है। सभा मंडप ढलुआ लौह स्तंभों से युक्त है। मुंबई विभिन्न संस्कृतियों तथा व्यक्तित्वों का सर्वदेशीय मिश्रण है। यही उसकी स्थापत्य शैली के विषय में भी कहा जा सकता है। इसका प्रवेश द्वार पुर्तगाली तोरण के समान है जिस पर गुजरात शैली का नगारखाना है। विभिन्न शैलियों का बेमेल सम्मिश्रण ही इस मंदिर की विशेषता है।

जवेरी बाजार में स्थित मुम्बा देवी का मंदिर प्रमुख मंदिर है। समीप ही, कपड़ा मंडी में कालबा देवी अथवा कलिका देवी का मंदिर है। भूलेश्वर में अनेक संकरी तथा अत्यंत भीड़भरी गलियाँ हैं, जैसे फूल गली, चाँदी गली तथा पापड़ गली। किन्तु उनमें कुछ अत्यंत आकर्षक मंदिर हैं।

मोटा मंदिर

इनमें से मेरा सर्वाधिक प्रिय मंदिर है, मोटा मंदिर, जो ढाई एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। मुंबई जैसे नगर में ढाई एकड़ की भूमि पर एक मंदिर का होना स्वयं में विशेष है। कृष्ण को समर्पित, ढाई सौ वर्ष प्राचीन यह मंदिर वास्तव में एक राजमहल है जहां उनके बालरूप की आराधना की जाती है। प्रातः से रात्रि तक उन्हें लोरी गाकर सुलाया व उठाया जाता है। उन्हें छप्पन भोग अर्पित किये जाते हैं। उनकी गायों को चराने के लिए घास के मैदान हैं। विशेष आयोजनों में यहाँ कृष्ण भगवान की राजसभा लगती है जहां उनके दरबारी उनसे भेंट करने आते हैं। सम्पूर्ण सभागृह उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित लकड़ी से निर्मित है।

समुद्री माता

समुद्री माता मंदिर भी अतिविशेष है क्योंकि यह दुर्लभ है। पूर्व में मैंने कराची में स्थित, समुद्र देव को समर्पित, वरुण मंदिर के विषय में पढ़ा था। भारत के दक्षिण में भी समुद्र देव का एक मंदिर है।

अनुराधा – दमन में भी एक मंदिर है जिसे समुद्र नारायण वरुण देव मंदिर कहते हैं।

भरत – यह रोचक जानकारी है। समुद्री माता मंदिर भी रोचक है क्योंकि भूलेश्वर चारों ओर से भूमि से घिरा हुआ है। तो, समुद्री माता यहाँ कैसे आयी? मानचित्र देखकर हमें ज्ञात हुआ कि यहाँ पृथक पृथक सात द्वीप थे जिनका हृदयस्थल वर्तमान का दक्षिण बॉम्बे है जो उस काल में दलदल युक्त जलमग्न भूमि थी। एक काल में भूलेश्वर समुद्र के समक्ष था तथा समुद्री माता मंदिर कदाचित समुद्रतट पर स्थित था। दलदली भूमि के पुनरुद्धार के पश्चात सम्पूर्ण दृश्य परिवर्तित हो गया है।

पंचमुखी हनुमान मंदिर मुंबई
पंचमुखी हनुमान मंदिर मुंबई

पंचमुखी हनुमान मंदिर में हनुमानजी की पंचमुखी प्रतिमा है जिनके चार मुख चार दिशाओं की ओर हैं तथा पाँचवाँ मुख आकाश की ओर है। रामायण कथा के अनुसार पाताल का अधिपति अहिरावण भगवान राम एवं लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें पाताललोक ले गया तथा उनका वध करना चाहा। तब अहिरावण का वध करने के लिए हनुमान ने विशेष पंचमुखी अवतार धारण किया जिसमें क्रमशः वराह, अश्व, नृसिंह, वानर तथा गरुड़ के मुख हैं। यह इसलिए क्योंकि अहिरावण को वरदान प्राप्त था कि जो पांच दिशाओं में स्थित पांच दीपकों को एक साथ बुझाए, वही अहिरावण का वध कर सकता है। इस प्रकार हनुमान ने पांच दिशाओं के दीपक एक साथ बुझाए तथा अहिरावण का वध किया। इससे पूर्व मैंने अनेक पंचमुखी हनुमान देखे हैं किन्तु केवल इसी प्रतिमा में हनुमान के पांच मुख वास्तव में पांच दिशाओं में हैं।

अनुराधा – वह प्रतिमा प्राकृतिक शिला दृष्टिगोचर होती है।

भरत – जी। मुंबई की रचना ज्वालामुखी के कारण हुई है। यह प्रतिमा भी एक ज्वालामुखी चट्टान है। यह मंदिर भूलेश्वर मंदिर के समक्ष स्थित है। इसके विषय में अधिक लोगों को जानकारी नहीं है क्योंकि वहां कोई सूचना पटल भी नहीं है। यहाँ अधिकतर स्थानीय भक्तगण ही आते हैं।

अनुराधा – मुंबई जैसे भीड़भाड़ भरे नगर की तुलना में यह एक विशाल मंदिर है।

भूलेश्वर मंदिर

भरत – मुंबई का प्रथम स्वामीनारायण मंदिर भी भूलेश्वर में है जो तीजा भोईवाड़ा में स्थित है। यह आकर्षक मंदिर उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित एवं चित्रित है। इसका दर्शन नेत्रों को तृप्त कर देता है। ऐसा ही एक भव्य स्थान है, सूरजवाड़ी, जहां एक सूर्यनारायण मंदिर है। यह प्रतिदिन प्रातः सूर्योदय के समय खुलता है तथा संध्या सूर्यास्त के समय बंद होता है। यह अत्यंत विशेष है क्योंकि मुंबई में इसके अतिरिक्त कोई अन्य सूर्य मंदिर नहीं है। सबसे निकट कदाचित मोढेरा सूर्य मंदिर होगा।

अनुराधा – अधिक लोग यह नहीं जानते हैं कि दिल्ली में भी अनेक सूर्य मंदिर थे। किन्तु सूरजकुंड के अतिरक्त अन्य सभी मंदिर नष्ट हो गए हैं। आशा है उनका पुनर्निर्माण शीघ्र किया जाएगा। एक प्रश्न मेरे मस्तिष्क में कौंध रहा है। यदि ये सभी मंदिर अधिकतम ३०० से ४०० वर्ष प्राचीन हैं, तो मुंबई का प्राचीनतम वसाहती क्षेत्र कौन सा है?

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भुलेश्वर मंदिर मुंबई
भुलेश्वर मंदिर मुंबई

वाल्केश्वर

भरत – इन सात द्वीपों में से एक मुंबई था। औपनिवेशिक काल में हिन्दू समाज व्यापार द्वारा जीविकोपार्जन करता था। उन्होंने ये मंदिर ब्रिटिश राज में बनाए थे किन्तु इससे पूर्व भी वहां एक प्राचीन तीर्थ उपस्थित था। पुराणों में उसका उल्लेख है। इसे वाल्केश्वर मंदिर कहा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र के मुख्य आराध्य वाल्केश्वर देव हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस क्षेत्र में ऋषि गौतम का आश्रम था। भगवान राम नासिक के पंचवटी से लंका की ओर प्रस्थान करते समय यहाँ आये थे। यहाँ गौतम ऋषि ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने का परामर्श दिया जिसके लिए उन्हें काशी से स्फटिक का लिंग लाने के लिए कहा। भगवान राम ने लक्ष्मण को लिंग लाने के लिए भेजा। लक्ष्मण को आने में विलम्ब होता देख भगवान राम ने बालू से लिंग की रचना की। उस लिंग को वालुका कहा जाता है। उस लिंग के कारण भगवान शिव को वालुकेश्वर कहा जाता है। यह एक भव्य मंदिर है।

शिलाहार राजवंश

लगभग सहस्त्र वर्ष पूर्व यहाँ शिलाहार राजवंश का साम्राज्य था जिन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था। उनमें से एक मंदिर अब भी विद्यमान है जो मुंबई की सीमा पर स्थित है। यह अम्बरनाथ मंदिर है जो एक आकर्षक मंदिर है। ठीक इसी प्रकार का मंदिर उस स्थान पर भी था जहां अब राजभवन है। वह वाल्केश्वर मंदिर था जिसे इस्लामिक आक्रमणकारियों ने तोप के गोलों से नष्ट कर दिया था। पुर्तगाली इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा कहते थे। बाणगंगा नामक जलकुंड अथवा तीर्थ के एक कोने में स्थित विभिन्न समाधियों में इस मंदिर के अवशेष अब भी प्राप्त होते हैं।

एक अन्य किवदंती के अनुसार, यहाँ फुटबाल मैदान के आकार की एक बावडी थी। चूँकि इस क्षेत्र के समीप मीठे जल का कोई स्त्रोत नहीं था तथा यह स्थान चारों ओर से खारे समुद्र से घिरा था, भगवान राम ने भूमि पर अपना तीर साधा, जिससे भोगवती अथवा देवी गंगा बाहर आयी तथा मीठे जल का स्त्रोत प्रस्फुटित हुआ। इस जल को एकत्र करने के लिए जलकुंड का निर्माण किया गया। कालांतर में शिलाहार शासनकाल में जलकुंड के भीतर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कराया गया। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि ज्वालामुखी के कारण यहाँ गड्ढा हो गया है जहां जल एकत्र होता है। किन्तु समुद्र के इतने समीप मीठे जल का स्त्रोत विद्यमान होना, स्वयं में एक आश्चर्यजनक घटना है।

प्राचीनतम संरचना

वाल्केश्वर मंदिर वास्तव में दक्षिण मुंबई की प्राचीनतम संरचना है। यद्यपि मुंबई नगरपालिका की सीमा की दृष्टि से कान्हेरी गुफाएं प्राचीनतम हो सकती हैं, तथापि मूल सीमा के अनुसार यह मंदिर प्राचीनतम संरचना है। इसके चारों ओर अनेक अन्य मंदिर हैं।

यह भी सत्य है कि मूल मंदिरों के पूर्णतः नष्ट होने के पश्चात ब्रिटिश काल में उनका पुनर्निर्माण कराया गया था। भूलेश्वर मंदिर के समान ये मंदिर भी विभिन्न शैलियों के सम्मिश्रण हैं। नागर शैली के मंदिर होते हुए भी उनके ऊपर गुम्बद हैं। इस्लाम आक्रमणों के पश्चात देश की स्थापत्य शैली में गुम्बद, तोरण एवं सुरक्षा कक्ष का पदार्पण हुआ जिसके कारण संरचनाओं में मस्जिद की शैली का आभास होने लगा। वाल्केश्वर मंदिर के गर्भगृह के ऊपर भी गुम्बद है। उसके समक्ष सभागृह है जिसमें सुन्दर उत्कीर्णन किया गया है।

बालाजी मंदिर में मराठी शैली का उत्कृष्ट काष्टकला की गयी है। कुछ ऐसे मंदिर हैं जिनके गर्भगृह नागर शैली के हैं तथा उनके सभागृह कोंकण शैली के हैं जिनके भीतर मंगलोर टाइलें लगी हुई हैं। ऐसे मंदिर बहुधा कोंकण क्षेत्र में दृष्टिगोचर होते हैं।

एक अन्य भव्य मंदिर है, सिद्धेश्वर मंदिर। मान्यताओं के अनुसार इसका निर्माण पेशवा रघुनाथराव ने करवाया था। पूर्णतः शिलाओं द्वारा निर्मित यह मंदिर दक्खन शैली का मंदिर है जो पुणे एवं कोल्हापुर के मंदिरों से साम्य रखता है।

साधू अखाड़ा

नासिक, उज्जैन, बनारस अथवा कानपूर के अखाड़ों जैसे अनेक अखाड़े यहाँ भी हैं जो मुझे अचंभित करते हैं। ये साधू अखाड़े हैं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी काल में आक्रमणकारियों से अपने धर्म के रक्षण हेतु साधुओं ने भी कदाचित अस्त्र-शस्त्र उठाये थे। कालांतर में जयराम गीर बाबा अखाड़ा जैसे कुछ अखाड़े मिठाई की दुकानों अथवा वसाहत क्षेत्र में परिवर्तित हो गए हैं। अन्य अखाड़े अब मंदिर बन गए हैं। इन अखाड़ों से सटे हुए साधुओं के समाधि स्थल हैं। आप जानते हैं कि साधुओं का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता, अपितु उन्हें पद्मासन की स्थिति में समाधि दी जाती है।

समाधियाँ चौकोर आकार की हैं। यदि समाधि के ऊपर शिवलिंग हो तो वह साधू की समाधि होती है, वहीं, यदि समाधि पर दो पदचिन्ह उत्कीर्णित हो तो वह साध्वी की समाधि होती है। एक काल में यहाँ अनेक अखाड़े तथा समाधिस्थल थे किन्तु अब कुछ ही शेष रह गए हैं।

इन्चगिरी सम्प्रदाय

नवनाथपुर में इन्चगिरी नामक एक सम्प्रदाय है। उनके एक संत सिद्धरामेश्वर जी की समाधि बाणगंगा में है। औपनिवेशिक काल में मालाबार हिल्स में अनेक राजपरिवारों के महल थे। यहाँ अनेक समाधियाँ ऐसी हैं जो उन राजपरिवारों से सम्बंधित हैं, जैसे गोंडल अथवा अंग्रेज राजशाही। लोग बाणगंगा को केवल एक तीर्थ मानते हैं। वे वहां जाकर प्रार्थना अवश्य करते हैं किन्तु उस स्थान के सत्व को जाने बिना ही लौट आते हैं। वे बहुधा किसी परिजन के अंतिम विधियों के लिए जाते हैं किन्तु वहां स्थित धर्मशालाओं, समाधियों, मंदिरों इत्यादि के दर्शन किये बिना वापिस आ जाते हैं।

लक्ष्मीनारायण मंदिर
लक्ष्मीनारायण मंदिर

पंजाबी धर्मशाला अत्यंत विशेष है जिस पर ‘अमृतसर के दुकानदारों की धर्मशाला’ लिखा हुआ है। इस धर्मशाला का निर्माण अमृतसर के दुकानदारों ने निधि एकत्र उन दुकानदारों के ठहरने के लिए बनवाया था जो दर्शन के लिए अमृतसर से मुंबई जाते हैं। सौ वर्ष पूर्व पंजाब से के. एल. सहगल जैसे अनेक चित्रपट कलाकार मुंबई आये थे। उनमें से अनेक कलाकार पंजाबी धर्मशाला में ठहरे थे। बॉलीवुड के अनेक चित्रपटों में होली के जो दृश्य दिखाए जाते हैं, उनका आरम्भ वाल्केश्वर के पंजाबी धर्मशाला में ही हुआ था। समुद्र के समक्ष स्थित यह धर्मशाला अब चिंतनीय स्थिति में है।

कृष्ण मंदिर

कृष्ण का मूल मंदिर समुद्र की लहरों के थपेड़ों के कारण नष्ट हो गया है। किन्तु उन अवशेषों से भी अत्यंत रोचक जानकारी प्राप्त होती है। यहाँ एक जयंत समाधि है। ऐसा माना जाता है कि अनुराग नामक एक भवन में एक साधू ने जीवित समाधि ली थी। मान्यता है कि वे अब भी चिरकालीन ध्यान में मग्न हैं। यहाँ अनेक ऐसे छोटे छोटे किन्तु महत्वपूर्ण तत्व हैं जिन्हें पर्यटकों को देखना चाहिए।

एक मंदिर परशुराम का भी है। किवदंतियों के अनुसार, परशुराम ने सह्याद्री पर्वत श्रंखला पर खड़े होकर समुद्र की ओर अपना परशु फेंका था जिससे समुद्र पीछे चला गया तथा कोंकण क्षेत्र की उत्पत्ति हुई। उन्होंने इस क्षेत्र का नाम अपनी माताजी, रेणुका के नाम पर रखा था जिन्हें कोंकणा भी कहते थे। परशुराम ने अपना परशु किस ओर फेंका था तथा वह कहाँ गिरा था, इस विषय में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार उनका परशु बाणगंगा में गिरा था जिससे बाणगंगा सरोवर की रचना हुई थी। भंसाली परिवार ने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया है। मेरे अनुमान से संजय लीला भंसाली इसी परिवार से सम्बन्ध रखते हैं।

विट्ठल रुक्मिणी

विट्ठल रुक्मिणी का एक छोटा सा मंदिर है जो चार राज्यों से सम्बंधित है। मंदिर महाराष्ट्र के मुंबई में है। भगवान को कन्नड़ विट्ठल कहते हैं, अर्थात् वे कर्णाटक से सबंधित हैं तथा कन्नड़ भाषी हैं। मंदिर का निर्माण एक गुजरती परिवार ने किया है तथा उन्हें राजस्थान के श्रीनाथजी जैसे वस्त्र एवं आभूषणों से सज्ज किया है। जैसे मुंबई सर्वदेशीय है उसी प्रकार यह मंदिर भी सार्वभौमिक प्रतीत होता है।

यहाँ दो मठ भी हैं। कैवल्य मठ, जिसे कवलम मठ भी कहते हैं, उसकी एक सहायक शाखा मुंबई में है। ३-४ सदियों प्राचीन मठ में माँ शांतादुर्गा की प्रतिमा है। इस प्रकार मुंबई में माँ शांतादुर्गा का निवास वाल्केश्वर है। यह काशी मठ की सहायक शाखा है। इस प्रकार वालकेश्वर में अत्यंत दुर्लभ स्थानों के दर्शन होते हैं।

मालाबार हिल्स

मालाबार हिल्स के विषय में रोचक तथ्य यह है कि इसका नाम मालाबार के आये तीर्थ यात्रियों के कारण पड़ा है। मुंबई के दक्षिण का सम्पूर्ण भाग मालाबार कहलाता था। वहां एक श्री गुंडी थी तथा चट्टान पर एक चाक था जिसे दिव्य योनी कहा जाता था। ऐसी मान्यता है कि वहीं से सभी की उत्पत्ति हुई है। जो वहां से होकर जाए उसका भी पुनर्जन्म हो जाता है तथा वह अपने सभी पापों से मुक्ति पा जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी यहाँ आये थे। कदाचित शिवाजी महाराज मुंबई में केवल इसी स्थान में आये थे। यह चट्टान कदाचित ३० वर्षों पूर्व तक अस्तित्व में थी किन्तु समुद्र के थपेड़ों के कारण क्षतिग्रस्त होकर समुद्र में गिर गयी।

अनुराधा – मैं बाणगंगा को सदा ही मुंबई एवं मीठे जल का उत्पत्ति स्थान मानती हूँ। अन्य सभी तत्व कालांतर में प्रकट हुए थे। मीठे जल का स्त्रोत यह दर्शाता है कि यहाँ सदा से वसाहत रही थी।

भरत – जी हाँ। १२ सदियों से यहाँ वसाहत रही है। उससे पूर्व में भी रही होगी जो उजड़ गयी होगी।

अनुराधा –  भरत, मुंबई की गुफाओं के विषय में भी कुछ बताएं।

कान्हेरी गुफाएं

भरत – मुंबई में विभिन्न समयावधियों की अनेक गुफाएं हैं। मेरे अनुमान से कान्हेरी गुफाएं सर्वाधिक पुरातन हैं, ईसा से भी पूर्व। इसके अतिरिक्त, महाकाली है, जो ५-६वीं सदी में निर्मित गुफा मंदिर है। जोगेश्वरी एवं मंडपेश्वर में भी गुफाएं हैं। मगट्ने गुफाओं की दशा अत्यंत चिंताजनक है। गुफाओं के भीतर ही झुग्गी बस्ती है। उन्हें यह ज्ञात ही नहीं है कि वहां गुफाएं हैं।

एक काल में पुर्तगालियों ने मंडपेश्वर को गिरिजाघर में परिवर्तित कर दिया था। उस पर अनेक ईसाई चिन्ह भी अंकित किये गए थे। महाकाली बौद्ध गुफा है, यद्यपि लोग इसे महाकाली मंदिर मानते हैं। जोगेश्वरी एक हिन्दू गुफा है तथा कदाचित प्राचीनतम जीवंत मंदिरों में से एक है। मुझे विश्वास है कि जोगेश्वरी के अधिकांश निवासियों ने इस मंदिर को नहीं देखा होगा क्योंकि यह झुग्गी-झोपड़ियों से पूर्णतः व्याप्त है।

व्यापार मार्ग

अनुराधा –  मैंने उस मंदिर के दर्शन किये हैं। एक प्रश्न मस्तिष्क में उठता है कि क्या वे व्यापार मार्ग का एक भाग हैं क्योंकि मुंबई के निकट ही प्राचीन बंदरगाह हैं?

भरत – सही कहा आपने। ये मंदिर पूर्ण रूप से प्राचीन व्यापार मार्ग पर थे। उस काल में इस क्षेत्र की राजधानी जुन्नर अथवा पैठन में हुआ करती थी। सम्पूर्ण व्यापार मार्ग पर आप सोपारा, घाट एवं दर्रों के अरितिक्त अनेक गुफाएं भी देखेंगे। जिस काल में, जो धर्म अपनी चरम सीमा पर होता था, वहां का स्थानीय राजा उन्हें तदनुसार संरक्षण प्रदान करता था। यहाँ ब्राह्मण गुफाएं हैं, हिन्दू गुफाएं हैं तथा ब्राह्मण गुफाओं से हिन्दू गुफाओं में परिवर्तित गुफाएं भी हैं। गोमाशी नामक गुफा में बुद्ध की भूमिस्पर्श मुद्रा में प्रतिमा है जिसे अब लोग भृगु कहते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि कैसे स्थानिक तदनुसार विवेचना करने लगते हैं। दहाणु के समीप एक गुफा है जिसे पारसी गुफा में परिवर्तित किया गया था। आक्रमण के समय दहाणु गुफा के भीतर पवित्र अग्नि उपस्थित थी।

अनुराधा –  ये सब मुंबई की सार्वभौमिक प्रकृति को दर्शाता है।

भरत – सही। यह अन्यंत रोचक है। हम जब मुंबई दर्शन कराते हैं, तब हम इसकी इसी विशेषता से लोगों का परिचय कराते हैं।

मुंबई नगर का भ्रमण

अनुराधा –  यदि मुंबई को जानने का प्रयत्न करें तो इसके अनेक आयाम पायेंगे। इस महानगरी के विषय में चिरकालीन चर्चा की जा सकती है। किन्तु समय की कमी के कारण आज की चर्चा को समाप्त करने पर बाध्य हूँ। इस चर्चा को समाप्त करने से पूर्व मेरे पाठकों को यह जानकारी देना चाहती हूँ कि वे आपके खाकी टूर्स के मार्गदर्शन में मुंबई नगरी की खोज कैसे कर सकते हैं।

भरत – हमारी कंपनी एक आम भ्रमण कंपनी नहीं है। मुंबई की गलियों में इतनी ऐतिहासिक जानकारी लुप्त है कि उसे खोजकर सबके समक्ष लाना अत्यंत आवश्यक है। इसमें हम लोगों की सहायता करना चाहते हैं। यही हमारा ध्येय व लक्ष्य है। हमारी कंपनी का सर्वोत्तम आकर्षण खुली जीप सफारी है जिसे हम अर्बन अथवा शहरी सफारी कहते हैं। कदाचित हमारी कंपनी विश्व की इकलौती कंपनी है जो शहरी सफारी उपलब्ध कराती है। हम वनीय पशु-पक्षी नहीं अपितु शहरी इमारतें व संरचनाएं दिखाते हैं। यह सर्वोत्तम उपाय है जिससे बिना अधिक पदयात्रा किये हम विभिन्न क्षेत्रों का अवलोकन करते हुए १७ किलोमीटर पार कर जाते हैं।

आपकी आवश्यकता एवं इच्छा अनुसार हम सफारी में परिवर्तन करते हैं। यदि आप आयरिश डॉक्टर हैं तो आपकी सफारी जापानी कलाकार की सफारी से भिन्न होगी। यही हमारी विशेषता है जो हमें सामान्य भ्रमण कंपनियों से भिन्न श्रेणी में खड़ा करती है। भ्रमण गाइड भी सामान्य प्रशिक्षित गाइड नहीं हैं। हमारे गाइड आपके साथ आते हैं क्योंकि वे स्वयं खोजकर्ता हैं, उन्होंने यहाँ विस्तृत खोज की है तथा इस विषय में उन्हें विशेष रूचि व लगाव है। इसीलिए उन्हें भ्रमण गाइड नहीं अपितु मुंबई के दूत कहा जाता है।

अनुराधा –  हमारे पाठकों में जिन्हें भी मुंबई व उसके इतिहास से लगाव है तथा वे इस पर शोध करना चाहते हैं, तो वे भरत से संपर्क कर सकते हैं।

भरत – अवश्य।

भरत गोठोसकर के साथ मुंबई के मुम्बा देवी मंदिर एवं अन्य प्राचीन मंदिरों पर हुई चर्चा की लिखित प्रतिलिपि IndiTales Internship Program के अंतर्गत अनुषा सिंह ने तैयार की है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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प्राचीन कान्हेरी गुफाएं मुंबई के संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में https://inditales.com/hindi/prachin-kanheri-gufaayen-mumbai/ https://inditales.com/hindi/prachin-kanheri-gufaayen-mumbai/#comments Wed, 26 May 2021 02:30:43 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2304

मुझे जब कान्हेरी गुफाओं के विषय में जानकारी प्राप्त हुई थी, उसके पूर्व मुंबई के भीतर स्थित इन अद्भुत प्राचीन ऐतिहासिक गुफाओं के विषय में मैंने ना तो पढ़ा था, ना ही सुना था। सर्वप्रथम ब्रिटिश काल के समय इन कान्हेरी गुफाओं के अस्तित्व के विषय में जानकारी प्राप्त हुई थी। बोरिवली के संजय गांधी […]

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मुझे जब कान्हेरी गुफाओं के विषय में जानकारी प्राप्त हुई थी, उसके पूर्व मुंबई के भीतर स्थित इन अद्भुत प्राचीन ऐतिहासिक गुफाओं के विषय में मैंने ना तो पढ़ा था, ना ही सुना था। सर्वप्रथम ब्रिटिश काल के समय इन कान्हेरी गुफाओं के अस्तित्व के विषय में जानकारी प्राप्त हुई थी। बोरिवली के संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित इन गुफाओं तक पहुँचने के लिए सुव्यवस्थित सड़क मार्ग उपलब्ध हैं। इन गुफाओं के आरंभिक बिन्दु तक गाड़ियां पहुँच सकती हैं। यहाँ से कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर आप टिकट खिड़की तक पहुंचेंगे, तत्पश्चात गुफा में प्रवेश करेंगे।

पाषाण में उत्कीर्णित बुद्ध की विशाल मूर्ति
पाषाण में उत्कीर्णित बुद्ध की विशाल मूर्ति

कान्हेरी गुफाएं – मुंबई का लोकप्रिय पर्यटन स्थल

अजंता एवं एलोरा की प्रसिद्ध गुफाओं के समान ही, कान्हेरी गुफाओं का उत्खनन भी १ ई.पू. से ११ ई. तक किया गया था। ये गुफाएं महायान एवं हीनयान, बौद्ध धर्म के इन दोनों पथों से सम्बंधित हैं। इस तथ्य का साक्ष्य देती हैं वे गुफाएं, जहां कुछ गुफाओं में बुद्ध को स्तूप एवं चरण पादुका जैसे संकेतों से दर्शाया गया है तो कुछ गुफाओं में उनके मानवरूपी छवियाँ हैं।

कान्हेरी गुफाएं मुंबई
कान्हेरी गुफाएं मुंबई

कान्हेरी गुफाओं के नाम की व्युत्पत्ति उस पहाड़ के नाम से हुई है जिस पर ये स्थित हैं, कृष्णगिरी। यह एक ज्वालामुखी से उत्पन्न पर्वत है। इस पर्वत पर कुल ११० गुफाओं का समूह है जो इस समूह को सर्वाधिक विशाल गुफा समूह बनाता है। यद्यपि कुछ गुफाएं अपूर्ण प्रतीत होती हैं। प्राचीन काल में ये गुफाएं उस व्यापार मार्ग पर थीं जो सोपारा, नासिक, पैठन तथा उज्जैन को जोड़ती थी।

चट्टान पर सुव्यवस्थित प्रकार से उकेरी गई सीढ़ियाँ अत्यंत दर्शनीय हैं।

चैत्य गृह

इन गुफाओं में एक चैत्य गृह अथवा प्रार्थना कक्ष है। एक विशाल भोजन कक्ष भी है जिसके भीतर भोजन करने के लिए दोनों ओर कम ऊंचाई की लम्बे शिलापाट हैं। अनेक भूमिगत जलकुण्ड हैं। भिक्षुओं के निवास के रूप में अनेक विहार हैं जिसके बाह्य प्रांगण में बैठकें भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि ३री सदी तक कान्हेरी गुफ़ाएं बौद्ध भिक्षुओं की स्थाई बस्ती बन चुकी थीं।

गुफा क्र. ३

गुफा क्र. ३ अथवा चैत्य गृह वर्तमान प्रवेश स्थल के समीप स्थित है। इसकी छत पर उत्कीर्णित आकृतियाँ लकड़ी पर की जानी वाली नक्काशी के समान है। ठीक वैसी ही जैसी, लोनावला के समीप स्थित कारले गुफाओं के भीतर हैं। इस विशाल कक्ष के मध्य में एक विशाल स्तूप है। इसके पार्श्व भाग में कुछ उत्कीर्णित स्तम्भ हैं जिन पर गजों की आकृतियाँ हैं। यह कक्ष कम से कम दो तलों का है किन्तु ऊपरी तलों तक पहुँचने का मार्ग ढूँढना अब कठिन है। गुफा के बाहर, ड्योढ़ी पर,बुद्ध की विशाल, उभरी हुई प्रतिमाएं हैं। अग्र भित्तियों पर उन दाताओं की छवियाँ हैं जिन्होंने इन गुफाओं को प्रायोजित किया था। गुफा के बाहर आप कुछ अन्य स्तूप भी देखेंगे। उनमें से एक स्तूप पूर्णतः ढका हुआ है किन्तु अन्य स्तूप अपेक्षाकृत कुछ खुले हैं जिनके चारों ओर आप चल सकते हैं।

यहाँ पर उन सभी ठेठ कठघरों जैसी मेढ हैं जो सामान्यतः प्रसिद्ध स्तूपों के चारों ओर बनी हुई हैं। जैसे अमरावती, सांची, सतना जिले के भरहुत तथा महाबोधि मंदिर में पाए जाने वाले स्तूपों में हैं। उन पर बनी आकृतियाँ ठेठ आड़ी-तिरछी रेखाएं हैं जिन पर कमल पुष्प का चिन्ह उत्कीर्णित है। १६ वीं से १७ वीं सदी के मध्य इन गुफाओं को ईसाई गिरिजाघरों में परिवर्तित कर दिया गया था। वर्तमान में इस परिवर्तन के किसी भी प्रकार के चिन्ह अस्तित्व में नहीं हैं।

विहार

विहार की रूपरेखा भी चैत्य गृह के ही समान है। इनके समक्ष स्थित प्रांगण में बैठने के लिए बैठकें हैं। इनके पश्चात भिक्षुओं के लिए कक्ष हैं। ऊपरी तल की भी यही रूपरेखा है। कक्षों के भीतर शिला के शयन हैं। सामान्यतः गुफाओं के दोनों ओर जलकुण्डों की व्यवस्था है। साहित्यों के अनुसार, दक्षिणपूर्वी देशों से अनेक साधक इस विहार में अध्ययन हेतु आते थे जिस के कारण यह अध्ययन का महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था।

गुफा क्र. ११ को महाराजा अथवा दरबार गुफा भी कहते हैं क्योंकि यह एक प्रकार से सभा कक्ष प्रतीत होता है।

गुफा संबंधी सुरक्षा निर्देश

गुफाओं के भीतर से ऊपर-नीचे जाती सीढ़ियों में से कुछ अत्यंत भंगित अवस्था में हैं। उनका प्रयोग करते समय अत्यंत सावधानी का पालन करें। अन्यथा दुर्घटना की संभावना हो सकती है। गुफाओं के बाहर स्थित एक सूचना पटल के अतिरिक्त अन्य कहीं भी, गुफाओं एवं उत्कीर्णित आकृतियों की जानकारी नहीं दी गई है। टिकट घर पर भी कोई सूचना पुस्तिका अथवा जानकारी प्रदान करते साहित्य उपलब्ध नहीं है। यदि आपने इससे पूर्व कहीं बौद्ध गुफाएं देखी हों तो वहाँ से प्राप्त जानकारी का स्मरण करें। इससे इन गुफाओं एवं उत्कीर्णित आकृतियों को समझने में आसानी हो सकती है।

कान्हेरी गुफाओं की जल प्रबंधन प्रणाली

इन गुफाओं का एक अत्यंत उत्कृष्ट एवं रोचक तत्व है यहाँ की जल प्रबंधन प्रणाली। अनेक नलिकाएं एवं धाराएं वर्षा के जल को एक विशाल भूमिगत कुण्ड तक ले जाती हैं। यह प्राचीन काल के आरंभिक वर्षा जल संचयन प्रणाली का उत्तम उदाहरण हो सकता है। जल का प्रबंधन किस प्रकार सावधानी से किया जाता था, यह इसका उत्कृष्ट दृष्टांत है।

गुफाओं में भ्रमण करते हुए आप देख सकते हैं कि कैसे गुफाओं की छतें वर्षा के जल को गुफा के बाहर स्थित नलिकाओं की ओर ले जाती हैं। तत्पश्चात, ये नलिकाएं विभिन्न तलों पर कुण्डों से इस प्रकार जुड़ती हैं ताकि जल का अपव्यय न हो तथा सम्पूर्ण गुफा प्रणाली में शुद्ध जल उपलब्ध हो सके। इन गुफाओं का वास योग्य होने का प्रमुख कारण यह एकीकृत जल प्रबंधन प्रणाली ही हो सकता है। वर्तमान में यह शोध का विषय है कि किस प्रकार इन उत्खनित प्राकृतिक गुफा प्रणाली में इस प्रकार की आत्मनिर्भर जल प्रबंधन प्रणाली अंतर्निहित की गई थी।

मैंने ऐसी ही जल प्रबंधन प्रणाली जोर्डन की प्राचीन नगरी पेट्रा में भी देखी थी। उन्हे भी प्राकृतिक चट्टानों में उत्खनित किया गया था।

शिलालेख

आप गुफा की भित्तियों पर अनेक शिलालेख देख सकते हैं किन्तु उन्हे समझने का कोई साधन नहीं है। कान्हेरी गुफाओं में ब्राह्मी, देवनागरी एवं पाहलवी लिपि में कुल ५१ अभिलेखों एवं २६ उद्धरणों की खोज हो चुकी है। अधिकतर अभिलेखों में उन राजा-महाराजाओं के नाम हैं जिन्होंने इन गुफाओं को संरक्षण प्रदान किया था। एक अभिलेख में राजगद्दी पर विराजमान सातवाहन राजा सतकर्णी वशिष्टिपुत्र के विवाह का उल्लेख है।

कान्हेरी गुफाओं में कुछ ताम्रपत्र भी प्राप्त हुए थे जो अब ब्रिटिश संग्रहालय में संरक्षित हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सूचना पट्टिका के अनुसार एक गुफा में अजंता की गुफाओं के समान भित्तिचित्र हैं। किन्तु मैं उस गुफा को ढूंढ नहीं पायी। उसे खोजने का कोई साधन अथवा सूचना भी उपलब्ध नहीं थी।

चित्रपट चित्रीकरण

जब मैं इन गुफाओं में भ्रमण कर रही थी, उस समय यहाँ, एक गुफा के ऊपर यशराज फिल्म्स के किसी चित्रपट का चित्रीकरण हो रहा था। किसी चित्रपट के चित्रीकरण में कितने बड़े स्तर पर परिश्रम, ऊर्जा तथा साधनों की आवश्यकता होती है, इस तथ्य से वह मेरा प्रथम साक्षात्कार था। कदाचित यह चित्रपट देखते समय, वह परिदृश्य दर्शकों के ध्यान में भी न आए, किन्तु उसे साकार करने में कम से कम १०० व्यक्तियों का जनबल जुटा हुआ था। वहाँ बिजली उत्पादक वाहन, अभिनेताओं के लिए चलित प्रसाधन कक्ष, खाद्य पदार्थों के वाहन, साज-सज्जा का सामान तथा अनेक उपकरण भी थे।

कान्हेरी गुफाओं में फिल्मीकरण
कान्हेरी गुफाओं में फिल्मीकरण

अनेक सुरक्षा कर्मचारी तैनात थे जो साधारण जनमानस को को चित्रीकरण स्थल पर जाने से निषिद्ध कर रहे थे। उन्होंने चित्रीकरण के लिए एक विस्तृत क्षेत्र घेर कर रखा था। यह न्यायसंगत नहीं है। यह एक सार्वजनिक स्थल है। सभी पर्यटक प्रवेश-शुल्क देकर भीतर प्रवेश किए हैं। उन्हे सभी स्थानों पर जाने एवं अवलोकन करने की स्वतंत्रता है।

गांधी स्मारक

जब आप कान्हेरी गुफाएं देखने यहाँ आएं तब आप गांधी स्मारक भी देख सकते हैं। गांधी स्मारक एक पहाड़ी की चोटी पर बना एक मंडप है जिसे महात्मा गांधी की स्मृति में बनवाया गया था। वहाँ से आप सम्पूर्ण नगर का ३६० अंश का परिदृश्य देख सकते हैं।

संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान

आप इस राष्ट्रीय उद्यान में विचरण कर सकते हैं तथा यहाँ की शुद्ध वायु का आनंद उठा सकते हैं। यहाँ एक छोटी झील है जिसमें आप नौका विहार का आनंद ले सकते हैं। एक छोटी रेलगाड़ी आपको सम्पूर्ण पहाड़ी की सैर  कराती है। यहाँ बाघ सफारी का भी आनंद लिया जा सकता है। कुल मिलाकर आप एक सम्पूर्ण दिवस यहाँ व्यतीत कर सकते हैं। यह उद्यान अन्य घने राष्ट्रीय उद्यानों जैसा हरा-भरा नहीं है। फिर भी यह मुंबई जैसी भीड़भाड़ भरी महानगरी के फेफड़ों के समान है।

मंडपेश्वर गुफाएँ

यहाँ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मंडपेश्वर गुफाएँ हैं जो गुफाओं का लघु समूह है। इन गुफाओं की भिन्नता यह है कि ये हिन्दू गुफाएं हैं। एक भित्ति पर भगवान शिव की नृत्य मुद्रा में एक विशाल प्रतिमा है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ एक विशाल शिवलिंग था। किन्तु वह शिवलिंग अब कहाँ है, इसकी जानकारी नहीं है। उसके स्थान पर अब एक नवीन लिंग की आराधना की जाती है। एक लंबे समय तक इन गुफाओं का प्रयोग एक गिरिजाघर के रूप में भी किया जाता था। अब यह हिंदुओं का पूजनीय स्थल है। हमने यहाँ स्त्रियों के एक विशाल समूह को पूजा-अर्चना करते देखा। किन्तु विडंबना यह है कि ये गुफाएं अत्यंत ही मलिन परिवेश में स्थित है।

अवश्य पढ़ें: एलिफेंटा गुफाओं में शिव के विभिन्न रूप

अब मेरा आगामी लक्ष्य है, मुंबई नगरी के अन्य ब्रिटिश-पूर्व ऐतिहासिक तत्वों की खोज, जैसे बाणगंगा कुण्ड। उन ऐतिहासिक स्थलों में से कुछ का उल्लेख इस पॉडकास्ट में किया गया है जिसमें हम हमारे मित्र भरत गोठोस्कर जी से मुंबई के विषय में चर्चा कर रहे हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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मुंबई स्थित कोलाबा के गिरजाघर – इतिहास का एक पन्ना ये भी https://inditales.com/hindi/colaba-mumbai-girjaghar/ https://inditales.com/hindi/colaba-mumbai-girjaghar/#comments Wed, 25 Dec 2019 02:30:56 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1747

कोलाबा के गिरजाघर मुझे देखने को मिले जब डेक्कन ओडिसी से वापस लौटते हुए मेरे पास मुंबई के दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिये एक दिन था।  मैं हमारे परिवार के मित्रों की आभारी हूँ जिन्होंने मुझे कोलाबा में आने और उन के साथ दिन बिताने के लिये आमंत्रित किया था।  इससे पहले मुझे  कभी […]

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कोलाबा के गिरजाघर मुझे देखने को मिले जब डेक्कन ओडिसी से वापस लौटते हुए मेरे पास मुंबई के दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिये एक दिन था।  मैं हमारे परिवार के मित्रों की आभारी हूँ जिन्होंने मुझे कोलाबा में आने और उन के साथ दिन बिताने के लिये आमंत्रित किया था।  इससे पहले मुझे  कभी भी दिन बिताने के लिये किसी के भी घर कोलाबा में रहने का अवसर प्राप्त नही हुआ था।  मुझे बताया गया था कि मुंबई में रहने के लिये कोलाबा से अच्छी कोई जगह नहीं है।  यह सच है ऐसा मैं कह सकती हूँ।

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कोलाबा में आप मुंबई शहर की नोक पर होते हैं।  वहाँ से आपको समुंदर के किनारे गगनचुंबी इमारतें निहार सकते हैं।  अपनी बालकॉनी से समुंद्री जहाजों को गुजरते हुए भी देख सकते हैं।  किसी भी प्रकार का प्रदुषण यहाँ से हो कर नहीं जाता है।  मुंबई नगरी यहाँ से कुछ ही दूरी पर हैं और उस दूरी को हम पैदल चल कर भी पूरी कर सकते हैं।

अफ़गान चर्च – कोलाबा के गिरजाघर

अफ़ग़ान चर्च - कोलाबा के गिरजाघर
अफ़ग़ान चर्च – कोलाबा मुंबई

जब मैं कोलाबा जा रही थी तो रास्ते मैं मुझे एक बहुत खुबसूरत चर्च दिखा जो अफ़गान चर्च के नाम से जाना जाता है। उस संकरे ऊँचे भवन की बनावट देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह उन्नीसवी सदी का है। कोलाबा के समुंदर की हवा से अपने आप को तरोताज़ा करके मैं अफ़गान चर्च के भ्रमण के लिये निकली। मुझे पूर्णतया विश्वास था कि गिरजाघर बंद होगा क्योंकी उस दिन रविवार नहीं था। मैंने पहले ही उस कमान सी ऊंची असाधारण इमारत को देख लिया था और बस अब उसके बारे में जानना शेष था। इसके बारे में जानने की मेरी इच्छा उस असाधारण इमारत को देखकर ही हुई थी।

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ये ही वो इमारत है जो नाविकों को इस ओर धरती होने का संकेत देती थी। दूसरी चीज़ जिसे मैंने देखा वो एक बहुत बड़ा आर्कनुमा दरवाज़ा था जो राजसी प्रतीत होता है हाँलाकि वह अच्छी अवस्था मैं नही है।

अफ़ग़ान गिरिजाघर का इतिहास

अफ़ग़ान चर्च का मुख्य द्वार
अफ़ग़ान चर्च का मुख्य द्वार

मैंने चारो ओर देखा और एक नोटिस बोर्ड से मालूम पड़ा कि इस गिरजाघर की नीव सन् १८४७ में पड़ी थी और १८५८ में यह पूरा हुआ, जबकि इसका शिखर १८६५ में पूरा हुआ।  १९९५ वह सन् था जब इस चर्च को एतिहासिक भवन घोषित किया गया।

वहाँ पर एक व्यक्ति बैठा हुआ था जो बड़े ध्यान से हमें देख रहा था। जब उस व्यक्ति से हमनें पूछा कि क्या हम इस चर्च को अंदर जाकर देख सकते हैं तो बिना कुछ कहे उस व्यक्ति ने चर्च का दरवाज़ा हमारे लिये खोल दिया।

गोथिक  शैली

अफ़ग़ान चर्च कोलाबा मुंबई
अफ़ग़ान चर्च कोलाबा मुंबई

गोथिक शैली से बना यह गिरजाघर अंदर से बहुत खुबसूरत है। ऊँची मेहराबयुक्त छतें और दीवारों पर  रंगीन कांच की खिड़कियाँ गिरिजाघर के समय को दर्शा रही थी। क्यूंकि वहाँ पर केवल हम दो ही लोग थे इसलिए यह एक सपने जैसा लग रहा था और मुझे पूरा समय मिला अपने ढंग से इस गिरजाघर को देखने और उसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मालूम करने के लिये| दीवार पर संगमरमर  के पत्थर पर उस चर्च के बारे मैं कुछ जानकारियां अंकित थीं। जानकारियों के आधार से  पता चलता है कि इस चर्च का निर्माण असंख्य सैनिकों की याद में किया गया था जो १८३८ में सिंध और अफ़गान युद्ध में अपने जीवन को खो चुके थे। इसलिए यह गिरिजाघर लोकप्रिय रूप से अफ़गान चर्च के नाम से जाना जाता है हांलाकि अधिकारिक नाम संत जॉन दा एवंगेलिस्ट है।

ध्यान देने योग्य बात

 अफ़ग़ान गिरजाघर के भीतर
अफ़ग़ान गिरजाघर के भीतर

इस समय तक आते आते जिस व्यक्ति ने हमारे लिये इस कोलाबा के गिरजाघर का दरवाज़ा खोला था उसके चेहरे के हावभाव अच्छे नही लग रहे थे।  मैने उससे इसका कारण पूछा तो वह बोला कि चर्च के अंदर आप जूते लेकर क्यूँ आये हो।  मैंने कहा कि मैंने कभी सोचा ही नहीं की आप लोग चर्च में जूते चप्पल लेकर नहीँ जाते और यहाँ कहीं लिखा भी नहीं है कि अंदर जूते और चप्पल लेकर जाना वर्जित है। अगर ऐसा है तो आपको पहले बताना चाहिए था।  वह बोला इससे कोई मतलब नही है कि अंदर जूते चप्पल  लेकर जाने की अनुमति है या नही प्रश्न यह उठता है की क्या आप अपने मंदिर में भी जूते चप्पल लेकर जाते हैं जिस पर मेरा उत्तर न में था।  वह फिर बोला अगर आप अपने भगवन के घर जूते चप्पल लेकर नही जाते तो क्या आपको दूसरों के भगवन के घर जूते चप्पल लेकर जाना चाहिए?

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उसकी बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।  क्या आप भगवान् के घर को उनके धर्म के हिसाब से मानते हैं या आप भगवान् को एक भगवान के रूप में मानते हैं।  मैंने कुछ तस्वीरें खींची।  मैं इस बात से खुश थी कि मुंबई में मैंने एक और एतिहासिक भवन को देखा।  ख़ुशी ख़ुशी मैं चर्च से बहार निकली एक और चर्च को देखने की अभिलाषा लिये जो कोलाबा मैं ही स्थित है| अब भी बहार आते हुए मैं उस खुबसूरत  मीनार को बार बार पीछे मूड़़ कर देख रही थी।

कैथेड्रल ऑफ़ होली नेम – कोलाबा के गिरजाघर

कैथेड्रल ऑफ़ होली नेम - कोलाबा मुंबई
कैथेड्रल ऑफ़ होली नेम – कोलाबा मुंबई

कोलाबा में एक शताब्दी पुराना यह रोमन कैथोलिक बड़ा गिरजाघर है जो अफ़ग़ान चर्च से बहुत ज़्यादा दूर नही है। बाहर की तरफ से यह पास बनी हुई अन्य भवनों की तरह ही दिखता है जो ब्रिटिश द्वारा विशिष्ट गोथिक वास्तुकला का अद्भुत वरदान है। सकरी सड़क और वहाँ लगे कुछ वृक्ष हमें उस गिरजाघर को देखने की अनुमति प्रदान नही करते। लेकिन अगर आप अपनी गर्दन को थोड़ा भी घुमाएगें तो आप उस इमारत को जो सलेटी पत्थर और सफ़ेद रंग से सीमांकित है, देख सकते हैं और साथ ही आप उसके शिखर को भी पूर्ण रूप से देख सकते हैं।

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गिरजाघर के भित्तिचित्र
गिरजाघर के भित्तिचित्र

यह गिरजाघर भी अपने आप में एक इतिहास रखता है। किसी और गिरजाघर के बदले में इस गिरजाघर का निर्माण करवाया गया था जो कहीं और स्थित था।  जबकि यह एक पुराने पुर्तगाली चर्च के बदले में जो इसके बिल्कुल पास था बनवाया गया था।  औपचारिक रूप से इस चर्च का निर्माण बीसवी सदी के आरंभिक वर्षों में शरू हुआ और सन् १९०५ में इसका निर्माण पूरा हुआ। १९६४ में इस चर्च को बड़े गिरजाघर की उपाधि मिली। सन् १९९८ में इस चर्च को एतिहासिक घोषित कर दिया गया। मुंबई में यह चर्च प्रधान पादरी का स्थान है।

कोलाबा के गिरजाघर की विशेषताएं

कोलाबा के गिरजाघर
कोलाबा के गिरजाघर में कांच का काम 

इस कोलाबा के गिरजाघर की सबसे सुंदर विशेषता उसकी छतों और दीवारों पर बनी आकर्षण चित्रकारी है| वास्तुकला के आधार पर इस चर्च का मुख्य हॉल लम्बा और संकरा है और उसकी छातें गुम्बद्कर हैं।  एक बहुत प्रभावशाली वेदी, रंगीन कांच से बनी तीन खिड़कियाँ हैं और अग्रभाग पर एक बहुत बड़ा झूमर टंगा हुआ है। छतें गाढ़े पीले की हैं जिस पर क्राइस्ट के जीवन से जुडी झलकियाँ प्रस्तुत की गयी है। सफ़ेद रेखाएं पूरी छत पर एक रूपरेखा प्रदान करती है और सुंदर नमूना बनाते हुए उनका अनुभाग करती है। नीचे मेहराबों में एक हरे रंग की प्रष्ठभूमि पर फ्रेस्कोस है जबकि रिक्त स्थान पीले रंग में और गुलाबी रंग में ज्यामितिक डिजाईन है। उज्वल लेकिन सुखद रंगों का पूरा प्रयोग इस जगह को जीवंत और आकर्षक बनाता है। दीवारों पर लगी मूर्तियाँ इस गिरजाघर की सुन्दरता को और भी आकर्षित बनाती है।

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पॉप द्वारा दिया गया उपहार

कैथेड्रल ऑफ़ होली नेम - कोलाबा
प्रार्थना स्थल

एक सफ़ेद स्टोल जिस पर सुनहेरी कढ़ाई की हुई है इस चर्च को पॉप जॉन २२ द्वारा भेट स्वरुप मिला है उसको यहाँ बड़े ही अच्छे ढंग से दर्शया गया है। जब मै इस चर्च को देख रही थी तो कुछ महिलाएं चर्च के अंदर बैठकर बातें कर रही थी जबकि कुछ लोग शांत भाव से पूजा मे विलीन थे।  इन भवनों का भ्रमण करना एक प्रकार से इतिहास की सैर है क्योकि इतना समय बीत जाने पर भी यह अभी तक जीवित हैं।  और यह वह स्थान है जहाँ आज भी प्रतिदिन प्रार्थनाएं होती हैं, बावजूद इसके की उनको कौन कहता है और किसके लिये।

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अगर आप मुंबई घुमने जाये तो कोलाबा के गिरजाघर इत्यादि दर्शनीय स्थ्लों के साथ देखना न भूलें।

अनुवाद – शालिनी गुप्ता

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बांद्रा की गली चित्रकारी के दर्शन, मुंबई के शहरी परिदृश्य https://inditales.com/hindi/bandra-street-art-mumbai/ https://inditales.com/hindi/bandra-street-art-mumbai/#comments Wed, 06 Jun 2018 02:30:32 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=678

मुंबई में स्थित बांद्रा के उपनगर आपको पारंपरिक गाँव और बॉलीवुड के ठाठ-बाट का एक अनोखा मेल प्रदान करते हैं। एक तरफ वहाँ के गांवठन हैं – जैसा कि मुंबई के गांवों को बुलाया जाता है, तथा वहाँ का कोली समुदाय जो आज भी इस द्वीप के कुछ हिस्सों पर अपना प्रभुत्व जमाए हुए है; […]

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बांद्रा मुंबई की गलियों में मधुबाला का एक मनमोहक चित्र
बांद्रा मुंबई की गलियों में मधुबाला का एक मनमोहक चित्र

मुंबई में स्थित बांद्रा के उपनगर आपको पारंपरिक गाँव और बॉलीवुड के ठाठ-बाट का एक अनोखा मेल प्रदान करते हैं। एक तरफ वहाँ के गांवठन हैं – जैसा कि मुंबई के गांवों को बुलाया जाता है, तथा वहाँ का कोली समुदाय जो आज भी इस द्वीप के कुछ हिस्सों पर अपना प्रभुत्व जमाए हुए है; तो दूसरी तरफ बांद्रा के नए निवासी हैं जिन्होंने यहाँ अपना बसेरा बना लिया है।

इस बार जब मैं मुंबई गयी तो मुंबई मैजिक की कार्यकर्ता दीपा कृष्णन ने मुझे बांद्रा की सैर करवाई। दीपा बे इधर उधर की बातें करते हुए, मुझे बांद्रा के कुछ महत्वपूर्ण स्थानों के दर्शन भी करवाए। इस बार मैंने मुंबई का वह रूप देखा जिससे मैं अब तक अपरिचित थी।

हमने अपनी यात्रा का आरंभ पहाड़ी रास्ते पर स्थित एलको बाज़ार की सबसे स्वादिष्ट पानी-पूरी के साथ किया – एक मजेदार पदयात्रा शुरू करने का इससे अच्छा शगुन कोई हो ही नहीं सकता। उसके बाद हम महिलाओं के कपड़े बेचनेवाले बाज़ार में गए, जहाँ पर आरामदायक रात्री के पहनावे से लेकर समारोह में पहनने योग्य सुशोभित कपड़ों तक सभी प्रकार के कपड़े मिलते हैं। इस चमक-दमक से आकृष्ट होकर कुछ पलों के लिए मुझे लगा जैसे मुझे भी थोड़ी खरीदारी कर लेनी चाहिए। लेकिन एक मार्गदर्शित सैर का आनंद उठाने के विचार से मैंने इस ख्याल को अपने दिमाग से झटक दिया।

अगले आधे घंटे तक दीपा और मैं हम दोनों ही सड़क के किनारे खड़ी दुकानों और मनोरंजक खिड़की प्रदर्शनों की तस्वीरें खींचते रहे। यहाँ पर मुझे फुटकर बिक्री का सबसे छोटा स्वरूप देखने को मिला जहाँ पर विक्रेता वास्तव में अपनी दुकान अपने साथ लेकर घूमते हैं। मैंने उनकी कुछ तस्वीरें भी ली। बांद्रा में मैंने बहुत से बच्चों को यह काम करते हुए देखा और वे अपने काम से जरा भी व्यथित नहीं थे। उल्टा उन्हें तो इस काम में काफी मज़ा आ रहा था, लोगों का मज़ाक उड़ाना और उनके साथ बड़े भोलेपन से पेश आना। देखा जाए तो इस तरह का व्यवहार इन बच्चों से बेहतर और कोई नहीं कर सकता था।

बांद्रा की गली चित्रकारी, मुंबई  

कहानी कहते बंदर के पुराने घरों के कलात्मक जंगले
कहानी कहते बंदर के पुराने घरों के कलात्मक जंगले

बांद्रा के भीड़ भरे बाज़ारों का अनुभव लेने के पश्चात हम उसके विरासती क्षेत्र में पहुंचे जो आज भी एक गाँव की भांति दिखाई दे रहा था। यहाँ ली शांति आपको अचानक से महानगरों की चहलपहल से कहीं दूर ले जाती है। बांद्रा की ऊंची-ऊंची इमारतों की तुलना में यहाँ के चमकीले घर बहुत सुंदर लग रहे थे। इन घरों के जंगलों के विविध आकार या फिर उनकी असामान्य रूप से बनाई गयी सीढ़ियाँ या फिर लोहे के छड़ की आड़ में झलकती उनकी प्राचीनता, सबकुछ बहुत ही रोचक था। रास्ते में हम थोड़ी देर के लिए एक अनूठे आकार के कॉफी घर में रुके। मुझे बताया गया कि इस प्रकार के कॉफी घर और भोजनालय आज बांद्रा में हर कहीं उभरने लगे हैं, जो युवा वर्ग में उसे काफी प्रचलित बना रहा है। इस कॉफी घर की खिड़की के उस पार खड़ी भीड़ और भीतर की व्यवस्था में एक प्रकार का सान्निध्य सा नज़र आ रहा था, जो कि भारत को इतना अनोखा बनाता है।

गली चित्रकारी - बांद्रा मुंबई
गली चित्रकारी – बांद्रा मुंबई

बांद्रा में गाँव की सड़कों के किनारे खड़े क्रॉस ने मुझे गोवा की याद दिला दी – जहाँ की आड़ी-तिरछी संकरी गलियों के हर मोड पर एक क्रॉस जरूर है। मुझे बताया गया कि इन में से अधिकतर क्रॉस प्लेग महामारी के दौरान स्थापित किए गए थे, जिसने 19वी शताब्दी के अंतिम दशक में इस पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया था। ऐतिहासिक रूप से पुर्तगाली लोग इस द्वीप पर आनेवाले पहले घुसपैठी थे। यहाँ के माउंट मेरी जैसे गिरजाघर उन्हीं के द्वारा स्थापित किए गए थे।

बांद्रा द्वीप का नामकरण   
बंदर वर्ली समुद्र सेतु - मुंबई
बंदर वर्ली समुद्र सेतु – मुंबई

प्राचीन काल में इस द्वीप को वान्द्र के नाम से जाना जाता था, लेकिन समय के साथ उसका विपथन होता गया और वह बंदोरा, बंदेराम आदि नामों में परिवर्तित होते-होते अंत में 19वी शताब्दी के अंतिम दशक के दौरान किसी रेल परियोजना के चलते बांद्रा नाम से जाना जाने लगा। मुझे लगता है कि हमे रेल्वे का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए, क्योंकि, इसी के कारण भारत के कई जगहों का, जिनके नाम की वर्तनी भी सही नहीं होती थी, ठीक-ठीक नामकरण हो पाया है। हमने सेंट एंड्रूस चर्च में थोड़ा समय बिताया, जहाँ पर हमने उनके पारिवारिक स्मृति-लेख पढे। यह सब देखकर मैं इसी सोच में पड़ गयी कि न जाने कैसे इनके परिवार इतनी छोटी सी जगह में समाते होंगे। यह मुंबई के सबसे पुराने गिरजाघरों में से एक है जो आज भी सुव्यवस्थित रूप में है और जिसके बगीचे में लकड़ी का बना सबसे पुराना और बहुत ही सुंदर सलीब है।

बांद्रा द्वीप से जुड़े उपाख्यान   
बांद्रा के एक कॉफ़ी हाउस की रोचक दीवार
बांद्रा के एक कॉफ़ी हाउस की रोचक दीवार

बांद्रा से जुड़ा एक बहुत ही दिलचस्प उपाख्यान है जो माहिम सेतु के निर्माण की कथा को बताता है। इस सेतु के द्वारा बांद्रा द्वीप को मुख्यभूमि मुंबई से जोड़ा गया था। श्रीमति अवबाई जमशेदजी जीजीभोय के अनेक पुत्र थे लेकिन उन्हें हमेशा से एक पुत्री चाहिए थी। उन्हें बताया गया कि अगर वे माउंट मेरी चर्च जाकर उनसे प्रार्थना करेंगी तो उनकी यह मनोकामना जरूर पूरी होगी।

माउंट मेरी चर्च बांद्रा द्वीप पर स्थित थी, जहाँ पर पहुँचने के लिए अवबाई ने एक नाव ली और बड़ी मुश्किलों का सामना करते हुए आखिर वे अपनी इच्छा पूर्ति हेतु वहाँ पर पहुँचने में सफल रही। भारत जैसे पुत्र-प्रेमी देश में कोई पुत्री की कामना भी कर सकता है यह जानकर मैं हैरान भी हुई और प्रस्सन भी। उससे भी अधिक मैं अवबाई की दृढ़ता से प्रभावित थी जो पुत्री पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। उन्होंने संकल्प किया था कि अगर उनकी इच्छा पूरी हुई तो आगे से किसी को भी इस द्वीप तक पहुँचने के लिए नाव का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। उपाख्यानों के अनुसार उनकी मनोकामना पूर्ण हुई और इसी की खुशी में उन्होंने माहिम सेतु का निर्माण करवाया।

मैं ठीक-ठीक तो नहीं जानती कि मुंबई के कितने लोग हर रोज़ इस सेतु का प्रयोग करते हैं, पर इतना जरूर जानती हूँ कि यह सेतु ‘पुत्री की कामना’ की इच्छापूर्ति के परिणाम स्वरूप बनवाया गया था। यह भारत की कुछ गिनी-चुनी सार्वजनिक सड़कों में से एक है जो व्यक्तिगत तौर पर बनवाई गयी थी और वह भी एक महिला द्वारा। इससे यह पता चलता है कि महिलाओं के पास जब सामर्थय होता है तब न केवल वो अपनी इच्छाएं पूर्ण करती हैं, वो समाज कल्याण के कार्य भी करती हैं।

बांद्रा में बॉलीवुड चित्रकारी  
दीवार के अमिताभ बच्च्चन - बांद्रा की एक दीवार पर
दीवार के अमिताभ बच्च्चन – बांद्रा की एक दीवार पर

बांद्रा में हर दीवार रंजीत दहिया के ‘बॉलीवुड आर्ट प्रोजेक्ट’ (बी.ए.पी.) से सजी हुई थी। इसके द्वारा बॉलीवुड को बांद्रा की दृश्य कला संस्कृति का हिस्सा बनाने की कोशिश की जा रही है। यह सब देखकर मेरे मन में यही प्रश्न उठा कि मुंबई के बाकी हिस्सों में ऐसा क्यों नहीं होता। वहाँ पर मधुबाला जी का उनकी प्रसिद्ध मुद्रा में बना हुआ चित्र था, तथा अनारकली का भी एक सुंदर चित्र था। तो एक और दीवार पर थे अमिताभ बच्चन जी और राजेश खन्ना जी के दो प्रतिष्ठित चित्र।

जब भी मैं मुंबई की इस चहलपहल भरी जिंदगी को देखती हूँ तो मुझे लगता है जैसे इस शहर को बॉलीवुड को सौंपकर बाकी सब को यहाँ से बाहर निकल जाना चाहिए ताकि वे जहाँ चाहे वहाँ आराम से काम कर सके। बांद्रा की दीवारों पर चित्रित बॉलीवुड के प्रसिद्ध चित्र देखते हुए मुझे ये एहसास हुआ कि बॉलीवुड तो हमेशा अपनी बंद स्टूडियोज के पीछे छिपा रहता है, और बड़ी मुश्किल से अपना घर माननेवाले इस शहर की संस्कृति का भाग बनता है।

बॉलीवुड आर्ट प्रोजेक्ट’ के बारे में थोड़ा-बहुत पढ़ने के पश्चात मुझे ये एहसास हुआ कि वस्तुतः दीवारों पर चित्रकारी करने का जुनून होने के अलावा भी ऐसी बहुत सी बाते हैं, जो उसे वास्तविकता का रूप देने हेतु आवश्यक होती हैं। यह सब देखकर और जानकर मेरे मन में बार-बार एक ही सवाल उठ रहा था, कि अब तक बॉलीवुड के संपन्न व्यक्तियों में से किसी ने भी इस प्रोजेक्ट के लिए निधि देने की पहल क्यों नहीं की है। उनके लिए तो यह एक छोटी सी बात होगी लेकिन इससे, इस शहर में बहुत से बदलाव लाये जा सकते हैं। और इस प्रकार से वे अपने ही व्यवसाय और उससे जुड़े प्रतिष्ठित व्यक्तियों को और भी कीर्तिमय कर सकते हैं।

हमने अपनी यात्रा के अंतिम पल मुंबई के हाल ही में निर्मित बांद्रा-वर्ली समुद्र सेतु को निहारते हुए बिताये; जो बांद्रा के प्राचीन दुर्ग से बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था।

बांद्रा की सैर  

अगर आपके पास बांद्रा घूमने के लिए लगभग 2 घंटे का समय है तो इनमें से एक या दो जगहों पर जरूर जाईएगा।

  • यहाँ के चित्ताकर्षक बाज़ारों में खरीदारी करना।
  • पुराने घरों की वास्तुकलात्मक विशेषताओं का अवलोकन।
  • दीवारों पर किए गए भित्तिचित्र।
  • बॉलीवुड आर्ट प्रोजेक्ट के भित्तिचित्रों के दर्शन।
  • गिरजाघरों के दर्शन।
  • कोली गांवों के दर्शन।
  • यहाँ के चमक-दमक वाले कॉफी घरों के स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठाना।

इस चित्तरंजक यात्रा के लिए मैं दीपा की बहुत आभारी हूँ। मैं आशा करती हूँ कि आगे भी आपके साथ ऐसी ही मंत्रमुग्ध यात्राओं पर जाने के अनेक मौके प्राप्त हो।

मुंबई शहर के अन्य पर्यटक स्थल

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बाणगंगा सरोवर – मुंबई शहर की प्राचीन धरोहर https://inditales.com/hindi/ancient-banganga-tank-walkeshwar-mumbai/ https://inditales.com/hindi/ancient-banganga-tank-walkeshwar-mumbai/#comments Wed, 11 Apr 2018 02:30:45 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=699

बाणगंगा सरोवर संभवतः वर्तमान मुंबई शहर के सबसे प्राचीन निवासित क्षेत्रों में से एक है। सामान्य तौर पर जो स्थान काफी लंबे समय से निवासित हैं उनके प्रति मेरे मन में एक विशेष प्रकार का आकर्षण है। ऐसी जगहों पर जाकर ऐसा महसूस होता है जैसे उनमें भी कहीं जान बसती हो – जैसे कि […]

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बाणगंगा मुंबई
बाणगंगा मुंबई

बाणगंगा सरोवर संभवतः वर्तमान मुंबई शहर के सबसे प्राचीन निवासित क्षेत्रों में से एक है। सामान्य तौर पर जो स्थान काफी लंबे समय से निवासित हैं उनके प्रति मेरे मन में एक विशेष प्रकार का आकर्षण है। ऐसी जगहों पर जाकर ऐसा महसूस होता है जैसे उनमें भी कहीं जान बसती हो – जैसे कि शताब्दियों से इन स्थानों के निवासी अपनी आत्मा का एक छोटा सा अंश पीछे छोड़कर चले जाते हो। ऐसी जगहों पर आप गुजरे हुए काल और समय की वे सारी निशानियाँ देख सकते हैं जिनके साक्षीदार वे स्वयं रहे हैं। विद्यमान परिस्थितियों में भी उन्होंने हमेशा समय के साथ आगे बढ़ना सीखा है। इन जगहों पर अगर आप शांति से बैठे तो आपको उस खामोशी में ये सारी चीजें अपनी कहानियाँ कहती हुई प्रतीत होती हैं।

मैं जितने भी शहरों में रही हूँ उन सभी के पुरातन भागों में मैंने यह सबकुछ स्वयं अनुभव किया है – चाहे वह दिल्ली में महरौली हो या हैदराबाद में चारमीनार का इलाका। यद्यपि मुंबई की कन्हेरी गुफाएँ या एलेफंटा गुफाएँ यहाँ का सबसे प्राचीन और निर्जन स्थान हैं, लेकिन लोकबस्तियों की दृष्टि से देखे तो बाणगंगा का क्षेत्र बहुत लंबे समय से निवासित है। यहाँ के वातावरण में आप बीते हुए कल की वह अदृश्य शक्ति महसूस कर सकते हैं।

बाणगंगा सरोवर, मुंबई  

बाणगंगा सरोवर - वालकेश्वर मुंबई
बाणगंगा सरोवर – वालकेश्वर मुंबई

यह एक आयताकार सरोवर है, जैसे कि आम तौर पर भारत के मंदिर सरोवर होते हैं। देखा जाए तो उनकी तुलना में बाणगंगा सरोवर आकार में काफी बड़ा है और उसके चारों ओर मंदिर हैं। शायद यहाँ पर इस सरोवर को ही मंदिर की तरह पूजा जाता होगा जो कि प्रवेश द्वारों पर खड़े दीपस्तंभों से अभिव्यक्त होता है। इस सरोवर के चारों ओर सीढ़ियाँ हैं जो पानी में उतरने हेतु बनाई गयी हैं।

इस सरोवर में आप विविध प्रकार के रंगबिरंगी बतख भी देख सकते हैं। यहाँ की छोटी-बड़ी इमारतों का – जैसे कि यहाँ पर स्थित घर और उनके बीच खड़ी ऊंची-ऊंची इमारतें तथा यहाँ के मंदिर और उनकी शिखरों का पानी में पड़ता प्रतिबिंब आपके लिए एक अलग ही दृश्य प्रदान करता है। जब इन सभी संरचनाओं का प्रतिबिंब सरोवर के पानी में पड़ता है तो उसमें जैसे अनेक बातों का – जैसे बीते हुए काल, अनेक पीढ़ियाँ, विविध शैलियाँ और समाज के विभिन्न स्तरों का एक सम्मिश्रित विन्यास बन जाता है, जैसे कि वे इसी सरोवर के पानी से एक-दूसरे से बंधे हो।

पानी पर बने इस परिदृश्य पर आसमान में बिखरे हुए बादल भी अपना एक अलग ही प्रभाव छोड़ जाते हैं। बाणगंगा सरोवर की सबसे अनोखी बात यह है कि वह समुद्र के ठीक बगल में बसा हुआ होने के बावजूद भी उसका पानी एकदम स्वच्छ और मीठा है। मेरा मानना है इस क्षेत्र में प्रारंभिक लोकबस्तियों के निर्माण का प्रमुख कारण भी यही स्वच्छ और मीठा पानी ही रहा होगा।

बाणगंगा में संगीत कार्यक्रम

बहुत सालों पहले मैं बाणगंगा में आयोजित मुरली विशेषज्ञ पंडित हरी प्रसाद चौरसिया जी का संगीत कार्यक्रम देखने गयी थी। पंडितजी की मुरली से निकले हुए वे सुर जो उस समय यहाँ के वातावरण में गूंज रहे थे, वे आज भी मेरे दिल और दिमाग में समाये हुए हैं। यह कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा जिसके कारण हम बाद में आस-पास कहीं भी घूमने नहीं जा सके। इसलिए इस बार जब मुझे फिर से बाणगंगा की यात्रा करने का मौका मिला तो मैंने उसका पूरा फायदा उठाया। इस यात्रा के दौरान मेरे साथ मेरे चाचाजी थे जो इस क्षेत्र को चलानेवाली संस्था के सदस्य थे। उनके मार्गदर्शन में मुझे इस क्षेत्र से संबंधित बहुत सी बातें जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

बाणगंगा सरोवर से जुडे उपाख्यान  
बाणगंगा पे नए पुराने, छोटे बड़े मंदिर
बाणगंगा पे नए पुराने, छोटे बड़े मंदिर

एक प्राचीन स्थान अक्सर अपने साथ कोई न कोई कथा, मिथक या फिर कोई उपाख्यान जरूर लेकर चलता है। तो इनमें बाणगंगा बिना किसी कथा के कैसे पीछे रह सकता है? बाणगंगा के अस्तित्व से जुड़ी यह कथा बहुत ही रोचक है। इस उपाख्यान के अनुसार जब भगवान् राम और लक्ष्मण सीता जी को ढूँढने जा रहे थे, तब रास्ते में वे इसी स्थान पर गौतम ऋषि के आश्रम में ठहरे हुए थे। उस समय राम ने अपनी प्यास बुझाने के लिए वहीं जमीन पर एक बाण चलाया था जहाँ से भोगवती या पाताल गंगा प्रकट हुई थी। शायद इसी कारण से इस सरोवर को बाणगंगा कहा जाता होगा।

लक्ष्मण प्रतिदिन अपनी पूजा करने हेतु काशी जाते थे और फिर अपने भाई राम के लिए वहाँ का शिवलिंग लेकर आते थे ताकि वे बिना किसी बाधा के रोज की तरह अपनी पूजा कर सके। एक दिन किसी कारणवश लक्ष्मण समय से नहीं लौट पाये जिसके कारण राम ने यहीं पर उपलब्ध रेत से एक लिंग बनाया और उसकी पुजा की। इस प्रकार यह शिवलिंग ‘वाऴू-का-ईश्वर’ अर्थात रेत का बना हुआ ईश्वर के नाम से प्रचलित हुआ और फिर गुजरते समय के साथ विकृत होते-होते वह वालकेश्वर में परिवर्तित हुआ। यह मंदिर आज भी बाणगंगा सरोवर के पूर्वीय तट पर बसा हुआ है और बड़े गर्व से इस क्षेत्र को अपना नाम प्रदान करता है। समय के साथ यहाँ पर और भी मंदिरों का निर्माण हुआ जिसके कारण इस स्थान को तीर्थक्षेत्र के रूप में जाना जाने लगा।

बाणगंगा सरोवर और आस-पास के स्थानों का इतिहास 
बाणगंगा सरोवर के दीपस्तंभ
बाणगंगा सरोवर के दीपस्तंभ

कहा जाता है कि इस क्षेत्र में प्रारंभिक मंदिरों का निर्माण 8वी और 13वी शताब्दी के बीच में हुआ था, जो बाद में पुर्तुगालियों ने अपने शासन काल के दौरान उद्ध्वस्त कर दिये थे। बाद में 18वी शताब्दी के दौरान इन मंदिरों का पुनः निर्माण किया गया जिन्हें आज आप यहाँ देख सकते हैं। इन मंदिरों के पुनः निर्माण के लिए उन्हें समाज सेवी श्री राम कामत द्वारा बहुत बड़ी आर्थिक सहायता प्राप्त हुई थी। राम कामत गौड़ सारस्वत ब्राह्मण समुदाय से थे जो बाणगंगा परिसर के शुरुवाती निवासितों में से एक थे। यह समुदाय आज भी बाणगंगा सरोवर और उसके आस-पास के मंदिरों पर अपना प्रभुत्व बनाए हुए है और अच्छे से उनकी देखरेख भी करता है।

इस क्षेत्र में काशी मठ, कैवल्य मठ और कवले मठ जैसे अनेक मठ स्थित हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ पर भगवान परशुराम का भी एक मंदिर है, जो यहाँ के अन्य अकर्षणों में से एक है। यद्यपि यहाँ के सभी मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से साधारण हैं, लेकिन यह मंदिर एक सच्चे कलाप्रेमी को अपनी ओर जरूर आकर्षित करता है। इस मंदिर की सीधी खड़ी पत्थर की सीढ़ियों पर बिखरी सुंदर मूर्तियाँ यहाँ का प्रमुख आकर्षण है।

बाणगंगा सरोवर के आस-पास की सैर   
बाणगंगा सरोवर की सीढियां - मुंबई
बाणगंगा सरोवर की सीढियां – मुंबई

मैं वालकेश्वर की सड़क से होते हुए बाणगंगा गयी थी, जो कि दक्षिण मुंबई में बसे मलाबार पहाड़ी क्षेत्र के किनारे के समानांतर दौड़ती है। यह रास्ता आगे जाकर किसी स्थान पर सीढ़ियों में परिवर्तित होता है जहाँ से आपको अपनी गाड़ी से उतरकर पैदल ही आगे बढ़ना पड़ता है। इन सीढ़ियों के दोनों तरफ खड़ी इमारतें अनेक पीढ़ियों से जुडी कहानियाँ कहती हैं, जो कभी इस इलाके में रही होंगी। यहाँ पर कुछ छोटे-छोटे ढाबे भी हैं, जो पाव-भाजी, भेल-पूरी और कभी-कभी इडली जैसे स्वादिष्ट व्यंजन बेचते हैं। यहाँ की असमान सीढ़ियाँ उस बीते हुए कल की तरह है जिसका जीता-जागता गवाह यह जगह है।

नीचे पहुँचते ही आप सामने स्थित सरोवर को चाह कर भी अनदेखा नहीं कर सकते। इस सरोवर के आस-पास घूमिए, तो आपको यहाँ-वहाँ छोटी-छोटी कलाकृतियाँ नज़र आएँगी, जो कभी किसी पेड़ के नीचे, सरोवर की सीढ़ियों पर और कभी सड़क के किनारे पड़ी हुई होती हैं। इससे भी अधिक प्रशंसनीय यहाँ के दीपस्तंभ हैं जिन्हें बहुत अच्छी तरह से अनुरक्षित किया गया है। कल्पना कीजिये कि यह सरोवर रात के समय दीपों से प्रज्वलित इन स्तंभों और सरोवर की परिधि पर चारों ओर जलते दियों की रोशनी में कितना सुंदर दिखता होगा। यहाँ पर घूमते हुए जो भी मंदिर आपकी आँखों को भाए उसके दर्शन जरूर कीजिये। जैसा कि मैं पहले भी बता चुकी हूँ, वास्तुकला की दृष्टि से ये सभी मंदिर बहुत साधारण हैं, यद्यपि इन में से अधिकतर मंदिरों की शिखर विशेष रूप से नागर या उत्तर भारतीय शैली में बनी हुई है।

बाणगंगा का परिसर 
बाणगंगा सरोवर के आस पास के घर
बाणगंगा सरोवर के आस पास के घर

बाणगंगा सरोवर के परिसर की सैर करते हुए आपको वहाँ पर नए-पुराने और अमीर-गरीब में एक प्रकार का सान्निध्य नज़र आता है। यह क्षेत्र अपने आप में जैसे मुंबई शहर का सूक्ष्म प्रतिरूप है। यहाँ पर मुझे खिड़कियों के कुछ चित्ताकर्षक प्रकार भी दिखे।

बाणगंगा परिसर की सैर करने के लिए आपको लगभग 1 घंटे का समय चाहिए जिसके दौरान आप वहाँ पर स्थित एक-दो मंदिरों के दर्शन भी कर सकते हैं। मौसम के अनुसार आप चाहें तो सुबह या फिर शाम को भी बाणगंगा की सैर के लिए जा सकते हैं। महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम द्वरा फरवरी के महीने में यहाँ पर बाणगंगा संगीत उत्सव का आयोजन किया जाता है और शायद बाणगंगा की यात्रा करने का यह सबसे उत्तम समय हो सकता है।

बाणगंगा सरोवर के पास ही मणि भवन भी है।

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मणि भवन – मुम्बई में महात्मा गाँधी की स्मृति संजोय संग्रहालय https://inditales.com/hindi/mani-bhavan-gandhi-museum-mumbai/ https://inditales.com/hindi/mani-bhavan-gandhi-museum-mumbai/#respond Sun, 16 Apr 2017 02:30:47 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=262

हम लोगों नें बाणगंगा से वापस आते हुए एक बोर्ड देखा जो मणि चौक से अवगत करा रहा था। मैंने मेरे भाई से पूछा कि क्या ये वही जगह है जहाँ मणि भवन है – उसने हाँ कहा और वाहन को वहीं खड़ा कर दिया। बहुत आराम से उसने मुझे इस बात की अनुमति दी […]

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मणि भवन - गाँधी संग्रहालय, मुंबई
मणि भवन – गाँधी संग्रहालय, मुंबई

हम लोगों नें बाणगंगा से वापस आते हुए एक बोर्ड देखा जो मणि चौक से अवगत करा रहा था। मैंने मेरे भाई से पूछा कि क्या ये वही जगह है जहाँ मणि भवन है – उसने हाँ कहा और वाहन को वहीं खड़ा कर दिया। बहुत आराम से उसने मुझे इस बात की अनुमति दी कि मैं जाकर उस संग्रहालय के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकती हूँ। इसलिए मैंने उस ओर रूख किया जो 1980 के एक शहर के उच्च मध्य वर्ग के लोगों के रहने की जगह की तरह लग रहा था। लेकिन ये बीसवी शताब्दी के शरुआत की मुम्बई है। मणि भवन उस जगह की आज की बहुत प्रसिद्ध इमारत है और जिसे देखने के लिये बहुत बड़े बड़े लोग भी आते हैं।

मणि भवन – गाँधी संग्राहालय

गाँधी चित्रावली - मणि भवन, मुंबई
गाँधी चित्रावली – मणि भवन, मुंबई

अब मैं फीके रंगों में रंगी हुई सौ साल पुरानी इमारत के सामने जो हमारे राष्ट्र पिता को समर्पित है खड़ी थी। संग्रहालय के बाहर एक धातु के बोर्ड के ऊपर उस जगह का पूरा नाम – मणि भवन गाँधी संग्रहालय, गाँधीजी के निशान चरखे के साथ लिखा था। मुझे इस जगह की जानकारी मुख्य द्वार पर बने एक छोटे से काउंटर से प्राप्त हुई। मैं जानकर हैरान और खुश हुई जब उन्होंने मुझे तस्वीरें खींचने की अनुमति दी, वो भी निशुल्क। वहां की दीवारों पर महात्मा गाँधी के बारे में बड़ी और छोटी सूचनाएं थीं और एक तख्ते पर गाँधी जी को समर्पित डाक टिकट भी रखे थे।

पुस्तकालय और किताबों का संरक्षण

पुस्तकालय - मणि भवन, मुंबई
पुस्तकालय – मणि भवन, मुंबई

अंदर प्रवेश करते ही वहां का पुस्तकालय देखकर मैं खुशी से झूम उठी। एक खास किताबों की अलमारी पर एक कागज़ पर लिखा था – गाँधीजी द्वारा पढ़ी गयीं पुस्तकें। मैंने अनुमान लगाया कि बाकी पुस्तकें उन्हे उपहार स्वरुप मिली होंगी।पुस्तकालय में समय बिताने के बाद उसके दूसरी तरफ के कमरे में मैंने प्रवेश किया । यहाँ किताबों को सुरक्षित रखने की प्रयोगशाला को देखकर अचंम्भित रह गयी। पुराने दाग लगे हुए किताबों के पन्नों को एक कपड़े पर चिपका कर सूखने के लिये टांगा गया था। वहाँ पर और भी बहुत सी पुस्तकें फटे हुए पन्नों के साथ मैंने देखीं और ऐसा महसूस किया जैसे वहां कोई शल्य चिकित्सा चल रही हो और अलग अलग भागों को सिर्फ़ उन्ही चिकित्सकों द्वारा ही पहचाना जा सकता है। मेरे लिये यह पहली बार था जब मैं किताबों को सुरक्षित रखने का स्थान देख रही थी। मेरे मन में कई प्रश्न थे परंतु उस दिन रविवार होने के कारण वहां के सभी कर्मचारी अवकाश पर थे, इसलिए मेरे मन में उठने वाले सवालों के उत्तर मुझे नहीं मिल पाये। संग्रहालय के इस भाग को जानने में अगर आपको थोड़ी सी भी उत्सुकता है तो कृप्या सप्ताह के अंत या किसी भी छुट्टी वाले दिन न जायें।

मणि भवन सभागार
मणि भवन सभागार

बहुत ही संकरी लकड़ी की सीढियाँ जो पहले और दुसरे तल पर जाती हैं वहां मैंने चारो ओर गाँधीजी को पाया। यहाँ गाँधी जी के जीबन को उनकी मूर्ति , चित्र और तस्वीरों के माध्यम से दिखाया गया था। पहली मंजिल पर एक साधारण सा रंगभवन था जहाँ पर आप गाँधीजी से सम्बंधित चलचित्र देख सकते हैं और उनके भाषण को सुन सकते हैं। दूसरी मंजिल पर गाँधीजी के जीवन की महत्वपूर्ण घटना की श्रंखलाओं को चित्रावली द्वारा दर्शाया गया है। अहमदाबाद में जब साबरमती आश्रम स्थापित हो रहा था तब गाँधीजी इस घर में भी रहे। यह भवन रीवाशंकर जगजीवन ज़वेरी का है। आज़ादी के बाद यह भवन संग्रहालय में बदल दिया गया। यहाँ से गाँधीजी ने कई आन्दोलनों की शरुआत की जैसे रोव्लेट एक्ट के विरुद्ध आन्दोल।

महात्मा गाँधी का व्यकतिगत कमरा

मणि भवन में गाँधी जी का कमरा
मणि भवन में गाँधी जी का कमरा

इस संग्रहालय का सबसे साधारण व प्रभावशाली हिस्सा गाँधीजी का व्यकिगत कमरा, जो ऊपर की मंजिल पे एक कोने में स्थित है। इस कमरे में एक छोटा सा बिस्तर, लिखने के लिये एक मेज़, कुछ किताबें, उनका सबसे प्रिय चरखा, खुली खिड़कियाँ और दरवाजे उनके साधारण व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। इस कमरे के अन्दर जाने की अनुमति नहीं है, बस आप शीशे के माध्यम से  उस कमरे को देख सकते हैं। इस मणि भवन पर उस समय ध्यान दिया गया जब अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा भारत आये और उन्हें इस भवन को देखने के लिये लाया गया।

हर शहर गॅाव गाँधीजी को अपने तरीके से याद करता है। मुम्बई का यह सौभाग्य है कि गाँधीजी कुछ समय यहाँ रहे थे। जब भी आप मुम्बई जाए तो मणि भवन को देखना न भूलें।

गाँधी जी के अन्य निवास

आगा खान महल – पुणे

सत्याग्रह आश्रम – कोचरब, अहमदाबाद

हिंदी अनुवाद – शालिनी गुप्ता

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मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस – अनजानी बारीकियां https://inditales.com/hindi/chhatrapati-shivaji-terminal-mumbai/ https://inditales.com/hindi/chhatrapati-shivaji-terminal-mumbai/#respond Wed, 08 Mar 2017 02:30:55 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=167

यदि आप कभी मुंबई शहर गएँ हैं या आप मुंबई निवासी हैं तो आपने सी. एस. टी. मुंबई रलवे स्टेशन अर्थात छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई तो देखा ही होगा। कदाचित् आपने इसकी सुविधाएँ भी लीं होंगी या इस सुन्दर स्टेशन के सामने से अवश्य गुजरें होंगे। मैं यहाँ आप लोगों को इस ऐतिहासिक धरोहर की […]

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छत्रपति शिवाजी टर्मिनस
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस

यदि आप कभी मुंबई शहर गएँ हैं या आप मुंबई निवासी हैं तो आपने सी. एस. टी. मुंबई रलवे स्टेशन अर्थात छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई तो देखा ही होगा। कदाचित् आपने इसकी सुविधाएँ भी लीं होंगी या इस सुन्दर स्टेशन के सामने से अवश्य गुजरें होंगे। मैं यहाँ आप लोगों को इस ऐतिहासिक धरोहर की विशेषताओं और दिलचस्प बारीकियों से अवगत कराना चाहती हूँ। हालांकि इस रेल मार्ग के इस खूबसूरत अंतिम स्टेशन के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। अतः मैं यहाँ केवल इसकी विचित्र विशेषताओं और बारीकियों की और आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी। छोटी से छोटी जानकारी जो आप हासिल करना चाहते हैं इस स्टेशन को देखने से पूर्व!

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस भारत का प्राचीनतम व सर्वाधिक खूबसूरत रेलवे स्टेशन है। मौलिक रूप से “विक्टोरिया टर्मिनस” या वी. टी. के नाम से प्रचलित इस स्टेशन को वर्ष २००४ में युनेस्को ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई - सड़क पार से
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई – सड़क पार से

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई की नींव तब डली जब वर्ष १८५३ में भारतीय रेल की शुरुआत हुई। इस देश की पहली रेलगाड़ी मुंबई के बोरी बंदर स्टेशन (अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) और ठाणे के बीच दौड़ी। इस स्टेशन का निर्माण १० वर्षों (व.१८७८ – १८८८) में पूर्ण हुआ।

क्या आप जानते हैं कि छत्रपति शिवाजी टर्मिनस युनेस्को की उन दो विश्व विरासत स्थलों में से एक है जो अभी भी सक्रिय उपयोग में है। इस प्रकार का दूसरा स्थल भी भारतीय रेल सेवा से सम्बंधित है। वह है भारत की पर्वतीय रेलसेवा – दार्जिलिंग हिमालय रेल।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस संग्रहालय

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के शिल्प चित्र
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के शिल्प चित्र

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई के मुख्य द्वार पर दो विशालकाय शेर बनें हैं, जैसे वे इसके रक्षक हों। इस द्वार के दाहिनी ओर एक दालान है जहां यह संग्रहालय बनाया गया है। इसका उद्देश्य भारतीय रेल के उस इतिहास को प्रदर्शित करना है जब उसे “ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे” कहा जाता था।

रूपरेखा और बन कर कड़ी हुई ईमारत - हुबहु
रूपरेखा और बन कर कड़ी हुई ईमारत – हुबहु

यहाँ मुंबई में रेलसेवा के विकास का सफ़र एक मानचित्र द्वारा सुन्दर ढंग से दर्शाया गया है। ना केवल मुंबई रेलसेवा, अपितु मुंबई शहर की विकास यात्रा भी इस मानचित्र में देखी जा सकती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे दोनों साथ साथ विकसित हुए हैं।

मुंबई नगरी और मुंबई रेल का सफ़र - १८९३-२००९
मुंबई नगरी और मुंबई रेल का सफ़र – १८९३-२००९

इस इमारत की रूपरेखा व इसका वर्त्तमान चित्र पासपास रखे हुए हैं। ईमारत की नक्काशियों की बारीकियां इस रूपरेखा में स्पष्ट देखी जा सकतीं हैं। इन नक्काशियों व बारीकियों को हू-ब-हू ईमारत में उतारा गया है। इस इमारत के वास्तु सलाहकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवन्स की अभिकल्पना सराहनीय है। इसके लिए उन्होंने १६.१४ लाख रुपये शुल्क रूप लिए थे। वहां मेरी नजर एक दिलचस्प पत्र पर पड़ी जहाँ स्टीवन्स ने रेल विभाग से ५ हज़ार रुपयों की अतिरिक्त शुल्क की मांग की। ध्यान दीजिये यह वर्ष १८८८ की दास्ताँ है!

GIPR के दौर के छुरी कांटे
GIPR के दौर के छुरी कांटे

यहाँ इमारत सम्बन्धित कई पत्राचार, नक्शे, रूपरेखायें, प्रतीक चिन्ह और पुरानी चाँदी के छुरी-कांटे संग्रहित किये हुए हैं।

समय-सारिणी

छात्रिपति शिवाजी टर्मिनस की समय सारिणी
छात्रिपति शिवाजी टर्मिनस की समय सारिणी

समय-सारिणी पर एक नज़र आपको उस इंसान की प्रशंसा करने पर मजबूर कर देती है जिसने इसकी रचना की। रेल समय, किराया, दूरी, स्टेशन के नाम इत्यादि रेल सम्बन्धी संपूर्ण जानकारी इस छोटे से चौकोर कागज़ के टुकड़े पर उपलब्ध है।

मुंबई पुणे के बीच दौड़ाने वाली डेक्कन क्वीन का विज्ञापन
मुंबई पुणे के बीच दौड़ाने वाली डेक्कन क्वीन का विज्ञापन

यदि आपका अनुमान है कि लोगों ने रेलसेवा को सहज ही अपनाया होगा और उन्हें किसी भी प्रोत्साहन की आवश्यकता नहीं पड़ी होगी तो आप अवश्य ‘डेक्कन क्वीन’ के इस विज्ञापन पर गौर फरमाईये, जो अब भी मुंबई पुणे के बीच दौड़ती है। लोगों को यह रेलसेवा लेने हेतु प्रेरित करने के लिए इसका विज्ञापन ‘बॉम्बे टाइम्स’ के पहले पृष्ठ पर छापा गया था। यहाँ तक की नियमित रूप से यात्रा करने वाले यात्रियों के पत्रव्यवहार भी ‘डेक्कन क्वीन’ तक पहुंचाए जाते थे।

भारतीय रेल को समर्पित डाक टिकट
भारतीय रेल को समर्पित डाक टिकट

तीन इंजन जिन्होंने भारत की पहली रेलगाड़ी को खींचा था, उनके नाम हैं साहिब, सिंध और सुल्तान। इंजन साहिब की प्रतिकृति इस संग्रहालय में देखने हेतु उपलब्ध है।

मुंबई और कलकत्ता के बीच चलने वाली रेल की समय सारिणी
मुंबई और कलकत्ता के बीच चलने वाली रेल की समय सारिणी

“ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे” (जी.आई.पी.आर.) के १० प्रारंभिक निदेशकों में दो भारतीयों का समावेश है-
• जगन्नाथ नाना शंकर शेट
• कर्सेटजी जमसेटजी जीजीभॉय

भारतीय रेलसेवा की स्थापना के उपलक्ष्य में कई डाक टिकटों को भी जारी किया गया था। यह सारे डाक टिकट इस संग्रहालय में प्रदर्शनार्थ रखे हुए हैं। काश लोग इन टिकटों को खरीद पाते या उनकी प्रतिलिपि उपलब्ध होती! इनका संग्रह मेरे लिए गौरव की बात होती!

बोरी-बंदर और ठाणे के बीच पहली रेलगाड़ी की गाथा

GIPR का चिन्ह
GIPR का चिन्ह

कहा जाता है कि बोरी बंदर अर्थात् छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और ठाणे के बीच दौड़ी इस पहली भारतीय रेलगाड़ी में ४०० आमंत्रित अथितियों ने सफ़र किया था। १६ अप्रैल १८५३ के दिन शुरुआत हुई इस रेल ने ३५ की. मी. की दूरी तय की थी।
१४ डब्बों वाली इस रेलगाड़ी को तीन इंजन साहिब, सिंध और सुल्तान ने खींचा था। २१ तोपों की सलामी दे कर इसे रवाना किया गया था।

आमंत्रित अथितियों का इस रेलगाड़ी के ऐतिहासिक सफ़र में भव्य स्वागत किया गया था। उनके चाय नाश्ते का खास इंतजाम भी रेलगाड़ी में ही किया गया था। हम अंदाजा लगा सकतें हैं कि इस यात्रा के लिए चुने गए अतिथी कितनी जानी मानी हस्तियाँ रहीं होंगी।

जगह की कमी के चलते इस रेलसेवा के टिकट कार्यालय की व्यवस्था कुछ समय हेतु श्री शंकर शेट के घर पर की गयी थी।

इस ऐतिहासिक यात्रा के बारे में और अधिक जानकारी इस “हिन्दू” के लेख से प्राप्त की जा सकती है।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस का सर्वश्रेष्ठ आकर्षण – सितारा कक्ष (‘स्टार चैम्बर’)

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई का सितारा कक्ष या स्टार चैम्बर
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई का सितारा कक्ष या स्टार चैम्बर

जब से मैंने ‘स्टार चैम्बर’ अर्थात् सितारा कक्ष का नाम सुना था, मैंने मन ही मन एक सितारे के आकर के कक्ष की कल्पना कर ली थी। मैंने राहत की सांस ली कि मैंने इस विषय में किसी से चर्चा नहीं की और समय रहते मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया। क्योंकि इस कक्ष की बनावट का सितारे के आकर से कोई सम्बन्ध नहीं है। अपितु इस कक्ष में रेल टिकट जारी करने हेतु कार्यालय व खिड़कियाँ हैं। यदि आपने इस स्टेशन से कभी रेल पकड़ी हो तो आपने यह कक्ष अवश्य देखा होगा। तथापि सितारे देखने हेतु अपनी गर्दन खींच कर छत निहारने की आवश्यकता है। पिस्ते हरे रंग की छत पर सुनहरे चमकते सितारे अत्यंत खूबसूरत लगते हैं। पहली मंजिल से यह मेहराबदार कक्ष बड़ा ही सुन्दर प्रतीत होता है। ये मेहराब इसे एक बहुत बड़े दरबार खाने का आभास करतें हैं।

पर क्या वे सब, जो यहाँ टिकट खरीदने आतें हैं, ऊपर देख इन मेहराबों की सुन्दरता को सराहतें है? या टिकट की हड़बड़ी में मस्त रहतें है!

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस का प्रसिद्ध गुंबद

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस का प्रसिद्द गुम्बद
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस का प्रसिद्द गुम्बद

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस की ईमारत के बीचोंबीच यह ऊंचा गुंबद खड़ा हुआ है।  यहाँ मैं इस वास्तुशिल्प की महान रचना से आपका परिचय कराती हूँ।

लकड़ी का मढ़ा हुआ मौलिक द्वार
लकड़ी का मढ़ा हुआ मौलिक द्वार

गुंबद की तरफ जाती सीड़ियों के लिए जिन दरवाज़ों से हो कर गुजरना पड़ता है वह सुन्दरता का एक अप्रतिम नमूना है। खांचेदार मेहराब में फंसाया हुआ यह दरवाज़ा इतना चमकता है जैसे उसे अभी अभी चमकाया गया हो। उस पर लगी पीतल की सजावट उस दरवाज़े को एक शाही आभा प्रदान करती है। आपको यह अहसास होने लगता है जैसे आप किसी शाही दरबार में दाखिल हो रहें हों। आपका यह अहसास और मजबूत हो जाता है जब वहां राज-चिन्ह युक्त एक भव्य शेर की ऊँची मूर्ती आपका स्वागत करती है।

गुम्बद के नीचे शेर की प्रतिमा
गुम्बद के नीचे शेर की प्रतिमा

घुमावदार सीड़ियाँ

जैसे ही मैंने अपनी नज़र शेर पर से हटाई, मेरा ध्यान आकर्षित किया गुंबद के समीप स्थित घुमावदार सीड़ियों ने। ईमारत की दीवार से जुड़ी इस घुमावदार चौड़ी सीड़ियों को किसी प्रकार का अतिरिक्त आधार नहीं है। करीब ८ – १० फीट मोटी ईमारत की दीवार ने ही सीड़ियों का भार उठाया है। इतनी खूबसूरती से बनाई गयी सीड़ियाँ और उतनी ही खूबसूरत उसकी पृष्ठभूमि अर्थात् ईमारत की दीवार देखकर मैं अत्यंत प्रभावित थी। तय नहीं कर पा रही थी कि दीवार की शिल्पकारी ज्यादा खूबसूरत है या सीड़ियों की।

घुमावदार सीढियां और नक्काशीदार दीवारें
घुमावदार सीढियां और नक्काशीदार दीवारें

ईमारत की दोनों मंजिलों के बीच, दीवार पर एक झरोखा है जिस पर जालीदार नक्काशी की गयी है। ईमारत की पहली मंजिल से ऊपर की मंजिलों तक नज़र पड़ती है। गुंबद तक पहुँचने के लिए संकरी धातु की सीड़ियाँ चढ़नी पड़ती है।

घुमावदार सीढियां - छत्रपति शिवाजी टर्मिनस - मुंबई
घुमावदार सीढियां – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस – मुंबई

उसके उपरांत एक और संकरी सीड़ी जहाँ पकड़ने के लिए कोई आधार उपलब्ध नहीं है। ऊपर पहुँच कर रंगीन कांच की कलाकारी देख आपकी सारी मेहनत वसूल हो जाती है। दुहरी परत में लगे रंगीन कांच “ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे” की कहानी कहती है। इनमें हाथी की सवारी से ले कर रेलगाड़ी के बीच का सफ़र मुख्य आकर्षण है। गुंबद के इतने समीप जा कर ही इसकी विशालता का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

रंगीन कांच पर चित्रकारी से GIPR की कहानी
रंगीन कांच पर चित्रकारी से GIPR की कहानी

यहाँ से पिछवाड़े खड़ी ईमारत, जहाँ मध्य रेल का कार्यालय स्थित है, खूबसूरत नज़ारा पेश करता है। इतनी ऊँचाई से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के आसपास का नज़ारा एक अलग ही परिप्रेक्ष्य में दिखाई पड़ता है।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन – बाहरी परिप्रेक्ष्य

तीन युगों का अंकन तीन मंज़िलों पर
तीन युगों का अंकन तीन मंज़िलों पर

इस ईमारत की बाहरी संरचना आलिशान और अत्यंत प्रभावशाली है। इनकी कुछ बारीकियां जो मेरे ध्यान में आईं, गौरतलब हैं।
• तीन अलग अलग स्तरों पर बनाईं गईं मेहराबें तीन अलग अलग युगों में प्रचलित वास्तुशिल्प का प्रतिनिधित्व करतीं दिखाई पड़तीं हैं।
• “ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे” के १० निदेशकों को समर्पित १० मूर्तियाँ भी इस पर बनाई गईं हैं।

जीव जंतु
जीव जंतु

• मध्यवर्ती रिक्त स्थान पर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की प्रतिमा थी। इनको समर्पित ही इस ईमारत का नामकरण “विक्टोरिया टर्मिनस” किया गया था। आज़ादी के उपरांत इस मूर्ति को यहाँ से हटा दिया गया।
• व्याल्मुख प्रणाली छत्रपति शिवाजी टर्मिनस की जल प्रबंधन प्रणाली है जिसमें मूर्तिरूप जानवरों के मुख से पानी का निकास होता है। ईमारत के चारों ओर इस प्रकार अलग अलग जानवरों के मुख से पानी निकास होता देखा जा सकता है।

१६ तरह की भारतीय पगढ़ियाँ
१६ तरह की भारतीय पगढ़ियाँ

• बारीकी से देखने पर झरोखे के आधार पर एक विचित्र शिल्पकारी दिखाई पड़ी। वह है १६ अलग अलग शैलियों में बाँधी जाने वाली पगड़ियाँ दर्शाती शिल्पकारी। मेरे अनुमान से यह भारत की जनसँख्या की विविधताओं को दर्शाती है।

शौचालय की नालियाँ
शौचालय की नालियाँ

• ईमारत के कोने में स्थित शौचालय भी एक भव्य कक्ष में स्थित है। पानी की नालियों को देखने के उपरांत ही मुझे इसके अस्तित्व पर विश्वास हुआ।

भारतीय वनस्पति व जीव दर्शन

खिड़की पर नाचता मोर
खिड़की पर नाचता मोर

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई के इलाके में बहुतायत में पाए जाने वाले भारतीय वनस्पतियों व जीवों का भी दर्शन कराती है यह ईमारत! शिल्पकारी से भरपूर प्रत्येक खम्बे का बारीकी से निरिक्षण करने पर इस इलाके की जैव विविधता की जानकारी मिलती है। एक झरोखे पर मढ़ा नाचता मोर मेरा सबसे पसंदीदा शिल्प था।

स्टेशन की मुख्य ईमारत के गुंबद के ऊपर एक सफ़ेद रंग की महिला की मूर्ती है। करीब १६ फीट ऊंची इस मूर्ती को “दि लेडी ऑफ़ प्रोग्रेस” कहा जाता है। इसके बाएं हाथ में पहिया है जो प्रतीक है प्रगति का अथवा प्रगति की ओर गतिशीलता का। इसके दाहिने हाथ में जलती हुई मशाल है, ठीक “स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी” की तरह। मेरे परिदर्शक के अनुसार यह मशाल दर्शाता है कि मुंबई शहर कभी सोता नहीं। अब यह तो हम सब जानते है की रात भर जागना मुंबई की रग रग में बसा है।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई विरासत दर्शन- कुछ सुझाव

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के गुम्बद से दृश्य
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के गुम्बद से दृश्य

• छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन के दर्शन हेतु परिदर्शक की सेवा लेना उपयोगी है। वह आपको इस ईमारत की ऐतिहासिक विरासत के साथ साथ संग्रहालय के बारे में भी विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकता है।
• संग्रहालय, सप्ताहांत के आलावा, हर दिन दोपहर २ बजे से ५ बजे तक खुला रहता है। हालांकि मेरा मानना है कि सप्ताहांत में भी इसे खुला रखने पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसे देखने का अवसर मिलेगा। आशा है यह बदलाव जल्द ही आये।
• ऐतिहासिक विरासत दर्शन के लिए पूरा १ घंटे का समय लगता है। हालांकि गुंबद और उसके आसपास का क्षेत्र इस दर्शन के अंतर्गत नहीं आता।
• यह संस्मरण लिखते समय तक दर्शन शुल्क २०० रूपए थी। विद्यार्थियों के लिए विशेष शुल्क केवल १०० रूपए थी।

मुंबई के कुछ और विशेष दर्शनीय स्थल

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

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