गोवा में मानसून के मौसम में जब वर्षा होती है, तब वर्षा के गीत सहज ही अधरों पर आ जाते हैं। गोवा में वर्षा ऋतू में रिमझिम वर्षा नहीं, अपितु झमाझम वर्षा होती है, वह भी चार मास से अधिक समयावधि के लिए। तात्पर्य यह है कि मानसून के मौसम में गोवा में देश के अधिकतर राज्यों से अपेक्षाकृत अधिक वर्षा होती है। गोवा के चौमासी वर्षा को देख मुझे अनायास ही संतों का चातुर्मास स्मरण हो आता है, जब भ्रमण करते साधु-संत वर्षा ऋतु में चार मास की अवधि के लिए किसी एक स्थान पर ठहर जाते थे तथा सत्संग करते थे। अनेक अवसरों पर कदाचित उन्हें गुफाओं में भी विश्राम करना पड़ा होगा, जैसे अजंता तथा बराबर गुफाएं। गोवा में कभी कभी वर्षा का उन्माद इतना अधिक होता है कि उसके अतिरिक्त अन्य कुछ सुनाई नहीं पड़ता है। हम बाहरी विश्व से लगभग पृथक से होने लगते हैं। उस समय केवल हम होते हैं तथा हमारे हृदय से उमड़कर अधरों पर आते वर्षा के गीत होते हैं। हृदय उल्साह से भर जाता है तथा हम अनायास ही वर्षा के गीत गुनगुनाने लगते हैं।
ऐसे ही वर्षा के मनभावन गीतों एवं उसके उल्हास व उन्माद को कुछ हिन्दी चित्रपटों ने सुन्दर शैली में प्रदर्शित किया है। उनमें प्रदर्शित भावनाएं हमारे हृदय को छूने में सफल हो जाती हैं। बालपन में वर्षा के जल में छप-छप कूदने से लेकर प्रेम से ओतप्रोत प्रेमी-प्रेमिकाओं की एक दूसरे से मिलने की तड़प तक, अथवा वर्षा की प्रतीक्षा करते किसानों की व्यथा का वर्षा की बूंदे देखते ही उल्हास में परिवर्तित होना, इन सभी भावनाओं का बॉलीवुड के गीतों में सुदर चित्रण किया गया है।
बॉलीवुड के विश्व से चुने हुए कुछ वर्षा गीत
वर्षों से जिन वर्षा गीतों का मैंने आनंद लिया, उन्हें आपके साथ बाँटना चाहती हूँ। आशा है आपको भी ये गीत आनंद विभोर कर देंगे।
इक लड़की भीगी भागी – चलती का नाम गाडी (१९५८)
किशोर कुमार द्वारा गाये गए इस गीत में उच्छृंखलता भरी हुई है। यद्यपि इस गीत में वर्षा का दृश्य नहीं है, तथापि मधुबाला, जो इस गीत की प्रेरणा है, वो वर्षा के जल में भीगी हुई है तथा सुनसान रात में अकेली अपनी गाड़ी की मरम्मत कराने वहां पहुँचती है। इस गीत में नायक, नायिका मधुबाला की परिस्थिति का अत्यंत मस्ती भरी शैली में उल्लेख कर रहा है। अप्रतिम सौंदर्य से युक्त मधुबाला के भीगे मुखड़े की झलकों के मध्य किशोर कुमार के चंचल हाव-भाव इस गीत को अधिक मनोहर बना देते हैं। किशोर कुमार, जो एक गाड़ी मरम्मत करने वाले मिस्त्री हैं, वे औजारों द्वारा संगीत उत्पन्न करते हैं। इस गीत को दिग्गज पार्श्वगायक किशोर कुमार ने गाया है तथा इसे उन्ही पर फिल्माया भी गया है। आप आधुनिक पार्श्वसंगीत के महान संगीतकार आर. डी. बर्मन के संगीत को सराहे बिना नहीं रह पायेंगे।
डम डम डिगा डिगा – छलिया (१९६०)
वर्षा ऋतु के आनंद का उत्सव मनाते इस गीत को कल्याणजी आनंदजी से सुरों में पिरोया है तथा इसे स्वर प्रदान किया है मुकेश ने। वर्षा के आते ही स्त्रियाँ सूखे वस्त्रों को रस्सी पर से उतार रही है, लोग वर्षा से बचने के लिए यहाँ-वहां भाग रहे हैं तथा छतरियां खोल रहे हैं, वहीं चित्रपट के नायक राज कपूर अपनी लोकप्रिय शैली में कूदते-फांदते गीत गा रहे हैं। इस श्वेत-श्याम चित्रपट में वर्षा की प्रथम फुहार का उल्हास दर्शाया गया है।
ओ सजना बरखा बहार आयी – परख (१९६०)
यह गीत आपको वास्तव में वर्षा ऋतु के दिवसों का स्मरण करा देगा। इस गीत में नायिका साधना छज्जे पर खड़े होकर वर्षा की फुहारों को निहार रही है एवं अपने प्रियतम की स्मृतियों में खो गयी है। वो उससे कह रही है कि वर्षा ऋतु आ गयी है तथा उसके हृदय में प्रेम का संचार कर रही है। गीत के इस चित्रीकरण में पत्तों, धरती, छत आदि पर बरसती फुहारों द्वारा वर्षा का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया है।
सलिल चौधरी के संगीत पर लता मंगेशकर ने इस गीत को अपने अद्भुत स्वर से सजाया है।
जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात – (१९६०)
इस चित्रीकरण में केवल दो दृश्य हैं तथा वर्षा का एक भी दृश्य नहीं है। इसके पश्चात भी इस काव्य के प्रत्येक शब्द को इतनी सुन्दरता से रचा गया है कि नेत्रों के समक्ष सम्पूर्ण दृश्य सजीव हो उठता है। वर्षा की एक रात्रि के समय नायक का नायिका से भेंट होना, वर्षा की बूंदों का नायिका के मुखड़े पर सरकना, बिजली गिरते ही नायिका का नायक से टकराना तथा लजाना, ऐसे अनेक सुंदर क्षणों का इस गीत में उल्लेख है। नायक एवं नायिका के मध्य केवल रेडियो के माध्यम से भावनाओं का प्रवाह हो रहा है। मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाये गए गीत को भारत भूषण पर फिल्माया गया है। इस गीत को पूर्ण न्याय किया है नायिका मधुबाला की अप्रतिम भाव भंगिमाओं एवं अभिव्यक्तियों ने, जो वर्षा की उस रात्रि का दृश्य हमारे समक्ष अक्षरशः सजीव कर देते हैं।
लाखों का सावन जाए – रोटी, कपड़ा और मकान (१९७४)
इस गीत में युगल जोड़ों का मर्म प्रस्तुत किया है जिन्हें वर्षा ऋतु के आनंदित वातावरण में विरह की स्थिति का सामना करना पड़ता है। इस गीत में विरह का मर्म दर्शाया गया है। यूँ तो लता मंगेशकर द्वारा सुमधुर स्वर में गाये गए इस गीत को नायिका जीनत अमान ने ठेठ देहाती शैली में प्रस्तुत किया है, किन्तु मुझे इसका ‘अम्बर पे रचा स्वयंवर’, यह भाग अत्यंत प्रिय है।
रिम झिम गिरे सावन – मंजिल (१९७९)
इस गीत में अमिताभ बच्चन एवं मौसमी चटर्जी मुंबई की सडकों एवं समुद्र तटों पर वर्षा का आनंद लेते दिख रहे हैं। इसमें मुंबई के लगभग ४० वर्षों पूर्व का दृश्य दर्शाया गया है जब मुंबई के लोग वर्षा का आनंद उठा सकते थे। चित्रपट में इस गीत के दो संस्करण हैं। एक संस्करण केवल किशोर कुमार के स्वर में है जिसे घर के भीतर फिल्माया गया है जबकि दूसरा संस्करण लता मंगेशकर के स्वर में है जिसमें मुंबई, वहां की वर्षा एवं वर्षा की फुहारों में भीगते प्रेमी जोड़े को दिखाया गया है।
रिम झिम गिरे सावन, यह गीत मुझे ऐसा आभास करता है मानों वर्षा की फुहारों में मेरा तन-मन भीग गया है। मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व वर्षा से एकाकार हो गया है। आर. डी. बर्मन का संगीत इस उल्हास को अनेक गुना बढ़ा देता है।
मेघा रे मेघा रे – प्यासा सावन (१९८१)
इस गीत में मेघों से कहा जा रहा है कि वे परदेश ना जाएँ, अपितु वहीं बरसें तथा उन्हें प्रेम की फुहारों में भिगो दे। उनके अनुनय को स्वीकारते हुए मेघ वहीं बरस जाते हैं। याचना की भावना उल्हास में परिवर्तित हो जाती है। वर्षा होते ही हृदय मोर के समान नाचने लगता है। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत पर लता मंगेशकर एवं सुरेश वाडकर के सुमधुर स्वरों ने इस गीत को नई ऊँचाइयों तक पहुंचा दिया है।
आज रपट जाएँ तो – नमक हलाल (१९८२)
यह सम्पूर्ण गीत अमिताभ बच्चन एवं स्मिता पाटिल पर फिल्माया गया है जो झमझम वर्षा में भीगते हुए नाच रहे हैं। यद्यपि गीत के मुखड़े में वर्षा उल्लेख नहीं है, तथापि इसके अंतरे में वर्षा का वर्णन किया है।
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी – चांदनी (१९८९)
यह एक ऐसा वर्षा गीत है जो उदासी से भरा हुआ है। इसमें वर्षा से सम्बंधित कुछ भावुक स्मृतियों को झकझोरा गया है। ऐसी मधुर स्मृतियाँ जिन्हें चाह कर भी पुनः जिया नहीं जा सकता। इस गीत में नायक के जीवन के अतीत एवं वर्तमान की तुलना की गयी है। यह गीत नायक का अतीत से वर्तमान की ओर यात्रा का संकेत देता है। मैं जब भी यह गीत सुनती हूँ, किंचित उदास हो जाती हूँ। किन्तु मैं यह नहीं जान पाती कि इस गीत का कौन सा तत्व मुझे उदास करता है।
इस गीत को संगीतबद्ध किया है शिव-हरी ने तथा इसे स्वर प्रदान किया है, सुरेश वाडकर ने।
सुन सुन सुन बरसात की धुन – सर (१९९३)
इस गीत में नायक नसीरुद्दीन शाह एक शिक्षक हैं जो अपने विद्यार्थियों से वर्षा के संगीत को सुनने के लिए कह रहे हैं। मुझे यह गीत अत्यंत भाता है तथा प्रासंगिक प्रतीत होता है क्योंकि हम सब ने आज के व्यस्त दिनचर्या में वर्षा एवं उसके संगीत को सुनना तथा उसका आनंद लेना लगभग समाप्त कर दिया है।
रिम झिम रुन झुम – १९४२ अ लव स्टोरी (१९९४)
१९४२ के काल को प्रदर्शित करते, ‘१९४२ अ लव स्टोरी’ चित्रपट का यह गीत एक सादा तथा अत्यंत मधुर गीत है जो पावन प्रेम को दर्शाता है। ऐसा प्रेम जो अब के चित्रपटों में क्वचित ही दृष्टिगोचर होता है। इसे अत्यंत मधुर बनाने का पूर्ण श्रेय कुमार सानु एवं कविता कृष्णमूर्ति को जाता है जिन्होंने बर्मन दा के संगीत को पूर्ण न्याय किया है।
टिप टिप बरसा पानी – मोहरा (१९९४)
यद्यपि मुझे स्वयं यह गीत अधिक प्रिय नहीं है तथापि वर्षा गीत का उल्लेख करते ही अधिकाँश लोगों को इसी गीत का स्मरण होता है। अतः उन सभी के लिए अलका याग्निक एवं उदित नारायण द्वारा गाया गया यह गीत प्रस्तुत है।
कोई लड़की है – दिल तो पागल है (१९९७)
इस गीत को सुनते ही हम सब के भीतर की बालसुलभ चंचलता हिलोरे मारने लगती है जो वर्षा के जल में क्रीड़ा करने को लालायित है। हम सब में एक नन्हा बालक रहता है जो वर्षा में भीगने को सदा उत्सुक रहता है। जल से भरे पोखरों में नाचना, कूदना तथा खेलना चाहता है। इससे मुझे गोवा में वर्षा ऋतु में मनाये जाने वाले उत्सव, चिखल कालो का स्मरण होता है। इस गीत के बोलों में बालपन के उसी उल्हास का उल्लेख मिलता है। इसका चित्रण भी एक बालगीत के समान उतना ही सादगी एवं चंचलता से भरा हुआ है। यहाँ तक कि इस नृत्य में पार्श्व नर्तक भी बच्चें ही हैं। उत्तम सिंग के संगीत पर इस गीत को लता मंगेशकर एवं उदित नारायण ने गाया है।
अब के सावन – शुभा मुद्गल (१९९९)
यह गीत किसी चित्रपट का नहीं है। किन्तु इस गीत में वर्षा का उत्सव मनाया गया है। इस उत्सव की भव्यता को चार चाँद लगाने का सम्पूर्ण श्रेय शुभा मुद्गल के सशक्त स्वर एवं अप्रतिम गायन शैली को जाता है।
घनन घनन – लगान (२००१)
वर्षा की प्रतीक्षा करते जनसमुदाय, विशेषतः किसान के मन के भाव को यदि किसी गीत ने पूर्ण न्याय किया है तो वह चित्रपट लगान का यही गीत है। कदाचित यह इकलौता गीत है जो वर्षा से हमारे जीवन के सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक संबंधों को पूर्ण सत्यता से परदे पर उतरता है। विशेष रूप से ग्रामीण भागों के किसानों, एवं अन्य गांववासियों के जीवन में वर्षा के महत्त्व को दर्शाता है। यदि आप गीत के बोल पर ध्यान केन्द्रित करें तो आप अपने समक्ष वे सभी खुशियों की कल्पना कर सकते हैं जिन्हें वर्षा अपने संग ले कर आती है। गीत के अंत में उदासी है जो मेघों के बिना बरसे ही चले जाने के कारण उत्पन्न हुई है। मुझे लोकगीतों से लगाव होने के कारण लगान का यह गीत अत्यंत भाता है।
बरसों रे मेघा – गुरु (२००७)
बरसो रे मेघा, इस गीत में दक्षिण भारतीय परिवेश में वर्षा के आनंद को सुन्दरता से चित्रित किया है। वर्षा के जल में धुले-भीगे शैल मंदिर, जल से लबालब भरे झरने तथा हरियाली से परिपूर्ण परिदृश्य मन को मोह लेते हैं। गुजरात के परिवेश में बने चित्रपट गुरु के लिए यह गीत किंचित अनुपयुक्त प्रतीत होता है। इसके पश्चात भी यह गीत मन मोह लेता है। भावनात्मक स्तर पर देखा जाए तो इस गीत में वर्षा के आते ही प्रथम प्रेम के उन्माद में सराबोर नायिका के पैर थिरकने लगते हैं। वह बेसुध नृत्य कर रही है। वह प्रेम के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर है।
ए. आर. रहमान के जादुई संगीत के आनंद को श्रेया घोषाल के मधुर स्वर द्विगुण कर रहे हैं।
गिव मी सम सनशाइन – ३ इडियट्स (२००९)
मुझे इस गीत के भाव अत्यंत प्रिय हैं। हमारे जीवन में सर्वाधिक आवश्यक तत्व हैं, सूर्य की किरणें एवं वर्षा। अन्य सब महत्वहीन हैं। यह गीत इस सूची के लिए भले ही उपयुक्त ना हो, किन्तु यह गीत इन सभी से कम प्रेरणादायक भी नहीं है।
अन्य लोकप्रिय वर्षा गीत कुछ इस प्रकार हैं:
रिम झिम के गीत सावन गाये – अंजाना १९६९
भीगी भीगी रातों में – अजनबी १९७४
देखो जरा देखो बरखा की लड़ी – ये दिल्लगी १९९४
सावन बरसे तरसे दिल – दहक १९९९
मैंने इन वर्षा गीतों का चयन किस आधार पर किया?
यूँ तो बॉलीवुड के चित्रपटों में वर्षा पर आधारित ढेरों गीत हैं। उनमें अनेक ऐसे गीत हैं जिनमें वर्षा का उल्लेख है तथा दूसरी ओर कई ऐसे हैं जिन्हें वर्षा के परिवेश में तो फिल्माया गया है, किन्तु उनमें वर्षा का कहीं उल्लेख नहीं है। मैंने विशेष रूप से उन गीतों का चयन किया है जिनमें वर्षा का भावनात्मक उल्लेख किया गया है, भले ही वह एक प्रेमी की प्रेम से सराबोर भावनाएं हों अथवा वर्षा की प्रतीक्षा करते एक किसान की तरसती आँखों की भावनाएं। मैंने उन गीतों को अधिक महत्त्व दिया है जहां गीत के बोलों द्वारा दर्शाए गए भाव में वर्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें मेरी निजी रूचि भी सम्मिलित है।
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बॉलीवुड में अनेक लोकप्रिय गीत ऐसे हैं जो वर्षा के परिवेश में चित्रित हैं तथा बॉलीवुड के इतिहास में अमर हो गए हैं। जैसे श्री ४२० का ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’, तथा चालबाज का ‘ना जाने कहाँ से आई है’ इत्यादि। किन्तु उनमें वर्षा का उल्लेख नहीं है। अतः मैंने उन्हें इस सूची में सम्मिलित नहीं किया है।
इंडीटेल के पाठकों द्वारा प्रस्तावित
लपक झपक तु आ रे बदरवा – बूट पॉलिश (१९५३)
इनके अतिरिक्त यदि आपका कोई प्रिय बॉलीवुड गीत है, जिसमें वर्षा का सुन्दर उल्लेख किया गया है, तो टिप्पणी खंड में लिखकर हमें अवश्य सूचित करें।
अमेज़न के सहयोगी होने के कारण इंडीटेल उनके चयनित क्रय से अर्जित मूल्य में भागीदार है।