पाटलीपुत्र – पटना में घूमने की जगहें
पटना या पाटलीपुत्र, यानी पुरातात्विकता का संग्रह। मगध के राजा अजातशत्रु द्वारा खोजा गया यह शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। यही पाटलीपुत्र सम्राट अशोक के साम्राज्य का प्रमुख केंद्र हुआ करता था, जो अब पटना में रूपांतरित होकर बिहार राज्य की राजधानी बन गया है। अपने अत्यंत सुंदर अतीत के जरिये अपने वर्तमान को और भी आकर्षक बनाता हुआ यह शहर अपने उज्ज्वल भविष्य की ओर सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है।
प्राचीन काल के यात्री जैसे, फा-हेन के अनुसार, इस शहर का निर्माण अद्भुत अलौकिक मनुष्यों द्वारा किया गया था। तो मेगास्थेनेस ने यहां के प्रासाद के बारे में विस्तार से लिखा था। लेकिन जब हुआन-सँग पटना आए, तो उनके हिस्से में सिर्फ यहां के अतीत के गौरव का उल्लेख मात्र आया। और अब 21वी शताब्दी की यात्री के रूप में मैंने पटना का वह स्वरूप देखा जिसकी दृष्टि अपने उज्जवल भविष्य पर टिकी हुई है। लेकिन आधुनिकता के साथ चलते हुए भी वह अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है।
पटना का संग्रहालय
अपने वैभवशाली अतीत के अंशों की निगरानी करता हुआ पटना का यह संग्रहालय शायद पुरातात्विक विरासत के क्षेत्र में सबसे प्रचुरतम संग्रहालय है। जैसे ही आप इस संग्रहालय में प्रवेश करते हैं, सामने खड़ी दीदारगंज यक्षी हाथ में चंवर लिए आपका स्वागत करती है। इस स्त्री की यह बड़ी सी चमचमाती हुई मूर्ति आपको पूर्ण रूप से विस्मित कर देती है। इस मूर्ति को भारी आभूषणों से सजाया गया है, तथा उसने सिर्फ एक धोती पहनी हुई है। उसके बालों को भी अच्छी तरह से सवारा गया है। उसके एक हाथ में चंवर है तो दूसरा हाथ टूटा हुआ है। इस आकर्षक मूर्ति की सुंदरता में आप इतने खो जाते हैं, कि उसके शिल्पकर की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते। इस मूर्ति को देखकर आप ऐसी अनेकों कीमती मूर्तियों को समय के हाथों खो देने के विचार से कुछ उदास से हो जाते हैं। मैं तो यही सोच रही थी कि अगर यह चौरी वाहक इतनी सुंदर है, तो वह व्यक्ति जो उसका पात्र होगा कितना सुंदर होगा।
यक्षी के पास ही आप प्रथम दिगंबर जैन की मूर्ति देख सकते हैं। यह एक नग्न पुरुष का धड़ है जो लोहानिपूर में पाया गया था। यहां पर शालभंजिका की सबसे पहली और पुरानी मूर्ति है जिसमें मौर्य शिष्टता स्पष्ट रूप से झलकती है। इसके अलावा यहां पर तीसरी शताब्दी से लेकर 11वी शताब्दी तक के बहुत सारे खजाने रखे गए हैं, जिनकी प्रशंसा करते आप नहीं थकते।
देश के इस भाग में मुख्य रूप से तीन धर्मों का बोल-बाला था – हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म। इन तीनों धर्मों से संबंधित मूर्तियाँ इस संग्रहालय में देखी जा सकती हैं। यहां पर बौद्ध धर्म या जैन धर्म से संबंधित कुछ ऐसी मूर्तियाँ हैं जो हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं को कुचलती हुई नज़र आती हैं, जो इन धर्मों के बीच चल रहे तनाव को स्पष्ट रूप से दिखाती हैं। उस समय शायद लोग भी उतने सहनशील नहीं थे जीतने कि वे आज दिखाई देते हैं।
हम बहुत किस्मत वाले थे कि हमे गाइड के रूप में एक विद्वान मिले, जिन्होंने हमे यहां की प्रत्येक मूर्ति तथा वस्तु का विस्तृत विवरण देते हुए प्रत्येक बात बहुत अच्छे से समझाई।
बुद्ध के अवशेष
इस संग्रहालय का सबसे महत्वपूर्ण और प्रख्यात भाग वह है जहां बुद्ध के अवशेष रखे गए हैं। संग्रहालय का यह भाग बौद्धों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। बुद्ध के अवशेषों को यहां पर पूरी सुरक्षा के साथ रखा गया है। वहां पर जाने के लिए आपको अलग से एक और टिकट खरीदनी पड़ती है।
इस संग्रहालय में एक ब्रोंज गैलरी भी है जहां पर पीतल की कुछ बड़ी-बड़ी वस्तुएं रखी गयी हैं, जो प्रागैतिहासिक काल में पायी गयी थी। इसी के साथ यहां पर टेराकोटा गैलरी है, जिस में टेराकोटा की छोटी-छोटी मूर्तियाँ रखी हुई हैं, जो हरप्पन काल से लेकर कुषाण-शुंगा काल तक की बतायी जाती हैं और इनमें कुछ मूर्तियाँ मौर्य काल की भी हैं। इन मूर्तियों तथा श्रद्धेय आकृतियों जैसे की देवी माँ की मूर्ति, के द्वारा आप उस समय की जीवनशैली का आसानी से अंदाज़ा लगा सकते हैं।
यहां पर रोज़मर्रा की जिंदगी में उपयोगी पड़नेवाली वस्तुएं, खिलौने, आभूषण, मुहर और मिट्टी के बर्तन जिन पर कुछ साधारण से चित्र बनाए गए हैं, प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं। यहां पर 2-4 इंच की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं जो मनुष्य के सिर से लेकर पाँव तक के संपूर्ण पहनावे को बारीकी से दर्शाती हैं। इन्हें बनानेवाले शिल्पकारों की यह नाज़ुक कारीगरी सच में बहुत सुंदर और आश्चर्य जनक है।
यहां पर बौद्ध या थांका चित्रकला की एक खास गैलरी है, जिसमें 53 फीट का जीवाश्म वृक्ष है, जो अपने प्रकार का सबसे लंबा और बड़ा पेड़ माना जाता है। इसी प्रकार यहां पर राजेंद्र गैलरी है, जिसमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद जो पटना के निवासी थे, की व्यक्तिगय वस्तुएं प्रदर्शन के लिए रखी गयी हैं। समय की कमी के कारण हमे पटना की कलाम गैलरी और मध्यकालीन चित्रकला की गैलरी देखने का मौका नहीं मिला।
सामान्य तौर पर देखा जाए तो इस संग्रहालय की बहुत अच्छे से देखरेख की गयी है, यद्यपि वहां पर प्रदर्शित वस्तुओं पर थोड़ी और रोशनाई करने की जरूरत है जिससे की दर्शक उनकी बारीकियों को ठीक से देख पाये। और संभवतः दर्शकों की सुविधा हेतु इन वस्तुओं के और भी विस्तृत विवरण दिये जा सकते हैं।
अगम कुआं
अगम कुआं बहुत ही प्राचीन कुआं है। कहा जाता है कि यह कुआं सम्राट अशोक के काल से यहां पर स्थायी है। कहते हैं कि, उन्होंने अपने 99 भाइयों को मारकर उनके शवों को इसी कुएं में फेंका था। आज इस कुएं की ऊंची-ऊंची दीवारें लाल रंग में रंगी हुई हैं। इन ऊंची दिवरों में बनाई गयी छोटी-छोटी खिड़कियों से आप इस कुएं के भीतर झांक सकते हैं। इस कुएं के पास ही शीतला देवी का मंदिर है। कहा जाता है कि यह कुआं पंडितों और ब्राह्मणों द्वारा धार्मिक क्रियाओं के लिए इस्तेमाल होता है। यहां के लोगों की मान्यता है कि इस कुएं का पानी खाली करना नामुमकिन है और जो भी ऐसा करने की कोशिश करता है उसका कभी भला नहीं होता।
यहां के एक स्थानीय व्यक्ति ने हमे बताया कि बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री लालू प्रसाद यादव जी ने एक बार ब्राह्मणों को नीचा दिखाने के लिए इस कुएं को खाली करने की कोशिश की थी। वे अपने इस प्रयास में सफल तो नहीं हुए उल्टा उस दिन से असफलता ने उनके चरण चूम लिए।
इस प्रकार पुराने जमाने में पूर्वजों द्वारा बनायी गयी कहानियाँ मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक दोहराई जाती थी। शायद इसके पीछे पूर्वजों का यही उद्देश्य रहा होगा कि वे अपनी प्रकृति का रक्षण कर सके।
कुम्राहर
कुम्राहर वह जगह है, जहां पर चन्द्रगुप्त प्रथम और सम्राट अशोक का सभागृह हुआ करता था। विद्वानों के अनुसार यह वही 80 स्तंभों वाला सभागृह है जिसका उल्लेख महाभारत के सभा पर्व में किया गया था। लेकिन आज अगर आप यह जगह देखेंगे तो आपको वहां पर सिर्फ उसके अवशेष नज़र आएंगे जो स्मृति के रूप में सांभलकर रखे हुए हैं। इन अवशेषों की सहायता से आप अपनी कल्पना शक्ति द्वारा उसके वैभवपूर्ण काल का अंदाज़ा लगा सकते हैं। यहां पर उत्खनन द्वारा प्राप्त एक अध-टूटा स्तंभ रखा गया है जिसकी चमक को देखकर आप उसके उज्जवल दिनों का अनुमान लगा सकते हैं।
धन्वन्तरी की वैद्यशाला
कुम्राहर से कुछ दूर एक उत्खनन स्थल है जहां पर एक विहार है, या यूं कहे कि, गुप्त काल के प्रसिद्ध वैद्य धन्वन्तरी का अस्पताल है जिसे आरोग्यविहार कहा जाता था। लेकिन आज यहां पर उस आरोग्यविहार के अवशेषों के रूप में कुछ छोटे-छोटे कक्ष जैसी संरचनाएं नज़र आती हैं। इस स्थान पर एक शिलालेख है जो आपको इस अस्पताल के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी देता है। इससे ज्यादा यहां पर कुछ और देखना और समझना नामुमकिन है।
धन्वन्तरी के इस आरोग्यविहार का माहौल पुनः निर्मित करने के लिए यहां पर चारों ओर औषधि वनस्पतियाँ लगायी गयी हैं। इन वनस्पतियों का अच्छे से पालन पोषण किया जाता है। यहां पर एक छोटा सा संग्रहालय है जो बिजली न होने के कारण हम नहीं देख पाये, क्योंकि, वहां पर बहुत अंधेरा था।
पटना साहिब गुरुद्वारा
पटना साहिब गुरुद्वारा यानी सिखों के 10वे गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी का जन्मस्थान। पटना के अस्तव्यस्त से भाग के बीचो बीच बसा यह शांतिप्रिय द्वीप अत्यंत सुंदर है। अन्य प्रसिद्ध गुरुद्वारों की तरह यह गुरुद्वारा भी महाराजा रंजीत सिंह द्वारा बनवाया गया था, जो गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। गुरु गोविंद सिंह ने अपने जीवन के आरंभिक वर्ष यहीं पर गुजारे थे। इनके अलावा गुरु नानक देव और गुरु तेग़ बहादुर अपनी गया यात्रा के दौरान कुछ समय के लिए इस गुरुद्वारे में रुके थे। यह सिखों के पाँच पवित्र आसनों या तख्तों में से एक है।
सामान्य तौर पर जैसे कि गुरुद्वारों का रंग होता है, यह गुरुद्वारा भी अपने सफ़ेद रंग में बहुत सुंदर दिखता है, जो अचानक से आपकी दृष्टि को बाहरी अकर्षणों से खींचकर अपने आंतरिक सुंदरता की ओर आकर्षित करता है। यहां पर बजनेवाला मंद-मंद भक्ति संगीत आपको अपने आप से जोड़ने में मदद करता है। यहां का कढ़ा प्रसाद सच में सबसे अच्छा होता है जिसे पाने के लिए भक्त हमेशा आतुर रहते हैं। यह प्रसाद पाना भगवान का आशीर्वाद पाने जैसा है। पटना साहिब गुरुद्वारे के बगल में ही एक प्राचीन जैन मंदिर है, जो इस समय सुधारणिकरण से गुजर रहा है। यहीं पर बनाए गए अस्थायी मंदिर में हमे विविध जैन तीर्थंकरों की कुछ प्राचीन मूर्तियाँ देखने को मिली।
खुदा बख्श पुस्तकालय, पटना
खुदा बख्श पुस्तकालय पटना का बहुत ही कीमती मणि है। इस पुस्तकालय में 21000 से भी अधिक पूर्वीय पांडुलिपियाँ हैं और 2.5 लाख से भी ज्यादा पुस्तकें हैं। यह पुस्तकालय सामान्य जनता के लिए पिछले 120 वर्षों से खुला है। समय के साथ चलने वाले इस पुस्तकालय की दृष्टि हमेशा भविष्य की ओर टिकी हुई है। यह अपनी सारी संपत्ति का अंकीयकरण करने के मार्ग पर है। इस पुस्तकालय के प्रबंधन कर्मचारियों द्वारा हमारे लिए एक छोटा सा लेकिन जानकारीपूर्ण प्रस्तुतीकरण पेश किया गया, जिसमें इस पुस्तकालय की वंशावली के बारे में दिखाया गया था, तथा उसमें समाहित संपत्ति की कुछ झलकियाँ भी प्रस्तुत की गयी थी। यहां के प्रकाशन विभाग में आपको बहुत सारे प्रकाशक मिलेंगे, जो आपको इस क्षेत्र की ऐतिहासिक जानकारी देते हैं। इसके अलावा आप यहां पर इस क्षेत्र के प्रसिद्ध विचारकों के विचारों से भी रूबरू होते हैं।
इस पुस्तकालय में किताबें पढ़ने के लिए एक खास कमरा है जो बहुत प्रसिद्ध है। यहां पर रखी हुई कुछ प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों को देखना सच में बहुत प्रसन्नता की बात थी। यहां पर उदार रूप से स्वर्ण का प्रयोग देखा जा सकता है। हमने यहां पर जितनी भी पांडुलिपियाँ देखी थी, उनमें से अधिकतर बहुभाषी थी, जिन्हें देखकर मैं पुस्तकों के उद्भव के बारे में सोचने के लिए मजबूर हुई। प्रारंभिक दौर में सिर्फ चित्रों द्वारा कहानियाँ बताई जाती थी, बाद में चित्रों के साथ कविता का भी आगमन हुआ। इसके बाद चित्रों के साथ शब्दों ने भी किताबों में अपनी जगह बनायी और फिर रह गए सिर्फ शब्द। और अब हम फिर से चित्रों और शब्दों की सांझेदारी की ओर बढ़ रहे हैं। यद्यपि हमारे यंत्रीकृत लेखन, चित्रकारी और मुद्रण तकनीकों से यह प्रौद्योगिकी पूर्ण रूप से अलग है।
गोल घर पटना
पटना का गोल घर बहुत ही दिलचस्प सा भवन है। यह एक विशाल गोलाकार इमारत है जो पहले धान्यागार के रूप में इस्तेमाल होती थी। इस इमरता को चारों ओर से घेरती हुई सीढ़ियाँ आपको उसके ऊपर तक ले जाती हैं। यह चढ़ाई बहुत लंबी है और ठीक दोपहर का समय होने के कारण हमने यह चढ़ाई ना करना ही ठीक समझा। लेकिन मुझे लगता है कि सुबह-सुबह यह चढ़ाई करने में शायद बहुत मजा आता। इस इमारत का विराट रूप ही आपको विस्मित कर देता है। मुझे यह जानने की बहुत उत्सुकता थी कि कैसे इस धान्यागार में अनाज रखे जाते होंगे और कैसे उन्हें बाहर निकाला जाता होगा।
यहां पर एक विशाल करुण स्तूप का निर्माण किया जा रहा है, जहां पर 6 राष्ट्रों से लाये गए बुद्ध के अवशेषों को रखा जाएगा। यह एक विशाल संरचना है जो पटना रेल्वे स्टेशन के पास ही बनवाई जा रही है।
पटना के बाज़ार
अन्य किसी भी बड़े शहर की भांति पटना के बाज़ारों में भी लोगों की हलचल दिखाई दे रही थी। इन बाज़ारों में यहां-वहां सिर्फ लिट्टी चोखा बेचनेवाली दुकाने नज़र आ रही थीं, जो बिहार का प्रसिद्ध व्यंजन है। इसके अलावा यहां पर खाजा बेचनेवाली दुकाने भी थी, जो कि बिहार के लोगों की पसंदीदा मिठाई है। वैसे तो पटना में खरीदारी की समूहिक जगहें हैं, लेकिन यहां के स्थानीय बाज़ार उनसे कुछ अधिक मशहूर हैं। हमे यहां पर कोई भी शॉपिंग मॉल नहीं दिखा। मुझे तो लगता है कि शायद पटना का यही रूप और माहौल उसे आज के अन्य बड़े शहरों से अलग बनाता है।
यहां के लोगों का बात करने का लयात्मक अंदाज़ और उनकी शुद्ध हिन्दी, जो देश के अन्य भागों में ज्यादा सुनने को नहीं मिलती, मुझे बहुत पसंद आयी।
पटना में ऐसी और भी बहुत सारी जगहें हैं जो देखने लायक है और मैं यहां पर अपनी अगली यात्रा के लिए बहुत उत्सुक हूँ।