जहां एक ओर कांची कामाक्षी मंदिर कांचीपुरम नगरी का केंद्र बिंदु है, वहीं कांचीपुरम के दो और पहलू हैं, शिव कांची तथा विष्णु कांची। अतः हिन्दू धर्म के इन तीनों प्रमुख पंथों के अनुयायियों के लिए कांचीपुरम नगरी का अपना पृथक महत्व है। अपने इस संस्मरण में मैं मुख्यतः विष्णु कांची के विषय में बताना चाहती हूँ। तो आईये मैं आपको विष्णु कांची का भ्रमण कराती हूँ जहां कई प्राचीन विष्णु मंदिर स्थित हैं। कितने? कदाचित यह कोई नहीं जानता। इसलिए मैं कांचीपुरम के विशालतम एवं सर्वाधिक प्रसिद्ध विष्णु मंदिर, वरदराज पेरूमल मंदिर से आरम्भ करती हूँ।
विष्णु कांची के मंदिर
विष्णु कांची का केंद्र बिंदु है वरदराज पेरूमल मंदिर, जिसे देवराज्यस्वामी मंदिर भी कहा जाता है। २३ एकड़ धरती पर फैला हुआ यह केवल एक मंदिर नहीं है, अपितु कई मंदिरों के भरा हुआ पूर्ण मंदिर परिसर है। मंदिरों के साथ साथ यहाँ कई स्तंभों युक्त मंडप, कक्ष एवं कुण्ड हैं। कांचीपुरम के इस मंदिर में कई महत्वपूर्ण तत्व हैं| अपने कांचीपुरम यात्रा में इन्हें देखने का अवश्य प्रयत्न करे।
वरदराज पेरूमल मंदिर के देखने योग्य तत्व
राज गोपुरम
आप सब इस तथ्य से सहमत होंगे कि किसी भी दक्षिण भारतीय मंदिर के जिस अंश पर सर्वप्रथम ध्यान केन्द्रित होता है, वह है उसका भव्य गोपुरम। ठीक उसी प्रकार वरदराज पेरूमल मंदिर में भी सर्वप्रथम मेरा ध्यान आकर्षित किया उसके ७ तल ऊंचे राज गोपुरम ने! गोपुरम के प्रवेश द्वार से भीतर जाते समय मन में राजसी भावना उत्पन्न होने लगती है।
मेरे मन में यह भावना अधिक हिलोरे मार रही थी क्योंकि मैं जिस दिन यहाँ आयी थी, उस दिन एक उत्सव मनाया जा रहा था। उत्सव मूर्तियों को मंदिर से बाहर लाया जा रहा था। सम्पूर्ण मंदिर मधुर संगीत से गुंजायमान हो रहा था। भक्ति तथा सेवाभाव से कई पुरुष भगवान् की पालकी को उठाये बाहर आ रहे थे। यह सब देखकर मुझे अत्यंत आनंद आ रहा था। इनके विषय में अधिक विवरण कुछ क्षण पश्चात दूंगी। आईये पहले मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं।
राज गोपुरम से भीतर प्रवेश करने के पश्चात आप ४ स्तंभों पर खड़े एक छोटे मंडप को देखेंगे। इसके समक्ष ही मंदिर है किन्तु यहाँ से केवल उसका ऊंचा ध्वजस्तंभ ही दिखाई देता है।
१०० स्तंभों की अग्रशाला एवं उस पर पत्थर की साँकल
राज गोपुरम के बाईं ओर वरदराज पेरूमल मंदिर की प्रसिद्ध १०० स्तंभों की अग्रशाला है। १००० स्तंभों का मंदिर पिछले दिन ही देखने के पश्चात में सोचने लगी कि इस १०० स्तंभों के अग्रशाला में विशेष क्या होगा! किन्तु वहां मेरे लिए एक अत्यंत ही अद्भुत आश्चर्य प्रतीक्षा कर रहा था। आप यहाँ पहुँच कर जब इन स्तंभों को देखेंगे, आप स्वयं ही मेरा आशय समझ जायेंगे। एक एक स्तंभ आपको अपनी कथा स्वयं ही सुनायेगा।
१०० स्तंभों की अग्रशाला वास्तव में एक विवाह स्थल है। इसके मध्य में ४ स्तंभों पर एक विवाह मंडप बना हुआ है। बचे ९६ स्तंभ, ८ श्रंखलाओं एवं १२ कतारों में खड़े हैं। बीच के दुहरे स्तंभों पर अश्व आरोहित एक सेना उत्कीर्णित है। बाहरी स्तंभों पर मंगल चिन्ह अंकित किये गए हैं।
अग्रशाला के बाहरी सतह पर शिला काटकर बनायी साँकल लटक रही थी। किसी शिला को काटकर इस प्रकार बनायी गयी साँकल एक अद्भुत शिल्पकला है। किन्तु इस उत्कृष्ट कलाकृति का यहाँ क्या प्रयोजन है, यह स्पष्ट नहीं हो पाया।
सुरक्षा की दृष्टी से इस मंडप की बाहरी परिधि को लोहे की जाली से घेरा गया है। दुर्भाग्यवश यह जाली इस मंडप की अधिकतर सुन्दरता को समाप्त कर रही है। यह अग्रशाला दर्शनार्थ प्रातः ९ बजे खुलती है तथा प्रवेश हेतु ५ रुपयों का शुल्क लगता है।
देखिये कांचीपुरम के वरदराज पेरूमल मंदिर के १०० स्तंभों के अग्रशाला का विडियो
अनंतसरस – कुण्ड में जलमग्न मंदिर
कांचीपुरम के वरदराज पेरूमल मंदिर के १०० स्तंभों के अग्रशाला के पृष्ठभाग में एक विशाल जलकुण्ड है। कुण्ड के मध्य में एक छोटा मंदिर है जिस तक पहुँचने के लिए इसके चारों ओर सीड़ियाँ बनी हुई हैं। कुण्ड के चारों ओर विष्णु के अनेक रूपों को समर्पित कई मंदिर हैं जिनमें इसके एक कोने में स्थित मंदिर प्रमुख है।
इस कुण्ड को अनंतसरस कहा जाता है। इस कुण्ड की विशेषता है इसके जल के भीतर लुप्त एक मंदिर। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की मूल विष्णु प्रतिमा अंजीर की लकड़ी से बनी हुई थी। कालान्तर में इस प्रतिमा को हटाकर धातुई प्रतिमा की स्थापना की गयी तथा लकड़ी की प्रतिमा को चांदी के बक्से में बंद कर कुण्ड के जल में विसर्जित किया गया था। प्रत्येक ४० वर्षों के उपरांत इस लकड़ी की प्रतिमा को निकाला जाता है तथा उसका रखरखाव कर उसे पूजा जाता है। मुझे बताया गया कि उस समय यहाँ बड़ा उत्सव मनाया जाता है। जुलाई २०१९ में इसे एक बार फिर निकाला जाएगा।
मुख्य मंदिर के दर्शन के पश्चात मैंने कुण्ड के चारों ओर पदयात्रा आरम्भ की एवं चारों ओर स्थित छोटे मंदिरों में दर्शन किये। ये मंदिर वेणुगोपाल, वराह, रंगनाथ, नरसिम्हा जैसे विष्णु अवतारों को समर्पित हैं। इसके एक ओर १०० स्तंभों की अग्रशाला है। एक वृक्ष के नीचे हल्दी छिड़की हुई कई नागा शिलाएं रखी हुई थीं।
उग्र नरसिंह मंदिर
ध्वजस्तंभ को पार कर मैंने एक और गोपुरम के भीतर प्रवेश किया। मेरे समक्ष एक छोटा सा मंदिर था। सामने के प्रांगण में स्थित आकर्षक जुड़वाँ स्तंभों ने मुझे अत्यंत मोहित किया। उन्हें देख मैं सोच में पड़ गयी कि क्या यह मुख्य मंदिर है? मुझे विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि अत्यंत सुन्दर होते हुए भी यह मेरी कल्पना से अपेक्षाकृत छोटा था। मेरा विश्वास सही था। यह मुख्य मंदिर नहीं था, बल्कि विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित मंदिर था। मंदिर में नरसिंह की मूल प्रतिमा तथा उनके चारों ओर उत्सव मूर्तियाँ थीं।
पेरुन्देवी थेयर मंदिर
नरसिंह मंदिर के दाहिनी ओर एक बड़ा मंदिर है जिस के भीतर पहुँचने के लिए कुछ सीड़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। सीड़ियाँ चढ़कर मैंने एक अत्यंत सुन्दर मंदिर देखा। यह मंदिर पेरुन्देवी को समर्पित है। पेरुन्देवी विष्णु की पत्नी लक्ष्मी का अवतार है। इसके भीतर गर्भगृह छोटा है किन्तु सामने अनेक स्तंभों से युक्त बहुत बड़ी अग्रशाला है।
अग्रशाला के मध्य में एक मंडप है। सामने के केवल चार स्तंभ नीले रंग में रंगे हैं। इन्हें देख आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्राचीन काल में जब मंदिर को रंगों एवं सजावटों से सजाया जाता था तब इसकी छटा कितनी अद्भुत रही होगी।
इस मंदिर के चारों ओर मैंने चार स्तंभों पर टिके, कुछ छोटे मंडप देखे। मंदिर के चारों ओर स्थित ये मंडप विष्णु कांची के नागरिकों की चौपाल होती थी। मैं यहाँ बैठकर कल्पना के विश्व में खो गयी और देखने लगी कि किस प्रकार दिन का आरम्भ करने से पूर्व अथवा पूर्ण दिवस काम करने के पश्चात लोग यहाँ बठकर चर्चा करते रहे होंगे।
वरदराज पेरूमल का मुख्य मंदिर
लाल व श्वेत पट्टियों से सजे कुछ चबूतरों को पार करते हुए मैं एक ऊंचे मंच पर निर्मित छोटे से द्वार तक पहुँची। द्वार को देख ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह पिछवाड़े का प्रवेश द्वार हो। मैंने अपने आसपास देखा। तब मुझे ज्ञात हुआ कि यह मंदिर का इकलौता प्रवेश द्वार है।
ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर हाथी के आकार की एक पहाड़ी पर निर्मित है जिसे हस्तगिरी कहते हैं। मंदिर तथा आसपास देखकर तो ऐसा प्रतीत नहीं होता। गर्भगृह की असामान्य ऊंचाई अवश्य आश्चर्य में डाल देती है।
द्वार से भीतर जाकर सामने कई सुनहरी सीड़ियाँ दिखाई दीं। जी हाँ, ये उज्जवल चमचमाती धातुई सीड़ियाँ थीं। कदाचित सामान्य सीड़ियों पर उत्कीर्णित धातुई आवरण चढ़ाया गया हो। मध्य में उभरा हुआ कमल तथा इसके आसपास उभरे हुए शुण्डाकार त्रिकोण भरे हुए थे। ये सीड़ियाँ देखने में जितनी सुन्दर थीं, चढ़ने में उतनी ही कष्टदायक थीं। शुण्डाकार त्रिकोण आपके पैरों के तलवों को चुभते हैं। आप शीघ्र अतिशीघ्र चढ़कर मंदिर तक पहुँचना चाहेंगे। भगवान् की दया से उस दिन अधिक दर्शनार्थी नहीं थे। अतः बिना रुके मैं शीघ्र सीड़ियाँ चढ़ गयी।
भित्तिचित्र
ऊपर चढ़ते ही मैंने स्वयं को रंगबिरंगी भित्तिचित्रों से ढंकी भित्तियों से घिरा हुआ पाया। चटकीले रंगों में रंगी ये भित्तियाँ विष्णु के विभिन्न अवतारों की गाथा कह रहे थी। विष्णु कहीं शेषशैय्या पर लेटे थे तो कहीं शंख, चक्र, गदा व पद्म धारण किये चार भुजाधारी विष्णु रूप में खड़े थे। माता लक्ष्मी भी भव्य रूप धरे समीप ही होती थीं। उनके आसपास उनके कई भक्तगण भी चित्रित किये गए हैं। अर्थात् उनके भक्तगणों को भी इन भित्तिचित्रों में पर्याप्त स्थान प्रदान किया गया है।
अधिकतर भित्तिचित्रों को रखरखाव की अत्यंत आवश्यकता है। जगह जगह रंग उखड़ रहे थे। मुझे अचरज हो रहा था कि इस प्रकार के धनाड्य मंदिर भी इन अनमोल भित्तिचित्रों की देखरेख को अनदेखा करते हैं।
विष्णु की विशाल प्रतिमा
भगवान् विष्णु के दर्शन करने के लिए मैंने जैसे ही मंदिर के भीतर प्रवेश किया, उनकी विशाल देदीप्यमान प्रतिमा देख मेरी आँखे फटी की फटी रह गयीं। मेरे समक्ष चार भुजाधारी विष्णु की भव्य प्रतिमा थी। उनके समक्ष खड़ी मैं स्वयं को छोटा व अस्तित्वहीन अनुभव कर रही थी। सदियों की आराधना से संचित उर्जा का आप स्पष्ट अनुभव कर सकते हैं। भक्तगण यहाँ आकर उन्हें तुलसी हार अर्पण करते हैं।
भगवान् विष्णु यहाँ देवराजस्वामी के रूप में विराजमान हैं।
छिपकली
गर्भगृह से बाहर आकर मैं वरदराज पेरूमल मंदिर की प्रसिद्ध छिपकलियों को देखने पहुँची। २ रुपये का टिकट खरीदकर मैं भी कतार में खड़ी हो गयी। गर्भगृह के पृष्ठभाग की छत पर कई विशाल सुनहरी छिपकलियाँ उत्कीर्णित थीं। कतार के पीछे पीछे मैं भी एक सीड़ी पर चढ़ी तथा सौभाग्य प्राप्त करने के लिए इन छिपकलियों को छूकर नीचे उतर गयी। यहाँ भी चारों ओर चटकीले रंगबिरंगे भित्तिचित्र हैं।
छिपकलियों की कथा यहाँ भी है:- कर्नाटक का इक्केरी मंदिर
गोपुरम
मैंने मंदिर के आसपास की संरचनाओं का अवलोकन आरम्भ किया। मंदिर के पीछे मुझे एक ऊंचा किन्तु अपसर्जित सा गोपुरम दिखाई दिया। वास्तव में यह दो प्रमुख गोपुरम में से एक है तथा अपेक्षाकृत अधिक ऊंचा है। किन्तु यह नगर के अभिमुख नहीं है। इसके नीचे एक छोटा सा द्वार है। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किंचित ही नागरिक इसका प्रयोग करते होंगे।
मंदिर के उत्सव
मैंने अपनी कांचीपुरम की यह यात्रा सितम्बर मास में कृष्ण जन्माष्टमी के आसपास की थी। यह प्रत्येक विष्णु मंदिर में उत्सव का समय होता है। कांचीपुरम के इस वरदराज पेरूमल मंदिर में भी उत्सव का वातावरण था। मैंने देखा कि मंदिर से उत्सव मूर्तियों को पालकी में बिठाकर बाहर लाया गया तथा उन्हें नगर का भ्रमण कराया गया। भ्रमण के पश्चात उन्हें वापिस मंदिर में रखा गया। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे भगवान् मंदिर से बाहर आकर देख रहे थे कि उनके विष्णु कांची में सब सुचारू रूप से चल रहा है।
विष्णु की पालकी को लकड़ी के लम्बे कुंदों पर रखकर कई पुरुषों ने उसे कन्धों पर उठा लिया था।पालकी में शेषनाग के फन के नीचे विष्णु की अत्यंत सुन्दर उत्सव मूर्ति रखी हुई थी। वरदराज पेरूमल मंदिर की प्रसिद्ध, लाल व श्वेत रंग की गोल छत्री भगवान् को छाया प्रदान कर रही थी।
उत्सव ने शांत मंदिर परिसर में भरपूर हलचल एवं उत्तेजना उत्पन्न की हुई थी। मैंने लगभग ३ घंटे मंदिर परिसर में व्यतीत किये तथा उत्सव का भरपूर आनंद उठाया। इसके पश्चात मैं विष्णु कांची के अन्य आकर्षणों को देखने चल पड़ी।
विष्णु कांची के मंदिर
वरदराज पेरूमल मंदिर की सीमा के बाहर विष्णु कांची के दो प्रमुख आकर्षण हैं। घरों के भीतर निर्मित छोटे छोटे मंदिर तथा कांजीवरम साड़ियों की दुकानें।
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अपने फोन पर गूगल नक्शा लगाकर सड़क पर चलते हुए मैं बाकी मंदिरों को ढूँढने लगी। कई ऑटो चालकों ने मुझे सवारी सुविधा प्रदान करने की चेष्टा की। किन्तु मुझ जैसी तमिल भाषा ना जानने वाली को जो दाम वे बताने लगे, उसे सुनकर मुझे हंसी आ गयी। इसलिए मैंने पैदल चलाना ही उचित समझा। अतः विष्णु कांची को जानने के लिए मैं पैदल ही निकल पड़ी।
अधिकतर मंदिर आधे से एक किलोमीटर की दूरी पर थे। आप सोच रहे होंगे कि इतना चलाना तो आसान है! जी नहीं! आप यहाँ आकर चलाना आरम्भ करेंगे तब जान जायेंगे कि मैंने ऐसा क्यों कहा! सूर्य भगवान् को इस पवित्र नगरी से कुछ अधिक ही प्रेम है जो इतनी शक्ति से अपनी उर्जा इस पर बरसाता है। कुछ ही मिनटों में हम थक जाते हैं, गला सूख जाता है।
कांची के अन्य विष्णु मंदिर
कांची के अन्य विष्णु मंदिर जहां के मैंने दर्शन किये, वे हैं:
पुण्यकोटीश्वर कोइल या मंदिर
यह शिव मंदिर वरदराज पेरूमल मंदिर के समीप ही स्थित है। इसकी भित्तियों के ऊपर बने नंदी से आप इसे आसानी से पहचान जायेंगे। मंदिर के एक ओर स्थित कुण्ड अत्यंत बुरी अवस्था में था।
पुन्यकोटी मंदिर एक अनोखा मंदिर है। इसका गर्भगृह चारों ओर से खाई से घिरा हुआ है। यहाँ शिलाओं से बनी विष्णु एवं लक्ष्मी की प्रतिमाएं हैं। कहा जाता है कि यहाँ कोटि ऋषियों ने आराधना की थी। ऐसा भी माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी ने यहाँ भगवान् शिव की आराधना की थी। आदि शंकराचार्य को भी इस मंदिर से जुड़ा माना जाता है। कदाचित उन्होंने यहाँ भेंट की थी अथवा उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की थी।
व्यासेश्वर मंदिर
इस मंदिर को ढूँढने में मुझे सर्वाधिक समय लगा। मैं चले जा रही थी, चले ही जा रही थी। रास्ते में किसी से भी इस मंदिर की जानकारी नहीं मिल रही थी। कहते है ना, परिश्रम का फल अवश्य प्राप्त होता है। मुझे विष्णु कांची की पिछली गलियाँ देखने मिलीं। एक मंदिर के चारों ओर छोटे छोटे घर बने हुए थे। अपने परिवार एवं पशुधन के साथ वे इस छोटी सी दुनिया में आनंद का जीवन व्यतीत करते प्रतीत हो रहे थे।
मुख्य सड़क से वरदराज पेरूमल मंदिर की ओर जाते मार्ग से कुछ सौ मीटर की दूरी पर बसा यह एक भिन्न विश्व था। लोग यहाँ बाहरी विश्व से अनभिज्ञ, आधुनिकता से परे, अब भी प्राचीन सभ्यता में जी रहे थे। इन छोटी छोटी गलियों में घूमने में मुझे अत्यंत आनंद आ रहा था। कोई समस्या थी तो वह थी, तपते हुए सूर्य से बिखरती चिलचिलाती धूप।
इस मंदिर में अंततः मुझे एक ऑटो मिला। ऑटो चालक मुझे विष्णु कांची के बचे मंदिरों के दर्शन कराने के लिए सहमत हो गया।
अंततः मुझे व्यासेस्वरा मंदिर दिखाई दिया। जलकुण्ड के समीप, एक विस्तृत किन्तु त्यक्त, यह एक छोटा एवं अत्यंत प्राचीन पाषाणी मंदिर था। इसके गोलाकार शिखर पर व्यास मुनि की एक प्रतिमा थी। यह सहसा पहचान में नहीं आती। मुझे इसे ढूँढने में वहां के पुजारी की सहायता की आवश्यकता पड़ी।
एक दंतकथा है जिसमें एक श्राप के कारण व्यास के हाथों को बांधने का उल्लेख है। श्राप से मुक्ती पाने के पश्चात ही उनके हस्त मुक्त हुए थे। यहाँ इस मंदिर के शिखर में उनके मुक्त हस्त के साथ प्रतिमा है। यह कथाएं हमें ऐसे स्थानों एवं वहां की विशेषताओं को स्मरण रखने में सहायता करती हैं। व्यासेस्वरा मंदिर एक शिव मंदिर है।
व्यासेस्वरा मंदिर के समीप ही, मंदिर के जलकुण्ड के उस पार, वसिष्ठेश्वर मंदिर है।
अष्टभुज पेरूमल मंदिर
अष्टभुज पेरूमल मंदिर के विषय में यहाँ सब जानते हैं। आप किसी से भी पता पूछ कर यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं। इस मंदिर का गोपुरम ३ तल का था। दाहिनी ओर स्थित कुण्ड सूखा हुआ था। इसके प्रवेश द्वार पर रंगीन नक्काशी थी। मुझे इस पर कई कमल पुष्प भी उत्कीर्णित दिखाई दिए।
इस प्रवेश द्वार से भीतर जाते ही एक बंद द्वार दृष्टिगोचर हुआ। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मेरी आशाओं पर पानी फिर गया। मुझे दुखी देख एक भले मानुस ने मेरी सहायता की एवं दूसरी ओर के द्वार की ओर इंगित किया। वहां पहुँच कर देखा कि वह द्वार खुला था।
अष्टभुज का अर्थ है, जिसकी आठ भुजाएं हैं। पेरूमल अर्थात् विष्णु की इस मूर्ति में आठ भुजाएं हैं। गले में शालिग्राम की माला के लिए भी यह प्रतिमा प्रसिद्ध है।
महालक्ष्मी यहाँ पुष्पकवल्ली थेयर के रूप में स्थापित है।
यथोथकारी पेरूमल मंदिर
यह कांचीपुरम के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। अष्टभुज पेरूमल मंदिर के समक्ष, मार्ग के उस पार स्थित यह एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर के चारों ओर नगर की गजबजाहट है। ऐसा प्रतीत होता है कि कांचीपुरम नगरी इस मंदिर के चारों ओर तथा यहीं से विसकित हुई है।
मैंने जब सितम्बर मास में यहाँ की यात्रा की थी, तब इस मंदिर में प्रमुख नवीनीकरण का कार्य आरम्भ था। इसलिए मैं पूर्णतः इस मंदिर के दर्शन नहीं कर पायी थी। मुझे बताया गया कि यहाँ रंगनाथ की प्रतिमा संगमरमर के चूने से निर्मित है।
कांचीपुरम के अधिकाँश मंदिर, कांची में पल्लवों के शासन के समय निर्मित किये गए हैं। तत्पश्चात इसके संवर्धन एवं विस्तारीकरण के कार्य में कांची के सर्व शासकों का योगदान था। उत्सवों के समय देवी को जिस भव्य हार से अलंकृत किया जाता है वह हार अंग्रेज रोबर्ट क्लाइव ने वरदराज पेरूमल मंदिर को उपहार स्वरूप दिया था।
विष्णु कांची की यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए कुछ और जानकारियाँ:
- विष्णु कांची को चिन्ना कांची अर्थात् छोटा कांची भी कहा जाता है।
- वरदराज पेरूमल मंदिर विष्णु कांची का सर्वाधिक विशाल मंदिर है।
- विष्णु कांची में कई शिव मंदिर भी हैं, जैसे पुन्यकोटी मंदिर एवं व्यास मंदिर।
- वरदराज पेरूमल मंदिर प्रातः ६ बजे से दोपहर १२:३० बजे तक एवं संध्या ३:३० बजे से रात्री ८:३० बजे तक खुला रहता है।
- इस विशाल मंदिर के अवलोकन में लगभग एक घंटे का समय लगता है। यदि आप इसे विस्तारपूर्वक देखना चाहे तो दो घंटे भी लग सकते हैं।
- यदि आप प्रमुख मंदिर के साथ, वे सब मंदिर भी देखना चाहते हैं जिनका उल्लेख मैंने यहाँ किया है तो आप विष्णु कांची भ्रमण के लिए कम से कम आधे दिन का प्रावधान रखें।
- मुख्य मंदिर तक तो आप स्थानीय बस सेवा ले सकते हैं। छोटे मंदिरों के दर्शन के लिए या तो ऑटो से जाएँ अथवा वहां तक पदयात्रा करें। इन मंदिरों के बीच दूरी बहुत कम है किन्तु सूर्य की गर्मी पदयात्रा को कष्टकर बना सकती है।
मंदिर के उत्सवों का विवरण एवं समयसूची आप इस वेबस्थल पर देख सकते हैं।
शुभयात्रा!
विष्णु कांची का वरदराज पेरूमल मंदिर का आपने जो वर्णन किया वही इतना सुंदर है तो वहां देखने पर वह कितना सुंदर होगा तथा 100 स्तम्भो वाला वीडियो देखकर ही मन प्रफुल्लित हो जाता है व उन कलाकारों के प्रति नतमस्तक हो जाते है अगर साक्षात देखने पर तो न जाने क्या होगा …. खेर एक और अच्छी जगह की सैर करवाने पर धन्यवाद ????????????????
संजय जी – आशा करती हूँ आपको कांचीपुरम जाने का शीघ्र ही अवसर मिले, बहुत आनंद आएगा.
खरं खूप छान