देव दीपावली अर्थात् त्रिपुरारी पूर्णिमा – गोवा का एक विशेष उत्सव

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गोवा पर्यटन द्वारा आयोजित इस पूर्णिमा उत्सव का विज्ञापन मैंने नवम्बर महीने के पूर्णिमा के कुछ दिन पहले ही अख़बार में देखा था। वालवंती नदी में आधी रात को नौका उत्सव, साथ ही लावणी जैसे रंगारंग कार्यक्रम, इन सब ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। जिज्ञासावश मैंने गोवा पर्यटन से सारी जानकारी प्राप्त की और साखली जाने का सारा इंतजाम कर लिया. गोवा के मध्य रात्री के इस रूप के दर्शन करने के लिए अब मैं उत्सुक हो उठी। पणजी से करीब ९० मिनट का सफ़र तय कर मैं साखली पहुंची जहाँ इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। वहां मुझे इस शानदार उत्सव का आनंद उठाने का अवसर मिला। साथ ही त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली के बारे में जानकारी भी मिली।

त्रिपुरारी पूर्णिमा अर्थात् देव दीपावली उत्सव

त्रिपुरारी पूर्णिमा - गोवा

त्रिपुरासुर व देव दीपावली से सम्बंधित पौराणिक कथा

ताड़कासुर का पुतला वाल्वंती नदी - त्रिपुरारी पूर्णिमा गोवा
ताड़कासुर का पुतला वाल्वंती नदी

दीपावली अमावस के १५ दिनों बाद आने वाले पूर्णिमा के दिन, त्रिपुरारी पूर्णिमा उत्सव मनाया जाता है। चूँकि यह पूर्णिमा हिन्दू पंचांगानुसार कार्तिक मास में पड़ती है, इसलिए इसे कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। ताड़कासुर के तीन दानव पुत्र त्रिपुरारी के नाम से जाने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है की त्रिपुरारी ने सारे जहाँ में भयंकर आतंक फैला रखा था। यहाँ तक की उन्होंने देवों को भी परस्त कर दिया था। उन्होंने तीन नगरों अर्थात् पुर का निर्माण किया जिसे त्रिपुरा कहा गया।

त्रिपुरारी के बढ़ते आतंक को समाप्त करने में असमर्थ देवों ने भगवान् शिव से मदद मांगी। भगवान् शिव ने त्रिपुरांतक अर्थात् त्रिपुरासुर का अंत करने वाला, इस रूप में कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का अंत किया था। इस विजय से उत्साहित देवों ने इस दिन दीप प्रज्वलित कर उत्सव मनाने की घोषणा की। इसलिए इस उत्सव को देव दीपावली या देवों की दीपावली कहा जाता है।

शिव, पारवती और त्रिपुरासुर - वाल्वंती नदी के बीचो बीच, त्रिपुरारी पूर्णिमा
शिव, पारवती और त्रिपुरासुर – वाल्वंती नदी के बीचो बीच

वाराणसी में गंगा घाट पर आयोजित त्रिपुरारी पूर्णिमा उत्सव सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस दिन गंगा घाट की सीढ़ियों को लाखों दीयों से सजाया जाता है। लोग गंगा के पवित्र जल से स्नान अर्थात् कार्तिक स्नान करने दूर दूर से वाराणसी आते हैं। जी हाँ, वही वाराणसी जिसे शिव नगरी या शिव की नगरी माना जाता है।

गोवा का त्रिपुरारी पूर्णिमा उत्सव

बत्तख का रूप लिए नौका - त्रिपुरारी पूर्णिमा , गोवा
बत्तख का रूप लिए नौका – त्रिपुरारी पूर्णिमा , गोवा

भारतीय पर्वों की एक विशेषता है की इनको मनाने की पद्धति को जब बड़े परिवेश में देखा जाय तो उनमें काफी हद तक समानता दिखाई देती है। साथ ही स्थानीय स्तर पर उस जगह की वैशिष्ठता, उत्सवों को एक नया ही आयाम देती है। गोवा में भी त्रिपुरारी पूर्णिमा से सम्बंधित यही पौराणिक कथा प्रचलित है, परन्तु इसे गोवा के खास अंदाज में मनाया जाता है। त्रिपुरांतक के इस उत्सव पर नदी के घाटों को प्रकाशित किया जाता है। साथ ही गोवावासी अपनी नौकाओं को रोशनाई व दीयों से सजाकर नदी में तैराते हैं। पारंपरिक मिट्टी के दीयों का सांकेतिक रूप है ये नौकाएं !!

मध्यरात्रि नौका उत्सव – त्रिपुरारी पूर्णिमा

वाल्वंती नदी पे रंगारंग नौका विहार - गोवा
वाल्वंती नदी पे रंगारंग नौका विहार, गोवा

नौकाएं समुद्रतटीय क्षेत्रों का एक अभिन्न अंग है। गोवा जैसे उष्ण तटीय क्षेत्र में यह और भी महत्वपूर्ण साधन है। इसलिए यहाँ के उत्सवों और पर्वों में भी नौकाओं का विशेष समावेश रहता है। गोवा के कलाकारों की भी प्रेरणा स्त्रोत है ये नौकाएं! कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन विभिन्न रंगों व आकारों की नौकाएँ बना कर करते हैं। साखली गाँव के विट्ठल मंदिर के आवारे में स्थित ताल में सजाकर कर रखे गए इन्ही नौकाओं को देख मैं आनंदित हो उठी और उनकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकी। एक तरफ पौराणिक कथाओं पर आधारित झांकियों से नावों को सजाया गया था, जैसे शिवलिंग धारण किये हुए रावण, पालखी पर विराजमान साधू संत इत्यादि।

साथ ही युवाओं की समकालीन अभिरुचियों को दर्शाती हुई भी नावें सुसज्जित की गयीं थीं, जैसे गोवावासियों का फुटबाल प्रेम दर्शाती FC-गोवा से सुसज्जित नावें। जलसुन्दरी, गोवा के पारंपरिक घर जैसे अनेक वैशिष्टपूर्ण झांकियां बड़ी बड़ी नोकाओं के ऊपर लगायी हुईं थीं। गोवा के युवाओं द्वारा सुसज्जित कुल ४२ नोकाएं इस उत्सव में भाग ले रहीं थीं। इन युवाओं की कला, जोश और उत्साह से वातावरण रोमांचित हो उठा था।

सांस्कृतिक कार्यक्रम

लावणी नृत्य
लावणी नृत्य

विट्ठल मंदिर के पीछे, वालवंती नदी की तरफ जाती सीड़ियों पर जब हम पहुंचे, तब वहां आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हो चुका था। महाराष्ट्र से आयीं नर्तकियां लावणी न्रत्य प्रस्तुत कर रहीं थीं व गायक और वादक उनका साथ दे रहे थे. इस दुर्लभ द्रश्य को देख हम रोमांचित हो उठे क्योंकि आजकल हर तरफ नर्तक पहले से रिकॉर्ड किये गए संगीत पर न्रत्य करते हैं। इन सीधे साधे परन्तु जोशपूर्ण नर्तकियों के न्रत्य का लोग शांतिपूर्ण ढंग से आनंद उठा रहे थे।

घाट की सीडियों पर रंगबिरंगी रंगोली डालकर उन पर दीयों को सुन्दर ढंग से सजाया हुआ था। दोनों तरफ के घरों पर भी झूमर लटक रहे थे। झांकियों में रखे जाने वाले सजे हुए पुतले, छोटे छोटे मंदिरों में विराजमान अपने गड़ने का इंतजार कर रहे थे।

वाल्वंती के तट पर विट्ठल मंदिर - गोवा
वाल्वंती के तट पर विट्ठल मंदिर, गोवा

वालवंती नदी के बीचोंबीच खड़े त्रिपुरासुर के पुतले को देखने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ था। पानी में एक अस्थाई रंगमंच तैर रहा था जिस पर कलाकार शिव, पार्वती और त्रिपुरासुर के भेष में अभिनय करते हुए लोगों का मनोरंजन कर रहे थे। थोड़ी बहुत कोंकणी की जानकारी होने के कारण मुझे नाटक कुछ कुछ समझ में आ रहा था। दानव बने कलाकार की उन्मादी हंसी सब तरफ गूंज रही थी। नाटक के समाप्त होते ही त्रिपुरासुर का पुतला दहन हुआ और एक बार फिर राक्षस का अंत हुआ। आतिशबाजियों से पूरा आकाश प्रकाशमान हो गया। पूरा नजारा इतना देखने लायक था की कोंकणी की जानकारी ना रखने वाले भी इसका भरपूर आनंद उठा सकते हैं।

भगवन विट्ठल को पालखी में बिठा कर नदी तक लाया गया जहाँ उन्होंने भी कुछ समय इस समारोह का आनंद लिया और फिर वापिस मंदिर चले गए।

रंगबिरंगी नौकाएं

मनभावन नौकाएं - वाल्वंती नदी - त्रिपुरारी पूर्णिमा गोवा
मनभावन नौकाएं – वाल्वंती नदी, गोवा

वालवंती नदी पर सजी संवरी नौकाएं इस तरह तैर रहीं थीं मानो स्वर्ग की अप्सराएँ अपनी सुन्दरता बिखेरती बाग़ में विचरण कर रहीं हों। पूर्णिमा का चाँद और आकाश में उड़ाई गयी आकाश कंदीलें अपनी रौशनी बिखेर कर इनकी सुन्दरता को चार चाँद लगा रहीं थीं। पृष्ठभूमि में स्थित नारियल के झाड़ों का झुण्ड आतिशबाजी की रौशनी में जगमगा उठा था। रंगों और प्रकाश के इस प्रदर्शन से मैं मंत्रमुग्ध थी। आधी रात व चन्द्रमा की रौशनी ने मानो जादू सा कर दिया था। यही है गोवा की संस्कृति – भारत का एक अभिन्न अंग फिर भी अपनी एक अलग पहचान रखे हुए।

मध्य रात्रि नौका उत्सव देखने उमड़ा जन समूह
मध्य रात्रि नौका उत्सव देखने उमड़ा जन समूह

मैं जब भी यात्रा पर निकलती हूँ और नयी नयी जगहें देखती हूँ, उनका संस्मरण लगातार अपने दिमाग में रचती रहती हूँ।पर गोवा के वालवंती नदी पर मनाये जा रहे कार्तिक पूर्णिमा उत्सव को देख मैं अपने आप को भूल गयी। बेभान हो कर इस सुन्दर द्रश्य का आनंद ले रही थी।

रात के करीब साड़े बारह बजे, बड़ी अनिच्छा से हम घर वापसी के लिए निकले। एक तरफ ये दुःख है कि बहुत कम लोग इस उत्सव के बारे में जानते हैं, तो दूसरी तरफ ख़ुशी भी है कि इस कारण यह उत्सव अभी भी कितना पवित्र और बाहरी हस्तक्षेपों से अछूता है।

कार्तिक पूर्णिमा मनाने के अन्य कारण

मत्स्यकन्या की नौका - गोवा
मत्स्यकन्या की नौका
  • भगवान् विष्णु के मत्स्यावतार का जन्म इसी दिन हुआ था।
  • कार्तिकेय, भगवान् शिव और पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र का भी जन्म इसी दिन माना जाता है।
  • चार महीने का समय जब भगवान् विष्णु निद्रामग्न रहते हैं, चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। यह चातुर्मास, प्रबोधिनी एकादशी को समाप्त होता है, जो कार्तिक पूर्णिमा के चार दिन पहले पड़ता है। मेरे विचार से, वर्षा ऋतू के अंत में आने वाली यह पूर्णिमा, लोगों की गतिविधियों पर आई बाधाओं के दूर होने का संकेत है। इसलिए लोग बाहर निकल कर, शांत हुए नदी पर अपनी नौकाएं तैरा कर उत्सव मानते हैं।
  • प्रबोधिनी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा के बीच के चार दिनों में पुष्कर और पंढरपुर में मेलों का आयोजन किया जाता है।
  • तुलसी विवाह भी इन चार दिनों में किया जाता है।
  • गुरु नानक देवजी का जन्म भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही हुआ था।

गोवा के देव दीपावली उत्सव का एक विडियो

गोवा के साखली में देव दीपावली उत्सव का एक सुन्दर चित्रण इस विडियो में आपके लिए प्रस्तुत है।

अगर आप दीपावली से दो हफ़्तों बाद गोवा में हों तो साखली के इस उत्सव का आनंद जरूर लीजिये

गोवा के अन्य उत्सव

शिगमोत्सव
गोवा कार्निवल
सान्जाव
बोंदेरेम
चिखल काला

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

6 COMMENTS

  1. थोडे थोडे अंतराल से अपने देश के ऐतिहासिक स्थानो,विभिन्न सांस्कृतिक,सामाजिक गतिविधियों से सरल शब्दो मे रूबरु होना,हम सभी का सौभाग्य है। धन्यवाद।

    कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली,हमारे देश मे अलग अलग स्थानो पर विभिन्न प्रकार से मनाई जाती है। गोवा मे ईसे त्रिपूरारी पूर्णिमा के रूप मे मनाए जाने से जुडी पौराणिक कथा पढ कर ज्ञानर्जन हुआ। वैसे भी गोवा अपने सांस्कृतिक , धार्मिक आयोजनो के लिये प्रसिध्द है और उत्सव मनाने का अंदाजऔर भी निराला होता है।
    पंढरपूर मे भगवान विठ्ठल विराजते है,पर वालवंती नदि के तट पर विठ्ठल भगवान का मंदिर होना सुखद आश्चर्य है।

    त्रिपुरासुर वध और उत्तर-मध्य भारत मे दशहरे पर्व पर किये जाने वाले रावण वध मे समानता प्रतीत होती है। विभिन्न स्थानो पर मनाए जाने वाले भारतीय पर्वो को मनाने की पद्धतियों मे वास्तव मे समानताये है। कार्तिक पूर्णिमा पर वालवंती नदि के तट पर उपरोक्त वर्णित सुंदर आयोजन,वाराणसी में गंगा घाट पर प्रसिद्ध त्रिपुरारी उत्सव,वैसे ही नर्मदा और क्षिप्रा के तटो पर ईसी दिन नदि मे छोटे छोटे असंख्य दीपक प्रवाहित किये जाते है जो बहुत ही मनोहारी द्रश्य प्रस्तुत करते है। हाॅ, यह बात सही है कि ईससे होने वाले प्रदुषण के बारे मे भी सोचा जाना चाहीये ।
    सुंदर जानकारी के लिये अनेकानेक धन्यवाद।

    • धन्यवाद प्रदीप जी, आपके विचार हमारे साथ साँझा करने के लिए। भारत की संस्कृति की इतनी परतें हैं की आप सारा जीवन इन्हें समझाने में लगा दें तो भी शायद एक तो परतों या पहलुओं को ही समझ पाएंगे।

      जो हम देख, समाख रहे है, उसी को लिख रहे हैं और आप जैसे पाठक हमेशा ज्ञान वृद्धि करते हैं, प्रोत्साहित करते हैं और नयी नयी बैटन बताते हैं।

      गोवा मेरे लिए एक अचंभित करने वाला प्रदेश है। जब तक यहाँ नहीं रहते थे, यह सिर्फ एक पर्यटक स्थल था, लेकिन आज यह एक प्राचीन काल से बसी हुई धरती है।

      हमसे जुड़े रहिये, आपका आशीर्वाद हमारे लिए अनिवार्य है।

    • राधा जी, अवश्य आइये। आपको केवल देव दीपावली नहीं, नरकासुर वध भी देखने को मिलेगा।

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