गोलू देवता को उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ अर्थात् कूर्मांचल क्षेत्र में न्याय का देवता माना जाता है।
भारत में यह प्रथा है कि यहाँ के लोग प्रत्येक वस्तु तथा वस्तुस्थिति में देव का अस्तित्व मानते हैं। उनके प्रत्येक मान्यता में देव विराजमान हैं, उसी प्रकार उनके प्रत्येक अनुरोध में देव बसते हैं। एक ओर हैदराबाद के वीसा देव हैं जो इच्छित देश में जाने के लिए वीसा मिलने की कामना पूर्ण करते हैं तो दूसरी ओर राजस्थान के खाटू श्याम जो पराजितों के देव हैं। बीकानेर के समीप करणी माता मंदिर हैं जहां मूषकों का राज है क्योंकि उन्हें माता के पुत्र माना जाता है।
इसी श्रंखला में एक मंदिर है, उत्तराखंड में कुमाऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा में। अल्मोड़ा से पिथौरागड़ की ओर जाते हुए, कुछ किलोमीटर पश्चात, एक छोटा किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिर है। यह है गोलू देवता का मंदिर। हमने इसके दर्शन जागेश्वर धाम जाते समय किये थे। अल्मोड़ा के लगभग सभी लोगों ने हमसे इस मंदिर के दर्शन करने का सुझाव दिया था। उनके आग्रह को देख मैंने अनुमान लगाया कि गोलू देवता इस क्षेत्र के कितने महत्वपूर्ण देव हैं।
गोलू देवता कौन हैं?
गोलू देवता को भगवान् शिव का अवतार, गौर भैरव माना जाता है। गौर भैरव श्वेत अश्व की सवारी करते हैं तथा सदैव न्याय करते हैं। कहा जाता है कि यदि आप विवेक, बुद्धि तथा निर्मल हृदय से उनसे कुछ मांगे तो वे आपकी सर्व इच्छा पूर्ण करते हैं। वे इस भाग के इष्ट देवता हैं। यहाँ के कई लोग उन्हें अपना कुल देवता भी मानते हैं। उन्हें कुमाऊँ पहाड़ों के अधिष्ठात्र देव भी माना जाता है।
न्याय के देवता के सम्बन्ध में कई किवदंतियां प्रसिद्ध हैं।
न्याय के देवता की कथाएं
एक दंतकथा के अनुसार न्याय के देवता का सम्बन्ध कत्युरी सम्राटों से है जिन्होंने कुमाऊँ पर ७वीं.- १२वीं. सदी तक राज किया था। गोलू महाराज किसी एक कत्युरी राजा के पुत्र अथवा सेनानायक अथवा दोनों थे।
एक अन्य कथा उनका सम्बन्ध चाँद वंश से जोड़ती है जिन्होंने कत्युरी वंश के पश्चात, १२वीं. शताब्दी में यहाँ राज किया था। इस कथा के अनुसार गोलू महाराज एक साहसी योद्धा थे जो युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
न्याय देवता के उद्भव के सम्बन्ध में सर्वाधिक लोकप्रिय कथाओं के अनुसार उनकी माता कलिका, राजा झाल राय की रानी थी। जब गोलू महाराज का जन्म हुआ था तब राजा की अन्य रानियों ने ईर्ष्यावश उन्हें नदी के किनारे ले जाकर छोड़ दिया तथा उनके स्थान पर कलिंका के समीप एक पत्थर रख दिया था। एक मछुआरे ने गोलू महाराज के प्राणों की रक्षा की। ८ वर्ष की आयु के पश्चात एक दिवस वे एक लकड़ी के अश्व पर सवार होकर वापिस लौटे।
वे अपने अश्व को उस तालाब के समीप ले गए जहां राजा की ७ रानियाँ स्नान कर रही थीं। उन्होंने अश्व को जल पिलाया। रानियाँ उस पर हंसने लगीं। तब गोलू महाराज ने कहा कि यदि एक स्त्री पत्थर को जन्म दे सकती है तो वो एक लकड़ी के घोड़े की सवारी क्यों नहीं कर सकता? राजा को अपनी रानियों के कुकर्मों का आभास हो गया तथा उसने उन्हें कड़ा दंड दिया। तत्पश्चात राजा ने गोलू महाराज को राजा बना दिया। समय के साथ गोलू महाराज अपने न्यायप्रिय आचरण के लिए लोकप्रिय होने लगे तथा गोलू देवता के रूप में सदा के लिए अमर हो गए।
चितई का गोलू देवता मंदिर
अल्मोड़ा के समीप चितई मंदिर एक छोटा फिर भी अत्यंत मान्यता प्राप्त मंदिर है। चीड़ के वृक्षों से घिरे मंदिर की ओर जब मैं बढ़ी, मुझे लोगों ने वहां उपस्थित वानरों से सावधान रहने को कहा। मुझे आभास हो गया कि यह एक जागृत एवं विशेष मंदिर है। मैंने अब तक जितने भी प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन किये थे, जिनमें अयोध्या का राम जन्मभूमि मंदिर भी सम्मिलित है, वहां वानरों का तांता लगा रहता है।
मंदिर की ओर जाते चौड़े गलियारे के दोनों ओर विभिन्न आकारों के असंख्य पीतल की घंटियाँ लटकी हुई थीं। सुनहरी किनार की लाल चुनरी द्वारा ये घंटियाँ लटकाई हुई थीं। साथ ही हाथ से लिखी असंख्य चिट्ठियाँ भी लटकी हुई थीं। सूक्ष्म घंटियों से लेकर अतिविशाल घंटी तक, चारों ओर घंटियाँ ही घंटियाँ दृष्टिगोचर हो रही थीं। एक अतिविशाल घंटा जिस तोरण से लटका हुआ था, वह तोरण भी घंटियों से भरा हुआ था।
मंदिर के समीप पहुँचने पर मुझे और भी बहुत सी घंटियाँ दिखाई दीं। हस्त लिखित चिट्ठियों की संख्या भी बढ़ने लगी थीं। मंदिर की छत के नीचे अनगिनत चिट्ठियाँ थीं। मंदिर की भित्तियों पर एवं उनके चारों ओर कई स्टाम्प पेपर भी लटकाए हुए थे। भगवान् के दर्शन कर जब मैं गर्भगृह से बाहर आयी, स्वयं को कुछ चिट्ठियों को पढ़ने से रोक नहीं पायी। उन चिट्ठियों में घर-गृहस्ती, रोजगार, स्वास्थ्य, संपत्ति इत्यादि से सम्बंधित समस्याओं के विषय में याचिकाएं थीं। वे सब गोलू देवता से सहायता की याचना कर रहे थे।
गर्भगृह
छोटा से गर्भगृह को चटक उजले पीले एवं नारंगी रंग से रंगा हुआ था। हाथों में अर्पण हेतु चढ़ावे लिए भक्तगण पंक्ति में खड़े थे जो अत्यंत धीमी गति से आगे बढ़ रही थी।
गर्भगृह के भीतर, गोलू देव एक श्वेत अश्व पर सवार हैं तथा हाथों में धनुष बाण धारण किये हुए हैं। यह गोलू देव की शत प्रतिशत छवि हैं किन्तु आकार में किंचित छोटी है। भक्तगण उनके समक्ष नतमस्तक हो रहे थे, उनसे अपनी दुविधा कह रहे थे, उनसे अपनी इच्छा पूर्ति की मांग कर थे तथा पूर्ण हुई इच्छा के लिए उनसे कृतज्ञता व्यक्त कर रहे थे।
मंदिर के गर्भगृह में आकर मुझे ज्ञात हुआ कि बाहर लटकी घंटियाँ वास्तव में इच्छापूर्ति के पश्चात धन्यवाद देने के लिए लटकाई गयी हैं। प्रत्येक इच्छा पूर्ण होने के पश्चात भक्तगण यहाँ आकर गोलू देवता के लिए एक नवीन घंटी बांधते हैं।
गोलू देवता के मंदिर में प्रार्थना पत्र
गर्भगृह से बाहर आकर मेरी दृष्टी एक बार फिर उन असंख्य पत्रों पर पडी जिन्हें भक्तगणों ने यहाँ बाँधा है। मैंने उनमें से कुछ पत्रों को पढ़ने की चेष्टा की। कुछ पत्र पढ़ने के पश्चात मेरी आँखे अश्रुओं से भर गयीं। साधारण मानव ने साधारण शब्दों में अपनी दुविधाएं तथा कष्ट इस प्रकार लिखे थे मानों अपना हृदय उड़ेल दिया हो। उनके शब्दों में यह स्पष्ट झलक रहा था कि गोलू देवता उनकी सर्व दुविधाओं एवं कष्टों का समूल निवारण कर देंगे, इसका उन्हें पूर्ण विश्वास है।
भक्तगण गोलू देवता से क्या माँगते हैं?
अधिकतर पत्र यूँ लिखे हुए थे मानो भक्तगण अपने परम-मित्र को पत्र लिख रहे हों। उनके जीवन में क्या घट रहा है तथा क्या नहीं घट रहा, उन सबकी सम्पूर्ण जानकारी उन पत्रों में थी। यदि कुछ मनचाहा नहीं घट रहा तो उसके लिए आशीर्वाद की मांग भी की गयी थी। जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा में भरती होने के इच्छुक एक भक्त ने सर्वप्रथम उन्हें अपनी सर्व तैयारी के विषय में जानकारी दी। तत्पश्चात, उनसे भरती परीक्षा में उत्तीर्ण करवाने की मांग ना करते हुए उसने उनसे इतनी शक्ति की मांग की कि कोई अवांछित आकर्षण उसे अपने पथ से ना भटका सके।
एक अन्य पत्र में याचक अपने परिवारजनों के स्वास्थ्य एवं आनंद की कामना कर रहा था।
एक स्त्री ने अपने पति की बीमारी के विषय में लिखा था। उसने लिखा कि डॉक्टर उसकी बीमारी को अत्यंत भयावह तथा असाध्य बता रहे हैं। आगे यह भी लिखा कि डॉक्टर भी उसके ही समान साधारण मानव है। गोलू देवता को संबोधित करते हुए लिखा कि आपसे बढ़कर इस धरती पर कोई उत्तम वैद्य नहीं है, कृपा कर मेरे पति को इस रोग से मुक्ति दिलाएं। अपने संतानों के विषय में लिखते हुए कहा कि उन्हें भी अपने पिता के प्रेम व लाड़-दुलार की अत्यंत आवश्यकता है। वह एक अत्यंत हृदय विदारक पत्र था।
मंदिर में कई स्टाम्प पेपर अर्थात् मुद्रांक कागज़ भी थे जिसमें न्याय के देवता, गोलू देवता से न्याय की गुहार की गयी थी। लोगों का विश्वास है कि यदि वे अपने विवाद एवं मतभेद से सम्बंधित स्टाम्प पेपर यहाँ लगायेंगे तो उन्हें न्याय प्राप्त होगा।
कुमाऊँ में गोलू देवता के कई मंदिर हैं, किन्तु यह मंदिर उनमें अत्यंत विशेष है।
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चितई का मंदिर
चितई के गोलू देवता मंदिर के दर्शन पहाड़ों के विश्वास एवं भक्ति से मेरा प्रथम साक्षात्कार था। भक्तगण अपने छोटे-बड़े सभी कष्टों के निवारण एवं न्याय पाने हेतु आते हैं। समस्या के निवारण तथा अपनी इच्छित मांग पूर्ण होने का पश्चात वे यहाँ वापिस आकर इन्हें धन्यवाद देते हैं। कई भक्तगण यहाँ गोलू देवता से केवल आशीर्वाद पाने आते हैं।
बहुत बढ़िया जानकारी, 1 बार जरूर दरसन के लिए जाना चाहूंगी
धन्यवाद शीला जी, अवश्य जाइएगा, आनंद अनुभव होगा
चितई गोलू देवता कुमाऊँ अल्मोड़ा के न्याय देवता:- ऐसा हम कमोबेश काफी जगहों पर मंदिरों में यह परम्पराएँ बचपन से देखते आ रहे है मानव जब हर जगह से निराशा से व्यथित हो जाता हैं तो अपने इष्ट देवता के दरबार मे आस्था और विश्वास से एक उचित समाधान की आशा में अपनी समस्याओं की अर्जी प्रेषित करता है और काफी भक्तों को सकारात्मक प्रतिफल भी मिलता है जिससे उनका आस्था और विश्वास ओर सुदृढ़ हो जाता है। यही भारत की भोली भाली जनता का उस अदृश्य ताकत (जो इस संसार को व्यवस्थित तरीके से चलाती है ) पर अटूट विश्वास, आस्था व श्रद्धा है????????????
जी संजय जी, देवी देवता हमारे विश्वास का ही स्वरुप होते हैं.
Jai ashta kal bhairav
,jai golu devata chiti-nyay devata ki jai
namah//,ओम शं शनिचैराय नम:,jai shani kalbhirav devata,mene apane sabase
bhakti bhagavan shiv ke birav -bhiravi jodi aur pani-surya parivaar jodi ki ki
he.puri duniya me shree dhani kalbhirav devata ko insaaf ki devata mana he,aur
unake vaha kauwa aut kuta ki mene 10 saal se sampoona seva ki he,mujhe shani
-shiv bhirav group ki saath aur ashirwad chahiye,mene bhirav shani shiv mandhie
shirdi nager highway pe shani bhirav bhakato ko labh ho,aur mere saath indaaf
ho,mene sabkuch apne parivaar ke mandhir ke liye kiya ,aur gaon aur privaar ne
mere upper kala jadhu karake mujhe sai baba banaya,jo fakir banake biksha par
jeevan bita raha he,meri property loot li.hum hind world ke freedom fighter,aur
kala jadhu hindu ne hume fakir kiya ,aajadhi dene ke badale,jai hind world jai
shani shiv ashta bhirav bhiravi namo namah.
jai mata di,| ॐ ।। विनाश काल के समय महेश्वर के संग उपस्थित रहने वाली उन देवी का ध्यान करता हूं जिनकी शरीर की कांति सहस्त्र सूर्यों के समान है। उनके शरीर पर रक्त चंदन का लेप लगा हुआ है । क्रोध के कारण मुख लाल और नेत्र भय प्रदान करते है । यद्यपि शमशान से उत्पन्न हुई है परन्तु मस्तक पर अर्धा चन्द्र धारण करती है। कर कमल खड़ग, नरमुंड, रक्तपात्रा, शुल, अभय मुद्रा शोभा पाते है । इसी तरह उन त्रिलोक की संहार कारीनी, भैरव की संगिनी, शव पर आरूढ़, माता त्रिपुरभैरवी को मेरा बारंबार नमस्कार है।।